पिछला भाग पढ़े:- उस रात दीदी ने चखाया अपना गीलापन-3
भाई बहन सेक्स कहानी अब आगे-
शाम करीब सात बजे मैं उनकी दोस्त के घर पहुंचा। दीदी ने मुझे देखा तो उनका चेहरा थोड़ा अजीब सा हो गया। उन्होंने मुझे देखा, फिर नज़रें हटा लीं, जैसे सोच रही हों कि मैं यहां कैसे आया था। मैं कार से उतरा और उनके दोस्त और परिवार से हाथ मिलाया। सब ने मुस्कुरा कर मेरा स्वागत किया, लेकिन दीदी बार-बार मेरी तरफ देख रही थी, पर कुछ कहने से बच रही थी।
थोड़ी देर बाद दीदी ने कहा कि चलो, अब चलना चाहिए। मैंने उनकी मदद की और दोनों कार में बैठे। अंदर बैठते ही मैं सोच रहा था कि ये पल हमारे लिए कितना खास था। लेकिन उनकी चुप्पी और अजीब एहसास ने मेरे मन को बेचैन कर दिया।
कार चलाते हुए मेरी नजरें सुधा दीदी की छाती पर अक्सर टिक जाती थी। उनकी टाइट टी-शर्ट के नीचे उनके बड़े और गोल स्तन हर हल्की हरकत में ऊपर-नीचे होते रहे। जब कार के झटकों या मोड़ों पर उनका शरीर हल्का हिलता, तो उनकी छाती का उछाल साफ दिखता था। उस नजारे को देख मेरा दिल तेज़ी से धड़कने लगता था, और मैं खुद को रोकने की कोशिश करता था, लेकिन उनकी हरकतें मेरी नजरों से छुप नहीं पाती थी।
रास्ते में थोड़ी दूरी चलने के बाद मुझे भूख लगने लगी। मैंने धीरे से कहा, “मुझे थोड़ी भूख लग रही है, अगर आप कहें तो पास में किसी होटल पर रुक लें?” वह अब भी मुझसे नाराज़ थी, यह उनके चुप और सख्त हाव-भाव से साफ था, लेकिन उन्होंने हल्के स्वर में कहा, “ठीक है, अगर तुम्हें रुकना है तो रुक लो।” उनके लहजे में ठंडापन था, पर फिर भी उन्होंने इजाज़त दे दी। मैंने सड़क किनारे दिख रहे एक छोटे से होटल की ओर गाड़ी मोड़ दी, ताकि कुछ खाकर आगे का सफर जारी रख सकूं।
होटल के अंदर हम दोनों एक कोने की मेज़ पर बैठ गए और खाना ऑर्डर किया। माहौल साधारण था, पर खाने की खुशबू अच्छी लग रही थी। खाना आने के बाद मैंने कोशिश की कि माहौल हल्का हो जाए, और धीरे से कहा, “सुधा दीदी, मुझे उस दिन के लिए माफ़ कर दो… मेरी गलती थी।” मैंने उनकी आंखों में देखा, उम्मीद थी कि वह कुछ नरम पड़ेंगी, लेकिन उनका चेहरा सख्त रहा। उन्होंने बस इतना कहा, “गोलू, कुछ बातें माफ़ करना आसान नहीं होता, खास कर जब कोई बिना इजाज़त भाई-बहन की सीमाएं तोड़े।”
मैंने थोड़ा रुक कर अपनी बात रखने की कोशिश की, “सुधा दीदी, मैं मानता हूं कि मैंने ग़लत किया… लेकिन याद है पिछली बार जब आपने मुझे अपनी नाज़ुक जगह दिखाई थी? उसके बाद से ही मैं बस उसे महसूस करना चाहता था, छूना चाहता था। इसी वजह से मैंने वो ग़लत हरकत कर दी।” मेरी आवाज़ धीमी थी, जैसे मैं अपनी सफाई देने की कोशिश कर रहा था।
सुधा दीदी ने मेरी बात सुनने के बाद कुछ देर तक मुझे देखा, फिर प्लेट में नज़रें गड़ाए चुप-चाप खाने लगी। मैंने महसूस किया कि वह जान-बूझ कर मुझे नज़र-अंदाज़ कर रही थी।
थोड़ी देर में हम दोनों ने अपना खाना खत्म किया और फिर वापस गाड़ी में बैठ कर सफ़र जारी रखा। कार एक बार फिर से चलने लगी। घर पहुंचने के लिए अब भी तीन घंटे का सफर तय करना था। सुधा दीदी अब भी मुझ पर गुस्सा थी, और उनको किस तरह मनाना चाहिए, मुझे समझ नहीं आ रहा था।
