पिछला भाग पढ़े:- नेहा दीदी के होंठों में लंड की पहली आग-3
भाई-बहन सेक्स कहानी अब आगे-
दिल्ली के उस छोटे से कमरे में जहा पर मैं और नेहा दीदी रहते थे, अचानक सब कुछ बदल गया। जब से दीदी ने मेरा लंड अपने मुंह में लिया था, उसके बाद से उनका बर्ताव पूरी तरह बदल गया था। अब हमारे दोनों के बीच सिर्फ भाई-बहन का रिश्ता नहीं था बल्कि कुछ और भी पनप रहा था। नेहा दीदी ने हर संडे को मेरी एक ख्वाहिश पूरी करने का वादा तो किया था, लेकिन अब वह मुझसे उस तरह से नहीं डरती थी जिस तरह पहले था।
धीरे-धीरे दीदी का व्यवहार बदलने लगा। वह अब बिना झिझक के अपनी पैंटी और ब्रा सुखाने तक से परहेज़ नहीं करती थी। कभी-कभी जान-बूझ कर ऐसे खुले कपड़े पहनतीं जिनसे उनका क्लीवेज साफ दिखता और फिर भी उन्हें कोई शर्म नहीं होती। कई बार तो वह मेरे सामने ही कपड़े बदलने लगती, ताकि मैं उनके उभरे हुए स्तनों को और साफ देख सकूं। यह सब देख कर मेरे अंदर की बेचैनी और दीदी के लिए चाहत और भी बढ़ जाती थी।
अब मेरे मन में और भी गंदी बातें आने लगीं। पोर्न वीडियोज़ में जो-जो हरकतें मैंने देखी थी, वैसी ही दीदी के साथ करने की ख्वाहिश मेरे अंदर जोर पकड़ने लगी थी। मैं चाहता था कि दीदी मुझे उन सब अनुभवों का मज़ा दें, लेकिन उनका एक नियम था, वह सिर्फ हर संडे को मेरी एक ही ख्वाहिश पूरी करती। यही शर्त मुझे रोक देती थी। मन में जितनी भी ख्वाहिशें उठती, उन्हें दबा कर मुझे अगले संडे का इंतज़ार करना पड़ता था।
चार दिन बाद, जब हम दोनों रात का खाना खा रहे थे, अचानक दीदी ने मुझे देख कर मुस्कुराते हुए धीमे स्वर में पूछा, “तुझे कैसा लगा था, जब मेरे होंठ तेरे लंड को छू रहे थे? जब मैंने पहली बार तेरे लंड को हाथ से पकड़ा था?”
उनकी यह आवाज़ सुन कर मैं अंदर से हिल गया। सालों पहले जब मेरा सफ़ेद पानी उनके कपड़ों पर निकल गया था, दीदी मुझ पर गुस्सा हो गई थी। उन्होंने मुझे डांटा था कि ऐसी गंदी हरकतें मत किया कर। और आज वही दीदी अपने होंठों और हाथों से छुए उस पल के बारे में मुझसे पूछ रही थी। यह बदलाव मेरे लिए झटके जैसा था। कभी जिस दीदी से डांट खाता था, अब वही दीदी मेरे साथ उन गंदी बातों को साझा करना चाह रही थी।
मैंने काँपते हुए उनकी आँखों में देखते हुए जवाब दिया, “दीदी, जब तेरे होंठ मेरे लंड पर थे… वो अहसास तो जैसे स्वर्ग था। जैसे मैं किसी जन्नत में पहुँच गया हूँ, जहाँ मेरी सारी ख्वाहिशें पूरी हो जाती हैं। वो पल मेरे लिए किसी सपनों की दुनिया जैसा था।”
मेरे जवाब पर दीदी ने गहरी सांस लेते हुए कहा, “मुझे भी अजीब लगा था। आखिर तू मेरा छोटा भाई है… और मैं तुझे हमेशा डांटती रही हूँ। लेकिन जबसे तूने रात में मुझे छूना बंद किया है, मुझे लगता है कि जो कुछ भी हम कर रहे हैं, कहीं ना कहीं सही है। अब ये रिश्ता अजीब तो है, लेकिन मुझे गलत नहीं लगता।”
शनिवार की रात आते-आते मेरी बेचैनी हद से ज्यादा बढ़ गई थी। मुझे पता था कि अगला दिन संडे था और दीदी मेरी ख्वाहिश पूरी करने वाली थी। इसलिए मैंने रात को बाथरूम में जाकर अपने प्राइवेट पार्ट के बाल शेव करने शुरू कर दिए। दिमाग में बस यही था कि जब दीदी मुझे देखेगी तो सब कुछ और साफ-सुथरा लगेगा। मैं चाहता था कि इस बार मेरी ख्वाहिश पूरी तरह से मुकम्मल हो और दीदी को भी एहसास हो कि मैं सिर्फ उनके लिए खुद को तैयार कर रहा हूँ।
