पिछला भाग पढ़े:- नेहा दीदी और मेरा सिक्रेट अफेयर-6
भाई-बहन सेक्स कहानी अब आगे-
नेहा दीदी मेरे सामने बिस्तर पर पूरी तरह से नंगी लेटी थी। उनके खुले हुए बदन को देख कर मेरी सांसें तेज़ हो गई। उनका गोरा-पतला पेट हल्की-सी साँसों के साथ ऊपर-नीचे हो रहा था, जैसे हर पल मेरी नज़रों को अपनी ओर खींच रहा हो। उनकी गर्दन लंबी और कोमल थी, जिस पर हल्की नसें साफ झलक रही थी और उनके गले से नीचे उतरती हुई रेखा उनके सीने तक जाती थी।
उनकी क्लीवेज गहरी और मोहक लग रही थी, जैसे मेरी आँखें उसमें खो जाएँ। उनके गोल और भरे हुए स्तन हल्के-हल्के हिल रहे थे, जैसे मेरे दिल की धड़कनों के साथ तालमेल बैठा रहे हों। निप्पल गाढ़े गुलाबी और सख्त होकर खड़े थे, मानो मेरी छुअन का इंतज़ार कर रहे हों।
नीचे की ओर उनकी नाभि छोटे गड्ढे की तरह चमक रही थी और वहाँ से नीचे उतरते हुए उनके जांघों का उभार साफ दिख रहा था। उनका नाजुक हिस्सा हल्की घने बालों की झिलमिलाहट के बीच छिपा हुआ था, पर साफ झलक रहा था कि उसकी भी अपनी खूबसूरती थी। उसकी लाली और कसाव मेरी आँखों को पागल कर रहा था। उनका पूरा शरीर, गर्दन से लेकर पेट तक और पेट से लेकर पैरों तक, मेरे लिए किसी ख्वाब से कम नहीं था।
धीरे-धीरे नेहा दीदी ने अपने नाजुक हिस्से पर हाथ रखा और अंगुलियों से हल्के-हल्के स्नेह और स्ट्रोक देना शुरू किया। उसकी हल्की साँसें तेज़ हो रही थी, शरीर में हल्की सिहरन दौड़ रही थी। उसके हाथ की हर हरकत उसके चेहरे पर भाव और लालिमा को और बढ़ा रही थी। उसने धीरे-धीरे वही अंगुलियाँ अपने होंठों की ओर लाई और उसे हल्के-हल्के चाटना शुरू कर दिया। हर स्पर्श उसकी नर्मी, गर्मी और चाह को मेरी नज़रों के सामने और जिंदा बना रहा था।
कुछ समय बाद उसने हल्की हिम्मत जुटाई और मुँह से फुसफुसाया, “गोलू… अब तू भी अपने कपड़े उतार ले?”
मैंने थोड़ी झिझक के साथ कहा, “दीदी… क्या तुम सच में तैयार हो ये दर्द सहने के लिए? पिछली बार जब हमने किया था, तो खून आ गया था और तूम रो पड़ी थी।”
वह थोड़ी देर चुप रही, फिर हल्के स्वर में बोली, “पता नहीं गोलू… शायद मैं सह सकती हूँ, या शायद नहीं। बस मैं… कोशिश करना चाहती हूँ।”
उसकी बात सुन कर मैं तुरंत उनके पास बैठ गया और धीरे-धीरे उनकी नाज़ुक जाँघों को थोड़ा अलग कर दिया। मेरा हाथ उनकी जाँघों से फिसलते हुए उनके सबसे नाज़ुक हिस्से तक पहुँचा। मैंने अपनी उंगलियों से हल्के-हल्के उनकी नर्म त्वचा को सहलाना शुरू किया। जैसे ही मेरी उंगली उनकी नमी को छूने लगी, नेहा दीदी ने आँखें कस कर बंद कर ली और होंठों को हल्का सा भींच लिया। उनकी साँसें तेज़ हो रही थी और छाती ऊपर-नीचे हो रही थी।
मैंने फुसफुसाते हुए कहा, “दीदी… हम तब करेंगे जब तुम सच में तैयार हो जाओगी।”
