पिछली कहानी “मेरी गांड फाड़ चुदाई” में आपने पढ़ा के किस तरह संदीप मेरी सच में ही गांड फाड़ चुदाई की। संदीप तो मेरे साथ चुदाई के पक्के रिश्ते बनाना चाहता था, मगर मेरा ही उसूल था कि मैं अपने ही शहर के किसी मर्द के साथ चुदाई के पक्के रिश्ते नहीं बनाती थी। मगर संदीप ने चुदाई ही इतनी मस्त की थी मेरा मन तो था उसके साथ दुबारा चुदाई करने का।
मैंने सदीप को कहा के अगर कोइ ख़ास प्रोग्राम बना तो मैं उसके साथ चुदाई जरूर करवाऊंगी। और वो ख़ास प्रोग्राम मेरे दिमाग में था दो गायें और दो सांड, मतलब दो चूतें और दो लंड। अदल-बदल कर चुदाई – एक-दूसरे के सामने।
जब मैंने संदीप को ये बताया तो संदीप को भी ये आईडिया बहुत पसंद आया। वो बोला, “जल्दी से बनाईये प्रोग्राम मैडम, मेरा तो लंड अभी से खड़ा होने लगा है।”
मैंने हंसते हुए कहा, “संदीप तेरा लंड बैठता ही कब है साले ये तो हमेशा ही खड़ा रहता है। थोड़ा सब्र कर ले। दूसरी गाये और दूसरा सांड तो ढूंढने दे।”
दूसरी गाये तो सामने थी रागिनी, बस अब दूसरा सांड ढूंढना था।
अब आगे का हाल जानिये इस कहनी “दो गाये और दो सांड” में।
पिछले दिन की संदीप के साथ हुई चुदाई की थकान से बढ़िया नींद आयी। सुबह नौ बजे मैं सो कर उठी और प्रभा को कॉफी लाने के लिए बोल कर मैं बाथरूम में चली गयी। कॉफी पीने के बाद मैं नहा कर तैयार हो कर दस बजे नीचे क्लिनिक में पहुंच गयी। लम्बे लंड का डिब्बा मेरे हाथ में ही था। मैंने रबड़ का लम्बा लंड बाहर निकाला। हाथ में लंड लेते ही मेरी गांड में खुजली मच गयी। अगर मेरी गांड कल के चुदाई से फूली हुई ना होती तो मैंने ये लंड गांड में लेने में ज़रा सी भी देर नहीं लगानी थी।
तभी मुझे दो गाये और दो सांड वाली बात याद आ गयी। साथ ही मेरे सामने दूसरी गाये यानि रागिनी का चेहरा घूम गया। मैंने तुरंत ही रागिनी को फोन मिला दिया। रागिनी तो जैस मेरे फोन का ही इंतज़ार कर रही थी। चहकते हुए रागिनी बोली, “अरे मालिनी जी, मैं आपको ही याद कर रही थी। आप गयी थी संदीप के पास?”
मैंने हंसते हुए कहा, “हां गयी थी, और बढ़िया से मस्त चुदी भी।”
रागिनी बोली, “वाह मालिनी जी कैसी हुई आपकी चुदाई? जो भी कह लो मालिनी जी ये संदीप चुदाई तो मस्त करता है।”
मैंने कहा, “हां रागिनी मस्त चुदाई हुई – आगे की भी और पीछे की भी। मगर पूरी बात जानने के लिए तुझे यहां आना होगा, मेरे क्लिनिक में। मेरे पास तेरे लिए एक सरप्राईज़ भी है।”
रागिनी बोली, “मालिनी जी अगर ऐसा है तो आज ही आती हूं। मेरी शिफ्ट चार बजे खत्म होगी, मगर मैं दो घंटे की छुट्टी ले कर दो बजे निकलूंगी – ढाई बजे तक पहुंचती हूं आपके पास।”
मैंने कह दिया, “ठीक हैं, मैं तेरा इंतज़ार करूंगी।”
पूरे ढाई बजे रागिनी मेरे क्लिनिक में पहुंच गयी। नमस्ते नमस्ते के बाद रागिनी बोली, “मालिनी जी अब बताईये कैसी रही आपकी चुदाई? और वो सरप्राईज़ वाली बात?”
