पिछला भाग पढ़े:- मेरी गांड फाड़ चुदाई-2
अन्तर्वासना कहानी अब आगे-
मैंने वैसे लेटे लेटे पूछा, “संदीप गांड में कैसे छुड़वाओगे? तुम्हारा डंडे जैसा मोटा लंड गांड में जाएगा ही कैसे?”
संदीप बोला, “वो आप मत सोचो मैडम, जितना जाएगा उतना डाल कर ही छुड़वा दूंगा। मैडम गांड में गरम-गरम छुड़वाने का भी अपना ही मजा है।”
मैंने कह दिया, “ठीक है संदीप, फिर गांड में ही निकाल दे, मुंह में बाद में देखेंगे।”
संदीप बोला, “ठीक है मैडम, ऐसे ही लेटे रहिये।”
मैं वैसे ही बेड के किनारे पर चूतड़ पीछे करके लेटी रही। संदीप अलमारी में से गांड चुदाई में इस्तेमाल होने वाली क्रीम निकाल कर लाया और मेरी गांड के छेद पर लगा दी। थोड़ी क्रीम उंगली से गांड के अंदर भी लगा दी। फिर संदीप ने लंड को गांड के छेद पर बिठाया, और हल्का सा अंदर की तरफ दबा दिया। मुझे दर्द तो हुई मगर मैं बोली कुछ नहीं। संदीप ने लंड को थोड़ा और दबाया। मझे साफ़ पता चल रहा था के मेरी गांड का छेद थोड़ा सा फ़ैल रहा था। संदीप ने थोड़ा और लंड अंदर दबाया और पूछा, “मैडम ठीक हो, कोइ प्रॉब्लम तो नहीं?”
मैंने कहा, “संदीप दुःख तो रहा है, मगर ठीक है। कितना अंदर चला गया है? मेरी गांड का छेद तो लग रहा है फ़ैल गया है।”
संदीप बोला, “मैडम लंड का टोपा बैठ गया है। थोड़ा सा और अंदर डाल कर लंड का पानी छुड़ाता हूं।” ये कह संदीप ने लंड थोड़ा और अंदर कर दिया।
संदीप रुक कर बोला, “मैडम आधा अंदर चला गया है। कहो तो रुक जाऊं?”
मुझे अब मजा आने लग गया था। मैंने कहा, “थोड़ा और डाल ले अब तो दर्द के साथ-साथ मजा भी आने लग गया है।”
संदीप ने लंड बाहर निकाल लिया और गांड के छेद के ऊपर और अंदर ढेर सारी क्रीम लगा दी। संदीप ने लंड फिर गांड के छेद पर रखा और अंदर की तरफ दबाने लगा। कुछ ही देर मैं मुझे लगा के संदीप के टट्टे मेरे चूतड़ों को छू रहे थे। क्या संदीप का मोटा लंड पूरा मेरी गांड में बैठ गया था?
