पिछला भाग पढ़े:- जब दीदी ने खुद को मेरे सामने खोला-5
देसी ब्रदर-सिस्टर सेक्स स्टोरी अब आगे से-
सुबह तकरीबन सात बजे मैं और वाणी दीदी दिल्ली पहुँचे। यह पहली बार था, जब मैं अकेला दीदी के साथ इतनी दूर आया था। उनके साथ अकेले इतनी दूर आना भी एक तरह से अच्छा लग रहा था। थोड़ी देर रुक कर हमने एक टैक्सी ली और सीधे उनके अपार्टमेंट की ओर चल पड़े। रास्ते भर खिड़की से आती ठंडी हवा चेहरे को छूती रही और मैं बार-बार चोरी-छिपे दीदी को देखता रहा। दीदी हल्की मुस्कान के साथ बाहर देखते हुए कहीं खोई हुई सी लगी। टैक्सी के शांत सफ़र में एक अलग ही सुकून था, जैसे हम दोनों अपने ही छोटे से संसार में जा रहे हो।
अपार्टमेंट पहुँच कर दीदी ने दरवाज़ा खोला। यह पहला मौका था जब मैंने उनका कमरा देखा, जहाँ वो दिल्ली में अकेली रहती थी। जैसे ही अंदर गया, सब कुछ घर से बिल्कुल अलग महसूस हुआ। कमरा उनकी अपनी दुनिया जैसा था—बिल्कुल निजी, बिना किसी रोक-टोक के।
सोफ़े पर बिखरे उनके कपड़े नज़र आए, जिनमें उनकी ब्रा और पैंटी भी आराम से रखी हुई थी। यह सब देख कर दिल की धड़कन तेज़ हो गई और लगा जैसे अचानक मैं उनकी ज़िंदगी के बहुत निजी हिस्से में प्रवेश कर चुका था।
लेकिन दीदी को जल्दी थी, क्योंकि उन्हें काम पर जाना था। उन्होंने कहा कि वो तुरंत तैयार होकर निकलेंगी। मैं धीरे से सोफ़े पर बैठ गया, ठीक वहीं, जहाँ उनके कपड़े पड़े थे। मन में हल्की झिझक और उत्सुकता थी। इतने में दीदी अपने कमरे की ओर बढ़ी, और सफ़र में पहनी हुई ड्रेस बदलने चली गई। कमरे में उनकी मौजूदगी की खुशबू और बिखरे सामान की झलक माहौल को और भी अलग बना रही थी।
थोड़ी देर बाद अंदर से दीदी ने मेरा नाम पुकारा और मुस्कुराते हुए कहा कि क्या मैं उन्हें उनकी ब्रा और पैंटी दे सकता था, जो उन्होंने सोफ़े पर रखी थी? ताकि धोने के बाद सूख जाए। यह सुन कर मुझे अजीब सी खुशी हुई कि अब वो मुझसे पुरानी तरह झिझकती नहीं थी। बिना हिचक मैंने कपड़े उठाए और उनके कमरे की ओर बढ़ गया। दिल में एक अजीब सा उत्साह था, जैसे धीरे-धीरे हमारे बीच की दीवारें और भी टूट रही हो।
दरवाज़े पर पहुँचा तो देखा दीदी कमरे में बिल्कुल बेफ़िक्र खड़ी थी। उनका शरीर खुला था और मेरी नज़रें अपने आप उन पर टिक गई। कंधे पतले और नर्म, कमर हल्की मुड़ी हुई, और लंबी टाँगें साफ़ और सीधी। हल्की रोशनी उनकी चिकनी त्वचा पर पड़ कर उसे और चमका रही थी।
उनके स्तन गोल और भरे हुए थे, बिलकुल वैसे जैसे उनके शरीर के साथ मेल खाते हो। उनका उभार साफ़ दिख रहा था और उसे देखते ही मेरे भीतर अजीब सी गर्मी उठने लगी। नज़रें बार-बार वहीं अटक जाती और साँसें तेज़ हो रही थी। पूरा माहौल अचानक बहुत भारी और गरम सा लगने लगा, जैसे मैं उनके बेहद निजी पल का हिस्सा बन गया था।
