पिछला भाग पढ़े:- जुड़वाँ दीदियों के साथ जिस्म की चाहत-2
भाई-बहन सेक्स कहानी अब आगे-
उस दिन के बाद मेरे और नेहा दीदी के बीच कुछ हल्का सा पनपने लगा जिसको मैं समझ नहीं पा रहा था। हालांकि उन्होंने उसके बाद मुझे उनके बदन को छूने नहीं दिया। मैं बस चुप-चाप उनके साथ बैठ कर पढ़ाई करता और कुछ भी नहीं।
दूसरी तरफ पायल दीदी को छूने की तमन्ना मेरे दिल में और ज्यादा घर करने लगी। नेहा दीदी को छूना बेशक कमाल का था, लेकिन मेरी प्यारी पायल दीदी को छूने का सपना मैं अपने दिल से निकाल नहीं पा रहा था।
धीरे-धीरे ये सब मेरे लिए एक आदत बन गया। जब भी पायल दीदी मुझे किताब पर कुछ समझातीं, मैं जान-बूझ कर थोड़ा और उनके पास खिसक जाता। वो उँगली से लाइन दिखाती और मैं उसी बहाने उनके हाथ को हल्के से छू लेता। जब कभी मैं नहाने जाते समय कपड़े ले जाना ‘भूल’ जाता, तो दरवाज़े के बाहर खड़ी होकर वो कपड़े थमा देती। उनके हाथ का स्पर्श महसूस होते ही मेरा दिल और तेज़ धड़कने लगता। मैं उनका हाथ एक दो सेकंड ज़्यादा पकड़ कर रखता जैसे गलती से फिसल गया हो… और वो बस हल्का सा मुस्कुरा देती।
कभी-कभी मैं सिरदर्द का नाटक करता और उनके कमरे में जाकर कहता, “दीदी… गोद में सिर रख लूँ क्या?” वो बिना हिचके मेरी मालिश करने लगती, उनका स्पर्श गर्म, मुलायम और बहुत करीब महसूस होता था। जब कभी वो मेरी कनपटियों पर हाथ फेरती, मैं हल्का सा हिल जाता और मेरा हाथ उनके स्तनों को छू जाता। मैं तुरंत मासूम चेहरा बना कर कह देता, “अरे… सॉरी दीदी, गलती से हो गया।”
वो कुछ पल रुकती, मुझे देखती… फिर धीमे से कहती, “ठीक है… ध्यान से।” लेकिन उस छोटे से पल में जो गर्मी उठती… वो दोनों महसूस करते थे।
एक दिन पायल दीदी मेरे कमरे में पढ़ाने आई। उन्होंने ढीला सा टी-शर्ट और हल्का सा छोटा शॉर्ट्स पहन रखा था। जैसे ही वो कुर्सी पर बैठी, उनकी टी-शर्ट के गले से उनकी लंबी, गहरी क्लीवेज साफ़ दिखाई दे रही थी। मैं झुक कर देख नहीं रहा था, लेकिन जहाँ मैं बैठा था, वहाँ से एक हल्की सी झलक खुद ब खुद दिख रही थी। जब वह थोड़ा झुकती, उनकी टी-शर्ट थोड़ी और ढीली हो जाती… और उसमें से उनकी ब्रा की झलक भी मुझे साफ़ नजर आ रही थी। मैं किताब पर नहीं, बस उसी हल्की सी लाइन पर टिका हुआ था।
वो पढ़ा तो रही थी, लेकिन मेरा ध्यान किताब से कहीं ज़्यादा उनके बदन की हर हलचल पर था। उनके बाल बार-बार चेहरे पर गिरते, और जब वो उन्हें पीछे करती, उनकी टी-शर्ट के गले के पास और अंदर की झलक एक बार फिर साफ़ हो जाती। मैं पेन हाथ में लिए उनके हर मूवमेंट को देख रहा इतना चुप-चाप कि उन्हें खुद भी पता नहीं चलता कि मैं कहाँ देख रहा हूँ।
वह मुझे रीप्रोडक्शन सिस्टम समझा रही थी, लेकिन मेरी साँसें उसके हर झुकने उठने पर अटक रही थी। तभी मैंने थोड़ा हिचकिचाते हुए कहा,“दीदी… मुझे एक छोटा सा डाउट है।”
उसने किताब बंद नहीं की, बस रुक कर मेरी तरफ देखा धीरे, ध्यान से, जैसे समझ रही हो कि मैं अब पढ़ाई वाला सवाल नहीं पूछने वाला।
“हूँ… क्या डाउट है? बोल ना।” उसकी आवाज़ नर्म थी, लेकिन उसमें एक हल्की सी गर्मी थी जो पहले नहीं थी।
मैंने गला साफ़ किया, थोड़ा नज़रें नीची की, फिर धीमे से कहा, “अगर… कोई आदमी किसी औरत के साथ हो… तो उसे कैसे पता चलता है कि वो… वो भी उसके साथ सेक्स करना चाहती है या नहीं?”
