पिछला भाग पढ़े:- जब दीदी ने खुद को मेरे सामने खोला-2
भाई-बहन सेक्स कहानी अब आगे-
वाणी दीदी काम के लिए दिल्ली चली गई और एक-दम से सब कुछ बदल गया। हम दोनों बचपन से एक साथ हर एक पल बिताते थे – स्कूल जाना, मोहल्ले में खेलना, यहां तक कि होमवर्क भी साथ करना। लेकिन जैसे ही वो दिल्ली गई, घर का माहौल बदल गया।
शुरू-शुरू में तो फोन और वीडियो कॉल पर बातें होती रही, लेकिन धीरे-धीरे उनके बिजी दिन ने हमारी बात-चीत को कम कर दिया। मैं अक्सर उनके बिना खालीपन महसूस करने लगा। घर के कोनों में उनकी हंसी की गूंज, रात को छत पर बैठ-कर की जाने वाली लंबी बातें, सब कुछ जैसे यादों में सिमट गया।
अब तो मैं उन पलों को भी याद करने लगा, जो सिर्फ हमारे बीच थे। जब वो मेरे पास होती, तो मैं उनके करीब आ जाता, उनका स्पर्श महसूस करता, कभी उनकी छाती को छू लेता, कभी उनकी नर्मी में खो जाता। वो पल जब मैंने पहली बार उन्हें बिना कपड़ों के देखा था, मेरे ज़हन में ताज़ा हो उठते। ये सारी यादें अब मेरे अकेलेपन का हिस्सा बन गई थी, जिन्हें मैं हर रात महसूस करता था।
वो दिल्ली जाने के बाद कम से कम छह महीने तक घर नहीं लौटी। मैं हर दिन उनकी वापसी का इंतज़ार करता रहा, लेकिन बस उनका आने का वादा टलता गया। फिर दीवाली आई। घर में रोशनी, मिठाइयों और खुशियों का माहौल बना हुआ था। उसी समय उन्होंने फोन पर खबर दी कि वो वापस आ रही थी। मेरे दिल की धड़कनें तेज़ हो गई, जैसे बचपन की सारी यादें फिर से लौटने वाली हो।
आख़िरकार वो दिन आ गया जब वाणी दीदी घर लौटी। छह महीने बाद उन्हें देख कर मैं जैसे थम सा गया। उन्होंने हल्के लाल रंग का फिटिंग सूट पहना था, जिसके कपड़े में उनकी देह की हल्की-हल्की लहरें झलक रही थी। उनकी छाती का आकार सधी हुई नरमी के साथ नज़र आ रहा था, कमर पतली और आकर्षक थी, और चलते समय उनका पिछवाड़ा हल्के से लहराता हुआ जैसे हर कदम पर मेरे होश खींच रहा था। खुले बाल और चेहरे की वह हल्की मुस्कान, मानो छह महीने का सारा फासला एक ही पल में मिट गया हो।
जैसे ही उन्होंने दरवाजे के पास बैग नीचे रखा। वो अचानक मेरी तरफ बढ़ी, और मुझे बहुत कस कर गले लगा लिया। उनकी छाती मेरे सीने से सट कर ऐसे महसूस हो रही थी, जैसे गर्म और नरम तकिया, जिसकी धड़कनें मेरी धड़कनों के साथ मिल कर तेज़ हो रही थी। तभी उन्होंने मेरे गाल पर हल्के से अपने होंठ रखे। उनके होंठों की नर्मी और हल्की गर्माहट मेरी त्वचा में उतर गई, जैसे कोई मीठी लहर मेरे भीतर तक फैल गई हो। उन्होंने फुसफुसा कर कहा, “मैंने तुम्हें बहुत मिस किया।” उस पल मैं बस उनकी सांसों और होंठों के एहसास में खो गया।
