पिछला भाग पढ़े:- दो गायें और दो सांड-5
हिंदी अन्तर्वासना कहानी, अब आगे-
संदीप के यहां चुदाई के बाद जब हम वापस आ रहे थे, तो मैंने असलम से कहा था कि जाने से पहले मुझे फोन करे। असल में मैं असलम से एक बार और चुदाई करवाना चाहती थी।
क्या मस्त चुदाई करता है ये असलम। सोमवार शाम को असलम का फोन आया, “मालिनी जी नमस्ते मैं मंगलवार रात की गाड़ी से वापस आगरा जा रहा हूं। आपने कहा था जाने से पहले आपको मिलता जाऊं।” फिर थोड़ा रुक कर बोला, “वैसे मालिनी जी अगर आप ना भी कहती तो भी आपसे मिलने जरूर आता, आपकी चिकनी गांड चाटनी है।”
चिकनी गांड चाटनी है, वाह! मैं तो तैयार ही थी – गांड चटवाने एक और चुदाई करवाने में हर्ज ही क्या है? ना तो कानपुर का रहने वाला है। कोइ रिस्क नहीं। लंड भी ऐसा है जैसा सब का नहीं होता “कलाई जितना मोटा और आधे हाथ जितना लम्बा।”
मैंने कहा, “ठीक है असलम आ जाओ। तुम्हारी अम्मी के बारे में ही बात करनी है।”
असलम बोला, “ठीक है मालिनी जी, कल सुबह दस बजे पहुंचता हूं।”
मंगलवार ठीक दस बजे असलम मेरे क्लिनिक में पहुंच गया। दुआ सलाम के असलम बोला, “मालिनी जी अम्मी के बारे में क्या बात करनी है? कुछ ख़ास बात है क्या?”
मैंने कहा, “हां असलम ख़ास ही समझो।” मैंने प्रभा को कुछ चाय-नाश्ता लाने को बोल दिया।
हम दोनों दो दिन पहले हुई चुदाई की बात करते रहे। असलम बोला, “मालिनी जी ये दो गाये और दो सांड वाला प्रोग्राम तो बड़ा मस्त था।। कभी मौक़ा मिले तो फिर बनाइये ऐस ही कोइ प्रोग्राम।”
मैंने कहा, “देखते हैं, कोइ नयी गाये मिले तो बनाते हैं।” ये दूसरी गए वाली बात मैंने जान बूझ कर बोली थी।
असलम बोला, “मालिनी जी रागिनी भी तो मस्त चुदाई करवाती है। पूरा लंड लेती है चूत में भी गांड में भी।”
मैंने कहा, “वो तो ठीक है असलम। लेकिन फिर भी जैसे रोज-रोज एक ही दाल खाने से उस दाल को खाने का मजा खत्म हो जाता है, इसी एक ही तरह की चुदाई का प्रोग्राम बार-बार दोहराने से उसका भी मजा खत्म हो जाता है।”
दस मिनट में प्रभा चाय लेकर आ गयी। चाय की चुस्कियां लेते हुए मैंने असलम से कहा, “असलम चलो अब काम की बात करते हैं।”
मैं कुछ रुक कर बोली, “देखो असलम औरत अगर जवानी में बेवा हो जाए तो साफ है कि चुदाई बंद हो जाती हैं। ऐसे में अगर दुबारा चुदाई ना हो तो धीरे-धीरे औरत की चुदाई की इच्छा मर जाती है। लेकिन अगर कहें चुदाई फिर से शुरू हो जाए तो फिर उस औरत को चुदाई चाहिए ही होती है, जब तक उम्र ही इतनी ना हो जाए की चुदाई करवाने का मन ही ना करे।”
असलम मेरी तरफ देख रहा था, मैंने बात जारी रखते हुए कहा, “मगर तुम्हारी अम्मी की उम्र भी अभी इतनी नहीं है, कि चुदाई करवाने का मन ना करे। दूसरा, तुम्हारे अब्बू बशीर के इंतकाल के बाद तुम्हारी अम्मी नसरीन जमाल और तुमसे हर तरह की चुदाई करवा चुकी है, हर जगह तुम दोनों का लंड ले चुकी है – चूत में भी, गांड में भी और मुंह में भी।”
