मेरी नई कहानी “पापा की परी प्रीती” पाठकों के लिए हाजिर है। उम्मीद है पाठकों को पसंद आएगी। कहानी हमेशा की तरह पूरी तरह से काल्पनिक है और केवल मनोरंजन के लिए लिखी गयी है। लेकिन कहानी का स्थान और समय दुरुस्त और सही हैं।
पाठक इसे उद्घृत यानी किसी को बताना चाहें तो बता भी सकते हैं। यही मेरी कहानियों की विशेषता होती है। कहानी के किरदार – कैरेक्टर – पात्र, काल्पनिक होते हैं, मगर समय और स्थान नहीं – समय और स्थान हमेशा सही और दुरुस्त होते हैं। तो चलिए शुरू करते हैं कहानी “पापा की परी प्रीती।”
कहानी के भुमिका – कहानी का समय है 2023-2024
मैं हूं इस कहानी का नायक, और ये हैं मेरे बारे में दो शब्द: मैं हूं अवतार सिंह रंधावा – 6’ का – 91 किलो वजन वाला और 7.5 इंच लम्बे और 2.25 इंच लम्बे मोटे लंड वाला लम्बा तगड़ा, क्लीन शेव पंजाब का जट्ट सिक्ख। मैं अमीरी में पैदा हुआ आज से 52 साल पहले 1972 में, चंडीगढ़ के एक उस समय के एक करोड़पति परिवार में।
चंडीगढ़ – 1950 में जिस जगह बसाया गया था, यहां पहले खेत हुआ करते थे और यहीं हमारी भी पुश्तैनी खेती की लगभग 39 एकड़ जमीन थी। इसमें हमारे कुछ खेत आज की सुखना झील के पास थे, जिसे पहले सुकना चोए या चोब कहा जाता था।
चोए या चोब मतलब जहां बारिश का पानी जमा होता है। कसौली, धर्मपुर, सोलन की शिवालिक पहाड़ियों से बारिश का पानी आ आ और सुकना चोए – या चोब में जमा हो जाता था।
1958 में इस सुकना को एक व्यवस्थित सुन्दर झील बना दिया गया और नाम रक्खा गया सुखना झील। इसके अलावा बाकी हमारी जमीनें यहीं इसी इलाक़े में अलग-अलग जगहों पर थी।
जब चंडीगढ़ बसा तब मेरे पिता हकीकत सिंह 14-15 बरस के थे। मेरे दादा बलकार सिंह की उम्र उस वक़्त 36 साल थी, और परदादा करतार सिंह उस वक़्त 60 साल के थे।
मेरे परदादा ही इस इलाके के अकेले ऐसे किसान हुआ करते थे जिनके घर में अपनी घोड़ा बग्घी यानि तांगा हुआ करता था। उस समय मेरे परदादा ही थे जिनके पास एक बड़ा सा कैमरा होता था जिसमें फ़्लैश के लिए बल्ब का इस्तेमाल होता था – मतलब इलाके के अमीरों में उनका नाम आता था।
इस खेती की जमीन का जब अधिग्रहण किया गया तो मुआवजे में हमें अच्छी खासी रकम मिली थी, जिसे अगर आज के हिसाब से देखा जाए तो तकरीबन साढ़े तीन सौ चार सौ करोड़ बनेगी।
मेरे दादा बलकार सिंह बहुत सुलझे और समझदार इंसान थे। उन्होंने मुआवजे की रकम का बहुत ही अच्छे तरीके से इस्तेमाल किया। उन्हें समझ आ गया था के फ्रांस के एक वास्तुकार द्वारा डिज़ाइन किया हुआ ये शहर चंडीगढ़, पूरे हिन्दुस्तान का एक अनूठा शहर बनने जा रहा था। मेरे दादा ने चंडीगढ़ में और आस-पास जमीन खरीद ली।
