जब मैं उन्नीस साल का हुआ, पहली बार मौका मिला किसी को छूने का, महसूस करने का और उन चीज़ों को समझने का जो कई लड़के बहुत जल्दी समझ जाते हैं। और यह सब मुमकिन हुआ मेरी प्यारी सुधा दीदी की वजह से।
उससे पहले मैं आपको सुधा दीदी के बारे में बताता हूं। वह मेरी बड़ी बहन है और मुझसे लगभग सात साल बड़ी है। लेकिन उनके शरीर की बनावट ऐसी थी कि कोई भी पहली नज़र में ही खिंच जाए।
सुधा दीदी की त्वचा एक-दम साफ़ और हल्की गेहुँआ रंग की थी, जो रोशनी में और भी निखरती थी। उनका चेहरा गोल था, लेकिन सबसे ज्यादा ध्यान खींचते थे उनके मोटे और हल्के गुलाबी होंठ। जब वो बिना कुछ कहे मुस्कुराती थी, तो लगता था जैसे कुछ कह रही हों।
उनकी छाती बड़ी और भरी हुई थी। ब्लाउज़ या साड़ी के अंदर से उनके स्तनों का उभार साफ़ नज़र आता था। जब वो चलती थी तो स्तनों का हिलना इतना स्पष्ट था कि मैं अपनी नज़रें हटा नहीं पाता था। कई बार ऐसा भी हुआ कि उनका ब्रा ना पहनना भी साफ़ दिखता था, हल्की-सी ठंड में उनके निप्पल कपड़ों के बाहर से उभरे हुए नज़र आते थे।
उनकी कमर पतली थी लेकिन हिप्स काफी भरे हुए और गोल थे। जब वो झुकती थी या रसोई में कुछ करती थी, तो उनकी गोल पिछवाड़े की शेप साड़ी या सलवार के कपड़ों में से भी साफ़ दिखाई देती थी। उनकी चाल में एक अलग ही आकर्षण था, हर हिलती चाल में उनके हिप्स की थिरकन दिल की धड़कनें तेज़ कर देती थी।
उनके बाल लंबे और घने थे, जो अक्सर खुलते हुए उनकी पीठ पर बिखरे रहते थे। लेकिन मेरा ध्यान अक्सर उनके उभारों और चलती बॉडी पर ही रहता था। वह मुझसे सात साल बड़ी थी, तो कुछ चीजें करते वक्त वह मुझसे पहले कभी शर्माती नहीं थी। जैसे ढीले टी-शर्ट पहन कर नीचे झुकना, जिससे उनकी क्लीवेज साफ दिखती थी। या फिर नहाने के बाद खुद को सिर्फ टॉवल में लपेट कर घर में घूमना। कई बार जब वो कपड़े बदल रही होती, तो कमरे का दरवाज़ा पूरी तरह बंद नहीं करती थी।
एक दिन मैं अपने कमरे में बैठ कर पढ़ाई कर रहा था। कमरे की खिड़की खुली थी और हल्की-हल्की हवा चल रही थी। तभी सुधा दीदी अंदर आई। उन्होंने एक टाइट फिटिंग टी-शर्ट पहन रखी थी और नीचे हाफ पैंट, जो उनके जांघों से थोड़ी ऊपर तक था।
टी-शर्ट उनके शरीर से इतनी चिपकी हुई थी कि उनके स्तनों की शेप पूरी तरह उभर कर सामने आ रही थी। निप्पल टी-शर्ट के कपड़े को अंदर से खींच रहे थे, जिससे साफ़ लग रहा था कि उन्होंने ब्रा नहीं पहनी है। उनकी टोंड कमर और खुले घुटनों से लेकर ऊपर तक फैली थाईज़ को देख कर मेरा ध्यान किताब से हट कर पूरी तरह उन्हीं पर टिक गया।
उनके हिप्स उस छोटे से शॉर्ट्स में कस कर भरे हुए लग रहे थे, जैसे किसी भी वक्त कपड़ा चीर कर बाहर आ जाए। जब वो पलटीं और किताबें उठाने लगी, तो उनका गोल और उभरा हुआ पिछवाड़ा मेरी आँखों के ठीक सामने था। मेरी सांसें तेज़ हो गई और शरीर में गर्मी दौड़ गई।
मैंने चेहरा किताब में गड़ा लिया, लेकिन मेरी नज़रें अब भी ऊपर ही थी। दीदी को शायद अंदाज़ा था कि मैं क्या देख रहा हूँ, क्योंकि उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा, “गोलू, आज-कल कुछ चल रहा है क्या तेरा?”