“हालांकि नसरीन के पास चूत में लेने के लिए मेरे दिए हुए रबड़ के लंड हैं, मगर बात वहीं आती है। रबड़ का लंड चूत का पानी तो छुड़वा सकता है, मगर असली चुदाई जैसा मजा नहीं दे सकता, और तुमसे वो अब चुदाई करवाना नहीं चाहती।”
असलम ने हां में सर हिलाया। “असल में मर्द जब औरत के ऊपर लेट कर उसे बाहों में लेकर उसकी चूत में अपना लंड डालता है, उसकी चुदाई करता है, उसका मजा अलग ही होता है। और वो पीछे की चुदाई? जब मर्द के टट्टे औरत के चूतड़ों से टकराते है तो औरत को चुदाई का दुगना मजा आता है। इसके अलावा मर्द के लंड की गरम गरम मलाई जब चूत, गांड या मुंह में जाती है – असलम ये सब रबड़ के लंड से तो नहीं मिलता। असलम तुम भी तो अपनी अम्मी की ऐसी ही चुदाई करते हो।”
असलम ने फिर से सर हिला दिया। फिर मैंने असलम से कहा, “असलम अब तुम मुझे ही देख लो। मेरे पास हर तरह के लंड और चूत गांड में डालने के लिए दुनियां भर के दूसरे खिलौने है, चूत मे लेने वाला भी, गांड में लेने वाला भी और चूत का दाना चूसने वाला भी। मगर फिर भी मैं मर्दों से चुदवाती हूं, और मस्त चुदवाती हूं।”
फिर मैंने हंसते हुए असलम के लंड को हल्का सा छुआ और बोली, “तुम तो देख ही चुके हो असलम।”
असलम मुस्कुरा दिया और मेरा हाथ अपने लंड पर दबा दिया। अब असलम मेरी बात ध्यान से सुन रहा था। मैंने अपनी बात जारी रखते हुए कहा, “मैं समझती हूं कि नसरीन भी किसी मर्द से चुदवाई करवाना चाहती है। उसे मर्द के नीचे लेट कर चुदाई चाहिए। मस्त चुदाई जिसमें चूतड़ अपने आप ही हिलने लग जाते हैं। नसरीन को लंड चाहिए चूत में गांड में और मुंह में। असलम तुमसे अब वो चुदाई करवा नहीं चाहती – निकहत के होते हुए उसे ये अच्छा नहीं लगता। मैं समझती हूं उसकी इस सोच में कोइ बुराई भी नहीं है। आखिर को निकहत है तो उसकी बेटी ही।”
मैंने बोलना जारी रक्खा, “असलम अब या तो नसरीन की तुम्हारे साथ चुदाई पहले की ही तरह शुरू हो जाये, या फिर किसी और मर्द के साथ उसकी चुदाई होने लग जाए। मगर तुम बता ही चुके हो कि आगरा में चुदाई का जुगाड़ हो नहीं सकता।” ये कह कर मैं चुप हुई।
असलम बोला, “मालिनी जी बात तो यही है, लेकिन इसका कोइ हल भी तो नहीं। मगर मालिनी जी मुझसे अम्मी की ये उदासी देखी नहीं जाती।”
फिर दुबारा असलम बोला, “मालिनी जी का किया जाए इसका कोई हल भी तो नहीं है, और मुझसे अम्मी की ये उदासी देखी भी नहीं जाती?”
मैंने कहा, “असलम इसका हल तो तुम्हें ही ढूंढना होगा। तुम्हारे अब्बू का कोइ रिश्तेदार, या तुम्हारा ही कोइ जानकार? अगर कोइ जमाल की तरह ऐतबार वाला हो तो बात बन सकती है।”
असलम बोला, “नहीं मालिनी जी, मुझे इसमें खतरा लगता है।”
मैंने फिर कहा, “फिर तो असलम, इसका एक हल तो है। मगर पहले तुम्हें मेरे कुछ सवालों का जवाब देना होगा।”
असलम मेरी तरफ देखने लगा। मैंने कहा, “असलम पहली बात तो ये है कि क्या निकहत तीन चार दिनों के लिए अपने मायके जा सकती है किसी को कोइ एतराज तो नहीं होता?”
