पिछला भाग पढ़े:- नेहा दीदी और मेरा सिक्रेट अफेयर-5
भाई-बहन सेक्स कहानी आगे-
नेहा दीदी ने मेरा हाथ पकड़ा और मुझे बाथरूम से बाहर ले आई। उनका बदन अब भी पूरी तरह भीगा हुआ था, जिस पर से पानी की बूंदें टपक रही थी। वह मुझे सीधे अपने कमरे की ओर ले गई। कमरे में हल्की रोशनी थी और पर्दे आधे खींचे हुए थे। अंदर पहुँच कर उन्होंने दरवाज़ा बंद कर दिया।
मैं अचानक जोश में आकर उन्हें सीधे बिस्तर पर धकेलने ही वाला था, लेकिन उन्होंने धीरे से मेरा हाथ थाम लिया और कहा, “रुक, पहले थोड़ा माहौल बना लेते हैं… बिना मूड बनाए सब अधूरा लगेगा।” उनकी आवाज़ धीमी थी लेकिन उसमें गहराई और अपनापन झलक रहा था। यह सुन कर मैं ठिठक गया और उनकी आँखों में झांकने लगा। माहौल और भी गहरा और गर्म हो गया था।
फिर वह मेरे करीब आई और धीरे-धीरे मेरे कपड़े उतारने लगी। सबसे पहले उन्होंने मेरी शर्ट के बटन खोले और उसे उतार दिया। उनके हाथों का स्पर्श मेरी त्वचा पर गर्म और हलचल भरा लग रहा था। उसके बाद उन्होंने मेरी पैंट खोली और नीचे खींच दी। मैं खुद भी उनकी मदद कर रहा था, मानो इस पल को लंबा और गहरा करना चाहता था। आखिर में उन्होंने धीरे-धीरे मेरा अंडरवियर भी नीचे किया। उस पूरे समय में उनकी आँखों में एक अजीब चमक थी और मेरे लिए हर सेकंड नया था।
जब मेरे सारे कपड़े उतर गए, तो वह और करीब आ गई। उन्होंने झुक कर अपने होंठ मेरे सीने पर रख दिए। उनका स्पर्श बेहद मुलायम और गर्म था। वह धीरे-धीरे होंठों को ऊपर की ओर ले जाने लगी, कभी गर्दन पर, कभी ठोड़ी के पास रुकते हुए।
मेरी साँसें तेज़ हो गई थी और हर स्पर्श दिल की धड़कनें और बढ़ा रहा था। आखिरकार उनके होंठ मेरे होंठों तक पहुँचे। उन्होंने पहले धीरे से, नर्मी के साथ मेरे होंठों को छुआ, मानो परख रही हो। फिर धीरे-धीरे वह किस्स गहरा होने लगा। उनकी पकड़ मजबूत हो गई और होंठों पर दबाव बढ़ गया। अब उनका चूमना नर्मी से निकल कर गहराई और जोश में बदल गया था। मैंने भी उसी तरह उनके होंठों को पकड़ कर वापस किस्स करना शुरू किया। कमरे का माहौल और हमारी साँसों की गर्मी मिल कर उस पल को और भी तेज बना रहे थे।
मुझे लगने लगा जैसे मेरा शरीर भीतर से तपने लगा हो, मानो हर नस में आग दौड़ रही हो। मैंने उन्हें और कस कर पकड़ लिया और उनके होंठों पर इतने जोर से किस्स करने लगा कि कभी-कभी हल्के से उनके होंठों को काट भी लेता। वह हल्की सी सिसकारी भरती लेकिन फिर और गहराई से मुझे चूमने लगती। हमारे होंठ अब पूरी तरह मिल चुके थे और हमारी जीभें एक-दूसरे को छूने लगी थी। उस स्पर्श में गर्मी, नमी और अजीब-सा नशा था। जैसे-जैसे हमारी जीभें आपस में उलझ रही थी, वैसे-वैसे हमारा जोश और बढ़ता जा रहा था।
