पिछला भाग पढ़े:- जब दीदी ने खुद को मेरे सामने खोला-4
भाई बहन सेक्स कहानी अब आगे-
वाणी दीदी दिल्ली जाने के लिए तैयार हो गई, और मुझे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था। छुट्टियों के दिनों में हम दोनों ने सिर्फ एक-दूसरे को प्यार दिया था। वो मुझे चूमती रही, मैं उसके होंठों पर खोया रहा। कई बार मैंने उसे अपनी बाहों में लेकर उसका स्पर्श महसूस किया, उसने भी बिना कुछ कहे अपने दिल की बात जता दी। वो मुझसे प्यार करती है और मैं उससे। लेकिन अब जब उसकी छुट्टियाँ ख़त्म हो गई थी, और वो फिर से अपने काम पर लौट रही थी, तो मेरे दिल में अजीब सी उलझन थी।
मैं समझ नहीं पा रहा था कि उसके बिना कैसे रहूँगा, क्या कहूँगा, या क्या करूँगा? तभी किस्मत ने एक बार फिर मेरा साथ दिया। पापा ने कहा “तुम अपनी बहन के साथ दिल्ली जाओ, अकेले उसके लिए सफ़र करना सुरक्षित नहीं है।”
उनके ये शब्द सुनते ही मेरे दिल में जैसे खुशी की लहर दौड़ गई। मैं समझ गया कि मुझे उसके साथ और वक्त बिताने का मौका मिल गया था। उसकी आँखों में भी वही चमक थी, जैसे वो भी इस सफ़र को हमारे लिए खास बनाना चाहती हो।
हमने देर रात के लिए एक स्लीपर बस का टिकट बुक किया ताकि वो रास्ते में आराम कर सके। क्योंकि अगली सुबह उसे सीधे ऑफिस पहुँचना था। बस में छोटे-छोटे कम्पार्टमेंट बने हुए थे, जहाँ थोड़ी प्राइवेसी भी मिल सकती थी। मेरे लिए ये सफ़र किसी तोहफ़े से कम नहीं था। उसके साथ रात भर का रास्ता, बिना किसी रुकावट और बिना किसी जल्दबाज़ी के।
वाणी दीदी ने सफ़र के लिए हल्के और आरामदायक कपड़े चुने। एक ढीला-सा कुर्ता और पजामा, जिसमें वो सहज भी थी और खूबसूरत भी लग रही थी। उसकी सादगी में ही एक अलग चमक थी। खिड़की की हल्की रोशनी में उसका चेहरा और भी निखर रहा था। मेरी नज़रें उस पर टिक जातीं और हर बार वो मुझे देखकर मुस्कुरा देती। उसकी उस मुस्कान ने पूरे सफ़र का माहौल और भी गर्मजोशी से भर दिया।
बस धीरे-धीरे आगे बढ़ रही थी और हमें महसूस हो रहा था कि ये रात सिर्फ एक सफ़र नहीं, बल्कि हमारे बीच के रिश्ते को और गहराई देने का बहाना भी थी।
रात गहराने लगी और बस की रफ्तार भी थम-थम कर चल रही थी। कम्पार्टमेंट की खामोशी में सिर्फ खिड़की से आती ठंडी हवा और कभी-कभी बाहर से आती सड़क की हल्की आवाज़ थी। हम दोनों पास-पास बैठे थे, लेकिन नज़रों की खामोश बातें बहुत कुछ कह रही थी। उसकी हथेली मेरे पास आकर धीरे से टिक गई और मैंने बिना सोचे उसे थाम लिया। उस पल ऐसा लगा जैसे ये सफ़र हमें और पास खींचने के लिए ही बना हो।