मैंने सर पीछे की तरफ मोड़ कर संदीप को पूछा, “संदीप क्या लंड पूरा अंदर बैठ गया है? तेरे टट्टे तो लग रहा है मेरी गांड को छू रहे हैं।”
संदीप ने धीरे-धीरे धक्के लगाते हुए कहा, “मैडम आपने पूरा लंड ले लिया है , जकड़ा पड़ा है आपकी गांड में मेरा लंड।” ये कह कर संदीप ने लंड आधा बाहर निकाला और झटके के साथ गांड में धकेल दिया।
इस पर मुझे बहुत दर्द हुआ और मैंने संदीप से कहा, “नहीं संदीप ऐसे नहीं, ऐसे बहुत दर्द करता है, धीरे-धीरे धक्के लगा और छुड़ा दे पानी।”
उधर एक हाथ नीचे करके मैं अपनी चूत का दाना रगड़ने लगी।
“ठीक है मैडम”, कह कर संदीप ने लंड पूरा गांड में बिठा दिया और धीरे-धीरे धक्के लगाने लगा। बीच-बीच में संदीप पूरा लंड बाहर निकाल कर एक झटके के साथ गांड में बिठाता था। जब संदीप ऐसा करता था तो दर्द के साथ साथ जन्नत जैसा मजा मिलता था। कुछ ही देर में संदीप को मजा आने वाला हो गया।
संदीप धक्के भी लगाता जा रहा था और बोलता भी जा रहा था, “मैडम आज तो मजा ही आ गया। ऐसा मजा तो अब तक नहीं आया। मन कर रहा है पूरी रात चुदाई करूं आपकी।” बोलते-बोलते अचानक से संदीप ने लंड पूरा बाहर निकाला और एक ही झटके में गांड में डालता हुआ बोला, “लो मेरी जान मैडम, निकला अब आपकी गांड में।”
ये बोलते ही संदीप के लंड में से ढेर सारी गरम गरम मलाई निकली और मेरी गांड उस मलाई से भर गयी। नीचे मेरी चूत भी पानी छोड़ने ही वाली थी। मैंने जोर-जोर से चूत का दाना रगड़ना शुरू किया और मुझे भी मजा आ गया। मजा आते ही मैं आगे की तरफ ढेर हो गयी। संदीप का आधा खड़ा लंड पल्प की आवाज के साथ मेरी गांड में बाहर निकल गया।
संदीप जा कर सोफे पर बैठ गया और पांच मिनट लेटने के बाद मैं सीधी हुई और गांड को हाथ लगाया तो मेरा हाथ संदीप के लेसदार पानी से भर गया। मैंने हाथ संदीप की तरफ करते हुए कहा, “ये देख संदीप।”
संदीप ने लंड हाथ में ले कर कहा, “मैडम आज की चुदाई मैं नहीं भूल पाऊंगा। मेरा तो लंड भी दुःख रहा है।” ये कह कर संदीप बाथरूम की तरफ चला गया। मैंने पास पड़े तौलिये से गांड साफ़ की और चूत को हाथ लगाया तो हल्की सी दर्द हुई। रागिनी ठीक ही कह रही थी, संदीप के मोटे लंड की चुदाई से उसकी चूत फूल गयी थी। यही हाल अब मेरी चूत का भी था। चूत ही क्यों, मुझे तो लग रहा था मेरी गांड का छेद भी हल्का फूल गया था।
एक घंटे की लगातार की चुदाई और ऊपर से जिन, मुझे जोर का पेशाब लग रहा था। मैं उठी और संदीप का इंतजार किये बिना ही बाथरूम में चली गयी। संदीप पेशाब कर रहा था। मुझे देख कर बोला, “क्या हुआ मैडम पेशाब आ गया है क्या जोर का?”
