पिछला भाग पढ़े:- जब दीदी ने खुद को मेरे सामने खोला-3
भाई-बहन सेक्स कहानी अब आगे-
अगले कुछ दिन में वाणी दीदी और मेरे बीच पहले जैसा कुछ भी नहीं रहा। वो लगातार मुझे अपनी ओर खींचने की कोशिश करती रही। कभी गहरी नेकलाइन वाले कपड़े पहन कर सामने आती। कभी जान-बूझ कर अपनी पीठ दिखाती। तो कभी छोटी ड्रेस में मेरे सामने इधर-उधर घूमती। उनकी हर हरकत में मुझे रिझाने की कोशिश साफ़ नज़र आती थी।
लेकिन मैं उनसे नज़रें चुरा कर निकल जाता। उनके करीब आने के बजाय और दूरी बना लेता। मेरे अंदर अब भी गुस्सा था उनकी उन हरकतों पर, उस पल पर, और शायद खुद पर भी। वो चाह कर भी मुझे रोक नहीं पा रही थी, क्योंकि इस बार मैंने ठान लिया था कि उनकी सारी कोशिशों को नज़र-अंदाज़ करना है।
एक दिन उन्होंने हिम्मत करके सीधे मुझसे बात करने की कोशिश की। मेरे पास आकर बोली, “मुझसे नाराज़ हो क्या? ज़रा सुन तो लो…” उनकी आवाज़ में अपनापन था, लेकिन मैं फिर भी चुप रहा। मैंने नज़रें फेर ली और जैसे कुछ सुना ही ना हो। उनके शब्द हवा में अधूरे लटक गए और मैं उन्हें पूरी तरह नज़र-अंदाज़ करके आगे बढ़ गया।
उस रात, जब मैं अपने कमरे में बिस्तर पर लेट कर किताब पढ़ रहा था, तभी दरवाज़ा धीरे-धीरे खुला। मैंने सिर उठा कर देखा तो वाणी दीदी अंदर आ रही थी। उनकी चाल बेहद धीमी थी, मानो डर रही हों कि कहीं मैं उन्हें रोक ना दूँ। वो बिना कुछ कहे मेरे पास आकर खड़ी हो गई और मुझे पढ़ते हुए चुप-चाप देखने लगी।
उस रात उन्होंने एक बेहद छोटी ड्रेस पहन रखी थी। हल्की रोशनी में उनका पूरा शरीर और भी उभर कर दिखाई दे रहा था। ड्रेस इतनी टाइट थी कि उनके भरे-पूरे स्तन साफ़ झलक रहे थे। कपड़े के अंदर से उनकी गोलाई और उभार साफ़ दिखाई दे रहे थे। उनकी पतली कमर और नंगे पैरों की चमक उस माहौल को और भी भारी बना रही थी। उनकी हर साँस के साथ ड्रेस उनके शरीर से चिपकती जा रही थी, मानो वो खुद को मुझसे छुपाना नहीं चाहती थी बल्कि दिखाना चाहती थी।
धीरे से उन्होंने मेरी किताब बंद कर दी और धीमी आवाज़ में बोली, “तुम मुझसे इतने गुस्से में क्यों हो? मैंने क्या ग़लत किया? मैंने बस एक बॉयफ्रेंड बनाया था… इसमें बुरा क्या है? हर लड़की को हक़ है अपनी पसंद से जीने का।” उनकी आँखों में बेबसी और सवाल दोनों थे, जैसे वो चाह रही हों कि मैं उनका दर्द समझूँ।
उनकी बात सुन कर मेरे भीतर कई भाव एक साथ उमड़ पड़े। हाँ, उन्होंने बॉयफ्रेंड बनाया था। पर मुझे तकलीफ़ इस बात से थी कि हमारे बीच का रिश्ता आखिर क्या था? अगर वो सिर्फ़ मेरी बहन थी, तो मुझे क्यों जलन हो रही थी? और अगर हमारे बीच कुछ और था, तो फिर ये कैसा रिश्ता था? मेरे मन में सवालों का तूफ़ान था। मैं खुद नहीं समझ पा रहा था कि उनका बॉयफ्रेंड बनाना गलत था या मेरा ऐसा महसूस करना।