इतना देखते-देखते मैं खुद पर काबू नहीं रख पाया। कदम अपने आप उनकी ओर बढ़ गए। पास जाकर मैंने दोनों हाथों से उनका चेहरा थाम लिया। दीदी ने हल्की सी नज़र उठा कर मुझे देखा, और अगले ही पल मेरे होंठ उनके होंठों से मिल गए। धड़कनें इतनी तेज़ हो गई कि जैसे कानों में गूंज रही हों। उनका गर्म साँसों से भरा स्पर्श मुझे और गहराई में खींचता चला गया।
लेकिन तभी दीदी ने अचानक मुझे रोक लिया। उन्होंने धीरे से मेरा चेहरा पीछे धकेला और गंभीर आवाज़ में बोली, “तू ये क्या कर रहा है? मैं पहले ही बहुत लेट हो चुकी हूँ, अभी मुझे ऑफिस जाना है।”
मैंने धीरे से कहा, “दीदी, तुम्हें देख कर मैं खुद को रोक ही नहीं पा रहा हूँ। जितना देखता हूँ, उतना ही और करीब आने का मन करता है।” मेरी आवाज़ काँप रही थी, पर दिल की सच्चाई उसी पल बाहर निकल आई थी।
दीदी ने मेरे शब्द सुन कर हल्की शरमाई हुई मुस्कान दी और बोली, “ठीक है, लेकिन सिर्फ़ दो मिनट हैं।” उनके चेहरे पर हल्की झिझक और जल्दबाज़ी की झलक थी, और इसने माहौल में एक और रोमांचक तान जोड़ दी।
ये सुनते ही मैं फिर से उनके होंठों पर टूट पड़ा। इस बार मेरे होंठ उनके होंठों को कस कर पकड़ रहे थे, जैसे छोड़ना ही नहीं चाहता। हमारी जीभें लगातार टकरा रही थी, कभी मैं उनकी जीभ को अपने अंदर खींच लेता तो कभी वो मेरी जीभ को दबाकर उसे चखतीं। हर सेकंड चुंबन और गहरा होता जा रहा था।
उनके होंठों पर अपनी जीभ फेरते हुए मैं बीच-बीच में उन्हें हल्के से काट लेता। हर बार मेरे दाँतों की वो हल्की चुभन से वो हल्की-सी कराह निकाल देती और मेरी पकड़ और भी मजबूत हो जाती। उनकी साँसें इतनी तेज़ हो चुकी थी कि मेरे गाल पर उनका गर्मपन साफ़ महसूस हो रहा था।
हम दोनों बार-बार अपने होंठों को अलग करते और फिर तुरंत ही दोबारा जुड़ जाते। हमारे बीच लार मिल कर बह रही थी, होंठों से नीचे तक गीलापन फैल रहा था, लेकिन हम दोनों पागलों की तरह बस एक-दूसरे को चूमते चले जा रहे थे। हर पल ऐसा लग रहा था जैसे ये चुंबन खत्म ही ना हो।
इसी दौरान मैंने अपना हाथ धीरे-धीरे उनकी कमर से नीचे सरकाना शुरू किया। मेरा स्पर्श उनकी कमर से होते हुए जाँघों तक पहुँचा तो उनकी साँसें और भी तेज़ हो गई। वो हल्का-सा सिहर उठी, लेकिन मुझे रोका नहीं। उनके शरीर की गर्माहट मेरी उँगलियों के नीचे साफ़ महसूस हो रही थी।
मेरे होंठ अभी भी उनके होंठों पर थे और हमारी जीभें एक-दूसरे में उलझी थी। मैंने धीरे से उनके पिछवाड़े को दबाया, तो उनके मुँह से एक धीमी कराह निकल गई। मैंने उनकी पीठ पर अपनी उँगलियाँ फिराते हुए उन्हें और करीब खींच लिया।
