पिछला भाग पढ़े:- दीदी ने सिखाया मुझे सेक्स करना-1
भाई-बहन सेक्स कहानी अब आगे-
अगली सुबह मेरे लिए काफी अलग थी। जब मैं उठा तो पाया कि मेरी अंडरवियर पहले जैसे गंदी नहीं थी। सुधा दीदी के साथ कल रात को जो हुआ था, उसके बाद मेरे मन की बैचेनी भी पूरी तरह से रुक गई थी। उन्होंने जो मुझे मास्टरबेशन सिखाने की कोशिश की थी, और अपनी लंबी उंगलियों से मेरे लंड को ऊपर-नीचे किया था, उसके बाद सब कुछ अच्छा लगने लगा था।
मैंने धीरे-धीरे कपड़े बदले और नाश्ते के लिए ड्राइंग रूम की ओर चला। सीढ़ियाँ उतरते समय मुझे हल्की ताजगी महसूस हो रही थी। ड्राइंग रूम में पहुँच कर मैंने देखा कि पापा पहले से ही नाश्ता कर रहे थे और माँ रसोई में व्यस्त थी।
मैंने एक कुर्सी पर बैठ कर खाना शुरू किया। थोड़ी देर बाद, सुधा दीदी ड्राइंग रूम में आई, और मेरे सामने वाली कुर्सी पर बैठ गई। उन्होंने अपने हाथ में जूस का गिलास उठाया और मुझे हल्की मुस्कान के साथ देखा। वह मुस्कान उस रात की याद दिला रही थी, जब उन्होंने मेरे लंड के साथ खेला था और मैंने उनकी छाती को छुआ था। उनका यह देखने वाला अंदाज मेरे मन में हल्की गर्मी पैदा कर रहा था।
कुछ देर बाद पापा काम के लिए निकल गए। माँ रसोई में अभी भी व्यस्त थी, और सुधा दीदी और मैंने धीरे-धीरे एक-दूसरे से फुसफुसाना शुरू किया। मैंने हल्की मुस्कान के साथ उनकी ओर देखते हुए कहा, “आज मेरी अंडरवियर ठीक है, इसके लिए शुक्रिया।”
सुधा दीदी यह सुन कर खुश हुई और उसकी आँखों में हल्की चमक आ गई। उसने कहा, “मैं तुम्हारी दीदी हूँ, अगर तुम्हें मुझसे कुछ चाहिए तो यह बिल्कुल ठीक है।” यह सुन कर मेरा मन हल्का और गर्म हो गया, और हमारी फुसफुसाहट का माहौल और भी करीब और निजी महसूस होने लगा।
दोपहर में, मैं अपने कमरे में पढ़ाई कर रहा था कि तभी सुधा दीदी अचानक अंदर आ गई। उन्होंने कुछ नहीं कहा, बस चुपचाप कमरे में आईं और दरवाज़ा धीरे से बंद कर दिया।
उन्होंने हल्का गुलाबी रंग का कुर्ता पहन रखा था। कपड़ा उनके शरीर से चिपका हुआ था, जिससे उनकी छाती का उभार साफ झलक रहा था। उनकी गोल-मटोल छातियाँ कपड़े के नीचे से हल्के-हल्के हिल रही थी, जैसे हर सांस के साथ मुझे अपनी ओर खींच रही हो। कुर्ते की नर्मी उनके स्तनों की गोलाई को और उभार रही थी, और कपड़े की पतली तह के बावजूद उनके बीच की गहराई साफ महसूस हो रही थी।
मैं किताब पर ध्यान लगाने की कोशिश कर रहा था, लेकिन मेरी नज़र बार-बार उनकी छाती की ओर खिंच रही थी। सुधा दीदी ने यह देखा, और होंठों पर एक हल्की मुस्कान उभर आई।
वह धीरे-धीरे कमरे के बीचो-बीच आई और फिर मेरे बिस्तर के किनारे बैठ गई। उनकी चाल में एक अलग ही आत्मविश्वास था, जैसे वो पहले से जानती हों कि मैं उनकी ओर खिंच चुका हूँ। बैठते ही उन्होंने अपनी नज़रों से मुझे इशारा किया और मुलायम आवाज़ में कहा, “यहाँ आओ… मेरे पास बैठो।”
मैं धीरे से उठा और उनके पास जाकर बैठ गया। मेरी जांघ उनके कपड़ों से छू गई और उस छुअन से मेरे पूरे शरीर में झनझनाहट सी फैल गई। दीदी ने गहरी नज़रों से मुझे देखा और धीरे से बोली, “कल मैंने तुम्हारी मदद की थी… तुम्हें मास्टरबेट करना सिखाया था। लेकिन आज…” उनकी आवाज़ थोड़ी धीमी और रहस्यमयी हो गई, “…आज मैं तुम्हारे बारे में और जानना चाहती हूँ।”
मैं चुप-चाप उनकी ओर देखता रहा। उन्होंने मेरे चेहरे को गौर से देखा और हल्के से पूछा, “मुझे बताओ… तुम्हारी सेक्शुअल लाइफ़ के बारे में। क्या कभी तुमने सोचा है किसी लड़की के साथ सचमुच सेक्स करने के बारे में? कभी किसी और लड़की को देख कर तुम्हें चाहत हुई है?”
