पिछला भाग पढ़े:- नेहा दीदी और मेरा सिक्रेट अफेयर-2
भाई बहन सेक्स कहानी अब आगे-
रात के दो बजे नेहा दीदी ने जब अपना टाॅप क्राॅप उतार दिया, तो कमरे की हल्की ठंडी हवा और भी रोमांचक लगने लगी। उन्होंने मुझे अपनी तरफ देखा, जैसे मैं ही वह शख्स हूँ जिसका इंतज़ार वह बरसों से कर रही हों। मेरे पैरों में जैसे जान ही नहीं बची थी, पर दिल तेज़ी से धड़क रहा था।
कई दिनों से मेरे मन में यही ख्वाहिश पल रही थी कि मैं दीदी के साथ सेक्स करूँ। यह ख्वाब मुझे हर पल सताता था, लेकिन मुझे कभी उम्मीद नहीं थी कि वह सच में मुझे इस तरह अपना बना लेंगी। जब उनकी आँखों में हामी दिखी, तो मेरा मन जैसे किसी सपने में खो गया।
वह हौले से मुस्कुराई और अपने दोनों हाथ मेरी ओर फैलाए। मैं उनकी आँखों में झाँकता रहा, जहाँ चाहत की लपटें साफ़ दिखाई दे रही थी। मेरे लिए यह किसी सपने से कम नहीं था। धीरे-धीरे मैं उनकी तरफ बढ़ा और महसूस किया कि उनके चेहरे पर हल्की लाली फैल गई थी।
मैं उनके बिल्कुल करीब आ गया, और दीदी की साँसें मेरे चेहरे से टकराने लगी। उनका बदन हल्का सा काँप रहा था, लेकिन आँखों में गहरी मोहब्बत और भरोसा साफ दिख रहा था।
मैंने बहुत धीमी आवाज़ में उनसे पूछा, “दीदी… क्या मैं आपको किस्स कर सकता हूँ?”
उनकी आँखों में पहले से ही तैयार होने की चमक थी, होंठ हल्के-से काँपते हुए जैसे मुझे बुला रहे थे। फिर भी, मैं आख़िरी बार उनकी इजाज़त लेना चाहता था। उन्होंने बिना कुछ कहे हल्के से सिर हिला दिया और अपनी पलकों को बंद कर लिया।
मैं झुक कर दीदी के होंठों को अपने होंठों से छू गया। पहले हल्की-सी सिहरन हुई, फिर धीरे-धीरे दोनों के होंठ आपस में पिघलने लगे। दीदी ने अपनी आँखें बंद कर ली और मुझे कस कर अपनी बाहों में थाम लिया। हमारे बीच की साँसें घुलती जा रही थी। कभी मैं उनके होंठों को दबाता, तो कभी वे अपने होंठ मेरे होंठों में समेट लेती।
इसी दौरान दीदी ने अचानक मुझे हल्के से रोका। उन्होंने शर्माते हुए मेरी ओर देखा और धीमी आवाज़ में कहा, “सुनो… मेरा मुँह तो बदबू नहीं कर रहा ना? मैं अभी सोकर उठी हूँ और खाने के बाद ही सोई थी।”
उनकी बात सुन कर मैं मुस्कुराया और उनके गाल को सहलाते हुए बोला, “दीदी, तुम्हारे होंठ इतने प्यारे हैं कि मुझे उनमें बस मिठास ही महसूस हो रही है।”
मेरी बात सुन कर वह हल्की-सी मुस्कुराई और फिर से अपने होंठ आगे बढ़ा दिए। इस बार जब हमारे होंठ मिले, तो किस्स और गहरा हो गया। धीरे-धीरे हमारी ज़ुबानें भी एक-दूसरे को छूने लगी। उनकी नर्म ज़ुबान का स्पर्श मेरे दिल की धड़कनें और तेज़ कर गया।
हम दोनों की साँसें मिल रही थी, और हर बार ज़ुबान का टकराना जैसे भीतर तक बिजली-सी दौड़ा रहा था। लार आपस में घुलकर एक मीठे स्वाद में बदल गई थी, और मैं उसमें पूरी तरह डूब चुका था। ऐसा लग रहा था मानो मैं बरसों से इसी पल की तलाश में था और अब वह हकीकत बन चुका है।
धीरे-धीरे दीदी बिस्तर पर लेट गई, ताकि इस पल को और गहराई से महसूस कर सके। उनका यह अंदाज़ मुझे और भी दीवाना कर गया। वह अब खुद भी ऐसे कदम उठा रही थी जो मुझे बेहद खुश कर रहे थे। उनकी चाहत और मेरा सपना एक साथ मिल कर उस रात को और भी खास बना रहे थे।
