पिछला भाग पढ़े:- दीदी ने सिखाया मुझे सेक्स करना-2
भाई बहन सेक्स कहानी अब आगे-
सुधा दीदी मेरे सामने पूरी तरह से नंगी खड़ी थी और अपने नाज़ुक हाथों से मेरे लंड को सहला रही थी। कपड़े के ऊपर से भी उनके मुलायम हाथों की छुअन मुझे और ज्यादा उकसा रही थी। मैं धीरे-धीरे अपने कपड़े उतारने लगा। हर बटन खोलते ही दीदी का चेहरा और गहरा होता जा रहा था। उनकी आँखों में हल्की घबराहट थी, लेकिन होंठों पर एक शर्मीली मुस्कान भी झलक रही थी। जैसे-जैसे मेरी शर्ट नीचे गिरी, दीदी की साँसें तेज़ होती चली गई और उनकी नज़रों में एक अजीब चमक आ गई।
मैंने अपनी पैंट और अंडरवियर भी धीरे-धीरे उतार दिए। अब मैं पूरी तरह उनके सामने नंगा खड़ा था। दीदी का चेहरा और लाल हो गया, वह एक कदम और करीब आई। उनके गर्म हाथ धीरे-धीरे मेरे खड़े लंड को पकड़ने लगे। उनकी उँगलियों की नरमी मुझे भीतर तक हिला रही थी। जब वह धीरे-धीरे ऊपर से नीचे और फिर नीचे से ऊपर चलाती, तो मेरा पूरा शरीर काँप उठता। हर स्पर्श मेरे दिल की धड़कन को और तेज़ कर देता, जैसे मेरी साँसें रुक सी जाएँ। उनका इतना पास खड़ा होना, उनकी गर्म साँसें मेरे सीने से टकराना और उनका हाथ मेरे सबसे पसंदीदा हिस्से पर खेलना, ये सब मुझे पागल कर रहा था।
मैं भी अब अपने हाथ रोक नहीं पाया। मैंने दोनों हाथ आगे बढ़ा कर धीरे-धीरे उनके मुलायम गोल-गोल स्तनों को थाम लिया। जैसे ही मेरी उँगलियाँ उनकी गर्म त्वचा से टच हुई, दीदी हल्की-सी काँप गई। उनके चेहरे पर एक गहरी शर्म और सुख का मिला-जुला भाव उतर आया। मैंने उनके दोनों स्तनों को धीरे-धीरे दबाना शुरू किया। उनके निपल्स मेरी उँगलियों के नीचे सख़्त होने लगे। मैं कभी अपनी हथेलियों से उनके पूरे उभार को दबाता, कभी अपनी उँगलियों से हल्के-हल्के घुमाव लेता। दीदी की साँसें और तेज़ हो गई, उनकी छाती ऊपर-नीचे होती रही।
जब मैंने उनके निपल्स को हल्के से दबाया और उँगलियों के बीच रगड़ा, तो उनके होंठों से एक धीमी कराह निकल गई। उनकी आँखें बंद हो गई और उन्होंने अपना चेहरा मेरे सीने से टिका दिया। मैं उनके हर रोम-रोम की गर्मी महसूस कर रहा था। उनके स्तन इतने भरे हुए और नरम थे कि मेरी उँगलियाँ उनमें खो जाती। मैं उन्हें बार-बार सहलाता, दबाता और कभी-कभी अपनी उँगलियों से हल्के-हल्के चुटकी भरता। हर बार ऐसा करने पर दीदी का बदन सिहर उठता और उनकी कराह मेरे कानों को पिघला देती।
मैं जितना उनके स्तनों से खेलता, उतना ही मेरा लंड दीदी के हाथों की पकड़ में सख़्त होता चला जाता। हम दोनों के बीच की गर्मी अब और बढ़ गई थी, और हमारे शरीर एक-दूसरे में पिघलते जा रहे थे। तभी मैं उनके कान में झुक कर धीरे से बोला, “दीदी… अब मुझसे और कंट्रोल नहीं हो रहा… प्लीज़, बेड पर चलो।”
