पिछला भाग पढ़े:- दीपिका दीदी और मेरा राज-2
भाई-बहन सेक्स कहानी अब आगे-
दीपिका दीदी और मैं दोनों बंद बाथरूम में एक-दूसरे के सामने खड़े थे। उनका हाथ मेरे लंड के बिल्कुल करीब था। कुछ पल हम दोनों बस एक-दूसरे को गहरी सांसों के बीच देखते रहे। भाप से भरा बाथरूम, पानी की हल्की बूंदें दीपिका दीदी के गले से होते हुए उनके सीने तक बह रही थी। वो धीरे-धीरे और करीब आई, इतनी करीब कि उनकी गर्म सांस मेरे होंठों को छूने लगी।
उन्होंने हल्की मुस्कान के साथ मेरा हाथ पकड़ कर अपने गीले पेट पर रखा। उनका बदन गर्म था, मुलायम था, और जैसे ही मेरी उंगलियाँ उनकी कमर तक पहुँचीं, दीपिका दीदी ने अपनी आँखें बंद कर लीं, जैसे वो उसी स्पर्श में खो गई हों।
वो और पास आकर मेरे सीने पर उंगलियाँ घुमाने लगी, फिर मेरी गर्दन तक आई और फुसफुसाई, “क्या तुम सचमुच चाहते हो, मैं तुम्हारा मुंह में लूं?”
मैंने उनकी बात सुनते ही हल्की सी सांस भर कर सिर हिलाया। मेरा गला सूख गया था, दिल जोर-जोर से धड़क रहा था। दीपिका दीदी की आँखों में एक शरारत थी, एक भरोसा भी जैसे वो जानती हो कि मैं अब पीछे नहीं हटने वाला।
वो धीरे-धीरे घुटनों के बल नीचे बैठ गई। उनका गीला बदन बाथरूम की रोशनी में चमक रहा था। उनके बाल मेरे पेट से छूते हुए नीचे लटक गए। उन्होंने दोनों हाथों से मेरी जांघों को पकड़ कर थोड़ा अलग किया, फिर ऊपर देख कर मुस्कुराई-
धीमी, गर्म और इतनी गहरी कि मेरी सांस अटक गई।
वो मेरे बिल्कुल करीब थी सिर्फ एक सांस की दूरी पर। दीपिका दीदी घुटनों के बल बैठी थी, उनका चेहरा मेरे लंड के बिल्कुल पास गर्म भाप में भी उनकी सांसें साफ महसूस हो रही थी। वो नीचे से मेरी आँखों में ऐसे देख रही थी जैसे जवाब मेरी धड़कनों में ढूँढ रही हो।
धीरे से उन्होंने मेरे जांघों पर अपनी उंगलियाँ फेरी, फिर हल्की मुस्कान के साथ गर्दन ऊपर उठाई और बहुत ही धीमी, शरारती फुसफुसाहट में बोली, “गोलू तुम्हें सच में अजीब नहीं लगेगा अगर मैं तुम्हारी चीज़ अपने मुँह में डाल लूँ?”
उनकी आवाज़ में गर्मी भी थी और हिचक भी जैसे वो पूछ तो रही हों, पर जवाब पहले से जानती हो। उनके शब्द मेरे कान में पड़े ही थे कि मेरा पूरा बदन सिहर गया। हवा जैसे रुक गई हो। उनकी गीली पलकें, गर्दन से बहती पानी की पतली लकीर, और होंठों पर वो हल्की सी मुस्कान जो मुझे पिघला रही थी।
धीरे-धीरे मेरी उँगलियाँ उसके चेहरे के करीब पहुँची और मैं उसकी ठुड्डी तक आ गया। उसने साँस रोक कर मेरी तरफ देखा, और उसी पल मुझे लगा कि मैं उससे और ज़्यादा पास आए बिना रह ही नहीं सकता। मैं झुक कर उसके बिल्कुल करीब आया और धीमी, भारी आवाज़ में पूछा,
“दीदी क्या तुम्हें अजीब लगेगा अगर मैं अपना लंड तुम्हारे मुंह में दूं?”
