पिछला भाग पढ़े:- उस रात दीदी ने चखाया अपना गीलापन-5
भाई-बहन सेक्स कहानी अब आगे-
सुधा दीदी और मैं चांदनी में दुल्हन का चेहरा देखने लगे। वह हम दोनों को गुस्से से घूर रही थी। वैसे भी हम दोनों को दुनिया का कोई भी इंसान उस हालत में पकड़ लेता, तो हम पर गुस्सा हो जाता। हम दोनों भाई-बहन थे, और इस तरह की हरकत करना किसी को भी अजीब लगता। पर हम दोनों के लिए यह एक-दूसरे का प्यार था। हमें नहीं पता था कि दुल्हन से क्या कहें, और यही हाल मेरी दीदी का भी था।
दुल्हन ने एक बार फिर हमसे पूछा कि हम क्या कर रहे थे। लेकिन इस बार उसके शब्दों में पहले से कहीं अधिक गुस्सा झलक रहा था।
मैंने बात शुरू करने की कोशिश की, “हम दोनों कुछ भी नहीं कर रहे थे… बस ऐसे ही…”
लेकिन मेरी बात पूरी होने से पहले ही दुल्हन ने हाथ उठा कर मुझे रोक दिया और मेरे पास आकर धीमे से फुसफुसाई, “झूठ मत बोलो। मैंने सब देखा है, तुम दोनों क्या कर रहे थे। यह गलत है… भाई-बहन के बीच ऐसा नहीं होना चाहिए।”
उसकी आवाज़ से पास ही छत पर सोए हुए हमारे कुछ चचेरे भाई-बहन करवट लेने लगे। छत छोटी थी, सब एक-दूसरे के पास ही सोए हुए थे। तभी उनमें से एक ने उनींदी आँखें खोलते हुए पूछा, “क्या हुआ ऊपर? इतनी आवाज़ क्यों आ रही है?”
दुल्हन ने तुरंत मुस्कुराने की कोशिश की और ऊँची आवाज़ में बोली, “कुछ नहीं हुआ, बस हम लोग वैसे ही बातें कर रहे थे। तुम सब सो जाओ।” इतना कह कर वह धीरे-धीरे छत के दूसरे कोने की ओर चली गई, जैसे कुछ हुआ ही न हो।
उसके जाते ही धीरे-धीरे सब फिर से सोने लगे। लेकिन मैं और सुधा दीदी वहीं छत पर लेटे हुए थे। हम दोनों की आँखों में नींद नहीं थी। हमें डर लग रहा था। अभी-अभी जो हुआ, अगर किसी और ने देख लिया होता तो क्या होता? और आगे हमसे क्या गलती हो सकती है? इन खयालों के साथ हम चुप-चाप करवट बदलते रहे और एक-दूसरे की तरफ देखने से भी कतराते रहे।
सुबह का उजाला फैला तो सब कुछ सामान्य लगने लगा। पंछियों की आवाज़, चाय की महक और घर में हलचल से माहौल बदल गया था। तभी दुल्हन ने हम दोनों को इशारे से बुलाया और कहा, “मेरे कमरे में आओ, मुझे तुम दोनों से कुछ ज़रूरी बात करनी है।”
हम दोनों धीरे-धीरे उसके कमरे में गए। जैसे ही हम अंदर पहुँचे, दुल्हन ने दरवाज़ा बंद कर दिया। उसने हमें इशारा किया कि बिस्तर पर बैठ जाएँ। मैं और सुधा दीदी चुप-चाप जाकर पलंग पर बैठ गए, जबकि दुल्हन हमारे सामने खड़ी रही, जैसे वह कुछ बड़ा कहने वाली हो।
दुल्हन ने गहरी साँस ली और कहना शुरू किया, “जो तुम दोनों कल रात कर रहे थे, वो ठीक नहीं है… ये रिश्ते के ख़िलाफ़ है।”
लेकिन तभी सुधा दीदी ने उसकी बात बीच में काट दी और शांत स्वर में बोली, “हमें पता है हम क्या कर रहे हैं। यह हमारे लिए गलत नहीं है। हम दोनों ने इसे समझ कर ही अपनाया है।”
