पिछला भाग पढ़े:- जुड़वाँ दीदियों के साथ जिस्म की चाहत-1
भाई-बहन सेक्स कहानी अब आगे-
मैं हौले-हौले आगे बढ़ा। जिंदगी में पहली बार नेहा दीदी के स्तन मेरे सामने खुले थे। हां, मुझे पायल दीदी नेहा दीदी से ज्यादा पसंद थी, लेकिन शरीर के मामले में नेहा दीदी पायल दीदी से बहुत आगे थी। बेशक पायल दीदी खूबसूरत थी, लेकिन जुड़वां होने के बावजूद नेहा दीदी की खूबसूरती बहुत ही अलग थी।
यह पल मेरे लिए बिल्कुल नया था। मैं कई बार उनके स्तन देख चुका था, कभी उनकी ब्रा के अंदर कस कर छिपे हुए, कभी जब वह जल्दी में नहाने जाती थी और दरवाज़ा बंद करना भूल जाती थी। लेकिन आज आज पहली बार उनके खुले स्तन मेरे सामने थे, बिना किसी कपड़े, बिना किसी झिझक के।
मैं उनके और करीब जाने की कोशिश करने लगा। दिल की धड़कनें इतनी तेज़ थी कि मुझे खुद अपनी सांसें सुनाई दे रही थी। नेहा दीदी का इस तरह बिना हिचकिचाहट मेरे सामने बैठना इसने इस पल को मेरे लिए और भी कीमती बना दिया।
मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि ऐसा दिन आएगा, जब मैं उन्हें इस तरह देख पाऊंगा, उनसे इतने पास खड़ा रहूंगा। मैंने धीरे-धीरे अपना हाथ उनकी ओर बढ़ाया, बस एक इंच की दूरी बची थी कि नेहा दीदी ने अचानक मेरा हाथ पकड़ लिया। उनकी उंगलियों की हल्की पकड़ ने मुझे एक पल के लिए रोक दिया।
उन्होंने धीमी, सांस भरी आवाज़ में कहा, “पहले दरवाज़ा लॉक कर दे गोलू, पायल दीदी दूसरे कमरे में पढ़ रही है। अगर वो आ गई तो!”
उनकी आवाज़ में घबराहट नहीं थी, बल्कि एक समझदारी थी और हल्की सी गर्मी भी।
मैं कुछ नहीं बोला, बस तुरंत मुड़ा और जाकर कमरे का दरवाज़ा अंदर से बंद कर दिया। ताला लगते ही मेरा दिल और भी तेज़ धड़कने लगा। मैं वापस मुड़ा तो नेहा दीदी मुझे उसी तरह देख रही थी, जैसे वह भी इस पल को मुझ जितना ही महसूस कर रही हों।
मैं हौले-हौले दरवाज़ा लॉक करके वापस उनकी तरफ लौटा। कमरे में हल्की ठंड थी, लेकिन मेरे शरीर के अंदर जैसे आग जल रही थी। नेहा दीदी अब भी उसी कुर्सी पर बैठी थी, उनकी साँसें थोड़ी तेज़, उनके खुले स्तन हल्के-हल्के उठते-गिरते हुए जैसे हर सांस मेरे दिल की धड़कन को और तेज़ कर रही हो।
मैं धीरे-धीरे उनके सामने आया और बिना कुछ बोले उनके बिल्कुल करीब जमीन पर घुटनों के बल बैठ गया। जैसे ही मैं नीचे बैठा, मेरी आँखें सीधा उनके स्तनों के बराबर आ गई। इतना पास इतना नज़दीक कि मुझे लगा अगर मैं सिर्फ सिर थोड़ा आगे बढ़ा दूँ तो मेरी नाक उनके गर्म, मुलायम त्वचा को छू लेगी।
मेरे घुटनों के सामने उनके जाँघों की गर्माहट महसूस हो रही थी। मैंने ऊपर देखा, नेहा दीदी मुझे गहराई से देख रही थी। आँखों में एक अजीब सा मिला-जुला भाव मानो डर भी, चाहत भी।