मेरे शब्द उसके अंदर उतरते हुए महसूस हुए। वह कुछ नहीं बोली, बस मुझे देखती रही, उसकी आँखों में कोई झिझक नहीं थी, बस एक गहराई थी जो मुझे और आगे बढ़ने के लिए खींच रही थी। उसकी खामोशी मेरे लिए इजाज़त जैसी लग रही थी।
उसने मेरी आँखों में देखते हुए काँपती आवाज़ में कहा, “गोलू तुम वो पहले लड़के हो और शायद आख़िरी भी जिसके लिए मैं इतना कुछ सोच सकती हूँ।”
और इसके बाद उसने धीरे-धीरे अपना चेहरा और पास लाया। उसके होंठ पहले मेरी जाँघ के पास छुए, जैसे वह खुद को भरोसा दिला रही हो। फिर उसने बहुत धीमे से, हल्की सी गर्म साँस मेरे लंड पर छोड़ी और मेरे पूरे शरीर में जैसे बिजली फैल गई।
फिर उसके मुलायम होंठ सच-मुच मेरे लंड पर आ गए। पहला स्पर्श इतना नरम था कि मैं एक पल को साँस लेना भूल गया। उसके होंठ ठंडे बाथरूम की हवा में हल्के गरम थे और वह गर्माहट मेरे लंड में सीधी उतरती चली गई।
उसने पहले बहुत हल्की सी किस्स की, जैसे किसी फूल की पंखुड़ी को छू रही हो। फिर दूसरी किस्स थोड़ा और धीमी, थोड़ा और गहरी और हर बार उसके होंठों का कोमल दबाव मुझे अंदर तक पिघलाता जा रहा था।
उसकी नाक की हल्की सी गुदगुदी मैं अपने निचले हिस्से में महसूस कर रहा था। उसकी साँसें मेरे लंड के साथ मिल कर जैसे कंपकंपी पैदा कर रही थी।
मैंने नीचे झुक कर देखा, उसका चेहरा लाल हो रहा था, आँखें आधी बंद, होंठ मेरे लंड पर टिके हुए और उसके चेहरे पर ऐसा भाव था जैसे वह खुद भी इस एहसास में खोती जा रही हो।
वह एक पल ठहर कर वापस ऊपर देखी, उसने मुस्कुराते हुए पूछा “ठीक है?”
“हां दीदी।” मैंने बस गर्दन हिला कर कहा। वह दुबारा नीचे झुकी और इस बार उसके होंठ पहले से भी ज़्यादा धीमे, ज़्यादा भरोसे से मेरे लंड के सिर पर टिके। उसकी गर्म साँस उस नाज़ुक जगह पर पड़ते ही मेरे घुटनों तक एक झटका उतर गया।
उसने पहले उसे अपने होंठों के बीच हल्के से दबाया, इतना हल्का कि जैसे वह मेरी हर धड़कन को अपने मुँह से महसूस करना चाहती हो। उसके होंठ गीले थे, मुलायम थे, और जब वह थोड़ा-सा आगे बढ़ी, तो मैं साफ महसूस कर पा रहा था कि वह अब खुद को रोक नहीं रही थी, बल्कि मुझे पाने की कोशिश कर रही थी।
धीरे-धीरे उसने अपना मुँह थोड़ा और खोला उसके होंठों की गर्मी अब पूरी तरह मेरे लंड के सिर को ढक चुकी थी। उस पल, मुझे ऐसा लगा जैसे पूरा शरीर वहीं जम गया हो, उसके होंठों का वह नरम, गीला घेरा इतना गहरा, इतना गर्म था कि मैं अंदर तक पिघलने लगा।
उसने बहुत ही धीरे, बहुत ही सलीके से अपनी जीभ को मेरे लंड के निचले हिस्से पर छुआ। एक छोटी सी नमी, एक हल्का सा गरम स्पर्श लेकिन असर मेरे सीने तक गया। मैंने खुद को रोकने के लिए साँस कस कर अंदर खींची।
फिर उसने दूसरी बार जीभ चलाई, थोड़ी लंबी, थोड़ी गहरी और इस बार उसने सिर को हल्का सा चूसा भी जैसे वह स्वाद को पूरी तरह महसूस करना चाहती हो। उसके मुँह की गर्माहट अब मेरे पूरे लंड के चारों तरफ फैल रही थी। और फिर, बहुत धीरे, उसने उसे और अंदर लिया।
मैंने महसूस किया कि उसका मुँह अब मेरे लंड के आधे हिस्से तक पहुँच चुका था। उसके होंठों का कसाव, उसके गालों की गर्मी और उसके गले से निकलती हल्की सी गहरी साँस सब कुछ एक साथ मेरे अंदर मिल कर एक अजीब सी तड़प पैदा कर रहा था।