लेकिन अगली सुबह सब कुछ वैसा नहीं हुआ जैसा मैंने सोचा था। संडे की पहली किरण के साथ ही दीदी ने मुझे जल्दी जगा दिया। उनकी आँखों में चिंता साफ झलक रही थी। उन्होंने कहा, “तैयार हो जा, हमें तुरंत घर लौटना है। पापा की तबीयत बहुत खराब है।”
यह सुन कर मेरा दिल बैठ गया। जिस ख्वाहिश के लिए मैं पूरी रात बेचैन रहा, वह अधूरी रह गई। अब हमारी चाहतों से ज्यादा ज़रूरी थी पापा की सेहत, और मुझे समझ आ गया कि इस बार का संडे वैसे नहीं गुज़रेगा जैसा मैंने सोचा था।
जब हम घर पहुँचे तो देखा पापा हमारे कमरे में ही लेटे हुए थे और सो रहे थे। माँ रसोई में काम कर रही थी। जैसे ही हमने दरवाज़ा खोला और अंदर कदम रखा, माँ ने भाग कर हमें गले से लगा लिया। उनकी आँखों से चिंता और थकान साफ झलक रही थी, लेकिन हमें देख कर वह गहरी राहत महसूस करने लगी। उनके चेहरे पर मुस्कान लौट आई थी जैसे अब सब कुछ संभल जाएगा।
थोड़ी देर बाद जब पापा जागे तो हमें देख कर उनकी आँखें चमक उठी। दरअसल, उन्हें कोई बड़ी बीमारी नहीं थी, बस हल्की सी तबीयत खराब हो गई थी। लेकिन असली वजह यह थी कि वह हमें बहुत याद कर रहे थे और इसी कारण हमें जल्दी से जल्दी अपने पास बुलाना चाहते थे। पापा ने हमें पास बुला कर प्यार से सिर पर हाथ फेरा और कहा कि अब उन्हें चैन मिल गया है क्योंकि हम दोनों उनके पास वापस आ गए है।
उसके बाद पूरा दिन हम सब ने मिल कर बिताया। पहले थोड़ी देर बाजार घूमने गए, फिर दोपहर में मूवी देखने भी निकल गए। शाम को सब ने साथ मिल कर बाहर ही डिनर किया। लंबे समय बाद परिवार का यह मिलन सबके लिए खास था। रात के करीब नौ बजे हम घर लौटे, थके हुए लेकिन बेहद खुश। घर लौटने के बाद थोड़ी देर सबने बैठ कर बातें की। फिर पापा-माँ अपने कमरे में सोने चले गए और हम दोनों ड्रॉइंग रूम में अकेले बैठे रह गए।
मैंने धीरे से चुप्पी तोड़ी और दीदी से कहा, “सच कहूँ तो, इतने दिनों बाद घर आकर बहुत अच्छा लग रहा है। जैसे सब कुछ फिर से पूरा हो गया हो।”
दीदी ने हल्की मुस्कान के साथ मेरी ओर देखते हुए जवाब दिया, “हाँ, मुझे भी वही अहसास हो रहा है। जैसे दिल को सुकून मिल गया हो… अपने घर में वापस आकर।”
कुछ देर चुप्पी छाई रही। फिर मैं उठ कर धीरे से जाकर दीदी के पास सोफ़े पर बैठ गया। उस समय दीदी ने सफेद शर्ट और नीले रंग की शॉर्ट पहन रखी थी। जब मैं उनके पास जाकर बैठा तो उन्होंने मुझे देखते ही हल्की-सी मुस्कान दी, जैसे मेरी बेचैनी और मेरे इरादों को पहचान रही हो। उनके इतने करीब आने से मेरे दिल की धड़कन और तेज़ हो गई थी, और कमरे का माहौल अचानक भारी-सा महसूस होने लगा।
मैंने बिना कुछ कहे धीरे से अपना हाथ आगे बढ़ाया और दीदी की शॉर्ट पर उनके नाज़ुक हिस्से पर रख दिया। मेरा हाथ जैसे ही वहाँ पहुँचा, दीदी हल्का-सा सिहर उठी। मैंने धीरे-धीरे उसे सहलाना और मलना शुरू किया। उनकी साँसें तेज़ होने लगी, और उन्होंने होंठ काटते हुए आँखें बंद कर ली।
तभी अचानक दीदी ने मेरा हाथ पकड़ कर रोक दिया। वह मेरे कान के पास झुक कर फुसफुसाई, “ये क्या कर रहा है तू…?” उनकी आवाज़ काँप रही थी, लेकिन उसमें गुस्से से ज़्यादा जिज्ञासा और हल्की उत्तेजना थी।
मैंने मुस्कुराते हुए धीरे से जवाब दिया, “आज संडे है दीदी… और आपने कहा था कि हर संडे मेरी एक ख्वाहिश पूरी होगी। तो आज मुझे पूरा हक़ है ये करने का।” मेरी बात सुन कर दीदी की आँखों में अजीब सी चमक आ गई। लेकिन अगले ही पल उन्होंने हल्की घबराहट में मेरी उँगलियाँ कस कर थाम ली, और फुसफुसाई, “अगर कोई नीचे आ गया तो? मम्मी-पापा जाग गए तो क्या होगा…?”