आख़िरकार मैंने चुप्पी तोड़ी। मेरी आवाज़ भारी थी लेकिन सच्चाई से भरी हुई, “वाणी दीदी… मुझे तकलीफ़ तुम्हारे बॉयफ्रेंड से नहीं है। तकलीफ़ मुझे इसलिए है क्योंकि मैं तुम्हें चाहता हूँ… तुम्हें प्यार करता हूँ। जब तुम किसी और के साथ होती हो तो दिल में एक अजीब सा दर्द होता है।”
मेरे ये शब्द सुनते ही वाणी दीदी और करीब आ गई। उन्होंने मेरा हाथ अपने हाथों में लिया, धीरे से उठाया और उसे अपने सीने पर रख दिया। मेरे हथेली के नीचे उनके स्तनों की नरमी और गर्माहट महसूस होते ही मेरा दिल ज़ोरों से धड़कने लगा।
वो मेरे कान के पास झुक कर फुसफुसाई, “देखो… हम चाहें तो एक-दूसरे के साथ रह सकते हैं, चाहें तो एक-दूसरे के साथ सो भी सकते हैं। लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि मैं अपनी ज़िंदगी में कोई और फैसला नहीं ले सकती। बॉयफ्रेंड बनाना मेरी पसंद है, और तुम्हारे लिए मेरे दिल में जो जगह है… वो उससे अलग है।”
इतना कह कर उन्होंने धीरे से मेरा हाथ अपने सीने से हटाया और उसे नीचे, अपने जाँघों के बीच, कपड़े के ऊपर अपने सबसे निजी हिस्से पर रख दिया। मेरी हथेली वहाँ पहुँचते ही मेरे पूरे शरीर में बिजली दौड़ गई।
मैंने कांपती आवाज़ में कहना शुरू किया, “वाणी दीदी… मुझे सबसे बुरा इस बात से लगता है कि तुम किसी और के साथ सो सकती हो। मैं चाहता हूं कि तुम्हारे साथ सेक्स करने वाला लड़का सिर्फ मैं रहूं।”
ये कहते ही दीदी अचानक मुझ पर झुक गई और मुझे बिस्तर पर धक्का देकर मेरे ऊपर लेट गई। उनका पूरा शरीर मेरे शरीर से सट गया। उनके भरे-पूरे स्तन मेरे सीने पर दब रहे थे, इतनी मजबूती से कि मैं उनकी गर्माहट और मुलायम-पन दोनों एक साथ महसूस कर पा रहा था। उनकी साँसें मेरे चेहरे से टकरा रही थी और उनका सीना मेरे सीने के साथ हर धड़कन पर उठ-गिर रहा था।
धीरे से उन्होंने मेरे कान में कहा, “अगर कोई मेरे साथ सो सकता है, तो वो सिर्फ़ मेरा छोटा भाई ही होगा… कोई और नहीं।”
अगले ही पल उनके होंठ मेरे होंठों से आ मिले। उनका किस्स बेहद धीमा और गीला था, लेकिन उसमें ऐसी गर्माहट थी जिसने मेरे पूरे जिस्म को हिला दिया। उनके नर्म होंठ मेरी साँसों से मिल कर मुझे अंदर तक सिहरन दे रहे थे। हर हल्की हरकत पर मेरा दिल और तेज़ धड़कने लगता।
वो पूरी तरह मेरे ऊपर लेटी थी। उनका बदन मेरे बदन से चिपक गया था। उनके भरे-पूरे स्तन कपड़ों के ऊपर से मेरे सीने पर दबे हुए थे। उनकी गर्मी और नरमी मुझे पागल कर रही थी। हर धड़कन पर उनका सीना मेरे सीने से रगड़ खाता और मुझे ऐसा लगता मानो मैं किसी और ही दुनिया में पहुँच गया हूँ।
उनकी साँसें मेरे गालों पर लग रही थी और उनका चेहरा इतना पास था कि मैं उनकी आँखों की चमक साफ़ देख पा रहा था। मैं अब भी अंदर से उन पर गुस्सा था, लेकिन जब उन्होंने धीरे से कहा कि अगर कोई उनके साथ हो सकता था, तो वो सिर्फ़ उनका छोटा भाई था।
