पिछला भाग पढ़े:- दीपिका दीदी और मेरा राज-1
फैमिली सेक्स कहानी अब आगे-
दीपिका दीदी ने मेरे होंठों को चूम कर मेरे अंदर की बैचेनी बढ़ा दी थी। मैं उनके होंठों पर हमेशा से चूमना चाहता था, लेकिन फिर भी मैं उनकी इस हरकत को समझ नहीं पाया। मतलब दीदी मुंबई जैसे बड़े शहर में पढ़ने वाली एक प्यारी लड़की थी और मैं सिर्फ एक छोटे शहर में रहने वाला लड़का। इसलिए मैं समझ नहीं पा रहा था कि उनके चूमने का क्या मतलब था। वह सिर्फ मुझे शुक्रिया कहना चाहती थी, क्योंकि मैंने उनकी ड्रेस ठीक की थी? या फिर उनके अंदर भी वही चाहत थी, जो मेरे दिल में पनप रही थी।
उस दिन के बाद से दीदी का बर्ताव मेरे सामने बदल गया। जब भी हम ड्रॉइंग रूम में अचानक टकरा जाते या बाथरूम के सामने आमने-सामने आ जाते, उनके गाल तुरंत लाल हो जाते। वह नीचे नज़र झुका लेती और बेहद संकोच से, धीमी आवाज़ में बातें करने लगती। मैं कई बार हिम्मत करता कि उस किस्स के बारे में उनसे खुल कर पूछ लूँ। लेकिन जैसे ही बात छेड़ने लगता, वह तुरंत कोई और बात पकड़ लेती और माहौल बदल देती।
घर में रिश्तेदारों की भीड़ होने की वजह से मुझे कभी उनके साथ अकेले में बैठ कर खुल कर बात करने का मौका ही नहीं मिल पाया। हर बार जब लगा कि अब शायद समय सही है, तब कोई ना कोई बीच में आ जाता और मेरी बात फिर अधूरी रह जाती। इस अधूरेपन ने मेरे मन में बेचैनी और बढ़ा दी थी।
लेकिन एक रात, किस्मत ने साथ दिया। रात के खाने के बाद मैं टहलते हुए छत पर चला गया। ऊपर पहुँचते ही देखा कि दीपिका दीदी पहले से वहाँ खड़ी थी। वह तारों को निहार रही थी और हल्की रात की हवा उनके बालों को धीरे-धीरे उड़ा रही थी। उन्होंने एक हल्के रंग का नाइट ड्रेस पहन रखा था, जो ढीला होने के बावजूद उनके बदन की सुंदरता को और उभार रहा था।
चाँदनी में उनकी गर्दन की चमक साफ दिखाई दे रही थी। उनके चेहरे पर कोमलता और आँखों में एक गहराई थी, जैसे वह भी बहुत कुछ कहना चाहती हों पर शब्दों में बाँध नहीं पा रही हों। ड्रेस का कपड़ा उनके सीने पर ढीला-सा टिक रहा था, जिससे उनके स्तन हल्के उभरे हुए और आकार में साफ झलक रहे थे। कपड़े की हल्की सिलवटें उनके स्तनों की नरमाई और गोलाई को और भी स्पष्ट बना रही थी। वह बेहद सादगी में भी दिल को छू लेने वाली लग रही थी।
मैं कुछ पलों तक वहीं खड़ा उन्हें देखता रहा। मन में कई सवाल थे, लेकिन उस पल की खुबसूरती मुझे चुप करा गई। आसमान में टिमटिमाते तारे और सामने खड़ी उनकी झिझकती मुस्कान ने उस पल को और गहरा बना दिया। ऐसा लगा जैसे पूरी दुनिया थम गई हो और बस हम दोनों ही उस छत पर हों।
मैं धीरे-धीरे उनके पास जाकर उनके बगल में खड़ा हो गया। हम दोनों ने कुछ देर तक बिना कुछ कहे बस तारों को निहारा। आसमान का सन्नाटा और रात की ठंडी हवा हमें और करीब ला रही थी।
