पिछला भाग पढ़े:- जब दीदी ने खुद को मेरे सामने खोला-1
भाई-बहन सेक्स कहानी अब आगे से-
हम दोनों ने मोबाइल निकाला और दीदी ने ही पोर्न वीडियो प्ले कर दिया। स्क्रीन पर जैसे ही पहली झलक आई, दीदी थोड़ा मुस्कुरा दी और बोली, “ये वाला सही है, इसमें भाई-बहन वाला है… तू देख, मुझे अच्छा लगता है ये जॉनर।”
मोबाइल की रोशनी में दीदी का चेहरा चमक रहा था, और मैं नोटिस कर रहा था कि जैसे-जैसे वीडियो आगे बढ़ रहा था, दीदी की आंखों में एक अलग सी चमक थी। कभी-कभी जब वो हंसती या गर्दन झटकती, तो उनकी टी-शर्ट थोड़ी सरक जाती और मोबाइल स्क्रीन की हल्की रौशनी में उनकी क्लीवेज की झलक मुझे दिख जाती। मैंने देखा दीदी भी अब वीडियो को ध्यान से देख रही थी, उनकी सांसें गहरी हो चली थी।
धीरे-धीरे, मैं महसूस करने लगा कि दीदी का एक हाथ उनकी जांघ के ऊपर खिसकने लगा था। वो जैसे खुद को हल्के से सहला रही थी, बेहद धीमे और छुप कर, जैसे चाहती हों कि मैं ना देख पाऊं। उनका चेहरा अब गंभीर था, होंठ थोड़े खुले हुए, और उनकी आंखें स्क्रीन पर जमी थी।
अचानक दीदी ने जैसे शर्म छोड़ दी, और मेरा हाथ पकड़ कर धीरे से अपने अंडरवियर के नीचे सरका दिया। मैं एक पल के लिए घबरा गया, मेरा दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़कने लगा। लेकिन दीदी ने मेरी आंखों में देखते हुए कहा, “तू मेरा भाई है… तुझपे भरोसा है… बस ऐसे ही रहने दे, कुछ करना मत।”
मैं सांस रोके बैठा रहा, मेरा हाथ उनकी गर्म त्वचा को छू रहा था, और दीदी की सांसें अब और भी गहरी हो गई थी। मेरी हथेली में दीदी की नाज़ुक त्वचा का एहसास पूरी तरह उतर रहा था। उनकी जांघों के बीच का हिस्सा हल्का नम और गर्म था। जैसे ही मेरी उंगलियां थोड़ी और नीचे खिसकी, मैंने पहली बार उनके उन बालों को महसूस किया। मुलायम लेकिन हल्के घुंघराले। वहां की गर्मी, नमी और उनकी सांसों की गहराई सब कुछ एक साथ महसूस हो रहा था।
उस आकार को मैं नहीं देख सकता था, लेकिन मेरी हथेली ने महसूस किया, एक उभरी हुई हल्की गोलाई, मुलायम किनारे, और बीच का वो हल्का कटाव। मेरा हाथ पहली बार उनकी उस जगह को छू रहा था। मैं उस जगह को देखना चाहता था, लेकिन फिर डर भी लग रहा था। मैंने एक पल के लिए अपनी उंगली हिलाई पर वाणी दीदी ने तुरंत मना कर दिया। वह बस चाहती थी उनकी उस कोमल जगह पर मेरा हाथ हो।
वीडियो जैसे-जैसे अपने अंत की ओर पहुंचा, दीदी की सांसें और तेज़ हो गई। एक गहरी, रुकी हुई चीख के साथ उन्होंने मेरा हाथ कस कर पकड़ लिया और उनका शरीर कांपने लगा। कुछ पल बाद, मुझे मेरे हाथ पर हल्का पेशाब महसूस हुआ, उन्होंने थोड़ी देर को ठहर कर मोबाइल का वीडियो बंद किया, मेरा हाथ हटाया और बिना कुछ कहे, ऐसे ही अपने कमरे में चली गई, जैसे कुछ हुआ ही ना हो।
अगले दिन जब सुबह मां रसोई में खाना बना रही थी और पापा अपने कमरे में लैपटॉप पर काम कर रहे थे, मैं अपने कमरे में बैठ कर पढ़ाई कर रहा था। तभी दीदी चुपचाप मेरे कमरे में आ गई, और बेड पर बैठ कर उन्होंने बोलना शुरू किया।
“कल रात… पहली बार किसी लड़के ने मुझे उस जगह छूआ है, भाई। मैं जानना चाहती हूं… तुझे कैसा लगा था?”
