पिछला भाग पढ़े:- मम्मी को सिड्यूस करके चोदने लगा-4
जैसा कि आपने पिछले पाठ में पढ़ा कि कैसे रात में मैं मम्मी को सिड्यूस करता हूं। जब मैं वापस मम्मी को गर्म करने लगता हूं, तो वो मेरा हाथ पकड़ कर दबा देती हैं।
मेरा हाथ अभी भी उनके पेट के निचले हिस्से पर था, जिसे मम्मी के हाथ ने कस कर दबाया हुआ था। मैं काफी कोशिश के बाद भी हाथ नहीं हिला पा रहा था। पर मैं उनकी तेज धड़कने साफ महसूस कर पा रहा था। काफी कोशिश के बाद भी जब उन्होंने हाथ का दबाव कम नहीं किया, तो मैंने संघर्ष करना छोड़ दिया और वैसे ही लेटा रहा।
पर तभी कुछ वाइब्रेट होने की आवाज सुनाई दी। मैंने ध्यान से सुना तो पाया कि सामने से फोन वाइब्रेशन की आवाज आ रही थी। मैंने हल्के से चादर से झांका तो पाया, कि बुआ जग गई थी, और हमारी तरफ ही मुंह करके, फोन पर कुछ टाइप कर रही थी। मेरी तो जान ही हलक तक आ गई थी। मेरा लंड जो अब तक सांप की तरह फनफना रहा था, वह अब जैसे बिल में वापस दुबक गया था।
मैं वैसे ही मम्मी से चिपका पड़ा रहा। कुछ 3 से 4 मिनट बाद बुआ दूसरी तरफ घूम गई, और फोन रख कर चादर से मुंह ढक लिया। ये देख कर मुझे राहत मिली, पर अब मैं डर रहा था कि मम्मी को सब कुछ पता था, और अब मेरा क्या होगा। पर कुछ पलों के बाद मुझे अपने हाथ पर मम्मी की पकड़ ढीली सी महसूस हुई, और अब बस उनका हाथ मेरे हाथों पर रखा ही हुआ था।
पर उन्होंने मेरे हाथ को हटाने की कोशिश नहीं की। इससे मैं समझ गया था कि मम्मी भले ही मेरा साथ ना दे, पर वो गुस्सा भी नहीं हो रही थी। वरना वो मेरे हाथ को हटा देती। ये महसूस होते ही मेरी उत्तेजना वापस बढ़ने लगी और मेरा लंड वापस अपना आकार लेते हुए मम्मी के चूतड़ों से चिपक गया था।
मेरी हिम्मत अब बढ़ गई थी। मैंने वापस अपने होंठ को मम्मी के कान के पास ले गया, और उनकी कनपटी के नीचे जीभ से चाटना शुरू कर दिया। इससे मम्मी के बदन में हल्की सी सरसराहट महसूस होने लगी। मेरा हाथ जो उनके पेट पर था, वापस सहलाते हुए कुर्ती के ऊपर से ही पेट की नाभि पर घुमाने लगा। मुझे बहुत अच्छा लग रहा था। ऐसा होने से उनके चूतड़ मेरे लंड पर हल्के-हल्के दब रहे थे।
मुझे बहुत ही अच्छा महसूस हो रहा था। कुछ पल ऐसा करते हुए मैं हिम्मत करते हुए थोड़ा ऊपर सरक गया। फिर मैंने उनके कान की निचली चमड़ी को होंठों में भर कर चूसा। ऐसा होते ही मम्मी कांप उठी, और उनका शरीर झनझना उठा। मैंने भी मौके का फायदा उठा कर उनके पेट पर दबाव बनाया, और अपनी कमर को आगे सरका कर उनके चूतड़ों में लंड दबा दिया।
ये एहसास होते ही मम्मी ने आगे होने की कोशिश तो की, पर मेरे हाथ के दबाव के कारण वो आगे सरक नहीं पाई। अब मेरा लंड उनके चूतड़ों और जांघों के बीच की जगह में घुस गया था, जो कि सीधा उनकी चूत को दबा रहा था। मेरा लंड पूरे उफान पर आ गया था, इस वजह से वो फड़फड़ा भी रहा था तो मम्मी की चूत को हल्के-हल्के घिस भी रहा था। इससे मम्मी के साथ मेरा भी बुरा हाल हो रहा था, क्योंकि अंडरवियर के स्ट्रिप्स की वजह से मेरी उत्तेजना और बढ़ते जा रही थी।
