पिछला भाग पढ़े:- जुड़वाँ दीदियों के साथ जिस्म की चाहत-3
भाई-बहन सेक्स कहानी का अगला पार्ट-
नेहा दीदी मेरे सामने कुर्सी पर शर्मा कर बैठी हुई थी। उनके बदन पर सिर्फ़ कुर्ती थी, नीचे कुछ भी नहीं। उनकी जाँघें हल्की-सी खुली थी, और वह उन्हें बार-बार पास लाने की कोशिश कर रही थी। लेकिन फिर भी उनके नाज़ुक हिस्से की झलक साफ़ दिख रही थी।
उन्होंने धीरे से मेरी तरफ देखा और धीमी, थोड़ी काँपती आवाज़ में बोली, “क्या हुआ…? इधर आओ… मेरे पास।”
उनके कहते ही मेरा दिल तेज़ धड़कने लगा। मैं धीरे-धीरे उठ कर उनकी तरफ बढ़ा, और उनके बिलकुल सामने आकर घुटनों के बल बैठ गया।
दीदी की साँसें हल्की काँप रही थी। उनके घुटने मेरे सामने थे नज़दीक, गर्म, और शर्म से हिले हुए।
मैंने अपनी नज़रें उठा कर उनकी आँखों में देखा, जैसे उनसे इजाज़त माँग रहा हूँ। वह कुछ नहीं बोली बस अपनी टाँगें थोड़ी और ढीली कर दी। इतनी कि मैं उनके बीच की गर्म जगह तक साफ़ पहुँच सकूँ।
मैंने बहुत धीरे से अपना हाथ आगे बढ़ाया और उनकी खुली जाँघों पर हल्के से रख दिया। मेरी उँगलियाँ उनकी जाँघों पर टिकते ही नेहा दीदी का बदन हल्का-सा कांप गया। उनकी साँस एक पल को रुक-सी गई। फिर धीरे से बाहर निकली जैसे मेरे स्पर्श ने उनके शरीर में अचानक कोई गर्म लहर भेज दी हो।
मैंने अपना हाथ उनकी जाँघों पर थोड़ा और ऊपर सरकाया, धीरे, इतना धीरे कि मेरी उँगलियों का हर इंच उन्हें महसूस होता रहे। दीदी की जाँघें मेरे स्पर्श के साथ हल्की-सी खुलने लगी रोकने के लिए नहीं, बल्कि मुझे और जगह देने के लिए।
उन्होंने कुर्सी के दोनों किनारे पकड़ लिए, उँगलियाँ थोड़ा कस गई। उनकी आँखों में अब शर्म कम और चाहत ज़्यादा दिख रही थी। मैंने उनकी नजरों में देखते हुए अपनी उँगलियाँ और ऊपर बढ़ाई, उनके जाँघों के गर्म, नाज़ुक अंदरूनी हिस्सों तक। वहाँ की त्वचा और भी मुलायम, और भी गर्म थी। दीदी ने आँखें बंद कर ली और उनके होंठों से एक बहुत धीमी कराह निकली “हूँम्म्म”।
उनकी टाँगें अब खुद-ब-खुद मेरे हाथ के दबाव का जवाब दे रही थी। मैं और करीब झुका, इतनी पास कि उनकी साँसें मेरे चेहरे से टकरा रही थी।
मेरी उँगलियाँ धीरे-धीरे उनकी टाँगों के बीच की तरफ बढ़ने लगी। दीदी ने अपनी जाँघों को और ढीला छोड़ा। मैंने अपनी उँगलियाँ धीरे-धीरे उनकी जाँघों के और अंदर की तरफ बढ़ाई। जैसे ही मेरी उँगली उनके नाज़ुक हिस्से के बिल्कुल पास पहुँची, नेहा दीदी की साँसें अचानक तेज़ हो गई। उन्होंने कुर्सी के किनारों को थोड़ा और कस कर पकड़ लिया, और उनके सीने का उतार चढ़ाव और गहरा हो गया।
मैंने बहुत सावधानी से अपनी एक उँगली अंदर डालने की कोशिश की, बस हल्का सा दबाव ही दिया था कि “आह्ह, रुको!”
