पिछला भाग पढ़े:- पापा की परी प्रीती-6
बाप-बेटी सेक्स स्टोरी अब आगे-
प्रीती का गांड चुदवाने का मन था, मगर प्रीती की टाइट गांड के छेद में मेरा लंड जा नहीं रहा था, और मैं ज़बरदस्ती करना नहीं चाहता था। आखिर जो भी था प्रीती थी तो मेरी बेटी ही। प्रीती मेरी उलझन समझ गयी। उसने खुद ही मेरा मोटा लंड अपनी गांड में डालने का फैसला कर लिया। प्रीती ने मुझे बिस्तर पर लेटने के लिए कहा और मेरे ऊपर आ कर अपनी गांड और मेरे लंड पर क्रीम लगा कर उस पर बैठ कर लंड अपनी गांड के अंदर लेने लगी।
अब प्रीती की गांड का छेद तो टाइट ही था और मेरा लंड भी मोटा था ही। फिर भी प्रीती ने हिम्मत नहीं हारी और वो रुक-रुक कर लंड पर क्रीम लगा रही थी, और लंड अंदर करने की कोशिश कर रही थी। प्रीती की इन कोशिशों के बाद मेरा आधा लंड प्रीटी की गांड के अंदर चला गया।
इसके बाद तो थोड़ी कोशिशों के बाद प्रीती लंड पर जो बैठी और तो फिर बैठती ही चली गयी। प्रीती के बड़े-बड़े चूतड़ मेरे टट्टों को छूने लगे थे, मतलब मेरा लंड पूरा प्रीती की गांड के अंदर जा चुका था। वो कुछ देर ऐसे ही लंड पर बैठी रही और फिर बोली, “लो पापा गया पूरा अंदर।” अब मैं उठती हूं, अब आप भी उठो और चलो अब जैसे भी मर्जी है चोदो मेरी गांड।
प्रीती को उठते देख मैं भी खड़ा हो गया। वो भी उठी और पहले ही की तरह जा कर तरह सोफे पर चूतड़ ऊपर करके घुटनों के बल लेट गयी।
मैं प्रीती के पीछे गया, प्रीती के रेशमी मुलायम चूतड़ों को चूमा, चाटा और लंड प्रीती की गांड के छेद पर टिका कर प्रीती की कमर पकड़ी और लंड गांड के अंदर धकेलने लगा। लंड आराम से तो नहीं मगर गांड के अंदर जा तो रहा ही था। जब आधा लंड गांड में चला गया तो मैं दो सेकण्ड के लिए रुका, प्रीती की कमर पकड़ी और बोला, “ले मेरी प्रीती” और एक ही झटके में पूरा लंड अंदर बैठा दिया।
प्रीती ने जरा सा सर पीछे के तरफ घुमाया और बोली, “गया पापा – चलो पापा अब ज्यादा देर मत करो और चोदना शुरू करो और तब तक मत रुकना जब तक आपने लंड का गर्म-गर्म चिकना शहद मेरी गांड में निकल नहीं जाता।”
प्रीति के बात सुन कर मैंने प्रीती की गांड पर एक और धप्प लगाया और फिर प्रीती को कंधों पकड़ कर कहा, “ले मेरी प्यारी प्यारी परी प्रीती, ले मजा ले अपने पापा के लंड से गांड चुदाई का।”
और फिर इसके बाद जिस तरह से मैंने अपनी बेटी प्रीटी की गांड चोदी, इस तरह की ज़बरदस्त गांड चुदाई तो मैंने कानपुर वाली मालिनी अवस्थी की भी नहीं की जो ज़बरदस्त गांड चुदाई की शौक़ीन है।
मस्ती में मैं प्रीती की कमर पकड़ कर ऐसे लम्बे-लम्बे धक्के लगा रहा था, जैसे कोइ किसी रंडी की गांड में भी क्या लगाता होगा।