दुल्हन ने सख़्ती से जवाब दिया, “चाहे तुम दोनों इसे सही मानो या गलत, लेकिन सच यही है कि तुम भाई-बहन हो। और भाई-बहन के बीच ऐसा रिश्ता कभी भी सही नहीं हो सकता।”
सुधा दीदी ने धीरे से मेरे चेहरे को अपने हाथों में लिया और मेरी आँखों में देख कर मुस्कराई। फिर उसने अपने होंठ मेरे होंठों पर रख दिए। उनका किस्स नरम, गर्म और धीमा था, जैसे हर स्पर्श में चाहत और रोमांस का मिश्रण हो। मैं पलंग पर बैठा हुआ उनका स्पर्श महसूस कर रहा था। उनकी उंगलियाँ मेरे गालों पर हल्की-हल्की सरसराहट कर रही थी। उनका शरीर मेरे करीब था और उनके स्तन मेरे सीने से टकरा रहे थे।
यह किस्स इतनी मधुर और गहराई से भरी थी कि पलंग पर बैठा हुआ मैं पूरी तरह उस पल में खो गया। उनके होंठ मेरे होंठों के साथ जुड़ते और अलग होते रहे, दोनों की सांसें एक साथ मिल रही थी, और हर स्पर्श में एक अजीब रोमांच और नज़दीकी का एहसास था।
तभी दुल्हन ने अचानक बीच में हमारी ओर इशारा किया और कहा, “रुको! तुम दोनों क्या सोच रहे हो? तुम दोनों को समझना होगा कि यह सही नहीं है।” उसने गंभीर आँखों से हमें घूरते हुए सवाल किया, जैसे वह हमारी हरकतों के पीछे का कारण जानना चाहती हो। हमें एक पल के लिए चुप्पी छा गई, और पलंग पर बैठा हुआ मैं उनके शब्दों को महसूस करते हुए सोच में पड़ गया कि भाई बहन का इस तरह का रिश्ता आखिर क्यों गलत है?
सुधा दीदी ने दुल्हन की तरफ देखा और धीरे से कहा, “यह गलत नहीं है। हमें भले ही भाई-बहन बन कर पैदा किया गया हो, लेकिन हम एक-दूसरे से प्यार करते हैं। और प्यार में कोई गलती नहीं होती। चाहे वह सिर्फ़ एक किस्स हो या इसके आगे का रिश्ता, सब में सच्चाई और भावना है।” उसने अपनी बात को मजबूती से कहते हुए मेरी ओर देखा और फिर मुस्कुराई।
उसकी बातें सुन कर मुझे भी हिम्मत मिली। धीरे-धीरे मैंने अपना हाथ उसके स्तनों पर रखा और हल्के से दबाने लगा। मेरा इरादा सिर्फ़ यह दिखाना था कि मैं भी उसके प्यार और नज़दीकी को महसूस करना चाहता था। सुधा दीदी ने मेरी ओर देखा और मुस्कान के साथ मेरी प्रतिक्रिया को स्वीकार किया।
दुल्हन सब कुछ देख रही थी, उसके चेहरे पर हैरानी और सदमे की झलक थी। उसकी आँखें बड़ी हो गई थी और उसने बस खड़ी होकर हमारी हरकतों को देखा, जैसे उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि यह सब सामने हो रहा है।
सुधा दीदी ने दुल्हन की हैरान आँखों की ओर देखा और धीरे से बोली, “कोई भी इसे समझ नहीं पाएगा, लेकिन हम सिर्फ भाई-बहन नहीं हैं। हम इस रिश्ते के लिए पैदा हुए हैं।” उसने मेरी तरफ़ देखते हुए मुस्कान दी और मेरा हाथ अपने स्तनों पर महसूस करते हुए उसे सहमति दी।
थोड़ी देर बाद दुल्हन कमरे से बाहर चली गई। जैसे ही उसने दरवाज़ा बंद किया, हम दोनों एक-दूसरे की आँखों में देखने लगे और हंस पड़े, जैसे हमने कोई बड़ी जीत हासिल कर ली हो। हम जानते थे कि दुल्हन हमारे इस रिश्ते के बारे में किसी को नहीं बता सकती और यह बात उसके लिए भी मुश्किल थी। इसी समझ और सुरक्षा की भावना के बीच हम एक-दूसरे की ओर झुके और फिर से गहरी, रोमांचक किस्स करने लगे, यह जानते हुए कि हमारे प्यार का यह पल सिर्फ़ हमारे लिए है और कोई इसे रोक नहीं सकता।