मैं उनकी बातों को समझ नहीं पाया। वह हंसते हुए बेड पर बैठ गई। मैंने किताब बंद की और उनकी तरफ मुड़ा। “क्या दीदी?” मैंने घबराकर पूछा।
उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा, “देख मैं तेरी बड़ी बहन हूं और मुझसे कुछ छुपाने की ज़रूरत नहीं है। तू हर रोज़ अंडरवियर गंदा करता है, क्या तू मास्टरबेशन करता है?”
मैंने हैरान होकर कहा, “मास्टरबेशन मतलब? मुझे नहीं पता वो क्या होता है।”
दीदी कुछ पल मुझे देख कर चुप रही। फिर उन्होंने कहा, “तू कभी किसी से इस बारे में बात की?”
मैंने सिर हिलाया, “हाँ दीदी, एक बार मैंने अपने सर से कहा था कि मेरी अंडरवियर गीली हो जाती है और उसमें सफेद चीज़ आ जाती है।”
दीदी चौक गई, “फिर उन्होंने क्या कहा?”
मैंने मायूस होकर कहा, “उन्होंने मुझे मारा… बोले कि ये गंदी बातें हैं और क्लास के सामने मुझे डांटा भी। उसके बाद से डर लगने लगा… किसी से कुछ नहीं पूछा कभी।”
उसके बाद दीदी मुझसे इस बारे में और भी सवाल करने लगी। कभी मुझे उनकी बातें सुन कर शर्म आती लेकिन वह बहुत सहज थी। उनको बड़ा अजीब लग रहा था कि उन्नीस साल का होने के बाद भी मुझे मास्टरबेशन के बारे में कैसे पता नहीं और मैं समझ नहीं पा रहा था कि मास्टरबेशन क्या चीज़ है।
उसके बाद उन्होंने पूछा, “जब भी तू अपनी अंडरवियर गंदी करता है, तब तू क्या सोच रहा होता है?”
मैं थोड़ी देर चुप रहा, फिर धीमी आवाज़ में बोला, “दीदी… जब ऐसा होता है… मतलब… जब मेरी अंडरवियर में वो सफेद चीज़ आती है… तब… मैं ज़्यादातर आपके बारे में सोचता हूँ।”
ये सुनते ही दीदी कुछ पल के लिए चुप हो गई। उन्होंने मेरी ओर देखा, फिर उनका चेहरा हल्का सा लाल हो गया। वो एक-दम शांत हो गई, और उनकी नज़रें मुझसे हट गई।
मैंने घबरा कर कहा, “माफ करना दीदी… मुझे नहीं पता था कि ये गलत है… बस…”
दीदी ने धीरे से मुस्कुराते हुए कहा, “गोलू… नहीं, तुझे माफ़ी माँगने की ज़रूरत नहीं है… मुझे समझने दो पहले।”
वो उठी और थोड़ी देर तक कमरे में टहलती रही। उनके चेहरे पर शर्म भी थी और सोच भी। फिर उन्होंने खुद को संभाला और मेरी ओर देखा। उनके चेहरे पर अब कोई गुस्सा नहीं था, सिर्फ एक हल्की सी झिझक थी।
उन्होंने धीरे से कहा, “जो तू महसूस करता है, वो ग़लत नहीं है… तुझे बस समझने की ज़रूरत है कि ये सब क्या है… और मैं तुझे समझाऊँगी, लेकिन धीरे-धीरे।”
फिर उन्होंने कमरे का दरवाज़ा धीरे से बंद किया और मेरी तरफ देखा। वो कुछ पल चुप रहीं, फिर धीरे से बोली, “गोलू… अपनी पैंट उतारो।”
मैं थोड़ा डर गया, लेकिन उनकी आँखों में गुस्सा नहीं था, सिर्फ एक गंभीरता थी। मैंने धीरे-धीरे अपनी पैंट नीचे की और अब मैं सिर्फ अंडरवियर में था।
दीदी ने मुझे कुर्सी पर बैठने को कहा, और खुद मेरे पैरों के बीच बैठ गई। उनकी साँसें भी थोड़ी तेज़ चल रही थी। फिर उन्होंने मेरी अंडरवियर का इलास्टिक पकड़ कर धीरे-धीरे नीचे खींचा।