मेरे दिल की सारी कड़वाहट जैसे पल भर में पिघल गई। उस पल में मुझे इतना अच्छा लगा कि मैंने भी उन्हें कस कर पकड़ लिया और उनके होंठों को फिर से चूमना शुरू कर दिया। मेरे होंठ जैसे ही उनके होंठों पर दुबारा टिके, मेरी ज़ुबान धीरे-धीरे उनके मुँह के भीतर चली गई। उनकी ज़ुबान मेरी ज़ुबान से टकराई और दोनों आपस में लिपट गई।
हर स्पर्श पर एक मीठी सनसनी मेरी रीढ़ में दौड़ जाती। उनकी लार का स्वाद मेरी ज़ुबान पर फैल गया, गीला और गर्म एहसास मुझे और दीवाना बना रहा था। हमारी साँसें एक-दूसरे में घुल चुकी थी और वो पल इतना गहरा था कि मानो हम दोनों एक-दूसरे का हिस्सा बन गए हों।
इसी बीच मैंने उन्हें पलट दिया और अब वो मेरे नीचे आ चुकी थी। उनका बदन बिस्तर पर दबा था और मैं उनके ऊपर झुका हुआ था। उनके सीने के भारी उभार मेरे सीने से दब रहे थे, उनकी आँखों में चाहत और हल्की घबराहट चमक रही थी। उस पल में मुझे लगा जैसे अब सारी दुनिया सिर्फ़ हम दोनों तक ही सिमट गई हो।
मैंने दोनों हाथों से उनके स्तनों को सहलाना शुरू कर दिया। कपड़ों के ऊपर से भी उनकी मुलायम-पन और गर्मी मेरी उंगलियों को पागल बना रही थी। वो मुझे गहराई से देख रही थी, उनकी आँखों में एक अलग चमक थी। होंठों पर धीमी मुस्कान के साथ उन्होंने कहा, “मुझे तुम्हारे हाथों का स्पर्श बहुत याद आया था।”
मैंने उनकी आँखों में देखते हुए धीमी आवाज़ में जवाब दिया, “और मुझे तुम्हारा बदन… तुम्हारे ये खूबसूरत निपल्स बहुत याद आए।” इतना कहते ही मेरे हाथ और भी ज़्यादा कस कर उनके सीने को दबाने लगे और वो हल्की सी सिसकारी भर कर मेरी ओर और भी पास खिंच आई।
मैंने उनके दोनों हाथों को ऊपर उठाया, और धीरे-धीरे उनका नाइट ड्रेस उतारने लगा। कपड़ा उनकी कोमल त्वचा से सरकता हुआ नीचे आया और मेरे सामने उनका ग़ज़ब का हुस्न और भी खुल कर चमकने लगा। उनकी साँसें तेज़ हो गई थी और उनकी आँखें बंद होकर जैसे खुद को मेरे हवाले कर चुकी थी।
अब वो गहरे लाल रंग की लेस वाली ब्रा और मैचिंग पैंटी में थी। उनकी ब्रा उनके भारी और गोल स्तनों को कस कर थामे हुए थी, लेकिन उस कपड़े के नीचे की गर्माहट और भरे-पन को मैं साफ़ महसूस कर पा रहा था। मैंने धीरे से उनके कंधे पर हाथ रख कर ब्रा की हुक खोली। जैसे ही हुक खुला, उनका सीना आज़ाद हो गया और उनके गोल-मटोल, उभरे हुए स्तन सामने आ गए।
हल्की रोशनी में उनकी त्वचा दूध जैसी चमक रही थी और उनके गुलाबी निपल्स कस कर खड़े हो चुके थे। उस नज़ारे ने मेरी साँसें रोक दी और मैं मदहोश होकर बस उन्हें निहारने लगा।
मेरी नज़रें जैसे ही उनके स्तनों पर ठहर गई, वो हल्के से शर्मा गई। गाल लाल हो गए, आँखें झुका ली और फिर धीमी, कांपती आवाज़ में बोली, “बस देखो मत… इन्हें चूसो भी।” उनकी यह बात सुन कर मेरे भीतर आग और तेज़ भड़क उठी और मैं उनके सीने पर झुक आया।