कल शादी का दिन था, इसलिए आज रात सभी ने मिल कर जश्न मनाना शुरू कर दिया। घर के सामने सभी लोग इकट्ठा हुए और हल्दी की रस्म मना रहे थे। मैं पहले से ही हल्दी इवेंट में पहुँच कर इंतजार कर रहा था। सुधा दीदी कमरे में कपड़े बदल रही थी। थोड़ी देर बाद वह तैयार होकर इवेंट में आई। पीले और नारंगी रंग का हल्दी लहंगा उनके शरीर पर खूबसूरती से फिट था।
लहंगे की हल्की फैब्रिक उनके स्तनों और हिप्स की सुंदर आकार को सहज रूप से उभार रही थी। उनकी कमर स्लिम और सजीव दिख रही थी, और लहंगे के डिज़ाइन की सजावट उनके कंधों और हाथों पर चमक रही थी। हर कदम पर उनका चाल-चलन मोहक लग रहा था, और हल्दी के रंग में उनकी त्वचा पर नरमी और गर्माहट का एहसास हो रहा था। उनके बाल खुले और सजे हुए थे, चेहरे पर हल्की मुस्कान और आँखों में चमक, पूरे हल्दी समारोह में उनकी सुंदरता और आकर्षण को बढ़ा रही थी।
जब हम दुल्हन के पास पहुंचे और हल्दी लगाने लगे, तो दुल्हन ने हमारी तरफ गुस्से भरी नजरों से देखा। लेकिन हमने उसे नजरअंदाज किया और हँसते हुए हल्दी की रस्म का मजा लिया। तभी डीजे ने संगीत चालू किया, और हम दोनों ने एक-दूसरे का हाथ थाम कर डांस करना शुरू कर दिया।
कुछ ही देर में हमारे कुछ चचेरे भाई और रिश्तेदार भी डांस में शामिल हो गए। सभी हँसी-खुशी और संगीत के ताल पर झूम रहे थे। डांस करते हुए मेरा हाथ कभी-कभी सुधा दीदी के शरीर के कुछ हिस्सों को छू जाता। कभी यह पूरी तरह से गलती से होता, तो कभी मैं जान-बूझ कर उसे महसूस करने के लिए अपने हाथ की दिशा बदलता। वह मुस्कराते हुए मेरी तरफ देखती और मुझे रोकने की बजाय अपने आप में उस नज़दीकी का मजा लेती।
थोड़ी देर बाद, सुधा दीदी ने धीरे से कहा, “मुझे थोड़ा अजीब महसूस हो रहा है, मुझे कुछ समय के लिए ब्रेक चाहिए।”
चूंकि घर में बाकी कमरे भरे थे, इसलिए हम दोनों ब्रेक लेने के लिए दुल्हन के कमरे की ओर चले गए। वह थोड़ी हिचकिचाते हुए बोली, “इस समय सिर्फ यही कमरा खाली है, मुझे बस कुछ समय आराम चाहिए।” हम चुप-चाप कमरे में गए।
सुधा दीदी बिस्तर पर लेट गई और आँखें बंद कर लीं। हर सांस के साथ उनके स्तन हल्के से ऊपर-नीचे हो रहे थे, और उनके शरीर की हर हलचल उनके सीने के गोलाई को और भी स्पष्ट कर रही थी। हल्की सी पसीने की बूंद उनके होंठों पर झलक रही थी, जिससे उनकी थकान और गर्मी की झलक दिखाई दे रही थी।
मैं धीरे-धीरे कमरे से बाहर जाने लगा, लेकिन सुधा दीदी ने मुझे रोक दिया। थोड़ी शर्मीली सी मुस्कान के साथ उन्होंने कहा, ” इतना जल्दी क्यों जा रहा है? तुम्हारी दीदी अभी थोड़ा थकी हुई है, क्या तुम कुछ कर सकते हो?”