मैं जैसे ही ये बोला, वो एक-दम चुप हो गई।
पहले उसने सोचा शायद उसने गलत सुना है। फिर उसने धीरे-धीरे अपना चेहरा उठा कर मुझे देखा। सीधा मेरी आँखों में। उसकी आँखें बड़ी हो गई थी, जैसे उसे यकीन ही नहीं हो रहा हो कि मैंने सच में ऐसा सवाल पूछा।
उसकी साँस थोड़ी रुक गई, फिर उसने धीरे से कहा, “तू… ये क्या पूछ रहा है?”
उसका चेहरा हमेशा की तरह शांत नहीं था, उसमें हैरानी थी, थोड़ी सी शर्म भी… और कुछ ऐसा जो मैं पहले कभी नहीं देख पाया था।
मैंने नज़रें नहीं हटाई। “मैं बस समझ नहीं पा रहा था,” मैंने कहा, “किताब में तो सब लिखा है… पर असल में कैसे पता चलता है कि वो तैयार है या नहीं?”
वह कुछ पल तक मुझे बस देखती रही, लंबे, बिना पलक झपकाए हुए। जैसे उसे यकीन नहीं हो रहा था कि मैं ये बातें उससे पूछ रहा था… और फिर भी वो सवाल उसके अंदर कहीं गहराई तक उतर रहा था।
“ये सवाल…” उसने फुसफुसाते हुए कहा, “पढ़ाई का नहीं है।”
मैंने धीरे से जवाब दिया, “हाँ… लेकिन जवाब तुमसे ही चाहिए।”
वो कुछ देर चुप रही, जैसे अपने शब्द चुन रही हो। फिर उसने धीरे से किताब एक तरफ सरका दी और सीधी बैठ गई।
“देख,” उसने कहा, “ये चीज़ किसी एक इशारे से तय नहीं होती। औरत अगर किसी के साथ होना चाहती है, तो सबसे पहले… वो खुद बात-चीत में खुल कर रहती है। उसकी बॉडी लैंग्वेज रिलैक्स होती है। वो नज़रें चुराती नहीं… बल्कि सामने वाले को देखती है।”
मैं चुप-चाप सुनता रहा और यहीं पर अचानक मेरे मुँह से निकल गया, “क्या आपने… कभी सेक्स किया है पायल दीदी?”
