पिछला भाग पढ़े:- दीदी ने सिखाया मुझे सेक्स करना-4
भाई-बहन सेक्स कहानी अब आगे-
सुधा दीदी और मैं बिस्तर पर एक-दूसरे के सामने बैठे थे। उन्होंने अपने हाथ पीछे ले जाकर ब्रा का हुक खोला, फिर उसे उतार कर नीचे फेंक दिया। अब उनकी नंगी छाती मेरी आँखों के बिलकुल सामने थी।
उनके स्तन गोल और भरे-भरे थे, जैसे हाथ में आते ही गर्माहट से पिघल जाएँ। ऊपर से हल्की सी झुर्रन उतरती हुई, नीचे की तरफ बिल्कुल मुलायम और भारी। बीच में उनके गुलाबी से निप्पल हल्की ठंड में सख्त होकर खड़े थे। जब उन्होंने गहरी साँस ली तो वह दोनों स्तन धीरे-धीरे ऊपर उठे, जैसे मेरे देखते ही देखते मेरे पास आने को मचल रहे हों। उनकी त्वचा का रंग दूध जैसा साफ और चिकना था, जिस पर मेरी नजरें खुद ब खुद टिक गई।
कुछ देर बाद दीदी ने धीरे-धीरे करवट लेकर बिस्तर पर अपनी पीठ के बल लेट गई। उनकी साँसें तेज थी, लेकिन चेहरे पर एक अजीब सी नरमी और खुलापन था, जैसे वह खुद मुझे आगे बढ़ने की इजाज़त दे रही हों।
लेटते ही उन्होंने अपनी शॉर्ट्स की इलास्टिक पकड़ कर धीरे-धीरे नीचे खींचनी शुरू की। कपड़ा उनकी जाँघों से सरकता हुआ पैरों तक गया और उन्होंने उसे पूरी तरह उतार कर साइड में रख दिया। फिर उन्होंने अपनी पैंटी के किनारे को पकड़ा और उसे भी हल्के-हल्के नीचे सरकाते हुए उतार दिया।
अब वह पूरी तरह नंगी मेरे सामने बिस्तर पर लेटी थी, उनकी टाँगें थोड़ी ढीली सी फैली हुई, साँसें उठती गिरती, और उनकी आँखें मेरी तरफ देखती हुई मानो कह रही हों कि अब अगला कदम मेरा है।
कुछ सेकंड तक वह ऐसे ही देखती रही, फिर हल्की मुस्कान के साथ बोली, “अब क्या देख रहा है गोलू…? क्या इंतज़ार कर रहा है? अपने कपड़े भी उतार दे।”
मैंने उनकी आँखों में सीधा देखते हुए धीमे से कहा, “हाँ… ठीक है दीदी।”
इतना कहते ही मैंने अपना टी-शर्ट पकड़ कर ऊपर खींचा और उसे उतार कर फर्श पर गिरा दिया। फिर मैंने अपनी पैंट के बटन खोले और उसे भी नीचे खिसका कर उतार दिया। कमरे की ठंड मेरे शरीर को छू रही थी, लेकिन उनके सामने खड़े होने की गर्मी उससे कहीं ज्यादा थी।
अब मैं भी उनके सामने लगभग पूरा नंगा था। दीदी मेरी तरफ देख रही थी। कुछ पल बाद उन्होंने धीरे-धीरे अपने घुटने मोड़े, फिर अपनी टाँगें और ज्यादा फैला कर बिस्तर पर टिकाई। फिर उन्होंने अपने शरीर को थोड़ा उठाया और पूरा घूम कर उलटी तरफ हो गई, ताकि उनका चेहरा नीचे की ओर आ जाए और उनकी कमर ऊपर उठ कर हवा में आ जाए।
अब दीदी का गोल, मुलायम, उभरा हुआ पिछला हिस्सा मेरे सामने था। ऊपर उठा हुआ, पूरी तरह खुला, जैसे मुझे और करीब बुला रहा हो। उनकी जाँघें तन कर फैली हुई थी और उनका पूरा निचला हिस्सा इतनी साफ, इतनी बेझिझक आकार में था कि मेरी साँसें खुद ब खुद भारी होने लगी।
उन्होंने बिना मुड़े, उसी पोज़ में रहते हुए धीरे से कहा, “गोलू… अब इधर आओ…”