उनकी हथेलियाँ मेरे कंधों को कस कर पकड़े हुए थी, जैसे वो खुद को सँभालने की कोशिश कर रही हों। उनकी आँखें बंद थी और होंठ मेरे होंठों के नीचे लगातार काँप रहे थे। उनकी हर साँस मेरे मुँह के अंदर घुल रही थी, और इस बीच उनका पूरा शरीर मेरे स्पर्श से काँप रहा था।
मैंने हिम्मत करते हुए अपना हाथ और आगे बढ़ाया, जैसे ही उनकी जाँघों के बीच पहुँच कर उँगली सरकाने की कोशिश की, उन्होंने तुरंत मेरा हाथ पकड़ लिया। उनकी आँखें धीरे-धीरे खुली और उन्होंने फुसफुसाते हुए कहा, “बस… अब रुक जा। दो मिनट पूरे हो गए।”
उनके शब्द सुनते ही मैं ठहर गया। उनकी सांसें अभी भी तेज़ थी, होंठ लाल हो चुके थे, और चेहरा शर्म से चमक रहा था। मैं बस उन्हें चुपचाप देखता रह गया, और वो हल्के से मुस्कुरा कर खुद को सँभालने लगी।
उन्होंने जल्दी से अपनी ब्रा और पैंटी पहन ली, फिर अलमारी से अपना ऑफिस ड्रेस निकाला और तैयार होने लगी। बाल ठीक करके, बैग कंधे पर टाँग लिया। जाते-जाते वो पल भर को फिर मेरे पास आई, झुक कर होंठों पर हल्का-सा किस दिया और मुस्कुरा कर बोली, “आज घर मत जाना… मैं जल्दी वापस आ जाऊँगी।”
वह जल्दी से तैयार हुई और ऑफिस के लिए निकल गई। कमरे में उनका जाना तुरंत खालीपन और सन्नाटा लेकर आया, और मैं वहीं खड़ा उनके जाने के बाद की खामोशी में खो गया।
अब मैं अजनबी शहर में अकेला था और नहीं जानता था क्या करूँ। थकान होने के बावजूद नींद नहीं आ रही थी। मैंने धीरे-धीरे उनके बिस्तर की ओर बढ़ कर लेट गया, लेकिन मन शांत नहीं था। हर चीज़ नई और अजीब लग रही थी। खिड़की से आती हल्की हवा, कमरे की चुप्पी, और अभी हुई घटनाओं की यादें मेरे दिमाग़ में घूम रही थी। पलकों को बंद करने की कोशिश करने पर भी विचार रुके नहीं। मैं बिस्तर पर करवट बदलता रहा, लेकिन दिल और दिमाग़ दोनों बेचैन थे।
फिर मेरी नज़र उनके बिस्तर के पास रखे टेडी बेयर पर पड़ी। वही प्यारा सा टेडी, जिसे वह हर रात गले लगा कर सोती थी। मैंने उसे उठाया और अपने सीने से लगा लिया। उसकी नर्मी में मुझे दीदी की खुशबू महसूस हो रही थी। मैं उसे पकड़ कर उनकी यादों में डूबने लगा।
मुझे याद आया कि दीदी कई बार मुझे अपने बीते दिनों की बातें बता चुकी थी। उन्होंने हँसते हुए स्वीकार किया था कि जब वो अकेली रहती थी, तो यही टेडी उनका सबसे बड़ा सहारा बन जाता था। वो बताती कि कैसे वो कई बार अकेलेपन में अपने सारे कपड़े उतार कर उसी टेडी को कस कर पकड़ती, सीने से दबाती और उसकी नर्मी को अपने निजी हिस्सों पर रगड़तीं।
कभी-कभी वो टेडी को अपने होंठों से चूमतीं, कभी अपने स्तनों को उसके खिलाफ दबा कर सुकून महसूस करती। ये सब उन्होंने कई बार किया और मुझे बार-बार बताती रही कि इस टेडी ने उनके अकेलेपन में कितनी राहत दी।
