इस सब की शुरुआत तब हुई जब दीपिका दीदी घर दिवाली के लिए आई। मम्मी हर साल दिवाली के दो दिनों पहले घर पर हमारे सभी रिश्तेदारों को बुलाती थी, ताकि हम सब लोग मिल कर त्योहार का मज़ा ले सकें।
मुझे हमेशा ये पल बहुत अच्छे लगते थे।पूरा घर मेहमानों से भरा होता, हर तरफ़ हँसी और शोरगुल गूंजता। सब लोग मिल कर पटाखे जलाते, साथ में मिठाइयाँ बाँटते और देर रात तक बातें करते। लेकिन 2021 की दिवाली अलग थी, मानो किसी ख्वाब की तरह, जिसने मेरी ज़िंदगी को हमेशा के लिए बदल दिया।
कहानी में आगे बढ़ने से पहले मैं आपको दीपिका दीदी के बारे में बताता हूं। वह मेरी बड़ी बहन हैं, लेकिन पढ़ाई की वजह से दूसरे शहर यानी मुंबई में रहती हैं। साल में मुश्किल से दो-तीन बार ही घर आती हैं, और हर बार उनका रूप और खूबसूरती कुछ अलग और नया लगता है।
मैं जब भी दीदी को देखता, मेरी सांसें थम जाती। उनका चेहरा मानो रेशम पर बिखरी चांदनी हो, गोरी, चिकनी और मुलायम त्वचा, बड़ी-बड़ी आंखें जिनमें एक अंजान चमक थी। होंठ भरे-भरे और गुलाबी, जो हल्की सी मुस्कान में भी दिल पर सीधा वार कर देते।
और उनकी छाती… चुस्त कपड़ों में उनके स्तन गोल और भरे-पूरे नज़र आते, मानो हर सांस के साथ अपने खूबसूरत आकार को और उभार रहे हो। फिटेड ड्रेस पहनने पर उनका आकार इतना परफेक्ट लगता कि नज़र हटाना मुश्किल हो जाता। कई बार जब वह थोड़ी झुकती, तो उनकी गर्दन से नीचे हल्का-सा खुला कपड़ा उनकी गहरी और मोहक क्लीवेज दिखा देता, जिससे दिल की धड़कन तेज़ हो जाती।
उनकी पतली कमर के नीचे का गोल और टाइट पिछवाड़ा, जब वह शॉर्ट्स पहनती तो और भी खूबसूरत लगता। हल्का सा कपड़ा उनके पीछे की हर रेखा से चिपक कर उनकी गोलाई को और साफ दिखाता। जब वह बैठती, तो शॉर्ट्स का किनारा थोड़ा ऊपर खिसक जाता, और उनकी जांघों के मुलायम हिस्से के साथ पीछे का उभार और भी साफ नज़र आने लगता।
मैं हमेशा उनके लिए कुछ महसूस करता था। कुछ ऐसा जो एक भाई को अपनी बहन के लिए नहीं महसूस करना चाहिए। लेकिन ये एहसास इतना गहरा था कि उसे अनदेखा करना नामुमकिन था। फिर भी, मैं कभी कहने की हिम्मत नहीं जुटा पाया। एक तो हम भाई-बहन थे, और दूसरा दीदी बहुत सीधी-सादी लड़की थी। उनके लिए मैं हमेशा वही मासूम, छोटा भाई था, जिसे उन्होंने बचपन से गोद में खिलाया था। वो मुझे उसी नज़र से देखती, और शायद यही वजह थी कि मेरे मन की बातें हमेशा मन में ही दब कर रह जाती।
उस शाम, एक साल बाद, मैंने उन्हें पहली बार सामने देखा। शाम का हल्का अंधेरा और पीली रोशनी में वो दरवाज़े से अंदर आई तो मेरा दिल जैसे थम गया। उन्होंने हल्के गुलाबी रंग की सिल्क की फिटेड ड्रेस पहनी थी, जो उनके बदन से चिपकी हुई थी। ड्रेस का मुलायम कपड़ा उनकी पतली कमर को कस कर पकड़ रहा था, और नीचे की ओर ढलता हुआ उनका गोल और टाइट पिछवाड़ा पूरी तरह उभार रहा था।
ऊपर की ओर, ड्रेस उनके भरे-पूरे और गोल स्तनों को इस तरह थामे हुए थी कि उनकी खूबसूरत साफ़-साफ़ नज़र आ रही थी। हर सांस के साथ उनके सीने का हल्का सा उठना-गिरना उस नज़ारे को और भी मोहक बना रहा था।
