पिछला भाग पढ़े:- नेहा दीदी और मेरा सिक्रेट अफेयर-3
भाई-बहन सेक्स कहानी अब आगे-
नेहा दीदी मेरे सामने पुरी तरह से नंगी लेटी हुई थी और मैं उनके पेरो के बीच बैठा हुआ था। मेरे दिल की धड़कन तेज़ हो चुकी थी। इतने सालों से जिस पल का इंतज़ार था, वह अब सामने था। मैं महसूस कर रहा था कि दीदी ने भी इस लम्हे को बहुत देर तक अपने दिल में संभाल कर रखा था।
मेरी सांसें भारी हो रही थी और मेरा लंड धीरे-धीरे उनके नाजुक हिस्से के बिलकुल करीब आ चुका था, बस कुछ इंच की दूरी बाकी थी। यह नज़दीकी ही मुझे पागल कर देने के लिए काफ़ी थी। मेरी आँखों के सामने दीदी का चेहरा चमक रहा था, उनकी आँखों में वही इच्छा और इंतज़ार साफ़ झलक रहा था।
उस नज़दीकी के बीच मैंने धीमी आवाज़ में पूछा, “दीदी… क्या मैं कर सकता हूँ?”
जबकि मुझे पता था कि वह पहले ही अपनी हामी दे चुकी थी, लेकिन उस पल दिल से आखिरी बार उनकी मंज़ूरी सुनना चाहता था। दीदी ने हल्की मुस्कान के साथ मेरी आँखों में देखा और सिर हिला कर फिर से इजाज़त दी।
मैं थोड़ी देर के लिए ठिठक गया। समझ नहीं आ रहा था कि अब आगे क्या करना है। लेकिन दिमाग़ में वे तमाम रातें घूम रही थी जब मैं छुप कर पोर्न वीडियो देखता था और हर बार दीदी का चेहरा सोच कर खुद को बहलाता था। उसी याद से हिम्मत जुटा कर मैंने धीरे-धीरे अपना लंड उनके नाज़ुक हिस्से से छुआया। सिर्फ़ उसकी नोक से ही मैंने उनके नर्म हिस्से को सहलाना शुरू किया। उस हल्के स्पर्श से मेरे बदन में बिजली-सी दौड़ गई और दीदी ने भी गहरी सांस भरते हुए आँखें बंद कर ली।
धीरे-धीरे मैंने अपना लंड उनके नाज़ुक हिस्से पर रगड़ना शुरू किया। हल्की-हल्की सरकन जैसे मेरी रगों को खींच रही थी। हर बार जब मेरा लंड उनकी भीगी दरार से टकराता, तो मुझे लगता मानो पूरा जिस्म सिहर उठा हो। मुझे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे हर नस में गर्मी और सनसनी भर रही हो।
दीदी की आँखें बंद थी, होंठ हल्के-हल्के कांप रहे थे और उनके चेहरे पर एक अलग ही नशा उतर आया था। उनकी साँसें तेज़ हो रही थी, और हर बार जब मैं ऊपर-नीचे सरकता, उनके चेहरे की कसावट मुझे बता रही थी कि उन्हें भी यह स्पर्श गहराई तक महसूस हो रहा है।
मैं और ज़्यादा हिम्मत लेकर धीरे-धीरे अपनी चाल बढ़ाने लगा। मेरा लंड उनके नर्म और गीले होंठों के ऊपर सरकता रहा। गर्माहट और नमी का एहसास मुझे पागल कर रहा था। मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मैं किसी और ही दुनिया में पहुँच चुका था।
दीदी बार-बार अपनी कमर को हल्का-सा ऊपर उठाती, जैसे मुझे और भी गहराई से अपने अंदर खींच लेना चाहती हो। उनकी आँखों के कोनों पर पसीने की बूंदें चमक रही थी, और उनके चेहरे की हर हलचल मुझे बता रही थी कि यह स्पर्श उन्हें उतना ही मदहोश कर रहा है जितना मुझे।
फिर अचानक दीदी ने मेरी कमर को पकड़ कर सांसों के बीच फुसफुसाते हुए कहा, “बस… अब और मत छेड़ो… इसे अंदर डाल दो।” उनकी आँखों में गहरी बेचैनी और होंठों पर हल्की कराह थी। उनकी आवाज़ और वह आग्रह मुझे बता रहे थे कि अब वह खुद को और रोक नहीं पा रही थी।