उनके इन किस्सों को याद करते हुए मैं हैरान रह गया था कि उन्होंने कितनी बार उस टेडी के साथ अपने अकेलेपन को बाँटा था। उनके लिए वो टेडी सिर्फ़ एक खिलौना नहीं था, बल्कि उनके अतीत की तन्हाई में सबसे करीबी साथी था। धीरे-धीरे मैंने थकान से चूर होकर उस टेडी को और कस कर अपनी बाहों में समेट लिया। उसकी नरम बाहों में खुद को ढकते हुए मैं पूरी तरह शांत हो गया और धीरे-धीरे नींद की गहरी दुनिया में उतर गया।
शाम को पांच बजे दीदी काम से लौट कर आई। तब भी मैं सो रहा था, शायद सफर की थकान बदन को सहला रही थी। थोड़ी देर बाद उन्होंने मुझे धीरे से हिला कर उठाया और मुस्कुराते हुए पूछा, “कुछ खाया क्या?” मैंने उनींदी आँखों से सिर हिलाते हुए कहा, “नहीं।”
यह सुन कर उन्होंने तुरंत फोन उठाया और पिज़्ज़ा ऑर्डर कर दिया। आधे घंटे बाद जब पिज़्ज़ा आया, तो दीदी ने उसे टेबल पर रखा। इसके बाद वह कपड़े बदलने के लिए कमरे में आई। मैं अब भी उसी बेड पर बैठा था। कमरे में आते ही उन्होंने धीरे-धीरे अपने ऑफिस के कपड़े खोलने शुरू किए। उनकी हर हरकत बहुत नॉर्मल थी, जैसे दिन भर की थकान उतार रही हों। लेकिन मेरी नजरें उन पर टिक गई थी।
जैसे ही उन्होंने शर्ट उतारी, वो आईने के सामने खड़ी हो गई। कमरे की हल्की रोशनी में उनका शरीर और भी साफ दिख रहा था। ब्रा उनके सीने को अच्छे से थामे हुए थी, जिससे उनकी क्लीवेज और ज्यादा साफ और डीप दिख रही थी। हर सांस के साथ वो हल्का-सा ऊपर नीचे हो रहा था और नज़र हटाना मुश्किल हो रहा था।
इसके बाद उन्होंने स्कर्ट की ज़िप खोली और धीरे से नीचे सरका दी। अब उनके पैरों की लकीरें और भी साफ दिखाई देने लगी। हल्के रंग का कपड़ा उनकी कमर और हिप्स पर कस कर फिट था, जिससे उनका फिगर और ज़्यादा उभर कर सामने आ गया। रोशनी उस कपड़े पर पड़ कर उसकी आउटलाइन को और साफ कर रही थी, जिससे उनकी शेप और भी आकर्षक लग रही थी। कमरे में फैली खामोशी में सिर्फ उनकी चाल और कपड़ों की हल्की सरसराहट सुनाई दे रही थी।
फिर उन्होंने जल्दी से एक टी-शर्ट और शॉर्ट्स पहन लिया। वह बेहद छोटा और फिटिंग वाला था, जिससे उनकी जांघें और भी खूबसूरत लग रही थी। उन्होंने हल्की हंसी के साथ कहा, “चलो, अब खाते हैं।”
हम दोनों टेबल के पास जाकर साथ-साथ बैठ गए। वह बिल्कुल पास आकर कुर्सी खींच कर बैठीं, जिससे उनकी गर्माहट मुझे छूती रही। हमने पिज़्ज़ा के टुकड़े उठाए और धीरे-धीरे खाने लगे। हर कौर के बीच उनकी मुस्कुराहट और पास बैठने का एहसास मेरे लिए किसी और ही लम्हे जैसा था।
कुछ देर बाद उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा। “तुम मेरे टेडी के साथ क्यों सो रहे थे?”