उन्होंने जैसे ही मुझे देखा, उनके चेहरे पर एक प्यारी और गर्मजोशी भरी मुस्कान फैल गई। उनकी बड़ी-बड़ी आंखों में मिलने की खुशी चमक रही थी। बिना कुछ कहे वो तेज़ी से मेरी ओर बढ़ी और मुझे अपने बाहों में भर लिया। उनकी गर्म हथेलियाँ मेरी पीठ पर थी और उनका नरम, भरा हुआ सीना मेरे सीने से इस तरह सटा कि मुझे उनकी कोमलता और गर्माहट सीधा महसूस हो रही थी।
वो पल कुछ सेकंड का था, लेकिन मेरे लिए जैसे समय थम गया हो। उस पल में उनके बदन से उठती महक ने मुझे जैसे जकड़ लिया। उनकी त्वचा से आती हल्की-सी मीठी और ताज़गी भरी खुशबू, गीले फूलों और हल्के परफ्यूम जैसी लग रही थी।
घर के बाकी लोग भी उन्हें देख कर बेहद खुश थे। एक साल बाद जब वह वापस आई, तो मानो घर की रौनक लौट आई हो। मम्मी-पापा की आँखों में चमक थी, रिश्तेदार उन्हें देख कर गले मिल रहे थे, और हर कोई उनकी वापसी का जश्न मानो अपने दिल से मना रहा था।
कुछ समय सबके साथ बिताने के बाद, दीदी ने कहा कि उन्हें थोड़ा चक्कर-सा आ रहा है। लंबे सफर की थकान और सफर में हुई तकलीफ़ की वजह से उन्होंने मम्मी से कहा कि वो ऊपर अपने कमरे में जाकर थोड़ी देर आराम करेंगी। सब ने उन्हें आराम करने के लिए कहा, और वो धीरे-धीरे सीढ़ियाँ चढ़ कर अपने कमरे में चली गई।
अगली सुबह, मैं जल्दी उठ गया और बाथरूम जाने के लिए कमरे से बाहर निकला। बाहर हल्की-सी ठंडक थी और घर में सब अभी सो रहे थे। मैंने बाथरूम का दरवाज़ा हल्के से धक्का दिया, लेकिन भीतर से हल्की सी आवाज़ आई। दरवाज़ा थोड़ा सा खुला तो मेरी नज़र अंदर पड़ी।दीदी पहले से ही अंदर थी। उन्होंने सिर्फ़ शॉर्ट्स और हल्के नीले रंग की लेस वाली ब्रा पहनी हुई थी। जैसे ही उन्होंने मुझे देखा, वो एक-दम चौंक गई और जल्दी से दोनों हाथों से अपना सीना ढकने लगी।
उस पल, दरवाज़ा बंद करने से पहले, मेरी नज़र को बस एक झलक मिली। उनकी गोरी, मुलायम त्वचा और ब्रा के ऊपर से झांकते हुए उनके भरे-पूरे, गोल स्तन। मेरे दिल की धड़कन तेज़ हो गई और मैंने तुरंत दरवाज़ा बंद कर दिया, लेकिन वो पल मेरी यादों में जैसे ठहर गया।
कुछ देर बाद, वो बाथरूम से बाहर आई। अब उन्होंने एक ढीली, हल्के गुलाबी रंग की टी-शर्ट पहन ली थी, जो उनकी गीली त्वचा से हल्की-हल्की चिपक रही थी। उनके बाल अब भी गीले थे, और पानी की कुछ बूँदे उनकी गर्दन से होते हुए टी-शर्ट पर गिर रही थी, जिससे उनका रूप और भी ताज़ा और मोहक लग रहा था।
जैसे ही उन्होंने मेरा चेहरा देखा, हल्की-सी अजीब मुस्कान के साथ बोली, “रात को नींद नहीं आई तो सुबह उठ कर चेहरा धो लिया, ताकि अच्छा लगे।”
मैंने हिचकिचाते हुए उनसे माफी मांगने की कोशिश की, मगर उन्होंने हाथ उठा कर रोक दिया और हंस कर बोली, “अरे, इसकी ज़रूरत नहीं। गलती मेरी थी, मैंने दरवाज़ा लॉक नहीं किया। सोचा, इस समय तो कोई बाथरूम में आएगा ही नहीं।”
कुछ पल की चुप्पी के बाद, उन्होंने हल्का सा सिर झुका कर मुस्कुराते हुए पूछा, “लेकिन तुम इस सुबह-सुबह बाथरूम में क्या करने आ गए थे?”