कुछ समय बाद मैंने हिम्मत जुटाई। मैंने हल्की आवाज़ में कहा, “दीदी… अगर आप इजाज़त दें तो मैं आपसे एक बात करना चाहता हूँ।” वह धीरे से मेरी ओर देखने लगी, उनकी आँखों में सवाल था। मैंने गहरी साँस ली और कहा, “मैं… मैं उस आख़िरी किस्स के बारे में बात करना चाहता हूँ।”
अचानक मैंने महसूस किया कि वह मुझे देख रही थी। उनकी आँखों में एक धीमी चमक थी, और होंठों पर हल्की-सी मुस्कान। ऐसा लगा जैसे वह कुछ कहना चाहती हों, लेकिन शब्दों की जगह उनकी नज़रों ने सब कुछ कह दिया।
वह धीरे-धीरे मेरी ओर झुकी। उनका चेहरा मेरे इतने पास आ गया कि मैं उनकी साँसों की गर्मी महसूस कर सकता था। उनकी मुस्कान गहरी हो गई और अगले ही पल उन्होंने अपने होंठ मेरे होंठों पर रख दिए।
दूसरी बार ऐसा हुआ था। मेरे दिल की धड़कनें तेज़ हो गई, लेकिन मैं अपनी जगह से हिला नहीं। उनकी आँखें बंद थी, चेहरे पर सुकून और चाहत की झलक थी। उस पल मुझे बिल्कुल भी ये चाह नहीं हुई कि मैं उनसे दूर हटूँ। उनके होंठों की कोमलता, उस पल की नर्मी, सब कुछ इतना गहरा था कि मैं पूरी तरह खो गया।
उसके होंठ जैसे ही मेरे होंठों से लगे, सब कुछ थम-सा गया। शुरुआत में बस हल्की सी छुअन थी, पर धीरे-धीरे वह और गहरी होती गई। उसके नरम होंठ मेरे होंठों पर दबे तो मेरे अंदर अजीब-सी गुदगुदी फैल गई। साफ महसूस हो रहा था कि वह भी उतनी ही डूबी हुई है।
कुछ ही देर में हमारे होंठ पूरी तरह से मिल गए। वह हल्का दबाती, मैं भी जवाब देता। इसी बीच हमारे मुँह थोड़े खुले और उसकी जीभ मेरी जीभ से टकरा गई। उस स्पर्श ने सबकुछ और तेज़ कर दिया। हमारी साँसें भारी हो रही थी और पल-पल नज़दीकी बढ़ रही थी।
उसकी जीभ धीरे से मेरी जीभ पर घूमी, तो मैंने भी उसे थाम लिया। हमारी जीभें आपस में लिपट गई और हम दोनों उस स्वाद में खो गए। लार का हल्का सा स्वाद हमारे बीच घुलता जा रहा था और चुंबन और भी गीला और गहरा होता जा रहा था।
हर बार जब उसकी जीभ मेरी जीभ को छूती, मेरे पूरे बदन में सिहरन दौड़ जाती। उसके होंठों की गर्माहट, मुँह का स्वाद और साँसों का मिलना, सब कुछ मुझे पूरी तरह मदहोश कर रहा था। मुझे बस इतना लग रहा था कि यह पल कभी खत्म ना हो।
इसी गहराई में मैंने हिम्मत की और सीधा हाथ बढ़ाकर उसके सीने पर रख दिया। पहली बार था जब मैंने अपनी दीपिका दीदी के सीने को पकड़ा। वह नाइट ड्रेस में थी, लेकिन कपड़े के ऊपर से भी उनकी गोलाई और नरमी साफ-साफ महसूस हो रही थी। मेरा दिल तेज़ी से धड़कने लगा और होंठ अब भी उसके होंठों पर टिके थे।
मैंने धीरे-धीरे उसकी छातियों को दबाना शुरू किया। मेरे हाथ में उनकी गर्माहट और उभार की कसक मुझे और भी पागल कर रही थी। वह हल्की-हल्की सिसकियाँ छोड़ती जा रही थी और चुंबन और भी गहरा होता जा रहा था। कभी मैं उसके होंठों को दबा लेता, तो कभी हल्के से काटता। हर बार वह मुझे कस कर पकड़ लेती, जैसे खुद को रोक ही ना पा रही हो।