कुछ देर बाद हम दोनों सोफे पर बैठ गए। उन्होंने हंसते हुए अपने काम के बारे में बताना शुरू किया। कैसे दिल्ली में उनका ऑफिस है, कितने नए लोग मिले, और कितनी चुनौतियां थी। फिर उन्होंने सफर के दौरान खाई गई चीज़ों का जिक्र किया, और रास्ते में हुए कुछ मज़ेदार किस्से सुनाए। मैं बस उनकी बातें सुनता रहा, हर शब्द में उनके लौट आने की खुशी महसूस कर रहा था।
शाम होते-होते दीदी ने कहा कि वो बहुत थक गई थी, और जल्दी सोना चाहती थी। हमारे छोटे से घर में हम वैसे ही पुराने दिनों की तरह एक ही कमरे में सोने लगे। वो जल्दी ही सो गई, लेकिन मेरी आंखों में नींद नहीं थी। मैं करवट लेकर उनकी ओर देखने लगा। उनका सीना हर सांस के साथ हल्के-हल्के ऊपर-नीचे हो रहा था। सूट के कपड़े के नीचे उनकी छाती का उभार नरम और भरा हुआ सा लग रहा था, जैसे कपड़े में छुपी कोई गर्म, धड़कती हुई मिठास। उनकी बंद आंखों और हल्के खुले होंठों में एक सुकून था, और मैं बस उन्हें देखते-देखते नींद में खोने लगा।
अगली सुबह मेरी नींद खुली तो पाया कि दीदी बिस्तर में नहीं थी। जब मैंने बाहर आकर पूछा तो मम्मी ने बताया कि वो बाथरूम में कपड़े बदल रही थी, त्योहार के लिए तैयार हो रही थी। हमारा बाथरूम घर के बाहर आंगन के कोने में था। मैं वहां गया और दरवाजे पर हल्के से दस्तक दी। अंदर से उनकी आवाज आई—“कौन?” मैंने थोड़ा रुक कर जवाब दिया, “दीदी मैं हूं।”
कुछ पल की खामोशी के बाद दरवाजा धीरे से खुला। जैसे ही दरवाजा खुला, मैं ठिठक गया। उन्होंने नया गहरे नीले रंग का टॉप और हल्की फिटिंग जींस पहन रखी थी। टॉप का गला थोड़ा ढीला था, जिससे उनकी भरी हुई, गोल छाती का गहरा क्लीवेज साफ़ दिख रहा था। कपड़े के नीचे उनके स्तनों का आकार इतना उभरा हुआ था, कि हर सांस के साथ उनका हल्का सा हिलना भी नज़र आ रहा था।
उनके बाल खुले थे, कुछ लटें चेहरे पर गिर कर होंठों को हल्के से छू रही थी। वो एक हाथ से अपने बालों को कान के पीछे कर रही थी, जिससे उनकी गर्दन और सीने का हिस्सा और भी साफ़ नज़र आने लगा।
उस पल मैं खुद को रोक नहीं पाया, और एक-दम अंदर घुस कर दरवाजा बंद कर दिया। वो हैरानी से बोली, “अरे… ये क्या कर रहे हो?” उन्होंने मुझे हल्के से धक्का देने की कोशिश की और जल्दी से फुसफुसाईं, “गोलू… अगर कोई बाथरूम के पास आ गया तो?” लेकिन मेरी सांसें भारी हो चुकी थी।
मैंने उनकी आंखों में देखते हुए कहा, “दीदी… आपको देखे हुए छह महीने हो गए हैं… अब खुद पर काबू नहीं रख पा रहा।” इतना सुन कर वो कुछ पल के लिए चुप हो गई, और मेरा चेहरा उनके इतने करीब था कि मैं उनकी तेज धड़कनों को महसूस कर सकता था।