जैसे ही मेरा प्राइवेट पार्ट पूरी तरह उनके सामने आया, वो कुछ पल के लिए ठिठक गई। उनकी आँखें बड़ी हो गई और उनके होंठों पर एक हल्की सी मुस्कान आ गई। वो कुछ कह नहीं पाई लेकिन उनके चेहरे पर हैरानी, जिज्ञासा और कुछ हद तक शर्म भी साफ दिख रही थी।
मैं खुद थोड़ा डर और उत्साह दोनों महसूस कर रहा था। ऐसा पहली बार था जब कोई मुझे इस हाल में देख रहा था — और वो भी मेरी अपनी दीदी।
फिर दीदी ने अपने हाथ आगे बढ़ाए और मेरे लंड को दो उँगलियों से हल्के से छुआ। उनके उँगलियों का वो पहला स्पर्श बिजली की तरह मेरे पूरे शरीर में दौड़ गया। दीदी का हाथ मुलायम और गर्म था, और जैसे ही उनकी उँगलियाँ मेरे लंड की त्वचा से टकराई, मेरी साँसें तेज़ हो गई।
वो कुछ पल तक सिर्फ उसे छूती रही, जैसे वो उसे महसूस करना चाह रही हो — उसकी बनावट, गर्माहट, और मेरी प्रतिक्रिया। उनके चेहरे पर एक अलग ही उत्सुकता थी। हल्के से उनके होंठ खुले हुए थे, और उनकी आँखें उस लंड पर जमी हुई थी।
वो धीरे-धीरे अपनी उँगलियों से उसके आसपास की त्वचा पर घुमाने लगी, और उनकी हर हरकत से मेरे शरीर में सिहरन दौड़ती रही।
मैंने पहली बार किसी के हाथ का ऐसा स्पर्श महसूस किया था और वो भी मेरी दीदी का।
गोलू, मैं जो अब करने जा रही हूं, उसको हमेशा याद रखना,” उन्होंने कहा। “इसी को मास्टरबेशन कहते हैं। इससे रात को तेरी अंडरवियर गंदी नहीं होगी।”
फिर उन्होंने अपनी उंगलियों को थोड़ा और मजबूत किया और धीरे-धीरे ऊपर-नीचे की हरकत शुरू की। शुरुआत में वो गति बहुत धीमी थी, जैसे वो हर एहसास को जानना चाहती हों। मेरी सांसें रुक सी गई। उनके हाथ की हर हरकत मेरे शरीर में गर्मी और एक अजीब सी कंपकंपी पैदा कर रही थी।
उनकी उंगलियां मेरी स्किन पर ऊपर-नीचे सरकती जा रही थी, हर बार जब वो नीचे जातीं, मेरे पेट की मांसपेशियां खिंच जातीं, और जब ऊपर आतीं, तो ऐसा लगता जैसे मेरे सीने तक कुछ उठ रहा है।
मेरे लिए यह सब कुछ नया था — लेकिन हर सेकंड, हर पल इतना तीव्र था कि मैं उसकी कल्पना भी नहीं कर सकता था। उनकी उंगलियों का वह गीलापन, गर्माहट और वो हल्का दबाव — सब कुछ बहुत अलग था।
मैंने आंखें बंद कर लीं, लेकिन दीदी की हर हरकत जैसे मेरे दिमाग में छपती जा रही थी। उनकी नर्म हथेली जब लंड के नीचे से पकड़ती और ऊपर उठाती, तो उसकी जड़ से लेकर नोक तक एक सनसनी दौड़ जाती थी। मेरी सांसें तेज़ हो गई, और मेरे होठ खुद-ब-खुद खुल गए थे।
कुछ मिनट बाद दीदी ने अपने हाथों की रफ़्तार रोक दी मानो उनके हाथ थक गए हों, लेकिन मुझको और भी चाहिए था। उन्होंने मेरी तरफ मुस्कुराते हुए देखा मानो कह रही हो — बस ज़रा रुको।
फिर उन्होंने अपनी हथेली पर हल्के से थूक दिया, और उसी थूक को अपने हाथों पर फैलाकर मेरी ओर फिर से झुकी। यह देख कर मैं थोड़ा चौंक गया — मुझे हल्का सा अजीब लगा, थोड़ा घिन भी हुई, लेकिन उसी के साथ एक नई उत्तेजना भी पैदा हुई।