मेरे हाथ उसकी छातियों पर बार-बार घूमते, दबाते और थामते रहे। मुझे ऐसा लग रहा था जैसे पहली बार मैंने सच में उसे पा लिया हो। उसके होंठों और सीने की मिलती-जुलती गर्माहट ने मुझे पूरी तरह अपने में समा लिया। मैं बस उसी एहसास में खोता चला गया।
कुछ देर बाद मैंने और हिम्मत दिखाई। मैं धीरे से उसके होंठ छोड़ कर नीचे की ओर झुका और अपना मुँह उसकी छाती पर रख दिया। कपड़े के ऊपर से ही मैंने उसके सीने को चूमना और चाटना शुरू किया। जैसे ही मेरे होंठ और जीभ उसके नाइट ड्रेस से लगी, उसके चेहरे पर एक लंबी सी साँस निकली। आँखें बंद हो गई, होंठ थोड़े काँपने लगे और गालों पर हल्की लाली उभर आई।
मैंने धीरे-धीरे उसके सीने को मुँह में भर कर चूसना शुरू किया। कपड़े के पार भी उसकी गर्मी और नरमी मेरे मुँह को भिगो रही थी। वह हल्की-हल्की कराहने लगी, सिर पीछे झुक गया और आँखों में जैसे कोई नया एहसास चमकने लगा। हर बार जब मैं जोर से चूसता, उसका बदन हल्का-सा काँप जाता और उसके होंठ दाँतों में दब जाते।
उसकी साँसें तेज़ होती जा रही थी, मुँह से धीमी-धीमी आवाज़ें निकल रही थी। मैंने उसके दोनों सीनों को बारी-बारी से मुँह में दबाया, कभी जीभ घुमाई, कभी हल्के से दाँतों से दबाया। कपड़े भीगने लगे थे, और उसके चेहरे की मदहोशी साफ दिख रही थी। वह कभी मेरी पीठ पकड़ कर कस लेती, तो कभी मेरे बालों में उँगलियाँ फँसा देती।
उस पल मुझे लगा जैसे मैं उसकी धड़कनों को अपने मुँह से सुन पा रहा हूँ। उसका हर कराहना, हर साँस मेरे अंदर गहराई तक उतर रहा था। उसके चेहरे पर जो खुशी और पिघलने जैसा भाव था, उसने मुझे पूरी तरह बाँध लिया। मैं बस उसके सीने को चूसते हुए, उसकी आवाज़ें सुनते हुए और उसकी गर्मी महसूस करते हुए खोता चला गया।
इसी बीच मैंने धीरे-धीरे उसके नाइट ड्रेस की डोरी पकड़ कर खोलने की कोशिश की। मेरा हाथ कपड़े के गले पर पहुँचा ही था कि तभी हमें ऊपर छत पर किसी के कदमों की आहट सुनाई दी। हम दोनों अचानक रुक गए। दिल जोर-जोर से धड़क रहा था। आवाज़ हमारे किसी रिश्तेदार की थी जो अचानक छत पर आ गया था।
हमने तुरंत सब रोक दिया और चुप-चाप बैठ गए। माहौल बदल गया था। थोड़ी देर बाद हम दोनों ने आसमान की ओर देखा। तारे साफ चमक रहे थे। वह हल्की मुस्कान के साथ मेरी ओर झुकी और अपना हाथ धीरे से मेरे हाथ पर रख दिया। उस एक स्पर्श में जैसे नया रिश्ता शुरू हो गया हो। बिना कुछ कहे हम दोनों चुप-चाप बैठे रहे, आसमान को देखते हुए और उस एहसास को अपने दिल में बसाते हुए।