मैंने कहा, “चलो पीछे के कमरे में बैठ कर बातें करते हैं।”
पीछे कमरे में जा कर हम बैठी ही थी कि रागिनी ने मेरा हाथ पकड़ लिया और बोली, “मालिनी जी, अब बताईये मालिनी जी कैसी रही आपकी चुदाई?”
मैंने कहा, “सब्र करो रागिनी। सब बताती हूं, पहले सरप्राइज तो देख लो जिसके बारे में मैंने तुमसे फोन पर बात की थी।”
ये कह कर मैंने रागिनी के हाथ में रबड़ के लंड वाला डिब्बा दे दिया। चुदक्क्ड़ एक मिनट में समझ गयी कि डिब्बे में क्या होगा। डिब्बा देखते ही बोली, “ये तो लंड लगता है मालिनी जी।”
ये कह कर रागिनी ने डिब्बा खोला लिया। लंड और बेल्ट हाथ में ले कर बोली, “मालिनी जी ये तो बड़ा लम्बा है बिलकुल आलोक के लंड जैसा। और यह बेल्ट, ये क्या है? और ये आप आया आपके पास?”
मैंने कहा, “सारे सवाल एक बार में ही पूछ लोगी?” फिर मैं बोली, “असल मैं ये लंड ही लेने कल गयी थी संदीप के ऑफिस में। एक तो जब से आलोक ने मेरी गांड में अपना लम्बा लंड डाला, तभी से मैं ऐसा लंड मंगवाने के चक्कर में थी। दूसरे जिस तरह संदीप ने रगड़-रगड़ कर तेरी चूत फुला दी थी, मैं भी ऐसे ही एक बार संदीप से चुदाई करवाना चाहती थी – रगड़वा रगड़वा कर। चूत फुलाने वाली चुदाई।”
रागिनी एक-दम उछल कर बोली, “वह मालिनी जी फिर, फिर रगड़वाई आपने? कि चुदाई संदीप ने की आपकी? रगड़ी संदीप ने आपकी फुद्दी?”
मैंने हंसते हुए कहा, “चुदाई नहीं चुदाईयां हुई और रगड़-रगड़ कर हुई। और पूरे चार घंटे तक ये चुदाईयां चली।”
रागिनी लगभग चिल्लाते हुए बोली, “चार घंटे? कमाल है?”
मैंने कहा, “हां कमाल ही है, और बाकी का कमाल तू खुद देख ले।” ये बोल कर मैंने अपने कपड़े उतर दिए और रागिनी से बोली, “ले खुद देख मेरा चूत और गांड का हाल।”
ये कह कर मैं लेट गयी, और टांगे उठा कर टांगें फैला दी। रागिनी आगे आई और मेरी टांगें चौड़ी कर के पहले चूत को देखी फिर टांगें थोड़ी और ऊपर करके गांड को देखा, और चूत और गांड को चाटते हुए बोली, “मालिनी जी ये तो दोनों फूली हुई हैं। लगता है संदीप ने मेरी चुदाई के तरह ही आपकी भी सूखी चुदाई की है।”
और फिर कुछ रुक कर बोली, “और मालिनी जी ये आपकी गांड? ये क्यों फूली हुई है? क्या इसमें भी संदीप ने लंड डाल दिया?”
मैंने हां में सर हिलाया तो रागिनी बोली, “मगर संदीप का लंड तो बड़ा मोटा है। आपकी गांड में गया ही कैसे?”
अब बोलने की बारी मेरी थी। मैंने कहा, “रागिनी चुदाई के मामले में संदीप बहुत तजुर्बे वाला है – और झड़ता भी जल्दी नहीं है। चार घंटे की चुदाई मैं उसने मेरी चूत, गांड, मुंह, सब में लंड डाल दिया।” और ये कह कर मैंने अपनी और संदीप की चुदाई की पूरी कहानी रागिनी को सुना दी।
रागिनी अपनी चूत खुजलाते हुए बोली, “कमाल है, फिर तो मैं भी एक बार संदीप का लंड गांड में लूंगी। पिछली बार तो मुझे डर लगा कहीं गांड का कचरा ही ना कर दे संदीप।” फिर रागिनी बोली, “और मालिनी जी ये रबड़ का लम्बा लंड?”