वो मेरे कंधे पर सिर रख कर धीरे-धीरे आँखें मूँदने लगी। बस जैसे ही झटके से आगे बढ़ती, उसका शरीर हल्का-सा हिल जाता। उस हिलने में उसकी छुपी हुई नज़ाकत साफ़ महसूस हो रही थी। उसके कपड़ों के नीचे से उसके उभरे हुए स्तन हर झटके के साथ हल्के-हल्के हिलते, जिससे उसकी साँसों की लय और गहरी लगने लगी। उसकी ढीली चुन्नी बार-बार खिसकती और उनकी गोलाई को और साफ़ दिखा देती।
नीचे की ओर उसका पेट हल्का-सा ऊपर-नीचे होता, और उसकी नाभि की हल्की सी हलचल मेरे दिल की धड़कन को तेज़ कर देती। कपड़े उसके शरीर से सट कर उसके हर हिस्से को उभार रहे थे। उसकी जाँघों का मिलना और कपड़े के नीचे छुपा उसका नाज़ुक हिस्सा बस की हलचल में और भी आकर्षक लग रहा था। ऐसा लग रहा था जैसे उसके शरीर का हर हिस्सा मेरी नज़रों और एहसासों को खींच रहा हो।
धीरे-धीरे मैंने अपना हाथ नीचे सरकाया और उसकी जाँघों के बीच पहुँचा। मेरी उँगलियाँ उसके कपड़े के ऊपर से उसके नाज़ुक हिस्से को हल्के-हल्के छूने लगी। कपड़े के पीछे छुपा उसका नाज़ुक हिस्सा मेरी उँगलियों को गर्म और नर्म सा महसूस हुआ। हर हल्की हरकत पर उसका शरीर जैसे अनजाने में हल्का-सा सिहर जाता। उसके चेहरे पर नींद और संवेदना का मिला-जुला भाव था, और उसकी साँसें गहरी होती चली गई।
उसका नाज़ुक हिस्सा मेरी उँगलियों के स्पर्श में धड़क रहा था, मानो मेरी छुअन का जवाब दे रहा हो। कपड़े के पीछे से ही उसकी कोमलता और गर्माहट मुझे महसूस हो रही थी, और मेरे दिल की धड़कनें और तेज़ हो गई।
कुछ मिनटों तक मेरी उँगलियों के हल्के स्पर्श से उसका शरीर हिलता रहा, फिर अचानक वह नींद से हल्की जागी। उसने आँखें खोली, पर कुछ बोली नहीं। बस चुपचाप मेरा हाथ थामा और धीरे से अपने पायजामे के अंदर सरका दिया, ताकि मैं उसकी पैंटी तक पहुँच सकूँ। मेरी उँगलियों ने जब पहली बार उसकी पैंटी की मुलायम कपड़े को छुआ, तो उसमें छुपी उसकी गर्माहट और नर्मी साफ़ महसूस हुई।
लेकिन वह यहीं नहीं रुकी। उसने मेरा हाथ और नीचे खींचा और पैंटी के अंदर पहुँचा दिया। अब मेरी उँगलियाँ सीधे उसके नाज़ुक हिस्से को छू रही थी। वह हिस्सा गर्म, बेहद नर्म और गीला-सा महसूस हुआ। मेरा स्पर्श पाते ही उसका शरीर हल्का काँप गया, लेकिन उसने सिर मेरे कंधे पर रखकर फिर से आँखें मूँद ली, जैसे पूरी तरह मुझ पर भरोसा कर रही हो।
बस की हल्की हलचल में उसका शरीर मेरे करीब और सिमटता चला गया। मेरी उँगलियाँ बहुत सावधानी से, बहुत नर्मी से उसके नाज़ुक हिस्से को सहला रही थी। हर झटके के साथ उसका शरीर और भी करीब खिंचता, और उसकी साँसों की गहराई से यह अहसास और भी गहरा होता गया। उसकी आँखें बंद थी, चेहरे पर शांति और हल्की मुस्कान थी, मानो वह इस पल को पूरी तरह महसूस कर रही हो।
