पात्र:-
समीरा (30 वर्ष): सुंदर, पढ़ी-लिखी महिला, तीन साल से शादी-शुदा, लेकिन वैवाहिक जीवन में असंतुष्ट।
राहुल (35 वर्ष): समीरा का पति, नपुंसक, शांत और आत्ममग्न स्वभाव का।
डॉ. आर्यन मेहरा (28 वर्ष): युवा, आकर्षक और आत्मविश्वासी स्त्री रोग विशेषज्ञ।
मुंबई की गर्म दोपहर थी। समीरा शीशे के सामने खड़ी थी, बाल संवारती हुई। उसकी आँखों में गुस्सा और खालीपन दोनों थे। तीन साल हो गए थे शादी को, लेकिन अब तक गोद सूनी थी। पति राहुल डॉक्टरों के पास जाने को तैयार नहीं था, और उसकी रातें अब ठंडी दीवारों से बात करती थी।
समीरा (आइने में खुद से): “क्या मैं सच में गलत हूं, अगर मुझे अपने शरीर की भूख महसूस होती है? क्या सिर्फ औरत होना ही गुनाह है?”
उसने अपना फोन उठाया और अस्पताल में अपॉइंटमेंट लिया।
अस्पताल में दोपहर 3 बजे:-
डॉ. आर्यन मेहरा का केबिन काफी सजीला और साफ़ था। सफेद कोट में उसका जवान चेहरा और हल्की दाढ़ी उसे और भी आकर्षक बना रही थी।
डॉ. आर्यन (मुस्कुराते हुए): “हैलो मिस…?”
समीरा: “मिसेज़ समीरा गुप्ता… मुझे कुछ महीनों से प्रेगनेंसी की कोशिश में सफलता नहीं मिल रही। इसलिए चेकअप करवाना चाहती हूं।”
डॉ. आर्यन: “ठीक है… पहले थोड़ी हिस्ट्री जाननी होगी। शादी को कितना समय हुआ?”
समीरा: (धीरे से) “तीन साल…”
डॉ. आर्यन: “तीन साल में एक बार भी पॉज़िटिव रिपोर्ट नहीं आई?”
समीरा (नज़रें झुका कर): “नहीं… और मेरे पति भी अब टेस्ट के लिए तैयार नहीं होते।”
डॉ. आर्यन उसकी आँखों में झांकते हुए समझ चुका था कि सिर्फ शरीर नहीं, बल्कि आत्मा भी थकी हुई है।
डॉ. आर्यन: “मैं आपकी कुछ टेस्ट्स करवाता हूं। उसके बाद हम देखेंगे कि समस्या कहां है। लेकिन अगर आप चाहें, तो एक प्राइवेट काउंसलिंग सेशन भी कर सकते हैं। वहां आप खुल कर बात कर सकती हैं।”
समीरा (थोड़ा झिझकते हुए): “जी… मैं चाहूंगी कि कोई मुझे पूरी तरह सुने।”
अगले दिन काउंसलिंग रूम में:-
कमरे में हल्की महक थी। समीरा ने हल्की सी साड़ी पहन रखी थी। उसके चेहरे पर अब संकोच कम और जिज्ञासा ज्यादा थी।
डॉ. आर्यन: “आप आराम से बैठिए समीरा जी… मैं आज एक डॉक्टर की तरह नहीं, एक दोस्त की तरह आपकी बातें सुनना चाहता हूं।”
समीरा (धीरे-धीरे खुलते हुए): “डॉक्टर साहब… मुझे लगता है मेरे अंदर बहुत कुछ दबा हुआ है। मेरा शरीर जागता है… लेकिन मेरे पति को जैसे कुछ महसूस ही नहीं होता। वो… वो मर्द नहीं लगते…”
डॉ. आर्यन (धीरे से बोला): “हर शरीर को छूने की नहीं, समझने की जरूरत होती है। आपने बहुत सहा है…”
डॉ. की ये बात सुन कर समीरा की आँखें भर आई, और अचानक वो उठ कर खिड़की की ओर देखने लग गई। फिर वो बोली-
समीरा: “अगर एक औरत अपने शरीर के सुख के लिए तरसे… तो क्या वो पाप है?”
डॉ. आर्यन चुप-चाप खड़ा हो गया, और उसके पास जा कर धीरे से बोला-
डॉ. आर्यन: “प्यास पाप नहीं होती… लेकिन उसे समझने वाला कोई चाहिए।”
समीरा ने उसकी ओर देखा… एक अजीब सा खिंचाव था, जो दोनों के बीच बढ़ने लगा था। फार अगले दिन सुबह 11 बजे, समीरा को डॉक्टर आर्यन की कॉल आई।
डॉ. आर्यन (फोन पर): “समीरा जी, आपकी टेस्ट रिपोर्ट आ चुकी है। क्या आप आज आ सकती हैं?”