मेरी हालत भी वैसी ही थी। मैं भी अब खुद को रोक नहीं पा रहा था, लेकिन फिर भी दिल चाहता था कि इस पल को और लंबा खींचू। यह सपना था जो मैं बचपन से देखता आया था, जब पहली बार मुझे सेक्स के बारे में पता चला था। हर बार जब भी मैंने इस बारे में सोचा, मेरे ख्यालों में हमेशा मेरी बड़ी बहन ही आई। और अब वही सपना सच्चाई बन कर मेरे सामने था।
मैंने हल्की मुस्कान के साथ उनकी आँखों में झाँकते हुए धीरे से कहा, “ठीक है नेहा दीदी… अब मैं तैयार हूँ।”
मैंने धीरे-धीरे अपना लंड उनकी दरार के सामने टिकाया और एक हलके धक्के के साथ उसे अंदर धकेलने लगा। उनका हिस्सा बहुत टाइट था, जिससे मेरा लंड धीरे-धीरे ही भीतर सरक पा रहा था। मुझे लगा जैसे मेरा पूरा जिस्म उस गर्म और भीगी कसावट में समा रहा है। हर मिलीमीटर पर मेरा रोम-रोम सिहर उठता।
दीदी ने अपनी आँखें बंद कर ली और होंठों को भींचते हुए करवट में थोड़ी सी हरकत की। उनके चेहरे पर दर्द और आनंद दोनों की झलक थी। उनकी भौंहें सिकुड़ी हुई थी, लेकिन होंठों से हल्की कराह निकल रही थी। उनका शरीर बिस्तर पर तड़पता-सा हिल रहा था, जैसे हर धक्का उनके अंदर गहराई तक असर कर रहा हो।
मैंने धीमी चाल में अपना लंड और आगे धकेला, हर बार कसावट और गर्माहट मुझे पागल कर रही थी। दीदी की साँसें भारी होती जा रही थी और उनका चेहरा कभी सिकुड़ता तो कभी ढीला पड़ जाता। उनके हाथ चादर को भींचे हुए थे और पूरा शरीर मेरे हर धक्के पर थरथरा रहा था।
मैंने धीरे-धीरे और गहराई तक धक्का दिया। कसावट इतनी थी कि मेरा धैर्य टूटने लगा, और मैं पूरी ताकत से उनके अंदर घुसने की कोशिश करने लगा। तभी अचानक मुझे कुछ अलग महसूस हुआ—एक अजीब-सी गीलापन, जो सिर्फ नमी नहीं थी। नीचे झुक कर देखा तो उनके निजी हिस्से से खून की बूँदें बहने लगी थी।
वो बूँदें धीरे-धीरे बिस्तर पर टपकने लगी, लाल दाग़ चादर पर फैलने लगे। मैं हैरान रह गया, मेरा लंड अब पूरी तरह उनके अंदर था और हर हरकत के साथ खून और भी ज़्यादा बह रहा था। दीदी ने अचानक आँखें खोल दी, और उनके चेहरे पर दर्द की लहर दौड़ गई। उनकी चीख़ कमरे में गूंज उठी।
“आह्ह्ह… गोलू… बहुत दर्द हो रहा है… बस करो!” वो ज़ोर-ज़ोर से कराहते हुए मुझे धक्का देने लगी। उनके हाथ मेरी छाती को जोर से धकेल रहे थे, जैसे मुझे पीछे हटाना चाहती हो।
उनकी आँखों में आँसू आ गए थे, होंठ काँप रहे थे और पूरा शरीर दर्द से तड़प रहा था। वो बार-बार अपनी कमर को पीछे खींचने की कोशिश करती, लेकिन मेरा लंड अभी भी उनके भीतर धंसा हुआ था। हर हलचल के साथ उनके मुँह से चीखें निकल रही थी, और उनका शरीर कांप रहा था।
मैं स्तब्ध था। मेरे दिल में सपना पूरा होने की खुशी थी, लेकिन सामने दीदी की पीड़ा देख कर मैं पसीने से भीग गया। खून की बूंदें लगातार बिस्तर पर टपक रही थी, चादर पर लाल धब्बे फैलते जा रहे थे।