इसी बीच, बस धीरे-धीरे रुक गई। सामने एक रेस्टोरेंट था, जहाँ सब को खाने के लिए थोड़ी देर रुकना था। मैं चाहता था कि इस पल को और आगे बढ़ाऊँ, लेकिन मुझे पता था कि दीदी को भी आराम और खाने की ज़रूरत है। मैंने धीरे से अपना हाथ वापस खींचा। वह भी मेरी ओर देख कर हल्की मुस्कान दी, जैसे समझ गई हो।
हम दोनों नीचे उतरे और रेस्टोरेंट की ओर चले। वहाँ बैठ कर हमने साथ में खाना खाना शुरू किया। उसके चेहरे की थकान और हल्की मासूमियत अब और साफ़ दिख रही थी। हर निवाले के साथ उसकी आँखों में सुकून लौटता गया, और मैं बस उसे देखते हुए इस बात से खुश था कि वह मेरे साथ सहज महसूस कर रही थी।
खाने के बाद उसने मेरी तरफ देखा और धीमी आवाज़ में कहा, “मुझे ज़रा वॉशरूम जाना है।” मैं मेज़ पर बैठा रहा और उसने उठ कर बाहर का रास्ता लिया। कुछ देर बाद वह वापस आई, चेहरे पर हल्की घबराहट थी। आकर धीरे से बोली, “वॉशरूम की लाइट काम नहीं कर रही है… और वहाँ कोई नहीं है, मुझे डर लग रहा है।”
मैंने उसकी आँखों में झाँक कर कहा, “अगर चाहो तो मैं तुम्हारे साथ चल सकता हूँ।” वह थोड़ी देर चुप रही, फिर हल्के से सिर हिला दिया। हम दोनों साथ उठे और वॉशरूम की ओर बढ़े। बाहर चारों तरफ अंधेरा सा छाया हुआ था, बस दूर से आती हल्की रोशनी ही आस-पास को दिखा रही थी।
वह धीरे-धीरे कदम बढ़ाती हुई अंदर गई। मैं भी उसके पीछे पहुँचा और दरवाज़ा पकड़ कर बंद करने लगा ही था कि उसने जल्दी से कहा, “नहीं, दरवाज़ा मत बंद करना… अंधेरे में मुझे और डर लगेगा।” उसकी आवाज़ में मासूम सा कंपन था। मैंने दरवाज़ा खुला ही छोड़ दिया और वहीं खड़ा हो गया, ताकि उसे भरोसा रहे कि मैं उसके साथ हूँ।
कुछ पल बाद मुझे कपड़ों के सरकने की हल्की-हल्की आवाज़ें सुनाई दी। जैसे किसी ने अपना पायजामा नीचे किया हो, और फिर उसके बाद मुलायम कपड़े के उतारने की सरसराहट, वो उसकी पैंटी थी। मेरी साँसें तेज़ हो गई।
फिर अचानक, अंधेरे की खामोशी में एक और अलग-सी आवाज़ गूँजी—धीमी धारा की, जैसे पानी किसी कोने में बह रहा हो। यह उसकी पेशाब करने की आवाज़ थी। उस धारा के गिरने और हल्की-हल्की बूँदों की टपकने की आवाज ने माहौल को और अजीब-सा रोमांचक बना दिया। मेरे कान उस आवाज़ में पूरी तरह डूब चुके थे और दिल तेज़ी से धड़क रहा था।
कुछ देर बाद उसने धीरे-धीरे अपनी पैंटी और पायजामा दोबारा चढ़ाना शुरू किया। कपड़े बाँधते समय उसकी हल्की-हल्की आवाज़ें मुझे साफ़ सुनाई दे रही थी। फिर वह दरवाज़े तक आ पहुँची, अपने पायजामे की डोरी बाँधती हुई।