मैंने हल्के स्वर में कहा, “बस ऐसे ही कुछ कपड़े खरीदने थे और मार्केट जाकर कुछ खाने-पीने का सामान लाना था। कल मम्मी ने कहा था लेकिन मैं भूल गया था, इसलिए आज सुबह जल्दी उठा।”
वो बस ‘हम्म’ कह कर हल्की मुस्कान के साथ अपने कमरे की ओर चली गई। मैं तब बाथरूम में गया, और जैसे ही अंदर कदम रखा, उनकी मौजूदगी की खुशबू अब भी हवा में बसी हुई थी। वो महक जो शैम्पू, साबुन और उनके शरीर की गर्माहट का मिला-जुला अहसास दे रही थी। मैंने गहरी सांस लेकर उसे महसूस किया, मानो वो अभी भी यहीं हो, और मेरे दिल की धड़कनें तेज हो गई।
थोडी देर बाद घर का माहौल तेज होने लगा। उस वक्त मैं बाहर जाने के लिए तैयार था लेकिन मम्मी ने कहा कि मैं अपने साथ दीपिका दीदी को भी ले जाऊं, क्योंकि उनको कुछ कपड़े खरीदने थे।
मैंने हामी भर दी और बाहर बाइक के पास इंतज़ार करने लगा। थोड़ी देर में दीदी अपने पुराने कपड़े बदल कर बाहर आई। उन्होंने नई फ़िटेड कुर्ती और जींस पहन रखी थी। कुर्ती उनकी पतली कमर और सुडौल बदन पर पूरी तरह फिट थी, जिससे उनकी चाल और भी आकर्षक लग रही थी। हल्की हवा में उनके बाल लहराए, और उनकी फिटेड कुर्ती के नीचे उभरती हुई रेखाएं और गले के पास हल्की झलक उन्हें और भी ख़ूबसूरत बना रही थी।
बाइक स्टार्ट करते ही उन्होंने पीछे बैठ कर मुझे कस कर पकड़ लिया। रास्ते पर चलते-चलते जब मैं कभी अचानक ब्रेक दबा देता, तो उनका सीना सीधे मेरी पीठ से दब जाता। उनकी छाती का पूरा दबाव मेरी पीठ पर साफ़ महसूस होता था, मुलायम और भारी, जैसे हर झटका मेरी कमर तक उतर रहा हो। इस एहसास से मुझे एक अजीब सी बेचैनी होती, जिसे समझना या छुपाना आसान नहीं था। इंजन की गड़गड़ाहट और सड़क पर हवा का शोर उस दबाव को और गहरा कर देता था।
थोड़ी देर सफ़र करने के बाद उन्होंने मेरे कान के पास झुक कर कहा, “क्यों ना आज मॉल चलते हैं? मुझे कुछ नए कपड़े खरीदने हैं।” मैंने बिना झिझक हामी भर दी और बाइक का रुख़ शहर के बड़े मॉल की तरफ़ मोड़ दिया।
हम सुबह-सुबह ही मॉल पहुँच गए थे, इसलिए वहाँ लगभग सन्नाटा था। ज़्यादातर दुकानें खुल चुकी थी, लेकिन लोग गिने-चुने ही थे। खाली गलियारों से गुज़रते हुए हम कपड़ों की दुकानों की तरफ़ बढ़े और उनके लिए सही कपड़े देखने लगे।
जब हम एक बड़े स्टोर में दाख़िल हुए और कपड़ों के सेक्शन से गुज़रते हुए अंडरगार्मेंट्स वाली शेल्फ़ के पास पहुँचे, तो उन्होंने हल्की-सी नज़र झुका ली। ब्रा और पैंटी से भरी हुई कतारों के पास से गुज़रते वक़्त उनके चेहरे पर झिझक और शरम साफ़ झलक रही थी। उन्होंने जल्दी से कदम तेज़ कर दिए, जैसे चाहती हों कि उस हिस्से से जल्द-से-जल्द निकल जाएँ।