मैं समझ गया था, कि मैं कभी भी झड़ सकता था। तो मैंने देरी ना करते हुए अपने हाथ से हल्के से कुर्ती ऊपर की, तो मुझे मम्मी के मुलायम पेट का एहसास हुआ। पर इसके साथ ही मम्मी भी इस एहसास से वापस सिहर उठी। मैंने भी जल्दी से पूरी हथेली को उनकी कुर्ती के अंदर पेट से चिपका दिया। क्या मखमली गर्म सा एहसास हो रहा था। साथ ही मम्मी के बदन की सिहर से पूरे बदन में आग लग रही थी।
ऊपर मैं उनके कान के निचले हिस्से को जीभ से रगड़ते हुए चूस भी रहा था। कुछ पलों तक ऐसा करते हुए, फिर मैं अपने हाथ से उनके पेट को सहलाते हुए पूरे पेट पर फेरने लगा। उनका पेट बहुत ज्यादा पतला नहीं है, और ना ही अधिक चर्बी का निशान था। मैं हाथ फेरने के साथ पंजे से हल्के-हल्के पेट को पकड़ने की कोशिश भी कर रहा था। करीब 1 से 2 मिनट ऐसा करते हुए मैंने अब अपने होंठों से उनके कान को आजाद कर दिया। फिर अपना हाथ भी उनके कुर्ती से निकाल दिया।
फिर मैंने हल्का सा पीछे सरक कर पीछे सो रहे लोगों का मुआयना किया। मैंने पाया, पापा और फूफा खर्राटे ले रहे थे, और भाई उन लोगों की तरफ मुंह करके, चादर सिर तक ओढ़ कर सोया था। मैंने घूम कर आगे देखा तो बुआ भी दूसरी तरफ सिर करके सोई थी। मैंने फिर अपने तकिये को बीच से मोड़ कर ऊंचा कर दिया।
फिर मैंने अपनी चादर को आगे से उठा कर मम्मी के ऊपर डालते हुए उनकी चादर को उठाया, और वापस उनसे चिपक गया। इस बार मैं अपने लंड को जान-बूझ कर उनके चूतड़ों के बीच की दरार में दबाते हुए चिपक गया। मेरी इस हरकत को महसूस करके मम्मी हल्के से आगे सरक गई। तो मैं वापस आगे सरकते हुए उनसे चिपक गया।
फिर मैंने अपने हाथों को आगे ले जाकर उनकी छाती को जकड़ते हुए दबाया तो उनका सिर हल्का सा पीछे सरक गया। मैंने तकिया ऊपर किया था तो उनका सिर मेरे सिर से नीचे ही था। मैं आगे झुकते हुए, अपनी जीभ निकालते हुए, उनके कान के अंदर फेरने लगा। ऐसा होते ही वो वापस छटपटा गई। मैंने भी अपने हाथों पर जोर देते हुए उन्हें आगे नहीं जाने दिया। मुझे अपनी कलाइयों पर उनके नर्म नर्म स्तनों का एहसास हो रहा था, जो उनकी उखड़ती सांसों को बयान कर रहा था।
मेरी जीभ उनके कान के अंदर के हिस्से को कुरेद रही थी, और मेरा लंड उनकी दरार में जाने के लिए बेताब होकर रगड़ कर रहा था। उनके चूतड़ अब मेरे लंड पर घिसते हुए से प्रतीत हो रहे थे। मैंने फिर अपने हाथों की पकड़ को ढीला करते हुए उनके निचले स्तनों को हल्के हाथ से पकड़ लिया। मम्मी भी इस एहसास से कांप उठी, और उनके चूतड़ झटके से पीछे हुए, जिससे मेरा लंड चूतड़ों में पायजामी के ऊपर से ही घुसने लगा।