अगले ही पल मैंने उनके कहे अनुसार उनके स्तनों को पकड़ लिया। मेरी उंगलियाँ उनकी नर्म गोलाई में धँस गई और उनके सीने की गर्माहट मेरी हथेलियों में उतरने लगी। वो हल्की-हल्की सिसकारियाँ भर रही थी, हर स्पर्श पर उनका बदन और भी ज्यादा मेरे करीब सिमट रहा था।
मैंने झुक कर पहले उनके निपल्स को अपने होंठों से छुआ। जैसे ही मेरी जीभ उनकी नोक पर फिरी, उनका शरीर हल्के से काँप गया। उनकी साँसें गड़बड़ होकर तेज़ हो गई और होंठों से दबा-दबा कर आह निकलने लगी। मैंने निपल को अपने मुँह में भर लिया, गहराई से चूसते हुए उसे अपनी जीभ से सहलाने लगा। उस पल में मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मैं किसी मीठे रस का स्वाद ले रहा हूँ। उनका हर स्वाद मेरी रगों में नशा घोल रहा था।
वो मेरे बालों में हाथ फिराते हुए बार-बार मुझे और कस कर अपने सीने से दबा रही थी। जब मैंने हल्के-हल्के दाँतों से उनके निपल को काटा तो वो हल्की चीख के साथ मेरी ओर और भी कस कर लिपट गई। उनके स्तनों की नरमी, उनकी गर्माहट और उनके मुँह से निकलती धीमी कराहें मेरे कानों में गूँजती रही। मुझे ऐसा लग रहा था जैसे उनकी धड़कनें अब मेरी धड़कनों से मिल चुकी हों।
मेरे होंठ अभी भी उनके स्तनों पर थे, तभी मेरी उँगलियाँ धीरे-धीरे नीचे खिसकने लगीं। मैंने उनका पतला कपड़ा किनारे करते हुए हाथ उनकी पैंटी के ऊपर रख दिया। कपड़े की उस मुलायम परत के नीचे उनकी गर्माहट और नमी साफ़ महसूस हो रही थी। मेरी उँगलियाँ धीरे-धीरे उस जगह पर दबने लगी, और उनके होंठों से तेज़ सिसकारियाँ निकल पड़ी।
उनका बदन मेरे हर स्पर्श पर हल्का-हल्का काँप रहा था, जैसे वो खुद को रोकने की कोशिश कर रही हों लेकिन चाह भी रही हों। मेरी उंगलियों की हर हरकत से उनके अंदर बेचैनी और बढ़ती जा रही थी। उनके हाथ मेरे कंधों पर कसते चले गए, और उनकी आँखें बंद होकर होंठों से धीमी कराहें फूटने लगी।
मेरी उँगलियाँ पैंटी के कपड़े पर घूम रही थी, हर रगड़ उन्हें और पागल कर रही थी। तभी अचानक कमरे के दरवाज़े पर किसी ने धीरे से दस्तक दी। उस आवाज़ ने हम दोनों को जैसे एक झटके में रोक दिया। उनकी साँसें भारी होकर तेज़ चलने लगी। हम दोनों ने एक-दूसरे की ओर देखा, आँखों में घबराहट और डर साफ़ झलक रहा था।
वो झटके से बिस्तर से उठी और अपने खुले बदन को संभालने का भी समय ना पाकर सीधे पलंग के नीचे जाकर छुप गई। उनकी साँसें वहाँ से भी सुनाई दे रही थी। मैं वहीं बैठा रह गया, दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़क रहा था। मुझे राहत इस बात की थी कि मैंने अपने कपड़े पूरी तरह नहीं उतारे थे, वरना सब साफ़ हो जाता। दरवाज़े पर दूसरी बार दस्तक हुई और मेरा गला सूख गया। कमरे में सन्नाटा पसर गया, और हम दोनों चुप-चाप डर के साये में छुपे रहे।
तभी दरवाज़े के पीछे से माँ की आवाज़ आई, “गोलू! दरवाज़ा खोलो।” मैं काँपते हाथों से दरवाज़ा खोलने उठा। माँ कमरे में आई और बोली, “पापा को ज़ोर का सिरदर्द है, दवा कहाँ रखी है? चलो, ढूँढो।”