फिर अचानक नेहा दीदी ने चूमना रोक दिया। उनकी साँसें तेज़ थी और आँखों में गहराई थी। उन्होंने धीमी आवाज़ में कहा “अब मैं तैयार हूँ…”
वह बिस्तर पर घुटनों के बल बैठ गई और दोनों हाथों को आगे टिकाया। सिर थोड़ा नीचे झुका हुआ था और कमर पीछे की ओर उठी हुई। इस पोज़िशन में उनका पूरा शरीर हाथ और घुटनों के सहारे था। इस तरह झुकने पर उनकी पीठ सीधी थी और सबसे ज़्यादा साफ़ उनका पिछला हिस्सा दिखाई दे रहा था। सामने से कुछ नज़र नहीं आ रहा था, बस उनका उठा हुआ पिछला हिस्सा ही साफ़ दिख रहा था। यह पोज़िशन मानो मुझे यही देखने और उसी पर ध्यान देने के लिए बनाई गई हो।
मैं उनके पास गया और हाथ बढ़ा कर उनके पीछे वाले हिस्से को छू लिया। उनका पिछला हिस्सा गोल और फर्म था, मुलायम और चिकना। हल्का सा दबाव डालते ही गर्म और नम लग रहा था। हर हलचल के साथ उसकी शेप और भी साफ दिख रही थी। नज़दीक से देखने पर इसकी बनावट और गोलाई साफ़ दिखाई दे रही थी।
नेहा दीदी ने सिर घुमा कर मेरी ओर देखा, उनकी आँखों में हल्की शर्म और खुशी दोनों झलक रही थी। चेहरे पर हल्की कसक थी, लेकिन उन्होंने मुझे रोक नहीं। उनका पिछला हिस्सा इतना पास से साफ दिख रहा था कि हर छोटा डिटेल नजर आ रहा था। यह पल मेरे लिए पूरी तरह ध्यान खींचने वाला और रोमांचक था।
मैंने धीरे-धीरे उनकी नाजुक त्वचा पर एक जोरदार थप्पड़ मारा। उनकी आवाज़ एक लंबी और तीखी आह में बदल गई, हल्की-सी चीख और सिसकारी के बीच। उनके नाजुक हिस्से में हल्का झटका महसूस हुआ और उनका शरीर थोड़ी-सी हलचल में आया। उनकी साँसें तेज़ हो गई और आवाज़ में हड़कंप साफ महसूस हो रहा था। मैं अपने हाथ में उनका मुलायम शरीर महसूस कर रहा था, हर थप्पड़ के साथ वह हल्का-सा हिल रहा था और उनकी आह धीरे-धीरे बढ़ती जा रही थी।
फिर उन्होंने धीमी और सीधे शब्दों में कहा, “अब और देर मत करो, सीधे अंदर डाल दो।” उनके चेहरे पर साफ झलक थी और उन्होंने अपने शरीर को मेरे पास झुकाया, साफ़ दिख रहा था कि वह तैयार थी।
मैं धीरे-धीरे नेहा दीदी के और करीब गया। मेरी साँसें तेज़ थी और दिल की धड़कन मानो सीने से बाहर निकलना चाहती थी। मैं उनके पीछे झुका और अपने कठोर लंड को उनके पिछवाड़े के बीच धीरे-धीरे रगड़ने लगा। जैसे ही मैंने उसे उनके कस कर बंद छेद पर पर टिकाया, उन्होंने हल्की सी सिसकारी भरी। उनकी सांसें रुक-सी गई और वह काँप उठी।
मैंने ज़ोर लगाया और अंदर धकेलने की कोशिश की, मगर उनका छेद इतना टाइट था कि लंड भीतर नहीं जा पा रहा था। नेहा दीदी का चेहरा तनाव और दर्द से सिकुड़ गया। उन्होंने ज़ोर से कराहते हुए कहा, “आह्ह… रुक्क्क… बहुत दर्द हो रहा है।” उनकी आवाज़ में बेचैनी और तकलीफ़ साफ़ झलक रही थी।