फिर वह थोड़ा झुकीं, बहुत हल्का सा, लेकिन इतना कि उनके दोनों स्तन मेरे चेहरे के और भी पास आ गए। उनके स्तनों की नर्म गोलाई मेरे चेहरे से सिर्फ कुछ सांसों की दूरी पर थी।
उनके झुकते ही उनके बाल आगे गिरे और उनकी कलाई ने कुर्सी के हैंडल को पकड़ लिया, जैसे वह खुद को संभाल रही हों।
मैं सांस रोक कर बस उन्हें देखता रह गया। उनकी त्वचा की महक, उनका गर्म बदन, और इतने पास आकर भी उनका कुछ ना कहना यह पल मेरे लिए किसी सपने जैसा था।
मैंने हिम्मत जुटाई और एक बार फिर अपना हाथ धीरे-धीरे उनके स्तनों की ओर बढ़ाया। मेरी उंगलियाँ शायद उनसे कुछ ही इंच दूर थी कि उन्होंने फिर से मेरा हाथ पकड़ लिया। इस बार पकड़ बहुत नरम थी जैसे वह डांट नहीं रही हों, बस रोक रही हों।
उन्होंने मेरी आँखों में देखते हुए धीमी, थकी हुई लेकिन साफ आवाज़ में कहा, “गोलू प्रॉमिस करो इस बार के बाद तुम पढ़ाई शुरू कर दोगे।”
उनकी आवाज़ में फिक्र थी, प्यार था और कोई गहरा भाव जिसे मैं समझ नहीं पाया। मैंने बिना कुछ बोले धीरे से सिर हिला कर ‘हाँ’ कर दिया।
मेरे सिर हिलाते ही उनका चेहरा थोड़ा ढीला पड़ा, जैसे उन्हें राहत मिली हो। उन्होंने मेरी कलाई छोड़ी और अपनी उंगलियों से मेरा हाथ पकड़ कर फिर से अपने स्तन पर रख दिया। इस बार उन्होंने खुद मेरी हथेली को हल्का सा दबाया, जैसे मुझे कह रही हो, अब नहीं रोकूँगी।
जैसे ही मेरी हथेली पूरी तरह उनके स्तन पर फैली, मुझे लगा मेरी सांस ही रुक गई। उनकी त्वचा गुनगुनी थी इतना नरम कि मेरी उंगलियाँ खुद बा खुद और फैलने लगी। मेरे हाथों में जैसे रुई सा कुछ आ गया हो, पर उससे भी ज़्यादा गर्म, ज़्यादा मुलायम।
मेरी हथेली के बीच में उनका नरम हिस्सा उभर कर दब रहा था और मेरी उंगलियाँ किनारों पर उसकी गोलाई महसूस कर रही थी। मैं हल्के-हल्के दबाता रहा और हर बार मेरी उंगली के नीचे उनकी त्वचा थोड़ा सिकुड़ती, थोड़ा कांपती, और फिर से फैल जाती।
उनकी सांसें बदल चुकी थी। उनकी छाती हर साँस के साथ मेरे हाथ को ऊपर-नीचे हिला रही थी। फिर जैसे मेरी हिम्मत एक-दम बढ़ गई हो मैंने अपना हाथ थोड़ा ज़ोर से दबा दिया। पूरा स्तन मेरी हथेली में समा गया, और मैं उसे पकड़ कर कस दिया।
“आह्ह गोलू,” उनके मुँह से एक तेज़, डरी हुई, लेकिन बिल्कुल ही मोहक आवाज़ निकली। वह कुर्सी में पीछे की ओर झटके से टिक गई, उनका सिर पीछे चला गया, होंठ आधे खुले, आँखें आधी बंद, जैसे उन्होंने खुद को मेरे स्पर्श के हवाले कर दिया हो।
“गोलू तुमको, तुमको शर्म नहीं आती मुझसे ऐसे करने में?”
मैं उनके और करीब झुका उनके होंठों की गर्म साँस मेरे गाल को छू रही थी। मैंने धीरे से फुसफुसाया “क्या मतलब नेहा दीदी?”
