पिछला भाग पढ़े:- जब दीदी ने खुद को मेरे सामने खोला-7
भाई बहन सेक्स कहानी अब आगे-
दिल्ली में मेरा आख़िरी दिन था और समझ नहीं आ रहा था क्या करूँ। वाणी दीदी के साथ रहते हुए सब कुछ कितना शांत और सुकून भरा लगा था, और अब उनके बिना वापस जाना मुझे बहुत भारी लग रहा था।
उन्हें पता था कि यह मेरी आख़िरी रात थी, इसलिए उन्होंने सुझाव दिया कि क्यों ना हम रात की सैर पर निकलें, शहर को एक बार फिर महसूस करने के लिए, ठंडी हवा में थोड़ा चलने के लिए, और कुछ यादें और जोड़ने के लिए।
रात की ठंडी हवा में हम दोनों बाहर चल पड़े। सड़कें लगभग खाली, और दीदी की हल्की सी मुस्कान मेरे हर कदम को और भारी बनाती जा रही थी।
वाणी दीदी ने बस एक साधारण सी पतली टी-शर्ट पहनी थी, लेकिन उसी सादगी में एक ऐसी नर्मी थी जो मेरा ध्यान बार-बार वहीं खींच रही थी। कपड़ा हल्का था, इतना कि चलते हुए उसके नीचे उनका आकार साफ़ नज़र आता था।
टी शर्ट उनकी छाती पर बिना किसी मेहनत के ढली हुई थी, जैसे कपड़ा खुद जानता हो कि उसे किस आकार को छूना है। उनके स्तन कपड़े के अंदर मुलायम गोलाई बनाते हुए हिलते-डुलते थे, बहुत ज़्यादा नहीं, बस उतना जितना एक कदमों की लय से होना चाहिए। हर कदम पर उनकी साँसें हल्की सी उठती, और उसी के साथ कपड़ा उनकी छाती पर थोड़ा खिंच जाता।
शायद उन्हें यह महसूस भी हो रहा था। अचानक वे रुकी, मेरी आँखों में देखते हुए मुस्कुराई “कहाँ देख रहे हो अपनी आँखों से, गोलू?”
मैं बस हल्का सा मुस्कुराया और चुप रह गया। कुछ दूर चल कर हम एक शांत, खाली से मोड़ पर रुक गए। हवा ठंडी थी, और हमारे बीच एक पुरानी याद भारी होकर तैर रही थी। मैं खुद ही हँसते हुए बोला, “याद है वो दिन… जब तुम्हारे ऊपर गरम दूध गिर गया था?”
वाणी ने तुरंत मेरी तरफ देखा, पहले हैरान, फिर मुस्कुराहट। “हाँ… याद है,” उन्होंने धीमे से कहा। “बहुत साफ़ याद है।”
उन्होंने एक कदम मेरे और पास बढ़ाया। उनकी साँसें अब मेरी साँसों की दूरी पर थी।
मैंने उनकी आँखों में देखते हुए धीरे से कहा, “वो… दरअसल… वो पहली बार था जब मैंने तुम्हें… बिना कपड़ों के देखा था।”
मैंने हाथ उठाया… बहुत धीरे, किसी परमिशन की तरह। मेरी उंगलियाँ उनकी टी-शर्ट पर हल्के से टिक गई, ठीक वहाँ जहाँ उनकी गर्म, मुलायम स्तन साँसों के साथ उठ गिर रहे थे। वाणी दीदी ने मेरी ओर देखा, पर एक पल को भी पीछे नहीं हटी। उनकी साँसें गहरी हुई। उस हल्के स्पर्श के नीचे कपड़े की पतली परत और उनका धड़कता शरीर दोनों साफ़ महसूस हो रहे थे।
मैंने फुसफुसाते हुए कहा, “उसी दिन से… वाणी दीदी… उसी दिन से मैं तुम्हें छूना चाहता था। तुम्हें महसूस करना चाहता था। तुम्हें पूरी तरह पाना चाहता था।” मेरी उंगलियाँ अभी भी उनके ब्रेस्ट के ऊपर कपड़े के ऊपर ही थी, धीरे, सम्मान से, जैसे किसी अनकहे एहसास को पढ़ रही हों। उन्होंने होंठ हल्के से खोले, मेरी ओर देखते हुए।
मैंने आगे कहा, “और कुछ दिनों बाद… जब तुमने मुझे परमिशन दी थी… कि मैं जो महसूस करता हूँ, उसे खुल कर कह सकूँ… और तुम्हारे साथ सेक्स कर सकूँ… तभी मुझे समझ आया कि तुम सच में मुझे चाहती हो।”
वाणी ने मेरी उंगलियों के ऊपर अपना हाथ रख दिया, ना रोकते हुए, बल्कि मुझे और करीब खींचते हुए। वह फुसफुसाई, “हाँ, गोलू… मैंने ही कहा था। क्योंकि तुम्हारी हर इच्छा… हर चाहत… मैं समझती हूँ। और अगर आज आख़िरी रात है…” उन्होंने मेरी उंगलियों को थोड़ा और नीचे दबाया, “तो बताओ… आगे क्या महसूस कराना चाहते हो मुझे?”