अगले ही पल मैंने उनके होंठों को दबोच लिया, और वह बिना झिझक मेरे साथ जुड़ गईं। मेरे होंठ उनके होंठों को जोर से पीस रहे थे, हमारी लार आपस में मिल कर होंठों को चिकना और गीला बना रही थी। उनकी जीभ बेरहमी से मेरे मुंह में घुस आई, मेरी जीभ से टकराई और उसे लपेटते हुए मरोड़ने लगी।
मैं अपनी जीभ को उनके मुंह में गहराई तक घुसा कर उनके हर कोने को महसूस कर रहा था। लार हमारे ठुड्डी तक बहने लगी थी, और हम दोनों ऐसे चूस रहे थे जैसे एक-दूसरे की सांस तक पी लेना चाहते हों। हर लपलपाती हरकत ने मेरे लंड को और सख्त बना दिया, और उनके सीने मेरे सीने से दब कर हल्के-हल्के हिल रहे थे।
फिर मैंने अपना हाथ नीचे सरका कर उनके टाइट फिटेड जीन्स के ऊपर उनके नाज़ुक हिस्से पर रख दिया और जोर से रगड़ना शुरू कर दिया। जीन्स के कपड़े के बावजूद मैं उनकी गरमी और हल्का-सा गीलापन महसूस कर पा रहा था। जैसे ही मेरी उंगलियां वहां और दबाव डालने लगी, उन्होंने किस्स करते-करते हल्की-हल्की कराह भरनी शुरू कर दी। उनके होंठ मेरे होंठों पर कस कर जमे थे, लेकिन हर दबाव के साथ उनकी सांसों की गति और कराहें तेज हो रही थी, जो मेरे कानों में एक नशा भर रही थी।
मेरी आग अब और बढ़ चुकी थी। मैंने अपना चेहरा नीचे झुका कर उनके सीने पर रख दिया और उनके नीले रंग के टॉप के ऊपर से ही उनके उभरे हुए निप्पलों को होंठों में दबा लिया। कपड़े और ब्रा के बीच से भी मैं उनके निप्पलों की सख़्ती और गर्मी महसूस कर पा रहा था। मैंने उन्हें अपने होंठों और जीभ से रगड़ते हुए चूमा, जिससे वाणी दीदी के होंठों से एक और गहरी कराह निकल गई। उनके नीले टॉप के कपड़े के नीचे ब्रा का हल्का-सा खुरदरापन मेरे होंठों को चुभ रहा था, लेकिन उस स्पर्श में जो गर्माहट और कसावट थी, उसने मुझे और पागल कर दिया।
मैंने धीरे-धीरे अपना हाथ नीचे ले जाकर उनकी जीन्स का बटन खोलने की कोशिश की, लेकिन वाणी दीदी ने तुरंत मेरा हाथ पकड़ लिया। उन्होंने सांसों के बीच हल्की सख्ती से कहा, “नहीं गोलू… अभी नहीं।” उनकी आंखों में चाहत तो साफ़ झलक रही थी, लेकिन साथ ही एक झिझक भी थी, जिसने मुझे वहीं थम जाने पर मजबूर कर दिया।
मैंने धीरे-धीरे अपना हाथ नीचे ले जाकर उनकी जीन्स का बटन खोलने की कोशिश की, लेकिन वाणी दीदी ने तुरंत मेरा हाथ पकड़ लिया। उन्होंने सांसों के बीच हल्की सख्ती से कहा, “नहीं गोलू… अभी नहीं।” मैंने सांस रोक कर पूछा, “क्यों दीदी?”