मेरे शब्द सुन कर दीदी की आँखों में एक अजीब-सी चमक आ गई। उन्होंने मेरी ओर झुक कर धीरे से कहा, “बेचारे… तुम्हें अभी तक असली दुनिया की कुछ समझ ही नहीं है। मुझे तुम्हारे लिए अफसोस हो रहा है।”
उनका हाथ मेरे कंधे पर आ गया, और वह नरमी से बोली, “अगर तुम चाहो तो मैं तुम्हें सब कुछ सिखाऊँगी… ज़िंदगी के बारे में, और उसके मज़ों के बारे में।”
फिर उन्होंने मुस्कुरा कर कहा, “जाओ, अपना लैपटॉप ले आओ।”
मैंने उनकी बात मान ली और तुरंत लैपटॉप उठा कर वापस बिस्तर पर आ गया। दीदी ने बिस्तर पर जगह बनाई और आराम से पीछे टिक गई। मैं उनके पास आकर बैठ गया। हमारी बांह एक-दूसरे को छू रही थी, और उस हल्की छुअन में अजीब-सी गर्माहट थी। माहौल इतना शांत और करीब था कि जैसे अब वो मुझे धीरे-धीरे सब कुछ सिखाने वाली हो।
थोड़ी देर बाद दीदी ने मेरा लैपटॉप अपने हाथ में लिया और स्क्रीन ऑन की। उन्होंने इंटरनेट खोल कर कुछ वीडियो चलाना शुरू कर दिया। स्क्रीन पर जैसे ही पोर्न वीडियो चलने लगे, दीदी के चेहरे पर एक शरारती मुस्कान फैल गई। वो पूरे मज़े से मुझे देखते हुए बोली, “अब ध्यान से देखो।”
मैंने पहली बार ज़िंदगी में ऐसा कुछ देखा था। वीडियो में जो हो रहा था, उसे देख कर मेरी आँखें फैल गई। मैं हैरान होकर बोला, “दीदी… ये क्या है?”
वो हल्की हँसी के साथ मेरे और करीब आ गईं और फुसफुसाकर बोली, “इसे सेक्स कहते है।”
हम दोनों चुप-चाप स्क्रीन पर ध्यान लगाए बैठे रहे। जैसे-जैसे वीडियो आगे बढ़ रहा था, और उसमें और ज़्यादा उत्तेजक सीन आने लगे, दीदी के चेहरे पर अलग ही रंग उभरने लगे। कभी उनकी आँखें गहरी हो जाती, कभी वो दाँतों में हल्के से होंठ दबाती। उनके चेहरे पर खुशी और चाहत का मिला-जुला असर था, जैसे वो भी अंदर से गरम होती जा रही हो।
मेरे लिए ये सब पहली बार था। मेरी साँसें तेज़ हो रही थी और दिल की धड़कन बेकाबू। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मैं क्या महसूस कर रहा हूँ, बस इतना लग रहा था जैसे कोई नया दरवाज़ा मेरे सामने खुल रहा है।
और तभी, बिस्तर पर थोड़ी और सहजता से टिकते हुए, सुधा दीदी का हाथ धीरे-धीरे उनकी जाँघों के बीच चला गया। उन्होंने बहुत हल्के स्पर्श से अपना ही नाज़ुक जगह सहलाना शुरू किया। उनके चेहरे पर शर्म और चाहत का अजीब मिश्रण था। उनकी साँसें गहरी होने लगी, और आँखें आधी बंद हो गई। ऐसा लग रहा था जैसे वीडियो का असर अब उनके जिस्म पर पूरी तरह हावी हो रहा हो।