उनकी आवाज़ में डर साफ़ झलक रहा था, जैसे वो चाह कर भी खुद को पूरी तरह छोड़ नहीं पा रही हों। मैंने धीरे से उनका हाथ पकड़कर कहा, “तो चलो ऊपर मेरे कमरे में चलते हैं… वहाँ कोई परेशान नहीं करेगा।”
दीदी ने पल भर सोचा, फिर धीमे-धीमे उठ खड़ी हुई। मैं उन्हें लेकर अपने कमरे में आ गया और दरवाज़ा बंद कर दिया। कमरे की बत्ती जलाई, लेकिन फिर तुरंत उसे हल्का सा डिम कर दिया ताकि माहौल और सुकून भरा लगे।
जब मैं ये सब कर रहा था तो दीदी मुझे देखती रही। उनके चेहरे पर अब डर की जगह एक अलग-सी मुस्कान थी। धीमी, लेकिन पूरी तरह से मुझे देखने और मेरी हर हरकत को महसूस करने वाली। इसी बीच दीदी ने धीरे से मुस्कुरा कर मुझसे पूछा, “तो बता, आज तू मुझसे क्या चाहता है…?”
मैंने उनकी आँखों में देखते हुए गहरी साँस ली और साफ़ शब्दों में कहा, “दीदी, आज मैं सब कुछ चाहता हूँ… मैं तुम्हारे साथ पूरा सुख चाहता हूँ, तुम्हारे साथ… सेक्स करना चाहता हूँ।”
मेरे इतना कहने पर दीदी ने एक पल के लिए होंठ भींचे और फिर हल्की मुस्कान के साथ अपने हाथों से टी-शर्ट पकड़ कर ऊपर उठाना शुरू किया। धीरे-धीरे उन्होंने टी-शर्ट उतार दी और फिर नीली शॉर्ट भी उतार कर ज़मीन पर रख दी। अब वो मेरे सामने खड़ी थी सिर्फ़ ब्रा और पैंटी में। सफ़ेद ब्रा में उनके गोल और भरे हुए स्तन कसकर उभरे हुए थे, और नीली पैंटी उनके पतले कमर और चौड़े पिछवाड़े पर और भी आकर्षक लग रही थी। उनकी गोरी त्वचा पर हल्की रौशनी पड़ रही थी, जिससे वो और भी चमक रही थी।
मैं बिस्तर पर बैठा उन्हें हर पल देख रहा था। फिर मैंने हाथ बढ़ा कर उन्हें पास बुलाया। पहले तो वो हल्का-सा शरमा गई, लेकिन फिर धीरे-धीरे क़दम बढ़ाते हुए मेरे पास आकर मेरी जांघ पर बैठ गई। उनके बैठते ही मेरा दिल और भी ज़ोर से धड़कने लगा और उनके चेहरे पर हल्की-सी लाली और मुस्कान दोनों ही एक साथ खिल उठे।
उस पल मैंने अपने होंठ उनके स्तनों पर रख दिए, ब्रा के कपड़े के ऊपर से ही उन्हें चूमना शुरू कर दिया। मेरे होंठों की गर्मी और हल्की चुस्की से उनका बदन कांप उठा। वो अपनी आँखें बंद करके हल्की-सी सिसकारी भरने लगी, जबकि मेरे होंठ उनके गोल स्तनों पर लगातार घूमते रहे।
इसी बीच दीदी ने मेरे बालों में हाथ फेरते हुए हल्की आवाज़ में पूछा, “पर बता, तू मुझसे सेक्स क्यों करना चाहता है? ये तो गलत है… हम भाई-बहन हैं।”
उनके सवाल ने मुझे पल भर के लिए चुप कर दिया। मैं उनकी आँखों में देखता रहा, जिनमें उलझन भी थी और अपनापन भी। फिर मैंने गहरी सांस लेकर कहा, “दीदी, ये गलत नहीं है। आप मेरी बड़ी बहन हो, और मैं आपको बहुत सालों से प्यार करता हूँ। जितना कोई और लड़का किसी लड़की से करता है, उससे भी ज़्यादा। मैंने हमेशा आपको अपनी चाहत, अपना सपना समझा है।”