समीरा: “जी… मैं आधे घंटे में पहुंचती हूं।”
उसने हल्का मेकअप किया। गुलाबी रंग की साड़ी और सिंपल ब्लाउज़ में वह खुद को अलग ही महसूस कर रही थी। शायद भीतर कहीं कोई नई ऊर्जा जाग रही थी।
अस्पताल, आर्यन के केबिन में-
डॉ. आर्यन: “समीरा जी… रिपोर्ट्स के मुताबिक आप पूरी तरह स्वस्थ हैं। शरीर में किसी तरह की दिक्कत नहीं है।”
समीरा (गहरी सांस लेकर बोली): “तो मतलब…?”
डॉ. आर्यन: “अगर संतान नहीं हो रही… तो शायद समस्या आपके पति की ओर से है।”
डॉ. आर्यन के ये कहने के बाद सन्नाटा छा गया कमरे में। समीरा कुछ क्षण तक चुप रही। फिर वो बोली-
समीरा (धीरे से): “मुझे पता था…”
डॉ. आर्यन: “समीरा जी, कभी-कभी सिर्फ चिकित्सा ही हल नहीं होती। कई बार दिल और शरीर की भी दवा चाहिए होती है।”
समीरा ने उसकी तरफ देखा… उसकी नज़र में पहली बार एक गहराई थी, जिसे शब्दों से नहीं समझा जा सकता था।
समीरा: “क्या आप… मेरा इलाज कर सकते हैं?”
डॉ. आर्यन (धीरे से): “अगर आप पूरी तरह तैयार हैं, तो मैं वो कमी पूरी कर सकता हूं… जो सिर्फ दवाओं से नहीं जाती।”
ये सुन कर समीरा ने अपनी आँखें बंद कर ली। कुछ पल बाद जब उसने अपनी पलकों को खोला, उसकी सांसें भारी थी, और होंठ थरथरा रहे थे। फिर वो बोली-
समीरा: “मुझे वो सब चाहिए… जो मैंने कभी महसूस नहीं किया।”
आर्यन का प्राइवेट रूम, दोपहर 12:30 बजे-
कमरा शांत था। रोशनी हल्की और सुगंध मद्धम थी। समीरा धीमे कदमों से अंदर आई। उसको देख कर डॉ. आर्यन बोले-
डॉ. आर्यन: “डरिए मत… यहां कोई आपको जज नहीं करेगा।”
समीरा: “मैं सिर्फ एक औरत हूं… जो चाहती है कि कोई उसे पूरा महसूस कराए।”
आर्यन ने समीरा की साड़ी की पिन धीरे से हटाई… उसके कंधे खुले थे, कांपते हुए। फिर आर्यन बोला-
डॉ. आर्यन (धीरे से): “तुम बेहद खूबसूरत हो समीरा… और आज तुम्हारे शरीर को उसका हक मिलेगा।”
डॉक्टर की हरकतों से समीरा की सांसें तेज हो रही थी। उसका जिस्म जैसे खुद-ब-खुद आगे बढ़ रहा था। आर्यन ने उसके होंठों को छुआ… वह छुअन बिजली की तरह उसके पूरे शरीर में दौड़ गई। तभी समीरा बोली-
समीरा (सिसकते हुए): “मुझे… मुझे रोको मत… मैं अब और सह नहीं सकती।”
आर्यन ने उसे बांहों में भर लिया। उनके शरीर अब एक-दूसरे में घुलने लगे थे। पहली बार समीरा को अपने अंदर कोई भरपूर महसूस हो रहा था – ताकतवर, जवान और पूरी तरह जागृत।
अगला भाग आने से पहले मैं बोलूं कि ये मेरी पहली कहानी है तो आपको कैसी लगी? इसका जवाब मुझे ईमेल पर दे दें, ताकि मैं और ऐसे ही बढ़िया-बढ़िया कहानी आपके लिये पेश कर पाऊं। मुझसे बात करने के लिए
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क्या इस रिश्ते से समीरा को सिर्फ शारीरिक सुख मिलेगा, या एक नई शुरुआत की उम्मीद भी? क्या डॉक्टर आर्यन के जीवन में समीरा सिर्फ एक मोहताज महिला है या कुछ और? अगर आप चाहें, मैं भाग 2 लिख सकता हूं, जिसमें उनकी अगली मुलाकात, समीरा की जवानी खुल उठेगी।
बस आपकी तरफ से फीडबैक चाहिए, जिससे मुझे लिखने का हौंसला मिलेगा। कहानी पढ़ने के लिए धन्यवाद।