इतना कहते ही मैंने अपनी एक उंगली धीरे-धीरे उनकी भीगी हुई जगह के अंदर डाल दी। उनका बदन हल्का सा कांप उठा। उन्होंने अपनी गर्दन पीछे की ओर झुका ली और होंठों से एक धीमी कराह निकल पड़ी। उनकी उँगलियाँ कस कर मेरी कलाई को पकड़ चुकी थी, जैसे मेरे स्पर्श से वह खुद को संभाल रही हों।
धीरे-धीरे मैंने अपनी उंगलियों को अंदर-बाहर करना शुरू किया। हर बार जब मेरी उंगली उनके अंदर जाती, उनका चेहरा सिमट जाता, कभी आँखें बंद हो जाती, कभी वह धीरे-धीरे होंठ काट लेती। उनके माथे पर पसीने की बूंदें झिलमिलाने लगी थी। उनकी साँसें इतनी भारी हो चुकी थी कि छोटे से रुम में भी हर धड़कन सुनाई देने लगी।
उनकी आँखों के कोनों में एक अजीब सी चमक थी, जिसमें दर्द और आनंद दोनों झलक रहे थे। उनकी छाती की उठान तेज़ हो चुकी थी, और उनके होंठ काँपते हुए धीरे से मेरा नाम पुकारने लगे, “गोलू…”
उनकी आँखों के कोनों में चमक और नमी दोनों एक साथ झलक रही थी। मैं अपनी उँगलियाँ धीरे से पीछे खींच कर उनके होंठों के पास ले आया। उन्होंने बिना झिझके अपने कोमल होंठ खोल दिए और मेरी उँगलियों को अपने मुँह में ले लिया।
उनकी जीभ मेरी उँगलियों पर घूमने लगी, जैसे वे हर कोने को अपनी लार से ढक देना चाहती हों। उस एहसास से मेरी साँसें भारी होने लगी, और उनकी आँखों में मासूम लेकिन गहरी चाहत साफ़ झलक रही थी।
उनकी लार से भीगी हुई उँगलियाँ जब मैंने दोबारा उनकी नाज़ुक जगह पर रखी, तो उन्होंने हल्की सी सिसकारी ली और अपनी जाँघें मेरे हाथ के दबाव के साथ सिकोड़ ली। मैंने धीरे-धीरे अंदर–बाहर करना शुरू किया, और फिर अचानक गति तेज़ कर दी। उनकी देह बेकाबू होकर काँपने लगी।
उनकी साँसें इतनी भारी हो गई कि जैसे हर साँस उनके सीने से निकलते ही कोई कराह बन जाती थी, “आह्ह… गोलू… रुकना मत…” उनके चेहरे पर लाली छा गई थी, आँखें आधी बंद होकर पलकें काँप रही थी, होंठ खुले हुए थे और बीच-बीच में दाँतों से नीचे का होंठ दबा लेती।
उनकी कराहें रुम की चारदीवारी में गूँज रही थी, और हर तेज़ हरकत पर उनका सिर पीछे झुक जाता, बाल चेहरे पर बिखर जाते, और पूरा शरीर मेरे हाथ की हर रफ़्तार पर झूमता चला जाता। तभी उनकी काँपती आवाज़ सुनाई दी, “गोलू… मैं अपनी हद तक पहुँच गई हूँ… अब मत रुकना…” उनके शब्द सुनते ही मैंने अपनी उँगलियों की गति और तेज़ कर दी।
उनका पूरा जिस्म पसीने से भीगने लगा, उनकी साँसें इतनी भारी थी कि जैसे हर साँस में कोई लहर उठ रही हो। उन्होंने बेतहाशा दोनों हाथों से बिस्तर का गद्दा कस कर पकड़ लिया, उनकी उँगलियाँ उस पर ऐसे धँस गई जैसे वे अपने आप को सँभालने की कोशिश कर रही हों। उनकी आँखें पूरी तरह बंद हो चुकी थी, माथे पर बल और होंठों पर तेज कराहों का सिलसिला चल रहा था।