दीदी की आवाज़ अचानक दर्द से भर गई। उन्होंने मेरी कलाई पकड़ ली और मुझे रोक लिया। उनके चेहरे पर हल्की सी सिकुड़न थी।
“दर्द हुआ?” मैंने घबरा कर पूछा।
उन्होंने धीरे से सिर हिलाकर हाँ कहा और थोड़ा शर्माते हुए बोली, “तुम्हारी उँगलियाँ… बहुत ड्राई हैं। ऐसे नहीं जाएगा, बहुत चुभ रहा है।”
मैं कुछ कह पाता उससे पहले ही उन्होंने मेरी उँगलियाँ अपने हाथों में ली। उनका स्पर्श गर्म, नरम और पूरी तरह प्यारा था।
वह मेरी उँगलियों को अपने होठों के पास ले गई और फिर उन्होंने अपनी जीभ से मेरी उँगलियों को धीरे-धीरे गीला करना शुरू किया।
उनके होंठ मेरी उँगलियों को घेर लेते, फिर हल्का सा चूस कर छोड़ देते। जीभ की नमी और उनके मुँह की गर्माहट मिल कर मेरी उँगलियों को पूरी तरह भिगाने लगी।
मैं शांत होकर उन्हें देख रहा था। दीदी की आँखें नीचे मेरी उँगलियों पर थी, होंठों पर गीलापन चमक रहा था, और उनकी साँसें हर बार उँगलियों को चूसने पर मेरे हाथ तक महसूस होती थी।
उन्होंने मेरी उँगलियों को एक बार और अपने मुँह में लिया, धीरे से, और भी गहराई तक। फिर उन्हें गीला करके बाहर निकाला और मेरी तरफ देख कर धीमी आवाज़ में बोली, “अब ट्राय करो।”
मैंने गहरी साँस ली। उनकी बात और उनका तरीका, दोनों ने मेरे अंदर एक नया आत्मविश्वास भर दिया था। इस बार मैंने अपनी उँगली फिर से नीचे ले जाकर उनके नर्म, भीगे हुए हिस्से पर हल्की सी रगड़ दी। दीदी की जाँघें एक-दम झटके से काँपी, लेकिन उन्होंने खुद को रोका नहीं।
धीरे-धीरे, मैंने उँगली को उनके नाजुक हिस्से के अंदर की तरफ धकेला। इस बार वह आसानी से सरक गई।
दीदी ने तुरंत होंठ काट लिए “आह्ह… उँह…”
उनकी आवाज़ में अभी भी हल्का दर्द था, लेकिन उन्होंने मेरी कलाई नहीं पकड़ी। उनका शरीर हल्का सा पीछे झुका, साँसें और भारी हो गई, और आँखें आधी बंद होकर काँपने लगी।
मैंने पहली बार किसी महिला के अंदर होने का एहसास किया। गर्मी… नरमी… और दीदी का शरीर मेरी उँगली को कस कर पकड़ता हुआ। ये सब पहली बार था और इतना तेज कि मैं खुद कुछ सेकंड के लिए साँस लेना भी भूल गया।
दीदी की कमर हल्की-हल्की हिली, जैसे दर्द और सुख के बीच फँस कर भी वह मुझे रोकना नहीं चाहती थी।
“हम्म… धीरे… धीरे…” उन्होंने टूटी हुई साँसों में कहा, लेकिन उनकी आवाज़ में रुकने का आदेश नहीं था। मैंने उँगली अंदर कुछ और गहराई तक सरकाई और दीदी ने आँखें बंद करके सिर पीछे टिका दिया। फिर धीमी सी कराह उनके होंठों से निकली “उँह्ह… हाँ… ऐसे…”
मैंने धीरे से दूसरी उँगली भी उनके अंदर सरकाई। दीदी का शरीर एक-दम से तन गया। उनकी आवाज़ दर्द और सुख के बीच अटकी हुई थी “आह्ह… उँह्ह… रुक… नहीं… जारी रखो…”
मैंने दोनों उँगलियाँ धीरे-धीरे अंदर-बाहर करना शुरू किया। उनका अंदरूनी हिस्सा मेरी उँगलियों को गर्मी और कसावट के साथ पकड़ रहा था।
उनकी कराहें अब और गहरी हो गई थी, “उँह… आह्ह… थोड़ा… धीरे…”
लेकिन उन्होंने मुझे रोका नहीं। दीदी की साँसें हर मूवमेंट पर टूट कर बाहर निकलती। फिर अचानक मैंने ही अपनी उँगलियाँ रोक ली।
दीदी ने तुरंत आँखें खोली, थोड़ी हैरानी और अधूरी चाहत के साथ “क…क्या हुआ? रुके क्यों…?”
मैंने उनके चेहरे की तरफ देखा। उनके होंठ आधे खुले, साँसें तेज़, आँखों में हल्की नमी और चाहत थी।
मैंने धीमे से कहा, “दीदी… क्या मैं… अपना लंड अंदर डाल सकता हूँ…?”