उस रात के बाद से ही माहौल थोड़ा बदल गया था। अब दीदी मुझसे आँखें चुराती भी थी और कभी-कभी बिल्कुल आम सी होकर सामने भी आती। जब वह मेरे पास आकर झुक कर खाने की थाली रखती या पानी का गिलास पकड़ाती, तब उनकी गहरी क्लीवेज साफ दिखाई देती थी। मुझे लगता था वह जान-बूझ कर अनदेखा कर रही हैं कि मैं देख रहा हूँ, पर वह कभी पीछे नहीं हटती, ना ही कोई शर्म दिखाती। जैसे सब कुछ आम है, मगर दोनों समझते थे कि अब सब पहले जैसा नहीं रहा।
टीवी पर जब हम दोनों चैनल बदलने को लेकर रिमोट के लिए झगड़ते, तब वह मजाक-मजाक में इतनी पास आ जाती कि उनका सीना मेरे हाथों या शरीर से छू जाता। वह ज़ोर से हँसती, मुझे धक्का देती, लेकिन हर टकराहट के साथ मुझे और ज़्यादा महसूस होता कि हमारे बीच कोई नया खेल चल रहा है। कभी उनका सीना मेरे हाथ पर रुक जाता, कभी मेरे कंधे से टकरा जाता, और वह बिना कुछ कहे बस हँस कर आगे बढ़ जाती।
यह सब छोटे-छोटे पल थे, लेकिन हर बार लगता था कि हम दोनों एक-दूसरे को थोड़ा और समझने लगे हैं। जैसे हम दोनों ही जानते थे कि यह रिश्ता अब धीरे-धीरे किसी और दिशा में बढ़ रहा है।
फिर एक दिन दोपहर में सब लोग आंगन में बैठे बातें कर रहे थे। रिश्तेदार, बच्चे, सभी बाहर थे और खूब शोर-गुल हो रहा था। घर का बाथरूम हमेशा भरा रहता था क्योंकि इतने सारे लोग थे, तो जो देर से उठता था, उसको देर से नहाने का मौका मिलता। सब बाहर थे और लगभग सब नहा चुके थे। मैंने सोचा, अभी सही समय है। मैं चुप-चाप उठ कर बाथरूम की तरफ चला गया ताकि आराम से नहा सकूँ।
मैं धीरे-धीरे बाथरूम के पास पहुँचा तो लगा अंदर कोई पानी चला रहा था। शायद कोई चेहरा धो रहा होगा। मैंने दरवाज़े पर हल्की-सी दस्तक दी और पूछा, “कौन है अंदर?” थोड़ी देर चुप्पी रही, फिर धीरे-धीरे कुंडी खुली और दरवाज़ा थोड़ा सा खुला। सामने दीपिका दीदी खड़ी थी।
मेरी साँस अटक गई। वह सिर्फ ब्रा और पैंटी पहने हुए थी। शायद देर से उठी होंगी और अब नहाने आई थी। उनका बदन हल्का-सा भीग चुका था, बाल बिखरे हुए थे और उनकी गोरी चमड़ी पर पानी की नमी चमक रही थी। ब्रा में उनके भरे हुए गोल-मटोल सीने इतने टाइट लग रहे थे कि लगता था कपड़ा फट जाएगा। ऊपर से नीचे तक उनका शरीर देख मैं एक पल को जम गया।
दीदी ने बिना कुछ बोले मेरा हाथ पकड़ा और झटके से मुझे अंदर खींच लिया। मैं अब बाथरूम में था, दरवाज़ा उनके पीछे बंद हो चुका था। मेरी नज़र बार-बार उनके सीने पर टिक रही थी, जो ब्रा के अंदर उठ-गिर रहे थे। वह पल इतना गहरा था कि मुझे समझ ही नहीं आया कि क्या करूँ।
तभी दीदी ने धीरे से मेरी आँखों में देखा और धीमे स्वर में बोली, “तू इस वक्त यहाँ क्यों आया? जब मैं नहा रही थी, तब तू क्यों दरवाज़ा खटखटाने आया?” उनकी आवाज़ में हल्की झुंझलाहट और थोड़ी झिझक दोनों थी।
मैं घबराते हुए बोला, “मुझे सच में नहीं पता था कि आप नहा रही हो… मैंने सोचा बाथरूम खाली है, इसलिए मैं नहाने आ गया।” मेरी आवाज़ कांप रही थी और दिल इतनी ज़ोर से धड़क रहा था कि जैसे बाहर निकल आएगा।