जैसे ही मेरी उँगलियों ने और गहराई और रफ़्तार पकड़ी, उनका पूरा शरीर बेकाबू होकर काँपने लगा। उनके पेट की मांसपेशियाँ सिकुड़ने लगी, जाँघें मेरे हाथ को और कसने लगी और अचानक पूरा जिस्म थरथराकर लहरों की तरह उठने लगा। उनकी आवाज़ टूटी–टूटी सिसकारियों और कराहों में बदल गई, “आह्ह… गोलू… बस्स्स…”
कुछ ही पल में उनका शरीर चरम पर पहुँच गया। उनकी जाँघें काँपते हुए और भी कस गई, पीठ पूरी तरह से ऊपर उठ गई और फिर अचानक वे थक कर नीचे ढह गई। उनकी साँसें अनियमित थी, चेहरे पर गहरी लाली और खुशी की हल्की मुस्कान थी। उस पल मुझे साफ़ महसूस हो रहा था कि उन्होंने अपना सब कुछ मेरे हाथों में उँडेल दिया था।
मैं धीरे से उनके चेहरे के पास जाकर उनके होंठों पर एक नरम किस्स दिया। उनकी साँसें अब भी तेज़ थी, लेकिन उस चूमने में एक अजीब सी शांति थी। होंठ अलग करते हुए मैंने हल्की आवाज़ में कहा, “अब उठो दीदी, हमें चलना होगा।”
कुछ देर बाद नेहा दीदी तैयार हो गई और हम दोनों कॉलेज की तरफ निकल पड़े। बाहर गेट पर टैक्सी पहले से खड़ी थी। मैंने और दीदी ने बैग उठाए और टैक्सी के डिक्की में रख दिए। फिर हम दोनों पिछली सीट पर जाकर साथ बैठ गए।
दीदी ने उस दिन सफ़र के लिए हल्के रंग की लंबी कुर्ती और जीन्स पहन रखी थी। टैक्सी जैसे ही चलने लगी, मैं उनकी तरफ देखने लगा। सामने से ढीली कुर्ती की गले की कटिंग इतनी खुली थी कि उनकी गहरी क्लीवेज साफ़ नज़र आ रही थी। टैक्सी के हल्के-हल्के झटकों से उनके सीने के उभार हिल रहे थे, जैसे हर झटके पर उनका पूरा सीना धीरे-धीरे उछल रहा हो। कपड़े के नीचे से उनकी गोलाई और भी ज्यादा उभरकर सामने आती जा रही थी, मानो कपड़ा उनके शरीर की हलचल को रोक ही ना पा रहा हो।
इतना ही नहीं, टैक्सी के छोटे-से स्पेस में उनका परफ्यूम और उनके शरीर की हल्की-सी खुशबू मुझे लगातार महसूस हो रही थी। वह खुशबू इतनी गहरी और मीठी थी कि मेरे भीतर एक अजीब-सी बेचैनी भरती जा रही थी। कभी उनके बाल मेरे कंधे को छू जाते, कभी टैक्सी के मोड़ पर उनका बाजू मेरे हाथ से सट जाता। हर स्पर्श और हर झोंका मुझे और ज्यादा उनके करीब खींचने लगता।
कुछ पल बाद मैंने धीरे-धीरे अपना हाथ बढ़ा कर उनकी जांघों पर रख दिया। जीन्स के ऊपर से भी उनकी जांघों की कसावट मुझे साफ़ महसूस हो रही थी। मेरी उँगलियाँ बहुत हल्के दबाव के साथ उनकी जांघ पर टिकी, जैसे मैं सिर्फ़ परख रहा हूँ कि उनका स्पर्श कैसा लगता है। टैक्सी के कंपन के साथ मेरा हाथ धीरे-धीरे थोड़ा-थोड़ा खिसक रहा था, और उनकी जांघों की गर्मी मेरी हथेली में उतरती जा रही थी।
दीदी ने तुरंत मेरी तरफ़ देखा। उनकी आँखों में हल्की शरारत चमक रही थी और होंठों पर धीमी-सी मुस्कान आ गई। उन्होंने धीमे स्वर में कहा, “क्या हुआ गोलू?”