मैं धीरे-धीरे उनकी तरफ बढ़ा, कदम इतने हल्के जैसे बिस्तर की नरमी भी मुझे महसूस कर रही हो। जैसे-जैसे मैं करीब जाता, उनकी उठी हुई कमर और गोल पिछवाड़ा और साफ-साफ सामने आता गया। उनका शरीर उस पोज़ में हल्का हल्का हिल रहा था, साँसों की लय में।
मैं उनके बिलकुल पीछे खड़ा हो गया और झुक कर अपने दोनों हाथ आगे बढ़ाए। मेरी उंगलियाँ पहले उनकी जाँघों के किनारे छुई फिर मैंने धीरे-धीरे हाथ ऊपर सरकाए और उनकी गोल, भरी-भरी, टाइट उठी हुई गांड पर रख दिए।
जैसे ही मेरी हथेलियाँ उनके पिछवाड़े पर टिकी, उन्होंने एक गहरी, धीमी कराह भरी मानो इसी स्पर्श का इंतज़ार था। मैंने अपना अंगूठा दोनों गालों के बीच की लाइन पर हल्का सा चलाया, और दीदी ने अपनी कमर और ऊपर उठा कर मेरी पकड़ को और गहरा होने दिया।
इसी पोज़ में, थोड़ी भारी साँस के साथ उन्होंने कहा, “अब तेल लगा दे इस पर गोलू… ताकि तू अपना सपना पूरा कर सके…”
मैंने हल्का सा सिर हिलाया और सीधा उनके पास रखी अलमारी की तरफ गया। उसका दरवाज़ा खोला तो सामने ही एक छोटी तेल की बोतल रखी थी।
मैं बोतल हाथ में लेकर वापस आया। दीदी अब भी उसी पोज़ में थी, चेहरा नीचे, कमर ऊपर, जाँघें खुली हुई और उनकी गोल गांड मेरे लिए बिल्कुल सामने, जैसे मुझे इंतज़ार करती हुई।
मैं उनके बिलकुल पीछे घुटनों के बल बैठ गया। बोतल का ढक्कन खोला और थोड़ा सा तेल अपनी हथेली पर गिराया। तेल गर्म नहीं था, पर उनकी त्वचा इतनी गरम थी कि एक सेकंड में ही मेरे हाथों को गर्माहट महसूस होने लगी।
मैंने अपनी चिकनी हथेलियाँ उनकी गांड पर रखीं और धीरे-धीरे तेल फैलाना शुरू किया, ऊपर से नीचे, फिर एक गाल से दूसरे गाल तक। उनकी त्वचा मेरे हाथों के नीचे चमकने लगी, और दीदी ने हल्की सी सिसकारी भरी, जैसे ये स्पर्श सीधे उनकी साँसों में उतर रहा हो।
मैंने हाथों से तेल को अच्छी तरह मलते हुए उनकी गोलाई को दबा कर फैलाया, फिर अपनी उँगलियाँ उनके दोनों गालों के बीच की लाइन तक ले गया। वहाँ त्वचा और भी गरम लगी।
धीरे-धीरे, बिना ज़ोर डाले, मैंने अपनी उँगलियाँ उनके अंदर की तरफ सरकाई सिर्फ इतना कि जगह और भी चिकनी हो जाए, फिसलन और बढ़ जाए। मेरी उंगलियाँ अंदर जाते ही दीदी की कमर हल्के झटके के साथ ऊपर उठ गई, और उन्होंने बाहर निकली साँस के साथ धीमे से कहा, “हाँ… ऐसे ही गोलू… सब अच्छे से फिसलन कर दे…”
तेल अब मेरी उँगलियों से टपक कर नीचे तक फैल रहा था, और पूरा हिस्सा फिसलन भरा हो चुका था। उनके पिछवाड़े मेरे हाथों के नीचे नरम होकर ऊपर उठते जा रहे थे, मानो उनका पूरा शरीर बस इसी स्पर्श के लिए बना हो।
मैंने अपनी उँगलियाँ धीरे से बाहर निकाली, और थोड़ा झुक कर उनके करीब आकर काँपती आवाज़ में कहा, “दीदी… मैं अब ज़्यादा देर नहीं रोक पा रहा… क्या मैं… अपना लंड अंदर डाल सकता हूँ…?”