जब उनके थूक लगे हाथ दोबारा मेरे लिंग पर आए, तो वो स्पर्श पहले से कहीं ज्यादा गीला, गर्म और फिसलता हुआ था। अब उनके हाथ ऊपर-नीचे होते हुए एक अलग ही लय में चल रहे थे। उनकी उंगलियां मेरी त्वचा पर इतनी आसानी से फिसल रही थी जैसे किसी चिकनी सतह पर पानी बह रहा हो।
मुझे वो एहसास पहले अजीब लगा, लेकिन कुछ ही सेकंड में वो मेरी सांसों और धड़कनों को तेज़ करने लगा। मेरे होंठ और ज़बान सूखने लगे थे, और मेरे पैरों की मांसपेशियां अकड़ सी गई थी।
दीदी ने अपनी रफ़्तार बढ़ा दी थी, और मेरे लिए अब कुछ सोच पाना मुश्किल हो गया था। मैं बस उस एहसास में डूबता जा रहा था।
फिर अचानक मेरे शरीर में जैसे एक तेज़ झटका दौड़ा। मेरी सांसें बेकाबू होने लगी और मेरे मुंह से घबराई हुई सी आवाज़ निकली, “दीदी… कुछ… कुछ आ रहा है…”
मैं डर गया था, यह पहली बार था जब ऐसा कुछ होने वाला था और मैं खुद नहीं समझ पा रहा था क्या करूं। लेकिन दीदी शांत रहीं। उन्होंने मेरे पेट पर हल्के से हाथ रख कर मुझे नीचे की तरफ दबाया और धीमी आवाज़ में बोली, “शांत रह… बस होने दे… सब ठीक है… ये पहली बार है तेरे लिए।”
उनके शब्दों ने मुझे थोड़ी राहत दी, और मैं खुद को ढीला छोड़ने लगा। उनकी हथेलियों की गति अब एक खास ताल में थी, और दीदी मुझे सिर्फ अपने हाथों से नहीं, अपनी आँखों से भी संभाल रही थी।
कुछ ही सेकंड बाद मेरे शरीर में जोरदार कंपन हुआ और मैं फूट पड़ा। मेरा वीर्य एक-दम तेजी से निकला और दीदी के हाथों पर आ गिरा। कुछ बूंदें उनके टी-शर्ट और छाती पर भी गिरी। मैं हांफ रहा था, पसीने से लथ-पथ और आंखें बंद किए बैठा था।
दीदी ने धीरे से अपने हाथ हटाए, मेरी तरफ देखा और मुस्कुरा दी। उन्होंने कोई घबराहट नहीं दिखाई, बल्कि उनके चेहरे पर एक शांती थी, जैसे उन्हें पता था कि उन्होंने मुझे कुछ जरूरी सिखाया था।
उन्होंने धीरे से कहा, “अब जब भी तुझे लगे कि ऐसा कुछ होने वाला है, तो मेरे कमरे में आ जाना। डर मत, मैं हूं ना।”
वो उठीं, अपने हाथ पोंछे और मेरी पीठ थपथपाई। मैं कुछ बोल नहीं पाया, बस चुप-चाप उनकी ओर देखता रहा — उस दीदी की तरफ जिसने मुझे पहली बार मेरे ही शरीर को समझाया।
उस रात मैं अपने कमरे में लेटा हुआ था, लेकिन नींद मुझसे कोसों दूर थी। मेरे दिमाग में बस वही पल बार-बार घूम रहा था, दीदी की उंगलियों का वो स्पर्श, उनकी आंखों में वो अपनापन, और उनके शब्द जो मेरे दिल में बस गए थे।
मैं करवटें बदलता रहा, लेकिन चैन नहीं मिला। दिल बार-बार बेचैन हो रहा था, शरीर में अजीब सी गुदगुदी और गर्माहट थी। कई बार खुद को समझाया कि सब ठीक है, लेकिन अंदर से कुछ खींच रहा था मुझे।
करीब आधी रात हो चुकी थी। कमरे में घुप अंधेरा था, बस खिड़की से हल्की सी चांदनी आ रही थी। बहुत सोचने के बाद, आखिर मैंने उठने का फैसला किया। दिल धक-धक कर रहा था लेकिन पांव खुद-ब-खुद दीदी के कमरे की ओर बढ़ने लगे।
मैंने दीदी के कमरे के दरवाजे के पास पहुंचकर धीरे से दरवाज़ा खटखटाया। मैं सांस रोके खड़ा था, इंतज़ार कर रहा था कि अंदर से कोई जवाब आए।