मैं थोड़ा झिझका, लेकिन फिर बोला, “मुझे बस बाल ही महसूस हुए दीदी… हल्के-से घुंघराले… बस वहीं।”
दीदी मुस्कराई, उनकी आंखों में हल्का सुकून था। उन्होंने धीरे से सिर हिलाया और बोली, “अच्छा है… तूने ध्यान दिया। तुझे अब और भी बहुत कुछ जानना है।
उस रात, जब सब सो चुके थे, दरवाज़ा धीरे से खुला और दीदी मेरे कमरे में आई। उनकी नींद की ड्रेस बहुत छोटी थी, पतली सी पट्टी वाली नाइटी जो उनकी जांघों से ऊपर तक उठी थी। बल्ब की हल्की रोशनी में उनके उभार साफ़ दिख रहे थे।
वो थोड़ी झिझक के साथ मेरे बिस्तर पर बैठ गई और धीरे से बोली, “तूने जो कहा… उसके बाद मुझे थोड़ा अजीब लग रहा है। क्या तु मेरी थोड़ी मदद कर देगा। ”
” कैसी मदद दीदी?” मैंने चौंकते हुए पूछा।
उन्होंने मुझे रेजर और क्रीम दिखाते हुए कहा, “मुझे शेविंग करनी है, लेकिन जब भी मैं अकेले करने की कोशिश करती हूं कट लग जाता है।”
मैं थोड़ा सहम गया, बोला, “दीदी ये… अजीब नहीं लगेगा?”
वो मुस्कराई, “तू मेरा भाई है, और दुनिया में तुझसे ज़्यादा मुझे कोई नहीं समझता। इसमें अजीब क्या है? सिर्फ मदद करनी है।”
मैंने धीरे से सिर हिलाया और रेजर हाथ में ले लिया, दिल अब भी धड़क रहा था। लेकिन दीदी की आंखों में भरोसा था। धीरे-धीरे दीदी उठी, और चुप-चाप अपने कपड़े उतारने लगी। पहले उन्होंने नाइटी उतारी, फिर ब्रा… फिर पैंटी। अपने सामने पहली बार मैं उन्हें पूरी तरह नंगी देख रहा था।
उनका बदन दूध जैसा गोरा था, चमकता हुआ और एक-दम मुलायम दिखने वाला। उनकी छाती पर दो बड़े, गोल गुब्बारे थे, हल्के गुलाबी एरिओला और नुकीले, सख्त निप्पल्स के साथ। नीचे उनकी कमर पतली थी और पिछवाड़े थोड़े बाहर की ओर उभरे हुए थे, जिनसे उनकी कमर और जांघों के बीच की वो जगह बन रही थी जो किसी भी नज़र को बांध सकती थी।
उनकी जांघों के बीच एक हल्का तिकोना घुंघराले बालों का गहराता हुआ गट्ठर था, जो अब रौशनी में पूरी तरह साफ दिख रहा था। फिर दीदी धीरे से बिस्तर पर बैठ गई, और अपने पैर फैला कर मुझे सामने बुलाया। मैं अब भी घबराया हुआ था लेकिन उनके चेहरे पर कोई डर नहीं था। मैं धीरे से पास गया और ध्यान से उनकी उस जगह को देखने लगा, जो अब साफ़ करने को तैयार थी।