मैं लगातार कोशिश करता रहा, धीरे-धीरे दबाव बढ़ाता, लेकिन जैसे-जैसे मैंने धक्का दिया, वह दर्द से चीख पड़ी। उनकी आँखों से आँसू छलक आए और उन्होंने हाँफते हुए लगभग रोते-रोते कहा, “प्लीज़… पहले कुछ लगाओ… ऐसे नहीं होगा… बहुत दर्द हो रहा है।”
मैंने उनकी बात सुनी और तुरंत पास रखी अलमारी की तरफ बढ़ा। वहीं पर नारियल का तेल रखा था, जो वह हमेशा अपने बालों में लगाती थी। बोतल उठा कर मैं वापस आया। नेहा दीदी अब भी बिस्तर पर डॉगी स्टाइल पोज़िशन में थी, उनका शरीर काँप रहा था, मगर वह मेरे लिए वहीं टिक कर इंतज़ार कर रही थी।
मैंने बोतल खोली, तेल हाथों में डाला और सबसे पहले अपने लंड पर अच्छी तरह मलने लगा। चिकनाई के साथ वह और ज्यादा चमकदार और फिसलन भरा हो गया। फिर दीदी ने खुद अपनी काँपती उँगलियों से तेल लिया और अपने पिछवाड़े पर लगाने लगी। उनका स्पर्श और धीमी सिसकारियाँ कमरे की खामोशी में घुल रही थी।
वह धीरे-धीरे अपने छेद पर तेल मलने लगीं, फिर अपनी उँगली से उसे अंदर धकेलने की कोशिश की। उनकी कराह और हल्की-सी चीख उनके दर्द और उत्तेजना दोनों को दिखा रही थी। मैंने भी अपनी उँगलियाँ लेकर उनके कस कर बंद छेद पर धीरे-धीरे तेल पुश किया। जैसे ही मेरी उँगली उनके भीतर गई, उन्होंने तकलीफ़ में होंठ काट लिए लेकिन फिर राहत की एक लंबी साँस छोड़ी।
तेल अंदर जाते ही उनका टाइट छेद थोड़ा ढीला और गीला लगने लगा। मैं धीरे-धीरे और तेल लगाता रहा, अपनी उँगलियों से फैलाता रहा ताकि वह लचीला हो जाए। हर बार जब उँगली थोड़ी गहराई तक जाती, वह कराह उठती और बिस्तर की चादर को पकड़ लेती। उनकी साँसें अनियंत्रित हो रही थी, लेकिन उनकी आँखों में अब दर्द के साथ हल्की-सी चाह भी झलकने लगी थी।
अब मैं पूरी तरह से तैयार था। मैंने अपने तेल लगे लंड को फिर से पकड़ा और उनके गीले छेद पर टिकाया। धीरे-धीरे मैंने दबाव बनाया और हल्का सा धक्का दिया। उनका तंग छेद अब भी कस कर बंद था, लेकिन तेल की चिकनाई से थोड़ी जगह बनने लगी। धीरे-धीरे मेरा लंड उनके भीतर धँसना शुरू हो गया।
नेहा दीदी की कराह कमरे में गूँजने लगी—“आह्ह… उह्ह…” उनका शरीर दर्द से काँप रहा था, लेकिन वह अब मुझे रोक नहीं रही थी। उनका सिर झुक गया, बाल चेहरे पर बिखर गए, और वह चादर को पकड़ कर दर्द सह रही थी। हर इंच के साथ उनकी सिसकारियाँ गहरी होती जा रही थी।
मैंने धीरे-धीरे धक्का दिया, और मेरा लंड उनके अंदर और आगे बढ़ता गया। उनका कसाव इतना था कि मुझे भी जोर लगाना पड़ रहा था, लेकिन तेल की फिसलन के कारण धीरे-धीरे रास्ता बन रहा था। उनकी पीठ पसीने से भीगने लगी थी और वह दाँत भींचकर उस दर्द को झेल रही थी।
“आह्ह… बहुत दर्द हो रहा है…” वह हाँफते हुए बोली, मगर उन्होंने खुद को पीछे नहीं खींचा। उनकी आँखें बंद थी, होंठ काँप रहे थे, लेकिन उनकी आवाज़ में अब हार मान लेने के बजाय सहन करने की कोशिश साफ़ थी।