मेरे गले से आवाज़ मुश्किल से निकली, लेकिन मैंने खुद को सँभालते हुए अलमारी की ओर बढ़ा। माँ का ध्यान दवा पर था, और मैं हर पल प्रार्थना कर रहा था कि वाणी दीदी पलंग के नीचे बिल्कुल चुप रहे।
माँ को दवा देकर जैसे ही मैंने उन्हें बाहर जाते देखा, मेरी साँसें थोड़ी सहज हुई। माँ के कदमों की आहट धीरे-धीरे दूर होती चली गई और फिर दरवाज़ा बंद होते ही कमरे में सन्नाटा छा गया। मैं जल्दी से पलट कर बिस्तर की ओर आया और धीमे स्वर में कहा, “दीदी, अब बाहर आ जाओ, माँ चली गई हैं।”
पलंग के नीचे से धीरे-धीरे उनकी हल्की सरसराहट सुनाई दी। उन्होंने अपने खुले बदन को छिपाने की कोशिश करते हुए खुद को बाहर निकाला। उनके चेहरे पर अब भी डर साफ झलक रहा था, आँखों में चिंता और साँसें तेज़ थी। उनके खुले स्तनों पर धूल के हल्के कण चिपके थे और उनकी घबराहट उन्हें और भी असहज बना रही थी।
मैंने उन्हें देख कर फुसफुसाते हुए कहा, “सब ठीक है, अब कोई डरने की बात नहीं… तुम बाहर आ जाओ।”
वो धीरे-धीरे उठ कर मेरे सामने खड़ी हो गई, अब भी अपने खुले बदन को दोनों हाथों से ढँकने की कोशिश करती हुई। कमरे का माहौल भारी और तनाव से भरा था, मगर साथ ही हमारे बीच की खामोशी में अजीब-सी चाहत भी तैर रही थी।
वो अभी भी डर महसूस कर रही थी, इसलिए धीरे-धीरे अपने कपड़े पहनने लगीं। हल्के कांपते हाथों से उन्होंने अपने नाइट ड्रेस की पट्टियाँ समेटी और पैंटी व ब्रा सही से पहन ली। उन्होंने मेरी ओर देख कर फुसफुसाया, “हम इसे अगली बार जारी रखेंगे।” इतना कहते ही वह मुस्कुराई और अपने कमरे की ओर चली गई।
अगली सुबह, रविवार होने की वजह से, मम्मी-पापा ड्राइंग रूम में बैठे थे और सभी का मूड आराम और शांति में था। दीदी किचन में काम कर रही थी, और मैं उनकी मदद करने किचन की ओर गया। रास्ते में मैं मम्मी-पापा की फुसफुसाहट सुन सकता था। माँ धीरे से कह रही थी, “हर बहन को ऐसा भाई चाहिए, जैसा हमारा बेटा है।” पापा की सहमति में हल्की मुस्कान उनके होंठों पर थी।
किचन में दीदी ने हल्की पीली साड़ी पहनी थी, जो उनके कंधों और कमर को खूबसूरती से ढक रही थी। उनके स्तन साड़ी के ऊपर से हौले से उभर रहे थे, उनकी हल्की तरलता और आकार काम करते समय साफ़ दिखाई दे रहा था। वे गैस के पास खड़ी होकर खाना बना रही थी, हल्की झुकाव में उनका ब्रेस्ट आगे की ओर झुका हुआ था, जिससे उनकी बनावट और भी आकर्षक लग रही थी।
साड़ी की मुलायम सिल्क की चमक उनके शरीर की हरकतों के साथ झिलमिला रही थी। उनके हाथ में चम्मच या कटोरी का हर स्पर्श उनकी चुस्ती और सुंदरता को और निखार रहा था। मैं उनकी ओर देख कर समझ रहा था कि उन्हें मदद की जरूरत थी, और मैं धीरे से उनके पास गया।