मेरी बात सुनते-सुनते वो चुप हो गई। उस खामोशी में मैंने हाथ बढ़ा कर धीरे-धीरे उनकी ब्रा की हुक खोल दी। वो कुछ नहीं बोली, बस आँखें बंद करके हल्का-सा सिर झुका लिया। और फिर, कई सालों की तड़प के बाद, आखिरकार मेरी नज़र उनके सीने पर ठहर गई।
करीब से देख कर वो पल किसी ख्वाब जैसा था। गोरा, मुलायम और भरा-पूरा सीना, जिसकी गोलाई इतनी साफ़ थी कि मानो चाँद की नर्म सतह हो। उनकी साँसों के साथ उनका सीना ऊपर-नीचे हो रहा था, और वो नज़ारा मेरे लिए किसी जन्नत से कम नहीं था। उस पल मुझे लगा जैसे मेरी सारी इच्छाएँ सच होने लगी हों।
मैंने आगे बढ़ कर उनके नर्म सीने को होंठों से थाम लिया। पहले हल्के-हल्के चुमा, फिर अपने होंठों और जीभ से उसे चखने लगा। उनका गर्म शरीर मेरी पकड़ में थरथरा उठा। मैंने बारी-बारी से दोनों उभारों को होंठों में भर लिया। कभी दबाया, कभी चूमा, कभी जीभ से गोल-गोल घुमाते हुए चखा। हर बार उनके हल्के कराहते स्वर मेरे कानों में संगीत की तरह गूंज रहे थे।
वह बस हल्की झिझक के साथ मुस्कराई और नजरें झुका ली। उसी पल मैंने धीरे से उन्हें अपनी गोद से उठा कर बिस्तर पर लिटा दिया।
मैं खुद भी उठ कर खड़ा हुआ और अपने कपड़े उतारने लगा। उनकी बड़ी-बड़ी आँखें हर पल मुझे देख रही थी। कभी शरमा कर, कभी मुस्करा कर, तो कभी गहरी सांसों के बीच। कमरे की हल्की रोशनी में वो पल ऐसा था, जैसे हमारी धड़कनें एक-दूसरे से बात कर रही हों।
वो बिना कुछ कहे मुझे देखती रहीं, उनकी निगाहों में एक साथ झिझक, अपनापन और इंतज़ार साफ़ झलक रहा था। मैंने धीरे-धीरे अपनी शर्ट खोली, फिर पैंट उतारी। हर बार जब मैं कपड़े उतारता, उनकी आँखें और गहराई से मेरे शरीर पर टिक जातीं। और उनके चेहरे की मुस्कान बता रही थी कि वो भी उसी पल का इंतज़ार कर रही हैं, जिसका सपना मैंने सालों से देखा था।
कपड़े उतारने के बाद मैं एक बार फिर उनके करीब गया और उनके पैरों के बीच आकर बैठ गया। दीदी ने हल्की सी झिझक के साथ अपनी नज़रें मुझ पर टिका दी। उनके चेहरे पर शर्म भी थी और चाहत भी। तभी मैंने धीरे से उनके पैर उठाए और उनकी नीली पैंटी नीचे खिसका दी।
पहली बार जब उनकी पैंटी पूरी तरह हट गई, तो मेरी साँसें तेज़ हो गई। मेरी आँखों के सामने उनका सबसे छिपा और नाज़ुक हिस्सा था, गुलाबी, मुलायम और हल्की-हल्की नमी से भरा हुआ। उस पल मुझे लगा जैसे मेरी सबसे बड़ी ख्वाहिश पूरी हो गई हो। इतने सालों का इंतज़ार मेरी आँखों के सामने था, और मैं उस नज़ारे में पूरी तरह खो गया।