मैंने रेजर उठाया, क्रीम धीरे से उनके बालों पर लगाई। मेरी उंगलियां उनके नाज़ुक हिस्सों को छू रही थी। वहां की त्वचा बेहद मुलायम और गर्म थी। दीदी की सांसें गहरी हो रही थी। लेकिन उन्होंने आंखें बंद कर ली, और मुझे शांति से करने दिया। मेरी हथेलियां कभी-कभी उनके अंदरूनी हिस्सों को छू जाती, और मैं उनकी गर्मी महसूस करता। उनकी जांघें थोड़ी कांप रही थी, लेकिन उन्होंने कोई विरोध नहीं किया।
उनका चेहरा शांत था, लेकिन होंठ थोड़े खुले थे और गालों पर गुलाबीपन था। जैसे ही मैं धीरे-धीरे सभी बाल साफ़ करता गया, दीदी की सांसों में हलकी गर्मी और रूक-रूक कर आने वाली सरसराहट थी। वो पूरी तरह मेरे भरोसे पर छोड़ चुकी थी।
शेविंग पूरी होने के बाद जब मैंने उस जगह को देखा, तो वो साफ़, कोमल और गुलाबी सी लग रही थी। घुंघराले बाल हटने के बाद वहां की हल्की चमकती त्वचा अब साफ-साफ दिख रही थी। बीच में एक पतली सी हल्की लाइन, और दोनों ओर की मुलायम गोलाई, जैसे किसी गुलाब की पंखुड़ी खुल रही हो।
वो फिर से कपड़े पहनने के लिए उठी, लेकिन तभी मैंने धीरे से उनका हाथ पकड़ लिया और उन्हें रोक लिया। मैंने उनकी ओर देखा और धीमे से बोला, “दीदी, मैं झूठ नहीं बोलूंगा… तुम्हें ऐसे देख कर… मैं खुद को रोक नहीं पा रहा। मैं कुछ नहीं करूंगा, लेकिन… तुम्हें देखते हुए, मैं हिलाना चाहता हूं।”
उन्होंने मुझे एक पल हैरानी से देखा, और फिर एक बार मुस्कान के साथ मेरे सामने बैठ गई। मैंने अपनी पैंट उतारी और धीरे-धीरे अपना लंड अपने हाथों में लिया। उनकी नजरें मुझ पर ही टिकी थी, और मेरी नजरें उनके बदन पर। उनके निप्पल, उनके होंठ, उनका चेहरा और वह कोमल भाग जिसको मैंने साफ़ किया था। वह मुझे देख कर हौले से मुस्कुरा रही थी मानो पहली बार उनको मुझे देख कर खुशी मिल रही हो।
मैंने कुछ देर तक धीरे-धीरे अपने लंड को हिलाना शुरू किया । दीदी अब भी चुप थी, बस देख रही थी। फिर मैं थोड़ा और करीब गया और धीमे से पूछा, “दीदी… क्या मैं… क्या मैं तुम्हारे साथ सेक्स कर सकता हूं?”