जब चडीगढ़ में सेक्टर बन गए और रिहायशी सेक्टरों की जमीन बिकनी शुरू हुई तो मेरे दादा ने सेक्टर पांच में लगभग 1200 गज का प्लाट ले लिया। जहां ये सेक्टर बना है – सेक्टर पांच – यहां पहले राम नगर हुआ करता था और राम नगर में हमारी जमीन भी थी। इसलिए इस जगह से हमारा लगाव भी था।
सुखना झील से सटा होने के कारण ये सेक्टर पांच आज चंडीगढ़ का सब से मंहगा सेक्टर है। इसके अलावा जब चडीगढ़ में दुकानों की नीलामी शुरू हुई तो मेरे दादा ने सेक्टर 17 में दो दुमंजिला दुकाने खरीद लीं। जिनकी कीमत आज पचास साठ करोड़ से अधिक की आंकी जाती है।
अब ये दुकानें किराये पर हैं। जिनमे एक में कोइ अमरीकी फ़ास्ट फ़ूड वाले हैं जिनके पास ऊपर-नीचे की दोनों मंजिलें हैं। इनका किराया दो लाख महावार आता है। दूसरी दूकान में वाइन शॉप है। इसका किराया एक लाख माहवार है, और इस वाइन शॉप की ऊपरी मंजिल में अब मेरा ऑफिस है।
अब कुछ मेरे बारे में –
1981 में चंडीगढ़ की पांचवीं की पढ़ाई की बाद शाह जी – शाह जी यानी मेरे पापा – सब लोग उन्हें शाह जी और मेरी को मम्मी को झाई जी बोलते थे। इसलिए मैं भी उन्हें इसी नाम से बुलाता था। तो शाह जी ने मुझे कसौली की खूबसूरत पहाड़ियों के एक मशहूर स्कूल में भिजवा दिया।
जब 1930 के आस-पास जब ये स्कूल शुरू हुआ था, उस वक़्त ये एशिया का पहला को-एजुकेशन यानी सहशिक्षा वाला स्कूल था। आज भी ये स्कूल देश के अवल्ल स्कूलों में शुमार होता है। कई आर्मी अफसर, टॉप के एक्टर, एक्ट्रेसेस, उद्योगपति यहां पर अपनी शुरू की पढ़ाई कर चुके हैं।
कानपुर की दुनियां की जानी-मानी मनोचिकित्स्क मालिनी अवस्थी भी यहीं से पढ़ी है, और हम दोनों एक ही क्लास में थे। हम दोनों की पटती भी बहुत थी। आज भी जब मालिनी आराम करने के लिए कसौली जाती है तो मेरे ही कसौली वाले घर – हॉलिडे होम में रुकती है।
मालिनी ने अब तक शादी नहीं की। मालिनी चुदाई की खूब शौकीन है। चूत, गांड, मुंह में सब जगह लंड लेती है। मैं भी उसे कसौली वाले अपने घर में चोद चुका हूं। लेकिन वो किस्सा फिर कभी सही। अभी तो हम “पापा की परी प्रीती” की बात करने वाले हैं।
1988 में इस स्कूल से बाहरवी पास करने के बाद मैं वापस चंडीगढ़ आ गया और 1992 में यहां से इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल की। सब जानते थे के मैंने अंत में संभालना अपना घर का बिज़नेस ही था, मगर क्योंकि मैं पढ़ने में तेज़ था, इसलिए पढ़ता चला गया।
1996 में 24 साल की उम्र में 21 साल की भूपिंदर कौर से मेरी शादी हो गयी। भूपिंदर कौर भी चंडीगढ़ की ही लड़की थी – कालेज की पढ़ी-लिखी, हंसमुख, बिंदास और खूबसूरत, हर वक़्त चुदाई के लिए तैयार। भूपिंदर का पूरा परिवार सालों से कनाडा में ही रहता है।