मैंने उनकी ओर देखते हुए धीरे से कहा, “क्योंकि जब तुम काम पर चली गई, मैं तुम्हें बहुत मिस करने लगा। तभी अचानक मुझे याद आया कि तुम अपने टेडी के साथ कैसे खेलती हो… कभी उसे अपनी छाती से दबा कर रखती हो, कभी उसे अपने बदन से सटा कर मासूम-सी हंसी हंसती हो। कई बार तुम उसे अपने सीक्रेट हिस्सों पर भी शरारत से रगड़ती हो… वही सब याद आ गया था। शायद इसी वजह से मैंने भी उसे पकड़ कर सो लिया।”
मेरी बात सुनते ही उनका चेहरा अचानक शर्म से लाल हो गया। वह कुछ बोल नहीं पाई, बस नज़रें झुका कर चुप-चाप पिज़्ज़ा खाने लगी। माहौल में हल्की खामोशी छा गई, लेकिन उनके गालों की लालिमा सब कुछ कह रही थी।
पिज़्ज़ा खत्म करने के बाद वह टेबल साफ़ करने लगी, और बर्तनों को उठा कर किचन में धोने चली गई। मैं अब भी उसी टेबल पर बैठा उन्हें देखता रहा। वह काम में लगी रहीं और मैं बस उन्हें निहारता रहा।
काफी देर बाद जब उन्होंने बर्तन धोकर अपने हाथ पोंछे और वापस लौटी, मैं धीरे से, बहुत मुलायम आवाज़ में बोला, “दीदी… क्या मैं देख सकता हूँ कि तुम अपने टेडी के साथ खुद को कैसे खुश करती हो?”
मेरे इस सवाल पर वह और भी ज़्यादा शर्म से लाल हो गई। उन्होंने सिर झुका लिया और कुछ कहने की बजाय बस हल्का-सा सिर हिलाया। फिर वह चुप-चाप अपने कमरे की तरफ चलने लगीं, उनके कदम धीमे-धीमे फर्श पर पड़ रहे थे। मैं उनकी ओर खिंचा चला गया और धीरे-धीरे उनके पीछे-पीछे चलने लगा।
कमरे में पहुँच कर उन्होंने दरवाज़ा हल्का सा बंद किया और बिस्तर के पास जाकर खड़ी हो गई। मैं धीरे से पास रखी कुर्सी पर बैठ गया, जैसे तैयार था यह देखने के लिए कि मेरी बहन अपने टेडी बियर के साथ कैसे खेलती थी और खुद को कैसे खुश करती थी।
धीरे-धीरे, उन्होंने अपने हाथ से टी-शर्ट का किनारा पकड़ा और ऊपर की तरफ खींचने लगी। उनकी साँसें तेज़ हो चुकी थी और उनके चेहरे पर झिझक साफ़ नज़र आ रही थी। एक हल्की झुरझुरी-सी उनकी देह में दौड़ रही थी, जब उन्होंने टी-शर्ट उतार कर बिस्तर पर रख दी। अब वह सिर्फ अपने शॉर्ट्स में थी। कुछ पल ठिठकीं, फिर धीरे-धीरे शॉर्ट्स के बटन खोले और उन्हें भी उतार कर एक तरफ रख दिया।
अब वह अपने अंदरूनी कपड़ों में थी। लेकिन इस बार उनके चेहरे पर झिझक गायब थी। उन्होंने खुद को पूरी तरह आज़ाद करते हुए पहले अपना ब्रा खोला और धीरे से कंधों से उतार दिया। जैसे ही उनके गोल-मटोल, नरम और भरे हुए स्तन सामने आए, मेरी साँसें थम-सी गई। हल्की रोशनी में उनकी त्वचा और भी चमक रही थी, उनकी उभरी निप्पल्स हल्की-सी सख़्त होकर हवा में खिली हुई लग रही थी।
फिर उन्होंने शाॅर्टस उतार कर अपनी पतली उँगलियों से पैंटी पकड़ी और धीरे-धीरे नीचे खींचने लगी। उनके कदम काँप रहे थे, लेकिन आँखों में अब कोई हिचक नहीं थी। जब वह पूरी तरह नंगी हो गई, तो उनका शरीर खुली किताब की तरह सामने था। उनकी टाँगों के बीच की जगह, हल्की-सी नमी से चमक रही थी, जैसे उनका नाजुक हिस्सा भी मेरी नज़रों को महसूस कर रहा हो।