मैंने चौंक कर पूछा, “क्या ?”
सुधा दीदी ने धीरे से अपने हाथ फैलाए और मुझे अपने पास आने का इशारा किया। उनका शर्मीला चेहरा हल्की मुस्कान से झिलमिला रहा था। मैं उसके पास गया और वह अपने हाथ मेरे कंधों पर रख कर मुझे धीरे से अपने ऊपर लेटने का संकेत देने लगी। मैं उसके शरीर के ऊपर लेट गया, और वह मुस्कराते हुए मेरी पीठ पर अपने हाथ रख कर मुझे अपनी तरफ खींचती रही। उसके स्तन मेरे सीने के साथ हल्के से दब रहे थे, उनकी नरमी और गर्माहट हर सांस के साथ महसूस हो रही थी।
फिर सुधा दीदी ने मेरे होंठों की ओर झुकते हुए मुझे धीरे से चुमना शुरू किया। मैं तुरंत उसे सपोर्ट करने लगा, और हमारे जुड़ते होंठों के बीच उनकी जीभ धीरे-धीरे मेरी जीभ को छूने लगी। हर स्पर्श में गर्माहट और हल्की नमी थी। उनकी जीभ और मेरी जीभ का मिलना हमें और भी करीब ला रहा था। मैं उनके होंठों का स्वाद ले रहा था, जिसमें हल्की-हल्की उनकी लिपस्टिक की मिठास भी शामिल थी।
जैसे-जैसे किस्स गहराती गई, मैंने धीरे-धीरे अपने हाथ उनके स्तनों की ओर बढ़ाए। उनके कपड़े की फैब्रिक के नीचे उनके स्तनों की नरमी और उभार मेरी हथेली में पूरी तरह महसूस हो रहा था। हर स्पर्श के साथ उनका ताप, हल्की नर्मी और हल्की भार वह महसूस करा रही थी कि जैसे शरीर और दिल एक-दूसरे के साथ पूरी तरह जुड़ गए हों। उनके स्तन मेरे हाथ में सिकुड़ते और फैलते महसूस हो रहे थे, और यह स्पर्श हर पल मुझे और अधिक रोमांचित कर रहा था, जैसे हर सांस और हर दबाव का असर मेरे पूरे शरीर में फैल रहा हो।
थोड़ी देर बाद, दीदी ने धीरे-धीरे किस्स रोक दी और शर्मीली सी आवाज़ में मुझसे पूछा, “क्या मैं… तुम्हारे लंड को चख सकती हूँ?” उसका चेहरा हल्का लाल था और आँखों में झिझक के साथ उत्सुकता झलक रही थी।
मैंने उसे देखा और महसूस किया कि वही शरम, जो दीदी को कुछ साल पहले छोटे शॉर्ट्स पहनने में होती थी और मेरे सामने शर्माती थी, आज पूरी तरह प्यार और चाहत में बदल गई है। अब वह खुले दिल से मेरे सामने आ रही थी और सीधे तौर पर पूछ रही थी कि क्या वह मेरे लंड को चख सकती है और उनका इस तरह कहना मुझे प्यारा लग रहा था।
मैं बिस्तर पर धीरे-धीरे लेट गया और अपने जीन्स उतार दिए। जैसे ही मैं अपनी अंडरवियर खोलने की कोशिश करने लगा, दीदी ने मुझे रोकते हुए हल्की शर्मीली मुस्कान के साथ पूछा, “क्या मैं इसे कर सकती हूँ?” उसकी यह बात सुन कर मैं पलंग पर पूरी तरह आराम से लेट गया और उसके सामने पूरी तरह सहज महसूस करने लगा।