वो मुझे लगातार धकेल रही थी, उनकी आवाज़ दर्द से भर कर फटी जा रही थी, “निकालो इसे… गोलू… प्लीज़… बहुत दर्द है…”
उनकी हालत देख कर मेरा दिल बैठ गया, लेकिन लंड की पकड़ और कसावट मुझे एक साथ पागल भी कर रही थी। वो बार-बार अपने शरीर को पीछे खींचने की कोशिश करती, और हर कोशिश के साथ उनका पूरा तन बिस्तर पर बेतहाशा कांप उठता। उनकी चीखें और कराहें पूरे कमरे में गूंज रही थी।
मैंने तुरंत अपने लंड को अंदर से बाहर खींच लिया और उनके शरीर से पीछे हट गया। दीदी ने दर्द से कराहते हुए आँसू बहाए और अपने सिर को तकिए पर दबा लिया। मैं कभी नहीं जानता था कि सेक्स उनके लिए इतना दर्दनाक हो सकता है।
उनके कराहने और रोने की आवाज़ सुनकर मेरे सीने में गहरा पछतावा और डर उतर गया। मैं उनके पास झुक गया, हाथों से उन्हें धीरे-धीरे सहलाने लगा, और दिल ही दिल में सोचा कि अब मुझे और उनकी देखभाल करनी होगी।
दीदी ने दर्द और रोते हुए मेरी ओर देखा और चीखते हुए कहा, “गोलू! तुमने मेरी बात क्यों नहीं मानी? जब मैंने पहली बार कहा था कि वापस खींचो, तब तुमने क्यों नहीं रोका? मुझे ऐसा क्यों सहना पड़ा?” उनकी आवाज़ में गुस्सा, दर्द और निराशा सब मिला हुआ था। उनकी आँखों से आँसू लगातार बह रहे थे, और शरीर हर पल झटके ले रहा था।
फिर दीदी ने बिस्तर पर बिखरे अपने कपड़े उठाए और रोते-रोते अपनी कमर संभालते हुए अपने कमरे की ओर चल दी। मैं उन्हें पीछे से देखना चाहता था, चल कर उनका हाथ पकड़ूं या उन्हें सहलाऊँ, लेकिन मुझे पता था कि वह अब मुझे पास नहीं चाहती। उनके रोने की आवाज़ और गुस्से से मुझे यह समझ आ गया कि उनके लिए अब दूरी ही सही थी। मैं अपनी जगह पर बैठा रह गया, चुप-चाप उनके कमरे की ओर देखते हुए, मन में पछतावा और चिंता दोनों लिए।
नेहा दीदी और मेरी वह पहली कोशिश थी, एक दूसरे को जानने की लेकिन सब उस तरह हुआ नहीं जिस तरह मैं चाहता था।
अगली सुबह मैं बहुत जल्दी उठ गया। बाहर हल्की-हल्की रोशनी फैल रही थी और घर में गहरी खामोशी थी। मैंने धीरे से उसके कमरे की ओर देखा। दरवाज़ा आधा खुला था और भीतर नेहा दीदी अब भी गहरी नींद में सो रही थी। शायद उन्होंने ऑफिस से छुट्टी ले ली थी। उनके चेहरे पर थकान के बीच भी एक अजीब-सी सुकून भरी मुस्कान थी, जिसे देख कर मैं ठहर गया।
मुझे अचानक उनके लिए बहुत अफ़सोस हुआ। लगा कि मुझे उनके लिए कुछ करना चाहिए। याद आया कि ऐसे दर्द और थकान में चॉकलेट सबसे अच्छा सहारा होता है। मैंने तुरंत बाहर निकलने का सोचा। बिल्डिंग के नीचे जाकर देखा तो आसपास की दुकानें बंद थी। लेकिन मैं ठान चुका था। मैं धीरे-धीरे सड़क पर आगे बढ़ने लगा। लगभग एक किलोमीटर तक चलने के बाद आखिरकार एक छोटी-सी दुकान खुली मिली, जहाँ से मैंने चॉकलेट खरीदी और फिर वापस लौट आया।