इसके बाद वह हल्की मुस्कान के साथ बिस्तर पर लेट गई। पास रखा अपना प्यारा टेडी बियर उठाया और उसे अपनी बाहों में कस कर पकड़ लिया। उनकी आँखों में एक अजीब-सी चमक थी। उन्होंने टेडी के नरम चेहरे को अपने होंठों से छुआ और धीरे-धीरे उसे चूमने लगी। हर चुंबन के साथ उनकी साँस और भारी होती जा रही थी। वह टेडी को ऐसे प्यार से चूम रही थी, जैसे उसमें ही अपना सारा सुख और चाह छुपा हो।
कुछ ही देर बाद उनके होंठ और भी गीले हो गए, और उन्होंने टेडी के चेहरे को अपनी जीभ से चाटते हुए पूरी तरह लार से भिगो दिया। अब उस टेडी का चेहरा चमक रहा था, जैसे उस पर उनकी चाहत की नमी फैल गई हो। उन्होंने टेडी को अपने हाथों से पकड़ कर धीरे-धीरे अपनी टाँगों के बीच रखा।
वह टेडी का चेहरा बिल्कुल अपने नाज़ुक हिस्से पर टिका कर हल्के-हल्के दबाने लगी। जैसे ही उसका मुलायम कपड़ा उनकी भीगी त्वचा से छुआ, उनके पूरे शरीर में बिजली-सी दौड़ गई। उन्होंने अपनी कमर को हल्के-हल्के घुमाते हुए टेडी के चेहरे को अपने भीगे हिस्से पर रगड़ना शुरू किया। हर धक्का, हर हलचल उनके पूरे जिस्म को सिहरन से भर रहा था।
उनकी आँखें बंद हो गई, होंठों से मीठी कराहें निकलने लगी। वह बार-बार टेडी के चेहरे को अपने नाजुक हिस्से पर दबा रही थी, और हर बार उनकी साँसें और तेज़ हो रही थी। उनके पैरों में कंपन-सा फैल गया था, और उनकी जाँघें टेडी को कस कर पकड़ रही थी ताकि वह और गहराई से उनके भीतर रगड़े।
इसी दौरान उनका दूसरा हाथ ऊपर बढ़ा और उन्होंने अपने भरे हुए स्तन को पकड़कर दबाना शुरू किया। उनकी उँगलियाँ निप्पल्स को मरोड़ रही थी, और वह सिसकारियों के बीच अपने पूरे शरीर को आनंद में खो रही थी। उनके चेहरे पर चाह का रंग साफ़ झलक रहा था — आधी बंद आँखें, काँपते होंठ, और बेकाबू साँसें।
टेडी का चेहरा उनकी नमी से पूरी तरह भीग चुका था, और वह बार-बार अपनी कमर ऊपर-नीचे हिला कर उस भीगे चेहरे को अपने नाज़ुक हिस्से पर और ज़्यादा दबा रही थी। उनका हाथ अपने स्तनों को कसकर मसल रहा था, जैसे खुद को और गहराई से उस सुख में डूबो देना चाहती हो।
इसके बाद मैं खुदको और रोक नहीं पाया। मैं उनके करीब गया और टेडी को उनके हाथों से छीन लिया। और उसको एक तरफ फेंक दिया।
वह चौंक कर मेरी ओर देखने लगी और हल्की सी मुस्कान के साथ बोली, “क्या हुआ? तुमने टेडी क्यों फेंक दिया?”
मैंने उनकी आँखों में देखते हुए धीरे से कहा, “अब मैं तुम्हारे साथ खेलना चाहता हूँ… सिर्फ तुम्हारे साथ।”
अगले ही पल मैं उनके नंगे बदन के उपर लेट गया। मैं अभी भी अपने कपड़े पहने हुए था, लेकिन वह कुछ भी नहीं पहने थी। उसकी छाती मेरे छाती के नीचे पूरी तरह से दब रही थी, उसके सख्त और गोल आकार की नरम त्वचा मेरे कपड़े पर भी महसूस हो रही थी। हर बार जब वह हल्की सी हिलती, मुझे उसके शरीर की गर्मी और दबाव का पूरा एहसास होता।
मैंने धीरे से पूछा, “दीदी क्या हम आज सब कुछ कर सकते हैं?”
