पिछला भाग पढ़े:- नेहा दीदी और मेरा सिक्रेट अफेयर-4
भाई-बहन सेक्स कहानी अब आगे-
नेहा दीदी मेरे सामने सोफे पर लेटी हुई थी। उनकी खुली हुई छाती और कोमल त्वचा पर चाॅकलेट की परतें ऐसे टिकी थी, जैसे किसी कलाकार ने सावधानी से उन्हें सजाया हो। चाॅकलेट की गाढ़ी चमक उनकी गोरी त्वचा पर और भी निखर रही थी, मानो मिठास और खूबसूरती एक साथ मिलकर कोई अनोखा नज़ारा रच रहे हों।
मैं उन्हें देखता रहा, जैसे पहली बार उनकी ओर ध्यान गया हो। नज़रों के सामने एक तस्वीर थी जो मन को थामे रखती थी। हर एक अदा, हर एक रेखा और मुस्कान को आँखें सहेज लेना चाहती थी। वह पल किसी ख्वाब जैसा था, जिसमें देखने भर से दिल भर नहीं रहा था।
उन्होंने हल्की मुस्कान के साथ अपने शरीर पर पिघलती चॉकलेट को उंगलियों से छुआ और धीमे स्वर में कहा, “ये मिठास देख रहे हो? क्या तुम इसे चखना चाहोगे?” उनकी आवाज़ में शरारत भी थी और एक अजीब-सी गहराई भी, जिसने उस पल और अनोखा बना दिया।
मैं धीरे-धीरे आगे बढ़ा और उनके पास घुटनों के बल बैठ गया। पास से देखने पर वह नज़ारा और भी मोहक हो उठा। साँसों की गर्माहट और चॉकलेट की मीठी महक ने माहौल को भर दिया था। दिल की धड़कन तेज़ थी, लेकिन आँखों में सिर्फ वही छवि थी, एक जादू जो पास जाने पर और गहराई से महसूस होने लगा।
वह पल नेहा दीदी को भी हल्का-सा झिझकाने लगा। शर्म से उनकी नज़रें झुक गई, पर होंठों पर मुस्कान बनी रही। उन्होंने अपनी उंगलियों से छाती पर जमी पिघली चॉकलेट को हल्के-हल्के छुआ। चॉकलेट का गाढ़ा तरल उनकी कोमल त्वचा से चिपका हुआ था। कुछ बूंदें उन्होंने उंगलियों पर समेट ली और धीरे से उन्हें ऊपर उठाया। उनकी उंगलियों पर जमी चॉकलेट की परत चमक रही थी।
फिर, बिना कुछ कहे, उन्होंने उंगलियों से वह चॉकलेट धीरे-धीरे मेरे होंठों की ओर बढ़ाई। उनकी हर हरकत में एक झिझक और शरारत थी। जैसे ही उंगलियाँ करीब आई, उस मिठास की महक ने दिल की धड़कन और बढ़ा दी। चॉकलेट की गाढ़ी बूंद जब होंठों पर लगी, तो मानो पूरा माहौल और भी मीठा हो उठा। उस पल की नर्मी, उनका संकोच और उस मिठास का स्वाद, सब मिल कर ऐसा असर छोड़ रहे थे जिसे शब्दों में बाँधना मुश्किल था।
फिर नेहा दीदी ने शरारती मुस्कान के साथ मुझसे पूछा, “क्या तुम्हें और चाहिए?” उनका सवाल हवा में घुलते मीठे अहसास को और गहरा कर रहा था।
मैंने गहरी साँस लेते हुए धीरे से कहा, “हाँ… मुझे और चाहिए।” मेरी आवाज़ में चाहत और बेचैनी साफ सुनाई दे रही थी। यह सुन कर नेहा दीदी का चेहरा और भी लाल हो गया। उन्होंने हल्की-सी झिझक दिखाते हुए मेरा हाथ थामा और उसे धीरे-धीरे अपनी छाती पर रख दिया। उनकी साँसें तेज़ हो चुकी थी, और आँखों में शर्म की चमक थी।
मेरी उंगलियाँ जैसे ही उनके सीने पर पहुँची, चॉकलेट से ढके उनके गोल और नरम स्तन मेरी हथेलियों के नीचे आ गए। उस मिठास और गर्मी का एहसास ऐसा था जैसे किसी ख्वाब को छू रहा हूँ। चॉकलेट की चिकनी परत मेरी उंगलियों में घुलने लगी, और उनके स्तनों की मुलायमियत मेरे हाथों को अपने अंदर समेटने लगी। मैंने हल्के दबाव से उनकी गोलाई को थामा, तो उनके होंठों से एक धीमी सी सिसकारी निकल गई।