मैंने फुसफुसाया, “अगर यही आख़िरी रात है… तो मैं इसे ऐसे खत्म नहीं होने दूँगा।”
फिर मैं धीरे-धीरे, बिना किसी जल्दबाज़ी के… उनके बिल्कुल पास झुक गया। उनकी साँस मेरे होंठों पर गर्म लग रही थी। वाणी दीदी हल्का सा कांपीं, पर पीछे नहीं हटीं।
मैंने अपने होंठ उनके होंठों पर रख दिए, धीमे, नरम, एक लंबी साँस के बराबर समय लेते हुए… जैसे हम दोनों इस पल को भीतर तक महसूस करना चाह रहे हों। वाणी दीदी ने होंठों को तोड़ते हुए मेरी गर्दन के पास फुसफुसाया, “चलो घर चलें… यहाँ नहीं।”
मैंने उनका हाथ थामा और हम तेज़ कदमों से अपार्टमेंट की ओर लौटने लगे। सड़क चाहे जितनी शांत हो, पर मेरे भीतर उठती आग अब किसी खुले मोड़ पर नहीं ठहर सकती थी। वाणी दीदी ने मेरी उँगलियों को अपनी उँगलियों में कस कर पकड़ा हुआ था, जैसे वह भी जानती थी कि घर पहुँचते ही क्या होगा।
अपार्टमेंट का दरवाज़ा बंद होते ही वाणी दीदी मेरे बिल्कुल सामने आकर खड़ी हो गई, साँसें तेज़, आँखें आधी बंद, और पूरे शरीर में वही गर्म चाहत फैलती हुई।
उन्होंने मेरे सीने पर उंगलियाँ फेरते हुए कहा, “सड़क पर चलने से कभी खुशी नहीं मिली, गोलू…पर तुम्हारे साथ प्यार करना… यही तो मुझे सच में खुश करता है।”
मैंने उनके बहुत पास जाकर, उनकी साँसों की गर्मी अपने होंठों पर महसूस करते हुए धीमे से कहा, “वाणी दीदी… मैं आज तुम्हारे साथ कुछ नया करना चाहता हूँ… कुछ ऐसा, जो हमने पहले कभी नहीं किया।”
वाणी दीदी ने बिल्कुल बेझिझक मेरी आँखों में देखते हुए मुस्कुराया, “जैसा तुम चाहो, गोलू… मैं तैयार हूँ।”
मैंने धीरे से कहा, “पर… मुझे ठीक से पता नहीं कि क्या करना है।”
वह मुस्कुराई, एक ऐसी मुस्कान, जिसमें समझ भी थी और शरारत भी। “तो चलो… साथ में ढूँढ़ते हैं क्या करना है।”
हम दोनों बिस्तर पर बैठ गए। वाणी दीदी ने लैपटॉप अपनी गोद में रखा और उसे खोल दिया।
उन्होंने कहा, “देखते हैं, तुम्हारी नज़र किस पर रुकती है।”
मैं स्क्रीन स्क्रॉल करता रहा, धीरे, सावधानी से। वाणी दीदी बीच-बीच में मेरे हाथ पर अपनी उँगलियाँ रख देती, मेरी आँखों में झाँक कर देखती कि किस चीज़ पर मेरी साँसें थोड़ी बदलती हैं। बहुत-सी तस्वीरें, बहुत-से आइडियाज़ हम देखते रहे। कुछ पर वह मुस्कुराती, कुछ को वह खुद स्क्रॉल कर देती।
फिर अचानक, जैसे उनकी साँस ही रुक गई हो, वाणी दीदी ने मेरा हाथ पकड़ कर स्क्रीन पर एक तस्वीर पर रोक दिया। तस्वीर में एक औरत थी… बिस्तर पर बाँधी हुई। उसके हाथ हल्के कपड़े से बेडपोस्ट से बँधे थे। कमरे में पीली रोशनी थी। वाणी दीदी ने तस्वीर को ध्यान से देखा… फिर मेरी तरफ देखा। धीमी आवाज़ में बोली, “गोलू… ये तुम्हें कैसा लगता है?”