मैं भी आखिर क्या करता। प्रीती के चूतड़ थे ही मस्त, मोटे-मोटे, नरम-नरम, सफ़ेद रेशमी कपड़े की तरह मुलायम, और प्रीती भी ऐसे ही चुदाई चाहती थी। वैसे भी ऐसे चूतड़ और ऐसे मम्मे अब हमारे देश में कम ही लड़कियों के मिलते हैं। अपने शरीर की फिगर – शरीर को पतला रखने के चक्कर में अपने चूतड़ों और मम्मों की मां चोद देती हैं – और आखिर में होता क्या है? ऐसी लड़कियों के खसम गुदगुदे जिस्म वाली रंडियों के पास जाना शुरू कर देते हैं।
बड़ा ही लक्की है भोसड़ी वाला मेरा दामाद सुखचैन जिसे ऐसी ग़ज़ब की बीवी मिली चोदने के लिए। और अब मैं अपनी ऐसी ग़ज़ब की खूबसूरत और सेक्सी बेटी को चोद रहा था। यही तो है लक्क, मुकद्दर या किस्मत।
इसके बाद मेरी और मेरी परी जैसी बेटी प्रीती की ये चूत गांड चुदाई बिना किसी रुकावट के तब तक चली जब तक मेरी बीवी भूपिंदर कनाडा से वापस नहीं आ गयी। और फिर हफ्ते में एक दिन के लिए बिशनी तो थी ही। दो महीने के बाद भूपिंदर कनाडा से वापस आ गयी।
कनाडा से वापस आ कर भूपिंदर पहली ही रात से शुरू हो गयी और एक हफ्ते तक बिना रुके रात-रात भर चुदाई करवाई। चूत, गांड मुंह में सब जगह लंड लिया। रात को कमरे में जाते ही हम कपड़े उतार देते और ऐसे ऐसे काम करते कि जवान लड़के-लड़किया भी क्या करते होंगे। एक हफ्ते तक आधी-आधी रात तक हमारी चुदाई हुई।
रात-रात भर चुदाई की थकान के कारण भूपिंदर सुबह लेट उठती थी। एक दिन तो मैं उठा तो देखा प्रीती चाय बना रही थी। आवाज सुन कर प्रीती ने पलट कर मुझे देखा और बोली, “पापा लग रहा है मम्मी अभी भी छोड़ नहीं रही। कोई बात नहीं पापा दो महीने की कसर पूरी करेगी मम्मी। आप चोदो दबा-दबा कर मम्मी को – आगे से पीछे से।” और फिर प्रीती हंसते हुए चाय बनाने लग गयी।
कभी चूत, कभी गांड, कभी मुंह में, कभी चूत चुसाई कभी गांड चटाई – क्या-क्या नहीं हुआ मेरे और भूपिंदर के बीच इस एक हफ्ते में।
मगर एक दिन तो गज़ब ही हो गया। जब मैं भूपिंदर की गांड में लंड डालने लगा तो मैंने कहा, “भूपिंदर उधर सोफे पर उल्टा लेटो, चूतड़ों का छेद बिलकुल लंड के सामने होगा। एक-दम सीधा गांड में जाएगा।”
भूपिंदर ने मेरी तरफ देखा मगर बोली कुछ नहीं और चुप-चाप जा कर सोफे पर उल्टा, चूतड़ ऊपर करके लेट गयी। मुझे लगा कि “यार अवतार जोश-जोश में कुछ ज़्यादा ही बोल गया तू।”
भूपिंदर की गांड मैंने आज तक कभी भी उस सोफे पर नहीं चोदी थी – हमेशा बेड पर ही चोदी थी। ये सोफे पर गांड चुदाई का ज्ञान तो मुझे प्रीती से प्राप्त हुआ था।
मगर अब जो होना था वो तो हो चुका था। तभी तो सयाने बुज़ुर्ग कहते हैं – पहले तोलो फिर बोलो। गलत बोलने के बाद अपनी मां भी चुदवा लो तब भी कुछ नहीं होगा।
एक हफ्ते के बाद, जब चुदाई करवा-करवा कर भूपिंदर की फुद्दी और गांड की तसल्ली हो गयी तब भूपिंदर ने घर की सुध ली। उस दिन मैं और भूपिंदर लाउंज में बैठे सुबह चाय की चुस्कियां ले रहे थे, प्रीति वहां नहीं थी। भूपिंदर बोली, “अवतार तुमसे एक बात करनी है।”
मैंने कहा, “कहो भूपिंदर बोलो, ऐसी क्या बात है जो तुम मुझसे पूछ रही हो?”
