पिछला भाग पढ़े:- नेहा दीदी के होंठों में लंड की पहली आग-2
मेरी गंदी हरकतें दिन ब दिन बढ़ती जा रही थी। फिर आखिरकार दीदी ने मुझे इसके बारे में पूछा। अब आगे-
“मैं समझ नहीं…” मैंने बोलने की कोशिश की लेकिन उन्होंने बीच में ही रोका।
“कुछ समझने की बात नहीं।” उन्होंने सपाट आवाज़ में कहा। “मुझे पता है कि तू रात में करता क्या है और मेरी पैंटी पर सफेद दाग कैसे आते हैं। तु कुछ मत बोल, बस इतना बता कि तू मेरे साथ करना क्या चाहता है।”
मैं कुछ सेकंड तक चुप रहा, लेकिन फिर जैसे अंदर की सारी घुटन एक-दम से फूट पड़ी। मैं धीमे से बोला, “मैं तुम्हें चाहता हूं दीदी… तुम्हारे साथ सब कुछ करना चाहता हूं… जो मैं पोर्न में देखता हूं, तुम्हारे होंठों को चूसना, तुम्हारे सीने को दबाना, तुम्हारे नीचे जाना और तुम्हारी चुत को पीना… अपना लंड तुम्हारे मुंह में देना… सब कुछ। मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकता दीदी।” कमरे में सन्नाटा छा गया था।
थोड़ी देर तक वो मुझे देखती रहीं, फिर बोलीं, “ठीक है… लेकिन एक शर्त पर।” मैंने आश्चर्य से पूछा, “क्या?” उन्होंने गहरी सांस ली और बोली, “अब रात को मेरे ऊपर कोई हरकत नहीं करेगा। अगर कुछ करना है तो सिर्फ मेरी मर्जी से। और सिर्फ हर रविवार… हफ्ते में एक बार… तुम अपनी एक ख्वाहिश पूरी कर सकते हो।”
मैंने चौंक कर उनकी आंखों में देखा, जैसे यकीन ना हो रहा हो। लेकिन उनकी नज़रें गंभीर थी। मैंने बस धीरे से सिर हिला दिया, “ठीक है दीदी… जैसा आप कहें।”
उस पल मुझे ऐसा लगा जैसे मेरी सबसे बड़ी ख्वाहिश पूरी होने जा रही हो। मैं थोड़ी देर चुप रहा, फिर धीरे से बोला, “तो आज…?”
उन्होंने कहा, “हां… आज संडे है। चलो, कपड़े उतारो और कुर्सी पर आ कर सीधे बैठ जाओ।”
मेरी सांसें तेज़ हो गई थी। मैंने हाथ कांपते हुए अपनी टी-शर्ट ऊपर उठाई, फिर धीरे-धीरे नीचे से शॉर्ट्स भी उतार दी। दिल इतनी ज़ोर से धड़क रहा था, कि ऐसा लगा जैसे वो आवाज दीदी को भी सुनाई दे रही हो।
मैं नंगा होकर कुर्सी पर बैठ गया, और दीदी की तरफ देखा। उन्होंने मेरी तरफ देखा, एक पल को कुछ नहीं कहा, फिर धीरे से मुस्कराई। फिर उन्होंने धीरे से अपने बाल पीछे किये, मेरी ओर झुकी, और घुटनों के बल मेरे सामने बैठ गई। उनकी आंखों में अब वो सख्ती नहीं थी, बल्कि एक अजीब-सी नरमी और जिज्ञासा थी। मैं उस पल बस उन्हें देखता रह गया, जैसे सपना सच हो गया हो।
उन्होंने आगे बढ़ कर अपने दोनों हाथों से मेरी अंडरवियर नीचे खींच ली। और पहली बार उनकी आंखें मेरे लंड पर पड़ी। वह पल थोड़ा अजीब था पर फिर भी बहुत अच्छा लग रहा था। मुझे थोड़ी-सी शर्म आ रही थी क्योंकि जिस नेहा दीदी के निपल्स के साथ मैं हर रोज़ खेलना चाहता था, वह अब मेरे लंड के सामने बैठी थी। यही सोचकर मैं और भी सख्त होता जा रहा था।
मैं उनकी आंखों में देख रहा था, और उनका चेहरा मेरे लंड के बहुत करीब था। उनकी सांसों की गर्माहट मेरी स्किन को छू रही थी। मैं खुद को रोक नहीं पाया, और धीरे से अपना हाथ उनके सिर पर रखा और उनके चेहरे को अपनी ओर खींचने की कोशिश की। लेकिन उन्होंने मेरा हाथ हल्के से पकड़ा और मुस्कुराकर बोली, “इतनी जल्दी नहीं… ये तुम्हारा पहला बार है, और मैं चाहती हूं कि ये हमेशा याद रहे तुम्हें।”