दीदी ने हल्की साँस लेते हुए अपना चेहरा उठाया, उनकी आँखों में नमी और चाह दोनों थी। उन्होंने धीरे से कहा, “नहीं… अभी कुछ देर पहले ही तुमने मेरी मदद की थी… याद है? तुम्हारी उँगलियों से मैं कितनी पागल हो गई थी। अब मैं सेक्स नहीं कर सकती।” उन्होंने मेरा चेहरा अपने हाथों में लिया और नरम मुस्कान के साथ बोलीं, “लेकिन… मैं तुम्हें फिर भी खुश कर सकती हूँ।”
इतना कह कर दीदी धीरे से नीचे झुकी और मेरे सामने बिस्तर के किनारे बैठ गई। उन्होंने मेरे दोनों पैर फैलाए और खुद को मेरे बीच में समेट लिया। उनका चेहरा अब मेरे धड़कते लंड के बिलकुल करीब था। उनकी गर्म साँसें मेरे पसंदीदा हिस्से को छू रही थी, जिससे मैं और काँपने लगा।
धीरे-धीरे उन्होंने अपनी आँखें उठा कर मेरी ओर देखा, जैसे इजाज़त माँग रही हों। मेरी धड़कनें इतनी तेज़ थी कि शब्द निकल नहीं पा रहे थे, बस सिर हिला कर हामी भर दी।
अगले ही पल दीदी ने अपने होंठ मेरे लंड पर रख दिए। पहले हल्के से चुंबन, जैसे वह उसकी गर्माहट को महसूस करना चाह रही हों। उनके नरम होंठ मेरी नोक को छूते ही मेरे शरीर में बिजली दौड़ गई।
वह धीरे-धीरे नीचे की ओर बढ़ी, हर हिस्से पर हल्के-हल्के किस करती हुई। कभी दाएँ तरफ, कभी बाएँ तरफ, कभी उसके तने हुए हिस्से पर अपने होंठ दबाती और फिर पीछे हट कर शरमाती मुस्कान के साथ मुझे देख लेती। मैं उनके हर स्पर्श में खोता जा रहा था।
उनके होंठ इतने गीले और मुलायम थे कि जब भी वह मेरे लंड पर किस करती, मुझे लगता मानो कोई आग की लपट मेरे शरीर में दौड़ रही हो। वह हर चुंबन को लंबे समय तक खींचती, जैसे मुझे छेड़ रही हो। कभी वह अपनी नाक से धीरे-धीरे रगड़ती, तो कभी होंठों से गहरा दबाव डालती।
मैंने अपने हाथ उनके सिर पर रखा और उनकी बालों की लटों को सहलाने लगा। वह धीरे-धीरे मेरी जाँघों को भी अपने नाज़ुक हाथों से दबाती और अपने होंठों से मेरे लंड को चूमती जाती। हर बार जब उनकी गर्म साँस और होंठ साथ मिल कर मुझे छूते, तो मेरी आँखें बंद हो जाती और मैं एक गहरी सिहरन में खो जाता।
वह अब पूरे ध्यान से सिर्फ मुझे छूने और चूमने में लगी थी। उनकी हर हरकत मुझे और पागल कर रही थी। मैं बस यह चाहता था कि वह इसी तरह मेरे साथ खेलती रहें, क्योंकि उनका हर किस्स मेरे लिए किसी जादू से कम नहीं था।
अब दीदी ने अपने होंठ और ज्यादा खोल दिए और धीरे-धीरे मेरी नोक को अपने मुँह में समेट लिया। उनकी जीभ हल्के-हल्के मेरी टिप पर घूमने लगी। हर स्पर्श ने मुझे भीतर तक हिला दिया। उनके होंठ मेरे लंड को कस कर पकड़ते और जीभ धीरे-धीरे इधर-उधर घूमती। दीदी की धीमी कराहें मेरे कानों तक पहुँचती और मुझे पागल बना देती।