मैं कुछ पल चुप रहा। तस्वीर में सब कुछ शांत था, दर्द नहीं बस भरोसा, समर्पण और एक तरह का रोमांच। मुझे यह नया लगा, अजीब भी… लेकिन डरावना नहीं। मैंने धीरे-धीरे कहा, “ये… अलग है दीदी। पर बुरा नहीं लगता।”
वाणी दीदी ने मेरी उँगलियों को अपने हाथ में थामा और हल्का-सा दबाया, जैसे वह मेरे दिल की धड़कन को महसूस करना चाहती हों।
“अलग ही तो चाहिए था, गोलू,” उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा। “तुमने ही तो कहा था कि कुछ नया करना है।”
उन्होंने स्क्रीन पर उस तस्वीर के नीचे मौजूद लिंक पर क्लिक किया और वीडियो खुला। कमरे में हल्की, गर्म रोशनी थी। महिला बिस्तर पर लेटी हुई थी, उसके हाथ और पैर मुलायम कपड़े से हल्के-हल्के बँधे थे। फिर पुरुष उसके पास आया… पहले उसके हाथों के पास बैठा। वह उँगलियों से गाँठें जाँच रहा था। महिला ने हल्की मुस्कान दी। उसका चेहरा पूरी तरह शांत था, जैसे वह इसे खुद चाह रही हो। वीडियो में पुरुष ने बहुत नर्मी से महिला की आँखों पर एक मुलायम कपड़ा बाँधा, धीरे-धीरे, जैसे वह हर सेकंड में पूछ रहा हो कि वह तैयार है या नहीं।
मैंने धीरे से पूछा, “दीदी… क्या हम भी… ऐसा कुछ कर सकते हैं?”
उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा, “गोलू, तुम अपनी बड़ी बहन के साथ वह सब कर सकते हो, जो तुम चाहते हो।”
इसके बाद वह धीरे-धीरे उठीं, लैपटॉप को एक तरफ रखा और फिर सामने खड़ी हो गई। मैं अब भी बिस्तर पर बैठा उनको साँस रोक कर देख रहा था। धीरे-धीरे वह मेरी तरफ और भी पास आने लगी। हर कदम के साथ हमारे बीच की दूरी कम होती जा रही थी, इतनी कि उनकी गर्म साँसें अब मेरे चेहरे तक महसूस होने लगी थी।
फिर उन्होंने मुँह में हल्की मुस्कान के साथ कहा, “गोलू… क्या तुम मेरे कपड़े उतारना चाहते हो या मैं तुम्हारे लिए कर दूँ?”