उन्होंने मेरी आंखों में देखते हुए फुसफुसाया, “मम्मी-पापा घर पर ही हैं… ये बहुत रिस्की है।” उनकी आंखों में चाहत तो अब भी थी, लेकिन उनके शब्दों में सावधानी साफ झलक रही थी।
शाम होते-होते जब भी मेरी और दीदी की आंखें एक-दूसरे से मिलती, हम दोनों के होंठों पर हल्की सी मुस्कान खिल उठती। छह महीनों बाद आखिरकार उनके होंठ मेरे होंठों से मिले थे। उनके निप्पल की सख्ती मेरी उंगलियों तक महसूस हो रही थी।
रात के आठ बजे के करीब मम्मी-पापा, वाणी दीदी और मैं आंगन में पटाखे जला रहे थे। दीदी को पटाखों से थोड़ा डर लगता था, इसलिए मैं उनके पास गया और उनका हाथ पकड़ लिया।
उनका हाथ थामते ही एक हल्की सी गर्माहट मेरी हथेली में उतर आई। उनके शरीर से आती खुशबू मानो ताजे फूलों और साबुन की मिली-जुली महक हो, जो ठंडी रात की हवा में और भी मीठी लग रही थी।
धीरे-धीरे हमने साथ में पटाखे जलाने शुरू किए और हर बार की तरह उन्होंने मुस्कुरा कर मुझे देखा। मम्मी-पापा ने हम दोनों की कुछ तस्वीरें भी खींचीं, जिसमें हम हंसते और पटाखों की रोशनी में चमकते नज़र आ रहे थे। इतने समय बाद, लगभग छह महीने बाद, मुझे उनके साथ ऐसे समय बिताने का मौका मिला था, जिसमें सिर्फ़ हंसी, रोशनी और एक-दूसरे का साथ था।
पटाखों का मज़ा लेने के बाद हम सब ने साथ में खाना खाया। खाने के बाद, जैसे हमेशा होता था, हम दोनों अपने कमरे में चले गए। कमरे में जाने के बाद हम दोनों बेड पर बैठ कर बातें करने लगे। उनकी मौजूदगी मेरे भीतर एक अलग ही एहसास दिला रही थी।
थोड़ी देर बाद उन्होंने कहा, “गोलू, अलमारी में से मेरा नाइट ड्रेस निकाल दे।” मैं उठ कर अलमारी की ओर गया और नाइट ड्रेस निकाल कर उन्हें देने लगा, लेकिन तभी मैंने देखा कि उनका टॉप का चेन थोड़ा फंसा हुआ था। उन्होंने हल्की झिझक के साथ मेरी तरफ देखा और कहा, “ज़रा मदद कर दे ना, ये फंस गया है।”
मैं उनके पास गया और चेन को खोलने की कोशिश की, लेकिन वह कपड़े के धागों में बुरी तरह उलझा हुआ था। मैंने धीरे-धीरे खींच कर उसे निकालने की कोशिश की, मगर जब वह नहीं खुला तो मैंने ज़ोर से खींचा। एक झटके में चेन तो खुल गया, लेकिन साथ ही उनके टॉप का एक हिस्सा हल्का सा फट गया।
वह अपने नए ड्रेस के फट जाने से थोड़ी उदास हो गई और बोली, “ओह… ये तो नया था।” मैंने उनकी तरफ देखा और हल्के से मुस्कुरा दिया। उन्होंने कुछ पल हैरानी से मुझे देखा और फिर शरारत भरी मुस्कान के साथ बोली, “अब जब कल मम्मी इसके बारे में पूछेगी, मैं क्या जवाब दूंगी?”
उन्होंने मुझे थोड़ी देर देखा। फिर उन्होंने धीरे-धीरे टॉप उतारा और बेड पर रख दिया। अब वह मेरे सामने खड़ी थी, हल्के गुलाबी ब्रा में। कपड़ा इतना पतला और चिपटा था कि उसकी गोल, भरी छाती की हर वक्रता और निपल्स का हल्का उभार साफ़ दिखाई दे रहा था। हल्की रोशनी में ब्रा के नीचे उसकी निपल्स की सख्ती और रंगत पूरी तरह दिखाई दे रही थी, मानो हर पल और गहरी होती जा रही हो। उसकी छाती की गोलाइयाँ और ब्रा की फिटिंग के कारण हर उभार, हर झिलमिलाहट इतनी स्पष्ट थी कि मैं बस उसे घूरते ही रह गया।
वह धीरे से बेड पर बैठ गई और अपनी फिटेड जीन्स उतारने की कोशिश करने लगी, जो बहुत टाइट होने के कारण आसानी से नहीं उतर रही थी। उसने मुझे देख कर हल्की मुस्कान दी और बोली, “मदद करोगे?”