वह धीरे-धीरे ऊपर-नीचे होने लगी। उनके होंठों की पकड़ और जीभ की नमी मेरे शरीर को आग की तरह जलाने लगी। कभी वह सिर्फ नोक को अंदर लेकर चूसती, तो कभी गहराई तक ले जाकर जीभ से हर हिस्से को सहलाती। उनके होंठों का दबाव, जीभ की नमी और उनकी प्यारी कराह, ये सब मिल कर मुझे मदहोश कर रहे थे।
मैं हर पल उनके मुँह की गर्मी और गीलापन महसूस कर रहा था। उनकी आँखें कभी-कभी ऊपर उठती और मुझसे टकराती, उस पल मेरी सांसें थम जाती। उनके गीले होंठ जब मेरे लंड पर ऊपर-नीचे सरकते, तो मेरा शरीर खुश होकर हिल उठता।
मैं अब बस दीदी के मुँह की उस गर्माहट और उनकी जीभ के खेल में पूरी तरह खो गया था। उनकी हर हरकत, हर आवाज़, हर स्पर्श मेरे लिए किसी जादू से कम नहीं था।
जब दीदी ने अपनी रफ़्तार और तेज़ कर दी। उनके होंठ और जीभ एक साथ तेजी से मुझे चूसने लगे। उनके गले से निकलती गीली आवाज़ें और होंठों का कसाव मेरे लिए सुख बन गया। मैं अपनी जगह पर कांपते हुए कराह रहा था।
जितना तेज़ वह करती, उतना ही मेरा शरीर खुद को रोकने में असमर्थ हो रहा था। मेरी सांसें बेकाबू हो गई, दिल की धड़कन जैसे फटने को थी। अचानक मैं खुद को और नहीं रोक पाया और ज़ोर से कराहते हुए उनके मुँह के अंदर ही फट पड़ा।
गर्म, गाढ़ा रस तेज़ धार की तरह उनके मुँह में भर गया। उनकी आँखें चौड़ी हो गई लेकिन होंठों की पकड़ ढीली नहीं हुई। रस उनके होंठों से बाहर निकल कर ठोड़ी तक बहने लगा। कुछ बूँदें उनके होठों से फिसलकर मेरे लंड पर टपक गई।
दीदी ने धीरे से मुँह हटाया, उनके होंठ अब भी रस से गीले थे। मोटी-मोटी बूँदें उनके होठों के किनारे से नीचे गिर रही थी। उन्होंने अपनी जीभ से थोड़ा-सा रस चाटा और शरमाते हुए ऊपर देखा। उनके चेहरे पर थकान, चाह और आनंद का एक साथ मिला-जुला रंग चमक रहा था।
मैंने देखा कि उनकी ठोड़ी से कुछ और बूँदें गर्दन तक बह गई थी। दीदी ने उंगलियों से उन बूँदों को उठाया और अपनी जीभ से चाट लिया। उनकी हर हरकत में एक अजीब-सी मोहकता थी। मैं सांसें संभालने की कोशिश कर रहा था, लेकिन दीदी की यह अदा मुझे फिर से उत्तेजित कर रही थी।
उन्होंने मेरे लंड पर बची कुछ बूंदों को होंठों से चूस लिया और धीरे से मुस्कुराते हुए बोली, “देखा, मैंने कहा था ना… मैं तुम्हें खुश कर दूँगी।” उनके शब्दों में एक प्यार झलक रहा था। उस पल मुझे लगा जैसे हमारे बीच की दूरी हमेशा के लिए मिट चुकी है।
कुछ देर बाद दीदी धीरे-धीरे उठी और कपड़े पहनने लगी। मैंने भी अपनी शर्ट और पैंट फिर से पहन ली। कमरे में हल्की-सी खामोशी थी, सिर्फ हमारी तेज़ सांसें गूंज रही थी। दीदी बिना कुछ कहे अपने कमरे की ओर चली गई। मैं बिस्तर पर थोड़ी देर बैठा रहा, उस पल को याद करते हुए। फिर धीरे-धीरे टेबल पर जाकर अपनी किताबें खोली और पढ़ाई में लग गया। लेकिन दिल में दीदी की मुस्कुराहट और उनका स्पर्श अब भी गूंज रहा था।
