पिछला भाग पढ़े:- उस रात दीदी ने चखाया अपना गीलापन-4
भाई बहन सेक्स कहानी अब आगे-
उस कार के छोटे से इंटिरियर में सुधा दीदी मेरे सामने पूरी तरह नंगी लेटी थी। रात के वक्त चांदनी उनके खुले बदन पर ऐसे चमक रही थी, मानो उनका पूरा शरीर किसी मोती से बना हो।
मैं हिचकते हुए धीरे-धीरे उनके करीब गया। दिल की धड़कन इतनी तेज़ थी कि जैसे सीने से बाहर निकल आएगी। हाथ काँप रहे थे, लेकिन चाहत ने हिम्मत दी। पहली बार मेरी उंगलियाँ उनके निजी हिस्से को छूने लगी।
जैसे ही मेरी उंगलियाँ वहां पहुँची, दीदी का बदन हल्का-सा कांप उठा। उन्होंने आँखें बंद कर ली, और होंठों से एक धीमी-सी कराह निकल गई। मेरे लिए वो पल बिल्कुल नया था। पहली बार मैंने उन्हें उस तरह छुआ था। उनकी गर्माहट और नमी मेरी उंगलियों पर महसूस हो रही थी, और मेरा दिल मानो रुक-रुक कर धड़क रहा था।
मैंने उंगलियाँ धीरे-धीरे उनके अंदरूनी हिस्से में फेरनी शुरू की। हर हल्की हरकत के साथ उनकी साँसें और भारी होती जा रही थी। उनका चेहरा कसक और आनंद के बीच डूबा हुआ था। माथे पर हल्की-सी शिकन थी, आँखें कस कर बंद, और होंठ दाँतों के बीच दबे हुए।
उनके होंठों से कभी धीमी-सी सिसकारी, तो कभी गहरी कराह निकलती। उनकी आवाज़ में वो चाहत साफ झलक रही थी, जो मेरे मन को और ज्यादा बेचैन कर रही थी। मेरे हर स्पर्श के साथ उनके चेहरे पर नए-नए भाव आते, कभी आँखें आधी खुल कर मुझे देखने लगती, तो कभी होंठ काँपते हुए कराह से भर जाते।
इसी बीच सुधा दीदी ने अपने दोनों हाथों से अपने बड़े-बड़े स्तनों को सहलाना, और रगड़ना शुरू कर दिया। उनकी उंगलियाँ निप्पलों पर घूमते ही उनका पूरा शरीर और भी ज्यादा मचल उठा। नीचे मेरी उंगलियाँ उनके नाजुक हिस्से से खेल रही थी और ऊपर उनके हाथ उनकी छाती में आग भर रहे थे। उनकी कराहें और तेज़ हो गई, चेहरा और लाल हो गया, और बदन अनियंत्रित होकर मेरी ओर और सिमटता चला गया।
बंद कार के भीतर उनकी आवाज़ गूंजने लगी। हर कराह, हर सिसकारी शीशों से टकरा कर लौटती और माहौल को और भी मदहोश बना देती। बाहर गहरी रात का सन्नाटा था, और अंदर सुधा दीदी की मधुर कराहें गूंजकर पूरे इंटीरियर को गर्म और बेचैन कर रही थी।
कुछ देर बाद उन्होंने आँखें खोली, और हल्की मुस्कान के साथ मुझसे बोली, “गोलू… मेरी पीठ दुख रही है, ये फ्रंट सीट बहुत छोटी है। यहाँ ज़्यादा देर लेटना मुश्किल हो रहा है।” उन्होंने मेरे कान के पास फुसफुसा कर कहा, “चलो पीछे वाली सीट पर चलते है, वहाँ हम और आराम से रह पाएँगे।”