भूपिंदर – मेरी बीवी बोली, “अवतार, एक बात बताओ – सुखचैन दो महीने से प्रीती से दूर है और रोज़ चुदाई करवाने वाली प्रीती के चेहरे पर उदासी की एक लाइन – एक झलक तक नहीं? ऐसा कैसे हो सकता है?”
मैंने बनावटी हैरानी से पूछा, “भूपिंदर उदासी की एक लाइन नहीं? क्या मतलब है तुम्हारा, जरा साफ़-साफ़ बोलो।”
भूपिंदर बोली, “अवतार मैं प्रीती को जानती हूं। प्रीती चुदाई की शौक़ीन है। चुदाई के बिना ज्यादा दिन नहीं रह सकती। अब सुखचैन दो महीने से यहां नहीं है तो उसका मतलब प्रीती की चुदाई भी नहीं हुई। फिर भी मुझे तो वो बिल्कुल भी उदास नहीं लग रही। ऐसे लग रहा है सुखचैन का लंड बिलकुल भी मिस नहीं कर रही।”
मैं चुप रहा। भूपिंदर कुछ रुक कर बोली, “अवतार ये बताओ जब सुखचैन आसाम चला गया था तो प्रीती कहीं आती-जाती थी?”
मैंने कहा, “जाती थी – मार्किट जाती थी। प्रीती चंडीगढ़ की पली बड़ी हुई है। पूरा चंडीगढ़ उसका जाना पहचाना है और सत्रह की मार्किट में तो वो बचपन से आती-जाती रही है। वहां के कई दुकानदार उसको पहचानते हैं।”
भूपिंदर बोली, “मैं उस तरह के आने-जाने की बात नहीं कर रही। मेरा मतलब है पांच छह घंटे के लिए घर से बाहर रहने वाली बात है।”
मुझे भूपिंदर की बात तो मैं समझ ही रहा था, फिर भी मैंने पूछा, “भूपिंदर साफ़-साफ़ बात करो। पांच-छह घंटे बाहर रहना, इससे क्या मतलब है तुम्हारा।”
मैं समझ चुका था कि जिस तरह प्रीती के चेहरे पर सुखचैन के साथ दो महीने से भी ज्यादा समय से चुदाई ना होने पर भी जरा सी भी उदासी की झलक तक नहीं थी, उससे मेरी बीवी भूपिंदर को शक हो गया कि प्रीती इन दिनों में पक्का ही किसी से चुदाई करवाती रही है।
बस अब एक ही सवाल था – किससे? भूपिंदर मुझसे पूछ रही थी कि क्या प्रीती किसी से चुदाई करवाती रही है? मुझे तो इस सवाल का जवाब मालूम ही था मगर मैं क्या बताता, मैं चुप रहा, अनजान बना रहा।
भूपिंदर चुप देख हर भूपिंदर बोली, “अवतार अब इतने भी अनजान भी मत बनो। साफ़ बात ये है अवतार कि मैं प्रीती को जानती हूं। प्रीती जवान है खूबसूरत है फिगर भी उसके ऐसे हैं जो सब के नहीं होते। लड़के तो इस पर शुरू से ही मरते रहे हैं। शादी भी गबरू-जवान सुखचैन से हुई है जो खाते-पीते घर से है और फ़ौज में भी अच्छे ओहदे पर है।”
इसके बाद भूपिंदर असली बात पर आ रही थी, “अवतार मुझे तो यहां तक मालूम है कि वो रोज सेक्स – चुदाई करते हैं। अब दो महीने से सुखचैन यहां नहीं है, मतलब कायदे से दो महीने से प्रीती की चुदाई नहीं हुई। मगर अवतार मुझे तो ऐसा नहीं लग रहा कि प्रीती की चूत में दो महीने से लंड ही ना गया हो, उसकी चुदाई ही ना हुई हो।”