मैंने अपने हाथ उनकी कमर पर कस कर रखा और धीरे-धीरे धक्का मारना जारी रखा। मेरा लंड अब धीरे-धीरे गहराई में जा रहा था। उनके होंठों से निकलती कराहें अब लंबी और भारी हो गई थी, मानो वह दर्द के बीच धीरे-धीरे उस एहसास को भी महसूस करने लगी हो।
उनका तंग छेद अब भी पूरी तरह ढीला नहीं हुआ था, मगर तेल की चिकनाई और मेरी धीमी चाल से वह मुझे अंदर जाने दे रही थी। उनके चेहरे पर दर्द साफ़ था, आँसू भी बह रहे थे, मगर वह पूरी तरह टूट कर नहीं चिल्ला रही थी। वह उस पीड़ा को सहते हुए मुझे अपने भीतर महसूस कर रही थी।
कुछ सेकंड गुजरने के बाद, जब उनका शरीर धीरे-धीरे उस दर्द को झेलने लगा, मैंने अपनी चाल बदल दी। अब मैंने धक्के थोड़े तेज़ कर दिए। मेरा लंड उनके भीतर तेजी से हिलने लगा। नेहा दीदी की कराहें और तेज़ हो गई। अब उनमें दर्द का कंपन और साफ़ सुनाई दे रहा था।
वह तकलीफ़ से रोने लगी, आँसू उनके गालों पर बह रहे थे। उनकी सिसकियाँ और कराहें मिल कर कमरे में गूंज रही थी। लेकिन इसके बावजूद उन्होंने एक बार भी मुझे रुकने को नहीं कहा। उनका शरीर काँपता रहा, उनकी पकड़ चादर पर और मज़बूत होती गई, लेकिन उन्होंने खुद को मेरी चाल से पीछे नहीं खींचा।
मैं और तेज़ी से धक्का मारता रहा, हर बार उनका तंग छेद मुझे कस कर जकड़ लेता। उनकी साँसें टूट-टूट कर निकल रही थी। उनके होंठों से दर्द भरी चीखें फूट रही थी, फिर भी वह पूरी हिम्मत से इस पीड़ा को सहन कर रही थी। वह काँपते हुए भी मुझे अपने भीतर स्वीकार करती जा रही थी। मेरा हर धक्का गहराई तक पहुँच रहा था और उनकी आँखों में दर्द के आँसू चमक रहे थे। वह रो रही थी, कराह रही थी, लेकिन उनका शरीर अब भी उसी तरह पोजीशन में टिके रहकर मुझे पूरी तरह अंदर जाने दे रहा था।
कुछ ही पलों बाद जब मैं अपनी हद के करीब पहुँचा, तो मेरी रफ्तार और तेज़ हो गई। मैं पूरी ताक़त से धक्के मारने लगा। अब नेहा दीदी दर्द से चीख उठी, उनकी चीखें पूरे कमरे में गूँजने लगी। वह रोते हुए बोलीं, “बस्स… प्लीज़ रुक जाओ… बहुत दर्द हो रहा है…” उनकी आवाज़ में बेबसी थी।
लेकिन मैं अब काबू से बाहर था। मैंने हाँफते हुए कहा, “दीदी… मैं नहीं रुक सकता… मैं बिल्कुल आखिर में हूँ।” मेरी साँसें बेकाबू थी और मेरा शरीर पसीने से भीग चुका था।
मैं लगातार और तेज़ होता गया। हर धक्का उन्हें चीखने पर मजबूर कर रहा था। उनकी कराहें, उनकी रोने की आवाज़ें, सब मिल कर कमरे को भर रही थी। लेकिन अब मैं अपनी आखिरी सीमा पर था। मेरा लंड उनके भीतर पूरी तरह धँसा हुआ था और मैं तेजी से उन्हें भरता जा रहा था।
आखिरकार, मेरे शरीर ने पूरी तरह जवाब दे दिया। मेरी कमर एक आखिरी बार ज़ोर से उनकी तरफ धँसी और मैं जोर से कराह उठा। गर्म सफेद पानी का सैलाब उनके भीतर उतरने लगा। मेरी धड़कन इतनी तेज़ हो चुकी थी कि मानो सीना फट जाएगा।