मैं भी उनके ऊपर लेट गया और फिर से उनके होंठों को किस्स करने लगा। अब मेरा सीना सीधे उनके सीने से टच हो रहा था। उनके मुलायम और भरे हुए स्तन मेरे सीने से दब रहे थे, और उस एहसास ने मेरे जिस्म में एक अजीब-सी गर्मी भर दी।
जैसे-जैसे मैं उनके होंठों को और गहराई से चूम रहा था, वैसे-वैसे उनके सीने का स्पर्श मुझे और पागल कर रहा था।
मैंने उनके होंठों को और ज़ोर से चूमना शुरू कर दिया, कभी-कभी हल्का-सा काट भी लेता। कुछ देर बाद उनके होंठों से हल्का-सा खून निकल आया, और वह दर्द से हल्की-सी आवाज़ निकालने लगी। लेकिन हैरानी की बात यह थी कि उन्होंने मुझे रोका नहीं, बल्कि अपनी बाहों से और कस कर जकड़ लिया, जैसे वह इस जुनून में खुद को पूरी तरह मेरे हवाले कर रही हो।
लेकिन जब मेरी नज़र उनके होंठों पर पड़ी और मैंने हल्के-से खून के निशान देखे, तो मुझे अचानक अफ़सोस हुआ। मेरा दिल भारी हो गया और मैंने तुरंत उनके चेहरे को सहलाते हुए कहा, “दीदी… माफ़ कर दो, मैंने तुम्हें तकलीफ़ दी। मेरा इरादा तुम्हें चोट पहुँचाने का नहीं था।”
इसके बाद मैंने धीरे से अपना शरीर उनके ऊपर से हटा लिया। वह थोड़ी रिलैक्स हुई और बिस्तर पर बैठ गई। मैं उनके बिल्कुल पास बैठा था। उन्होंने मुस्कुरा कर मेरे बालों में हाथ फेरना शुरू कर दिया और कोमल स्वर में बोली, “पागल… मुझे भी यह सब अच्छा लग रहा है। ऐसे ही मूड मत खराब करो।” उनकी आँखों की चमक और आवाज़ की मिठास ने मेरे दिल का बोझ हल्का कर दिया और मैं उन्हें और भी करीब से चाहने लगा।
इसी बीच, वह थोड़ी देर चुप रही और फिर धीरे से मेरी आँखों में देखते हुए बोली, “अगर तुम सच में चाहते हो… तो क्या हम आगे का कदम बढ़ा सकते हैं?” उनकी यह बात सुन कर मेरे दिल की धड़कन और तेज़ हो गई, जैसे मेरा सपना सच होने वाला हो।
मैंने सिर हिला कर कहा, “हां।” धीरे-धीरे उन्होंने अपने हाथ पीछे ले जाकर ब्रा की हुक खोली और उसे उतार दिया। पल भर में उनका सीना आज़ाद हो गया। हल्की चाँदनी कमरे में फैली हुई थी, और उसी रोशनी में उनके गोल-मटोल, भरे हुए और बेहद मुलायम स्तन उभर कर सामने आ गए। उनकी त्वचा गोरी और दूध जैसी सफ़ेद थी, जिस पर हल्की-सी नमी की परत चमक रही थी।
उनकी गुलाबी-सी निप्पल ठंडी हवा से सख़्त होकर और भी खिले हुए लग रहे थे। उनके सीने की कोमलता और उभार का फैलाव मानो कमरे की सारी रोशनी अपनी तरफ खींच रहा हो। उनकी सफ़ेद रंगत पर हल्की-सी गुलाबी आभा उन्हें और भी खूबसूरत बना रही थी।
मैंने जब पहली बार उनके स्तनों को ध्यान से देखा तो मेरी साँसें जैसे रुक गई। ऐसा लगा मानो मैं किसी सपना देख रहा था, जिसे छू पाना मेरे लिए नामुमकिन था। उनका आकार, उनकी गोलाई, और दूध-सी सफेदी में ढकी उनकी कोमलता… सब कुछ मेरी आँखों के सामने किसी जादू की तरह चमक रहा था। मेरे दिल की धड़कन तेज़ होती चली गई, और मन ही मन मैंने सोचा कि काश मैं इन्हें हमेशा यूँ ही निहारता रहूँ।
मैं अभी भी उनके खुबसूरती में खोया हुआ था कि उन्होंने हल्की-सी मुस्कान के साथ मेरी ओर देखा और बोली, “अगर तुम चाहो… तो इन्हें महसूस भी कर सकते हो।” उनकी आँखों की चमक और उनके शब्दों की मिठास ने मुझे अंदर तक झकझोर दिया। यह वह इजाज़त थी, जिसकी ख्वाहिश मैंने जाने कितने दिनों से अपने दिल में दबा रखी थी।