मैंने कहा, “भूपिंदर अब इस बारे में मैं क्या बताऊं।”
भूपिंदर बोली, “अवतार तुम नहीं बताओगे तो कौन बताएगा? दो महीने तुम भी तो यहीं थे। तुम कह रहे हो दो महीने तक प्रीती बाहर नहीं निकली। इसका मतलब दो महीने तक उसकी चुदाई नहीं हुई। फिर भी वो इतनी हरी भरी, इतनी खुश कैसे है? मैं भी औरत हूं। मैं जानती हूं एक जवान तंदरुस्त लड़की को लंड चाहिए ही होता है। उसे फुद्दी का मजा चाहिए ही होता है, उसे गांड कि छेद में लंड चाहिए होता है, वो भी खास कर तब जब उसे बढ़िया चोदने वाला मर्द मिला हो जो उसकी रोज चुदाई करता हो और उसे अच्छी चुदाई की आदत हो चुकी हो।”
कुछ देर तो मैं चुप रहा, फिर बोला, “भूपिंदर तुम खुद ही प्रीती से ही क्यों नहीं पूछ लेती।”
भूपिंदर ने इसके बाद तो साफ़ ही बोल दिया, “प्रीती से भी पूछ लूंगी पहले तो तुम बताओ भोसड़ी के कहीं तुम ही तो नहीं चोदते रहे प्रीती को? तुम्हारे लंड में तो अभी तक वही जवानी वाला दम है। तुम ही कौन से कम हो, तुम्हें भी तो रोज चूत चाहिए होती है चोदने कि लिए। और फिर जवानी में मैं ही कौन सी कम थी जो मेरी बेटी ही मुझसे कम होगी।”
मैंने सकपकाते हुए कह, “ये क्या कह रही हो भूपिंदर? मैं प्रीती के साथ ऐसा कैसे कर सकता हूं?”
भूपिंदर, मेरी बीवी – को शक तो हो ही चुका था कि में अपनी बेटी प्रीती को चोदता रहा था, बस एक बार मेरे मुंह से भूपिंदर सुनना चाहते थी। जब मैंने भूपिंदर से कहा के में प्रीती को कैसे चोद सकता हूं, मैं ऐसा कैसे कर सकता हूं तो समझो तूफ़ान ही आ गया।
अब भूपिंदर खुल चुकी थी और साफ़ ही बात करने के मूड में थी। भूपिंदर बोली, “क्यों? तुम ऐसा क्यों नहीं कर सकते? पूरे पंजाब, हरियाणा, चंडीगढ़ में यही खेल चलता है। जब लड़के कहीं बाहर होते हैं नौकरी पर या किसी और वजह से तो उनकी जवान चुदाई की प्यासी बीवियों को घर के बाकी मर्द ही चोदते है।”
“अब खुद ही देखो हजारों ऐसे एक्ज़ाम्पल – उदाहरण हैं हमारे आस-पास। यहां के लड़के बाहर के मुल्कों में जाने के इतने शौक़ीन होते है अपनी जवान बीवियों, यहां तक की नयी ब्याहता बीवियों को भी यहां अपने बाकी परिवार के पास छोड़ कर अमरीका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैंड चले जाते हैं। वहां उन्हें ट्रक ड्राइवरी, बड़े-बड़े माल्स की टट्टियां साफ़ करना यहां ढंग का काम करने से ज्यादा पसंद आता है। एक ऐसा ही नमूना हमारे घर में भी तो है, हमारा बेटा अमनदीप यहां की लाखों की आमदन और करोड़ों प्रॉपर्टी छोड़ कनाडा गया हुआ है।”