उन्होंने मेरी आँखों में गहराई से देखा उनका चेहरा अभी भी शर्म और गर्मी से लाल था। उनकी आवाज़ फिसलती हुई, काँपती हुई निकली
“मैं मैं तुम्हारी बहन हूँ गोलू, फिर भी तुम मेरे साथ ये सब क्यों करना चाहते हो? मैंने हमेशा तुम्हें अपने छोटे भाई की तरह देखा। लेकिन अब अब तुम मेरे प्राइवेट पार्ट छू रहे हो। ये सब में मुझे बहुत शर्म आती है और…”
वह लाईन पूरा नहीं कर पाई। क्योंकि उनके उसी अधूरे लाईन के साथ मेरी दूसरी हथेली धीरे-धीरे ऊपर उठती हुई उनके सीने तक पहुँच गई। इस बार उन्होंने मेरा हाथ नहीं रोका।
उनके होंठ बस हल्के से खुल गए और एक बहुत धीमी, बहुत मीठी सी मूँह टपक कर बाहर आ गई। मैंने दोनों हथेलियों से उनके दोनों स्तन धीरे-धीरे पकड़ लिए। ना बहुत कस कर, ना बहुत हल्का, बस उतना कि उनकी सांसें अटक जाएँ। उनकी छाती मेरी हथेलियों में गर्म और मुलायम धड़क रही थी, जैसे मेरे छूते ही उनका पूरा शरीर पिघल रहा हो।
मेरी उंगलियाँ अभी भी नेहा दीदी के गर्म, मुलायम स्तनों पर टिकी थी, और उनकी आँखों में शर्म, घबराहट और धीमी सी चाह तीनों एक साथ तैर रही थी। तभी मैं उनके और करीब गया, उनका चेहरा अपने हाथों में लिया और बहुत धीमी आवाज़ में कहा,
“ऐसे मत बोलो नेहा दीदी, मुझे हमेशा से ये करना था हमेशा से। चाहे आप मेरी बड़ी बहन हो, लेकिन आप इतनी खूबसूरत हो कि खुद को रोक ही नहीं पाया। मैं मैं आपसे प्यार करता हूँ।”
मेरी बात सुन कर नेहा दीदी के होंठ काँपे। उन्होंने हल्का सा सिर झुकाया, जैसे मेरे शब्दों का बोझ उनके दिल तक उतर रहा हो। उनकी साँसें तेज थी, और उनके गालों पर लालिमा और गहरी हो गई।
“गोलू ऐसी बातें मत करो,” वह बमुश्किल बोल पाई, आवाज़ पूरी तरह काँपती हुई। “मैं, मैं अभी भी तुम्हारी बड़ी बहन हूँ। और मैं ये सब इसलिए कर रही हूँ क्योंकि तुमने वादा किया है कि तुम पढ़ाई करोगे समझे?”
मैंने हल्की आवाज़ में कहा, “हाँ नेहा दीदी” और जैसे ही मैंने इतना कहा, मैंने उनके दोनों स्तनों को पहले से ज़्यादा ज़ोर से दबाना शुरू कर दिया। मेरे अंगूठे उनकी निप्पल पर घूमते और उंगलियाँ उनके नरम मांस को कस कर पकड़ लेती।
नेहा दीदी की कमर हल्का सा उछल गई। उनके होंठों से भरी हुई, टूटी-फूटी, रोकी हुई कराहें निकलने लगी, “म्म्म गोलू आह धीरे,” पर वह खुद को रोक नहीं पा रही थी। उनकी साँसें काँप रही थी, और हर दबाव के साथ उनका सीना मेरी उँगलियों में ढीला पड़ता जा रहा था।
वह अपनी आवाज़ को दबाने की कोशिश कर रही थी, होंठ दाँतों के बीच दबा कर, लेकिन उनकी आवाज फिर भी कमरे की हवा में तैर रही थी।
तभी दरवाज़े पर तेज़ नॉक हुई। नेहा दीदी डर से जम गई। उनकी आँखें चौड़ी हो गई, और उन्होंने तुरंत मेरे हाथों को पकड़ कर रोका।
बाहर से पायल दीदी की आवाज़ आई “नेहा दीदी, आपका पार्सल आ गया है! क्या कर रही हो अंदर?”
इस बार नेहा दीदी ने झटके से मुझे अपनी तरफ से दूर धक्का दिया। उनकी साँसें अभी भी काँप रही थी, लेकिन उन्होंने खुद को शांत दिखाने की कोशिश की। वह जल्दी-जल्दी अपने कपड़े उठाने लगी। पहले ब्रा पहनी, फिर टी-शर्ट ठीक किया, बालों को सँवारा और गहरी साँस लेकर खुद को आम दिखाने की कोशिश की।
मैं वहीं कुर्सी पर बैठा हाँफ रहा था, मेरी उंगलियों में अभी भी उनकी गर्माहट थी।
कुछ सेकंड बाद उन्होंने दरवाज़ा खोला और बिना मुझे देखे बाहर चली गई, जैसे कमरे में अभी कुछ हुआ ही ना हो। बाहर खड़ी पायल दीदी ने पहले नेहा दीदी को देखा, फिर मेरी ओर नज़र डाली।
उन्होंने धीरे से पूछा, “तो गोलू आज पढ़ाई कैसी रही?”
मैंने बस गर्दन झुका कर कहा, “मैं कोशिश कर रहा हूं।”
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