काफी देर तक अलग-अलग ड्रेसेज़ देखने के बाद आखिरकार उन्हें एक परफ़ेक्ट ड्रेस मिल ही गई। उन्होंने उसे ट्रायल के लिए लिया और चेंजिंग रूम की ओर बढ़ गई। मैं बाहर खड़ा इंतज़ार करता रहा। कुछ मिनट बीते ही थे कि अंदर से उनकी आवाज़ आई, “ज़रा इधर आओ।” मैं हिचकते हुए परदे के पास पहुँचा।
जब मैंने धीरे से भीतर झाँका, तो देखा कि उन्होंने ड्रेस पहन ली थी, लेकिन कंधों से उनकी गुलाबी ब्रा की स्ट्रैप हल्के से झलक रही थी। वह आईने के सामने खड़ी होकर मुझसे पूछ रही थी कि ड्रेस उन पर कैसी लग रही है।
मैंने धीरे से कहा, “ड्रेस तुम्हें बहुत अच्छी लग रही है, बस ब्रा की स्ट्रैप थोड़ी दिख रही है।” यह सुन कर वह झेंप गई और तुरंत कंधे को ठीक करके स्ट्रैप को ड्रेस के अंदर छुपा लिया। उनके चेहरे पर हल्की-सी मुस्कान और शर्म की झलक थी।
कुछ देर बाद हमने बाकी ख़रीदारी भी पूरी की। कपड़ों के साथ-साथ हमने कुछ और सामान भी लिया, जो माँ ने पहले से मँगवाया था। सारी चीज़ें पैक करा कर हम मॉल से बाहर निकले और फिर बाइक पर बैठ कर घर की तरफ़ लौट आए। रास्ते में दोनों के बीच हल्की-फुल्की बातें होती रही, और थकान के बावजूद ख़रीदारी का उत्साह उनके चेहरे पर साफ़ झलक रहा था।
घर पहुँचने पर माँ रसोई में काम कर रही थी और सारे रिश्तेदार ड्रॉइंग रूम में बैठे हुए थे। मैं सीधे अपने कमरे में चला गया जबकि दीदी ने माँ की मदद के लिए रसोई का रुख़ किया।
करीब आधे घंटे बाद मैंने भी कपड़े बदल कर किचन में जाने का फैसला लिया। वहाँ पहुँच कर मैंने माँ से कहा कि वे आराम से ड्रॉइंग रूम में रिश्तेदारों के साथ बैठ जाएँ।
अब मैं और दीदी अकेले रसोई में रह गए। मैंने गैस पर रखी सब्ज़ी को हिलाना शुरू किया और दीदी ने आटा गूँधना शुरू किया। बीच-बीच में हम दोनों की नज़रें मिलतीं और बिना कुछ कहे समझ जाते कि एक-दूसरे का साथ कितना जरूरी था।
मैंने दीदी से मज़ाक में कहा, “लगता है आज खाने में नमक ज्यादा डाल दूँगा।” इस पर दीदी हल्की-सी हँसी हँस पड़ी, और माहौल कुछ हल्का हो गया।
रसोई छोटी थी, इसलिए काम करते-करते कई बार हमारा शरीर अनजाने में एक-दूसरे से छू जाता। कभी मेरा हाथ सब्ज़ी का डिब्बा लेने के दौरान उनके हाथ से टकरा जाता, तो कभी चम्मच घुमाते हुए उनकी कमर को हल्के से छू जाता। हर बार ऐसा होने पर दीदी थोड़ा झिझक जाती, उनकी आँखों में हल्की-सी शरम झलकती, और वो तुरंत नज़रें फेर लेती।