दीदी ने हल्की मुस्कान के साथ कहा, “मैं अभी नहा रही हूँ, तू ज़रा रुक जा, जब तक मैं खत्म कर लूँ।” मैंने सिर हिला कर हाँ किया और धीरे-धीरे दरवाज़े की तरफ़ बढ़ने लगा, पर तभी उन्होंने मेरा हाथ पकड़ लिया। उनकी उंगलियों की गर्म पकड़ ने मुझे वहीं रोक लिया। दीदी ने धीमे स्वर में कहा, “तू बाहर क्यों जाएगा? अंदर ही इंतज़ार कर ले।” उनके इस अंदाज़ ने मेरी सांसें तेज़ कर दीं।
वो शॉवर के नीचे खड़ी थी, पानी की बूँदें उनके कंधों और पीठ पर फिसल रही थी। फिर उन्होंने बिना जल्दबाज़ी किए अपनी ब्रा की हुक खोली। जैसे ही ब्रा नीचे गिरी, उनकी गोलाईदार और भरे-पूरे स्तन मेरी आँखों के सामने आ गए। सफ़ेद झाग के बीच उनका सीना और भी चमक रहा था, निप्पल हल्के गुलाबी और पानी की ठंडी बूँदों से सिकुड़ते हुए और नुकीले लग रहे थे। मैं पहली बार उन्हें इस तरह खुले रूप में देख रहा था, दिल की धड़कन जैसे कानों तक सुनाई दे रही थी।
फिर धीरे-धीरे उन्होंने अपनी भीगी हुई पैंटी पकड़ी और नीचे खींच दी। कपड़ा उनके शरीर से चिपका हुआ था, जिसे हटाते ही उनकी जाँघों के बीच का नाज़ुक हिस्सा सामने आ गया। घने काले बालों से ढका हुआ वो हिस्सा, पानी की धार से भीग कर चमक रहा था। उनके पैरों के बीच की हल्की गुलाबी लकीर साफ दिख रही थी, जैसे किसी बंद फूल की पंखुड़ी पहली बार खुल रही हो। मेरी आँखें वहीं टिक गई, और मैं हर छोटी डिटेल अपने मन में कैद कर रहा था।
फिर उन्होंने पास रखी साबुन की टिकिया उठाई। गीले हाथों में झाग बनाते हुए उन्होंने उसे अपने सीने पर रगड़ना शुरू किया। उनके दोनों हाथ गोलाई में घूमते हुए उनके भरे स्तनों को दबा-दबा कर मल रहे थे। हर बार जब वो साबुन को ऊपर से नीचे तक रगड़ती, उनके निप्पल और ज़्यादा उभर आते। उनके चेहरे पर आधी बंद आँखों के साथ हल्की-सी मुस्कान थी, जैसे वो अपने ही शरीर को महसूस कर रही हों।
मैं बस एक किनारे खड़ा उन्हें देखता रहा। उनका सिर कभी पीछे की तरफ़ झुकता, तो कभी हल्के से नीचे। पानी और झाग की धार उनके होंठों तक फिसल आती और वो जीभ से उसे चाट लेती। उनके गाल गुलाबी पड़ चुके थे, सांसें तेज़, और आँखों में गहरी चमक थी।
फिर उन्होंने साबुन अपने पेट से नीचे की तरफ़ ले जाकर अपनी जांघों और बीच के हिस्से पर मलना शुरू किया। उनकी उंगलियाँ रुक-रुक कर उस जगह दबती, और उनके चेहरे पर सिहरन साफ नज़र आ रही थी। कभी वो हल्का कराह उठती, तो कभी होंठ काट लेती। मैं वहीं जम गया था, मेरी आँखें उनसे हट ही नहीं रही थी।
यह नज़ारा इतना लंबा और गहरा था कि हर सेकंड मेरे लिए किसी नए जादू जैसा लग रहा था, वो अपने ही शरीर से खेल रही थी और मैं उनकी हर हरकत, हर हाव-भाव को पीकर बस खड़ा रहा।