मैंने उन्हें सहारा दिया और हम दोनों धीरे-धीरे पीछे वाली सीट पर आ गए। सुधा दीदी ने फिर से लेटने की कोशिश की, लेकिन मैंने तुरंत उनका हाथ पकड़ लिया और मुस्कुरा कर कहा, “नहीं दीदी… लेटो मत। मेरी जाँघों पर बैठो।” मेरी आवाज़ में चाहत और हुक्म दोनों मिले हुए थे। उन्होंने मेरी तरफ देखा, हल्की मुस्कान दी और धीरे-धीरे आकर मेरी जाँघों पर बैठ गईं।
जैसे ही उनका खुला नंगा पिछला हिस्सा मेरी जाँघों से सटा, मैंने अपने कपड़ों के ऊपर से उनकी गर्माहट महसूस की। उनकी मुलायम त्वचा मेरी जाँघों से रगड़ खा रही थी और उस स्पर्श से मेरे पूरे शरीर में एक सिहरन दौड़ गई। उनका नंगा पिछवाड़ा मेरी जाँघों पर टिकते ही मुझे ऐसा लगा जैसे आग सीधे मेरी रगों में भर गई हो।
मैंने दोबारा अपनी उंगलियाँ उनके निजी हिस्से की ओर बढ़ाई, और धीरे-धीरे वहाँ खेलने लगा। उसी वक्त मेरा दूसरा हाथ ऊपर गया और उनके एक स्तन को कस कर पकड़ लिया। मेरी हथेली में उनकी गर्म, मुलायम गोलाई भर गई थी। निप्पल मेरी हथेली पर सख्त होकर चुभ रहा था, जिसे मैं अंगूठे और उंगली के बीच दबा कर सहलाने लगा।
उनकी छाती की गर्माहट मेरी हथेली को भिगोती जा रही थी, मानो वहाँ से लपटें उठ रही हो। हर बार जब मैं नीचे उंगलियों से खेलता और ऊपर हथेली से उनके स्तन को मसलता, उनकी सिसकारियाँ और कराहें इतनी तेज़ हो जाती कि कार का हर शीशा हिल उठता।
हम दोनों उस पल में पूरी तरह डूबे हुए थे, हर स्पर्श का मज़ा ले रहे थे। तभी अचानक मेरी जेब में रखा मोबाइल जोर-जोर से बजने लगा। घंटी की तेज़ आवाज़ ने उस गर्म और मदहोश माहौल को चीर दिया। सुधा दीदी ने आँखें खोली, और मुझे देखा, उनकी साँसें अब भी तेज़ थी, और मैंने महसूस किया कि वो भी उतना ही चौंक गई थी जितना मैं।
मैंने जल्दी से एक हाथ से मोबाइल निकाला और कॉल रिसीव कर लिया, लेकिन मेरा दूसरा हाथ अब भी सुधा दीदी के भीगे हिस्से पर खेल रहा था। फोन पर किसी की आवाज़ मेरे कान में गूँज रही थी, लेकिन मेरा ध्यान पूरा उनके बदन पर था। सुधा दीदी ने होंठ काट लिए, उनकी आँखें कस कर बंद थी। वो कोशिश कर रही थी कि कोई आवाज़ बाहर ना निकले, पर उनकी रुक-रुक कर निकलती सिसकारियाँ और काँपता बदन बता रहा था कि वो अपनी आवाज़ रोकने के लिए कितनी जद्दोजहद कर रही है।
फोन पर माँ की आवाज़ आई। उन्होंने धीमे लेकिन सख़्त लहजे में पूछा, “गोलू… कितना समय लगेगा घर आने में?” उनके सवाल ने मुझे पल भर को सकपका दिया। एक तरफ मेरी उंगलियाँ अब भी सुधा दीदी के गीलेपन को छू रही थी और दूसरी तरफ माँ की आवाज़ मेरे कानों में गूंज रही थी।
मैंने गहरी साँस लेकर कहा, “माँ… लगभग तीन घंटे लगेंगे।”
माँ ने फिर पूछा, “और सुधा? वो कैसी है?”