मेरी आवाज़ काँप रही थी, साँसें तेज थी, और भीतर की बेचैनी अब और संभल नहीं रही थी। कुछ सेकंड तक दीदी शांत रहीं—सिर्फ उनकी गहरी साँसों की आवाज़ आ रही थी, और उनका उठा हुआ पिछला हिस्सा पहले से भी ज़्यादा खुला, महसूस हो रहा था।
फिर उन्होंने अपनी कमर हल्की सी पीछे सरकाई, जैसे खुद जगह बना कर दे रही हों, और धीमे… बहुत धीमे आवाज़ में बोलीं, “ठीक है गोलू… डाल दे… अंदर कर दे…”
मैंने अपना लंड उनके छोटे, तंग छेद के पास लाकर हल्का सा दबाया। जगह बहुत छोटी थी, भीतर कसावट इतनी कि सिर्फ हल्का धक्का लगते ही दीदी का पूरा शरीर काँप गया।
जैसे ही मैंने ज़रा सा अंदर धक्का दिया—
“आआआह्ह्ह— गोलू रुक!”
दीदी जोर से चिल्ला उठीं। उनका हाथ आगे की चादर कस कर पकड़ गया, कमर एक-दम तन गई। अंदर इतनी टाइटनेस थी कि मुझे भी लगा मैं ठीक से कर नहीं पा रहा।
मैंने घबरा कर उनकी कमर पर हाथ रखा, “दीदी… मैं… मैं सही कर रहा हूँ ना? पहली बार कर रहा हूँ… मुझे समझ नहीं आ रहा…”
लेकिन उनके दर्द का असर अभी भी था। मैंने थोड़ा रुकना चाहा, लेकिन मेरी साँसें और गर्मी रुक ही नहीं रही थी। गलती से मैंने अपने आप ही कमर आगे-पीछे कर दी, बहुत तेज़। जगह इतनी छोटी थी कि हर धक्का पर दीदी का पूरा शरीर झटके से आगे जाता रहा।
“आह्ह्ह… गोलू! रुको… ऐसे नहीं… रुक…!”
उन्होंने पीछे हाथ रख कर मेरी कमर को थाम लिया और मुझे रोक लिया। कमरा कुछ सेकंड शांत रहा, बस हमारी तेज साँसों की आवाज़ छूटती रही।
फिर उन्होंने धीरे से साँस लेकर कहा, “पहले धीरे कर… समझ कर… शुरू में इतना तेज़ मत चल… दर्द होता है…”
उन्होंने अपनी कमर थोड़ा पीछे करके मेरा लंड फिर से अपने तंग छेद पर सेट किया और बहुत नरमी से बोली, “पहले हल्का धक्का दे… धीरे… धीरे… फिर जब अंदर होगा तब तू तेज़ कर सकता है…”
मैंने गहरी साँस ली और इस बार बहुत धीरे-धीरे अपनी कमर आगे बढ़ाई। तेल की फिसलन की वजह से मेरा लंड उनके छेद पर आसानी से घूमने लगा, और हल्का सा दबाव देते ही आधा हिस्सा अंदर सरक गया।
दीदी ने आँखें बंद करके लम्बी कराह भरी,
“ऊऊँह्ह… हाँ… ऐसे… धीरे…”
मैं उनकी साँसों की गर्मी महसूस कर पा रहा था। मैंने अपनी कमर को बहुत आराम से, बहुत धीमे-धीमे आगे-पीछे चलाना शुरू किया। हर मूवमेंट इतना स्लो था कि उनका तंग छेद मेरे लंड को पकड़-पकड़ कर खोलता जा रहा था।
तेल की वजह से मेरा लंड अब और भी ज्यादा फिसल रहा था। हर बार थोड़ा और अंदर जाता, फिर थोड़ा बाहर आता। दीदी की कराह अब दर्द से बदल कर गर्मी और सुकून की आवाज़ में बदलने लगी थी।
“ऊँह्ह… हाँ गोलू… ऐसे… धीरे कर… अच्छा लग रहा है…”
मैंने महसूस किया कि जगह धीरे-धीरे खुलने लगी है। मैंने थोड़ा और धक्का दिया और इस बार मेरा पूरा लंड आसानी से उनके अंदर तक चला गया। पूरी लंबाई… पूरा अंदर।