“मैं… अभी तैयार नहीं हूँ… इतनी जल्दी तुम्हें अपने अंदर लेने के लिए।” उन्होंने डर कर कहा।
मैं उन्हें मनाने के लिए कुछ कह ही रहा था कि दरवाज़े पर अचानक ज़ोर की दस्तक हुई। हम दोनों एक-दम से चौंक गए। नेहा दीदी ने तुरंत अपना दुपट्टा ठीक किया, सलवार ऊपर खींची और तेज़ साँसें रोक कर दरवाज़े की ओर देखा। फिर बाहर से आवाज़ आई, “नेहा दीदी, दरवाज़ा खोलो!” यह पायल दीदी की आवाज़ थी।
नेहा दीदी ने मेरी तरफ देखा, मुझे पीछे हटने का इशारा किया और तेज़ आवाज़ में बोली, “हाँ पायल! मैं… मैं आ रही हूँ! बस… एक मिनट!”
उन्होंने जल्दी-जल्दी अपनी काली पैंटी और पायजामा पहन लिए, बाल सँवारे और गहरी साँस लेकर दरवाज़ा खोला। जैसे ही दरवाज़ा खुला, पायल दीदी अंदर आई और बिना कुछ सोचे हँसते हुए बोली, “नेहा दीदी मैं भूखी हूँ, मुझे लगा था हम दोनों डिनर के लिए बाहर जा रहे हैं।”
नेहा दीदी ने आम बनने की कोशिश करते हुए हल्की मुस्कान दी, “हाँ-हाँ, अभी चलते हैं।”
फिर पायल ने थोड़ा झुक कर कहा, “मैं सच में बहुत भूखी हूँ। अच्छा, तुम तैयार हो गई? या अभी भी कुछ बाकी है?”
नेहा ने एक पल के लिए मेरी तरफ देखा, फिर बोली, “नहीं, मैं बस अभी अपना लेक्चर खत्म करके आई हूँ, अब तैयार हूँ, चल सकते हैं।” फिर उन्होंने ज़रा हिचकते हुए पूछा “और… क्या गोलू भी हमारे साथ आ सकता है?”
पायल दीदी ने मेरी तरफ देखा। उनके चेहरे पर हल्की नाराज़गी साफ़ दिख रही थी। फिर थोड़ी रूखी आवाज़ में बोली, “अगर तुम चाहो… तो आ सकता है।”
कुछ ही मिनट में हम तीनों नीचे आ गए। पायल दीदी ने पहले ही कैब बुक कर ली थी। गाड़ी सामने रुकी और हम बैठे। पायल दीदी ने बिना कुछ कहे पीछे की सीट पर बैठते हुए नेहा को बीच में आने का इशारा किया। मैं भी नेहा दीदी के बगल में बैठ गया।
पायल दीदी ने एक नज़र मुझे देखा… और फिर पूरा रास्ता खिड़की के बाहर देखते हुए चुप रही। उनके चेहरे पर वह हल्की नाराज़ी अब भी थी। नेहा दीदी ने हल्के से मेरी बाँह को छुआ, जैसे कह रही हों कि फ़िक्र ना करूँ।
हम होटल पहुँचे। अंदर आते ही माहौल शांत था। रेस्टोरेंट लगभग खाली था, सिर्फ दो-तीन लोग बैठे थे। वेटर ने हमें एक कोने वाली टेबल पर बैठा दिया। वही टेबल जहाँ से बाकी हॉल लगभग खाली दिखाई दे रहा था।
मैं नेहा दीदी के बिल्कुल पास बैठा और पायल दीदी सामने। वह अब भी चुप थी— नेहा दीदी से ही बात करती, मुझसे नज़रें भी नहीं मिलाती।
नेहा दीदीने ने माहौल को संभालने के लिए मुस्कुराकर कहा, “तुम दोनों के बीच कुछ हुआ है क्या?”