मैंने हंसते हुए कहा, “और क्या, दो घंटों की चुदाई और जिन। अगर मैं पांच मिनट भी और रुकी तो निकल जाएगा मेरा।”
संदीप पेशाब कर चुका था। लंड को हिला कर बचा खुचा पेशाब निकाला हुए टॉयलेट सीट पर बैठ गया।
मैंने कहा, “गांडू संदीप मुझे पेशाब तो करने दे, निकल जाएगा मेरा।”
ही-ही करके हंसते हुए संदीप बोला, “मैडम आपको पेशाब करवाने के लिए ही तो बैठा हूं। आईये बैठिये मेरी गोद में और डालिए अपनी फुद्दी का गर्म-गर्म अमृत मेरे लंड के ऊपर।”
मैं संदीप की बात से हैरान हुई, लेकिन मुझे भी मस्ती आ गई। मैं टांगें चौड़ी करके संदीप की गोद में संदीप की तरफ मुंह करके बैठ गयी।
संदीप ने मेरे होंठ अपने होठों में ले लिए और एक हाथ नीचे करके मेरी चूत पर रख दिया। संदीप ने मेरी चूत को थपथपाया – मतलब इशारा था कि मैं अब मूतूं।
मैंने चूत ढीली छोड़ दी। सुर्र-सुर्र करता हुआ पेशाब निकलने लगा। इधर मेरा पेशाब निकल रहा था, उधर संदीप चूत को थपथपा रहा था। ठप्प-ठप्प की मस्त आवाजे आ रही थ। ढेर सारा पेशाब निकला मेरी चूत में से।
पेशाब करके जैसे ही मैं उठने लगी, संदीप ने मझे फिर बिठा लिया और हाथ की उंगली मेरी चूत में अंदर-बाहर करने लगा। मुझ में अब और चुदाई करवाने की हिम्मत नहीं थी, मगर मुझे मजा आने लग गया था।
मैंने संदीप को जकड़ लिया और चूतड़ हिलाने लगी। संदीप भी जोर-जोर से उंगली चूत में अंदर-बाहर करने लगा। उधर मुझे संदीप का लंड नीचे महसूस होने लगा था। संदीप का लंड फिर से खड़ा होने लग गया था। मैं ना तो उठी, ना मैंने संदीप को चूत में उंगली करने से रोका, उल्टा चूतड़ हिलाने के साथ-साथ अपने मम्मे संदीप के बालों से भरी छाती पर रगड़ने लगी।
पांच-सात मिनट में ही मेरा पानी निकल गया। मुझे फिर मजा आ गया था। मुंह तो मेरा बंद था, बस “हूं हूं हूं” की आवाज ही मेरे मुंह से निकली। मुझे समझ नही आ रहा था की मुझे क्या हो गया था। अब तक मेरी चूत छह-सात बार पानी छोड़ चुकी थी।
संदीप समझ गया कि मुझे फिर मजा आ गया था। संदीप ने मेरे होठों से अपने होंठ हटा लिया और बोला, “क्या हुआ मैडम फिर से मजा आ गया? मगर मेरा लंड अब खड़ा हो गया है, इसका क्या करूं?”
मैंने कहा, “संदीप अब चुदवाने का दम नहीं हैं मुझमें। मेरे दोनों छेद दुःख रहे हैं। उल्टा तू मेरी गांड और चूत देख कर बता क्या हालत क्या हालत बनाई है तूने इनकी।”
फिर मैं कुछ रुक कर बोली, “और संदीप तू अपने लंड की चिंता मत कर, अभी एक और जगह है तेरा लंड लेने के लिये।” ये कह कर मैंने “आआ,,, आ” करके मुंह खोल दिया और संदीप की गोद से उठ गयी।
तौलिये से चूत पोंछ कर मैंने तौलिया संदीप की तरफ बढ़ा दिया। संदीप ने भी अपनी टांगें और लंड पोंछा और खड़ा हो गया। हम दोनों फिर कमरे में आ गये। घड़ी की तरफ देखा तो चार बज गये थे। मतलब चार साढ़े चार घंटे हमारी चुदाई हुई थी। मैं सोफे पर बैठ गयी। संदीप मेरे पास ही बैठ गया और बोला, “मैडम कैसी रही आज की चुदाई, यादगार बनी या नहीं चुदाई?”
मैंने जवाब दिया, ये तो तू मेरी चूत और गांड देख कर बता।” ये कह कर मैं बिस्तर के किनारे पर सीधी लेट गयी और टांगें उठा कर टांगें चौड़ी कर दी।
संदीप उठा और नीचे बैठ कर पहले मेरी चूत और फिर गांड को देखा। संदीप ने दोनों छेदों का चुम्मा लिया, थोड़ा चूत और गांड को चाटा और मोबाइल के कैमरे से चूत और गांड दोनों की फोटो खींच कर मोबाइल मेरे हाथ मैं पकड़ा दिया और बोला, “लो मैडम खुद ही देख लो और बताओ, यादगार चुदाई हुई या नहीं?”