उस पल में उनकी झिझक और बढ़ी, लेकिन उन्होंने हाथ नहीं हटाया। बल्कि मेरी उंगलियों को और कस कर अपनी छाती पर दबा दिया। उनकी त्वचा पर फैली गर्मी, चॉकलेट की मीठी गंध और उनकी हल्की सिसकारियाँ मेरे अंदर की हर चाह को और तेज़ कर रही थी।
अब मैं खुद को रोक नहीं पाया। मेरे अंदर की बेचैनी अचानक उभर आई और मैंने बिना सोचे-समझे अपना चेहरा उनकी छाती की ओर झुका दिया। जैसे ही मेरे होंठ उनके चॉकलेट से ढके स्तनों से लगे, एक मीठा और गर्म स्वाद मेरे मुँह में भर गया। मैंने धीरे-धीरे उन्हें अपने होंठों में कैद किया और नरमी से चूसना शुरू किया।
नेहा दीदी का पूरा शरीर हल्का-सा काँप उठा। उनकी आँखें बंद हो गई, होंठों से एक लंबी सिसकारी निकली और गर्दन पीछे की ओर झुक गई। उनकी साँसें भारी और टूटी-टूटी होने लगी। हर बार जब मैं उनके स्तन को हल्के दबाव से चूसता, उनकी कमर मरोड़ खाकर ऊपर उठ जाती और होंठों से धीमे कराहने की आवाज़ निकलती।
मेरे लिए वह एहसास किसी नशे से कम नहीं था। उनके स्तनों की मुलायम गोलाई मेरे होंठों और जीभ के नीचे पिघलती हुई लग रही थी। चॉकलेट का मीठा स्वाद और उनकी त्वचा की गर्माहट एक-दूसरे में घुल कर मुझे और पागल बना रहे थे। मेरी जीभ जब उनके निपल्स को छूती और धीरे-धीरे चखती, तो उनके पूरे शरीर में झुरझुरी दौड़ जाती।
दीदी ने शर्म और आनंद में अपने हाथ मेरे बालों में फँसा लिए। उनकी पकड़ कसती जा रही थी, जैसे वह चाह रही हों कि मैं रुकूँ ही नहीं। उनका चेहरा पूरी तरह लाल हो चुका था, आँखों में नशा और होंठों पर अधखिली मुस्कान थी। वह हर स्पर्श, हर चूसने पर सिहर उठती, और उनकी भारी साँसों की गर्मी मेरे कानों से टकरा रही थी। उस पल मुझे लगा कि मैं सच-मुच उनकी हर धड़कन, हर कराह और हर मीठे स्वाद को अपने भीतर समेट रहा हूँ।
तभी उन्होंने आधी बंद आँखों से मुझे देखा और धीमी आवाज़ में कहा, “मुझे भी थोड़ा स्वाद चाहिए…” उनकी बात सुन कर मैं वहीं थम गया। मैंने तुरंत होंठों को उनके स्तनों से हटाया और गहरी साँस ली। मैं अब भी पूरी तरह कपड़ों में था, लेकिन वह बिल्कुल नंगी होकर मेरे सामने थी। वह सोफ़े पर लेटी हुई थी, और मैं उनके ऊपर झुकते हुए उन्हें चूम रहा था।
फिर उसके बाद मैं उनके ऊपर लेट गया। सोफ़े की तंग जगह पर उन पर लेटना आसान नहीं था। जब मैं धीरे-धीरे उनके ऊपर आया, तो मेरा शरीर उनके शरीर से पूरी तरह चिपक गया। मेरे सीने का दबाव सीधे उनके मुलायम स्तनों पर पड़ रहा था।
उनके गोल स्तन मेरे सीने के नीचे दब कर हल्के-हल्के फैलते जा रहे थे, मानो मेरी हर साँस के साथ वे ऊपर-नीचे हो रहे हो। मैं उन्हें पूरी तरह से अपने नीचे महसूस कर पा रहा था, उनकी त्वचा की गर्मी, उनके स्तनों की गोलाई और उनके निपल्स की हल्की सख्ती मेरे कपड़ों के नीचे भी साफ़ महसूस हो रही थी।