असलम बोला, “नहीं-नहीं मालिनी जी निकहत तो वैसे भी महीने में एक-दो बार अपने मायके जाती ही है, दो-तीन दिन रहने के लिए। उल्टा वो लोग तो कहते है निकहत उनकी इकलौती बेटी है, उसे महीने में चार-पांच दिन के लिए रहने के लिया भेज दिया करूं।”
मैंने कहा, “असलम अब एक जरूरी सवाल है, हो सकता है तुम्हें ये कुछ अजीब सा सवाल लगे।”
असलम कुछ हैरान हुआ मगर बोला, “पूछिए मालिनी जी।”
मैंने कहा, “फर्ज़ करो असलम, जमाल दुबई से आये और तुम्हारी अम्मी कहे कि उसने जमाल से चुदाई करवानी है, या फिर तुम दोनों से इकट्ठे चुदाई करवानी है। या मान लो तुम ही अपनी अम्मी से कहो कि तुम और जमाल इकट्ठे उसे चोदना चाहते हो – या जमाल ही ऐसा कह दे तो?”
इस बार असलम कुछ देर सोचता रहा और फिर बोला, “मालिनी सवाल तो बड़ा ही टेढ़ा है मगर, अगर ऐसा होता ही है और अम्मी की भी ऐसी ही मर्जी हो तो मुझे क्या एतराज हो सकता है। मुझे और जमाल को तो मालूम ही है कि हम दोनों अम्मी को चोदते हैं। अम्मी को भी ये बात मालूम ही है। अगर अम्मी मान जाती है तो मैं और जमाल इकट्ठे अम्मी को चोद देंगे। एक नया तजुर्बा हे हो जाएगा।”
मैंने अपनी कुर्सी थोड़ी आगे सरकाई और असलम का हाथ अपने हाथ में लेकर कहा, “असलम अब एक मिनट के लिए फर्ज़ करो, जमाल की जगह संदीप हो और नसरीन को तुमसे और संदीप से इकट्ठे चुदाई करवाने में कोइ एतराज ना हो तो?” असलम बोला, “मालिनी जी?” असलम ने अपनी बात अधूरी ही छोड़ दी।
मैंने फिर कुर्सी पीछे की और कहा, “हां असलम, मैं यही कह रही हूं। दूसरी गाये अगर नसरीन बन जाए तो? अगर ऐसा हो जाए तो बस तुम्हें और नसरीन को चार पांच छह महीने में एक बार यहां आना होगा। एक बार मोटे लंड की रगड़ाई वाली चूत और गांड की चुदाई छह महीने के लिए नसरीन की चूत और गांड तसल्ली कर देगी। और फिर बाकी दिनों के लिए रबड़ के लंड तो अपना काम करेंगे ही।”
अब असलम कुछ सोच में डूब गया। मैंने भी असलम को सोचने दिया। कुछ देर सोचने के बाद असलम बोला, “मगर मालिनी जी अम्मी मान जाएगी?”
मैंने कहा, “इसका मतलब तुम्हें कोइ एतराज नहीं। रही नसरीन की बात तो वो तुम मुझ पर छोड़ दो। वैसे असलम, इसके बिना कोइ चारा भी नही है। तुमसे तुम्हारी अम्मी तुमसे चुदाई करवाना नहीं चाहती, आगरा में कोइ चुदाई का जुगाड़ हो नहीं सकता। अब तुम खुद ही सोचो तुम्हारी अम्मी की चूत और गांड की आग ठंडी करने का और क्या रास्ता हो सकता है?”