इसी बीच, एक पल ऐसा भी आया जब अनजाने में मेरा हाथ उनके सीने से छू गया। मैं हड़बड़ा गया और तुरंत पीछे हटते हुए कहा, “माफ़ करना, ये गलती से हो गया।” दीदी का चेहरा शर्म और असहजता से लाल पड़ गया, उन्होंने हल्की-सी नज़र उठाई और फिर चुप-चाप अपना ध्यान वापस आटे में लगा लिया।
शाम होते-होते खाना तैयार हो गया। सब रिश्तेदार इकट्ठा होकर बैठक में बैठ गए और हमने सब को खाना परोसा। माहौल चहल-पहल से भरा हुआ था, बच्चे हँसी-ठिठोली कर रहे थे और बड़े आपस में बातें कर रहे थे। सब ने मिल कर खाना खाया और फिर धीरे-धीरे सभी बाहर आँगन में जमा होने लगे, क्योंकि रात को आतिशबाज़ी देखने की तैयारी थी।
मैं भी सब के साथ बाहर आया, लेकिन तभी ध्यान गया कि दीदी कहीं नज़र नहीं आ रही थी। मैंने इधर-उधर देखा, पर वो दिखाई नहीं दी। थोड़ी देर बाद मैंने माँ से पूछा, “माँ, दीदी कहाँ हैं? सब बाहर आ गए, पर वो नज़र नहीं आ रही।” माँ ने धीमे से जवाब दिया, “वो अपने कमरे में हैं, शायद थक गई हो।”
ये सुनकर मैं सीढ़ियाँ चढ़ कर उनके कमरे की ओर बढ़ा। दरवाज़ा आधा-सा खुला था। मैंने झाँक कर देखा तो पाया कि दीदी आईने के सामने खड़ी थी और अपने कपड़े की पिछली ज़िप बंद करने की कोशिश कर रही थी। वो बार-बार हाथ ले जाकर खींचतीं, मगर पहुँच नहीं पा रही थी। उनकी भौंहों पर हल्की-सी परेशानी झलक रही थी।
मुझे देखते ही उनके चेहरे पर एक तरह की राहत आई। उन्होंने हल्की मुस्कान के साथ कहा, “अच्छा हुआ तुम आ गए… ज़रा मदद कर दो, ये पीछे की चेन बंद नहीं हो रही।”
मैं उनके पास गया और धीरे से उनकी मदद करने लगा, मगर चेन कपड़े के कुछ धागों में फंस गई। मैंने ध्यान से खींचा, पर धागों ने चेन को कस कर पकड़ रखा था। दीदी ने हल्का सा कराहते हुए कहा, “ध्यान रखना, कहीं कपड़ा टूट ना जाए।”
काफी कोशिशों के बावजूद चेन फंसी हुई थी और मैं इसे बंद नहीं कर पा रहा था। मैंने धीरे से सुझाव दिया, “शायद तुम यह ड्रेस बदल लो, आसान रहेगा।”
दीदी ने सिर हिलाया और मुस्कराते हुए कहा, “नहीं, मैं यही ड्रेस पहनना चाहती हूँ। बस थोड़ी और कोशिश करो।”
मैंने फिर एक और सलाह दी, “तो शायद ड्रेस उतार कर इसे आसानी से लगाकर देखो।”
दीदी ने हल्की हँसी के साथ कहा, “मैंने पहले भी ऐसा किया, लेकिन फिर भी चेन नहीं बंद हो रही।” फिर उन्होंने मेरी तरफ देखा और धीरे से कहा, “तुम मेरी मदद कर दो। तुम मेरे छोटे भाई हो, इसलिए अगर मैं तुम्हारे सामने ड्रेस खोलूं तो यह अजीब नहीं लगेगा।”
फिर उन्होंने धीरे-धीरे अपनी ड्रेस को उतारना शुरू किया। दोनों हाथों से ड्रेस की स्ट्रैप्स पकड़ी और उन्हें कंधों से नीचे खींचा। ड्रेस धीरे-धीरे उनकी बाजुओं और कूल्हों के नीचे से सरकती हुई सिर के ऊपर से बाहर चली गई। अब वह पूरी तरह अपने कमरे में केवल गुलाबी ब्रा में खड़ी थी।