करीब रात के दस बजे उन्होंने मेरी तरफ हिचकते हुए देखा और हौले से कहा, “गोलू, मुझे जोर से बाथरूम जाना है। क्या तुम गाड़ी रोक सकते हो?” मैंने तुरंत कार सुनसान सड़क किनारे खड़ी कर दी।
वह अब भी मुझसे नाराज़ दिख रही थी, लेकिन जैसे ही वह कार से उतरी, मैंने सामने वाले शीशे से उन्हें देखना शुरू कर दिया।
वह कार से थोड़ी दूर जाकर रुकीं, फिर धीरे-धीरे अपनी पैंट नीचे करने लगी। चांदनी की हल्की रोशनी में उनकी टांगों की झलक मुझे साफ़ दिख रही थी। वह बैठ गई, और फिर हल्की-सी आवाज़ के साथ पानी की धार गिरने लगी, तेज़, साफ़, चमकती हुई, जो छोटे-छोटे पत्थरों पर टकरा कर बिखर रही थी। उस पल में वह झलक उतनी सुखद नहीं थी, लेकिन फिर भी मैं उससे अपनी नज़रें नहीं हटा पा रहा था।
कुछ देर बाद वह उठीं, कपड़े ठीक किए और वापस कार में आकर बैठ गई। मैंने इंजन स्टार्ट करने के लिए चाबी घुमाई ही थी कि उन्होंने हल्के से कहा, “रुको, गोलू… मुझे तुमसे कुछ बात करनी है।”
मैंने उनकी ओर देखा, वह थोड़ी गंभीर थी। उनकी नज़रें मेरी आंखों में टिकी थी, और मैं भी बिना पलक झपकाए उन्हें देखता रहा।
उन्होंने धीमे स्वर में कहना शुरू किया, “तुम्हें पता है, उस दिन जब तुमने मुझे छूने की कोशिश की थी… मुझे बहुत डर लगा था। ऐसा लगा जैसे कुछ टूट गया हो। लेकिन बाद में… मैंने सोचा, शायद मैंने ज़्यादा रिएक्ट किया। क्योंकि तुमने पहले भी… मेरे सीने को छुआ था, और तब भी हमारा भाई-बहन का रिश्ता टूटा नहीं था।”
वह कुछ पल रुकी, फिर हल्की सांस लेकर आगे बोली, “गोलू, तुम मेरे भाई हो… मैं तुम्हारी परवाह करती हूं। तुम्हारी खुशी मेरे लिए मायने रखती है, और अगर मैं तुम्हें खुश देख सकती हूं, तो मैं वो करना चाहती हूं।”
इतना कह कर उन्होंने बिना कुछ और बोले धीरे-धीरे अपनी टी-शर्ट ऊपर खींचनी शुरू की। मेरे सामने उनका गला और फिर सीना नज़र आने लगा। मेरा दिल तेज़ धड़कने लगा। उन्होंने पूरी तरह टी-शर्ट उतार दी, और फिर धीरे से अपनी ब्रा की हुक खोली। ब्रा हटते ही उनकी नंगी छाती मेरी आंखों के सामने थी, गोलाई से भरी, मुलायम और गर्माहट लिए हुए।
मेरी सांसें रुक-सी गई, जैसे पल थम गया हो। इतने दिनों से जिस सुधा दीदी के कपड़ों के साथ मुझे खुदको अच्छा महसूस करवाना पड़ा था, वहीं सुधा दीदी एक बार मेरे सामने नंगी बैठी थी। हल्की चांदनी में उनके गुब्बारे साफ साफ दिखाई दे रहे थे, जैसे दूध से भरे हों और बस छूने के इंतज़ार में हों।
मैंने उनकी तरफ देखते हुए कहा, “दीदी, मैं तुम्हारे सीने को पहले ही छू चुका हूं… अब मैं तुम्हारे चुत को महसूस करना चाहता हूं।”
वो हल्का-सा शर्मा गई, आंखें झुका ली, फिर धीरे से बोली, “ठीक है, गोलू… तुम्हें इजाज़त है।” उन्होंने अपनी फिटेड जींस उतारने की कोशिश की, लेकिन कार के छोटे से इंटीरियर में यह मुश्किल हो रहा था। फिर वो खिड़की से सिर टिका कर लेट गईं और धीरे से बोली, “गोलू, तुम ही इसे उतार दो।”