1998 में जब मैं 26 साल का था, मेरी बेटी हरप्रीत कौर – प्रीती – “पापा की परी” का जन्म हुआ – जो जवान हो कर बला की खूबसूरत निकली। पांच फुट दस इंच लम्बी प्रीती का फिगर 36-24-36 का है – कई मशहूर एक्ट्रसों को मात देता हुआ।
प्रीती के बड़े-बड़े गोल मम्मे, “E” या “DD” साइज़ के कप वाली ब्रा में भी मुश्किल से फिट होते हैं। समझना हो तो पोर्न स्टार – चुदाई की फिल्मों की एक्ट्रेस – मिस्टी माउंटेन जैसे बड़े-बड़े मम्मे देख लें। प्रीती के उभरे हुए चूतड़ ऐसे हैं जैसे दो बास्केट बॉल बीच में काट कर इकट्ठे रख दिए हों।
कुल मिला कर प्रीती की ख़ूबसूरती किसी का भी लंड खड़ा करने की लिए काफी है। आधों का लंड तो खड़ा होने पहले ही पानी छोड़ देता है ये सोच कर कि अगर इस लड़की का रंग ऐसा गुलाबी है, इसके बड़े-बड़े मम्मे और चूतड़ ऐसे तने हुए हैं, तो इसकी फुद्दी अंदर से कितनी गुलाबी और टाइट होगी।
2021 में प्रीती की शादी हुई है सुखचैन सिंह के साथ जो एक मिलिट्री अफसर है।
हट्टा-कट्टा सुखचैन भी जट्ट ही है, चंडीगढ़ के पास एक छोटे शहर खरड़ का रहने वाला। सुखचैन का परिवार भी कई सालों से कनाडा में ही रहता है। वो लोग साल में एक बार इंडिया आते हैं दिवाली के आस-पास, और गुरुद्वारों के दर्शन करके वापस चले जाते हैं।
मेरी बीवी भूपिंदर हर साल दो-तीन महीने के लिए कनाडा जाती है, वो आज-कल भी कनाडा गयी हुई है। मुझे बहुत कहती है कि मैं भी उसके साथ जाया करूं, मगर मेरा कनाडा में मेरा मन नहीं लगता।
मैं एक बार कनाडा गया था, बस उसके बाद मैं कनाडा नहीं गया। मुझे तो ये कनाडा एक झंडू देश लगता है। वहां हिन्दुस्तानी लड़के या तो ट्रक ड्राइवरी करते हैं, या टैक्सियां चलाते हैं या फिर बड़े-बड़े मॉल्स की टट्टियां – टॉयलेट्स साफ़ करते हैं।
अब तक प्रीती के पति सुखचैन की आर्मी में जहां-जहां तैनाती हुई है, वो फैमिली स्टेशन रहे हैं। मतलब वहां बीवीयों को साथ रखा जा सकता है, चोदने के लिए।
इस बार सुखचैन की तैनाती ढुबरी आसाम में हुई है, जहां परिवार को साथ रखने की इजाजत नहीं है। सुखचैन अपना परिवार कम से कम तीन महीने तक साथ नहीं ले जा सकता। अब चूंकि सुखचैन का परिवार इंडिया में नहीं है, तो सुखचैन के ढुबरी जाने के बाद तक प्रीती हमारे यहां ही रहेगी।
पक्के पंजाबियों की तरह सुखचैन भी मीट शराब और शबाब का शौक़ीन है। खा पी कर सुखचैन और प्रीती कमरे में बंद हो जाते हैं, और आधी-आधी रात तक शोर-शराबा करते हुए चुदाई करते हैं। उनकी आवाजें बाहर भी कोइ सुन सकता है, मगर इससे उन्हें कोई मतलब नहीं – कोइ सुनता है तो सुने – नहीं तो जाए जा के अपनी मां चुदाये।
इन पंजाबियों की चुदाई ऐसी ही होती है, शोर-शराबे वाली – “कोइ सुनता है तो सुने – नहीं तो जाए जा के अपनी मां चुदाये।”