वह धीरे-धीरे ऊपर आई उसके होंठ मेरे लंड से धीरे से अलग हुए, एक पतली सी लार की बूंद दोनों के बीच खिंचती रह गई। उसने ऊपर आकर मेरी तरफ देखा, उसकी आँखें चमक रही थी, होंठ गीले थे, और चेहरे पर ऐसा भाव था जैसे उसे खुद भी यकीन नहीं हो रहा कि वह कितना आगे आ चुकी थी।
दीपिका दीदी ऊपर से मेरी आँखों में देखते हुए फिर से नीचे झुकी। इस बार उसके इरादे पहले से बिल्कुल अलग थे। अब उसके होंठों में झिझक नहीं थी, उसकी साँसों में कोई रुकावट नहीं थी, जैसे वह अब पूरे जोश, पूरे भरोसे के साथ मुझे अपने मुँह में महसूस करना चाहती हो।
जैसे ही उनके होंठ मेरे लंड के सिर को छुए, उन्होंने हल्की मुस्कान के साथ मेरी तरफ देखा और धीमी आवाज़ में बोली, “गोलू तुझे पता है मैं ये क्यूँ कर रही हूँ?”
मैंने साँस रोके हुए कहा, “क्यूँ दीदी?”
दीपिका दीदी ने आँखों में शरारत भरते हुए फुसफुसाया, “क्योंकि मुझे तेरा स्वाद महसूस करना है पूरा।”
उनके शब्द मेरे कानों से होते हुए नीचे तक उतर गए। फिर उन्होंने मेरे लंड को अपने होंठों से पकड़ा और इस बार जैसे ही उसे मुँह में लिया, उनके गालों में हल्का-सा खिंचाव दिखा। उनके मुँह की गर्म, गीली पकड़ पहले ही पल में मुझे कमज़ोर कर गई।
मैंने थोड़ा कराह कर कहा, “दीपिका दीदी धीरे!”
लेकिन होंठों पर दबाव ढीला किए बिना, उन्होंने बस अपनी आँखें ऊपर उठा कर मुझे देखा और मुँह भरे अंदाज़ में हल्का सा “हममम” कहा, जैसे बता रही हों कि अब वह मेरी बात नहीं सुनने वाली।
फिर उन्होंने अपने सिर को थोड़ा पीछे ले जाकर दोबारा आगे धक्का दिया, थोड़ा तेज़, थोड़ा गहरा। मेरी साँसें उलझने लगी। उनकी हरकत तेज़ हो चुकी थी। उनकी जीभ मेरे लंड के नीचे लगातार फिसल रही थी। हर बार जब वह ऊपर आती, उनकी लार की पतली परत मेरे लंड को और भी चमका देती।
मैं नीचे देख कर पागल हो रहा था, दीपिका दीदी के बाल हिल रहे थे, उनकी गर्दन तेजी से आगे-पीछे जा रही थी, और उनके होंठों के बीच मेरा लंड लगातार गहराई तक जा रहा था।
इस बीच, वह एक पल रुक कर मेरी आँखों में देखते हुए इतनी धीमी, सेडक्टिव आवाज़ में बोली, “गोलू अच्छा लग रहा है? बताना तो सही।”
मैंने हाँफते हुए कहा, “हाँ दीदी बहुत, रुकना मत प्लीज़।”
लेकिन जैसे ही वह दुबारा नीचे जाकर मुझे और गहराई तक लेने ही वाली थी। दरवाज़े पर अचानक किसी ने जोर से दस्तक दी।
दीदी का सिर झटके से रुक गया। उनका मुँह अभी भी मेरे लंड के बिल्कुल पास था, लेकिन वह तुरंत पीछे हट गई। उनके होंठ चमक रहे थे, साँसें भारी थी, और चेहरे पर एक-दम से डर की हल्की झलक आ गई।
दरवाज़े पर अचानक हुई ज़ोरदार दस्तक ने पूरे माहौल को पल भर में बदल दिया था। अभी कुछ सेकंड पहले तक दीपिका दीदी अपने होंठों की गर्मी से मुझे पिघला रही थी, और अब उसका पूरा चेहरा घबराहट से सफ़ेद पड़ चुका था।
उसका सिर झटके से रुक गया था। उसका मुँह मेरे लंड के बिल्कुल पास था, होंठ अब भी गीले और लाल, लेकिन वह तुरंत पीछे हट गई। उसकी भारी साँसें साफ बता रही थी कि वह अभी किस हालत में थी। उसके गाल तप रहे थे और आँखों में एक-दम से डर की हल्की चमक उभर आई थी।
बाहर से माँ की आवाज़ गूँजी “दीपिका! इतना समय क्यों लगा रही हो? बाहर आओ जल्दी, खाना बनाना है!”