मैंने झेंपते हुए सिर हिलाया और कहा, “कुछ नहीं दीदी।” लेकिन मेरा हाथ अब भी उनकी जांघों पर ही टिका हुआ था, और उस छोटे-से स्पर्श में इतनी गहराई थी कि दिल की धड़कन तेज़ होती जा रही थी।
टैक्सी धीरे-धीरे ट्रैफिक में फँस गई। बाहर गाड़ियों की लंबी कतार, हॉर्न की आवाज़ें और भीड़-भाड़ का शोर था, लेकिन उस पल मेरे लिए सब आवाज़ें मानो गायब हो गई। ड्राइवर पूरी तरह सामने सड़क पर ध्यान दे रहा था और उसके इस ध्यान ने हमें एक ऐसी जगह और समय दे दिया था जहाँ कोई देख नहीं रहा था। मेरे अंदर बेचैनी बढ़ती जा रही थी। दिल की धड़कन इतनी तेज़ हो गई थी कि मुझे खुद अपनी धड़कन सुनाई दे रही थी। माहौल ऐसा था जैसे हर चीज़ हमें करीब आने के लिए मजबूर कर रही हो।
मैंने धीरे से अपना हाथ बढ़ाया और पहले उनके पेट पर रख दिया। उनका नर्म और गर्म पेट मेरी उँगलियों के नीचे आते ही मेरे पूरे शरीर में एक अजीब-सी हलचल दौड़ गई। ऐसा लगा जैसे उनके पेट से निकलती गर्मी सीधी मेरे सीने तक पहुँच रही हो। वह हल्का सा सिहर गई, होंठों पर दबी-दबी मुस्कान उभरी, लेकिन कुछ बोलीं नहीं। उनकी चुप्पी ने मुझे और हिम्मत दी। मैंने सांस रोक कर हाथ धीरे-धीरे नीचे खिसकाना शुरू किया।
उनकी टाइट जीन्स की कसावट पर हाथ फेरना बिल्कुल अलग एहसास दे रहा था। जीन्स की हर सिलाई और हर कसावट के नीचे उनका जिस्म जैसे मेरे हाथ के दबाव को महसूस कर रहा था। जब मेरी उँगलियाँ कपड़े पर चलती, तो लगता मानो उनके बदन में भी लहर-सी उठ रही हो। मैं और करीब झुक गया ताकि उस एहसास को और गहराई से महसूस कर सकूँ।
दिल तेज़ी से धड़क रहा था, सांसें भारी होने लगी थी और उस भीड़ भरी सड़क पर मैं सिर्फ उसी एक पल में खो गया था। मुझे याद आया कि शायद एक घंटे पहले ही मैं उनके खुले बदन को छू चुका था, लेकिन अब, इस भीड़-भाड़ वाले माहौल में, उनके इतने करीब बैठ कर सब कुछ और भी नया और खूबसूरत लग रहा था। हर बार जब वो मेरे पास आती, तो उनका बदन मानो मुझे अपनी तरफ खींच लेता। उनकी हल्की-सी खुशबू टैक्सी के छोटे से डिब्बे में फैल गई थी।
मेरा हाथ धीरे-धीरे जीन्स की कसावट पर रुकता, फिर थोड़ी हिम्मत कर और नीचे जाने की कोशिश करता। हर बार उँगलियाँ थोड़ी और सरकती तो उनके चेहरे पर झलकती हल्की सिहरन मुझे साफ़ दिखाई देती। कभी वो मुझे देखती, आँखों में हल्की झिझक और सवाल लिए, और अगले ही पल नज़रें मोड़ लेती।
उनकी हर छोटी हरकत मेरे अंदर और बेचैनी पैदा कर रही थी। उस ट्रैफिक से भरी सड़क पर, हॉर्न और शोर के बीच, मेरे लिए उस पल का सन्नाटा इतना गहरा था कि लगा मानो पूरा ट्रैफिक थम गया हो और उस टैक्सी में सिर्फ हम दोनों ही मौजूद हो।
टैक्सी अब भी धीरे-धीरे ट्रैफिक में रेंग रही थी। मेरा हाथ जीन्स की कसावट पर टिकते-टिकते बार बार रुक जाता, जैसे खुद से लड़ रहा हो कि आगे बढ़ूँ या नहीं। कई बार उँगलियाँ थोड़ा नीचे जाती और उनकी आँखों में हल्की-सी झिझक और सवाल झलक जाते। मैं जितना और रुकता, उतनी ही बेचैनी मेरे अंदर बढ़ती जाती।