मैंने दोनों हाथों से उनकी जींस पकड़ी और धीरे-धीरे नीचे खींचने लगा। उनकी टांगों की चमकती त्वचा, जांघों की मुलायम रेखाएं और पतली कमर पर टिकी छोटी-सी पैंटी, सब कुछ चांदनी में बेहद खूबसूरत लग रहा था। उनके पूरी बदन का हर हिस्सा मेरी आंखों में बस गया था, और मेरी सांसें तेज़ हो चुकी थी।
जैसे ही जींस उनके बदन से अलग हुई, उनके चेहरे पर एक लाली सी छा गई। वो शर्माने लगी, और उसी के साथ उनका चेहरा धीमी मुस्कान के साथ खिल उठा। हल्की चांदनी में उनका चेहरा कुछ ज्यादा ही प्यारा लग रहा था।
वो फिर कार की सीट पर लेट गई। कार का छोटा सा इंटीरियर उनके बदन को फैलाने के लिए काफी नहीं था, जिससे उन्हें करवट बदलने और आराम से लेटने में मुश्किल हो रही थी। फिर भी उन्होंने खुद को संभाला और उसी तंग जगह में लेट कर अपनी नज़रें मुझ पर टिकाए रखी, जबकि मैं उनके पैरों के पास बैठा था।
वो कार की सीट पर तंग जगह में लेटी थी, आंखें मुझ पर टिकाए, और मैं उनके पैरों के पास बैठा था। मैंने धीरे से उनके दोनों पैरों को पकड़ कर ऊपर किया और फिर सावधानी से उनकी पैंटी की किनारी पकड़ कर नीचे सरका दी। पतली कपड़े की परत हटते ही उनकी नंगी त्वचा की गरमाहट और महक महसूस हुई, और वो हल्का-सा सिहर उठी।
पतला कपड़ा हटते ही पहली बार उनकी नंगी जगह मेरी आंखों के सामने थी, गुलाबी आभा लिए, नर्म और कोमल त्वचा से घिरी, बीच में हल्की-सी दरार जैसी रेखा, जिसके किनारों पर महीन, मुलायम बाल थे। चांदनी में वहां की नमी चमक रही थी, जैसे किसी गुप्त फूल की पंखुड़ियां खुल कर अपनी खुशबू बिखेर रही हों।
मैं कुछ पल वहीं ठहर गया, आंखें उनकी उस जगह पर टिकी रही। उनकी सांसें तेज़ हो गई, चेहरे पर गहरी लाली छा गई और पलकों के नीचे से झिझक भरी निगाहें मुझ पर पड़ी। होंठ हल्के-से कांप रहे थे, जैसे वो बोलना चाहती हो, पर शब्द गले में अटक गए हों।
मैंने धीरे से अपना हाथ उनकी जांघों के पास ले जाकर उस नर्म हिस्से की तरफ बढ़ाया, तो उन्होंने झटके से अपनी दोनों टांगें आपस में भींच ली। उनकी आंखों में झिझक और गहरी लाज साफ दिख रही थी, जैसे वो किसी अनजाने डर और उत्सुकता के बीच फंसी हो।
मैंने हल्के से मुस्कुराते हुए उनके घुटनों पर हाथ रखा और फुसफुसाया, “दीदी… बस एक बार।” उन्होंने पलकें झुका ली, होंठ भींच लिए, और चेहरा लाल हो गया। उनकी सांसें गहरी थी, मानो वो खुद को संभालने की कोशिश कर रही हों। मैंने धीरे-धीरे उनके घुटनों पर दबाव देकर टांगों को अलग किया। वो हल्का-सा कांपी, लेकिन मैंने नरमी से उनकी जांघों को थाम कर ऊपर उठाया, ताकि उनका नाजुक हिस्सा पूरी तरह मेरी नज़रों में आ जाए।
चांदनी में उनकी नर्मी और हल्की गुलाबी आभा को देख मेरा दिल जोर से धड़कने लगा। हम भाई-बहन होते हुए भी, उस पल हम दोनों के बीच की सारी सीमाएं टूटने को तैयार थी। कांपते हाथों से मैंने पहली बार उनकी उस जगह को छुआ, वो गर्म और मुलायम अहसास मेरी उंगलियों से होते हुए सीधे दिल में उतर गया। वो हल्के से सिहर उठी, आंखें बंद कर ली, जैसे उस पल में समय थम गया हो।
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