दीदी ने धीरे-धीरे मेरी अंडरवियर उतारी और मेरी ओर देखा। उसका चेहरा लाल था और उसकी आँखों में हल्की शरम और उत्सुकता झलक रही थी। जब उसने मेरा लंड देखा, तो वह मुस्कराई, लेकिन उसकी शर्म अभी भी दिखाई दे रही थी। उसने अपने उंगलियों से धीरे-धीरे उसे छुआ। उस हल्की सी छुअन ने मेरे शरीर में गर्माहट और उत्तेजना फैला दी। हर स्पर्श मेरे लिए नया और रोमांचक था, और मैं उसकी हाथ की नर्मी से पूरी तरह खुश महसूस कर रहा था।
कुछ ही पल बाद, दीदी ने शर्मीली मुस्कान के साथ कहा, “मैं तुम्हें प्यार करती हूँ।” और उसके लाल होंठ मेरे लंड को धीरे-धीरे चूमने लगे। जब उसके लिपस्टिक भरे होंठ मेरे लंड को छूते, तो मुझे बेहद अच्छा लग रहा था। उसकी जीभ और होठों की गर्माहट ने मेरे शरीर में रोमांच की लहरें फैला दीं।
फिर दीदी ने धीरे-धीरे अपने हाथ से मेरे लंड पर कुछ हल्की-हल्की स्ट्रोक्स देना शुरू किया। उसकी नर्म उंगलियों और हाथ के स्पर्श से मेरा लंड पूरी लंबाई में सख्त हो गया। उसकी यह हरकत मेरे लिए बेहद उत्तेजक और सुखद थी, और मैं पूरी तरह उसके स्पर्श और चाहत में खो गया।
कुछ पल बाद, दीदी ने हल्की शर्म के साथ पूछा, “क्या मैं इसे चूस सकती हूँ?”
मैं मुस्कराया और कहा, “तुम्हारा मुंह फूलों से भी बेहतर है, दीदी। तुम चूस सकती हो।” मेरी यह बात सुन कर वह मुस्कुराई और मेरे लंड को धीरे-धीरे अपने होंठों में ले लिया।
दीदी ने अपने होंठों और जीभ का इस्तेमाल करते हुए उसे धीरे-धीरे चूसना शुरू किया। उसकी जीभ के हल्के स्पर्श और गर्माहट ने मेरे पूरे शरीर में रोमांच फैला दिया। जब उसकी जीभ मेरे लंड के चारों ओर घूमती, तो मुझे उसके स्पर्श की गहराई और उसकी चाहत का अहसास हुआ।
धीरे-धीरे, उसने अपनी गति और गहराई बढ़ाई, अपने मुंह को धीरे-धीरे ऊपर-नीचे मूव करते हुए, ताकि मैं हर स्पर्श महसूस कर सकूँ। बीच-बीच में वह रुकती, मुझे देखती और शर्मीली मुस्कान के साथ पूछती, “मैं अच्छा कर रही हूँ ना?” इस तरह उसकी नजरों और हल्की मुस्कान ने मेरे उत्तेजना को और बढ़ा दिया।
जैसे-जैसे उसने धीरे-धीरे चूसना जारी रखा, मैं महसूस कर सकता था कि मेरा लंड उसके मुंह में और ज्यादा सख्त हो गया। कभी-कभी उसका मुंह पीछे तक तक जाता और उसकी जीभ के पीछे का स्पर्श मेरे लंड के टॉप पर महसूस होता। कभी-कभी वह हल्की गलती से उसके दांत मेरे लंड को छू लेते, जिससे हल्की चौंक और रोमांच पैदा होता। उसकी मासूम लेकिन जान-बूझ कर की गई हर हरकत ने मुझे और उत्तेजित कर दिया।