मैंने झट से उठ कर उनके बिल्कुल सामने खड़े होने की जगह ले ली। मेरे इतना पास आते ही उनकी पलकें थोड़ी भारी हुई, जैसे उन्हें खुद भी समझ नहीं आ रहा हो कि मैं आगे क्या करने वाला हूँ।
मैंने कांपते हाथों से उनके टी-शर्ट के हेम को पकड़ा। जैसे ही मेरी उँगलियाँ उनके कपड़े को छूई, उन्होंने धीमी, गर्म साँस छोड़ते हुए मेरी तरफ देखा, उनकी आँखों में सीधी, बिना छुपी चाह।
मैंने धीरे-धीरे उनका टी-शर्ट ऊपर उठाना शुरू किया। कपड़ा उनके पेट से सरकता हुआ ऊपर जा रहा था, और वह बिना हिले-डुले बस मुझे देखती रही। उनका चेहरा हल्का लाल हो गया था… होंठ थोड़े खुले… आँखें मेरे हाथों पर टिकी हुई। टी-शर्ट जब उनकी छाती तक पहुँचा, उन्होंने हल्का सा सिर पीछे किया जैसे खुद को मेरे स्पर्श के हवाले कर दिया हो।
जब टी-शर्ट उनकी छाती तक पहुँचा, उन्होंने हल्का सा सिर पीछे किया जैसे खुद को पूरी तरह मेरे हाथों पर छोड़ दिया हो। फिर मैंने एक झटके में उनका टी-शर्ट पूरी तरह ऊपर खींच कर उतार दिया और बिना सोचे उसे मेरे पैरों के पास फर्श पर फेंक दिया।
अब वह सिर्फ़ ब्रा में मेरे सामने थी, साँसों में गर्मी, आँखों में एक नरमी। उन्होंने धीरे से पूछा, “अब क्या करोगे, गोलू?” उनकी आवाज़ में हल्का कम्पन था, जिसमें चाह और हिचक दोनों मिले हुए थे। मैंने उनके कंधों पर हाथ रखा। उनका शरीर मेरे हाथ लगते ही हल्का सा काँप गया।
मैंने धीरे कहा, “अगर आप कहें… तो मैं ब्रा भी उतार दूँ।”
उन्होंने मेरी आँखों में देखते हुए फुसफुसाया, “हाँ… लेकिन धीरे।”
मैंने उनके कंधों से नीचे हाथ ले जाकर उनकी ब्रा की स्ट्रैप्स को छुआ। वह हल्का सा साँस खींच कर अपनी पीठ को आगे ले आई, ताकि मेरा टच और गहरा महसूस हो सके।
अब मैं बिल्कुल उनकी छाती के सामने था। ब्रा के नीचे उनके उभार हल्के-हल्के हिल रहे थे, हर साँस के साथ थोड़ा ऊपर-नीचे होते हुए। ब्रा के कपड़े के पीछे उनके शरीर की गर्मी साफ महसूस हो रही थी। उनके दोनों उभार भरे हुए, मुलायम और इतने करीब थे कि मुझे लगा मेरा चेहरा खुद ब खुद उनकी तरफ झुक जाएगा।
ब्रा का कपड़ा थोड़़ा खिंचा हुआ था, जिससे साफ दिख रहा था कि अंदर उनका नरम मांस कैसे कपड़े को पूरी तरह भर रहा है। कपड़े के ऊपर से भी उनके निपल्स की हल्की उभरी हुई शेप दिख रही थी, दो छोटे से पॉइंट, जो चाह और ठंड दोनों की वजह से और टाइट हो चुके थे। यह छोटे से उभरे पॉइंट कपड़े को थोड़ा ऊपर उठा रहे थे, जैसे मुझे अपनी तरफ खींच रहे हों।
मैंने उनकी पीठ पर उँगलियाँ फेरी, हुक तक पहुँचा… और बहुत धीरे से उसे खोल दिया। हुक खुलते ही उनकी ब्रा ढीली पड़ गई, और वाणी ने आँखें बंद कर ली, जैसे खुद को उस पल में पूरी तरह छोड़ दिया हो।
मैंने ब्रा को दोनों तरफ से पकड़ कर सामने की ओर खींचा। कपड़ा उनके उभारों से सरकता हुआ नीचे आया और फिर मेरे हाथ में आ गया।
ब्रा उतरते ही उनके स्तन मेरे सामने बिल्कुल साफ दिखाई देने लगे, भरे हुए, गोल, इतने मुलायम कि सिर्फ उन्हें देख कर मेरी सांस अटक गई। उनके दोनों उभार धीरे-धीरे हिल रहे थे, जैसे सांस भी उन्हें छू रही हो। त्वचा हल्की गुलाबी और गर्म थी, और उन पर पड़ती हल्की रोशनी उन्हें और भी खूबसूरत बना रही थी।