सात दिन ऐसे ही गुजर गए। उन सात दिनों में कुछ खास नहीं हुआ। कभी-कभी जब हम अकेले होते तो हल्की-सी किस्स कर लेते, लेकिन उससे ज्यादा कुछ नहीं। मैं अपने कॉलेज की तैयारी में लगा रहा और दीदी भी घर के कामों में बिजी रही।
उस सुबह पापा दफ़्तर चले गए और माँ बाज़ार चली गई। घर पर सिर्फ हम दोनों थे। दीदी ने नाश्ते में गरमागरम डोसे बनाए और प्लेट में सजा कर मेरे सामने परोस दिए। हम दोनों साथ बैठ कर चुप-चाप नाश्ता करने लगे। माहौल बिल्कुल आम था, लेकिन हमारे बीच बीते हुए पल का असर अब भी कहीं गहराई में महसूस हो रहा था।
मैंने जैसे ही दीदी की ओर नज़र उठाई, तो देखा कि आज उन्होंने हल्के गुलाबी रंग की स्लीवलेस कुर्ती पहनी हुई थी। कुर्ती का गला थोड़ा गहरा था, जिससे उनकी भरपूर छाती की झलक बार-बार दिखाई दे रही थी। उनका दुपट्टा किचन के काम में आसानी के लिए ढीला-सा कंधे पर पड़ा था, और वह उनकी छाती को ढकने के बजाय और ज्यादा उभार दे रहा था।
जब वह प्लेट में डोसा परोसने के लिए झुकी, तो उनकी क्लीवेज का नज़ारा मेरी आँखों के सामने साफ़-साफ़ उभर आया। उनकी गोलाई इतनी भरी हुई थी कि मेरी सांसें अटक गई। कपड़े के भीतर से उनके स्तनों का उभार और निपल्स की हल्की झलक मुझे पागल बना रही थी।
मैंने खाने की कोशिश की, लेकिन नज़रें बार-बार उनकी छाती पर खिंच जाती। कभी जब वह पानी का गिलास रखने झुकती तो उनके कुर्ती का गला और ढीला हो जाता और मुझे उनके स्तनों का और गहरा नज़ारा मिल जाता। हल्की-सी पसीने की चमक उनकी गर्दन और छाती पर झिलमिला रही थी, जिससे उनका हर उभार और भी आकर्षक लग रहा था।
मेरे लंड ने तुरंत ही सख्ती पकड़ ली। उनके सिर्फ इन झलकियों ने मेरे भीतर इतना जोरदार असर डाला कि मैं नीचे से खुद को काबू में ही नहीं रख पा रहा था। कुर्सी पर बैठे-बैठे मेरी सांसें तेज़ हो गई और दिल की धड़कन बढ़ने लगी। मैं नज़रें हटाने की कोशिश करता, लेकिन दीदी की हर हल्की झलक मुझे और ज्यादा उत्तेजित कर रही थी।
आख़िरकार मैं और नहीं रोक पाया। मैंने बहाना बनाया और उठ कर बाथरूम चला गया। अंदर पहुँचते ही मैंने पैंट उतार दी और खुद को आराम देने की कोशिश करने लगा। लेकिन मुझे सही तरीका नहीं आता था। मैंने अपने हाथ से कुछ देर तक लंड को मसलने की कोशिश की, मगर कोई खास राहत नहीं मिली। शरीर जल रहा था, पर चरम तक पहुँचने का रास्ता मुझे समझ नहीं आ रहा था।
कुछ देर ऐसे ही कोशिश करने के बाद भी जब कुछ नहीं हुआ, तो मैं थक कर वहीं बैठ गया। तभी अचानक दरवाज़े पर दस्तक हुई। दीदी की आवाज़ आई— “गोलू, क्या कर रहे हो अंदर? डोसा ठंडा हो रहा है।”
मैं चुप रहा, कुछ नहीं बोला। लेकिन दीदी ने फिर से दरवाज़े पर हाथ मारा और बोली, “अरे, खोलो दरवाज़ा! कब से बैठे हो अंदर?”