असलम बोला, “आपकी बात ठीक है मालिनी जी, अगर यही रास्ता है तो ठीक है।”
फिर असलम बोला, “चार-छह महीने में नई दुकान के सामान के काम से अब मेरा कानपुर का चक्कर अब लगता ही रहेगा। अगली बार मैं अम्मी को भी साथ लेता आऊंगा।”
“नई चमड़े के सामान की दुकान वैसे भी अम्मी की देख-रेख में चलेगी। मुझे तो पुरानी दुकान से ही अब फुरसत नहीं मिलती। पहले मैं सोच रहा था निकहत को नई दुकान का काम देखने दिया जाए, मगर निकहत मानी नहीं। अम्मी भी इस बात के लिए राजी नहीं हुई। अम्मी का कहना था निकहत बहुत खूबसूरत है और उम्र की भी छोटी है। अम्मी को निकहत का दुकान पर बैठना ठीक नहीं लगा।”
“मालिनी जी अम्मी की बात मुझे भी समझ में आ गयी और मैंने अम्मी से कहा के फिर वो ही दुकान का काम संभाल लें। रोज़ दुकान पर जाने की जरूरत नहीं। कभी-कभी दो दिन तीन बाद दुकान पर चली जाया करें और अगर कुछ सामान मंगवाना है तो उसकी लिस्ट बनवा लिया करें और किस तरह का सामान चाहिए ये भी देख लिया करें।”
“मेरी इस बात के लिए अम्मी मान गयी। सो मालिनी जी, इसी बहाने जब भी मेरा कानपुर का चक्कर लगना होगा, मैं अम्मी को भी साथ ले आया करूंगा।”
मैंने कहा, “चलो एक बात तो तय हो गयी की नसरीन तुम्हारे साथ यहां आ सकती है। अब रही तुम्हारे सामने संदीप से चुदाई। वो मैं दो गाये और दो सांड वाली बात नसरीन से करूंगी।”
फिर मैंने कहा, “अब कब प्रोग्राम बनना है तुम्हारा?”
असलम बोला, “अभी दूकान शुरू ही हुई है। देखना है किस तरह का सामान ज्यादा बिकता है इस लिए कुछ टाइम तक तो सामान के लिए जल्दी-जल्दी आना पड़ेगा। हो सकता है मालिनी जी अगला प्रोग्राम अगले महीने ही बन जाए।”
मैंने कहा, “तो फिर ठीक है असलम, अगले महीने साथ अपनी अम्मी को भी लेते आना। अब चलो अंदर मेरी चूत और गांड की रगड़ाई करो।”
असलम भी उठ खड़ा हुआ। वो तो लगता था चुदाई करने के लिए मुझसे भी ज्यादा उतावला हो रहा था।
अंदर आ कर मैंने कपड़े उतरे और बेड पर बैठ गयी, “चलो असलम उतारो कपड़े और चुसवाओ लंड।”
असलम ने कपड़े उतारे और मेरे सामने खड़ा हो गया। मैंने भी असलम का लंड मुंह में ले लिया। थोड़ी चुसाई मैं ही मेरी चूत गरम हो गयी। मैंने लंड मुंह से निकाला और असलम से बोली, चलो असलम दिखाओ अपने लंड का जलवा।” ये कह कर मैं बेड के किनारे पर उलटा लेट गयी।
असलम मेरे पीछे आया और कुछ देर चूत और गांड चाटने के बाद खड़ा हो गया और चूत पर लंड ऊपर नीचे करते हुए चूत का छेद ढूंढने लगा। मैंने सर मोड़ कर असलम से कहा, “असलम चूत के बाद गांड में भी डालना है, क्रीम तो ले आओ अलमारी में से।”
असलम बोला, “मालिनी जी क्रीम की जरूरत ही नहीं पड़ेगी।” ये कह कर असलम ने एक झटके से लंड मेरी चूत में बिठा दिया और धक्के लगाने लगा। असलम के बड़े-बड़े टट्टे चूत पर टकराने से ठप्प-ठप्प की आवाजें हो रही थी।
पंद्रह मिनट चली इस चुदाई मैं दो बार मेरा पानी छूट गया। असलम ने लंड चूत में से निकाला, ढेर सारा धूल मेरी गांड पर डाला और एक ही बार में लंड गांड के अंदर बिठा दिया। अब थूक में क्रीम जितनी चिकनाई तो होती नहीं। असलम के मोटे लम्बे लंड का झटका लगने से कुछ दर्द तो हुई, मगर मजा भी बहुत आया।
दस बारह मिनट की चुदाई के बाद असलम के लंड में से गरम-गरम चिकना पानी मेरी गांड में निकल गया। असलम कुछ देर ऐसे ही खड़ा रहा और फिर लंड निकाल कर खड़ा हो गया। मैं भी सीधी हुई और खड़ी हो गए।
असलम बोला, “चलिए मालिनी जी मूतिये मेरे लंड पर।”
मैं हंसी और बाथरूम की तरफ चल दी। असलम भी मेरे पीछे पीछे आ गया। बाथरूम में जा कर मैं टॉयलेट सीट पर बैठ गयी। मुझे टॉयलेट सीट पर बैठता देख कर असलम बोला, “क्या हुआ मालिनी जी आज नहीं मूतना मेरे लंड पर?”