मैं अब उनके कान में जीभ फेरते हुए, उनके स्तन को हल्के-हल्के सहला रहा था। इससे नीचे मेरे लंड पर उनके चूतड़ रगड़ खा रहे थे। अब मैं धीरे-धीरे मम्मी की सिसकियां सुन पा रहा था। मैं इससे और उत्तेजित होने लगा। मैं अब उत्तेजना में उनके स्तन को थोड़ा तेजी से दबाते हुए सहलाने लगा। ऐसा करते ही उनका बदन कांपने लगा।
उन्होंने वापस अपने हाथ से अपना मुंह ढक लिया। मैं समझ गया था, कि वो अब झड़ने वाली थी। वो अब अपने चूतड़ों को मेरे लंड पर तेज-तेज हिलाने लगी। मेरा भी सब्र जवाब देने लगा, और उनके धक्के से मेरे लंड ने अपना लावा बहाना शुरु कर दिया। इससे मेरी कमर भी उनके चूतड़ों पे धक्के देने लगी, और उत्तेजित होकर मैं उनके स्तन मुठ्ठी में भरने लगा। इस कामुक दर्द को मम्मी बर्दाश्त नहीं कर पाई, और वो भी चूतड़ों को आगे-पीछे करके झड़ने लगी।
उन्होंने अपना मुंह अपने हाथ से दबा रखा था। फिर भी मैं तो उनकी मादक सिसकारी सुन पा रहा था। मेरे हाथ में अभी भी उनका स्तन था। करीब 15 से 20 सेकंड के बाद मम्मी के धक्के रुके, और मैं भी अब झड़ चुका था, तो मेरे हाथ की पकड़ उनके स्तन पर ढीली हो गई थी। मम्मी तेज-तेज सांसे लेती हुई हाफ रही थी। मेरा भी यही हाल था। करीब 2 मिनट तक उसी हाल में हम पड़े रहे।
फिर अचानक मम्मी ने मेरे हाथ को पकड़ कर अपने स्तन से हटा के पीछे किया। फिर वो उठी, और मुझे बिना देखे रूम की ओर चली गई। मैं हड़बड़ा कर पीछे हो गया और वापस चादर को मुंह तक ढक दिया। फिर दूसरी तरफ करवट लेकर सोने का नाटक करने लगा। करीब 10 से 12 मिनट बाद मम्मी के आने की आवाज आई, और वो आकर लेट गई। करीब 3 से 4 मिनट बाद मैं भी उठ कर बाथरूम में गया और वहां अपना अंडरवियर निकाल कर साइड में मग में भिगो दिया। फिर खुद को साफ करके दूसरा अंडरवियर पहन कर वापस आया तो देखा, मम्मी मेरी ओर ही सिर करके सोई थी। मैं बिना मम्मी को देखे आकर लेट गया और दूसरी ओर मुंह करके सो गया।
सुबह करीब 7 बजे के करीब भाई ने जगाया और तो पाया कि सब लोग उठ चुके थे, रात में मम्मी के साथ हुए हादसे के कारण मुझे आज बहुत सुकून की नींद आई थी। पर तभी मेरी नज़र मम्मी के ऊपर पड़ी तो देखा वो किचन में नाश्ते की तैयारी कर रही थी। बुआ भी साथ ही थी। मैं उठ कर बाथरूम में गया। ब्रश करके मुझे रात वाले अंडरवियर की याद आई तो मैंने देखा वहां मेरा अंडरवियर नहीं था।
ये देख कर मैं परेशान हो गया। मेरे काफी ढूंढने पर भी वो बॉथरूम में नहीं दिखा। मैं फिर नहाकर जब तौलिया छत पर डालने गया, तो वहां देखा कि मेरा अंडरवियर धुल कर सूखने के लिए डाला हुआ था। मैं समझ गया था कि मम्मी ने ही ये धोया होगा। ये सोच कर मैं डर भी गया था, कि रात के हुए हादसे के बाद में मम्मी से नज़रें कैसे मिला पाऊंगा।