उनका पेट और नंगी कमर मेरे कपड़ों से टकरा कर हल्की घर्षण पैदा कर रहे थे। उनके पैरों की हल्की हरकतें और मेरे वज़न का दबाव उन्हें और बेबस बना रहा था। वह धीरे-धीरे सिसक रही थी, मानो मेरे शरीर का बोझ उनके लिए किसी नशे जैसा हो। उन्होंने अपने हाथ मेरी पीठ पर कस कर रख दिए, जैसे वह चाहती हों कि मैं उन्हें और दबाऊँ, और कहीं ना जाऊँ।
मैंने अपना चेहरा झुका कर उनके स्तनों पर फैली चॉकलेट को जीभ से धीरे-धीरे चाटना शुरू किया। अब मेरा सीना और भी नीचे दब रहा था, जिससे उनके स्तनों पर मेरा पूरा दबाव महसूस हो रहा था। चॉकलेट की परत पिघल कर मेरे मुँह में घुलने लगी, और उनके नरम स्तनों की गर्माहट मेरी जीभ पर महसूस हो रही थी। हर चाट के साथ वह हल्के से काँप जाती और उनकी उँगलियाँ मेरी पीठ को कस कर पकड़ लेती।
जब मैंने पूरी तरह चॉकलेट को साफ़ कर लिया, तो अपने होंठों को उनके स्तनों पर रख दिया और धीरे-धीरे उन्हें फिर से चूमने लगा। उनके निपल्स मेरे मुँह में आते ही और तनने लगे, और वह हल्की कराह के साथ मेरी कमर को अपनी ओर खींच लेती। उनकी आँखें आधी बंद थी, होंठों पर हल्की मुस्कान थी और साँसें तेज़ होती जा रही थी। मेरे हर किस्स पर उनकी छाती ऊपर-नीचे होती, और मेरा सीना उनके स्तनों को और दबाता, जिससे दोनों के बीच का एहसास और गहरा होता गया।
कुछ पल बाद मैंने अपना चेहरा ऊपर उठाया और उनके होंठों पर झुक गया। जैसे ही मेरे होंठ उनके होंठों से मिले, उन्होंने आँखें बंद कर ली और खुद को पूरी तरह मेरे चुंबन में खो दिया। मेरे मुँह में अब भी चॉकलेट का मीठा स्वाद था, और जब मैंने उन्हें किस्स किया, तो वह स्वाद धीरे-धीरे उनके होंठों पर उतरने लगा।
धीरे-धीरे मैंने अपने होंठ खोले और उनकी जीभ को अपनी ओर खींच लिया। हमारी जीभें आपस में टकराई और फिर एक-दूसरे के चारों ओर घूमने लगी। चॉकलेट की मिठास और हमारी लार आपस में घुल कर ऐसा स्वाद बना रही थी जो हमें और दीवाना कर रहा था। हर बार जीभ के स्पर्श से उनके शरीर में हल्की झुरझुरी दौड़ जाती, और वह मेरे गले से सिसकारी छोड़ देती।
हम दोनों की साँसें मिल कर भारी होती जा रही थी। उनकी जीभ मेरे मुँह के हर कोने को छूती, और मैं भी उसी चाहत के साथ उनकी मिठास को अपने अंदर समेट रहा था। चॉकलेट और हमारी सलाइवा का मिलना एक ऐसा नशा था जो हमें और गहराई में खींच रहा था। उनके होंठों की नरमी, जीभ की नमी और हर चुंबन के साथ फैलता स्वाद हमें एक-दूसरे में और डुबो रहा था।
इसी बीच मेरे अंदर की बेचैनी और बढ़ गई। मैंने होंठों को उनसे अलग किया और लगभग फुसफुसाते हुए कहा, “दीदी… मैं अब और कंट्रोल नहीं कर पा रहा…” मेरी आवाज़ में काँप और चाहत दोनों थी। उन्होंने आँखें खोली, हल्की मुस्कान दी और धीमे स्वर में बोली, “तो फिर… अपनी पैंट उतार दो।”
उनकी बात सुन कर मेरा दिल जोर से धड़कने लगा। मैं तुरंत उठ कर खड़ा हो गया। मैंने जल्दी-जल्दी अपनी पैंट और फिर अंडरवियर उतार दिए। अब मैं पूरी तरह नग्न था और उनकी नंगी नज़रें मेरे ऊपर टिकी हुई थी। उनके होंठों पर हल्की शरारत भरी मुस्कान थी।
मैं वापस आया और इस बार उनके पेट पर बैठ गया। जैसे ही मैं झुका, मेरा लंड सीधा उनकी छाती से टकराने लगा। उनके गर्म और मुलायम स्तनों के बीच मेरा कठोर अंग छूते ही वह हल्का-सा सिहर उठी। उन्होंने बिना देर किए अपना हाथ आगे बढ़ाया और मेरे लंड को थाम लिया।