मेरे बगल में बैठा मैं सब देख रहा था। तभी मैंने महसूस किया कि मेरा भी लंड धीरे-धीरे कड़ा हो रहा है। लेकिन मुझे समझ ही नहीं आ रहा था कि अब करना क्या चाहिए। उधर सुधा दीदी का हाथ और तेज़ी से उनकी भीगी जगह पर दबाव डाल रहा था। वो अपने कुर्ते के ऊपर से ही रगड़ रही थी और उनकी साँसों से मीठी-सी सिसकियाँ निकल रही थी। कमरे का माहौल अब पूरी तरह बदल चुका था, जैसे हम दोनों किसी और ही दुनिया में खो गए हों।
मैंने हल्की हिचकिचाहट में दीदी की ओर देखा और धीमे स्वर में बोला, “दीदी… मुझे अजीब लग रहा है। समझ नहीं आ रहा कि क्या हो रहा है और मुझे अब क्या करना चाहिए…”
दीदी ने आधी बंद आँखों से मुझे देखा और होंठों पर हल्की मुस्कान लाते हुए बोली, “ये सब तुम इसलिए महसूस कर रहे हो… क्योंकि वीडियो तुम्हें असर कर रहा है और मैं भी तुम्हारे पास हूँ। यही है चाहत… यही है सेक्सुअल फीलिंग।”
फिर वो और गहरी मुस्कान के साथ धीरे से बोलीं, “अगर तुम्हें अच्छा लग रहा है तो तुम इसे और एन्जॉय कर सकते हो… या फिर खुद को छू कर तुरंत निकाल भी सकते हो। लेकिन सोचो… क्या तुम जल्दी खत्म करना चाहते हो या मेरे साथ और आगे बढ़ कर इसे महसूस करना चाहते हो?”
उनकी आँखों की चमक और आवाज़ की नरमी से मैं अंदर तक हिल गया। अजीब-सा अच्छा लग रहा था और मैं खुद को रोक नहीं पा रहा था। मैंने गहरी साँस लेकर हकलाते हुए कहा, “दीदी… मुझे और चाहिए।”
इसके बाद दीदी ने धीरे-धीरे अपने कपड़े उतारने शुरू किए। पहले उन्होंने अपने हाथों से कुर्ती का किनारा पकड़ा और उसे ऊपर खींचते हुए सिर के ऊपर से उतार दिया। उनकी साँसों की हल्की लय के साथ उनकी छाती की हल्की उठान साफ़ दिखाई देने लगी। फिर उन्होंने अपने पायजामे की डोर पकड़ी और धीरे-धीरे खोलते हुए उसे नीचे खिसकाना शुरू किया। जैसे-जैसे कपड़ा नीचे सरक रहा था, उनकी गोरी और मुलायम त्वचा निखर कर सामने आ रही थी। उनकी जाँघों की चमक मुझे बेहाल कर रही थी।
जब उन्होंने झुक कर अपनी उँगलियाँ पैंटी के किनारों पर रखी, और उसे भी नीचे करने लगी, तो मैं और बर्दाश्त नहीं कर पाया। मैंने तुरंत उनका हाथ थाम लिया। हल्के डर और उत्साह में मैंने फुसफुसा कर कहा, “क्या… ये मैं कर सकता हूँ?”