उसे इस रूप में देख कर मैं खुद को रोक ना सका। जैसे ही वह दरवाज़े की चौखट पर खड़ी हुई, मैंने अचानक आगे बढ़ कर उसे धक्का दिया और वह हल्के से टकरा गई बाथरूम के दरवाज़े से। मेरा चेहरा उसके बिल्कुल करीब था और फिर बिना कुछ सोचे मैंने उसके होंठों को अपने होंठों में कैद कर लिया।
वह हल्का-सा मुस्कुराई, मेरी आँखों में देखते हुए धीमी आवाज़ में बोली, “ये तुम क्या कर रहे हो?” उसकी मुस्कान में शरारत भी थी और एक अनकहा सवाल भी, जिसने उस पल को और गहरा बना दिया।
मैंने उसकी आँखों में झाँकते हुए बमुश्किल साँस सँभाल कर कहा, “वाणी दीदी… मैं इसे बहुत देर से रोक रहा था, अब और कंट्रोल नहीं कर पा रहा।” मेरी आवाज़ में दबा हुआ जुनून और चाहत साफ़ झलक रही थी।
मेरी बात सुन कर उसकी आँखों में एक अलग चमक आ गई। वह कुछ कहे बिना ही धीरे से आगे झुकी और अपने होंठ मेरे होंठों पर रख दिए। अब हम दोनों एक-दूसरे को चूम रहे थे। हमारे होंठ बार-बार आपस में भीगते हुए टकरा रहे थे। हर बार होंठों के बीच की नमी और गहराती जाती, और जैसे-जैसे हम और करीब खिंचते गए, हमारी साँसें एक-दूसरे में घुलती चली गई।
उसके होंठों की गर्मी मेरे होंठों में उतरती जा रही थी। थोड़ी ही देर में उसकी ज़ुबान मेरे होंठों को छूने लगी। मैंने भी अपनी ज़ुबान आगे बढ़ाई और हमारी जीभें एक-दूसरे से टकराई। यह स्पर्श ऐसा था, जैसे एक नया संसार खुल रहा हो। हम दोनों की जीभें आपस में उलझती, सरकती और बार-बार एक-दूसरे की नमी को खोजती।
हर किस्स और गहराता गया। उसके मुँह की मिठास मेरे मुँह में उतर रही थी, और मेरी लार धीरे-धीरे उसके होंठों और जीभ पर फैल रही थी। उसी तरह उसकी लार भी मेरे होंठों से होते हुए मेरी जीभ पर सरकती चली गई। दोनों का स्वाद मिल कर एक अलग ही नशा पैदा कर रहा था।
वह मेरी गर्दन पकड़ कर और क़रीब खिंच आई। हमारे होंठ अब बिना रुके लगातार एक-दूसरे में डूबे जा रहे थे। जीभें कभी धीरे-धीरे आपस में सरकती, तो कभी अचानक तेज़ी से उलझ जाती। उस पल में बस हमारी साँसों की गर्मी, होंठों की नमी और जीभों का स्पर्श था, जिसने हमें एक-दूसरे में पूरी तरह खो दिया था।
लेकिन तभी उसने अचानक होंठ पीछे खींच लिए। उसने हल्की-सी मुस्कान के साथ मेरी आँखों में देखते हुए फुसफुसा कर कहा, “अगर हम ऐसे ही करते रहे तो बस हमें यहीं छोड़ कर चली जाएगी।”
उसकी बात सुन कर हम दोनों ने एक पल के लिए साँस सँभाली, लेकिन उसकी मुस्कान में छिपी शरारत अब भी वही थी।
मैंने गहरी साँस लेकर कहा, “ठीक है दीदी, हमें बस पकड़नी ही चाहिए… लेकिन जाने से पहले मैं आपसे कुछ माँगना चाहता हूँ। मैं बस में आपको छू तो सकता हूँ, लेकिन देख नहीं पाऊँगा। तो उससे पहले… क्या आप मुझे अपनी चूत दिखा सकती हैं?”