भूपिंदर बोलती जा रही थी, “अब तुम बताओ ये जो चूतिये बाहर चले गए इनकी बीवियां अपने फुद्दी का क्या करें? बस यहीं से सारा खेल शुरू होता है। जवान होते देवर को भाभी फंसा लेती है क्योंकि उसका पति बाहर गया हुआ है, और उसे अपनी फुद्दी की आग ठंडी करने के लिए एक जवान सख्त लंड चाहिए। अगर घर में वो जवान होता देवर हो तो बात ही क्या। जवान होते देवर के लंड में से तो गर्म-गर्म मलाई भी कप भर-भर कर गिरती है भाभी की फुद्दी में”
“अधेड़ उम्र का जेठ अपने छोटे भाई की जवान बीवी, जिसका खसम अमरीका गया है, उसकी टाइट फुद्दी चोदता है, क्योंकि उसकी अपनी अधेड़ उम्र की बीवी की फुद्दी का बच्चे पैदा कर कर भोसड़ा बन चुका है, उसे चोदने का मजा नहीं आता। अपनी अधेड़ बीवी को चोदते हुए यही पता नहीं चलता कि उसका लंड किसी छेद में गया भी हुआ है या हवा में में ही लटक रहा है।”
“और अवतार यही क्या, अगर कोइ दूसरा मर्द घर ने नहीं है तो ससुर अपनी बहु के ऊपर चढ़ता है और उसे चोदता है।”
“क्या तुम्हें लगता है कि बाकी घर वालों को इसका पता नहीं होता – अवतार सब पता होता है। मगर सब नज़र दूसरी तरफ कर लेते हैं, क्योंकि उन्हें भी लड़कियों की फुद्दी की जरूरतों का पता होता है। उन्हें भी यही डर लगता है अगर इन जवान घर की बहू, बेटियों, भाभियों की चूत के प्यास ना बुझाई तो वो किसी बाहर वाले का लंड ना ले लें, किसी बाहरी मर्द से, किसी नौकर से ही ना चुदवा लें – या फिर घर से ही ना भाग जायें किसी लम्बे मोटे वाले मर्द के साथ।”
तभी प्रीती गलियारे में से आयी मगर मुझे और भूपिंदर को सीरियस – संजीदा बात करते एक पल के लिए ठिठकी और उल्टे पैर वापस की गयी। भूपिंदर प्रीती को नहीं देख पायी, मगर मेरा मुंह क्योंकि गलियारे की तरफ था, मैंने प्रीती को देख लिया। मैं सोच रहा था, भूपिंदर कह तो ठीक ही रही थी। भूपिंदर बोली, “अब तुम बताओ अवतार क्या मैं गलत कह रही हूं?”
मैं चुप बैठा रहा। भूपिंदर बोली, “अब तुम बताओ अवतार अगर प्रीती घर से बाहर नहीं गयी तो तुमने पक्का ही उसे चोदा है। ये तो कहना मत कि तुमने प्रीती की चुदाई नहीं की – उसकी फुद्दी मैं लंड नहीं डाला, उसके मम्मे नहीं दबाये, उसकी फुद्दी नहीं चूसी, उसकी चूतड़ों का छेद नहीं चाटा।”
मैंने धीरे के कहा, “भूपिंदर तुमने अभी अभी जो भी बोला है वो सही है। यहां पंजाब हरियाणा के घरों में होता तो यही है, और शायद हमारे घर में भी यही हो गया है।”
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