उस दौरान हमें एहसास हुआ कि कमरे के बाहर कुछ लोग थे। यह सुन कर हमारी धड़कनें तेज हो गई और हल्का डर भी महसूस हुआ। लेकिन दीदी ने अपना मुंह नहीं रोका; वह जैसे अपने काम में पूरी तरह लग गई थी, यह जान कर कि उसका काम सिर्फ़ अपने भाई को खुश करना था।
धीरे-धीरे, दीदी ने अपनी गति बढ़ानी शुरू की। उसका मुंह और हाथ दोनों ही अधिक तेज हो गए। मैं अपनी सीमा तक पहुँच चुका था और तेज़ी से बढ़ती आग के बीच मैंने पूछा, “क्या मैं अब तुम्हारे चेहरे पर कर सकता हूँ?” दीदी ने शर्मीली मुस्कान के साथ इजाजत दे दी।
फिर दीदी बिस्तर पर लेटी और मैं उसके शरीर पर बैठ गया। मेरा लंड धीरे-धीरे उसके होंठों और चेहरे से रगड़ने लगा।उसने हाथों से मुझे कुछ हल्के स्ट्रोक्स देना शुरू किए। उसकी यह हरकत मेरे उत्तेजना को और बढ़ा रही थी। मेरी सीमा के पास पहुंचते ही, मैंने उसे बताया कि मैं अब अपने आप को रोक नहीं सकता और उसके चेहरे पर खत्म करना चाहता हूँ।
जैसे ही मैंने अपनी इच्छा पूरी करना शुरू किया, मेरी पहली बूंद उसके होंठों को छू गई, जिससे वह हल्की सी चौंकी और मुस्कुराई। अगली बूंद उसकी ठोड़ी और गालों पर गिरी, धीरे-धीरे चेहरे को ढकते हुए। फिर मेरी सारी तरलता उसकी आँखों, गालों, होंठों और ठोड़ी पर फैल गई, उसके चेहरे को पूरी तरह ढकते हुए। उसके होंठ, गाल, और माथा मेरी गर्म रवानगी से सने हुए थे, और उसकी त्वचा पर मेरी गर्मी का पूरा एहसास हो रहा था। दीदी ने इसे सहते हुए हल्की मुस्कान दी, और उसका पूरा चेहरा मेरी तरलता से पूरी तरह सना हुआ था।
इसके बाद, मैं धीरे-धीरे उसके शरीर से उठ खड़ा हुआ। दीदी मेरी ओर मुस्कुराती हुई देख रही थी। कुछ पल के लिए, वह मुस्कान के साथ मेरे और देखती रही और फिर उसे याद आया कि कुछ बूंदें अभी भी उसके होंठों पर थी। उसने अपनी उंगलियों की मदद से उन बूंदों को चखा और शरम के साथ कहा, “यह बहुत अच्छा है।”
उसके यह कदम देख कर मैं थोड़ी शर्म महसूस करने लगा। दिल में एक अजीब सी घबराहट हुई क्योंकि मैं समझ रहा था कि यह अब सिर्फ भाई-बहन का रिश्ता नहीं रहा; यह हमारी सीमा से कहीं ज्यादा गहरा हो चुका था।
तभी अचानक कमरे का दरवाजा जोर से खटखटाया गया। हमारी सांसें अटक गई और हम दोनों ने एक-दूसरे की ओर देखा। मम्मी की आवाज सुनाई दी, “सुधा! गोलू! तुम लोग कमरे में क्या कर रहे हो?” हमारा दिल धक-धक करने लगा और हम समझ गए कि अब छिपने या जल्दी संभालने का समय आ गया है। अगला पार्ट चाहिए तो [email protected]
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अगला भाग पढ़े:- उस रात दीदी ने चखाया अपना गीलापन-7