मैंने कहा, “रागिनी ये लंड तो मैंने उसी दिन लाने का सोच लिया था जिस दिन तुम्हारे आलोक ने मेरी गांड चुदाई की थी। और जहां तक संदीप से गांड चुदाई करवाने की बात है, तो एक बार के लिए तो संदीप के मोटे लंड जैसे लंड से चुदाई करवाना ठीक है, मगर बार-बार नहीं। बार-बार गांड में लेने के लिए ये लंड ही ठीक है, आलोक के लंड जैसा लंड।”
फिर रागिनी बेल्ट को हाथ में ले कर बोली, “और ये बेल्ट मालिनी जी, इसे कमर में बांध कर उसमे लंड लगा कर गांड चोदते है?” मैंने हंसी हुए कहा, “तुम्हें तो सब कुछ ही पता है।”
रागिनी बोली, “तो फिर मालिनी जी कहिये, लगाऊं मैं इसे अपनी कमर में और डालूं आपकी गांड में?”
मैंने कहा, “रागिनी अभी तुमने देखा तो है क्या हालत है मेरी गांड की। अभी एक हफ्ता तो इसको आराम के जरूरत है। तुम कहो तो मैं बांध कर तुम्हारी गांड चुदाई कर देती हूं।”
रागिनी बोली, “नेकी और पूछ-पूछ? ये कह कर उसने अपनी कपड़े उतर दिए और चूतड़ पीछे करके बेड के किनारे पर लेट गयी। मैंने बेल्ट कमर से बांध कर लंड उसमें लगा लिया और क्रीम लगा कर रागिनी के चूतड़ चौड़े करके एक ही झटके से लंड गांड में बिठा दिया। रागिनी चिहुंकी, “आह मालिनी जी क्या मस्त गया है अंदर।” मैंने रागिनी के कमर पकड़ी और रागिनी की गांड में लम्बे लंड के धक्के लगाने शुरू कर दिए।
लंड के अंत में लटकते हुए टट्टे जब रागिनी के चूतड़ों के साथ टकराते थे तो बिलकुल वैसी ही ठप्प-ठप्प की आवाज करते थे जैसे आलोक के टट्टे, जैसे संदीप के टट्टे गांड चुदाई के वक़्त मेरे चूतड़ों के साथ टकराने पर आवाज करते थे। रागिनी मस्त हो चुकी थी। रागिनी ने एक हाथ नीचे किया और उंगली अपनी चूत में डाल दी।
मैंने ये देखा तो मैंने सोचा रागिनी को उंगली से क्या मजा आएगा, इसे रबड़ का मोटा लंड देती हूं चूत में डालने के लिए। मैंने लंड रागिनी की गांड में से निकाल लिया। रागिनी सर घुमा कर बोली, “मालिनी जी निकाल क्यों लिया बड़ा मजा आ रहा था।”
मैंने कहा, “चिंता ना कर मेरी जान, अभी दुबारा डालती हूं तेरी गांड में, पहले थोड़ा तेरी चूत का इलाज कर लूं।”
ये कह कर मैं अलमारी में से रबड़ का मोटे वाला लंड निकाल लाई और रागिनी के हाथ मैं पकड़ा कर बोली, “ले डाल इसको अपनी फुद्दी मैं।” ये कह कर मैंने लंड दुबारा रागिनी की चूत में डाल दिया। बीस मिनट तक ये चुदाई चली। रागिनी की चूत का पानी दो बार निकला। लंड के टट्टों पिछला हिस्सा मेरी चूत से भी टकरा रहा था। टट्टों के चूत के टकराने भर से ही मुझे भी एक बार मजा आ गया।
इस चुदाई के बाद हम दोनों ने कपड़े पहने और बाहर क्लिनिक में आ गाये। मैंने प्रभा को चाय लाने के लिए बोल दिया।
मैं रागिनी से बोली, “रागिनी तुमसे एक बात करनी है।” रागिनी बोली, “तो करिये मालिनी जी इसमें पूछना कैसा।”
मैंने बोलना शुरू किया, रागिनी तू तो जानती हो संदीप बड़े अरसे से मुझे चोदना चाहता था, मगर मैं ही इसे शहर में तब तक चुदाई नहीं करवाती जब तक मुझे ये यकीन ना हो जाए कि सामने वाला चोदू जोंक के तरह चिपक ही नहीं जाएगा। संदीप से भी मैं इसीलिए चुदाई नहीं करवा रही थी। मगर जब तुमने मुझे उसके साथ हुई सूखी चूत चुदाई की बात बताई तो मेरा मन भी उससे उसी तरह की चुदाई करवाने का हो गया – और बस कल ये चुदाई हो गयी।”
मैंने बात जारी रखते हुए कहा, “चुदाई के बाद संदीप ने अगली चुदाई के प्रोग्राम के बारे में पूछा, तो मैंने साफ कह दिया कि इस तरह के चुदाई के रिश्ते मैं इसी शहर में नहीं बनाती।” संदीप की शक्ल देख कर ही लग रहा था कि मेरी इस बात से वो मायूस सा हो गया है। मगर मैंने संदीप को कहा, कि संदीप मायूस होने के जरूरत नहीं। अब कुछ ख़ास प्रोग्राम बनाएंगे।”
मैनें बात जारी रखते हुए कहा, “संदीप तो मुझे दुबारा चोदने के लिए उतावला था ही, मगर मेरी बात सुन कर मायूस हो गया था। मेरी “खास प्रोग्राम” वाली बात पर बोल पड़ा – ख़ास प्रोग्राम मतलब?”