फिर वह लेट गई और धीरे से अपने पैर हवा में उठा दिए। मैंने दोनों हाथों से जीन्स के किनारे थामे और धीरे-धीरे उसे नीचे खींचना शुरू किया। जीन्स उसकी जांघों से सरकते हुए धीरे-धीरे नीचे जाती रही, हर इंच खुलते ही उसकी नर्म, गोरी त्वचा मेरे सामने आती गई। उसकी पिंडलियों से होते हुए टखनों तक जीन्स का उतरना जैसे समय को थामे हुए था, और उस पल की गर्मी और नज़दीकी हवा में भर गई थी।
जब जीन्स पूरी तरह उतर गई, वह अब सिर्फ अपनी नाजुक पैंटी और फिटिंग ब्रा में थी। पैंटी के नीचे उसकी नाज़ुक जगह का उभार साफ़ झलक रहा था, जैसे कपड़े के पीछे कोई गर्म और नर्म धड़कन छिपी हो। कपड़े की पतली परत हर हल्की हरकत के साथ उसकी कोमलता को उकेर देती, और उसके पैरों के हल्के-से खुलने से पैंटी के नीचे का आकार और भी साफ़ नज़र आने लगता।
वहां की गरमाहट और नर्मी, पतले कपड़े के पार से भी महसूस हो रही थी। मैं बस उन्हें देखता रहा, उनकी आंखों में हल्की-सी झिझक और होठों पर मीठी मुस्कान तैर रही थी। फिर उन्होंने धीरे-धीरे अपने दोनों हाथ फैला कर मुझे पास आने का इशारा किया, मानो अपने सीने में समा लेने की इजाज़त दे रही हो। मेरी वाणी दीदी अब मुझे अपने करीब बुला रही थी, जैसे वह उस वादे को पूरा करने जा रही हो, जो उन्होंने दिल्ली जाने से पहले मुझसे किया था।
मैं धीरे-धीरे उनके ऊपर झुक गया और अपने शरीर को उनके शरीर पर कस कर टिका दिया। जैसे ही मेरा सीना उनकी छाती से जोर से भींचा, उनकी मुलायम गोलाइयां दब कर और भी फैल गई। ब्रा में कसे हुए उनके स्तन मेरे सीने के नीचे दबते-उभरते रहे, मानो मेरे हर धड़कन के साथ उन्हें मसल रहे हों। उनकी ब्रा के पीछे छिपी कड़कड़ाती नोकें मेरे सीने से रगड़ खातीं तो बिजली-सी सनसनी दौड़ जाती। उनकी तेज़ सांसें और कराह भरी आवाज़ मेरे कानों में घुलती गई, और मैं उस मदहोश कर देने वाली गर्माहट में और गहराई से डूबता चला गया।
उसी नज़दीकी में मैंने अपना चेहरा नीचे झुकाया और उनके होंठों पर अपने होंठ रख दिए। जैसे ही हमारे होंठ मिले, उनका पूरा बदन सिहर उठा। मैंने धीरे-धीरे उनकी निचले होंठ को चूसना शुरू किया, और वह हल्की कराह के साथ अपनी जीभ मेरे मुंह में डालने लगी। मैंने भी उसे पकड़ कर अपनी जीभ से लपेट लिया, हमारी लार आपस में घुलने लगी, और चुंबन गीला व बेहिसाब होता गया। उनकी सांसें और तेज़ हो गई, और मैं बेतहाशा उन्हें चूमता चला गया, मानो अब उनके होंठों से अलग होना नामुमकिन हो।
चुंबन की उसी गरमी में मैंने अपना हाथ ऊपर बढ़ाया और उनकी ब्रा के ऊपर से उनके स्तनों को दबाना शुरू कर दिया। मुलायम, भरे हुए स्तन मेरी हथेली में कस कर भर गए और हर दबाव के साथ उनके होंठों से और गहरी कराह निकलने लगी।