पायल दीदी ने मेरे तरफ देखे बिना कहा “कुछ नहीं हुआ… बस मैं उससे बात नहीं करना चाहती बस।”
नेहा दीदी ने माहौल को आम करने के लिए मेन्यू उठाने लगी। उन्होंने वेटर को बुलाया और खाना ऑर्डर कर दिया। खाना बनने में समय था, इसलिए वह बोली, “मैं वॉशरूम होकर आती हूँ।”
नेहा दीदी दीदी उठ कर चली गई। अब टेबल पर सिर्फ मैं और पायल दीदी थे। रेस्टोरेंट का कोना शांत था। पायल दीदी की आँखें अब पहली बार सीधे मेरी तरफ उठी।
कुछ सेकंड तक वह चुप रहीं। फिर धीरे, लेकिन तीखे स्वर में बोली, “मैं तुम्हें माफ़ नहीं कर सकती। तुमने मेरे साथ जो किया था, उसे भूलना आसान नहीं है। मैं तुमसे बड़ी हूँ और तुमसे उम्मीद नहीं थी कि तुम ऐसा करोगे।”
उनके शब्द सीधे मेरे सीने पर लगे। मैंने लंबी साँस लेकर धीरे से उनकी आँखों में देखते हुए कहा, “पायल दीदी, मैंने कभी कोई सीमा तोड़ने की कोशिश नहीं की। हमारे बीच कोई खून का रिश्ता नहीं है। पर फिर भी, मैं आपकी इज़्ज़त करता हूँ। जो महसूस करता हूँ, उसे रोक नहीं पाता।”
उन्होंने धीमे से होंठ भींचे और कुर्सी की पकड़ कसते हुए बोली, “फीलिंग होना अलग बात है। लेकिन उस दिन तुमने जैसे मुझे पकड़ा था, मैं डर गई थी।”
मैंने तुरंत धीरे से कहा, “अगर आपको बुरा लगा, अगर आपको तकलीफ़ हुई, तो मैं सच में माफ़ी चाहता हूँ। मेरा इरादा कभी गलत नहीं था।”
पायल दीदी कुछ पल तक मुझे देखती रहीं। उनकी साँसें थोड़ी धीमी हुई, उनकी आँखों की कठोरता कम हुई, लेकिन पूरी तरह खत्म नहीं। फिर वह हल्का सा झुक कर, बहुत धीमी, काँपती आवाज़ में बोली, “अगर मैं, तुम्हें फिर से समझाना शुरू करूँ, सिखाना शुरू करूँ, तो क्या तुम अपनी ये फ़ीलिंग रोक पाओगे?”
मैंने बिना सोचे बस धीरे से ना में सिर हिला दिया। उनकी आँखें एक पल को रुक गई। जैसे उन्हें उम्मीद थी, पर फिर भी सुन कर कुछ भीतर तक हिल गया हो। उन्होंने मेरी ओर थोड़ा और झुक कर, फुसफुसाहट जैसी आवाज़ में कहा, “अगर… मैं तुम्हें इजाज़त दूँ, सिर्फ एक बार मुझे छूने की…”
मैंने धीरे से उनकी आँखों में देखते हुए कहा, “अगर आप मुझे छूने की इजाज़त दें, तो मैं आपके लिए जो भी आप चाहें, सब करूँगा। जैसा कहेंगी वैसा करूँगा। बस एक बार मुझे आपको छूना है।”
दीदी की साँस हल्की-सी अटक गई। उन्होंने अपनी उंगलियाँ अपने दुपट्टे के किनारे पर फिराई, और बहुत धीमी, लगभग फुसफुसाहट में बोली, “छूने की, मतलब कहाँ छूने की? इतने तरह के टच होते हैं। तुम किस तरह की बात कर रहे हो? किस तरह मुझे छूना चाहते हो?”
मैंने उनकी बात सुनते हुए, अनजाने में उनकी मुलायम, थरथराती होंठों पर नज़र टिकाई। कुछ पल तक बस उन्हें देखता रहा। फिर बहुत ही धीमी, पर साफ़ आवाज़ में कहा, “दीदी… मैं आपके होंठों के बीच अपना लंड रखना चाहता हूँ।”
मेरी बात सुनते ही उनके होंठ हल्के से खुल गए, जैसे साँस अटक गई हो। उनकी पलकें काँपीं, और गालों पर गर्मी की एक तेज़ लहर दौड़ गई। कुछ पल वह बस मुझे देखती रहीं। फिर उन्होंने बहुत धीरे, काँपती आवाज़ में कहा, “ठीक है… मैं तुम्हारे लंड को अपने होंठों से छू लूँगी। लेकिन उसके बाद तुमको बस पढ़ाई पर ध्यान देना होगा। समझे?”
वह एक पल रुकीं, मेरी ओर करीब झुक कर फुसफुसाई, “आज रात जब नेहा दीदी सो जाए, मैं खुद तुम्हारे कमरे में आऊँगी।”
उसी समय बाहर बाथरूम का दरवाज़ा खुलने की आवाज़ हुई। नेहा दीदी वापस आई और आकर मेरी बगल में बैठ गई। खाना परोसा जा चुका था, सब थालियों में लग चुका था। लेकिन मेरा ध्यान सिर्फ एक ही जगह अटका था, पायल दीदी के होंठ।
मैंने खाने की तरफ देखा भी नहीं। बस हर बार जब पायल दीदी चुप-चाप रोटी तोड़ती, उनके होंठों की हल्की हरकत, उनका नरम घुमाव मेरा दिल तेज़ कर देता था। कई दिनों की भूख, कई रातों की बेचैनी, आज पहली बार पूरी होने वाली थी। उन होंठों ने बस थोड़ी देर बाद मेरे लंड को छूना था।
मैं सामने बैठी पायल दीदी को देखता रहा। उनका सिर झुका था, वह खाना खा रही थी। पर हर हरकत के साथ मुझे सिर्फ एक ही बात याद आती रही कि आज रात उनके वही होंठ, मेरे लंड पर होने वाले थे।
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