मैंने सुधा दीदी की ओर देखा, उनकी आँखें बंद थी और वो अपनी साँसों को दबाने की कोशिश कर रही थी। मैंने हल्की मुस्कान के साथ जवाब दिया, “वो तो सो रही है माँ… आराम कर रही है।”
माँ ने आख़िर में कहा, “ठीक है बेटा, लेकिन जल्दी घर आ जाना। ज़्यादा देर मत करना।” उनके शब्दों में हिदायत और चिंता दोनों झलक रही थी।
माँ की आवाज़ कान में गूँजते ही मेरे दिल में एक झटका-सा लगा, पर मेरा हाथ अब भी सुधा दीदी के भीगे-पन से खेलता रहा।
जैसे ही कॉल कट हुई, सुधा दीदी ने गहरी सांस ली, मानो अचानक से बंधन से मुक्त हुई हो। उनके चेहरे पर राहत साफ दिख रही थी। अगले ही पल उनकी कराहें फिर से हवा में गूंज उठी।
उन्होंने आँखें खोल कर मुझे देखा और काँपती आवाज़ में बोली, “गोलू… अब मत रोकना… मुझे और चाहिए… जोर से करो… आह्ह…” उनकी आवाज़ में अब कोई रोक-टोक नहीं थी, बस खुल कर चाहत और प्यास छलक रही थी। उनकी हर कराह, हर सिसकारी मेरे अंदर और आग भर रही थी, और कार का माहौल फिर से उनके शोर से मदहोश हो गया।
मैं एक पल को और गहराई में जाना चाहता था, लेकिन दिमाग ने चेताया कि रात बहुत हो चुकी है। इतनी देर और रुकना खतरे से खाली नहीं होगा। दिल उनकी प्यास बुझाना चाहता था, मगर समझदारी ने मुझे रोक दिया। मैंने गहरी सांस लेकर अपनी हरकतें थाम ली, और धीरे से उनके कान में कहा, “अब बहुत देर हो चुकी है… हमें रुकना होगा।” सुधा दीदी ने आँखें खोली, उनके चेहरे पर अधूरा सुख और हल्की थकान झलक रही थी, पर उन्होंने कुछ नहीं कहा, सिर्फ चुप-चाप मेरी बाहों में सिर रख दिया।
मैंने कार की चाबी घुमाई और धीरे-धीरे गाड़ी स्टार्ट की। इंजन की हल्की गुनगुनाहट के साथ मैं सड़क पर आगे बढ़ा। सुधा दीदी धीरे-धीरे अपने कपड़े पहनने लगी, फ़र्श से उठा कर। उनकी हर हलचल में अभी भी रात की गर्माहट की परछाई थी, लेकिन मैं ध्यान रखते हुए ड्राइव करता रहा। बाहर की ठंडी रात और कार की मंद रोशनी में उनके हर मूवमेंट को महसूस करना अभी भी एक अलग तरह का अहसास था।
उस रात की घटना के बाद, मेरा मन बार-बार उसी पल को दोहराने को बेचैन रहता। मैं चाहता था कि हम वह अधूरी चीज़ पूरी करें, लेकिन जीवन ने फिर से बाधा खड़ी कर दी। दो दिन बाद हमारा परिवार एक रिश्तेदार की शादी में जाने के लिए तैयार हो गया। यह शादी मेरे कज़िन की थी, इसलिए हमें शादी से तीन दिन पहले ही वहाँ जाना पड़ा। इस वजह से हमें अकेले रहने का बिल्कुल भी मौका नहीं मिला, और हमारी बीच की अंतरंगता को आगे बढ़ाना असंभव हो गया।
गाँव पहुँचते ही मैं और सुधा दीदी अपने कज़िनों से मिलने के लिए उत्साहित हो गए। लंबे समय के बाद हम सभी एक साथ थे और यह मिलन बेहद रोमांचक लग रहा था। दुल्हन भी हमारे साथ जुड़ गई और उसने हमें गाँव का दौरा कराया, घर-घर और गलियों की सैर करवाई। हर जगह की हलचल, लोगों का गर्मजोशी से स्वागत और गाँव की छोटी-छोटी बातें हमें नया उत्साह दे रही थी।
रात के समय, खाना खाने के बाद सभी ने तय किया कि चूँकि घर बहुत छोटा है, इसलिए सभी जवान छत पर सोने जाएंगे। वहाँ कुल 11 लोग थे, 5 लड़कियाँ और 6 लड़के। खुली हवा में तारों भरे आकाश के नीचे, सभी ने अपने-अपने बिछौने बिछा लिए और बैठ कर बातें करने लगे। हम सब बहुत दिनों बाद एक-दूसरे से मिल रहे थे, तो बातों का सिलसिला आधी रात तक चलता रहा।