उनकी मुस्कान धीरे-धीरे गायब हो गई और उन्होंने गंभीरता से मेरी आंखों में देखा। “नहीं,” उन्होंने साफ़ शब्दों में कहा, “हम भाई-बहन हैं। छूना अलग बात है और सेक्स अलग।”
मैंने तुरंत सिर झुका लिया और खुद को रोक लिया। वो कुछ पल चुप रही, फिर उठ कर मेरे पास आ गई। और उन्होंने कहा।” अगर तुम चाहो तो मैं तेरी मदद कर सकती हूं।”
उसके बाद वह मेरे दोनों पैरों के बीच अपने घुटनों पर बैठ गई और मेरा लंड अपने हाथों में पकड़ लिया। उसकी उंगलियां मेरे लंड के चारों ओर लिपटी तो जैसे बिजली सी दौड़ गई मेरे पूरे शरीर में। उसकी उंगलियां गर्म थी और हल्के-हल्के दबाव के साथ वो उसे धीरे-धीरे सहलाने लगी। हर हलचल मेरे भीतर तक महसूस हो रही थी, जैसे उसकी उंगलियां सिर्फ शरीर नहीं, मेरी सांसों को भी छू रही हो।
अब मुझे उनका चेहरा और निपल्स बहुत ही साफ दिख रहे थे। वह फिर एक बार हौले से मुस्कुराने लगी थी। मैंने धीरे से उसका सिर पकड़ कर अपनी ओर खींचने की कोशिश की, ताकि वह अपना मुंह मेरे लंड पर रखे। लेकिन उसने धीरे से मेरा हाथ पीछे किया और बोली, “नहीं। भाई बहन के रिश्ते में यह भी ग़लत है।”
मैं थोड़ी देर चुप रहा, लेकिन उसने सहलाना बंद नहीं किया। उसकी उंगलियां अब भी मेरे लंड पर नर्मी से चल रही थी, जैसे वह अपने तरीके से मेरी राहत का ध्यान रख रही हो। वह अब कुछ नहीं बोल रही थी, बस हाथ से काम जारी रखा।
फिर उसने अपनी गति तेज कर दी। उसकी उंगलियां अब जल्दी-जल्दी चलने लगी, और मैं अपनी निकलने के करीब पहुंचने लगा। मेरी सांसें तेज हो गई और मैं कांपने लगा। तभी मैंने हांफते हुए कहा, “दीदी… क्या मैं… तुम्हारे चेहरे पर…”
उसने एक पल मेरी आंखों में देखा, फिर हल्के से सिर हिला कर इजाज़त दे दी। “हां, कर दो,” उसने धीमे से कहा।
और जैसे ही मैं अपनी हद पर पहुंचा, मेरी गर्म और गाढ़ी धारें दीदी के चेहरे पर फूट पड़ी। पहली बूंद उनकी नाक के पुल पर गिरी, फिर दूसरी उनके होंठों के ऊपर और फिर पूरा चेहरा मेरे सफेद पानी से भीग गया। उनकी बंद पलकों पर गर्म बूंदें टिक गई, गालों से नीचे बहने लगी। दीदी का चेहरा उस पल ठहरा हुआ था, लेकिन उसमें कोई झिझक नहीं थी, कोई डर नहीं था। उनकी हल्की मुस्कान अब भी कायम थी।
इसके बाद दीदी धीरे-धीरे उठी। उन्होंने नाईटी से अपना चेहरा साफ़ किया, फिर शांति से अपनी ब्रा और पैंटी उठा कर पहनने लगी। उसके बाद बिना कुछ बोले अपने कमरे की ओर चली गई। अगले दिन मैं देर से उठा। कमरे में हलकी धूप थी और घर में एक अजीब सी ख़ामोशी थी। मैंने आंखें मसलते हुए बाहर झांका तो देखा दीदी पैकिंग कर रही थी। मैं चौंका, “दीदी, कहां जा रही हो?”
उन्होंने मुड़ कर देखा और मुस्कराते हुए बोली, “मुझे दिल्ली में मेरी ड्रीम जॉब मिल गई है। आज ही निकलना है।”
मेरे चेहरे पर मिली-जुली भावनाएं थी — खुशी, हैरानी और हल्का-सा खालीपन। वो मेरे पास आईं, मुझे ज़ोर से गले लगाया। उनके बालों की खुशबू मेरे चेहरे से टकराई।
फिर उन्होंने कान में फुसफुसा कर कहा, “जब वापस आऊंगी… तो सिर्फ हाथों से नहीं, उससे आगे भी कुछ करूंगी। तुमने जो भरोसा दिखाया है, उसे मैं भूल नहीं सकती।”
इतना कह कर वो धीरे से मुस्कराई, अपना बैग उठाया, और दरवाज़े की ओर बढ़ गई। मैं वहीं खड़ा था, दिल की धड़कनों के साथ उस वादे की गहराई को महसूस करता हुआ। फीडबैक [email protected]
पर दे।
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