उनकी उंगलियों की पकड़ नरम थी लेकिन उसमें हल्का कसाव भी था। उन्होंने धीरे-धीरे अपना हाथ ऊपर-नीचे चलाना शुरू किया। मेरे पूरे शरीर में सनसनी दौड़ गई। उनका स्पर्श इतना कोमल और गीला था कि मैं हर लम्हे और गहराई में डूबता जा रहा था।
जैसे-जैसे उनका हाथ चलने लगा, मेरा अंग उनके स्तनों के पास रगड़ खाने लगा। हर हरकत के साथ मेरे होंठों से कराह निकलती, और उनकी आँखों में चाहत और भी गहरी होती जाती। उन्होंने अपने दूसरे हाथ से मेरे सीने को सहलाया और हल्के दबाव से मुझे और करीब खींच लिया। उनकी गर्म हथेली में मेरा लंड थरथरा रहा था।
मेरे अंदर का उबाल अपनी हद तक पहुँच चुका था। मैंने काँपती आवाज़ में कहा, “दीदी… अब मैं अपनी लिमिट पर हूँ…”
उन्होंने शरारती मुस्कान के साथ मेरी ओर देखा और बोली, “इतनी जल्दी?” फिर भी उनके हाथ मेरे अंग को और तेज़ी से सहलाते रहे। उनके हाथ की रफ़्तार और उनकी छाती का दृश्य मेरी आँखों के सामने ऐसा था कि मैं खुद को रोक नहीं सका।
अचानक मेरा पूरा शरीर तनाव से भर गया और अगले ही पल मेरा सफेद पानी उनके स्तनों पर फूट पड़ा। गर्म, सफ़ेद बूँदें उनके गोल स्तनों पर बिखरने लगीं। कुछ बूँदें ऊपर की ओर उछलकर उनके गले और होंठों के पास तक पहुँच गई।
मेरे लंड से निकलती हर लहर के साथ उनके चेहरे पर हैरानी और सुख की झलक साफ़ नज़र आ रही थी। उन्होंने हल्की सिसकारी भरी, फिर नीचे देखा। उनकी छाती पर मेरा गाढ़ा पानी चमक रहा था, जो उनकी त्वचा पर फैल कर गीली चमक पैदा कर रहा था। कुछ बूँदें उनके निपल्स पर टपक गई और धीरे-धीरे नीचे की ओर बहने लगी।
उन्होंने उँगली से एक बूंद को छूकर अपने होंठों के पास महसूस किया, फिर शरमाते हुए मुस्कराई। उनकी आँखों में अजीब-सी चमक थी। शरारत, खुशी और मेरे ऊपर उनकी पकड़ का एहसास। मैं उनके ऊपर झुक कर हाँफ रहा था और उनकी छाती पर फैले अपने ही सफेद पानी को देख कर एक अजीब-सा सुख और शर्म दोनों महसूस कर रहा था।
कुछ देर बाद वह धीरे से उठी और अपने शरीर पर बिखरे मेरे निशानों को देखती हुई बाथरूम की ओर चली गई। उनकी चाल में हल्की थकान और चेहरे पर वही शरमाई मुस्कान थी। दरवाज़ा बंद होते ही मैं अब भी उसी सोफ़े पर बैठा रहा, अपनी साँसें सँभालने की कोशिश करता हुआ।
मेरी नज़रें अब भी उस जगह पर टिकी थी जहाँ वह लेटी थी। मैं सोच रहा था, मेरी नेहा दीदी सच में चॉकलेट से भी ज़्यादा मीठी है। उनका हर स्पर्श, उनका हर एहसास मेरे अंदर ऐसा स्वाद छोड़ गया था जिसे कोई मिठास कभी नहीं दे सकती।
अगले दिन सुबह मैं और नेहा दीदी काॅलेज देखने के लिए चले गए, जहां पर मुझे पढ़ना था। कैंपस बहुत बड़ा और खुबसूरत था, चारों तरफ हरे-भरे पेड़, इधर-उधर घूमते हुए लोग, और इमारतों के बीच से आती धूप का उजाला। हम दोनों धीरे-धीरे चलते हुए हर जगह को गौर से देख रहे थे।
लाइब्रेरी के सामने से गुजरते हुए दीदी ने बताया कि यह जगह हमेशा भरी रहती थी।