मैंने धीरे से और हिम्मत करके उनके कान के पास झुककर फुसफुसाया, “दीदी, क्या आप बटन थोड़ा ढीला कर सकती हैं?” मेरी आवाज़ धीमी और काँपती हुई थी। उन्होंने मेरी तरफ़ देखा, उनकी आँखों में कोई शब्द नहीं था, बस एक अनकहा जवाब था। बिना कुछ कहे उन्होंने अपनी जीन्स का बटन खोल दिया। उनकी इस हरकत ने जैसे मेरे अंदर की सारी झिझक तोड़ दी।
बटन खुलते ही वो थोड़ी पीछे टिक कर ऐसे बैठ गई जैसे ये उनके लिए कुछ भी नया नहीं हो। उनका चेहरा बिल्कुल शांत था, आँखों में हल्की थकान और होंठों पर एक अनजानी मुस्कान। उनके इस सहज अंदाज़ ने मुझे और हिम्मत दी। मैंने धीरे-धीरे उनके जीन्स की ज़िप नीचे खिसकाई। ज़िप खुलने की धीमी आवाज़ उस टैक्सी में साफ सुनाई दे रही थी, और हर आवाज़ मेरे दिल की धड़कन को और तेज़ कर रही थी।
जब मैंने हाथ अंदर डाला तो सबसे पहले मेरी उंगलियों को उनके पैंटी का कपड़ा महसूस हुआ। वो मुलायम कपड़ा मेरी उंगलियों के नीचे आते ही जैसे कोई नया संसार खुल गया। उस हल्के स्पर्श ने मेरे पूरे शरीर में झटके-सी लहरें भेज दी। मैंने उंगलियों को वहीं थोड़ी देर रुकने दिया, जैसे उस अहसास को और गहराई से जीना चाहता था।
उनके चेहरे की तरफ देखा तो उनकी पलकों ने खुद को थोड़ा झुका लिया था। वो खिड़की के बाहर देखने लगी, जैसे इस स्पर्श से बचना चाह रही हों, पर उनके होंठों के कोनों पर हल्की-सी मुस्कान छुप नहीं पा रही थी। उनके गाल थोड़े लाल हो गए थे और सांसें पहले से भारी लगने लगी थी।
मैंने और हिम्मत की और धीरे से अपना हाथ उनकी पैंटी के अंदर सरका दिया। जैसे ही मेरी उंगलियों ने उनके नाज़ुक हिस्से को छुआ, मेरे पूरे शरीर में बिजली-सी दौड़ गई। यह स्पर्श इतना नया और गहरा था कि कुछ पल के लिए सांस लेना ही मुश्किल लगने लगा। उनकी गर्माहट और उस हिस्से की कोमलता ने मुझे एक-दम से बेकाबू कर दिया।
उनका चेहरा उस समय और भी लाल हो गया था। उन्होंने आँखें बंद कर ली और होंठों को हल्के से काट लिया, जैसे खुद को रोकने की कोशिश कर रही हो। उनकी सांसें अब और भारी और तेज़ हो चुकी थी, हर साँस में हल्का-सा कराहना सुनाई दे रहा था। वो खिड़की के बाहर देख रही थी, लेकिन उनके बदन का हर एहसास बता रहा था कि वह सब महसूस कर रही हैं।
मेरी उंगलियाँ धीरे-धीरे चलने लगी। कभी हल्के से दबाती, कभी बस ऊपर-ऊपर से सहलाती। हर बार उनका बदन हल्का-सा कांप जाता। उस पल में मैं अपने होश खो चुका था। मुझे लग रहा था मानो मैं किसी ऐसे एहसास को छू रहा हूँ जिसे शब्दों में बयां करना नामुमकिन है।
उनकी पलकों के नीचे आँखें काँप रही थी, साँसें गहरी और तेज़ हो चुकी थी। मैंने धीरे-धीरे अपनी दो उंगलियाँ उनके नाज़ुक हिस्से के अंदर सरकाई। वह पल इतना धीमा और खूबसूरत था कि मुझे लगा हर सेकंड एक नई परत खुल रही है। शुरुआत में हल्का-सा दबाव बना, जैसे कोई दरवाज़ा धीरे-धीरे खुल रहा हो। अंदर जाते ही उंगलियों के चारों ओर गर्माहट और नमी महसूस हुई, यह अहसास मेरे पूरे शरीर में फैल गया।
उनकी साँसें और भारी हो गई, सीना तेजी से ऊपर-नीचे होने लगा। उन्होंने अपना सिर धीरे से मेरे कंधे पर टिकाया, मानो खुद को संभालने की कोशिश कर रही हो। उनकी आँखें आधी खुली और फिर बंद हो गई, लेकिन चेहरे की हर छोटी हलचल बता रही थी कि वह सब कुछ महसूस कर रही हैं।