दीदी ने मुस्कुराते हुए धीरे से सिर हिलाया और बिस्तर पर लेट गई। उनकी आँखों में एक नरमी और भरोसा था। उन्होंने धीमे स्वर में कहा, “हाँ… तुम कर सकते हो।”
मैं काँपते हुए उनके पास सरका और उनकी पैंटी को धीरे-धीरे नीचे खींचना शुरू किया। जैसे ही वह पूरी तरह उतरी, मेरी नज़र उनके सबसे छुपे हिस्से पर पड़ी। यह मेरी ज़िंदगी का पहला मौका था जब मैंने किसी औरत का निजी अंग देखा था। मेरा दिल तेज़ी से धड़क रहा था, साँसें तेज़ हो चुकी थी।
उनका वह हिस्सा हल्के गुलाबी रंग का था, मुलायम और नाज़ुक। जाँघों के बीच हल्की-सी नमी चमक रही थी, जिससे वहाँ की त्वचा और भी संवेदनशील और आकर्षक लग रही थी। उनके बालों की पतली परत ने उसे ढँक रखा था, लेकिन बीच से साफ़ दिख रहा था कि वह धीरे-धीरे गीला हो रहा है। उसे देखना मेरे लिए जैसे किसी अनजान दुनिया का दरवाज़ा खुलने जैसा था।
दीदी ने मेरी आँखों में झाँकते हुए मुस्कुरा कर कहा, “गोलू… मैं चाहती हूँ तुम्हें सब कुछ सिखाऊँ। औरत की फीलिंग्स कैसी होती है, उसे समझना कितना ज़रूरी है। ताकि जब कभी तुम किसी और लड़की के साथ रहो… तो उसे ठीक से खुश कर सको।”
फिर उन्होंने हल्के से अपनी टाँगें और फैलाते हुए कहा, “तुम इसे छू सकते हो… महसूस करो मुझे।”
मेरे हाथ काँप रहे थे, लेकिन दीदी की मुस्कान ने हिम्मत दी। मैंने धीरे-धीरे अपना पूरा हथेली उनके उस नाज़ुक हिस्से पर रख दी। जैसे ही मेरी हथेली उनकी गर्म और नमी से भरी त्वचा से छुई, एक सिहरन पूरे जिस्म में दौड़ गई। वहाँ की मुलायमाई और हल्की नमी ने मेरी उँगलियों को गीला कर दिया। ऐसा लगा जैसे मेरी हथेली किसी बेहद नाज़ुक फूल की पंखुड़ी पर टिक गई हो, जो हल्की-सी छुअन से ही काँप उठी हो।
दीदी हल्की मुस्कान के साथ बोली, “गोलू… इस तरह नहीं… औरत को ऐसे छूने से वो मज़ा महसूस नहीं करती।” उन्होंने धीरे से मेरी हथेली से हटा कर अपनी ही उँगलियाँ वहाँ रख दी और नरमी से गोल-गोल घुमाते हुए बोली, “देखो… इस तरह करना चाहिए। तभी वो असली अहसास मिलता है।”
उनकी उँगलियों की हरकत और चेहरे पर खिली मुस्कान ने मुझे साफ़ समझा दिया कि वह मुझे सिखा रही थी, कि औरत को कैसे छू कर खुश किया जाता है।
धीरे-धीरे उन्होंने अपनी उँगलियाँ हटा ली और बिस्तर पर आराम से लेट गई। उनकी साँसें थोड़ी तेज़ थी, आँखों में संतोष की झलक थी। मैंने संकोच के साथ अपनी दो बीच की उँगलियाँ उनके नाज़ुक हिस्से पर रखीं और हल्के दबाव के साथ रगड़ना शुरू किया। पहले मेरी हरकतें बेतरतीब थी, लेकिन जैसे ही मैंने उनकी तरह गोल-गोल हरकत करनी शुरू की, दीदी के होंठों से हल्की-सी कराह निकल पड़ी।
मैंने फिर धीरे से अपनी उँगलियाँ उनके भीतरी हिस्से के नीचे सरकाई, और हल्की-हल्की स्ट्रोक्स देने लगा। हर स्ट्रोक पर दीदी की साँसें भारी होती जा रही थी। उनकी कराह और धीमे सुरों में मेरी तरफ़ पुकार, “गोलू… हाँ… ऐसे ही… तुम बहुत अच्छा कर रहे हो…” मेरे कानों में गूँज रही थी।
मैं उनकी आवाज़ सुनते ही और उत्साहित हो गया। मैंने अपनी उँगलियों की गति तेज़ कर दी। जैसे-जैसे मेरी स्पीड बढ़ रही थी, दीदी की आवाज़ें और ज़्यादा ऊँची और बेकाबू होती जा रही थी। उनकी साँसें तेज़ होकर हाँफने लगी, और उनके कराहते हुए शब्द कमरे की खामोशी को तोड़ रहे थे।
मैं थोड़ा डरकर फुसफुसाया, “दीदी… अपनी आवाज़ कंट्रोल करो… अगर मम्मी ने सुन लिया तो?”