उनकी आवाज़ में अब थोड़ी बेचैनी भी थी। आखिरकार मैंने झिझकते हुए दरवाज़ा खोला। जैसे ही दरवाज़ा खुला, दीदी एक-दम सामने खड़ी थी और बिना कुछ कहे बाथरूम के अंदर आ गई।
अंदर आते ही उनकी नज़रें सीधे मेरी हालत पर गई। मैं घबरा कर तुरंत एक हाथ से खुद को ढकने लगा, चेहरा लाल हो गया। लेकिन दीदी ने कुछ नहीं कहा, बस हल्की-सी मुस्कान के साथ मेरी आँखों में देखने लगी।
वो धीरे-धीरे मेरे पास आई और नरम आवाज़ में बोली, “गोलू, अचानक से ऐसे… इतना सख़्त क्यों हो गया तू?” उनकी आँखों में समझ और जिज्ञासा दोनों झलक रही थी। वो कुछ भी कहे बिना जैसे मेरे हालात को समझ चुकी थी। मैं शर्म से नीचे देखने लगा, पर उनके सवाल ने मेरे पूरे शरीर को और भी गर्म कर दिया।
मैंने हिम्मत करके बहुत धीमी आवाज़ में कहा, “दीदी… आपके बूब्स की वजह से।”
ये सुन कर दीदी कुछ पल के लिए चुप रह गई। उनकी आँखों में हल्की-सी हैरानी और होंठों पर मुस्कान थी। उन्होंने धीरे से मेरी ठोड़ी ऊपर उठाई और बोली, “तो इतना असर डालते हैं मेरे सीने तुम पर?” उनके शब्दों ने मुझे और भी ज़्यादा शर्मिंदा कर दिया, लेकिन अंदर से एक अजीब-सी उत्तेजना भी भर दी।
वो मेरी बात सुन कर चुप-चाप मुस्कुराई और बिना कुछ कहे धीरे-धीरे अपने कपड़े उतारने लगी। सबसे पहले उन्होंने अपनी रंग-बिरंगी कुर्ती के बटन खोले, कपड़ा कंधों से फिसल कर नीचे गिर गया। मेरी साँसें तेज़ हो गई।
अब उनके बदन पर सिर्फ़ हल्के नीले रंग की ब्रा रह गई थी। उन्होंने अपनी पतली उँगलियों से ब्रा की हुक खोली, और जैसे ही कपड़ा ढीला पड़ा, उनका भरा-पूरा सीना आज़ाद होकर मेरी आँखों के सामने आ गया। मैंने सात दिनों बाद पहली बार अपनी दीदी के नंगे बूब्स इतने पास से देखे। वो गोल-मटोल, कसे हुए और सफ़ेद दूध जैसी मुलायम त्वचा से चमक रहे थे। उन पर पानीं की हल्की बूँदें चमक रही थी।
उनके निपल्स गुलाबी और कड़े हो चुके थे, मानो मेरी नज़रें ही उन्हें छू रही हों। मैं देखता ही रह गया, मेरी धड़कनें इतनी तेज़ थी कि मुझे लग रहा था दीदी तक सुन लेंगी।
अचानक वो हल्का-सा झुक गई, उनका चेहरा मेरे बहुत पास आ गया और उनके भरे-पूरे बूब्स मेरी छाती से सरकते हुए नीचे की ओर आ गए। उन्होंने अपने दोनों हाथों से बूब्स को एक साथ दबाया, और उनके बीच मेरा सख़्त लंड पूरी तरह फँस गया। जिस तरह से उन्होंने बूब्स की नर्मी से उसे पकड़ कर दबाया, उस अहसास ने मुझे काँपने पर मजबूर कर दिया।
उनके मुलायम, गरम और गोल बूब्स के बीच मेरा लंड धीरे-धीरे ऊपर-नीचे फिसल रहा था। हर दबाव पर मेरे चेहरे पर अलग ही रंग उभर रहे थे, कभी आँखें बंद हो जातीं, कभी मुँह आधा खुला रह जाता और होंठों से सिसकारी निकल जाती। ऐसा लग रहा था मानो मैं किसी और ही दुनिया में खो गया हूँ।
दीदी की हर मूवमेंट में एक लय थी। वो धीरे-धीरे बूब्स को कस कर ऊपर सरकाती, फिर नीचे लाती, और बीच-बीच में ज़ोर से दबा कर रोक भी देती। उस वक़्त मेरे चेहरे पर हैरानी और सुख का मिला-जुला भाव था। मेरी साँसें तेज़ हो चुकी थी, पसीने की बूँदें माथे पर चमक रही थी और आँखों में बस एक प्यास थी।
उनकी आँखें मेरी आँखों से मिल रही थी, और उनके होंठों पर शरारती मुस्कान थी, मानो वो मेरी हालत देख कर और भी ज़्यादा मज़ा ले रही हो। मेरा पूरा शरीर उस गरम और मुलायम एहसास में कैद हो चुका था।