टैक्सी धीरे-धीरे ट्रैफिक से निकल कर अब खाली सड़क पर तेज़ चल रही थी। मैंने उनके कान के पास धीरे से फुसफुसाया, “दीदी… क्या मैं अपनी उंगलियाँ निकाल लूँ?” उन्होंने बिना आँखें खोले हल्की आवाज़ में कहा, “रहने दो… कॉलेज पहुँचने तक रखो… बस हिलाना मत, वरना मैं खुद को रोक नहीं पाऊँगी।”
इसके बाद मैं पूरी तरह स्थिर हो गया। मेरी उंगलियाँ उनके नाज़ुक हिस्से के अंदर वैसे ही रुकी रही। वह और भी ज़्यादा मेरे कंधे पर झुक गई, जैसे पूरा वज़न अब मुझ पर डाल दिया हो। उनकी साँसें अब भी तेज़ थी लेकिन चेहरे पर एक गहरी शांति भी आ चुकी थी। बाहर सड़क सुनसान थी, सिर्फ़ टैक्सी की आवाज़ गूँज रही थी, और अंदर हम दोनों एक अलग दुनिया में थे।
वह खिड़की से बाहर देखती रही, पर सिर मेरे कंधे से नहीं हटाया। मैंने भी कोई हरकत नहीं की, बस उनकी गर्माहट और नज़दीकी महसूस करता रहा। धीरे-धीरे कॉलेज का गेट दिखाई देने लगा, लेकिन उस पूरे सफ़र में मेरी उंगलियाँ वहीं थी और वह मेरे कंधे पर टिकी रही, मानो यह पल कभी ख़त्म ना हो।
जैसे ही टैक्सी कॉलेज के गेट पर रुकने लगी, उन्होंने बहुत धीमी आवाज़ में फुसफुसा कर कहा, “अब निकाल लो…” मैंने धीरे से अपनी उंगलियाँ बाहर खींच ली। उनकी साँसें अभी भी तेज़ थी, लेकिन चेहरे पर राहत-सी झलक गई। उन्होंने तुरंत अपने जीन्स की ज़िप ऊपर खींची और बटन लगा दिया, जैसे सब कुछ आम हो। फिर बिना कुछ कहे हम दोनों धीरे-धीरे टैक्सी से बाहर निकल गए।
हम दोनों ने मिल कर डिक्की से सामान बाहर रखा। हम दोनों चुप-चाप कॉलेज के बड़े से गेट की ओर देखने लगे। उस पल मेरे मन में अचानक यह ख्याल आया कि जैसे ही मैं अंदर जाऊँगा, तो शायद कई दिनों तक अपनी खूबसूरत दीदी से नहीं मिल पाऊँगा। यह सोच कर दिल भारी हो गया।
मैंने देखा उनकी आँखें भी नम हो गई थी, शायद उन्हें भी हमारे साथ बिताए पुराने दिन याद आ रहे थे। वो छोटे-छोटे पल, जब हम घंटों बातें करते, एक-दूसरे के पास रहते, और बिना किसी डर के खुल कर जीते।
धीरे-धीरे वह मेरे पास आई, मेरे चेहरे को दोनों हथेलियों से थाम लिया। उनकी उँगलियों का हल्का-सा स्पर्श मेरे दिल तक उतर गया। उन्होंने गहरी साँस ली और धीमे स्वर में बोली, “गोलू, अपना ध्यान रखना…” इतना कह कर उन्होंने अपने होंठ मेरे होंठों पर रख दिए।
उनके होंठ गर्म और नर्म थे। उस चूमने में उनकी सारी बेचैनी, प्यार और जुदाई का दर्द समाया हुआ था। मैं पलकें बंद करके बस उसी पल में खो गया। जैसे समय थम गया हो और हम दोनों बस एक-दूसरे में बहे जा रहे हो।
कुछ देर बाद उन्होंने धीरे से अपने होंठ अलग किए। मैं उनकी आँखों में देख रहा था और मेरे मुँह से अनजाने में निकल गया, “दीदी… एक आख़िरी बार… मैं अपना लंड तुम्हारे… तुम्हारे पिछवाड़े में डालना चाहता हूं
मेरी बात सुन कर उनका चेहरा एक-दम लाल पड़ गया। वह हल्के से शर्मा कर नजरें झुका ली। उनकी साँसें तेज़ हो गई और काँपती आवाज़ में बोली, “गोलू… धीरे करना… ठीक है?”