मैं खुद को और रोक नहीं सका। एक हल्के से झोंक में मैंने उन्हें धीरे से फिर से बिस्तर पर लिटा दिया। उनके चेहरे पर कोई विरोध नहीं था, बल्कि उनकी आँखों में एक गहरी चाहत झलक रही थी। मैं धीरे-धीरे उनके ऊपर झुका और अपने दोनों हाथों से उनके भरे हुए सीने को सहलाना शुरू कर दिया।
मेरी हथेलियाँ उनके मुलायम गोरे स्तनों को पकड़ते ही जैसे पिघलने लगी। मैं कभी हल्के से दबाता, तो कभी उन्हें अपने हाथों में भरकर उनकी गर्माहट महसूस करता। उनकी त्वचा की नरमी और स्तनों की गोलाई ने मेरे अंदर एक अजीब-सी सनसनी फैला दी। मैं उन्हें कस कर दबाना चाहता था, फिर ढीले-से सहलाना चाहता था, ताकि हर अहसास को जी सकूँ।
उनकी साँसें तेज़ हो गई और उनके होंठों से धीमी-सी सिसकारी निकली, मानो वह भी इस पल को पूरी तरह जी रही हों। उनके सीने को दबाते हुए मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मैं किसी सपने के भीतर हूँ और यह सपना मैं कभी खत्म नहीं होने देना चाहता।
धीरे-धीरे मेरे हाथ उनकी गोलाई को पूरी तरह संभाल नहीं पा रहे थे। उनकी भारी भरकम छातियाँ मेरी पकड़ से बाहर निकलती जा रही थी। तभी मैंने झुक कर अपने होंठ उनके एक स्तन पर रख दिए और चाटना शुरू कर दिया। मेरी जीभ उनकी निप्पल पर रुक-रुक कर घूमती, कभी हल्के से गीला करती तो कभी उसे धीरे से काट लेती। उनके शरीर में बिजली-सी दौड़ जाती और उनकी हल्की-हल्की कराहें मेरे कानों में गूंजतीं।
कभी मैं उनकी निप्पल को केवल अपनी जीभ से छूता, तो कभी दाँतों से हल्का-सा दबाकर छोड़ देता। उनके हाथ मेरे सिर पर कसकर टिके हुए थे, मानो वह चाहती हो कि मैं इस पल से उन्हें और गहराई तक महसूस कराऊँ।
मैंने धीरे से उनके चेहरे की ओर देखा और फुसफुसा कर कहा, “दीदी… अगर आप इजाज़त दें तो मैं आपका नाइट शॉर्ट्स भी उतारना चाहता हूँ… मैं आपको पूरा देखना चाहता हूँ।” मेरी आवाज़ में अधीरता थी, मगर साथ ही उनके सम्मान की चिंता भी। यह सुनते ही उनका चेहरा लाल पड़ गया। उन्होंने आँखें झुका ली, होंठों पर हल्की मुस्कान थी, मगर झिझक भी साफ झलक रही थी। छोटी-सी हाँ या ना के बीच अटकी उनकी साँसें और उनकी नज़रें बता रही थी, कि वह अपने छोटे भाई के सामने खुद को इस तरह दिखाने को लेकर कितनी शर्मिंदा महसूस कर रही थी।
कुछ पल चुप रहने के बाद उन्होंने मेरी ओर देखा और धीमे से कहा, “अगर तुम सच में चाहते हो तो… मैं इजाज़त देती हूँ। आखिर हम भाई-बहन हैं, और अगर मेरा छोटा भाई मेरे शरीर से खेलना चाहता है तो इसमें बुरा क्या है?” उनके शब्द सुन कर मैं हैरान भी हुआ और भीतर से पिघल भी गया। यह सुनना मेरे लिए किसी सपने से कम नहीं था, कि दीदी खुद मुझे आगे बढ़ने की अनुमति दे रही थी।
मैं धीरे-धीरे उनके पैरों के बीच आ गया। कांपते हाथों से मैंने उनके नाइट शॉर्ट्स पकड़ कर नीचे खींचना शुरू किया। जैसे-जैसे कपड़ा उनकी जाँघों से नीचे सरक रहा था, वैसे-वैसे उनकी गोरी, मुलायम टाँगें धीरे-धीरे मेरे सामने खुलती जा रही थी। उनके जाँघों की चिकनी त्वचा चाँदनी में और भी चमक रही थी। दीदी हल्के से आँखें बंद किए, शर्म से अपनी पलकों को झुकाए पड़ी थी, और मैं एक-एक इंच खुलते उनके रहस्य को सांस रोके निहार रहा था।