जैसे ही मैंने ये पूछा, वह एक-दम सख़्त हो गई। उसका चेहरा तुरंत बदल गया, नर्मी की जगह एक साफ़ सी नाराज़गी और हैरानी। वह किताब को अपने पास खींचते हुए बोली, “ऐसे सवाल मत पूछा करो। ये ठीक नहीं है।”
उसकी आवाज़ पहले से ज़्यादा सख़्त थी। उसने मेरी आँखों में देखते हुए कहा, “और नहीं… मैंने कभी सेक्स नहीं किया है। अपनी ज़िंदगी में कभी नहीं। समझे? अब पढ़ाई पर ध्यान दो। इस तरह की बातें मत करना। जो पढ़ना है, उस पर फोकस करो।”
मैं चुप बैठा रहा, लेकिन उसके सख़्त लहज़े के बाद भी मेरे अंदर की बात रुकी नहीं। कुछ सेकंड तक कमरे में पूरी ख़ामोशी रही। वो फिर से किताब खोलने ही वाली थी कि मेरी आवाज़ बहुत धीमे, लेकिन साफ़ बाहर निकली।
“लेकिन… मैं तुम्हारे साथ सेक्स करना चाहता हूँ, पायल दीदी।”
ये बोलते हुए मैंने हिम्मत करके अपना हाथ आगे बढ़ाया और धीरे से उसका हाथ छू लिया। बहुत हल्के से, जैसे पूछ रहा हूँ कि क्या मैं इतना भी कर सकता हूँ। वो एक-दम रुक गई। उसकी उँगलियाँ मेरे हाथ के नीचे ठहर गई। धीरे-धीरे उसने अपना चेहरा उठाया… और मेरी तरफ देखा।
वो धीरे से बोली, “गोलू… तुम क्या कह रहे हो?”
मैंने उसकी आँखों में देखते हुए बहुत धीमी आवाज़ में कहा, “मैं… हमेशा से तुम्हें ही प्यार करता हूँ, पायल दीदी।”
मेरी बात सुनते ही उसका चेहरा सख़्त सा हो गया, लेकिन मैं अपने आपको रोक नहीं पाया। जैसे कोई चीज़ भीतर टूट चुकी हो। उसी पल मेरा हाथ खुद ब खुद आगे बढ़ा और उसके टी-शर्ट के ऊपर से उसके सीने पर आ गया।
पहली बार… पहली बार मैं उसके शरीर को इस तरह छू रहा था। उसके टी-शर्ट और ब्रा के बावजूद उसकी नरमी मेरे हाथों में साफ़ महसूस हो रही थी। मैं उसके दोनों स्तनों को धीरे-धीरे दबाने लगा। साँस तक भारी हो गई थी।
वो एक-दम घबरा गई, हड़बड़ा कर बोली, “गोलू! ये… ये क्या कर रहे हो? ये गलत है!”
लेकिन उस वक्त मेरे कानों तक उसकी बात पहुँच ही नहीं रही थी। दिल जैसे मेरे हाथों में उतर आया हो और दिमाग कहीं दूर चला गया हो। मैंने उसकी बात सुनी ही नहीं और उसी तरह दबाए जा रहा था, पहली बार उसका शरीर इतने करीब, इतने गर्म महसूस हो रहा था।
वो फिर बोली, इस बार और ज़्यादा तेज़, “गोलू, स्टॉप! प्लीज़… ये मत करो!”
लेकिन मैं रुक नहीं पाया। उसकी आवाज़ काँप रही थी, लेकिन मेरे हाथ रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे। अचानक उसने पूरी ताकत से मुझे धक्का दिया। मैं पीछे की तरफ लड़खड़ा गया। और अगले ही पल उसका हाथ तेज़ी से मेरे गाल पर पड़ा।
वो लगभग कांपते हुए बोली, “दुबारा कभी मत करना ये!”
उसने एक सेकंड भी और रुकना सही नहीं समझा। उसकी आँखें लाल थी, आँसू लगातार गिर रहे थे। अगले ही पल वो दरवाज़ा खोल कर बाहर निकल गई।
कुछ दिन बीत गए। धीरे-धीरे मुझे समझ आने लगा कि पायल दीदी नेहा दीदी से बिल्कुल अलग सोच वाली है और जो कुछ मैं कर बैठा था, वह कितना गलत था। यह सोच कर मेरा मन हर रोज़ और भारी हो जाता था।
मैं अपने कमरे में चुप-चाप पड़ा रहता, बिना किसी से बात किए। खाना भी बस ज़बरदस्ती निगल लेता और फिर अंधेरे में पड़े-पड़े छत को देखता रहता। उस गलती का बोझ मुझे चैन नहीं लेने देता था। इन दिनों सिर्फ़ नेहा दीदी ही आती थी मेरे कमरे में। थोड़ी देर बैठ कर पढ़ाई समझाती थी। कुछ ही दिनों में उनके लेक्चर भी मुझे बोझ जैसे लगने लगे। मैं बस चुप-चाप सिर हिलाता रहता था, पर अंदर से उलझन और अकेलापन और गहरा होता जा रहा था।
एक दिन ऐसा भी आया जब वह कमरे में अंदर आई और मैंने पहली बार सीधे कह दिया, “मुझे पढ़ाई नहीं करनी।” मेरी आवाज़ में थकान और चिड़चिड़ाहट दोनों थे।
नेहा दीदी दरवाज़े पर ही रुक कर हल्का सा मुस्कुरा दी, जैसे मेरी यह हालत देख कर भी उन्हें कुछ समझ आ गया हो। वह धीरे-धीरे चल कर कमरे के अंदर आई और मेरी तरफ देखकर बोली “तो आज पढ़ाई नहीं…?”