कुछ पल बाद दीदी ने अपनी रफ़्तार बढ़ा दी। अब उनके बूब्स तेज़ी से ऊपर-नीचे सरक रहे थे। उनकी छातियाँ इतनी कस कर दब रही थी कि हर बार मेरा लंड और गहराई से उनके बीच घुसता जा रहा था। उस तेज़ मूवमेंट से मेरी कमर भी खुद-ब-खुद आगे की ओर झटके मारने लगी।
उनके चेहरे पर भी अब बदलाव साफ़ दिख रहा था। आँखें आधी बंद थी, साँसें भारी और होंठ खुले हुए, जैसे वो भी उस लय में डूब गई हों। उनकी गर्दन पर नसें उभर आई थी, और गाल हल्के लाल हो चुके थे। उनकी आँखों में एक अजीब-सी चमक थी, मानो वो मुझे तो देख रही हो, लेकिन खुद भी उस सुख का हिस्सा बन चुकी हों।
हर बार जब वो बूब्स को कस कर ऊपर खींचती, उनके चेहरे पर शरारती मुस्कान उभर आती और मैं कराह उठता। दीदी की तेज़ साँसें और उनके होंठों से निकलती हल्की-सी सिसकारी मुझे और पागल कर रही थी। उनके इस तेज़ और गरम खेल में मैं पूरी तरह खो चुका था, हर पल का एहसास मेरे लिए किसी नशे से कम नहीं था।
कुछ पल बाद दीदी ने अपनी रफ़्तार और बढ़ा दी। उनके बूब्स की गरमी और मुलायम कसावट में मैं खुद को रोक नहीं पाया। मेरा लंड तेज़ी से उनके बीच रगड़ खाता हुआ उस चरम पर पहुँच गया जहाँ से वापसी नहीं थी।
एक जोरदार झटके के साथ मेरी कराह निकली और तभी गरम-गरम सफेद पानी की पहली धार सीधे दीदी के बूब्स पर फट पड़ी। सफेद गाढ़ा रस उनकी छातियों पर फैल गया, चमचमाती त्वचा पर मोतियों जैसा लुढ़कने लगा। मैं लगातार फटता गया, हर बार की धार उनके बूब्स पर छपाक की तरह गिरती और फिर नीचे की ओर बहने लगती।
क्रीम जैसी गाढ़ी परत धीरे-धीरे उनके बीचों-बीच की लाइन से फिसल कर उनके नाभि तक पहुँच गई। कुछ बूँदें उनके पेट पर ठहर गई, और फिर धीरे से नीचे बहते हुए उनके पहने हुए पायजामे के कपड़े तक पहुँच गई। कपड़ा भीग कर चिपकने लगा और उस पर पानी की सफेद लकीरें साफ़ दिख रही थी।
दीदी का बदन अब चमक रहा था। बूब्स पर फैला सफेद पानी दूधिया चमक लिए हुए था, नाभि के आस पास गाढ़ा सफेद जमाव सा दिख रहा था। उनके गर्म साँसों के साथ जब उनका सीना ऊपर-नीचे हो रहा था, तब पानी भी हल्का-हल्का हिल कर चमक उठा। पूरा नज़ारा ऐसा था मानो उनके शरीर पर कोई नशीला, चमकदार लेप चढ़ा हो।
मैं हाँफते हुए उन्हें देखता रह गया, मेरे लंड से आख़िरी बूँदें भी निकल कर उनके पेट और पायजामे पर गिर रही थी। दीदी ने आँखें बंद कर हल्की कराह भरी, और उनके चेहरे पर वही शरारती मुस्कान दोबारा लौट आई।
फिर दीदी ने बगल में रखी अपनी पुरानी पैंटी उठाई, जिसे वह धोने के लिए बाथरूम के फर्श पर रखने वाली थी। उसी से उन्होंने अपने बूब्स और नाभि पर फैले सफेद पानी को धीरे-धीरे पोंछना शुरू किया। मुलायम कपड़े से उनका सीना चमक उठ रहा था और पेट की नमी भी धीरे-धीरे साफ़ हो गई। जब पूरा बदन सूख गया तो उन्होंने अपनी कुर्ती पहन ली।
मैंने भी अपनी पैंट पहन ली। दोनों ने एक-दूसरे को हल्की मुस्कान से देखा और बाथरूम से बाहर निकल आए। बाहर टेबल पर रखी थाली में खाना इंतज़ार कर रहा था। हम दोनों पास-पास बैठ कर चुप-चाप खाना खाने लगे, जैसे अभी-अभी जो हुआ वह सिर्फ़ हमारे बीच का कोई मीठा राज़ हो। [email protected]
अगला भाग पढ़े:- दीदी ने सिखाया मुझे सेक्स करना-4