अभी तीन-चार दिन पहले की बात है। रात को मैं अपने कमरे में बैठा “छड़ा लंड गिरधारी” – जिसकी बीवी कैनेडा में बैठी है – व्हिस्की की चुस्कियां ले रहा था। मेरा गिलास खाली हुआ तो मैंने देखा बोतल में भी व्हिस्की नहीं है। मैं आगे लाउन्ज में बनी बार से विह्स्की लेने चला गया।
गलियारे में से गुजरते हुए देखा तो सुखचैन प्रीती के कमरे का दरवाजा थोड़ा सा खुला है। अंदर से “उह, आह, आआह, हां ऐसे ही” जैसी मिली-जुली आवाजें आ रही थी। मैंने दरवजा थोड़ा सा धकेला। देखा तो सुखचैन लेटा हुआ था और प्रीती उसके खड़े लंड पर छलांगें लगा रही थी। प्रीती के 36 इंच के मम्मे सुखचैन के हाथों में थे। प्रीती के नरम-नरम मोटे चूतड़ प्रीति के ऊपर-नीचे होने के साथ-साथ मस्त हिल रहे थे।
अब ये पता नहीं के ये मेरा वहम था या क्या – प्रीती ने जरा सा सर घुमा कर दरवाजे की तरफ देखा और फिर से वापस सुखचैन के लंड पर छलांगें लगाने लगी।
मैं एक-दम से वहां से हट गया। मैंने बार से व्हिस्की की बोतल उठाई और वापस कमरे में आ गया। मैंने दरवाजा अंदर से बंद किया, व्हिस्की गिलास में डाली और चेयर पर बैठ कर मुट्ठ मारने लगा। मेरे ख्यालों में मेरी बीवी भूपिंदर नहीं बल्कि मेरी बेटी प्रीती थी – “पापा की परी प्रीती।”
वैसे ऐसी शोर-शराबे वाले चुदाई पंजाबियों के लिए कोइ नई बात नहीं। शादी के कुछ सालों तक मेरी और भूपिंदर की चुदाई होती थी, तब भी यही कुछ होता था, “उह, आह, आआह, हां ऐसे ही, लगाओ जोर से और जोर से।”
21-22 साल का मेरा बेटा अमनदीप एक नंबर का चूतिया किस्म का लड़का है। दो साल पहले अपनी ननिहाल कनाडा चला गया था। कहता था पढ़ाई करके वहीं सेटल होगा। करोड़ों की जायदार यहां है, लाखों की महीनें की आमदन और वो भोसड़ी का मादरचोद कनाडा में, या तो टैक्सी चलाएगा या फिर ट्रक ड्राइवरी करेगा अगर वो भी ना हुआ तो बड़े-बड़े मॉल्स में गोरों की टट्टियां साफ़ करेगा।
ये पंजाबी लड़के-लड़कियां बाहर जा कर यहीं कुछ करते हैं। करोड़ों की जायदादें यहां होती हैं और अमरीका, कनाडा जाते हैं गोरों के चूतड़ चाटने।
चंडीगढ़ का सेक्टर पांच वाला हमारा दोमंजिला घर बहुत आलिशान है। अंदर जाते ही बहुत बड़ा लाऊंज है जिसमें दो सोफे, एक बड़ी सी गोल मेज और आठ कुर्सियां रखी हैं। एक तरफ कोने में बार है जो हमेशा दारू की बोतलों से भरी रहती है।
बार की बगल में फ्रिज रखा है, जिसमें सिर्फ सोडे की बोतलें और बियर के कैन रखे जाते हैं। इस लाऊंज के बीचो-बीच से एक गलियारा निकलता है। गलियारे के एक तरफ एक बड़ा गेस्ट रूम है, जिसमें एक बेड, सोफा, ड्रेसिंग टेबल मेज कुर्सी सब कुछ है। ये गेस्ट रूम अपने आप में ही एक छोटा सा घर है। सुखचैन और प्रीती जब भी आते हैं इसी गेस्ट रूम में रहते हैं।