जब मैं लौटा, तो बाथरूम से पानी की हल्की आवाज़ें आ रही थी। समझ गया कि वह नहा रही हैं। मैं सोफ़े पर बैठ गया और इंतज़ार करने लगा। कुछ देर बाद दरवाज़ा खुला और वह बाहर आई। तौलिए में लिपटी हुई, उनके चेहरे से पानी की बूँदें टपक रही थी। थकी हुई नज़रों के बावजूद उनमें एक सादगी और अपनापन था। वह धीरे-धीरे कदम रखती हुई कमरे की ओर बढ़ीं, जैसे अब भी शरीर में दर्द बाकी हो। मैं बस चुपचाप उन्हें देखता रहा, मन में केवल एक ख्वाहिश थी कि यह चॉकलेट उनके चेहरे पर फिर से मुस्कान ले आए।
थोड़ी देर बाद वह अपने कमरे में चली गई और कपड़े बदल कर वापस लौटी। अब वह साधारण-सी ड्रेस में थी, लेकिन उनके चेहरे की ताज़गी और भी बढ़ गई थी। उन्होंने धीरे-धीरे रसोई की ओर कदम बढ़ाए, जैसे अपने दिन की शुरुआत करने जा रही हों।
मैं भी उनके पीछे-पीछे रसोई में चला गया। वहाँ पहुँच कर मैंने हिम्मत करके पूछा, “आज ऑफिस क्यों नहीं जा रही हो?” उन्होंने बस हल्के स्वर में जवाब दिया, “दर्द की वजह से।” उनकी आवाज़ में थकान साफ झलक रही थी।
यह सुन कर मेरे मन पर बोझ और बढ़ गया। मैंने धीरे से कहा, “ये सब मेरी वजह से हुआ है… तुम्हें ये तकलीफ़ झेलनी पड़ रही है।” मेरे शब्दों में सच्चा पछतावा झलक रहा था। कुछ देर तक चुप्पी छाई रही। फिर उन्होंने मेरी ओर देखा और मुस्कराते हुए बोली, “इतना उदास मत हो। ये हमारा फैसला था, ताकि हम एक-दूसरे को समझ सकें। बस अगली बार इतना ध्यान रखना कि मुझे चोट ना पहुँचे।”
उनकी बातों ने मेरे दिल को हल्का कर दिया, और मैं उनके हौसले की ताक़त को और भी महसूस करने लगा। उनके शब्दों ने मुझे यह एहसास कराया कि वह मुझसे नाराज़ नहीं थी, बल्कि चाहती थी कि हम दोनों एक-दूसरे को और बेहतर तरीके से समझें। और वह अब भी मेरे साथ सेक्स करने के बारे में सोच रही थी और इतना काफी था मुझे खुश करने के लिए।
मैंने झिझकते हुए अपनी जेब से चॉकलेट निकाली और उनकी ओर बढ़ा दी। उन्होंने मेरे हाथों को थाम लिया, जैसे मुझे रोक रही हों, फिर मुस्करा कर चॉकलेट ले ली। उनकी आँखों में चमक लौट आई। धीरे-धीरे उन्होंने मुझे अपने पास खींचा और हल्के से गले लगा लिया। उनके इस छोटे-से इज़हार ने मेरे दिल को गहराई से छू लिया।
मैंने उनकी आँखों में देखा और धीरे से कहा, “मैं तुम्हारा दर्द देखना चाहता था, ताकि समझ सकूँ तुम कितनी हिम्मत से सब झेलती हो।” फिर मैंने उनका हाथ थाम कर उन्हें बाहर के सोफ़े तक ले आया, ताकि वह आराम से बैठ सके।
उसके बाद मैंने धीरे से उनके हाथ से चॉकलेट ली और पास ही सोफ़े पर रख दी। वह बस मुझे देखती रही, जैसे मेरी हर छोटी हरकत उन्हें सुकून और खुशी दे रही हो। उनके चेहरे पर हल्की मुस्कान थी, मानो कहना चाह रही हो कि मेरे साथ होने से ही उन्हें आराम मिल रहा था। उस समय उन्होंने हल्के रंग की ढीली-सी ड्रेस पहन रखी थी, जो बिल्कुल आरामदायक लग रही थी। कपड़े सादगी भरे थे लेकिन उन पर बहुत जच रहे थे। उनके बाल अब भी हल्के गीले थे और कंधों पर बिखरे हुए थे, जिससे उनका चेहरा और भी ताज़ा और प्यारा लग रहा था।
मैंने धीरे से उनका हाथ पकड़ा और उन्हें अपनी ओर घुमा दिया। फिर उनकी ड्रेस की जिप पर हाथ रखते हुए धीरे-धीरे खोलना शुरू किया। वह थोड़ी झिझक के साथ मुस्कुरा कर बोली, “ये… क्या कर रहे हो?”