इसके बाद उन्होंने अपनी लंबी, कोमल उंगलियों से मेरा लंड पहली बार छुआ। उनका स्पर्श इतना नरम और गर्म था कि मेरा पूरा शरीर एक झटके में सिहर उठा। वो धीरे से ऊपर से नीचे तक उंगलियों से सिराने लगीं, जैसे मेरे लंड की हर नस को महसूस कर रही हों।
मैंने उनकी पैंटी और चेहरों को देख कर कई बार अपना लंड हिलाया था, लेकिन उनके लंबे हाथों की उंगलियां अपने लंड पर महसूस करना एक अलग ही एहसास था। उन्होंने बस तीन बार स्ट्रोक दिया—धीरे, गहराई से और ध्यान से। हर बार जब उनकी उंगलियां ऊपर से नीचे गई, ऐसा लगा जैसे मेरी सांस अटक गई हो। मैं अपनी कमर को थोड़ा आगे झुका रहा था, जैसे और चाहिए, लेकिन वो जान-बूझ कर रुक गई।
फिर दीदी ने धीरे से अपना चेहरा आगे झुकाया और मेरे लंड पर एक हल्की, नर्म सी चुम्मी दी। जैसे ही उनके होंठ मेरे लंड की चमड़ी से टकराए, ऐसा लगा जैसे कोई बिजली का झटका मेरे पूरे शरीर में दौड़ गया हो। उनके होंठों की नरमी और गर्मी ने मेरे लंड को एक अलग ही दुनिया में पहुंचा दिया।
मैं उस अहसास में डूबा ही था कि तभी मैंने धीमे से उनसे कहा, “दीदी, क्या मैं आपको पूरी तरह देख सकता हूं… बिल्कुल बिना कपड़ों के?”
उन्होंने मेरी तरफ देखा, थोड़ी देर चुप रही, फिर मुस्करा कर सिर हिलाया, “पूरा नहीं… अभी सिर्फ इतना ही काफी है।”
इसके बाद दीदी ने धीरे से अपना टी-शर्ट ऊपर खींचा और निकाल दिया। उनके ब्रा में जकड़े हुए उभरे, भारी और खूबसूरत निपल्स अब मेरे सामने थे। हल्के भूरे रंग के निप्पल ब्रा के कपड़े के नीचे से झांकते हुए मुझे और दीवाना बना रहे थे।
फिर उन्होंने बिना कुछ कहे अपनी ब्रा के हुक पीछे से खोल दिए और ब्रा को अपने शरीर से अलग कर दिया। वो ब्रा कुछ पल के लिए उनके हाथ में रही, फिर उन्होंने उसे मेरी तरफ बढ़ाया। मैं हक्का-बक्का रह गया। उन्होंने शरारत से मुस्कराते हुए कहा, “सिर्फ एक सेकंड… सूंघ लो, फिर फेंक देना।”
मैंने वो ब्रा हाथ में ली, उसकी हल्की गर्मी और उनकी खुशबू ने मुझे झंकझोर दिया। जैसे ही मैंने उसे अपने चेहरे के पास लाया, मेरी सांसें तेज़ हो गई। उसमें उनकी गंध थी, एक-दम असली, एक-दम निजी। मैंने एक सेकंड में ही वो अनुभव लिया, और फिर जैसे ही मैंने आंखें खोली, दीदी उसे मुझसे ले चुकी थी और एक तरफ रख दिया।
फिर उन्होंने दोबारा नीचे झुक कर अपने होंठ मेरे लंड पर रखे, लेकिन इस बार सिर्फ लंड के सिर पर नहीं, बल्कि धीरे-धीरे अपने होंठ और जीभ को मेरे लंड की लंबाई पर घुमाने लगी। उन्होंने मेरे टेस्टीकल्स के पास तक अपनी जीभ ले जाकर वहां भी हल्का-सा चाट दिया। मैं अपने लंड की नस-नस में गर्मी महसूस कर रहा था, लेकिन जैसे ही मैंने हाथ बढ़ा कर उनके कोमल निपल्स को छूना चाहा, उन्होंने तुरंत मेरा हाथ पीछे कर दिया।
उनकी आंखों में एक हल्की सी चेतावनी थी, और वो धीरे से बोली, “नहीं… अभी नहीं।”
और उसके बाद आखिरकार उन्होंने मेरा पूरा लंड अपने मुंह में भर लिया और एक-दम हौले से सिर आगे-पीछे करने लग गई। उनकी जीभ बहुत ही मुलायम थी। मैं कुर्सी पर बैठ कर कराहने लगा। वह एक-दम हौले-हौले अपना सिर हिला रही थी। मुझे सिर्फ उनके चेहरे की झलक कुछ सेकंड के लिए दिखती और गायब हो जाती।