कुछ सेकंड बाद दरवाज़ा खुला। दीदी ने हल्की सी मुस्कान के साथ मेरी तरफ देखा। वो एक ढीला, हल्का गुलाबी रंग का साटन नाइट ड्रेस पहने थी, जो घुटनों तक आ रहा था। उसका गला गहरा था और स्लीवलेस डिज़ाइन में उनकी गोरी, चिकनी बाहें साफ़ झलक रही थी।
उनकी छाती का उभार उस पतले कपड़े में भी साफ़ दिख रहा था, और जब उन्होंने बालों को एक ओर हटाया, तो उनकी गर्दन की चमकती त्वचा चांदनी में और भी ज्यादा निखर उठी। उनकी टाँगें नंगे थी और हल्के रौशनी में उनके पैरों की उंगलियाँ भी चमक रही थी।
मैं एक पल के लिए हक्का-बक्का सा रह गया। उन्होंने मुझे अंदर आने का इशारा किया, और मेरी धड़कनें और तेज़ हो गई।
मैं अंदर आया तो दीदी ने दरवाज़ा बंद कर लिया। मैं थोड़ी देर चुप रहा, फिर धीमी आवाज़ में बोला, “दीदी… माफ़ करना… मैंने आपको रात में डिस्टर्ब कर दिया… मुझे समझ नहीं आया क्या करूं… मुझे फिर से वैसा ही लगने लगा जैसे पहले हुआ था।”
दीदी ने मुझे ध्यान से देखा, उनके चेहरे पर कोई गुस्सा नहीं था। उन्होंने पास आकर मेरे कंधे पर हाथ रखा और कहा, “कोई बात नहीं गोलू… अगर तू परेशान है तो मेरे पास आना ही ठीक है।”
मैंने सिर झुका कर कहा, “मुझे आज भी नहीं पता कि ये सब कैसे करना है… आपने जो सिखाया, वो तो हो गया… पर मुझे अब भी समझ नहीं आता कि जब मन बेचैन हो, तो क्या करना चाहिए…”
दीदी कुछ देर चुप रहीं, फिर हल्के से मुस्कुरा दीं। उन्होंने कहा, “गोलू, तुझे अब और भी कुछ सिखाना बाकी है।”
फिर बिना कुछ बोले उन्होंने अपने हाथ से नाइट ड्रेस की डोरी खोली और धीरे-धीरे उसे उतार दिया। अब वो मेरे सामने सिर्फ ब्रा और पैंटी में खड़ी थी। मेरी सांसें अटक गई। उनके गोरे, मुलायम कंधे, उनकी छाती की गोलाई, जो ब्रा के कपड़ों से उठी हुई थी — सब मेरी आँखों के सामने था।
उनकी कमर पतली थी और पेट एक-दम सपाट, जैसे किसी मूर्ति को तराशा गया हो। उनके नितंब गोल और भरे हुए थे, और उनकी जांघें मजबूत और चिकनी दिख रही थी। उनके स्तनों का उभार ब्रा से बाहर तक साफ़ झलक रहा था, और उनकी स्किन हल्की चांदनी में चमक रही थी।
वो मुझे देख रही थी, लेकिन उनके चेहरे पर कोई हिचक नहीं थी। उन्होंने धीरे से कहा, “अगर तुझे जानना है कि लड़की का जिस्म कैसा होता है… तो छूकर देख सकता है।”
मेरे हाथ कांप रहे थे, लेकिन मैं उनकी तरफ बढ़ा। उनकी ब्रा के ऊपर से जब मेरी उंगलियाँ उनके स्तनों को छूने लगी, तो मुझे एक अलग ही गर्मी और नरमी का एहसास हुआ। उनके स्तन ब्रा के अंदर भरे हुए थे — गर्म, मुलायम और भारी। जब मैंने हल्के से दबाया, तो ब्रा का कपड़ा थोड़ा अंदर धंसा और दीदी की साँसें थोड़ी तेज़ हो गई।
मैंने अपनी हथेलियों से उनके दोनों स्तनों को सहलाया, गोलाई में घुमाया। उनकी त्वचा की गर्मी ब्रा के कपड़े से भी महसूस हो रही थी। वो स्पर्श मेरे लिए बिल्कुल नया था — और ऐसा लग रहा था जैसे मैं किसी और दुनिया में हूं।
दीदी ने मेरी ओर देख कर मुस्कराते हुए कहा, “अच्छा लग रहा है ना?”