अब उनकी पतली सी पैंटी नज़र आने लगी थी। सफेद कपड़े के नीचे उनका नाज़ुक हिस्सा साफ उभरा हुआ था। हल्की सी नमी उस कपड़े पर दाग की तरह चमक रही थी। मैंने कांपते हाथों से वहीं ऊपर से छू लिया। कपड़े की नरमी के पार मुझे उनकी गर्माहट महसूस हुई। जैसे ही मेरी उंगलियाँ उस हिस्से पर हिली, दीदी ने आँखें बंद कर हल्की-सी सिसकी ली और होंठ काटते हुए मुस्करा दी। उनकी साँसें तेज़ हो गई, चेहरे पर शर्म और सुख का मिला-जुला भाव था।
मेरी उंगलियाँ कपड़े के ऊपर से दीदी के नाज़ुक हिस्से को सहला रही थी। धीरे-धीरे दबाव बढ़ाते ही मैं उनकी आकृति को साफ़ महसूस कर सकता था। दीदी की भीगी हुई गरमी मेरे हाथों तक पहुँच रही थी। वह हर बार हल्की-सी कराह के साथ अपना बदन मोड़ लेती, मानो अपने आप को मेरे स्पर्श में और भी गहराई तक खो देना चाहती हो। उनकी साँसों की रफ़्तार तेज़ हो गई थी, और हर स्पर्श पर उनका शरीर झनझना उठता।
तभी दीदी ने हल्की-सी आवाज़ में कहा, शर्माते हुए, “अगर तुम चाहो तो… मेरी पैंटी भी उतार दो… मैं तुम्हारे स्पर्श को सीधे अपने नाज़ुक हिस्से पर महसूस करना चाहती हूँ।” उनकी आँखें झुकी हुई थी, चेहरा लाल हो रहा था और शब्दों में मासूमियत के साथ गहरी चाहत छुपी हुई थी।
मैंने धीरे-धीरे हाथ बढ़ा कर दीदी की पैंटी नीचे सरकाई। कपड़ा हटते ही उनकी टाँगों के बीच का कोमल और गोरा हिस्सा मेरी आँखों के सामने आ गया। दीदी का नाज़ुक अंग बेहद साफ़ और मोहक दिखाई दे रहा था, गुलाबी और भीगा हुआ, ऊपर का छोटा उभार नरम और गोल था, और नीचे की लकीर गहराई तक फैली हुई चमक रही थी। उसके चारों ओर की हल्की नमी और कोमल त्वचा देखने भर से मुझे पागल कर रही थी। दीदी ने आँखें बंद कर ली और अपनी जाँघें धीरे-धीरे और खोल दी, मानो पूरे विश्वास के साथ खुद को मेरे सामने पेश कर दिया हो।
फिर हल्की साँसों के बीच दीदी ने मेरे कान के पास फुसफुसा कर कहा, “इस बार सिर्फ़ अपनी उँगलियों या ज़ुबान से मत छूना… मैं चाहती हूँ कि मेरा छोटा भाई मुझे अपने असली अहसास से भर दे… मैं तुम्हारा लंड अपने नाज़ुक हिस्से पर महसूस करना चाहती हूँ।” उनकी आवाज़ में झिझक तो थी, मगर उससे ज़्यादा उनकी सच्ची इच्छा और चाहत थी।
मैंने तुरंत अपने सारे कपड़े उतार दिए। दीदी की आँखों में हल्की हैरानी और चाहत दोनों झलक रहे थे। मैं उनके बेहद करीब पहुँच कर धीरे से बोला, “लेकिन दीदी… अगर कभी माँ-पापा को हमारे सिक्रेट अफेअर के बारे में पता चल गया तो?” मेरी आवाज़ में डर और चाहत दोनों मिले हुए थे।
दीदी ने तुरंत मुस्कुरा कर मेरी ठुड्डी उठाई और फुसफुसाते हुए कहा, “दुनिया के किसी भी माँ-बाप को कभी पता नहीं चल सकता कि भाई-बहन के बीच ऐसा कोई राज़ छुपा है। ये हमारा सीक्रेट है… और ये राज़ सिर्फ़ हमारे दिलों में रहेगा।” उनकी आँखों में भरोसा और मोहब्बत दोनों झलक रहे थे।
सालों के इंतज़ार और अनगिनत पलों की चाहत के बाद आख़िरकार मेरी धड़कनों के साथ मेरा लंड नेहा दीदी के नाज़ुक हिस्से को छूने के लिए तैयार था। पूरे शरीर में बिजली-सी सनसनी दौड़ रही थी, मानो मेरी ज़िंदगी का सबसे बड़ा सपना अब सच होने जा रहा हो। अगले पार्ट के लिए [email protected]
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