दीदी ने आँखें खोल कर मुस्कुराते हुए कहा, “गोलू… घबराओ मत… माँ घर पर नहीं है। वो बाज़ार गई है।”
यह सुन कर मेरे चेहरे पर शरारती मुस्कान आ गई। मैंने धीरे से कहा, “तो फिर… ज़रा और जोर से आवाज़ निकालो ना दीदी… तुम्हारी ये आवाज़ सुन कर मुझे बहुत अच्छा लग रहा है।” मैंने मज़ाक में अपना लैपटॉप भी ऑन कर दिया और आवाज़ बढ़ा दी, ताकि दीदी की कराहों की गूंज और गहरी हो जाए।
इसके साथ ही मैंने फिर से अपनी उँगलियाँ उनके भीतरी हिस्से में तेज़ी से चलानी शुरू कीं। दीदी की साँसें अब और भी भारी हो चुकी थी। वह हाँफते हुए अपनी छाती पर हाथ रख कर खुद ही अपने स्तनों को दबाने लगीं। उनकी उँगलियाँ उनके निपल्स को रगड़ रही थी और उनकी कराहें और मदहोश करने वाली हो रही थी।
मैं उन्हें देख-देख कर और पागल हो रहा था। उनकी हर आवाज़, हर हरकत मेरे अंदर आग जला रही थी। मेरी उँगलियाँ लगातार उनके भीतरी हिस्से में स्ट्रोक्स दे रही थी और दीदी अपने होंठ काटते हुए बार-बार मेरी तारीफ़ कर रही थी—“गोलू… हाँ… ऐसे ही… ओह्ह… तुम मुझे पागल कर रहे हो…”
धीरे-धीरे दीदी के शरीर में और भी गहराई से कंपन होने लगा। उनकी टाँगें बिस्तर पर काँपने लगी, हाथों की पकड़ ढीली पड़ते ही उन्होंने खुद को और कस कर जकड़ लिया। उनका बदन बेकाबू होकर ऊपर उठ रहा था और उनकी आवाज़ें अब तेज़ और अनियंत्रित हो चुकी थी।
कुछ ही पलों में उनकी साँसें इतनी भारी हो गईं कि वह ज़ोर से चीख पड़ी, “गोलू… मैं… आ रही हूँ…” और उसी पल उनका पूरा शरीर काँपते हुए बिस्तर पर ढह गया। उनकी टाँगें थरथरा रही थी, हाथों से अब भी अपने स्तनों को दबाए हुए वह हाँफते हुए पूरी तरह ढीली पड़ गई।
कुछ देर बाद उन्होंने आँखें खोली, और मुझे देखा। उनके चेहरे पर एक अलग ही सुकून था, हल्की मुस्कान के साथ। तभी मैंने पहली बार देखा कि उनके नाज़ुक हिस्से से सफेद गाढ़ा तरल धीरे-धीरे बाहर निकल रहा था, जो उनकी जाँघों तक बहने लगा। मेरी आँखें उसी पर टिक गई, मैं समझ ही नहीं पा रहा था कि यह सब क्या है, बस अंदर से बहुत अजीब और अच्छा दोनों महसूस हो रहा था।
उन्होंने मुस्कुराते हुए मेरी तरफ देखा और धीमे स्वर में बोली, “गोलू, तुम अब लगभग तैयार हो गए हो किसी भी औरत को खुशी देने के लिए।” इतना कह कर वह उठ कर अपने कपड़े पहनने लगी।
लेकिन तभी मैंने उनका हाथ पकड़ लिया और हकलाते हुए कहा, “दीदी… आप रुक जाइए ना… आप तो खुश हो गई, पर मैं अभी भी बहुत परेशान हूँ….” मैंने उनका हाथ अपनी पैंट की उस जगह रखा, जहां मेरा लंड खड़ा था।
उनकी आँखों में हल्की शरारत झलकने लगी। मैंने धीरे से कहा, “दीदी… आप मत जाइए, मुझे भी आपकी मदद चाहिए… मैं अभी भी बहुत गरम महसूस कर रहा हूँ।” मेरी साँसें तेज़ हो चुकी थी और दिल बेकाबू सा हो रहा था।
यह सुन कर उन्होंने शरमाते हुए मुस्कुराया और धीरे-धीरे अपने हाथ से मेरी पैंट पर दबाव बनाने लगी। फिर उन्होंने मेरी आँखों में देखते हुए कहा, “ठीक है गोलू… अपने कपड़े उतारो।” उनकी आवाज़ में मिठास और शरारत दोनों मिल कर मुझे और बेचैन कर रहे थे। अगला पार्ट चाहिए तो मेल करें [email protected]
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