मैंने धीरे से सिर हिलाया, “बहुत…”
उन्होंने मेरी पैंटी भी उतार दी और फिर अपने दोनों हाथों से मेरी मर्दानगी को थाम लिया। उनके नर्म, गर्म हाथ फिर से वही हरकतें करने लगे — लेकिन इस बार मेरे हाथ उनके स्तनों पर थे, और उस एहसास ने मुझे पूरी तरह दीवाना बना दिया था।
मैंने अब थोड़ा और हिम्मत दिखाते हुए अपना चेहरा आगे बढ़ाया और उनके होठों के पास ले गया। वो एक पल के लिए रुकीं, लेकिन उन्होंने मना नहीं किया। मैं और आगे झुका और उनके होठों को अपने होठों से छू लिया।
शुरुआत में वह स्पर्श बहुत नर्म था, लेकिन दीदी ने भी अपने होंठ ढीले छोड़े। हमारा पहला किस एक धीमी आग जैसा था, जिसमें धीरे-धीरे गर्मी बढ़ रही थी। कुछ ही पल बाद दीदी ने अपना मुँह थोड़ा खोला, और हमारी ज़बानें एक-दूसरे से टकराने लगी।
वो पहला ज़ायका — दीदी के मुँह का स्वाद, उनकी साँसों की गर्मी — मेरे लिए किसी जादू जैसा था। हमारी ज़ुबानें आपस में उलझ गई, जैसे दो प्यासे मिल गए हों। मैंने अपने होठों से उनके होंठों को चूमा, काटा, और दीदी ने भी मुझे अपने अंदर समा लिया।
इस बीच, उनके हाथ अभी भी मेरी मर्दानगी पर चल रहे थे, और मैं भी उनके स्तनों को अब और ज़्यादा कस कर दबा रहा था।
मैंने अपनी एक हथेली उनकी ब्रा के नीचे सरका दी और धीरे से उनके स्तनों को सीधा छूने लगा। उनकी नंगी त्वचा का गर्म एहसास मेरी हथेली में समा गया। उनके निपल्स पहले से सख्त हो चुके थे और उन पर पुराने दांतों के हल्के निशान भी थे। मैंने जब उंगलियों से उन्हें छुआ, तो दीदी की साँसें और गहरी हो गई।
मैंने अपने होठों से उन्हें और गहराई से चूमा और उसी दौरान हमारा किस्स और गहरा हो गया। हमारी ज़ुबानें एक-दूसरे के अंदर तक पहुंच रही थी, लार आपस में बदल रही थी। हमारी साँसें, हमारी उत्तेजना और हमारे होंठ — सब कुछ एक तेज़ रफ्तार में चल रहा था। हम जैसे एक-दूसरे में घुलते जा रहे थे।
मैं दीदी के होंठों को चूसता गया, और दीदी मेरे होठों से लिपटी रहीं। उनका हाथ अब मेरी मर्दानगी को नीचे से पकड़कर सहला रहा था और मैं उनकी छातियों को दोनों हाथों से दबाए हुए था। उनकी गर्मी, उनकी लार, और उनके साथ उस पल में डूब जाना मेरे लिए एक सपना जैसा था।
अचानक मेरे शरीर में फिर वही कंपन उठा, मैं समझ गया कि अब मैं फिर से उस बिंदु पर पहुंच गया हूं। मैंने दीदी की आँखों में देखा और धीमी आवाज़ में कहा, “दीदी… फिर से…”
उन्होंने मुस्कुराकर सिर हिलाया और अपने हाथों की गति को थोड़ा और बढ़ा दिया। कुछ ही पलों में मैं फिर से फूट पड़ा। मेरा सफेद पानी एक बार फिर दीदी के हाथों पर गिरा, कुछ बूंदें इस बार उनके पेट और ब्रा पर भी जा लगी। लेकिन दीदी शांत रहीं।
उन्होंने मेरी तरफ देखा और कहा, “कल रात जब मम्मी-पापा सो जाएंगे तो इसी समय आना। कल तुझे इससे कुछ ज्यादा सिखाना है।”
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