खैर, हिम्मत करके मैं अंदर आया तो फूफा जी, पापा, और भाई बात कर रहे थे। मैं भी वह बैठ गया। मेरा तो पूरा ध्यान मम्मी के ऊपर ही था जो किचन में खाना बना रही थी। मैं तिरछी नजरों से उन्हें ही घूर रहा था, कि तभी मम्मी किसी काम से पीछे घूमी तो एक झटके में उन्होंने मुझे घूरते देख लिया। पर फिर वो अपने काम में लग गई। थोड़ी देर बाद हमने मिल कर नाश्ता करने लगे, और हंसी खुशी में पूरा दिन निकल गया। इस बीच मम्मी से मेरी कई बार बात हुई। पर उन्हें देख कर बिल्कुल भी नहीं लग रहा था कि रात की किसी बात से वो गुस्सा हो।
खैर, शाम को हमने साथ बैठ कर मूवी देखने का प्लान बनाया। बुआ ने अपने नौकर से अपने घर का प्रोजेक्टर मंगा लिया था। रात का खाना बाहर से आना था, तो 8 बजे के करीब हम सब मूवी देखने बैठे। नई मूवी थी, जो पारिवारिक किस्म की थी। हमने प्रोजेक्टर आंगन में ही लगाया था। कूलर दोनों तरफ लगे ही हुए थे, तो बीच में 2 सोफा लगाये गये। एक पर मैं, मम्मी, और पापा बैठ गए। दूसरे पर फूफा जी, बुआ, और भैया।
बैठने का क्रम ये था कि दोनों सोफे जहां मिलते है उन कोने पर पापा और फूफा जी बैठे थे, ताकि वे आपस में बात भी कर सके। पापा के बाद मम्मी और सबसे बाद में मैं कूलर की तरफ बैठा था। इधर बुआ फिर भाई कूलर की तरफ था। हमने पूरे आंगन में अंधेरा कर दिया था, ताकि प्रोजेक्टर साफ दिखाई दे। सिर्फ किचन में लाइट जल रही थी।
तो पिक्चर शुरू होती है और हम लोग देखने लगते हैं। पर कूलर की तरफ होने से मुझे ठंड लगने लगती है, तो मैं अंदर से जाकर चादर ले आता हूं, और उसे ओढ़ कर दोनों पैर मोड़ कर सोफे पर बैठ जाता हूं। आज भी मम्मी ने नाइट वाली कुर्ती पयजामी पहनी हुई थी। सभी पिक्चर देखने में लगे थे। थोड़ी देर बाद शायद मम्मी को भी हल्का ठंड का एहसास होता है। तो वो मेरे घुटने से चादर उठा कर अपने पैरों पर डाल लेती है और दोनों पैर मोड़ कर बैठ जाती हैं।
इससे अब हम दोनों के पैर आपस में मिल जाते है। मेरा घुटना उनके घुटने के थोड़ी ऊपर हो जाता है। थोड़ी देर तक तो सब नॉर्मल रहता है, पर फिर मेरे दिमाग में खुराफाती ख्याल पनपने लगते है, खास कर जब मम्मी ने अब तक किसी बात का विरोध नहीं किया था, तो अब डर भी कम हो गया था।
मैं चादर को पूरा कंधे तक ओढ़ कर पीछे सोफे का सहारा लेकर बैठ जाता हूं। फिर अपने एक हाथ को अपने घुटने के ऊपर रख देता हूं। फिर मैं मम्मी की तरफ देखता हूं, तो वो पिक्चर देखने में लगी थी। तो मैं अपनी घुटने के हिस्से को खुजाने के बहाने अपने हाथ को घुटने से नीचे सरका देता हूं, और वही रख देता हूं।
ऐसा होने से मेरे हाथ की उंगलियों का स्पर्श मम्मी की जांघ से होता है। इससे मेरी उंगलियों में गर्म सा एहसाह मिलता है। कुछ पल तक कोई विरोध ना होने पर, मैं अपने हाथ को थोड़ा नीचे सरकाते हुए उनकी जांघ पर उल्टा ही रख देता हूं। इससे मम्मी के जांघ में हल्की सी हरकत तो होती है, पर फिर सब नॉर्मल हो जाता है।