नेहा दीदी चीखते हुए रो रही थी, उनका शरीर बिस्तर पर काँप रहा था। उनका छेद मुझे कस कर जकड़े हुए था, और मैं लगातार उनके अंदर अपना सब कुछ उड़ेलता चला गया। हर बूंद उनके भीतर उतरती जा रही थी।
मेरे थमने के बाद भी वह सिसकियाँ भरते हुए हाँफ रही थी। उनकी आँखों से आँसू बहते रहे, और उनका शरीर पसीने और दर्द से काँप रहा था। लेकिन उन्होंने एक बार भी मुझे धक्का देकर बाहर नहीं निकाला, वह उस दर्द और मेरे साथ बिताए उस पल को अपनी पूरी मजबूरी और बेबसी के साथ सहन करती रहीं।
कुछ देर बाद वह थक कर पलट गई और अपनी पीठ के बल लेट गई। उनकी आँखें आँसुओं से भीगी थी, लेकिन धीरे-धीरे वह साँसें काबू करने लगी। हर गहरी साँस के साथ उनके उभरे हुए स्तन ऊपर-नीचे हिल रहे थे, मानो अब दर्द के बीच भी उनका शरीर आराम पाने की कोशिश कर रहा हो।
मैं धीरे-धीरे उनके पास गया और उन्हें अपनी बाहों में भर लिया। मैंने फुसफुसाते हुए कहा, “सॉरी दीदी… मुझे माफ़ कर दो…” मेरी आवाज़ काँप रही थी।
नेहा दीदी ने आँखें बंद की, उनके गाल अब भी आँसुओं से भीगे हुए थे। उन्होंने बहुत धीमे स्वर में कहा, “माफी मत माँगो… क्योंकि मैं इसके लिए तैयार हुई थी।”
उनकी यह बात सुन कर मेरा दिल और भी भारी हो गया, मगर साथ ही उनके करीब होने का एहसास और गहरा हो गया।
अगले दिन सुबह की रोशनी कमरे में उतर आई थी। पूरी रात के बाद अब माहौल धीरे-धीरे शांत हो रहा था। नेहा दीदी बिस्तर पर पीठ के बल लेटी हुई थी, उनकी आँखों के किनारों पर अब भी आँसुओं के हल्के निशान थे, मगर चेहरा थोड़ा सुकून भरा लग रहा था।
मैं उठ कर अलमारी के पास गया। आज कॉलेज जाना था और वहीं से सीधे हॉस्टल में शिफ्ट होना था। मैंने अपनी यूनिफ़ॉर्म निकाली और पहनने लगा। सफेद शर्ट, नीली पैंट और ऊपर ब्लेज़र, यह सब पहन कर आईने में खुद को एक बार देखा। मन में अजीब-सी हलचल थी, एक ओर कल का बोझ, दूसरी ओर नए सफर की शुरुआत।
मैंने बैग उठाया और उसमें धीरे-धीरे अपनी ज़रूरी चीज़ें भरने लगा, किताबें, नोटबुक, पेन, कपड़े, और बाकी ज़रूरी सामान। हर चीज़ रखते हुए यह एहसास हो रहा था कि अब घर से दूर रहने का समय आ गया है।
पीछे बिस्तर पर लेटी हुई दीदी मुझे देख रही थी। उनकी आँखों में थकान तो थी, मगर उसमें अपनापन और गहराई भी थी। जब मैंने बैग ज़िप किया, तो उन्होंने हल्की मुस्कान।
मैं उनके पास गया और झुक कर उनके होंठों पर एक छोटा-सा सुबह का किस्स रखा। उनके होंठ हल्के गीले और नरम थे, जैसे पूरी रात की थकान और मासूमियत उनमें समाई हो। उस पल मुझे एक अलग ही अपनापन महसूस हुआ। दीदी ने हल्की हँसी के साथ पूछा, “क्या मेरी सांसों से बदबू तो नहीं आ रही?”