मैंने संदीप से कहा, “दो गाये और दो सांड।” एक बार तो संदीप को समझ में नहीं आया। मगर जब वो समझा तो खुश हो गया और बोला, ये तो बढ़िया रहेगा मैडम। अब संदीप ये तो समझ गया दो गाये में से एक गाये मैं हूं, और एक सांड वो है। उसने फिर पूछा कि मैडम दूसरी गाये कहां है, कौन सी है?”
मैंने रागिनी का हाथ अपनी हाथ में लेकर कहा, “तो रागिनी मैंने संदीप से कह दिया दूसरी गाये रागिनी होगी। मेरा इतना कहना था के रागिनी ने भी मेरा हाथ पकड़ लिया और बोली, “मालिनी जी ये तो मजा ही आ जायेगा, और दूसरा मालिनी जी, दूसरा सांड?
मैंने रागिनी से कहा, “रागिनी यही सवाल संदीप ने भी किया था। मैंने कह दिया दूसरा सांड ढूंढना पड़ेगा। तब संदीप बोला कि वो ढूंढ लेगा दूसरा सांड। इस पर मैंने इस बात से उसे मना कर दिया। कारण वही, इसी शहर में चुदाई इस तरह से ठीक नहीं।”
ये कह कर मैं चुप हो गयी। रागिनी बोली, “तो फिर मालिनी जी कहां से आएगा दूसरा सांड?”
मैंने कहा, “देखते हैं। इस बीच अगर तुमने संदीप का लंड गांड में लेना है तो तुम चली जाना।” रागिनी कुछ सोचने लगी।
तभी फोन की घंटी बजी। फोन उठाया तो आगरा से असलम का फोन था। असलम बोला, “नमस्ते मालिनी जी।”
मैं हैरान सी हुई, असलम का फोन? मैंने पूछा, “अरे असलम आज कैसे फोन किया?” असलम और निकहत की शादी के पूरे एक साल बाद फोन आया था असलम का।
असलम बोला, “मालिनी जी मैंने इसलिए फोन किया कि हमने साथ वाली दुकान भी खरीद ली है और उसमे चमड़े से बनी चीज़े – पर्स, जैकट वगैरह का काम शुरू किया है। ये सामान कानपुर में थोक में मिलता है। बस उसी सिलसिले में आना है।”
मैंने कहा, “ये तो बहुत अच्छी बात है। कब आ रहे हो?”
असलम ने कहा, “मालिनी जी मैंने यही बताने कि लिए फोन किया कि अगले हफ्ते शनिवार को मैं तीन-चार दिनों के लिए कानपुर आ रहा हूं। आपसे मिलने का बड़ा मन है।”
मैंने सोचा लो जी आ गया दूसरा सांड, साथ ही मैंने हिसाब लगाया अगले हफ्ते शनिवार – मतलब आठ दिन हैं। तब तक तो मेरी संदीप के चुदाई से फूली चूत और गांड दोनों चुदाई के किये ठीक हो जाएंगी।
मैंने कहा, “ठीक है असलम मुझे भी तुमसे कुछ बात करनी है। और सुनाओ निकहत कैसी है नसरीन कैसी है?” (असलम निकहत और नसरीन के बारे में जानने के लिए कहानी पढें मां बेटे की चुदाई)
असलम बोला सब ठीक है मालिनी जी” फिर कुछ रुक कर बोला, ” मालिनी जी अम्मी के बारे में भी आपसे कुछ बातें करनी है। बाकी बातें वहां आ कर ही करूंगा। कानपुर पहुंच कर फोन करूंगा आपको।”
मैंने कहा, “ठीक है असलम।” और मैंने फोन काट दिया।
मैंने रागिनी की तरफ देखा और बोली, “लो रागिनी मिल गया दूसरा सांड – कलाई जितने मोटे और आधे हाथ जितने लम्बे लंड वाला सांड।”
रागिनी बोली, “दूसरा सांड? जिसका ये फोन था मालिनी जी?”