मैंने अपनी उंगलियों से उनके स्तनों को रगड़ा, कभी गोलाई में दबाया तो कभी हल्के से मसलते हुए उनकी निप्पल्स तक उंगलियां ले गया। कपड़े के पार से भी उनकी नोकें मेरी उंगलियों के नीचे सख़्त हो चुकी थी, और उन्हें दबाते ही उनका पूरा शरीर मरोड़ खाकर मेरे सीने से और कस कर चिपक गया।
अब मैं खुद को रोक नहीं पाया। मैंने उनकी ब्रा के हुक खोल दिए और कपड़ा हटते ही उनके भरे हुए स्तन खुल कर मेरी आंखों के सामने आ गए। मैंने तुरंत झुक कर उनके एक स्तन पर होंठ रख दिए और चूसना शुरू कर दिया। मेरी जीभ उनकी निप्पल पर घूमती रही, जिसे चाटते ही वह जोर से सिसकारी भर उठी। मैं कभी एक स्तन को चूमता, कभी दूसरे को, और हर बार उनका बदन सिहर कर मेरी गिरफ्त में कस जाता।
वह एक हाथ से मेरे सिर को दबा कर अपने सीने से चिपकाती रही, जबकि दूसरे हाथ से अपने बालों को सहलाती हुई हल्की कराहों में खोती जा रही थी। उनकी हर सांस, हर आहट मुझे और पागल कर रही थी, और मैं उनके उभरे हुए स्तनों को बेतहाशा चूमता और चूसता चला गया।
इसी बीच मैंने धीरे-धीरे अपना हाथ उनकी पैंटी की तरफ बढ़ाया, और उसकी किनारी पकड़ कर खोलने की कोशिश की। लेकिन तभी उन्होंने मेरा हाथ रोक लिया। उनकी आंखों में हल्की-सी गंभीरता और होंठों पर अब भी वही गर्म मुस्कान थी। उन्होंने फुसफुसा कर कहा, “रुको… पहले मुझे तुमसे कुछ कहना है।”
वह यह कह कर चुप हो गई। मैं वहीं उनके ऊपर झुका रह गया, लेकिन अचानक अपने शरीर को पीछे खींच कर उठ खड़ा हुआ। उनकी आंखों में देख कर मेरे चेहरे पर गहरी बेचैनी उतर आई थी। मेरे कदम जैसे थम गए और मैं बस उन्हें घूरता रह गया।
उन्होंने मेरी तरफ देखा, और हैरानी से पूछा, “क्या हुआ? ऐसे क्यों देख रहे हो?”
मैंने भारी आवाज़ में कहा, “तो हमारे बीच जो कुछ हुआ… उसका क्या मतलब था? हमारा रिश्ता आखिर है क्या?”
उन्होंने गहरी सांस लेते हुए नज़रें झुका ली और धीमे स्वर में बोली, “तुम मेरे छोटे भाई हो… और हम बस भाई-बहन हैं। इससे ज़्यादा कुछ नहीं।”
उन्होंने एक बार फिर से हौले से कहा, “हम बस भाई-बहन है। इससे ज़्यादा कुछ नहीं। अगर तुम मुझे रोज़ पाना चाहते हो, मेरे साथ सोना चाहते हो… तो यह हमारे बीच हो सकता है, लेकिन मेरे लिए तुम हमेशा सिर्फ मेरे छोटे भाई रहोगे।”
इतना कह कर वह धीरे से अपने खुले स्तनों को दोनों हाथों से सहलाने लगी, मानो मुझे फिर से बहकाने की कोशिश कर रही हो। उन्होंने अपनी निप्पल्स को अंगुलियों से रगड़ा और हल्की कराह के साथ मेरी तरफ देखा। लेकिन इस बार मैंने उनकी ओर बढ़ने से इंकार कर दिया। मैं उठ कर सीधा ड्रॉइंग रूम में चला गया और सोफे पर लेट गया, ताकि सब शांत हो सके। अगला पार्ट चाहते है तो [email protected]
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