मैंने कमर पकड़ी और गहरी साँस लेकर कहा, “दीदी… पूरा अंदर चला गया…”
दीदी ने आँखें बंद करके अपने दाँत हल्के से भींचे और धीमे, काँपते हुए स्वर में बोली, “हूँम्म्म… हाँ… अब अच्छा लग रहा है गोलू… कर… धीरे… अभी ऐसे ही…”
सुधा दीदी का तंग छेद अब थोड़ा खुल चुका था, लेकिन कसावट अभी भी इतनी थी कि हर हल्की मूवमेंट मेरे लंड को चारों तरफ से दबा रही थी। मैं पूरा अंदर था, और उनकी गर्मी मेरे पूरे शरीर में फैल रही थी।
मैंने अपनी कमर हल्के, बहुत धीरे आगे पीछे चलानी शुरू की। हर छोटे धक्के पर दीदी की साँस काँपती, कभी कराह निकलती, कभी उनकी कमर और ऊपर उठ जाती।
“हूँम्म… गोलू… ऐसे… हाँ…”
उनकी आवाज़ अब दर्द से ज़्यादा आनंद भरी थी। तेल की वजह से जगह अब बेहद फिसलन भरी हो चुकी थी। मेरा हर धक्का पिछले से ज़्यादा आसान, ज़्यादा गहरा होने लगा।
मैंने एक बार हल्का सा बाहर निकाल कर फिर धीरे से अंदर धकेला। इस बार बिना किसी रूकावट के मेरा पूरा लंड उनकी गर्म, तंग गहराई में अंदर तक चला गया।
दीदी ने जोर की, लंबी कराह भरी,
“ओओह्ह… गोलू… पूरा अंदर… महसूस हो रहा है…”
मैंने उनकी कमर पकड़ी, अंगूठे उनके तेल लगे गालों पर टिके हुए। मैंने कमर को धीमे में चलाना शुरू किया। अंदर… बाहर… अंदर… बाहर…
हर मूवमेंट पर उनका तंग छेद मेरे लंड को कसकर पकड़ता और फिर तेल की फिसलन से ढीला छोड़ देता। उनकी जाँघें हल्की काँप रही थी, साँसें तेज हो चुकी थी, और उनका पूरा शरीर मेरे धक्कों के साथ आगे पीछे हिल रहा था।
“हाँ गोलू… अब अच्छा लग रहा है… ऐसे ही… धीरे…”
मैंने झुक कर काँपती आवाज़ में कहा, “दीदी… मैं अब कंट्रोल नहीं कर पा रहा… मैं तेज़ करना चाहता हूँ…”
उन्होंने पीछे से अपनी साँस रोकते हुए जवाब दिया, “ठीक है गोलू… कर… मैं दर्द संभाल लूँगी… अगर तू ज़्यादा चाहता है तो कर…”
उनके इतना कहते ही मेरा धैर्य पूरी तरह टूट गया। मैंने अपनी कमर पीछे खींची और एक-दम तेज़ धक्के मारने शुरू कर दिए, गहरी, तेज़, लगातार। जगह भले ही तेल से भरी थी, लेकिन इतनी टाइट थी कि हर तेज़ धक्के पर दीदी का पूरा शरीर आगे झटक रहा था।
पहले दो धक्कों पर उन्होंने सिर्फ कराह भरी, लेकिन तीसरे, चौथे धक्के पर उनकी आवाज़ दर्द से भर गई। “आआह्ह्ह गोलू… धीरे! बहुत दर्द हो रहा”
उनकी आवाज़ काँप रही थी, दर्द साफ महसूस हो रहा था, लेकिन मेरी कमर रुक ही नहीं रही थी। मैं और तेज़, और गहरे धक्के मारता चला गया। उनका तंग छेद मेरे लंड को पकड़-पकड़ कर और भी कसता जा रहा था। और हर कसावट मेरे अंदर के दबाव को और बढ़ा रही थी।
“उऊँह्ह… गोलू… आह्ह… रुक… दर्द… बहुत…”