मैंने कहा “हां रागिनी यही बनेगा दूसरा सांड। ये असलम था आगरा से। किसी पारिवारिक समस्या के सिलसिले में मेरे पास आया था। तभी मैंने इससे चुदवाई करवाई थी। मस्त चोदता है लड़का। जवान लड़का है, संदीप की तरह ही सख्त लंड है इसका – मगर संदीप के लंड से लम्बा, आलोक के लंड जितना लम्बा।”
रागिनी ने अपनी चूत खुजलाई और बोली, “मालिनी जी कब आएगा?”
मैंने कहा, “अगले हफ्ते। मगर अगर तुमने ‘दो गाये दो सांड’ की चुदाई का सही मजा लेना है तो इस बीच संदीप से चुदाई मत करवाना। गांड की चुदाई तो बिलकुल ही नहीं। अगर गांड फूल गयी तो दो गाये दो सांड” के खेल का मजा नहीं आएगा।”
चुदाई की माहिर रागिनी बोली, “समझ गयी मालिनी जी।” रागिनी चूत खुजलाती खुजलाती चली और मैंने संदीप को फोन मिला दिया। संदीप चहकते हुए बोला, “नमस्ते मैडम कहिये कैसे याद आ गयी?”
मैंने कहा “संदीप दूसरा सांड मिल गया है। आगरा का रहने वाला है किसी काम से सिलसिले में मेरे एक साल पहले उससे मुलाकात हुई थी। अगले हफ्ते आ रहा है। तुम्हारे लंड के तरह ही मस्त लंड है उसका और मस्त चुदाई भी तुम्हारी तरह ही करता। चूत गांड मुंह में डालने का सब जगह का शौक़ीन है।”
संदीप उसी तरह चहकते हुए बोला, “वाह मैडम मजा आ गया आप और रागिनी जी, और साथ वो दूसरा सांड। एक-दूसरे के सामने की चुदाई का मजा ही आ जाएगा।”
दो गाये दो सांड के मेरे विचार से रागिनी तो खुश थी हुई, संदीप भी मस्त हो गया था कि दो-दो चूतें और दो-दो गांड के छेद चुदाई के लिए सामने होंगे। दूसरा साद भी जल्दी ही मिल गया जब आगरा से असलम का फोन आ गया। असलम ही होने वाला था दूसरा सांड। जब मैंने असलम के बारे में रागिनी और संदीप को बताया तो रागिनी की चूत तो तभी गीली हो गयी, पक्की बात है संदीप का लंड भी हरकत में आ गया होगा।
अब अगले शनिवार का इंतजार था जिस दिन असलम ने कानपुर पहुंच कर मुझे फोन करना था।
शनिवार भी आ गया। दोपहर दो बजे असलम का फोन आ गया, “नमस्ते मालिनी जी, मैं असलम।”
मैंने कहा, “हेलो असलम, पहुंच गए कानपुर?”
असलम बोला, “जी मालिनी जी। आपसे मिलना चाहता था। कब आऊं?”
मेरी चूत में तो खुजली मची ही हुई थी। मैंने कहा, “जब मर्जी आ जाओ, मैं यहीं हूं।”
असलम भी जैसे घोड़े पर सवार था। बोला, “ठीक है मालिनी जी आधे घंटे में पहुंचता हूँ।”
मैंने पूछा, “ढाई बजे? असलम क्या कहीं पास के होटल में ही रुके हो क्या?”
असलम बोला, “हां मालिनी जी आपके क्लिनिक से कोइ डेढ़ दो किलोमीटर की दूरी पर ही होटल है, होटल सरताज।”
होटल सरताज? ये तो मेरे क्लिनिक के बहुत पास था। मैंने कहा, “ठीक है असलम आ जाओ।”
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