उनकी आवाज़ में संकोच और मासूमियत थी। मैंने शांत स्वर में कहा, “बस तुम्हारा दर्द समझना चाहता हूँ।” जैसे-जैसे जिप खुलने लगी, मेरी उंगलियाँ उनकी पीठ से छूती हुई नीचे सरकती गई। उनके जिस्म में एक हल्की-सी सिहरन दौड़ गई। धीरे-धीरे उनकी पीठ का नाज़ुक हिस्सा नज़र आने लगा और उनकी ब्रा की पतली पट्टी दिखाई देने लगी। वह हल्के गुलाबी रंग की थी, बिल्कुल सादी लेकिन उन पर बेहद प्यारी लग रही थी। मेरी छुअन और उस झलक से उनके गालों पर गहरी लाली आ गई।
इसके बाद उन्होंने हल्की-सी मदद की और ड्रेस को खुद से उतारने में मेरा साथ दिया। कुछ ही पल में उनकी ड्रेस नीचे खिसक गई और मैंने उसे उठा कर थोड़ी दूर रख दिया। अब वह मेरे सामने खड़ी थी, केवल ब्रा और पैंटी में। मैंने उन्हें धीरे से घुमा कर सामने की ओर किया ताकि उनके चेहरे को देख सकूँ। उनका चेहरा शर्म से और भी लाल हो गया था, आँखें झुकी हुई और होंठ हल्के काँप रहे थे।
उनका जिस्म उस कपड़े के नीचे भी साफ झलक रहा था। छाती की गोलाई उनकी ब्रा के अंदर कस कर उभरी हुई थी और साँस लेने पर हल्की-हल्की हिल रही थी। उनके पतले और कोमल बदन पर हर वक्र साफ नज़र आ रहा था। उनकी कमर से नीचे तक का ढांचा सधा हुआ था, और पैंटी की हल्की लेस उनकी जांघों के ऊपर कोमलता से टिकी हुई थी।
इसके बाद मैंने धीरे से अपना हाथ उनकी पीठ की ओर बढ़ाया और ब्रा की हुक खोल दी। जैसे ही हुक ढीली हुई, उनकी छाती आज़ाद होकर सहज साँसों के साथ ऊपर-नीचे होने लगी। दिन की हल्की धूप उनके शरीर पर पड़ रही थी, जिससे उनकी त्वचा और भी चमक उठी।
उनके सीने की गोलाई खुले में और भी आकर्षक लग रही थी। मुलायम, भरी हुई और हल्की चमक लिए हुए। धूप में उनकी त्वचा का हर रंग और निखर आया था, मानो रोशनी खुद उन पर ठहर गई हो। उनके स्तनों की हल्की थरथराहट उनके दिल की धड़कनों के साथ तालमेल बैठाती हुई, पूरे माहौल को और भी रोमांचक बना रही थी।
मैंने धीरे से उनका हाथ थामा और उन्हें सहलाते हुए अपने पास खींच लिया। फिर बहुत प्यार से उनके थके हुए शरीर को सहारा देकर धीरे-धीरे सोफ़े पर लिटा दिया।
उनके लेटते ही मैं उनके पैरों के बीच आकर बैठ गया। छोटा सा सोफ़ा था, इसलिए मेरे घुटने दोनों ओर से उनके पैरों को हल्के-हल्के छू रहे थे। यह निकटता हमारे बीच की दूरी को और कम कर रही थी। मैंने उनकी पैंटी को उँगलियों से थामा। मुलायम कपड़ा मेरी उँगलियों में फिसलता हुआ लगा, जैसे उनकी गरमाहट उसमें कैद हो। धीरे-धीरे मैंने उसे नीचे खिसकाना शुरू किया। हर इंच नीचे जाते ही उनका छुपा हुआ नाज़ुक हिस्सा थोड़ा-थोड़ा सामने आने लगा।
कल रात जब हमने कोशिश की थी, तो दर्द और खून के कारण उन्हें बहुत तकलीफ़ हुई थी। वह याद मेरे मन में ताज़ा थी। आज उनकी नाज़ुक जगह थोड़ी सूजी हुई और संवेदनशील दिख रही थी, जैसे पिछली रात की पीड़ा अभी भी वहाँ मौजूद हो। हल्की लाली और कोमलता साफ़ झलक रही थी।
उनकी साँसें तेज़ थी, और आँखों में डर और उम्मीद दोनों मिले-जुले भाव थे। मैंने उन्हें ध्यान से देखा और समझ गया कि आज भी उन्हें दर्द का एहसास हो रहा है, इसलिए मैंने बहुत सावधानी बरतते हुए उनके चेहरे से भरोसा माँगा और उनके पास ठहर गया।