मैंने मोबाइल में फोटो देखी चूत हल्की से फूली हुई थी। मगर गांड का छेद कुछ ज्यादा ही फूला-फूला लग रहा था। संदीप भी नीचे ही बैठा हुआ था। मैंने कहा, “संदीप, चुदाई तो तूने यादगार ही की है, पता नहीं कितनी बार पानी छुड़ा दिया – छह बार या शायद सात बार।” ये सुनते ही संदीप फिर से मेरी चूत और गांड चाटने लगा।
मुझे लगा अगर संदीप ऐसे ही चाटता रहा तो मेरी चूत फिर गरम हो जाएगी। अब मुझमें एक और चुदाई के हिम्मत नहीं थी। मैंने कहा, “नहीं संदीप, अब और मत चाट, नहीं तो एक और चुदाई करनी पड़ जाएगी – चल तुझे चूस कर मजा देती हूं।”
संदीप उठ कर खड़ा हो गया और मैं बेड पर ही बैठ गयी। संदीप ने लंड मेरे मुंह के आगे कर दिया। मैंने संदीप का लंड मुंह में लिया और अपना हाथ संदीप के पीछे करके उंगली संदीप की गांड में घुसेड़ दी। मेरी उंगली खड़े संदीप की गांड में जा नहीं रही थी। संदीप समझ गया कि मैं उसकी गांड में उंगली डालना चाहती थी। संदीप ने अपने एक टांग उठाई और बेड पर रख दी। अब ठीक था। अब मेरी उंगली संदीप की गांड के अंदर चली गयी थी।
अजीब नजारा था। संदीप का लंड मेरे मुंह में और मेरी उंगली संदीप की गांड में। मैं लंड चूसते-चूसते सोच रही थी, आज की चुदाई जैसा मजा तो कभी भी नहीं आया, ना असलम के साथ के साथ ना आलोक के साथ और ना ही किसी और के साथ। लेकिन इसका मतलब ये नहीं था कि मैं अब संदीप से जब उसका मन आये चुदवाने ही लग जाऊंगी। हां कुछ ख़ास तरह का प्रोग्राम बन जाए तो बात अलग है।
संदीप जोर-जोर से लंड में मुंह में आगे-पीछे कर रहा था। मेरी चूत में भी खुजली मचने लगी थी। मैंने अपनी उंगली संदीप की गांड में से निकाली और टांगें चौड़ी करके उंगली अपनी चूत में डाल ली। थोड़ी ही देर में मुझे मजा आने वाला हो गया। मैंने संदीप का लंड जोर-जोर से चूसते हुए मुंह को आगे-पीछे करना शुरू कर दिया।
जल्दी ही संदीप का छूटने वाला हो गया। संदीप बोला, “मैडम मेरा लंड पानी छोड़ने वाला है, आप कहें तो लंड मुंह में से निकाल लूं?” मैं मस्ती से भरी पड़ी थी। मेरी चूत भी पानी छोड़ने वाली थी। मैंने बिना लंड मुंह से निकाले ना में सर हिला दिया।
दो ही मिनट में मेरी चूत का पानी निकल गया। मजे के मारे मैंने और “हूं-हूं” करते हुए जोर-जोर से संदीप का लंड चूसना शुरू कर दिया। संदीप बोलने लगा, “आह मैडम, निकला, निकला मैडम आपके मुंह में।”
और संदीप के गले से आवाज निकली, “आह, घररर्र, आह, ये गया, आह” और इसके साथ ही संदीप के लंड से ढेर सारा गरम पानी निकला और मेरा मुंह उससे भर गया। मैंने एक बार संदीप की तरफ देखा और पूरा पानी गटक लिया। लंड का हल्का नमकीन गर्म-गर्म पानी गले से नीचे उतरते ही मुझे लंड के पानी में से मस्त करने वाली खुशबू आयी।