मैंने उनकी ओर देखा और मुस्कुराया, तो उन्होंने भी मेरी ओर देख कर हल्की मुस्कान दी। फिर उन्होंने कहा, “थोड़ी मेरी मदद कर दो और मेरे बाल बांध दो, ये बार-बार आँखों में आ रहे है।” मैं जल्दी से पास गया और उनके लंबे बालों को एक सुंदर बन में बांधना शुरू किया।
जैसे ही मैं उनके बाल पकड़ कर बांध रहा था, मेरी उंगलियाँ धीरे-धीरे उनके गले के पास पहुंच गई और अनजाने में मैं उनके गले को चूमने लगा। वो झिझक गई, चेहरा लाल हो गया। उनकी साँसें तेज़ होने लगी, और आँखें डर और शर्म से खुली रह गई। बाल बांधने के बाद, दीदी ने मेरी ओर देख कर मुस्कुराते हुए कहा, “थैक्स।”
उन्होंने अपने काम में लगना शुरू किया, पर मैं उनकी पीठ के पीछे खड़ा रहा। धीरे-धीरे मेरी उंगलियाँ उनके स्तनों पर चली गई और मैंने उन्हें साड़ी के ऊपर से दबाना शुरू किया।
दीदी डर गई और तेजी से पीछे हटते हुए चिल्लाई, “तुम क्या कर रहे हो?!” उनका चेहरा लाल हो गया और वे साँसों में हल्की हड़बड़ी के साथ मेरी तरफ़ देख रही थी। मैं उनकी हड़बड़ी पर ध्यान दिए बिना, धीरे से कहता रहा, “रात को जब आप कमरे से बाहर चली गई थी और कुछ नहीं किया, और जब हमारे बीच कुछ नहीं हुआ मुझे बहुत बुरा लगा।”
दीदी ने धीरे-धीरे मेरा हाथ उनके स्तनों से हटाया और अपनी ओर खींच लिया। फिर उसने मेरे होठों पर अपने होठ लगाए। उनका किस नर्म, गर्म और मुलायम था, जैसे हर स्पर्श में चाहत छुपी हो। मैं उनके होंठों की गर्माहट और नर्मी को महसूस कर रहा था, उनके होंठ मेरे होंठों के साथ धीरे-धीरे चिपकते और अलग होते रहे। किचन में हल्की रोशनी और खाना बनाने की गंध के बीच उनका यह किस मुझे और भी अजीब और मधुर महसूस हुआ।
धीरे-धीरे मैं उनके होंठों को और अधिक जोर से चूमने लगा, हर किस्स में एक अजीब गर्माहट और खिंचाव महसूस हो रहा था। कुछ ही क्षणों में, अपनी तीव्र इच्छा पर काबू ना पाकर, मैंने उनके होठों को हल्का दबाया। उनका होठ थोड़े फट गए और हल्का खून बाहर आया, लेकिन दीदी ने कोई गुस्सा नहीं दिखाया। मैंने उनके खून का हल्का स्वाद अपने होंठों पर महसूस किया, जो इस पल को और भी जीवंत, रोमांटिक और गहरा बना रहा था। हर स्पर्श, हर सांस, और हर नज़दीकी का एहसास मेरे अंदर गहरी रोमांटिक गर्मी और चाहत पैदा कर रहा था।
मैं और करीब जाना चाहता था, पर तभी उनका मोबाइल बजने लगा। हमने किस्स रोक दिया और उन्होंने फोन उठाया। कॉल खत्म होने के बाद उनका चेहरा कुछ उदास लग रहा था। मैंने पूछा, “क्या हुआ?”
दीदी ने हल्की मुस्कान के साथ कहा, “ऑफिस से कॉल था। मुझे आज रात जल्दी दिल्ली जाना पड़ेगा, कल एक बहुत जरूरी मीटिंग है।” उनकी आवाज शांत थी। मैंने देखा कि उनकी आँखों में हल्का दुःख झलक रहा है। इस बार भी हमारा सपना पूरा नहीं हो सका और यह सोच कर वह खुद को थोड़ा बुरा महसूस कर रही थी। अगला पार्ट चाहिए तो [email protected] पर मेल करें।
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