वह थोड़ा शर्माते हुए मेरी ओर देखी और धीरे से कहां, “हां”
मैंने उसे धीरे-धीरे अपनी ओर खींचा और उसके होंठों को अपने होंठों के बीच में समेट लिया। हमारा चूमना धीरे-धीरे गर्म होता गया, पहले हल्की मुलायम टकराहट, फिर होंठों का दबाव गहरा और धीमा। उसकी होंठ की नर्मी और हल्की सी गर्माहट मेरे होंठों को पूरी तरह घेर लेती थी, और जैसे ही हमारी जुबानें एक-दूसरे के अंदर मिलनी लगी, हल्की सी चिपचिपाहट पूरे मुँह में फैल गई।
हम धीरे-धीरे अपनी जुबानें एक-दूसरे की जुबान में घुसा रहे थे, हल्की सी चिपचिपाहट और लार का लेना-देना तेज हो रहा था, जिससे यह एहसास और भी ज्यादा सच्चा और तेज़ लग रहा था। हर बार जब मैं उसके होंठों को अपने होंठों के बीच महसूस करता, मुझे उसकी चाहत की गहराई महसूस होती।
कुछ देर बाद उसने मुझे हल्का धक्का दिया और धीरे से कहा, “गोलू, मैं सामने से नहीं कर सकती, मुझे शर्म आती है। क्या हम पीछे से कर सकते हैं?”
मैं थोड़ी देर ठहरा, समझ नहीं पाया कि वह क्या कह रही थी, इसलिए सीधे पूछा, “दीदी, क्या तुम चाहती हो कि मैं अपना लंड तुम्हारे पिछवाड़े में डालूं?”
उसकी आंखों में अचानक एक गहरी शर्म छा गई। वह कुछ नहीं बोली, बस धीरे-धीरे अपना सिर हिला दिया, जैसे बिना शब्द कहे अपनी सहमति दे रही हो। उसके हल्के थरथराते होंठ, लालिमा भरे गाल, और नीची नजरें मेरे दिल को धक से छू गई। मैं उसकी इस चुप्पी और छोटे इशारे में उसके अंदर की नाज़ुकता महसूस कर सकता था। उसकी नर्मी और शर्म ने इस पल को और भी प्यारा बना दिया।
फिर मैंने धीरे-धीरे उसे पलट दिया, अब उसका पिछवाड़ा मेरे सामने था। उसका पिछवाड़ा गोल और सख्त था, नर्म त्वचा पर हल्की गुलाबी रंगत उसकी नाज़ुकता को और बढ़ा रही थी। जब मेरी उंगलियां धीरे-धीरे उसके पिछवाड़े को छू रही थी, मुझे उसकी त्वचा की नर्मी और चिकनापन साफ महसूस हो रहा था।
हर हल्का स्पर्श उसके शरीर को हल्का हिला रहा था और मेरे अंदर एक गहरा खिंचाव पैदा कर रहा था। उसकी हल्की सांसों और बारीक हिलन से पता चल रहा था कि वह इस पल को पूरी तरह महसूस कर रही थी।
फिर मैंने अपनी पैंट भी उतार दी और उसके पास फिर से बैठ गया। इस बार मेरा लंड उसके पिछवाड़े से धीरे-धीरे टकराने लगा। जब मेरा लंड उसकी नरम और गर्म त्वचा को छूता, तो मैं उसके अंदर की कसावट और नर्मी दोनों महसूस कर पा रहा था। मैं थोड़ा ठहरा और धीरे से पूछा, “दीदी, क्या मैं इसे अंदर डालूं?”
कुछ पल की खामोशी के बाद उसकी शर्मीली आवाज़ में फुसफुसाहट आई, “हां, मेरे प्यारे छोटे भाई, तुम डाल सकते हो।”
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