इसके बाद हम होस्टल की ओर गए। वहाँ का माहौल थोड़ा अलग था। बाहर गार्ड खड़े थे और उन्होंने बताया कि बिना एंट्री पास या आईडी के कोई अंदर-बाहर नहीं जा सकता। हर आने-जाने वाले का रजिस्टर में नाम दर्ज किया जाता है।
होस्टल देखने के बाद हम एडमिशन ऑफिस पहुँचे। वहाँ का पूरा प्रोसेस काफी अलग था। फॉर्म भरने, डॉक्यूमेंट जमा करने और अगले सेमेस्टर की जानकारी लेने में कुछ समय लग गया, लेकिन यह सब करते हुए मुझे एक अजीब सी खुशी हो रही थी। लगता था जैसे सच में अब मेरी नई शुरुआत होने वाली थी।
सारा काम पूरा करके जब हम लौटे तो थकान भी थी और एक अलग तरह का आराम भी। रास्ते में नेहा दीदी बार-बार हँसते हुए कहती जा रही थी कि अब तुम्हें संभल कर रहना होगा। मैं सिर हिला कर बस मुस्कुरा देता। आखिरकार हम दोनों वापस उनके अपार्टमेंट पहुँचे। वहाँ पहुँचते ही एक सुकून का एहसास हुआ, मानो पूरे दिन की भाग-दौड़ के बाद अब आराम की ज़रूरत थी।
लौट कर आने के बाद नेहा दीदी और मैं सोफे पर कुछ देर बैठे रहे। दीदी के करीब बैठना अच्छा लग रहा था। कुछ देर बाद वह उठी और बाथरूम की ओर चली गई, क्योंकि उसको थकान मिटानी थी।
कुछ ही देर में अंदर से शॉवर की आवाज़ आने लगी। पानी के साथ-साथ दीदी की हल्की-हल्की गुनगुनाहट भी सुनाई दे रही थी, जैसे वह नहाते हुए गाना गा रही हो। मैं सोफे पर बैठा सोच रहा था कि सिर्फ दो दिन बाद मैं कॉलेज चला जाऊँगा और उसके बाद दीदी को रोज़ यूँ सामने नहीं देख पाऊँगा। यह सोच कर मन अचानक उदास हो गया।
अनजाने ही मैं उठ कर बाथरूम के दरवाज़े तक पहुँच गया। धीरे से हैडल घुमाया तो दरवाज़ा खुल गया। अंदर शॉवर की धार के नीचे दीदी का पूरा शरीर भीग रहा था। पानी की बूँदें उनके बालों से होते हुए गर्दन और कंधों पर फिसल रही थी। उनकी छाती का उठाव भी पानी की धार से और उभर कर दिखाई दे रहा था, और नीचे उनकी गोल-मटोल कमर और भरे हुए पिछवाड़े पर पानी चमक रहा था।
मैं धीरे-धीरे उनके और क़रीब चला गया और शॉवर की बौछार के नीचे पहुँच गया। मैंने पीछे से हाथ बढ़ा कर उनके गीले, मुलायम पिछवाड़े को पकड़ लिया। अचानक उन्होंने डर कर पीछे मुड़ कर देखा, लेकिन मेरा चेहरा देखते ही उनके चेहरे पर घबराहट की जगह हल्की-सी झिझक और शरम आ गई।
धीमी आवाज़ में उन्होंने पूछा, “ये क्या कर रहे हो तुम?”
मैंने फुसफुसाते हुए कहा, “दीदी… आपको सामने से करने में डर लगता है, तो क्या हम पीछे से कर सकते है?” इतना कह कर मैंने उनके पिछवाड़े को हल्के से दबाना शुरू कर दिया।
पहले-पहल वह शरमा गई, उनके चेहरे पर उलझन साफ़ दिख रही थी। वह समझ नहीं पा रही थी कि क्या करें। कुछ पल तक वह चुप-चाप खड़ी रही, फिर धीरे-धीरे नज़रें झुका कर अपने भीगे हुए पैरों की ओर देखने लगी। उनके होंठ काँप रहे थे, जैसे अंदर कुछ कहने की हिम्मत जुटा रही हो।
आख़िरकार बहुत धीमी आवाज़ में उन्होंने कहा, “अगर तुम्हें सच में यही चाहिए… तो मैं… पीछे से कोशिश कर सकती हूँ।”
उनके शब्दों में झिझक तो थी, लेकिन साथ ही एक तरह का स्वीकार भी था।
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