गुलाबी ब्रा एक हल्की, सिल्की और फिटिंग डिज़ाइन की थी, जो उनके स्तनों को पूरी तरह कवर करते हुए भी उनका आकार स्पष्ट रूप से उभार रही थी। ब्रा की पतली स्ट्रैप्स कंधों पर हल्की दबाव डाल रही थी और हर हल्की हरकत में उनके सख्त स्तन धीरे-धीरे हिल रहे थे। हल्की रोशनी में उनके कपड़े के पार उनके निपल्स की हल्की झलक साफ़ महसूस हो रही थी।
मैंने धीरे से उनकी ड्रेस उठाई और चेन को सही करने की कोशिश शुरू की। धागों और सिलाई के बीच चेन को समेटते हुए, मैं धीरे-धीरे उसे जगह पर फिट करने लगा। कुछ समय की मेहनत और ध्यान के बाद आखिरकार चेन सही ढंग से बंद हो गई। मैंने ड्रेस वापस दी और दीदी ने इसे ध्यान से पहना। ड्रेस उनके शरीर पर फिर से फिट हो गई।
दीदी अब और भी खुश महसूस कर रही थी। मैं कमरे से बाहर जाने ही वाला था कि उन्होंने मेरा हाथ हल्के से पकड़ लिया और मुस्कराते हुए कहा, “जब मैं मुंबई में पढ़ाई कर रही थी, मैं अक्सर तुम्हें याद करती थी… लेकिन अपने छोटे भाई की तरह नहीं, इसलिए हर बार जब हम मिलते हैं, मुझे थोड़ी शर्म आती है। तुम्हारे साथ यह एहसास हमेशा थोड़ा अलग रहता है।”
मैं उनकी बातें सुन कर समझ नहीं पाया कि वे क्या कहना चाह रही थी। उन्होंने धीरे-धीरे कोशिश की, अपनी भावनाओं और उस खास एहसास को समझाने की, लेकिन मेरी समझ में अभी भी पूरी तरह नहीं आया कि वे मुझसे क्या कहना चाहती थी।
तभी अचानक दीदी खामोश हो गई, और बिना कोई शब्द कहे उन्होंने मेरे होंठों पर अपना होंठ रख दिया। उनका स्पर्श नरम, गर्म और हल्की नमी से भरा था। मैंने महसूस किया कि उनके होंठ धीरे-धीरे मेरे होंठों के साथ मेल खाते हुए एक गहरे रोमांच का एहसास दे रहे थे। उनकी जीभ ने मेरे होंठों के बीच घुस कर धीरे से मेरी जीभ को छुआ, और मैं महसूस कर सका कि हम दोनों की लारें हल्की-हल्की मिल रही थी।
उनका चुंबन रोमांटिक और कामुक था, हर एक स्पर्श और हल्की नमी मेरे पूरे शरीर में एक गर्माहट फैला रही थी। उनके होंठ और जीभ मेरे होंठों और जीभ के साथ खेल रहे थे, हर पल घुलते हुए और मुझे पूरी तरह उनकी नज़दीकी में डूबा हुआ महसूस करा रहे थे।
तभी हमें किसी की आवाज सुनाई दी और हमने तुरंत किस रोक दिया। दीदी ने मेरी ओर देखा, फिर एक आखिरी बार अपने होंठ मेरे होंठों पर रखे और हल्के से काटा, जैसे थोड़ी शरारत छोड़ते हुए मुझे छोड़ रही हो। उसके बाद वह मुस्कुराई और कमरे से बाहर चली गई। अगला पार्ट चाहिए तो बताएं [email protected]
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