संदीप के लंड ने पानी छोड़ना बंद कर दिया था, मगर संदीप ने लंड मेरे मुंह से बाहर नहीं निकाला और लंड को चूसती रही। जल्दी ही संदीप का लंड ढीला हो गया। संदीप बोला, “मैडम आज तो मजा ही आ गया, मस्त यादगार चुदाई हुई है आज।”
मैंने संदीप का लंड मुंह में से निकाल लिया और बोली, “संदीप बहुत मस्त चोदता है तू, मुझे भी आज बहुत मजा आया है। पता नहीं कितनी बार मेरी चूत ने पानी छोड़ा है आज? अभी तेरा लंड चूसते-चूसते मुझे फिर से मजा आ गया। मैंने कपडे उठाए और बाथरूम की तरफ चल पड़ी। जाते जाते मैंने संदीप से कहा, “संदीप, मैं नहा कर निकलूंगी, किसी को चाय के लिए बोल दे।”
संदीप ने हां में सर हिलाया और मैं बाथरूम में चली गयी। पंद्रह मिनट के बाद मैं पूरी तरह तैयार हो कर बाथरूम से निकली। संदीप भी तैयार हो चुका था। हम दोनों आगे वाले ऑफिस में आ गए। दो मिनट के बाद ही एक लड़का ट्रे में चाय ले कर है आ गया।
चाय की चुस्कियां लेते-लेते मैंने संदीप से पूछा, “संदीप, तू जब भी मिलता था मेरी चूत को घूरता था, चोदना चाहता था मुझे। अब बता आज तेरी मुझे चोदने की इच्छा अच्छे से पूरी हो गयी या नहीं?” फिर मैंने घड़ी की तरफ नज़र डालते हुए कहा, “पूरे पांच घंटे चोदा है साले तूने आज मुझे, वो भी हर तरह से। गांड भी नहीं छोड़ी तूने।”
संदीप हंसते हुए बोला, “मैडम सच कहूं तो आज आपको चोदने का इतना मजा मुझे आया है, आज से पहले इतना मजा कभी भी किसी के साथ भी चुदाई करने का नहीं आया।” फिर कुछ रुक कर बोला, “मैडम अब अगली चुदाई कब होगी?”
मैंने कप मेज पर रखा और कहा, “नहीं संदीप, अब नहीं होगी। हां कुछ ख़ास ही प्रोग्राम बन जाए तो बात अलग है। हम दोनों एक ही शहर में रहते हैं, इसलिए जितना हो गया यही बहुत है। बाकी तू जब मर्जी मेरे क्लिनिक में आ जितना दिल चाहे मेरी चूत को घूर, मगर चुदाई नहीं।”
संदीप कुछ मायूस सा हो गया। कुछ देर तो संदीप चुप रहा और फिर बोला, “ठीक है मैडम। मगर आप जब भी आना चाहें मेरे ऑफिस में आपका स्वागत है।
मैंने कहा, “रहने दो संदीप, ड्राइवर छोड़ देगा।”
संदीप बोला, “अरे मैडम ऐसे कैसे? बातें करते हुए जाएंगे, इतनी अच्छी चुदाई हुई आज, मैं ही जाऊंगा आपको छोड़ने।”
मैंने भी कह दिया, “चल ठीक है।”
हम दोनों कार में बैठ कर निकल पड़े। रास्ते में संदीप ने पूछा, “मैडम वो जो आप कह रही थी, कुछ ख़ास प्रोग्राम बना तो देखेंगे। मैडम क्या होगा वो ख़ास प्रोग्राम?”
मेरी हंसी छूट गयी। मैंने कहा, “क्या बात है संदीप, इतनी चुदाई करके भी मन नहीं भरा? हर जगह तो लंड डाल लिया तूने। हर जगह अपने लंड का पानी छुड़ा लिया – चूत में, गांड में, मुंह में। अभी भी कुछ रह गया है?”