उसने मेरी ओर देखा, चेहरे पर हल्की शर्म और हल्की शरारत दोनों झलक रही थी। फिर बिना कुछ कहे उसने धीरे-धीरे अपने हाथ पायजामे की डोरी पर ले जाए। उसकी उँगलियाँ काँप रही थी, लेकिन उसने रुकना नहीं चाहा। उसने डोरी ढीली की और फिर बहुत धीरे-धीरे अपना पायजामा नीचे खिसकाने लगी। मैं साँस रोके उसे देखता रहा। जैसे-जैसे कपड़ा नीचे सरकता गया, उसके गोरे-पतले पैर धीरे-धीरे उजागर होने लगे। हल्की चाँदनी खिड़की से भीतर आ रही थी और उसके पैरों की चमक उस रोशनी में और उभर रही थी।
पायजामा नीचे सरक कर टखनों तक पहुँच गया। उसने धीरे से उसे उतार कर किनारे रख दिया। अब उसने अपनी पैंटी पकड़ी और वही धीमी गति दोहराई। कपड़ा नीचे जाता गया और उसके पैरों की चिकनी त्वचा चाँदनी में धीरे-धीरे पूरी तरह सामने आती गई। उसके दोनों पैर अब लगभग पूरे नज़र आ रहे थे। मैं उसकी हर हरकत को डूब कर देख रहा था, जैसे इस पल को हमेशा के लिए अपनी आँखों में कैद कर लेना चाहता हूँ।
जब पैंटी पूरी तरह उतर गई, तो उसकी जाँघों के बीच का हिस्सा भी धीरे-धीरे उजागर हो गया। चाँदनी की हल्की रोशनी में उसकी नाज़ुक त्वचा और साफ दिखाई देने लगी। हल्की सी नमी उस हिस्से पर चमक रही थी, जैसे मोती की बूँदें बिखरी हों। उसके बाल बारीक और नरम थे, और बीच से गुलाबी हिस्सा झलकता था। वह हिस्सा ऐसा लग रहा था मानो अभी-अभी किसी बंद कली ने पहली बार अपना रूप खोला हो, साफ, ताज़ा और बेहद कोमल।
मैंने काँपते हाथों से उसकी ओर बढ़ने की कोशिश की, तभी उसने मेरा हाथ हल्के से रोक लिया। उसके चेहरे पर शर्म से लालिमा आ गई और धीमे स्वर में बोली, “बस… इतना ही काफ़ी है गोलू।” उसकी आँखों में झिझक और मासूमियत साफ झलक रही थी। फिर उसने जल्दी से अपनी पैंटी उठाई और पहनने लगी। उसके बाद पायजामा भी ऊपर चढ़ा कर, कस कर बाँध लिया। वह मुझसे नज़रें चुराती रही, और वाॅशरूम में कुछ पल सन्नाटा पसरा रहा।
कुछ देर बाद हम बाहर निकले और सीधा बस में लौट आए। ड्राइवर ने हॉर्न दिया और बस धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगी। अब रात गहराने लगी थी। धीरे-धीरे हर यात्री अपनी सीट या बर्थ पर आराम से लेटने लगा। कम्पार्टमेंट में चारों ओर खामोशी छा गई, सिर्फ इंजन की गड़गड़ाहट और बस के झटकों की आवाज़ गूंज रही थी। लेकिन हम दोनों अलग थे। बर्थ खाली रहते हुए भी हम फिर से एक ही सीट पर साथ बैठ गए। उसने हल्की मुस्कान के साथ मेरे कंधे पर सिर टिका लिया। उसकी साँसों की गर्माहट मेरी गर्दन को छू रही थी, और धीरे-धीरे वह उनींदेपन में झुक कर मेरी बाहों के करीब सिमट गई।
बस अब लगभग पूरी तरह शांत लग रही थी। बाहर सिर्फ सन्नाटा और सड़क की थरथराहट थी। ऐसे में उसने अपनी आँखें बंद किए ही हल्की हरकत की। उसका हाथ धीरे-धीरे मेरी जाँघ पर आया और फिर नीचे खिसकते हुए मेरे उस हिस्से पर ठहर गया। कपड़ों के ऊपर से ही उसने हल्की-हल्की हरकत शुरू कर दी। मेरी साँसें तेज़ होने लगी। उसका चेहरा अब भी मेरे कंधे पर टिका था, पर उँगलियाँ धीरे-धीरे मेरे लंड पर कपड़े के ऊपर से दबाव बना कर सरक रही थी। हर रगड़ मेरे पूरे बदन में एक अजीब सी सनसनी भर रही थी, और मैं पूरी तरह उसके स्पर्श में खोता जा रहा था।
