पिछला भाग पढ़े:- नेहा दीदी और मेरा सिक्रेट अफेयर-1
भाई बहन सेक्स कहानी के पिछले पार्ट में आपने पढ़ा कैसे दीदी ने मुझे उनकी पैंटी के साथ गंदी हरकतें करते पकड़ा, और नाराज़ हो गई। अब आगे-
कुछ ही हफ्तों में उन्हें बैंगलोर में एक बड़ी कंपनी से नौकरी का ऑफर मिला — वो उनका सपना था। उन्होंने खुशी-खुशी नौकरी स्वीकार कर ली और पैकिंग शुरू कर दी। घर में सब बहुत खुश थे, लेकिन मेरे अंदर एक खालीपन भर गया था। वो चली गई। कभी-कभार त्योहारों पर घर आती, लेकिन अब हमारे बीच पहले जैसी बात नहीं रही। वो मुझसे सिर्फ ज़रूरत भर की बातें करती, और कभी आँखों में आँखें डाल कर नहीं देखती।
मैं समझ गया था, मैंने जो किया उसने हमें हमेशा के लिए बदल दिया था। इसी बीच तकरीबन एक साल बीत गया और मैंने अपना ग्रेजुएशन पूरा कर लिया। नेहा दीदी बैंगलोर में पूरी तरह से बस चुकी थी। उन्होंने अपना इंस्टाग्राम अकाउंट अपनी तस्वीरों से भर दिया था। वह पहले से भी ज्यादा खूबसूरत लगती थी।
मेरे अंदर की बेचैनी थोड़ी कम हो गई थी, लेकिन हर बार जब उनकी कोई नई तस्वीर देखता, एक पुरानी याद फिर से उभर आती। उस दिन के बाद से सब कुछ बदल गया था।
अक्सर मुझे पछतावा होता कि दीदी के प्रति अपनी भावनाएं जाहिर करने का मेरा तरीका गलत था। अब जब मुझे अपने करियर का फैसला लेना था, तो मैंने भी बैंगलोर में ही आगे की पढ़ाई करने का मन बना लिया। शायद वहां जाकर खुद को बेहतर बना सकूं या शायद… कुछ और भी।
लेकिन बैंगलोर मेरे लिए बिल्कुल अनजान शहर था। वहाँ कहां रहूंगा, कैसे एडमिशन लूंगा, क्या खर्च होगा, कुछ भी समझ नहीं आ रहा था। बहुत सोचने के बाद, हिचकिचाते हुए मैंने दीदी का नंबर मिलाया। उंगलियां कांप रही थी, और दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़क रहा था। फोन घंटी पर था… और मैं सोच रहा था, क्या वो उठाएंगी भी या नहीं।
कुछ सेकंड बाद उन्होंने फोन उठाया। उनकी आवाज़ में वही पुराना अपनापन तो नहीं था, लेकिन वह औपचारिक नहीं थी। मैंने हिचकिचाते हुए कहा, “दीदी, मुझे बैंगलोर में पढ़ाई करनी है… लेकिन मुझे वहाँ के बारे में कुछ नहीं पता।”
थोड़ी देर चुप्पी रही। फिर उन्होंने कहा, “अच्छा किया जो बताया। तू आ जा, मैं सब समझा दूंगी। कुछ दिन मेरे पास ही रह लेना जब तक तुझे जगह नहीं मिलती।”
उनकी बात सुन कर एक अजीब-सी राहत महसूस हुई। शायद अब कुछ बदल सकता था — या कम से कम कुछ समझ आ सकता था।
दस दिन बाद मैं बैंगलोर में गया। साथ में एक बड़ी बैग भी थी, जिसमें जरूरत का सामान रखा हुआ था। सुबह लगभग दस बजे मैं बस स्टैंड पर उतरा और दीदी को इतने दिनों बाद ठीक तरह से सामने देखा।