इस गेस्ट रूम के आगे किचन है और किचन के साथ लगा हुआ डाइनिंग हॉल है। आगे सीढ़ियां हैं जो ऊपर की मंजिल की तरफ जाती हैं। गलियारे की दूसरी तरफ दो कमरे और हैं। एक कमरा बड़ा है और दूसरा थोड़ा छोटा है। इस छोटे कमरे को छोड़ कर सब कमरों के साथ बाथरूम जुड़े हुए हैं। एक बाथरूम लाऊंज के साथ भी है और एक छोटा बाथरूम डाइनिंग हाल के साथ भी है।
ऊपर की मंजिल बिलकुल ऐसी ही बनी हुई है जैसे नीचे की। मगर ऊपर की मंजिल में नीचे के लाउंज की जगह खुला बरामदा है, जहां बैठ कर अक्सर घर के लोग दारूबाजी करते हैं, और भोसड़ी के, मादरचोद, बहनचोद जैसी गालियां बकते हुए गप्पें हांकते हैं।
हमारी काम वाली मेड, अड़तालीस साल की शकुंतला गठिये के कारण अब काम नहीं करती। जवानी में शकुंतला जवान में ग़ज़ब की खूबसूरत हुआ करती थी, मुझे अवतार भैया बोला करती थी।
शकुंतला का बेटा तेइस-चौबीस साल का जुगनू, हट्टा-कट्टा लड़का है। जुगनू अब मेरा ड्राइवर भी है और बॉडीगार्ड भी। जुगनू की इक्कीस-बाईस साल की बीवी कांता अब शकुंतला की जगह हमारे यहां काम करती है।
स्लिम ट्रिम कांता पढ़ी-लिखी शहरी लड़की है। हमारे घर में कांता जुगनू की वजह से काम करती है, वरना वो घरों में काम करने वाली किस्म की लड़की नहीं है। कांता मेरी बीवी भूपिंदर को बीजी बोलती है। जुगनू और कांता दोनों को मैंने स्कूटियां लेकर दी हुई हैं। कांता सुबह जल्दी आ जाती है और दस बजे तक काम निबटा कर चली जाती है, और फिर जा कर अपने घर का काम-काज करती है।
उसके बाद कांता शाम चार बजे आती है और रात का खाना तैयार करती है। जो कुछ भी हमारी रसोई में बनता है, वही शकुंतला का परिवार भी खाता है। शाम को कांता जाते हुए दाल, साग, सब्जी जो भी हमारी रसोई में बना होता है लेकर जाती है।
अभी तक कांता ने ऐसा कोइ इशारा तो नहीं किया कि वो मुझसे चुदाई करवाना चाहती है – असल में मुझे मौक़ा भी नहीं मिला, ना मेरी ऐसी कोइ मंशा ही है। वैसे भी घर पर कोइ ना कोइ होता ही है – मेरी पत्नी, जो आज-कल वो कनाडा गयी हुई है, तो प्रीती जो यहां पर है क्योंकि दो-तीन महीने के लिए अब उसने यहां ही रहना है।
लेकिन अगर, लेकिन अगर, कभी कांता की रज़ामंदी हुई तो मैं कांता को चोद दूंगा। स्लिम शरीर वाली कांता को चोदने में मजा भी बहुत आएगा।
जुगनू सुबह दस बजे आता है और बाहर ही इंतजार करता है, अंदर नहीं आता जब तक मैं उसे ना बुलाऊं। अगर मैंने फार्म पर जाना हुआ थो ठीक, वरना जुगनू जा कर फार्म से दूध, सब्ज़ियां, अंडे, मीट ले आता है। इसके बाद दोपहर को मैं सेक्टर सत्रह अपनी दुकानों पर चला जाता हूं। वाइन शॉप के ऊपर वाले ऑफिस में बैठ कर अपने जैसे ही करोड़पति दोस्तों को बुला लेता हूं।