उसकी उँगलियों की हर हरकत के साथ मेरा लंड सख़्त होता चला गया। कपड़े के भीतर धड़कनें तेज़ हो गई और अब उसका उभार साफ़ महसूस हो रहा था। उसने उँगलियों से हल्के-हल्के दबा कर और फिर सरका कर उसे छेड़ना शुरू किया। कपड़े की तह के पीछे से भी उसका स्पर्श मुझे पिघलाने लगा। मुझे ऐसा लग रहा था जैसे वह हर बार अपनी नर्म उँगलियों से मेरे भीतर तक बिजली दौड़ा रही हो।
फिर अचानक उसने सिर थोड़ा ऊपर उठाया, मेरे कानों के बेहद करीब आकर धीमे और शरमाए हुए लहजे में फुसफुसाई, “क्या मेरा छोटा भाई चाहता है कि दीदी का स्पर्श उसके लंड तक पहुँचे?” उसकी आवाज़ प्यारी और नर्मी से भरी थी, जिसने मेरे पूरे जिस्म में और भी तेज़ कंपन भर दिया।
वह रुकी नहीं। दोबारा उसने और करीब आकर वही बात दुहराई, उसके होंठ मेरे कान को हल्के से छूते हुए बोले, “बताओ ना, क्या मेरा छोटा भाई दीदी का हाथ अपने लंड पर चाहता है?” उसकी यह शर्मीली और प्यारी फुसफुसाहट मेरे लिए जैसे पागल कर देने वाली थी।
मेरे मुँह से धीमे स्वर में सिर्फ एक शब्द निकला, “हाँ…”
यह सुनते ही उसने झिझकते हुए मेरी पैंट का बटन खोलना शुरू किया। मैं उसकी हर हरकत को ध्यान से देख रहा था। उसकी उँगलियों की हल्की-हल्की थरथराहट बता रही थी कि वह भी कितनी घबराई और उत्तेजित थी। उसने धीरे-धीरे मेरी पैंट को थोड़ा नीचे किया और फिर मेरी अंडरवियर की पकड़ ढीली कर दी।
जैसे ही कपड़े हटे, मेरा धड़कता हुआ लंड उसके सामने था। उसने शर्माते हुए नज़रें झुका ली, लेकिन अगले ही पल अपनी नर्म उँगलियाँ उस पर फेर दी। उसकी उँगलियाँ जैसे ही मेरे लंड पर खुल कर फिसलने लगी, मेरे पूरे जिस्म में बिजली दौड़ गई। वह कभी हल्के से दबाती, कभी सहलाती, और कभी बस अपनी नर्म त्वचा से उसे छूकर पीछे खींच लेती। उसके हर स्पर्श से मेरा बदन पिघलने लगता था। उसकी उँगलियाँ इतनी गर्म और मुलायम थी कि हर स्पर्श मेरे दिल की धड़कनों को और तेज़ कर देता था।
अब उसने उँगलियों की पकड़ थोड़ी कसी और पूरा हाथ मेरे लंड पर जकड़ लिया। उसने धीरे-धीरे ऊपर-नीचे करना शुरू किया, जैसे हर इंच को अपने स्पर्श में भर रही हो। उसकी हथेली का दबाव और उँगलियों का कसाव मेरे लंड पर एक साथ महसूस हो रहा था। बस की हल्की झटकेदार रफ़्तार में उसके हाथ की हर हरकत और भी तेज लग रही थी।
वह धीरे-धीरे मेरी त्वचा पर रगड़ते हुए अपनी उँगलियों को ऊपर तक ले जाती और फिर नीचे तक खींच लाती। हर बार जब उसका हाथ नीचे जाता, तो मेरी साँस रुक सी जाती और ऊपर जाते ही मैं भीतर तक काँप उठता। उसने अपनी रफ़्तार को कभी धीमा किया, कभी तेज़, जैसे मुझे अपने काबू में रख कर मेरी हर धड़कन के साथ खेल रही हो।
चलती बस की गड़गड़ाहट और बाहर का सन्नाटा, इन सबके बीच उसकी यह हरकत मुझे एक अजीब दुनिया में ले जा रही थी। उसका हर स्ट्रोक मुझे और पागल कर रहा था। मेरे होंठ खुले हुए थे, साँसें तेज़ थी, और मैं बस उसके हाथ की गर्मी और कसाव में डूबा जा रहा था। वह लगातार मुझे हैंडजॉब दे रही थी, इतनी नर्मी और जुनून से कि मैं बस उसकी गिरफ्त में खोता चला गया।