वो सफेद शर्ट और काले पैंट में थी। उनकी कमीज़ पूरी तरह टक की हुई थी, जिससे उनकी कमर की खूबसूरत शेप साफ़ नजर आ रही थी। शर्ट के बटन हल्के खिंचे हुए थे, उनकी छाती का उभार कपड़ों को भरा हुआ दिखा रहा था। उनके काले टाइट पैंट्स उनके पिछवाड़े को उभारते हुए उन्हें और आकर्षक बना रहे थे। चाल में आत्मविश्वास था, और हर कदम में एक ठहराव।
वो मुस्कराई और मेरे पास आई। बिना ज़्यादा कहे, उन्होंने मुझे हल्के से गले लगा लिया — सिर्फ एक सेकंड के लिए। लेकिन उस एक सेकंड में उनकी छाती मेरे सीने से पूरी तरह लगी। उस पल का स्पर्श धीमा लेकिन गहरा था। उनकी गर्म, भरी हुई छाती मेरे सीने से सटकर जैसे भीतर तक उतर गई हो। शर्ट के अंदर छिपे उनके स्तनों की नरमी मुझे सीधे महसूस हुई और वो एहसास पूरे शरीर में फैल गया।
कुछ ही पलों बाद हम टैक्सी में बैठे और उनके फ्लैट की ओर निकल पड़े। रास्ते में उन्होंने खिड़की से बाहर झांकते हुए मुझसे कहा, “यहां कई अच्छे कॉलेज हैं, लेकिन एक खास कॉलेज है जो तेरे लिए बिल्कुल सही रहेगा। मैंने पहले ही जानकारी निकाल रखी है। उसकी फैकल्टी, प्लेसमेंट और पढ़ाई का माहौल बहुत अच्छा है।”
मैं ध्यान से उनकी बातें सुनता रहा। उनका लहजा अब कुछ सहज लग रहा था, जैसे वो फिर से बहन बनने की कोशिश कर रही हों… या शायद कुछ और।
करीब आधे घंटे बाद हम उनके अपार्टमेंट के सामने पहुंचे। उन्होंने चाबी निकाल कर फ्लैट का दरवाजा खोला और जैसे ही मैं अंदर दाखिल हुआ, मेरी नजर उनके कमरे पर पड़ी। कमरा थोड़ा बिखरा हुआ था — बेड पर कुछ कपड़े फैले थे, कुर्सी पर एक ब्रा टंगी हुई थी और कोने में एक स्टूल पर उनका काला पैंटी रखा था जो शायद धुलने के लिए अलग रखा गया था।
दीदी ने जैसे ही कमरे की हालत देखी, वो थोड़ी शर्मिंदा सी हँसी और झट से ब्रा और पैंटी को उठा कर अलमारी में रख दिया। उन्होंने नजरें चुराते हुए कहा, “सॉरी, मैंने सफाई नहीं की थी। चल, तू आराम कर ले, ये तेरा कमरा है कुछ दिन के लिए।”
मैंने सिर हिलाया और कमरे में घुस कर चारों ओर देखा — वही खुशबू, वही एहसास — लेकिन अब सब कुछ थोड़ा और निजी लग रहा था।
सफ़र की थकान मुझ पर हावी हो रही थी, इसलिए मैं बिस्तर पर लेट गया। दीदी ऑफिस के लिए निकलने लगी। उन्होंने जाते-जाते कहा, “आराम कर ले, मैं शाम को आऊंगी। खाना फ्रिज में है, भूख लगे तो निकाल लेना।”
मैंने बस हल्के में सिर हिलाया और आंखें बंद कर ली। कब नींद आई पता नहीं चला। दिन भर मैं गहरी नींद में सोता रहा। शाम को दरवाजे की आवाज़ से मेरी नींद टूटी — दीदी लौट आई थी।
वो कमरे में आई और मुझे हिलाते हुए बोली, “उठ जा, बहुत सो लिया। चल खाना खा ले।”
मैंने नींद भरी आंखों से उनकी ओर देखा। वो ऑफिस की थकान के बावजूद मुस्कुरा रही थी। कमरे में हल्की-सी गर्माहट और एक अजीब-सी नजदीकी फिर से महसूस हो रही थी। मैं धीरे से बिस्तर से उठा और ताज़ा होने के लिए बाथरूम की तरफ बढ़ा। उसी दौरान दीदी ने अपने कपड़े बदल लिए थे। जब मैं बाहर आया, तो मैंने उन्हें देखा — वो अब लाल रंग के शॉर्ट्स और सफेद क्रॉप टॉप में थी।