उनके निपल्स हल्के गुलाबी, बिल्कुल टाइट… जैसे उन्हें ठंड और मेरी नज़दीकी दोनों एक साथ महसूस हो रही हो। वह इतना खूबसूरत नज़ारा था कि एक पल को मैं सिर्फ उन्हें देखता रह गया, बिना पलक झपकाए।
मैंने वाणी के खुले उभारों को देखते हुए खुद को संभाला। उसकी साँसें अभी भी भारी थी, और उसका बदन हल्के-हल्के काँप रहा था जैसे वह खुद को पूरी तरह मेरे हवाले करने के लिए तैयार हो।
वह मेरे और करीब आई, अपने दोनों हाथ मेरे सीने पर रखे, और कुछ सेकंड तक बस मेरी तरफ देखती रही, शरम, चाह और यकीन तीनों उसकी आँखों में साफ दिख रहे थे।
फिर वह बहुत धीरे से बोली, “गोलू… क्या मैं अब… बिस्तर पर लेट जाऊँ? ताकि… तुम मुझे बाँध भी सको।”
मैंने वाणी दीदी की बात सुनी तो मेरा दिल तेज़ धड़कने लगा। उसने खुद अपनी इच्छा से यह कहा था, उसकी आवाज़ में चाह भी थी और पूरी तरह भरोसा भी।
मैंने बहुत धीमे से जवाब दिया, “हाँ वाणी दीदी… लेट जाओ।”
मेरे शब्द सुनते ही उसने एक लंबी, गर्म साँस छोड़ी और बिस्तर की तरफ मुड़ी। उसके कदम हल्के-हल्के काँप रहे थे, पर उसके भीतर का भरोसा साफ दिख रहा था। वह बिस्तर पर चढ़ी, अपने खुले उभारों को बिल्कुल भी नहीं छुपाया। उसके स्तन सांसों के साथ उठ गिर रहे थे और उसकी नंगी त्वचा कमरे की हल्की रोशनी में और भी खूबसूरत दिख रही थी।
वाणी दीदी धीरे से बिस्तर पर लेट गई।उसने अपने हाथ ऊपर की ओर फैला दिए, जैसे खुद बता रही हो कि वह आज मेरे कंट्रोल में रहने के लिए तैयार थी। उसके निपल्स अभी भी टाइट थे, उसकी साँसें तेज़ थी और उसकी आँखों में चाह साफ चमक रही थी।
मैं धीरे-धीरे उसके पास पहुँचा। फर्श पर उसकी उतरी हुई टी-शर्ट अभी भी पड़ी थी। मैंने झुक कर उसे उठाया, कपड़ा अभी भी हल्का गरम था, जैसे उसका शरीर उसमें बसा हो। मैं बिस्तर की तरफ गया और उसके बिल्कुल पास बैठ गया।
वाणी दीदी ने मेरी तरफ देख कर बहुत हल्के से कहा, “गोलू… बाँध दो…” उसकी आवाज़ में इतनी नरमी थी कि मेरा पूरा शरीर सिहर गया। मैंने उसके हाथों को धीरे से पकड़ा, वह मेरे स्पर्श पर हल्की सी काँपी। मैंने उसकी टी-शर्ट को लंबी पट्टी की तरह मोड़ा और उसके हाथों की कलाई पर लपेटना शुरू किया। कपड़ा उसकी त्वचा पर रगड़ खाता हुआ ऊपर चढ़ रहा था और वह हर स्पर्श पर हल्की-हल्की साँसें छोड़ रही थी।
मैंने उसके हाथ बिस्तर के लकड़ी वाले हिस्से तक खींचे और उस पर धीरे से टी-शर्ट बाँध दी, इतनी कस कर कि वह हिले तो महसूस हो, पर दर्द ना हो।
वाणी दीदी के दोनों हाथ अब बंधे हुए थे। उसने आँखें बंद कर ली, जैसे खुद को पूरी तरह मेरे हवाले कर दिया हो। उसकी साँसें और गहरी हो गई, और उसका सीना हर साँस के साथ खूबसूरती से उठ गिर रहा था।
मैं उसके ऊपर झुक कर उसे देखने लगा, जैसे कोई सामने सजाए केक को देखता है, जिसे सिर्फ उसी के लिए बनाया गया हो। उसकी नंगी त्वचा, उसके उभार, उसकी फैली हुई बाहें… सब कुछ मुझे उसी पल अपना बना रहा था।
मेरे अंदर एक अजीब सी खुशी भर गई। वाणी दीदी मुझ पर इतना भरोसा कर रही थी कि वह मेरे लिए कुछ भी कर सकती थी, और यह एहसास मेरे लिए नशे जैसा था।
मैं अंदर ही अंदर मुस्कुराया। आज मैं उसके साथ कुछ नया करने के लिए पूरी तरह तैयार था, कुछ ऐसा, जिसे शायद हमने कभी सोचा भी नहीं था, लेकिन जिसका इंतज़ार हम दोनों बहुत समय से कर रहे थे।
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