मैंने नज़रें फेर ली। कुछ पल चुप रहने के बाद वह मुझे देखते हुए हल्के, थोड़ा शरारती आवाज में बोली, “तो क्या… तुम फिर से मुझे छूना चाहते हो?”
मैंने गहरी साँस लेकर उनकी तरफ देखा और पहली बार साफ़-साफ़ कहा “मुझे तुम्हारी छाती नहीं छूनी… बस प्लीज़, मेरे कमरे से चली जाओ।”
वह कमरे में आई, दरवाज़ा पीछे से बंद किया और सामने वाली कुर्सी पर आकर बैठ गई। उसका चेहरा सीधा मेरी तरफ था। बैठते ही उसने धीमी लेकिन साफ़ आवाज़ में कहा, “मैं छाती के बारे में बात नहीं कर रही… समझे?”
मैं कुछ बोल पाता उससे पहले ही उसने कुर्सी पर पीछे टिक कर अपने पैर हल्के से फैला दिए। उस सफ़ेद पायजामे में रेशमी धागे की हल्की चमक थी। जैसे ही उसके पैर थोड़ा खुले, मुझे साफ़ महसूस हुआ कि अंदर उसने काली पैंटी पहन रखी थी। मैं चुप था… लेकिन मेरी नज़र अपने आप वहीं खिंचती जा रही थी।
कुछ सेकंड की चुप्पी के बाद मैंने हिम्मत करके धीरे से कहा, “तुम… तुम शायद मेरा मज़ाक उड़ा रही हो।”
उसने मेरी बात सुनी, लेकिन जवाब देने की जगह उसने अपना दायाँ हाथ धीरे-धीरे ऊपर उठाया। फिर उसने अपनी दो उंगलियाँ अपने होंठों के नीचे ले जाकर हल्का सा गीला किया… उसकी नज़रें एक पल के लिए भी मुझसे नहीं हट रही थी।
इसके बाद उसने वही गीली उंगलियाँ अपने पायजामे पर, ठीक अपनी जाँघों के बीच वाले हिस्से पर रखी। कपड़े के ऊपर ही वह धीरे-धीरे रगड़ने लगी। इतना धीमे कि हर मूवमेंट साफ़ दिख रहा था।
उसकी सांस थोड़ी भारी हुई और वह झुक कर मेरी तरफ देखते हुए बोली, “बस… बता दो। तुम देखना चाहते हो ना? मैं छेड़ नहीं रही। पहले वादा करो… इसके बाद मेरी बात मानोगे। जो कहूँगी, सुनोगे।”
मैंने हाँ में सिर हिलाया तो उसने मेरी आँखों में सीधे देखते हुए हल्का सा शर्माया हुआ, दबा-दबा सा मुस्कान दिया। उस मुस्कान में एक अजीब सी गर्माहट थी… जैसे वो खुद भी समझ नहीं पा रही हो कि वो क्या करने जा रही थी।
वो धीरे-धीरे कुर्सी से उठी। उठते वक़्त उसकी कमर हल्का सा डोली, और उसकी सफ़ेद पायजामे की कमर वाली इलास्टिक उसके पेट की नरम त्वचा से हल्का चिपक कर ऊपर आई। वो खड़ी होकर दो सेकंड मुझे देखती रही, जैसे पूछ रही हो सच में देखना चाहते हो? फिर उसने दोनों हाथों से अपने पायजामे की इलास्टिक पकड़ी। उसकी उंगलियाँ थोड़ी कांप रही थी। उसने एक छोटी सी सांस अंदर ली… और फिर धीरे-धीरे पायजामा नीचे खींचना शुरू किया।