मैंने कहा, “मूतना है असलम, पहले तुम तो मूत लो मेरी चूत पर।” ये कह कर दोनों हाथों से चूत की फांकें फैला कर गुलाबी चूत खोल दी। असलम ने लंड पकड़ा और निशाना लगा कर मेरी चूत पर पेशाब की धार डाल दी।
जब असलम के लंड से मूत निकलना बंद हुआ तो मैं उठ गयी और असलम सीट पर बैठ गया। मैं टांगें चौड़ी करके असलम के लंड पर बैठ गयी, असलम ने हाथ नीचे करके हाथ मेरी चूत पर रख दिया। मैंने चूत ढीली की और ढेर सारा पेशाब असलम के लंड पर निकाल दिया।
फारिग हो कर, कपड़े पहन कर हम क्लिनिक में आ गए। असलम बोला, “मालिनी जी बड़ा मजा अत है आपको चोदने में। पता नहीं क्या जादू है आपकी चुदाई में। ये मूतने वाला काम तो मैं भी करूंगा निकहत के साथ और अगर मौक़ा मिला तो अम्मी के साथ भी।”
मैं हंसी, “ठीक है असलम कर लेना मगर निकहत से पहले पूछ लेना। अगर वो माने तभी मूतना या मुतवाना। निकहत घरेलू लड़की है। हो सकता है उसे ये अच्छा ना लगे।”
असलम बोला, “निकहत की चुदाई के मजे में यही घरेलूपन तो आड़े आ जाता है। आप ही इसमें कुछ कर सकती हैं। आप ही उसे समझा सकती हैं कि लड़की को चुदाई एक रंडी की तरह करवानी चाहिए। चुदाई का पूरा मजा लेना भी चाहिए, मर्द को पूरा मजा देना भी चाहिए।”
मैंने कहा, “समझ गयी असलम। अगर अम्मी के साथ बात बने तो उनके साथ ये मूतने वाला काम कर लेना। निकहत की साथ देखेंगे क्या हो सकता है।”
असलम बोला, “ठीक है मालिनी जी ये मूतने वाला काम तो मैं निकहत से बात बात करके ही करूंगा, मगर मुझे मालूम है वो नहीं मानेगी, मगर अम्मी को कोइ एतराज नहीं होगा – ये मुझे मालूम है।”
फिर वो उठते हुए बोला, अब मैं चलता हूं मालिनी जी सफर तैयारी भी करनी है।”
मैंने असलम को पकड़ा और उसके होठ चूसे और बोली, “चलो शंकर छोड़ देगा तुम्हे होटल में।”
मैंने बाहर आ कर शंकर को असलम को होटल छोड़ने के लिए बोल दिया। असलम के जाने के बाद मैं सीधे ऊपर चली गयी। सुबह-सुबह की चूत और गांड चुदाई के कारण थकान सी हो गयी थी। थोड़ा लेटने का मन था।
ठीक डेढ़ महीने के बाद एक दिन असलम का फोन आ गया।
मैंने बोला, “हेलो असलम कैसे हो?” असलम बोला, “नमस्ते मालिनी जी, हम लोग, मैं और अम्मी इस मंगलवार शाम को पहुंच रहे हैं। कुल मिला कर चार दिनों का प्रोग्राम है, मंगल को तो हम पहुंचेंगे ही। शनिवार को रात की गाड़ी से वापिस जायेंगे। मेरा दो दिन का काम है जो मैं बुद्ध बृहस्पतिवार को निबटा दूंगा शुक्रवार को दो गाये और दो सांड का प्रोग्राम बनाएंगे अगर अम्मी मान गयी तो। शनिवार रात की गाड़ी है।”
ठीक है असलम आ जाओ, बाकी बातें जब यहां पहुंचोगे तभी करेंगे। और सुनो इस बीच तुम्हारी चुदाई हुई नसरीन के साथ?”