उनका बदन बेहद सजीव लग रहा था। टाइट क्रॉप टॉप ने उनकी गोलाइयों को उभार दिया था, जिससे उनकी छाती की बनावट साफ दिख रही थी। टॉप उनके पेट के ठीक ऊपर खत्म हो रहा था, जिससे उनकी नाभि और कमर की चिकनी त्वचा झलक रही थी। शॉर्ट्स उनके कूल्हों को पूरी तरह ढके नहीं थे — उनकी जांघें उजागर थीं, मुलायम और चमकदार। उनके चलने की अदा और शरीर की थिरकन अब और ज्यादा आकर्षित कर रही थी।
मेरे दिल की धड़कन फिर से तेज हो गई थी — और मन में कई उलझी हुई भावनाएं उभरने लगी थी। थोड़ी देर बाद उन्होंने कहा, “चल, खाना खा लेते है।” हम दोनों फ्लैट के छोटे-से डाइनिंग एरिया में पहुँचे। वहाँ एक छोटा सा टेबल था और दो छोटी कुर्सियाँ रखी थी। हम आमने सामने बैठ गए।
हमने खाना शुरू किया और धीरे-धीरे बातों का सिलसिला चल पड़ा। मैंने अपने कॉलेज प्लान्स और भविष्य की उम्मीदों के बारे में बताया। वो भी अपने काम की बातें शेयर करने लगीं। हँसी-मज़ाक भी चल रहा था, माहौल हल्का और आरामदायक हो गया था।
लेकिन तभी अचानक उन्होंने मेरी आंखों में झांकते हुए पूछा, “एक बात पूछूं?”
मैंने चौंकते हुए कहा, “हाँ, पूछो।”
वो थोड़ी देर चुप रही, फिर हल्की आवाज़ में बोलीं, “डेढ़ साल पहले… तू मेरे कपड़ों के साथ गंदी हरकतें क्यों करता था?”
मेरी सांसें जैसे थम गई। दिल जोर से धड़कने लगा। मैं कुछ पल चुप रहा, फिर धीरे से बोला, “दीदी… मुझे माफ कर दो। उस समय मैं बहुत छोटा था… नादान सा। समझ नहीं आता था क्या सही है क्या गलत। मुझे नहीं पता क्यों करता था वो सब… शायद मैं आपको बहुत चाहता था, और… शायद मैं आपसे प्यार करने लगा था।”
मैंने नजरें झुका ली। मुझे डर था कि अब वो नाराज़ होंगी, मुझे घर से निकाल देंगी। लेकिन उनका चेहरा शांत था। उन्होंने कुछ नहीं कहा, बस मुझे ऐसे देखा, जैसे मेरे अंदर कुछ ढूंढने की कोशिश कर रही हों।
फिर धीरे से मुस्कराई और बोलीं, “खा ले खाना, ठंडा हो रहा है।”
हमने फिर से खाना शुरू किया। वो बिल्कुल नाराज़ नहीं लगी — बस चुप-सी थी। शायद सोच रही थी। खाना खत्म करने के बाद हमने थोड़ी देर और इधर-उधर की बातें की — करियर, शहर, पुरानी यादें। लेकिन उस एक सवाल ने माहौल को कहीं ना कहीं थोड़ा गहरा और अंतरंग बना दिया था।
हम दोनों बहुत देर तक उसी तरह बातें करते रहे और उसके बाद अपने अपने कमरे में सोने चले गए, लेकिन मेरी नींद तो कब की उड़ गई थी। मैं बस दीदी के बारे में सोच रहा था। उसकी बातें, उसके आंखें, उसके होंठ। वह और भी ज्यादा खुबसूरत लग रही थी।
मैं सोने की कोशिश करता रहा लेकिन नींद आने का नाम नहीं ले रही थी। तकरीबन रात के दो बजे मेरे कमरे के दरवाजे पर हल्की सी दस्तक हुई और मैं चौंक गया।