हम सभी लोग एक-दूसरे का मज़ाक़ उड़ाते और जोर-जोर से हंसते। जब सब की आंखों पर नींद आने लगी तो हर कोई धीरे-धीरे अपनी जगह पर लेट गया, और सोने की कोशिश करने लगा। ठंडी हवा और खुले आकाश के नीचे, सभी सगे भाई बहन पास-पास लेट गए ताकि किसी को अजीब महसूस ना हो। बाकी सभी कज़िन भी धीरे-धीरे सोने की स्थिति में आ गए।
मैं भी सोने की कोशिश कर रहा था, लेकिन मेरी आँखें खुद-ब-खुद खुली रह गई। सुधा दीदी मेरे बगल में सो रही थी और उनकी मौजूदगी मुझे पूरी तरह से जागृत कर रही थी। उनकी साँसें मेरे चेहरे के पास आती, और उनके शरीर की गर्माहट महसूस होती।
उनका चेहरा बेहद शांत लग रहा था, हल्की मुस्कान उनके होंठों पर खेल रही थी। नींद में उनकी पलकों की हल्की हलचल देखी जा सकती थी। उन्होंने अपना आधा शरीर छोटी चादर में ढक रखा था, केवल चेहरा और छाती दिखाई दे रही थी। उनके साँस लेने के साथ उनकी छाती धीरे-धीरे उठती और गिरती, और हल्के कपड़े के नीचे उनके निप्पल कड़े नजर आ रहे थे। उनकी छाती गोल और कोमल दिख रही थी, साँसों के साथ धीरे-धीरे फूलती और सिकुड़ती, हर हल्की हलचल में नाजुक बनावट और ताप महसूस हो रहा था। कपड़े की हल्की पारदर्शिता और निप्पल की कठोरता उनके आकर्षण को और बढ़ा रही थी।
मैं अपनी इच्छाओं को और रोक ना पाया। मैंने अपना आधा शरीर भी चादर के नीचे ले जाकर उनके पास रखा, और धीरे-धीरे उन्हें छूना शुरू किया। हाथ की हल्की स्पर्श उनके शरीर की नाजुकता और गर्माहट को महसूस कर रहा था। फिर मैंने उनके कपड़े के ऊपर धीरे-धीरे उनकी छाती को दबाया। उनका नरम और गर्म स्पर्श मेरी हथेली में पूरी तरह महसूस हो रहा था, और उनके निप्पल की कठोरता कपड़े से महसूस होते हुए मेरी संवेदनाओं को और तेज कर रही थी। हर हल्की हरकत में उनकी छाती की गोलाई और मुलायमता मेरे लिए एक अलग ही अनुभव ला रही थी।
अचानक, मैं थोड़ा ज़्यादा दबा बैठा और अनजाने में उन्हें जगा दिया। उन्होंने हल्का सा हिलते हुए आवाज़ निकालने की कोशिश की, और मैंने तुरंत अपनी दूसरी हथेली उनके मुँह पर रख दी ताकि कोई आवाज़ ना हो। थोड़ी देर बाद, उन्होंने धीरे से मेरा हाथ हटाया और कान के पास फुसफुसाते हुए कहा, “तुम क्या कर रहे हो? अगर कोई जाग गया तो?”
मैंने उन्हें भरोसा दिलाया, “कोई नहीं जागा, सब सो रहे है। अब बहुत देर हो चुकी है।”
सुधा दीदी ने हल्की सी डर और शर्म महसूस की, लेकिन उनकी आँखों में एक चमक और चेहरे पर मुस्कान आई। फिर उन्होंने धीरे से फुसफुसाते हुए कहा, “ठीक है, तुम कर सकते हो।” उनकी आवाज़ में डर और शरम थी, लेकिन वह इशारा कर रही थी कि उन्होंने अनजाने में मुझे अनुमति दे दी थी।
इसके बाद, उन्होंने अपनी पीठ को हल्का सा उठाया और टी-शर्ट के नीचे ब्रा पूरी तरह से खोल दी। इसके तुरंत बाद, उन्होंने फिर से अपनी जगह ठीक की और सोने का नाटक किया, जैसे यह सब सामान्य और आरामदायक हो।
मैं महसूस कर रहा था कि मेरी उत्तेजना चरम पर थी। सुधा दीदी ने मेरी ओर देख कर हल्की मुस्कान दी, और उनकी आँखों में शरम और उत्सुकता दोनों झलक रहे थे। धीरे-धीरे, मैंने अपना हाथ उनकी टी-शर्ट के नीचे डालते हुए उनकी गर्माहट और मुलायमता को महसूस करना शुरू किया।