असलम बोला, “नहीं मालिनी जी, चुदाई तो नहीं हुई मगर एक दिन अम्मी खुद ही मेरे पास आ गयी और बोली चल असलम आज तुझे चूस कर मजा देती हूं।”
“बस मालिनी जी उस दिन हम दोनों ने एक-दूसरे की ऊपर लेट कर चूस-चाट कर एक-दूसरे का पानी छुड़ाया, मगर चुदाई अम्मी ने नहीं करवाई, अम्मी ने चुदाई के लिए साफ ही ना कर दी।
मैंने कहा, “ठीक है असलम आ जाओ, बाकी बातें बाद में करेंगे।”
बुधवार सुबह दस बजे असलम का फोन आ गया, “मालिनी जी कल रात हम लोग पहुंच गए थे। आज साढ़े दस ग्यारह बजे तक मैं अम्मी को आपके पास छोड़ कर शाम तक अपना काम निबटा लूंगा। बृहस्पीतवार को जहां-जहां हम सामान लेते हैं और कैसा सामान लेते हैं वो भी एक बार अम्मी को भी दिखा दूंगा। और शुक्र का दिन आपके लिए है ही, शनि को रात की हमारी वापसी की गाड़ी है।”
मैंने कहा, “ठीक है असलम मैं इंतज़ार करूंगी। और असलम, निकहत तो यहां होगी नहीं, तुम्हें दो वियाग्रा भी दे दूंगी। एक आज रात के लिए दूसरी शुक्रवार के लिए अगर दो गायों और दो सांडों वाली बात ना बनी तो खा कर चोदना अपनी अम्मी को। वैसे असलम मुझे यकीन है मैं नसरीन को मना लूंगी उस चुदाई के लिए।”
ग्यारह बजे असलम आ गया। नसरीन साथ ही थी। नसरीन थोड़ी पतली हो गयी थी। रेगुलर चुदाई ना होने की हल्की उदासी उसके चेहरे पर झलक रही थी, मगर नसरीन सुन्दर और सेक्सी अभी भी उतनी ही थी जितनी वो हमारे पहली मुलाकात के दौरान थी। मुझे देखते ही नसरीन की आखों में एक चमक आ गयी। लगता है मेरे अलग तरह के चूत गांड के मजे लेने वाले खिलौने उसकी आखों के आगे घूम गए थे।
आधा घंटा बैठे के बाद के बाद असलम बोला, “मालिनी जी मैं चलता हूं। चार-पांच बजे तक काम निबटा कर आता हूं। अम्मी यही हैं आपके पास।”
मैंने हंसते हुए कहा, “फ़िक्र मत करो असलम, पूरा-पूरा ख्याल रक्खूंगी मैं तुम्हारी अम्मी का। और हां, मैं शंकर को तुम्हारे साथ भेज देती हूं, जहा-जहां जाना होगा वो ले जाएगा। कहां बसों और ऑटो के चक्कर लगाते रहोगे। कानपुर की सड़कों का बड़ा बुरा हाल है।”
असलम बोला, “अरे मालिनी जी रहने दीजिये, क्यों तकलीफ करती है। मैं घूम लूंगा।।”
मैंने कहा, “कोई बात नहीं।” मैंने शंकर को बुला कर असलम को ले जाने के लिए बोल दिया।”
मेरी बात “फ़िक्र मत करो असलम पूरा-पूरा ख्याल रक्खूंगी मैं तुम्हारी अम्मी का” सुन कर नसरीन हल्का सा शर्मा गयी थी।
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