एक दिन, मैं अपने आप को रोक नहीं पाया। दिल की धड़कन जैसे कानों में गूंज रही थी, और दिमाग में बस सुधा दीदी का चेहरा, उनकी चाल और उनका शरीर घूम रहा था। मैं दबे पांव उनके कमरे की तरफ बढ़ा। दरवाज़ा आधा खुला था और अंदर हल्की रोशनी जल रही थी। कमरे में उनकी महक फैली हुई थी, और वह पलंग पर बैठ कर किसी किताब में खोई हुई थी। मेरे कदम अपने आप अंदर बढ़ते चले गए।
उन्होंने मुझे कमरे में आते देखा तो धीरे से किताब एक तरफ रख दी और मेरी ओर देखने लगी। उनके होंठों पर हल्की-सी मुस्कान थी, जो जैसे सीधे मेरे दिल तक उतर रही थी। उनकी आंखों में एक अलग-सी चमक थी, मानो वह जानती हों कि मैं वहां क्यों आया था।
उस वक्त सुधा दीदी ने सफेद रंग का टाइट क्रॉप टी-शर्ट और छोटे शॉर्ट्स पहन रखे थे। टी-शर्ट का कपड़ा हल्का और पतला था, जिससे उनके गोल और भरे हुए स्तनों का उभार साफ झलक रहा था। हल्की हरकत में उनके निपल्स की झलक कपड़े के आर-पार महसूस हो रही थी। नीचे के शॉर्ट्स इतने छोटे थे कि उनकी जांघों का ऊपरी हिस्सा खुल कर दिख रहा था, और बीच का कपड़ा उनकी नाजुक जगह के आकार को हल्का-सा उभार दे रहा था।
कपड़ों में ढका होने के बावजूद, उस जगह की मौजूदगी और उसकी कसावट साफ़ दिखाई दे रही थी, जो मेरे भीतर एक अलग ही हलचल पैदा कर रही थी। मैं कुछ कह पाता, उससे पहले ही उन्होंने मुस्कुराते हुए पूछा, “तुम मेरे कमरे में क्यों आए हो?”
उनकी आवाज़ में हल्की-सी जिज्ञासा और शरारत थी। मैं धीरे से उनके पास गया और कांपती आवाज़ में अपनी भावनाएं बताने लगा। कैसे मैं हर पल उनके बारे में सोचता था, कैसे उनका पास होना मेरे लिए किसी सपने के सच होने जैसा था, और कैसे मैं अब इस दूरी को और सहन नहीं कर पा रहा था।
मैंने कोई जवाब नहीं दिया, बस उनकी आंखों में गहराई से देखने लगा। मेरा सीना तेजी से उठ-गिर रहा था, सांसें गर्म हो चुकी थी। बिना शब्दों के, मैं अपनी नज़र और हाव-भाव से उन्हें यह जताने की कोशिश कर रहा था कि वह मेरे लिए क्या मायने रखती थी। कैसे मैं उन्हें सिर्फ दीदी नहीं, बल्कि एक ऐसी औरत के रूप में देखता हूं, जिसे मैं पूरी तरह अपना बनाना चाहता हूं।
“दीदी, उस दिन के बाद मुझसे और रहा नहीं जा रहा। जब से आपने अपनी नाज़ुक जगह दिखाई है, तबसे मेरे दिमाग में बस वही पल घूम रहा है।” मैंने कहा।
मैंने धीरे से अपना हाथ उनकी जांघ के पास बढ़ाया, उस नाजुक जगह की ओर जिसे मैं महसूस करना चाहता था। लेकिन उन्होंने तुरंत मेरा हाथ पकड़ लिया और हल्की-सी मुस्कान के साथ बोलीं, “नहीं… ये सही नहीं है। हम भाई-बहन हैं, और ये रिश्ता इस तरह नहीं बदलना चाहिए।” उनकी आवाज़ में नरमी थी, जिससे साफ था कि वह इस सीमा को पार नहीं करना चाहती थी।