संदीप ने अपना एक हाथ मेरी जांघ पर रखा और चूत को हल्का दबाते हुए कहा, “मैडम सच कहूं, आज की चुदाई तो सच में ही गज़ब की चुदाई थी। मैंने आज तक ऐसी मस्त चुदाई नहीं की। मस्त चुदाई करवाती हैं आप। तभी तो पूछ रहा हूं, क्या ख़ास प्रोग्राम हो सकता है जिसकी आप बात कर रही थी?”
मैंने संदीप का हाथ अपनी चूत पर दबाते हुए कहा, “दो गाये और दो सांड।”
संदीप एक पल के लिए चुप हुआ जैसे मेरी बात दो गाय और दो सांड का मतलब समझने की कोशिश कर रहा हो। फिर जब वो बात को समझा तो बिला, “वह मैडम, मजा ही आ जाएगा। मगर दूसरी गाय और दूसरा सांड?”
मैंने कहा, “संदीप दूसरी गाय को तो जानता ही है, उसे चोद भी चुका है। बस दूसरा सांड ढूढ़ना है।”
संदीप हैरानी से बोला, “दूसरी गाय को मैं जानता हूँ, और चोद भी चुका हूं?” फिर कुछ सोचते हुए बोला, “मैडम कहीं आप रागिनी जी की बात तो नहीं कर रही?” ये कह कर संदीप ने अपन हाथ मेरी चूत से हटा कर अपना लंड खुजला लिया।
मैंने अपने हाथ से संदीप का लंड दबाते हुए कहा, “बिलकुल, दूसरी गाये रागिनी ही होगी – क्यों अच्छा नहीं है क्या?”
संदीप ने मेरा हाथ अपने लंड पर दबाते हुए कहा, बिलकुल अच्छा है मैडम, मस्त हो कर चुदती हैं रागिनी जी। और मैडम दूसरा सांड?”
मैंने कहा, “वो दूसरा सांड मुझे ढूढ़ना पड़ेगा।”
संदीप बोला, “मैडम अगर आप कहें तो मैं ढूंढूं?”
मैंने कहा, “नहीं संदीप, कानपुर का नहीं होना चाहिए, मुझ पर छोड़ दे, मैं ही ढूंढूंगी।”
इसी तरह बाते करते-करते मेरा क्लिनिक आ गया। मैं उतरी और संदीप से बोली, “आओ संदीप।”
संदीप बोला, नहीं मैडम आज नहीं। अंदर जा कर कहीं फिर ना चुदाई का मूड बन जाय। अब और चुदाई की हिम्मत नहीं है। मेरा तो लंड भी दुख रहा है।”
संदीप की क्या बात थी, मेरी तो अपनी चूत और गांड फूली पड़ी थी। मैंने हंसते हुए कहा, “मेरी तो अपनी भी यही हालत है। दोनों छेद लगता है फूले हुए हैं। चल फिर बनाते हैं कोइ बढ़िया सा प्रोग्राम।”
संदीप भी हंसते हुए बोला, “वो दो गाये और दो सांड वाला?”
मैंने भी “हां” कहा और अंदर जाने के लिए मुड़ गयी। शाम हो ही गयी थी। प्रभा खाना बना कर अपने कमरे में जा चुकी था। मेरा मन भी खाने का नहीं था। मैंने कपड़े बदले, नाईटी पहनी और लेट गई। लेटे-लेटे संदीप के साथ हुई ताबड़तोड़ चुदाई का ध्यान आ गया और मैंने एक बार अपनी चूत को छुआ तो लगा सच में ही फूली हुई थी। मैंने गांड पर उंगली चलाई। तो वहां का भी यही हाल था। मुंह में अभी भी संदीप के लंड का स्वाद आ रहा था। ताबड़तोड़ चुदाई का सोचते-सोचते ही मुझे नींद आ गयी।
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