जैसे-जैसे पायजामा नीचे जा रहा था, उसकी जाँघें एक एक करके दिखाई देने लगी। गोरी, मुलायम, और हल्की सी ठंड में सिहरती हुई।
पायजामा घुटनों तक आते ही मुझे पहली बार साफ़ दिखी… उसकी काली पैंटी। बिल्कुल फिट, पतले कपड़े की, जिस पर रौशनी पड़ते ही उसकी शेप साफ़ झलक रही थी।
वो पैंटी दिखने पर उसने मुझे देखा। आँखों में शर्म भी थी और एक हल्की सी घबराहट भी… जैसी किसी ने पहली बार खुद को किसी के सामने इतना खुला छोड़ा हो। उसका चेहरा गुलाबी पड़ गया था, होंठ हल्के खुले हुए थे, जैसे बात करना चाहती हो पर शब्द फँस गए हो।
उसने पायजामा पूरी तरह उतार कर कुर्सी पर फेंक दिया। अब वह सिर्फ उस काली पैंटी में मेरे सामने खड़ी थी। उसकी जाँघों का अंदर वाला हिस्सा साफ़ दिख रहा था। नरम, थोड़ा सा तना हुआ, जैसे वो भी मेरे देखने से गर्म हो रहा हो।
मैं कुछ कह नहीं पाया… बस देखता रहा।
वो मेरे देखने से और भी लाल पड़ गई। फिर उसने दोनों हाथ पीछे ले जाकर पैंटी की कमर पकड़ी। इस बार उसके होंठों पर बहुत हल्की काँपती हुई मुस्कान थी, मानो खुद को समझा रही हो कि सब ठीक है।
उसने पैंटी को धीरे-धीरे नीचे खींचा। काली कपड़े की पतली लाइन उसकी त्वचा से अलग होते ही उसकी बॉडी पर एक हल्का सा रोमांच दौड़ गया, जो मैं साफ़ देख सकता था।
और फिर… पहली बार… मैंने नेहा दीदी की नाज़ुक हिस्सा साफ़ देखा। वह गोरा, मुलायम और बिल्कुल साफ़ था, जैसे उसने खुद को बहुत ध्यान से तैयार किया हो। दोनों तरफ की त्वचा हल्की सी गुलाबी थी, बीच में नमी की हल्की चमक, और उसके ऊपर हल्का सा बाल भी नहीं। उसकी जाँघें थोड़ा सा एक-दूसरे से सटी हुई थी, जैसे वो खुद भी पूरी तरह खुल कर दिखाने में झिझक रही हो।
चेहरे पर गहरी शर्म थी… लेकिन उसी शर्म में एक अजीब सी सच्ची खूबसूरती थी। उसके होंठ हल्के काँप रहे थे, आँखें कभी मेरे चेहरे पर जाती, कभी नीचे अपने शरीर पर। वो बिल्कुल चुप थी… पर उसकी साँसें बता रही थी कि ये उसके लिए भी उतना ही नया, उतना ही भारी पल है जितना मेरे लिए।
कुछ सेकंड तक वो खड़ी रही, फिर उसने धीरे से नज़र झुका ली… और वापस जाकर उसी कुर्सी पर बैठ गई। बैठते ही उसने अपनी टाँगो को थोड़ा सा फैलाया, जितना फैलाने में उसे कम शर्म महसूस हो। अब उसका नाज़ुक हिस्सा मुझे पहले से भी ज़्यादा साफ़ दिख रहा था, नज़दीक, खुला, और बिल्कुल असली।
उसने धीमी आवाज़ में कहा “इधर आओ… पायल दीदी के आने से पहले।”