मैं करीब आधे मिनट तक इंतजार करने के बाद उंगलियों को हल्का-हल्का वहीं घिसने लगता हूं, मुझे बहुत मजा आ रहा था। मम्मी के जांघ की गर्मी मेरी उंगलियों में महसूस हो रही थी। कुछ पल ऐसा करने के बाद मैं अपने हाथ को सीधा करके उनकी मुलायम जांघ को सहलाने लगता हूं। ऐसा करने से अब मम्मी के बदन में हल्की सी सिरहन होने लगती हैं। कमरे में अंधेरा होने से किसी को कुछ पता नहीं चल रहा था। पर स्क्रीन से आती रोशनी में मैं मम्मी के चेहरे को हल्का सा देख पा रहा था।
करीब 3 से 4 मिनट तक उनकी जांघ को सहलाते हुए मैं हाथ को ऊपर सरकाने लगता हूं, और उनकी जांघ के ऊपरी हिस्से पर जैसे ही हाथ ले जाता हूं। तभी मम्मी अचानक से उठने लगती है, तो मैं फौरन से अपना हाथ वापस अपने घुटने पे रख देता हूं। वो उठ कर किचन में जाकर पानी के गिलास लाकर सब को देती है। फिर आकर वापस बैठ जाती है।
पर इस बार वो चादर को ओढ़ती नहीं है। मैं समझ जाता हूं कि मम्मी अभी नहीं चाहती कि मैं कुछ ऐसा करूं। तो मैं भी शांति से पिक्चर देखने लगता हूं। पिक्चर देखने के बाद हम लोग खाना खा कर बिस्तर लगा कर सोने लगते है। मम्मी किचन का काम खत्म करने में लगी होती है। फिर हम लोग बिस्तर में घुस जाते है। किचन का काम खत्म करके मम्मी अपने रूम में चली जाती है और करीब 10 से 15 मिनट बाद आती है।
फिर वो बिस्तर में आती हैं तो मुझे एक मनमोहक सी सुगंध का अनुभव होता है। तभी बगल में लेटी बुआ को भी महक आती है तो वो मम्मी से कहती है-
बुआ: क्या बात है दीदी, आज इतनी रात को परफ्यूम कैसे लगा लिया?
ये सुन कर मम्मी हल्की सी झिझक सी जाती है। मैं भी ये सुन कर मम्मी के चेहरे की तरफ ही देखने लगता हूं। मम्मी शांत ही रहती है पर बुआ अचानक से खड़ी होती हुई कहती है-
बुआ: दीदी जरा कमरे में आना, मुझे कुछ काम है।
ये कह कर बुआ मम्मी के रूम में चली जाती है। मैं ये देख कर बैचेन हो जाता हूं कि सिर्फ मम्मी के परफ्यूम लगा के आने से बुआ को क्या हो गया? मम्मी अभी भी सिर झुका कर बैठी थी। फिर वो धीरे से उठ कर रूम की तरफ चली जाती है, और अंदर से कुंडी लगा लेती है। बाकी तीनों लोगों को कुछ पता नहीं होता। वो अपनी बातों में ही मशगूल थे। मेरे मन में कई सवाल आ रहे थे। पर मैं चाह कर भी कुछ नहीं कर पा रहा था।
ऐसे ही करीब 12 से 15 मिनट गुजर गए, फिर जाकर बुआ कमरे से बाहर निकलती है। फिर अपने बिस्तर पर लेट कर मोबाइल चलाने लगती है। 5 मिनट बाद मम्मी भी कमरे से बाहर आती है। पर मैं उनके चेहरे पर कुछ मायूसी सी महसूस कर पा रहा था। उनको आते देख पापा कहते है कि यामिनी लाइट बंद कर दो। ये सुन कर वो लाइट बंद करके बिस्तर पे लेट जाती है। पर मेरे मन में कई सवाल उठ रहे थे कि अंदर कमरे में क्या बात हुई? और जो मम्मी इतनी खुश थी, वो अचानक से उदास क्यों हो गई?
अब रात में हमारे बीच कुछ हुआ तो कैसे हुआ? वो अगले पार्ट में। आप इसके बारे में अपनी राय जरूर शेयर कीजिए
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