उनकी यह बात सुन कर मेरे अंदर गुस्सा और उदासी दोनों मिल गए। मैंने फिर से कोशिश की, इस बार थोड़ी और जोर से उनकी नाजुक जगह को छूने के लिए, लेकिन उन्होंने कड़े हाथों से मुझे पीछे धकेला और मेरे गाल पर जोरदार थप्पड़ मार दिया। कमरे में सन्नाटा छा गया, और मेरे कानों में बस उस थप्पड़ की गूंज रह गई।
थप्पड़ लगते ही उनकी आंखों में आंसू आ गए और वह रोने लगी। मैं कुछ पल वहीं खड़ा रहा, फिर बिना कुछ कहे धीरे से कमरे से बाहर निकल गया।
उस दिन के बाद सुधा दीदी का बर्ताव पूरी तरह बदल गया। पहले जहां वह मुझसे सहज होकर बातें करती, हंसतीं और कभी-कभी हल्का मज़ाक भी कर लेती, अब वहां एक गहरी चुप्पी आ गई थी। वह मुझसे नज़रें मिलाने से बचने लगी, और जब भी मैं उनके पास आता, वह किसी बहाने से वहां से उठ जाती, या अपने काम में डूब जाती।
हमारे बीच जो नज़दीकी और अपनापन था, वह जैसे धीरे-धीरे गायब हो गया। मुझे महसूस होने लगा कि वह जान-बूझ कर दूरी बना रही थी, जैसे उस दिन की घटना उनके मन में गहरी चोट छोड़ गई हो। उनके चेहरे पर अब कोई पुरानी मुस्कान नहीं थी, और उनकी आंखों में मुझे देखने का वो अपनापन भी खो गया था।
कुछ दिनों बाद सुधा दीदी एक महीने के लिए अपनी दोस्त के घर छुट्टियों पर चली गई। उनके चले जाने के बाद घर सूना-सूना लगने लगा। उनकी हँसी, उनकी बातें, और उनका साथ, सब कुछ इतनी जल्दी दूर हो गया कि मेरी सांसें तक रुक-सी गई।
उन दिनों, जब उनकी याद दिल पर भारी होने लगती, मैं अक्सर उनकी वो ब्रा और पैंटी देखता जो उन्होंने कभी गलती से कहीं छोड़ दी थी। उनका कपड़ा मेरे हाथों में जैसे उनकी मौजूदगी का अहसास दिलाता। मैं धीरे-धीरे उसे छूता, उसकी बनावट महसूस करता, और खुद को उन्हीं यादों में खो देता। उस नाजुक कपड़े की खुशबू, उसकी मुलायम छुअन, मेरे अंदर एक अजीब सी तसल्ली भर देती।
कई हफ्तों बाद सुधा दीदी ने बताया कि वह अपनी दोस्त के घर से वापस आ रही थी। पापा उस दिन काम में बिजी थे, इसलिए उन्होंने मुझे अपनी कार लेकर दीदी को उनकी दोस्त के घर से लेने भेजा। मैं तैयार तो हो गया, लेकिन दिल में डर था कि दीदी से कैसे मिलूंगा, खास कर जब वह ये नहीं जानती थी कि पापा ने मुझे भेजा था।
कार में बैठते ही मेरा दिल तेजी से धड़कने लगा। रास्ते भर मैं सोचता रहा कि दीदी मुझे देख कर क्या कहेंगी, क्या बात करेंगे या फिर वैसे ही दूर रहेंगे जैसे पहले थे। हर पल मेरे अंदर घबराहट बढ़ती जा रही थी। लेकिन मैं खुद को समझाता रहा कि ये मौका हमारे बीच जो भी टूटा था, उसे ठीक करने का था। मैं पूरा मन बना चुका था कि उन्हें लेकर आऊंगा और हमारी दूरी खत्म करने की कोशिश करूंगा।
इसके आगे की कहानी अगले पार्ट में। फीडबैक [email protected] पर दें।
अगला भाग पढ़े:- उस रात दीदी ने चखाया अपना गीलापन-4