“कौन है?” मैंने धीरे से पूछा।
“मैं हूं… दीदी,” उन्होंने धीमी आवाज़ में जवाब दिया।
मैंने झिझकते हुए दरवाज़ा खोला। दीदी सामने खड़ी थी, हल्की नींद और झिझक उसके चेहरे पर साफ़ झलक रही थी। कुछ पल हम दोनों एक-दूसरे को देखते रहे। फिर बिना कुछ कहे दीदी अंदर आ गई। मैंने दरवाज़ा बंद कर दिया।
कमरे में एक अजीब सी खामोशी छा गई थी। वह पलंग के पास खड़ी रही और मैं कुछ समझ नहीं पा रहा था कि क्या कहूं या क्या करूं। तभी दीदी ने धीमी आवाज़ में कहा, “मुझे तुमसे बात करनी है…”
मैंने सिर हिलाया और वो धीरे से पलंग पर बैठ गई।
“क्या तुम अब भी मुझसे प्यार करते हो?” उन्होंने पूछा। मैं कुछ समझ नहीं पाया। मैंने झूठ बोलने के लिए अपना मुंह खोला और फिर बाद में बंद किया। वह मुझे देख रही थी।
“हां,” मैंने डरते हुए हौले से कहा।
कुछ पल तक दोनों शांत रहे। फिर दीदी ने मेरी ओर देखा। उसकी नज़रें थोड़ी झिझकी हुई थी, लेकिन उसमें एक गंभीरता भी थी। वह कुछ पल तक मेरी आंखों में देखती रही। मुझे ऐसा लगा जैसे समय थम गया हो।
फिर उसने धीरे से कहा, “मैं भी तुमसे प्यार करती थी… शुरू से। तुम्हारी बातें, तुम्हारा मासूमपन… सब कुछ अच्छा लगता था। लेकिन फिर जब तुमने धीरे-धीरे अजीब व्यवहार करना शुरू किया, छिप कर देखना, मेरे कपड़ों के साथ खेलना… तो मैं डर गई थी। मुझे लगा तुम बदल गए हो।”
उसकी बातें सुन कर मेरे भीतर हौले-हौले हिम्मत आई। मैं धीरे-धीरे चल कर उसके और करीब गया। वह अब भी पलंग पर बैठी थी, लेकिन मेरी हरकतों को गौर से देख रही थी।
मैं बिल्कुल उसके सामने आकर रुक गया और धीरे से उसका हाथ थाम लिया। उसके चेहरे पर हल्की सी शर्म झलकने लगी, उसकी नज़रें झुक गई और होंठ थरथरा उठे। लेकिन उसने हाथ नहीं छोड़ा।
मैंने नरम आवाज़ में कहा, “माफ कर दो दीदी… उस वक़्त मैं बस उलझा हुआ था, समझ नहीं पा रहा था कि मेरे अंदर क्या चल रहा है। पर अब मैं पूरी ईमानदारी से कह रहा हूँ, तुम्हें खोना नहीं चाहता।”
उसने मेरी उंगलियों को हल्के से दबाया और बहुत धीमे से मुस्कराई, जैसे उसका दिल भी कुछ कह रहा हो — लेकिन शब्दों में नहीं, बस उस छुअन में।
कुछ पल और बीते, कमरे में सिर्फ हमारी सांसें सुनाई दे रही थी। दीदी ने धीरे-धीरे मेरी ओर देखा और फिर अपनी आंखें झुका लीं। वह थोड़ी देर चुप रही, फिर बिना कुछ बोले अपनी सफेद क्रॉप टॉप को धीरे-धीरे ऊपर की तरफ उठाने लगी। उसकी हर हरकत में शर्म और हिचकिचाहट थी, लेकिन उसने खुद को नहीं रोका।
जब टॉप उतर चुका था, वह थोड़ी झेंपी सी नज़र आई, लेकिन फिर मेरी आंखों में देखती हुई धीरे से बोली, “क्या अब हम कर सकते हैं… वो सब?”
उसका चेहरा शर्म से गुलाबी हो चुका था, लेकिन उसमें कहीं कोई डर नहीं था—बस सच्चाई और भरोसे की झलक थी।
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