दीदी हल्की शर्म से अपने होंठ काट रही थी, लेकिन उनकी आँखें अब भी मुझ पर टिकी हुई थी। उस पल मैंने धीमे स्वर में कहा, “दीदी, ये रिश्ता ग़लत नहीं है… ये तो दुनिया का सबसे सच्चा और सबसे खूबसूरत एहसास है। जब भाई और बहन के बीच इतना गहरा प्यार हो, तो इसमें कोई ग़लती नहीं। तुम्हें पाकर ही मेरी ज़िंदगी का सपना पूरा होगा।”
इतना कहकर मैं और करीब गया। मेरा गर्म और धड़कता हुआ लंड धीरे-धीरे उनकी नाज़ुक जगह को छूने लगा। हल्का सा स्पर्श होते ही दोनों के शरीर में एक साथ सिहरन दौड़ गई। दीदी ने शर्माते हुए अपनी आँखें बंद कर लीं, पर उनकी साँसें और तेज़ हो गई।
मैंने उनके कानों के पास झुक कर धीरे से पूछा, “दीदी… क्या मैं कर सकता हूँ? क्या तुम मुझे इसकी इजाज़त दोगी?” दीदी ने हल्की मुस्कान के साथ आँखें खोली और फुसफुसाकर बोली, “अगर तुम्हें इसमें कुछ भी ग़लत नहीं लगता… तो तुम्हारी दीदी तुम्हें अपने आप को पूरी तरह सौंप देती है। मेरा छोटा भाई मेरे साथ सब कुछ कर सकता है।”
ये सुनते ही मैंने उनका हाथ पकड़ा और अपना लंड उनकी नाज़ुक जगह पर रगड़ने लगा। हर बार का स्पर्श उन्हें काँपने पर मजबूर कर देता। उनकी साँसें और तेज़, उनके होंठों से दबे हुए कराह निकलने लगे। मेरे लिए वो पल ऐसा था मानो दुनिया थम गई हो, सिर्फ़ हम दोनों और हमारा ये प्यार बाकी रह गया हो।
धीरे-धीरे मैंने अपना लंड उनके भीगे और गर्म हिस्से के नीचे टिकाया। उसकी टाइट पकड़ और नरमी ने मेरी साँसें रोक दी। ऐसा लग रहा था मानो मेरी हर धड़कन उसी जगह बंध गई हो। मेरा जिस्म उनके जिस्म से मिलते ही एक गहरी लहर दोनों में दौड़ गई, जैसे पूरी दुनिया हमारे उस पल में सिमट आई हो।
मैंने हल्के से तीन धक्के मारे, पर अचानक दीदी ने अपने हाथ मेरे सीने पर रख कर दर्द के साथ चिल्लाया, “रोक दो भाई! रोक दो, गोलू!” मैं झटका खाकर तुरंत ठहर गया। नीचे देखा तो हल्का-सा खून बह रहा था। उनकी आँखों में दर्द और चिंता साफ़ थी।
मैंने तुरंत खुद को रोक लिया और उनके पास बैठ गया। उनके बगल में बैठ कर मैंने उनका हाथ थामा और उन्हें शांत करने की कोशिश की, ताकि उनका दर्द थोड़ा कम हो सके। कमरे में सन्नाटा और उनकी धीरे-धीरे आते हुए आँसुओं की आवाज़ के बीच, मैं उनके पास बैठा रह कर सिर्फ़ उनका सहारा बनने लगा।
कुछ ही देर बाद, दीदी ने अपना रोना बंद कर दिया और धीरे-धीरे अपने हाथों से अपने नाज़ुक हिस्से पर बहते हुए खून को साफ करना शुरू किया। उनकी आँखों में अब भी हल्की चमक और दर्द की झलक थी, लेकिन अब वह खुद को संभाल रही थी और अपने आप को साफ कर रही थी।
धीरे-धीरे उन्होंने मेरी ओर मुस्कुराते हुए देखा और फुसफुसा कर कहा, “तुम्हारी दीदी अगले संडे तुम्हारा सपना पूरा करने की कोशिश करेगी।” अगले पार्ट के लिए [email protected]
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