अब उसने अचानक अपनी स्पीड बढ़ा दी। उसकी पकड़ और कस गई और उसकी कलाई तेज़ी से ऊपर-नीचे होने लगी। हर स्ट्रोक पिछले से ज़्यादा तेज़ और गहरा था। मेरे होंठों से अनजाने में कराहें निकल रही थी। उसकी उँगलियाँ और हथेली मेरी नब्ज़ की तरह धड़कते लंड को इतनी तेजी से सहला रही थी कि मैं खुद को रोकना मुश्किल पा रहा था।
उसकी रफ़्तार अब और भी तेज़ हो चुकी थी। उसके हाथ की हर हरकत लगातार मेरी नसों में आग भर रही थी। उसका हाथ ऊपर जाता तो मेरी कमर झटके से उठ जाती, और नीचे आते ही जैसे मेरी साँस थम जाती। अब उसकी कलाई बिजली की तरह तेज़ चल रही थी, हर स्ट्रोक गहरा, हर दबाव और सख़्त।
चलती बस की गड़गड़ाहट और बाहर का सन्नाटा, इन सबके बीच उसकी यह हरकत मुझे पूरी तरह मदहोश कर रही थी। मेरी जाँघें तन कर उसकी पकड़ का जवाब दे रही थी। उसका हाथ लगातार ऊपर-नीचे, कसाव के साथ, मेरी सबसे गहरी नसों पर दबाव बना रहा था। मेरी कराहें अब उसके कानों तक साफ़ पहुँच रही थी। उसकी साँसें भी तेज़ हो चुकी थी, जैसे वह मेरे आनंद को खुद महसूस कर रही हो।
मैं पूरी तरह उसके हाथ की गिरफ्त में था, और उसकी तेज़ होती हरकतें मुझे पागल बना रही थी। उसकी उँगलियाँ और हथेली मेरे लंड को ऐसे पकड़ कर ऊपर-नीचे कर रही थी जैसे वह मुझे पूरी तरह अपने बस में कर लेना चाहती हो। उसकी रफ़्तार अब ऐसी हो चुकी थी कि मैं हर पल फटने की कगार पर महसूस कर रहा था।
मैंने हाँफते हुए उसके कानों में कहा, “दीदी… अब नहीं रुक सकता, मैं फटने वाला हूँ…”
उसने शर्म से लाल होते हुए मेरे हाथ को दबाया और धीमे स्वर में बोली, “कर दो… बस मेरे हाथों पर ही कर दो…”
यह सुन कर मेरी साँसें और तेज़ हो गई। उसकी उँगलियाँ लगातार मेरी गति के साथ तालमेल बिठाते हुए ऊपर-नीचे चल रही थी। मैं अब पूरी तरह उसके हाथों की गिरफ्त में था और अगले ही पल खुद को रोकना मेरे लिए नामुमकिन हो चुका था।
मेरी कमर एक जोरदार झटके से ऊपर उठी और अगले ही पल मेरे लंड से गर्म सफेद पानी उसके हाथों पर फूट पड़ा। उसकी उँगलियों और हथेली पर सफेद चिपचिपा तरल तेजी से फैल गया। वह उसे महसूस करते हुए हल्के से सिहर उठी, पर हाथ अपनी जगह से हटाए बिना मेरी हर बूंद को पकड़ती रही।
सफेद पानी उसकी उँगलियों के बीच से बहता हुआ नीचे टपकने लगा। उसकी हथेली पूरी तरह गीली और चमकदार हो गई थी। हल्की बस की रोशनी में उसका हाथ सफेद गाढ़े तरल से भीगा हुआ दिख रहा था। वह धीरे-धीरे उँगलियों को हिलाकर उसे महसूस कर रही थी, जैसे पहली बार यह सब उसकी पकड़ में आया हो।
मैं हाँफते हुए उसके कंधे से सिर टिकाए था, और उसका हाथ अब भी मेरे लंड पर था। उसने हल्की मुस्कान के साथ शर्माते हुए मेरे कान में फुसफुसाया, “देखा, सब मेरे हाथों में समा गया…”
मैंने धीरे से अपनी पैंट और अंडरवियर ठीक किए। उसने अपने दुपट्टे से धीरे-धीरे अपने हाथ साफ किए। फिर बिना कुछ कहे उसने अपना सिर मेरे कंधे पर टिका दिया। जैसे कुछ हुआ ही ना हो, हम दोनों ऐसे बैठे रहे, मानो दो आम भाई-बहन हों। अगला पार्ट चाहिए तो मेल करे [email protected]
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