अब दीदी की आवाज़ सीधी चीख में बदल चुकी थी। उनका हाथ आगे चादर में मुठ्ठी बना कर धँसा हुआ था, और कमर बार-बार झटके से ऊपर उठ रही थी।
लेकिन मैं उस पल बिल्कुल कंट्रोल में नहीं था। मेरा शरीर खुद ब खुद चल रहा था—तेज़, लगातार, रुकने का नाम नहीं ले रहा था। हर अंदर जाने पर मेरे पेट में खिंचाव उठता, और हर बार बाहर आने पर गर्मी और बढ़ती जाती।
मैं उनकी चीखों के बीच हाँफते हुए बोला, “दीदी… मैं… मैं निकलने वाला हूँ… मैं रोक नहीं पा रहा…”
उन्होंने दर्द में काँपते हुए सिर हिलाया, आँखें भींच ली, और लगभग रोती हुई आवाज़ में कहा, “आआह्ह… गोलू… बस… रुक… दर्द… सहा नहीं जा रहा…”
लेकिन मैं अब रुकने की हालत में ही नहीं था। मेरा शरीर आखिरी तेज़ धक्कों के साथ कांपने लगा और अचानक मेरे अंदर का सारा दबाव टूट कर फट पड़ा।
“आँह्ह… दीदी… मैं… आ रहा हूँ…!”
जैसे ही मेरा शरीर आखिरी बार गहराई तक गया, मेरे अंदर का पूरा दबाव एक-दम टूट गया। मेरी साँस रुक-सी गई, कमर काँपने लगी, और मैंने दीदी की कमर पकड़ कर खुद को शांत किया।
अगले ही पल मेरे अंदर से गर्म, गाढ़ी लहरें बाहर फूटने लगी। मैं उनके अंदर नहीं था। मैं थोड़ा पीछे सरक चुका था और जैसे ही मैं बाहर निकला, मेरी गर्म सफ़ेद धार उनके मुलायम गालों और जाँघों पर गिरनी शुरू हुई। गाढ़ा सफेद पानी उनकी चमकती, तेल लगी त्वचा पर मोटी लकीरों की तरह फैल गया। कुछ बूंदें उनके गोल उभरे हिस्से पर ठहरीं, फिर धीरे-धीरे फिसल कर उनकी जाँघों के बीच की तरफ बहने लगी।
मेरी आखिरी तेज़ साँस के साथ एक और गर्म लहर बाहर निकली और उनके पैरों के पीछे की तरफ टपक कर नीचे की चादर पर गिर गई।
दीदी धीरे-धीरे साँस ले रही थी, थकी हुई लेकिन शांत। उन्होंने सिर्फ इतना कहा, “गोलू… बहुत निकल गया है…”
मैं हाँफते हुए उनके पीछे घुटनों के बल बैठा था, और उनकी टाँगों पर बहती मेरी हर गर्म बूंद साफ दिख रही थी।
दीदी धीरे-धीरे उठी, उनकी साँसें अब आम होने लगी थी। उन्होंने चादर अपने आस पास समेटी और बेड के किनारे बैठ कर कुछ सेकंड खुद को सँभाला। फिर बिना कुछ बोले अपनी पैंटी और शॉर्ट्स उठाई और पहनने लगी। उनकी उँगलियों में हल्की कंपकंपी थी, लेकिन चेहरा शांत थाजैसे वे कोई फैसला लेकर खड़ी हों।
मैं बिस्तर पर बैठा उन्हें देख रहा था, थोड़ा घबराया हुआ, थोड़ा उलझा हुआ। कपड़े पहनने के बाद उन्होंने मेरी तरफ देखा।
उन्होंने धीरे से कहा, “गोलू… ये आख़िरी बार है। अब हम ऐसा फिर नहीं करेंगे।”
मैं एक-दम चौंक गया। “क्यों दीदी…? अभी क्यों कह रही हो?”
उन्होंने कहा, “क्योंकि तुम रूके नहीं जब मैंने कहा था।”
इसके बाद उन्होंने अपने सारे कपड़े पहने और कमरे से बाहर चली गई। मैं वहीं बैठा उनको देखता रहा।