उनके होंठों की गर्माहट और जीभ की नमी ने मेरे लंड को जैसे जकड़ लिया था। हर एक मूवमेंट के साथ मेरे शरीर में कंपन उठने लगता। जीभ लंड के नीचे से गुज़रती तो मुझे अपने अंदर कुछ फूटता हुआ महसूस होता। मैं बस वहीं, उसी कुर्सी पर, दीदी के होंठों में डूबता चला गया। तभी अचानक उन्होंने थोड़ी देर रुक कर मेरी आंखों में देखा और बोली, “मेरा नाम लो… और गंदा बोलो मुझसे।”
उनकी यह बात सुन कर मेरी सांसें और तेज़ हो गई। उनका चेहरा, उनका स्पर्श, उनकी आंखें, सब कुछ मेरे अंदर एक तूफ़ान पैदा कर रहा था। मैं उनके नाम को धीरे-धीरे कहता रहा, उनकी तारीफ करता रहा, और वो अपने मुंह से मुझे पागल करती रही।
मैं हांफते हुए बोला, “नेहा… नेहा दीदी… तुम्हारा मुंह… कितना गर्म है… कितनी टाइट पकड़ी हो तुम… मुझे तुम्हारी जीभ चाहिए… मेरी सारी गंदगी तुम्हारे अंदर।”
वो हल्के से मुस्कराई और धीरे-धीरे और गहराई तक लेने लगी, जैसे मेरी बातों ने उन्हें और उत्तेजित कर दिया हो। उनका हर मूवमेंट अब मेरे शब्दों के साथ ताल में था, और मैं हर सेकंड उनके नाम को पुकारता गया, उन्हें महसूस करता गया, और उस सुख में डूबता गया जो मैंने पहले कभी नहीं जाना था।
अब उनकी रफ्तार तेज़ होने लगी थी। उन्होंने अपने होठों और जीभ से लंड पर तेजी से स्ट्रोक देने शुरू किए। उनका सिर अब और तेज़ी से आगे-पीछे हो रहा था, और उनका मुंह मेरे लंड को पूरी तरह से समेटे हुए था। उनके होंठ कस कर मेरे लंड को पकड़े हुए थे, और हर बार जब वो ऊपर जातीं, उनकी जीभ नीचे से लहराती हुई चलती।
मेरे लिए यह सब किसी सपने से कम नहीं था। नेहा दीदी का मुंह, उनकी जीभ, और वो गर्माहट… जैसे मेरी सारी इच्छाएं एक ही पल में पूरी हो रही हो। मुझे लग रहा था जैसे मैं अब और कंट्रोल नहीं कर पाऊंगा। उनके होठों की गर्मी, जीभ की नमी और सिर की तेज़ गति से मेरा पूरा शरीर झनझना रहा था। जैसे ही उन्होंने मेरे लंड पर एक लंबा, गहरा स्ट्रोक दिया, मेरी सांसें रुकने लगीं। मैं हांफते हुए बोला, “नेहा… अब नहीं रुका जा रहा…”
मैंने अपना हाथ उनके सिर पर रखा, वो समझ गई कि मैं अब फूटने वाला था। उन्होंने थोड़ा पीछे हटने की कोशिश की, लेकिन उस पल मेरी इच्छा इतनी ज़्यादा थी कि मैंने उनके सिर को कस कर अपने लंड की तरफ धकेल दिया।
वो थोड़ा चौंक गई लेकिन मैंने अपने लंड को उनके होठों के अंदर गहराई तक धकेल दिया। और तभी मैं फूट पड़ा—तेज़, गर्म धार उनके मुंह में भरती चली गई। उन्होंने कोशिश की कि वो पीछे हट जाएं, लेकिन मैं उन्हें जकड़े रहा।
उनके होंठों पर, उनकी जीभ पर मेरा सब कुछ निकल चुका था। वो कुछ पल वहीं रुकी रही, फिर धीरे से पीछे हटी। उनके होंठों के किनारे पर थोड़ा सा सफेद पानी रह गया था, जिसे उन्होंने अपनी जीभ से चाटते हुए साफ कर लिया।
उनकी आंखों में अब भी वही गहराई थी, कोई गुस्सा नहीं, कोई अफसोस नहीं, सिर्फ एक अजीब-सी शांति। मैं शर्मिंदा भी था और पूरी तरह ख़ुश भी।
फिर वो धीरे-धीरे उठी। कमरे के कोने में रखी बाल्टी से उन्होंने कपड़े निकाले जिन्हें धुलना था। इस बार उन्होंने सिर्फ पैंटी पहन रखी थी, ऊपर कुछ भी नहीं। उनके खुले निपल्स झूलते हुए हल्के-हल्के हिल रहे थे, जैसे वो जानती थी कि मैं उन्हें देख रहा था। वो पूरी सहजता से कपड़े धोने लगी, और मैं वहीं बैठा उन्हें निहारता रहा, और अगले संडे के बारे में सोचता रहा।[email protected]
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