मैंने उनकी आँखों में देखते हुए धीरे से कहा, “नहीं दीदी, ये तो दुनिया की सबसे अच्छी खुशबू है।” उनके चेहरे पर हल्की लाली फैल गई और वह चुप-चाप मेरी ओर देखती रही।
फिर मैं थोड़ी देर रुक कर गंभीर स्वर में पूछ बैठा, “दीदी, तुम्हारा पिछवाड़ा अभी भी दर्द में है क्या?”
नेहा दीदी ने धीरे-से मुस्कुराते हुए कहा, “उसकी चिंता मत करो। आज तुम्हारा आखिरी दिन है मेरे साथ, शायद हम कई दिनों तक नहीं मिल पाएँगे।”
उनकी यह बात सुन कर मेरा मन भारी हो गया। उनके बिना कुछ दिनों तक रहना, उनका साथ ना होना, इस सोच ने मुझे अंदर से बेचैन कर दिया। मुझे अपने लिए भी दुःख हुआ, क्योंकि यह विदाई का पल अब नज़दीक था और मैं उसे ज्यादा दिन तक अपने पास नहीं रख पाऊँगा।
थोड़ी देर चुप्पी के बाद नेहा दीदी ने धीरे-से कहा, “मैं तुम्हारे लिए कुछ करना चाहती हूँ, इससे पहले कि तुम जाओ।” उसकी आवाज़ में एक हल्की मुस्कान और स्नेह की गर्माहट थी।
फिर उसने अपनी ब्रा की हुक खोली और धीरे-धीरे उसे अपने शरीर से हटा लिया। जैसे ही ब्रा नीचे गिरी, उसके भरे-पूरे स्तन नजरों के सामने आ गए। गोलाईदार, मुलायम और नर्म स्तन हल्की-सी गुलाबी निप्पल के साथ चमक रहे थे। पानी या हल्की धूल की वजह से उनका रूप और भी आकर्षक लग रहा था। उनकी त्वचा मुलायम और चिकनी थी, और हर हल्का हिलना या श्वास उनकी स्तनों की हल्की झिलमिलाहट के साथ दिखाई दे रहा था।
फिर उसने धीरे-धीरे अपनी पैंटी उठाई और उतार दी। उसके जांघों और बीच का हिस्सा साफ़ और नाज़ुक दिखाई दे रहा था। घने काले बालों से ढका हुआ उनका निजी हिस्सा मुलायम और नम महसूस हो रहा था। हल्की गुलाबी लकीर और भीगा-पन उसके शरीर पर चमक रहा था। हर छोटी-छोटी हरकत और हल्की सिहरन उसके नाज़ुक हिस्से की रूप-रेखा को और भी साफ बना रही थी।
मैं थोड़ी हिम्मत करके बोला, “दीदी, आप क्या करने की कोशिश कर रही हैं?”
नेहा दीदी ने मेरी बात सुनते ही हल्की मुस्कान दी, लेकिन उसकी आँखों में डर अभी भी था। उसने अपने उंगलियों से धीरे-धीरे अपने निजी हिस्से को रगड़ते हुए कहा, “मैं हमेशा सामने वाले हिस्से से सेक्स करने में डरती हूँ, लेकिन जाने से पहले मैं तुम्हारे सपने को पूरा करना चाहती हूँ। ” उसके हर हल्के स्पर्श और झिझक में भी उत्सुकता झलक रही थी, और वह धीरे-धीरे अपने शरीर को तैयार कर रही थी ताकि मैं इसका अनुभव कर सकूँ।
अगला भाग पढ़े:- नेहा दीदी और मेरा सिक्रेट अफेयर-7