दीपिका दीदी ने जल्दी से अपने होंठ पोंछे, बाल कान के पीछे किए और मेरी तरफ बहुत धीमी, काँपती आवाज़ में बोली “हां मां मैं, मैं एक मिनट में आती हूं”
वह खड़ी होकर जल्दी-जल्दी अपने कपड़े पहनने लगी सलवार उठाई, कुर्ता ठीक किया, दुपट्टा संभाला।
मैंने उसे कपड़े पहनते देख पूछा, “तो मेरे बारे में? अभी जो चल रहा था?”
दीपिका मुड़ी, मेरे करीब आकर झुक गई। उसकी साँस अभी भी तेज़ थी, और उसके गीले होंठ मुझे देख कर फिर से हल्के काँपे।
बहुत धीमी आवाज़ में बोली, “गोलू ये अभी ख़त्म नहीं हुआ।” उसने दुपट्टा कंधे पर ठीक किया, मेरे कान के पास आकर फुसफुसाई, “रात को सब पूरा करेंगे। जितना अभी चाहा उससे भी ज़्यादा।”
फिर दरवाज़े की तरफ बढ़ते हुए ऊँची आवाज़ में बोली “हाँ माँ! आ रही हूँ बस कपड़े बदल रही थी!”
उस दिन उस बाथरूम वाली गर्म साँस, वो गीले होंठ, और दीपिका दीदी की काँपती हुई आवाज़ मेरे दिमाग में घूमती रही। जैसे ही वह बाहर निकली थी, माहौल एक-दम आम दिख रहा था, लेकिन हमारी आँखों में सब कुछ अभी भी जल रहा था। हर बार जब मेरी नज़र उससे मिलती हम दोनों एक पल को रुक जाते। दीदी तुरंत निगाहें झुका लेती, उसके गाल हल्के गुलाबी पड़ जाते, होंठ भींच जाते जैसे उन्हें याद आ जाए कि सुबह वही होंठ कहाँ थे।
और मैं, मैं उसे देखते ही पिघलने लगता था। उसके नरम, गुलाबी होंठ दिखते ही दिमाग में वही सीन दौड़ जाता, उसका मुँह मेरे ऊपर झुका हुआ, उसकी जीभ का गर्म स्पर्श, उसकी साँसों की लय, और वो पल जब उसने मेरी तरफ देख कर कहा था, “रात को सब पूरा करेंगे।”
मैंने उसे रसोई में इधर-उधर चलते देखा। वह आम बनने की कोशिश कर रही थी, पर हर बार जब वह मेरे सामने से गुजरती, उसकी चाल धीमी हो जाती। वह एक पल के लिए रुक कर मेरी तरफ झाँकती, फिर तुरंत नज़रें हटा लेती जैसे उसकी आँखें खुद बोल उठेंगी कि वह क्या चाहती थी।
मैं कई सालों से उसे चाहता था। उसके साथ कोई रिश्ता बनने की कल्पना भी नहीं की थी। वह मेरी बहन थी, इतनी खूबसूरत कि उसे देखने भर से दिल में हलचल होने लगती थी। लेकिन आज आज पहली बार लगा कि ये सब सपना नहीं था।
सुबह बाथरूम में जो हुआ, उसने सब बदल कर रख दिया।
मैंने उसे फिर से देखा, इस बार वह मेरी तरफ देख कर मुस्कुराई नहीं, पर उसके होंठ हल्के से खुले, साँस एक पल को अटक गई, और उसका चेहरा बता गया कि उसे भी वो सब याद आ रहा था। मेरे अंदर सिर्फ एक ही बात गूँज रही थी, इतने सालों बाद… आखिर हमारा रिश्ता वहीं से शुरू हो रहा था जहाँ मैं हमेशा चाहता था।