उनके खुले स्तनों को हाथ में लेते ही महसूस हुआ कि वे कितने नरम और गर्म है। हर हल्की हरकत में उनकी त्वचा की नाज़ुकता और कोमलता मेरे हाथों में पूरी तरह महसूस हो रही थी। सावधानी से, मैं उन्हें धीरे-धीरे दबाने लगा, ताकि आस-पास सो रहे किसी को भी कोई आवाज़ ना सुनाई दे, लेकिन हर स्पर्श मेरी उत्तेजना को और बढ़ा रहा था।
सुधा दीदी का चेहरा भी सब कुछ बयां कर रहा था। उनकी आँखें आधी बंद थी, होंठ हल्के से हिल रहे थे, और चेहरे पर शर्म के साथ हल्की मस्ती और उत्सुकता झलक रही थी। कभी-कभी उनकी सांसें तेज़ होती, और हर छोटे-छोटे भाव में यह साफ दिख रहा था कि वह मेरी हरकतों को महसूस कर रही थी, और उसे मज़ा आ रहा है।
हम पूरी तरह चुप रहने की कोशिश कर रहे थे। अगर किसी ने अपनी पोज़िशन बदली या खाँसी की, तो हम तुरंत रुक जाते और जैसे ही सब ठीक लगता, फिर धीरे-धीरे आगे बढ़ते। हर बार पक्का हो जाने के बाद कि कोई जागा नहीं, हम फिर से अपनी हरकतें शुरू करते। यह सावधानी हमें और रोमांचित कर रही थी, और हर स्पर्श को और भी खास बना रही थी।
मैंने अब उनके स्तनों को जोर से दबाना शुरू किया। वह अपनी सांसें रोकते हुए हल्की-हल्की आवाज़ निकाल रही थी और अपने होंठ दबा कर अपनी आवाज़ को रोकने की पूरी कोशिश कर रही थी। उसके चेहरे पर शर्म और उत्तेजना का मिश्रण साफ़ दिखाई दे रहा था, और हर हल्की हरकत पर वह कुछ पल के लिए खुद को संभालने की कोशिश कर रही थी।
मैं खुद समझ नहीं पा रहा था कि आगे क्या करूँ। बस मैं उनका स्पर्श महसूस करना चाहता था। धीरे-धीरे मैंने उनके निपल्स को अपने हाथ में लिया और उन्हें दबाना शुरू किया। हर हल्का दबाव उनकी प्रतिक्रिया को और स्पष्ट बना रहा था, और वह अपनी सांसें रोकते हुए खुद को संभालने की कोशिश कर रही थी।
लेकिन जैसे ही मैंने थोड़ा और ज़ोर से दबाया, वह अपनी आवाज़ को रोक नहीं पाई और एक छोटी सी आवाज़ निकल गई। मैंने तुरंत अपना हाथ उसके मुँह पर रखा और कहा, “दीदी, आवाज़ मत निकालो।”
उसने धीरे से कहा, “मैं खुद को रोक नहीं पा रही हूँ, धीरे और हल्का करो।” उसकी आवाज़ में हल्की हिचकी और शर्म दोनों थी, और वह चाह रही थी कि मैं थोड़ा ध्यान रखूँ और उसे आराम से महसूस करूँ।
मैंने उसके कहने पर धीरे-धीरे फिर से उनके स्तनों को छूना शुरू किया। हर हल्की दबावट, हर कोमल स्पर्श उसे इतना अच्छा लग रहा था कि वह अपनी सांसें और हल्की फुसफुसाहटों से खुद को रोक नहीं पा रही थी। मैं सावधानी से हर जगह अपना हाथ घुमा रहा था, निपल्स को धीरे-धीरे दबा रहा था, और देख रहा था कि उसके चेहरे पर कैसे शरम और खुशी का मिश्रण खिल उठा।
उसकी प्रतिक्रिया इतनी सजीव और सहज थी कि मुझे हर स्पर्श का असर और भी ज्यादा महसूस हुआ। यह सब इतना धीमा और कोमल था कि वह पूरी तरह लिपट कर मुझसे जुड़ी हुई महसूस कर रही थी और हर हल्की हरकत उसके लिए मोहक बन रही थी।
तभी अचानक किसी ने धीरे से फुसफुसाया, “तुम लोग क्या कर रहे हो?” यह आवाज़ इतनी अचानक आई कि मैं और वह दोनों ठिठक गए।
मैंने तुरंत अपना हाथ उसकी टी-शर्ट से हटा लिया और चारों ओर देखने लगा। मेरी नज़र सामने खड़े इंसान पर पड़ी और मैं चौंक गया। वह दुल्हन थी। अगर आपको अगला पार्ट चाहिए, तो [email protected]
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