धीरे-धीरे मैंने अपना हाथ आगे बढ़ाया और उनकी उस नाज़ुक जगह को हल्के-हल्के छूने लगा। मेरी उँगलियों के नीचे उनकी गरमाहट और कोमलता एक साथ महसूस हुई। वह स्पर्श बहुत नर्म था, जैसे किसी नाज़ुक फूल की पंखुड़ी को सहला रहा हूँ। उनका शरीर हल्के-हल्के कांपने लगा।
उनके चेहरे पर कई भाव एक साथ उभरे—पहले तो हल्का दर्द, फिर धीरे-धीरे वह दर्द किसी और एहसास में बदलने लगा। उनकी आँखें बंद हो गई, भौंहें सिकुड़ गई, और होंठों से धीमी-सी साँसें बाहर आने लगीं। वह पल उनके चेहरे की मासूमियत और गहराई दोनों को एक साथ दिखा रहा था।
मैंने और आगे बढ़ने की कोशिश की। अपनी उँगली उनकी नाज़ुक जगह के अंदर डालने ही वाला था कि तभी वह दर्द से कराह उठी। उनकी आवाज़ काँपते हुए निकली, “रुको गोलू, मैं अभी तैयार नहीं हूँ।”
यह सुन कर मैं तुरंत रुक गया। मैंने हल्की मुस्कान के साथ उनके चेहरे को देखा और धीरे से कहा, “सॉरी दीदी।”
उनके होंठों पर हल्की मुस्कान आई और उन्होंने अपना हाथ मेरी बाँह पर रख दिया। मैं उठ कर खड़ा हुआ और उनके चेहरे के पास आ गया। झुक कर उन्हें बाँहों में भर लिया। उनका खुला सीना मेरे सीने से लगते ही एक गर्म अहसास फैल गया। उनकी नरमी मेरे शरीर से टकरा कर दिल की धड़कन और तेज़ कर रही थी।
तभी मुझे अचानक याद आया कि मैंने उनके लिए चॉकलेट लाई थी। वह उनके शरीर के नीचे दबा हुआ था, और हल्की गर्मी से पिघल गई थी। मैंने उसे धीरे-धीरे उठाया और देखा कि यह पूरी तरह से तरल हो गया था। मेरी उँगलियाँ चॉकलेट की ठंडी और मीठी गंध महसूस कर रही थी, और मेरे मन में एक शरारती मुस्कान आई।
नेहा दीदी लेटे-लेटे कभी मुझे देखती और कभी शर्मा कर नज़रे झुका लेती। मैंने तरल चाॅकलेट उनके खुले स्तनों पर डाला। गाढ़ी चाॅकलेट की बूंदें उनकी मुलायम त्वचा पर फैल कर चमक उठी, जैसे भूरी धारियाँ उनके गोरे स्तनों को ढक रही हों। वह हल्का-सा सिहर गई, होंठों पर दबी हुई मुस्कान और आँखों में लाज की चमक थी।उनके चेहरे पर एक साथ शरारत और संकोच की झलक थी, मानो दिल चाह रहा हो यह पल रुके, मगर नज़रें खुद-ब-खुद झुककर सब बयाँ कर रही थी। वह हैरान होकर बोली, “तुम क्या कर रहे हो?”
मैं उनकी आँखों में चमक देख कर मुस्कुराया और कहा, “बस थोड़ा और मीठा बना रहा हूँ।”
धीरे-धीरे मैंने अपनी उंगलियाँ उनके स्तनों पर फेरनी शुरू की। उंगलियाँ चाॅकलेट में भीगी हुई थी और मैं जैसे पूरा चाॅकलेट उनके सीने पर फैला रहा था। हर स्पर्श के साथ उनकी साँसें और तेज़ होती जा रही थी। चाॅकलेट उनके गोलाई लिए हुए सीने पर चमक रहा था और मैं उसे फैलाते हुए उनकी पूरी छाती पर मलता चला गया। उनके चेहरे पर कभी आँखें बंद करके आनंद की लहरें दौड़ती, तो कभी मुस्कान आकर होंठों पर ठहर जाती।
कुछ देर बाद मैंने हाथ रोक दिए और बस उन्हें देखने लगा। मेरी नज़रें नेहा दीदी के उन चाॅकलेट से ढके स्तनों पर टिक गई, मानो यह मेरी ज़िंदगी की अब तक की सबसे बेहतरीन डिश हो जो मेरे सामने परोसी गई हो। वह शरमा कर चेहरा दूसरी ओर घुमा लेती, मगर उनकी झुकी हुई आँखें और होंठों की हल्की कंपन बता रही थी कि अंदर ही अंदर वह भी इस पल को महसूस कर रही थी। आगे की कहानी के लिए [email protected]
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