फिर दीदी ने साबुन के झाग को अपने शरीर से पूरी तरह धो लिया। पानी उनके पूरे शरीर पर गिर रहा था और उनकी त्वचा चमक रही थी। फिर, उन्होंने ध्यान अपनी जांघों और बीच के हिस्से पर लगाया। दो उंगलियों से धीरे-धीरे अपनी निजी जगह पर रगड़ना शुरू किया। उनकी उंगलियाँ धीरे-धीरे आगे-पीछे और अंदर-बाहर घूम रही थी, हल्की दबाव के साथ, और उनके चेहरे पर वही आधी बंद आँखों वाली मुस्कान और खुशी झलक रही थी।
कभी-कभी वो हल्का कराह उठाती, होंठ हल्के से खुले रहते, और उनकी सांसें तेज़ हो जातीं। पानी की बूँदें उनके अंगों पर फिसलती और साबुन का झाग मिल कर उनके शरीर पर एक चमकता प्रभाव छोड़ रहा था। उन्होंने उंगलियाँ अपनी नाज़ुक जगह के नीचे रख कर हल्के-हल्के गोलाई में हिलानी शुरू की। उनके चेहरे की हर हलचल, उनकी हर सिहरन, हर हिलना मेरे सामने साफ था।
कुछ देर बाद, दीदी ने उंगलियाँ रोक दी और अपने हाथों को अपने शरीर से हटा लिया। फिर उन्होंने तौलिए को उठाया और धीरे-धीरे अपने पूरे शरीर की नमी पोंछनी शुरू की। तौलिया उनके भीगे हुए शरीर पर फिसल रहा था, पानी की बूँदें और झाग धीरे-धीरे हट रहे थे। उनके हाथ हर हिस्से पर जाके पानी और नमी को सोख रहे थे, और उनका चेहरा आम और हल्की मुस्कान के साथ चमक रहा था। मैं वहीं खड़ा उन्हें देख रहा था, उनकी हर हरकत को ध्यान से महसूस करते हुए।
दीदी जब ड्राई पैंटी पहनने लगी, मैं थोड़ी देर चुप रहा, फिर धीरे-धीरे अपनी हिम्मत जुटाई और बोला, “दीदी… मैं आपके सामने उठ गया हूँ… क्या आप मेरी मदद कर सकती हैं अपने मुँह से?” मेरी आवाज़ हल्की हिचकिचाहट के साथ थी, दिल तेजी से धड़क रहा था। मैंने कभी भी असली में ऐसा महसूस नहीं किया था, सिर्फ़ वीडियो में देखा था, और अब यह सब मेरे सामने था।
दीदी ने मेरी तरफ़ देखा, उनकी आँखें थोड़ी बड़ी हुई और चेहरे पर हल्की चौंक झलक रही थी। फिर उन्होंने मुस्कान दी, जैसे सोच रही हों कि यह नया और अजीब अनुभव है। फिर उन्होंने धीरे-धीरे कहा, “अपने कपड़े उतार दो।”
उनके शब्द सुनते ही मेरा शरीर तुरंत उत्तेजित हो गया। दिल तेजी से धड़क रहा था और सांसें हिचकोले ले रही थी। मैंने धीरे-धीरे अपनी पैंट और अंडरवियर उतारे। ज़िंदगी में पहली बार मेरी दीदी ने मेरे लंड को देखा। उनकी नज़रों के सामने यह होना, और उनकी हल्की मुस्कान, मेरे लिए बेहद अजीब और नया अनुभव बन गया।
दीदी मेरे पास आकर खड़ी हो गई और मेरे लंड को हाथ से छूने लगी। उनका स्पर्श धीरे-धीरे और आराम से था, जिससे मुझे बहुत अधिक खुशी महसूस हो रही थी। जैसे ही उन्होंने हल्का स्पर्श किया, मेरा शरीर झकझोर गया। दिल तेज़ी से धड़कने लगा और हर नस में गर्मी फैल गई। मैं ऐसा महसूस कर रहा था जैसे मेरी सारी ख्वाहिशें और देखें गए सपने एक ही पल में सच होने को तैयार हो।[email protected]