जब मैं अठारह का हुआ, उस समय मेरी ज़िंदगी में पहली बार एक लड़की आई थी — मेरी गर्लफ्रेंड। वो मेरी क्लास में थी और मैं उसे लेकर बहुत ज़्यादा सीरियस था। एक दिन हिम्मत करके मैंने पहली बार उसे किस्स करने की कोशिश की, लेकिन उसी दिन उसने मुझसे ब्रेकअप कर लिया। उसने कहा कि मैं बहुत इमोशनल हूं और उसे ऐसा लड़का नहीं चाहिए जो उस पर इतना निर्भर हो। उस शाम मैं पूरे समय अपने कमरे में रोता रहा, और शायद पहली बार दीदी ने मुझे उस हालत में देखा था।
वो मेरे पास आई, मेरे बालों में उंगलियां फेरने लगी, और बार-बार मुझे चुप कराने की कोशिश करने लगी। लेकिन मैं चुप नहीं हो रहा था। मेरी आंखें सूज चुकी थी, गला बैठ गया था। दीदी ने मेरे गालों को अपने हाथ में लेकर कहा, “चुप हो जा ना, पागल… कोई भी तुझे यूं रोते हुए देखेगा तो तड़प जाएगा।”
मैंने कुछ नहीं कहा, बस उसकी आंखों में देखने लगा। अचानक उन्होंने अपना चेहरा मेरे करीब किया और मेरे होंठों पर अपने होंठ रख दिए। वो एक छोटा सा, हल्का सा, कोमल और बहुत ही भावुक किस्स था।
वो मेरी ज़िंदगी का पहला ऐसा लम्हा था जब किसी ने मुझे बिना शर्त, बिना वजह चूमा था। उनके होंठों की गर्मी मेरे पूरे जिस्म में दौड़ गई। वो नरम थे, गीले थे, और उनमें एक अजीब सुकून था। उस एक पल में मैं सब कुछ भूल गया — वो लड़की, उसका ब्रेकअप, और अपनी तकलीफ़। बस एक मीठी सी गर्मी मेरे सीने में भरती चली गई।
उस दिन के बाद दीदी को देखने का मेरा नज़रिया बदलने लगा। जब भी वो मेरे सामने आती, मेरी नज़रें अक्सर उनके शरीर के हिस्सों पर टिक जाती। कभी उनकी उभरी हुई छातियां, तो कभी उनका झांकता हुआ पेट, या फिर उनकी चलती हुई गोल मांसल गांड।
एक बार जब वो कपड़े बदल रही थी, और दरवाज़ा पूरा बंद नहीं था, मैंने उनकी झलक देख ली — उनकी सफ़ेद जांघें। उनकी कसी हुई पैंटी और उस के किनारों से झांकती उनकी रसभरी त्वचा। वो नज़ारा मेरे ज़हन में इस कदर बस गया कि मैं उन्हें बार-बार देखने की कोशिश करने लगा। अब मैं अक्सर दरवाज़े की दरारों से झांकने की कोशिश करता, या तब कमरे में घुसता जब वह नहा कर बाथरूम से बाहर निकल रही होती।
धीरे-धीरे दीदी को भी ये महसूस होने लगा कि मेरी नज़रें अब वैसी नहीं रही। लेकिन उन्होंने मुझे कभी रोका नहीं। कई बार तो ऐसा हुआ कि वो जान-बूझ कर अपने गले की नेकलाइन ढीली कर देती, जिससे उनकी क्लीवेज झलकती रहे। कभी बिस्तर पर लेटते हुए वो ऐसे झुकती कि उनकी छाती का नज़ारा मेरी आंखों में उतर जाए। और मैं, दीवाना बना उन्हें हर बार चुप-चाप देखता रहता।
एक दिन जब हम दोनों घर पर अकेले थे और किचन में ब्रेकफास्ट कर रहे थे। अचानक उनके हाथों से गर्म दूध ग्लास उनके टाॅप पर छलका। वो जोर से चिल्लाई और दर्द से तड़प उठी। दूध इतना गर्म था कि उन्होंने तुरंत ही अपना टॉप खींच कर उतार दिया — और उसके नीचे उनकी ब्रा भी गीली होकर चिपक चुकी थी, जिससे जलन और भी बढ़ गई थी। दर्द से कराहती हुई दीदी ने झट से अपनी ब्रा भी खोल दी, लेकिन फिर भी उनकी त्वचा जलती रही और वो तकलीफ़ में हांफने लगी। मैं हक्का-बक्का खड़ा सब देख रहा था।
मैं दौड़ कर फ्रिज के पास गया और देखा वहां ठंडा चॉकलेट सिरप रखा था। बिना कुछ सोचे मैंने वो बोतल निकाली और सीधा दीदी के पास पहुंच गया। उनके सीने पर जहां जलन के निशान थे, वहां धीरे-धीरे मैंने ठंडा चॉकलेट सिरप डालना शुरू किया। जैसे-जैसे वो ठंडी मिठास उनकी जलती त्वचा से टकराई, दीदी की सांसें गहराने लगी और उनकी आंखों में एक अलग सी राहत और हैरानी भर आई।
जब चाॅकलेट सिरप लगाने के बाद उनका दर्द कम हुआ, उस वक्त मुझे होश आया की वाणी दीदी जिंदगी में पहली बार मेरे सामने बिना ब्रा और शर्ट के खड़ी थी।
उनकी छातियां अब मेरे सामने पूरी तरह नंगी थी — सफेद, नरम, और पूरी तरह से गोल। उन पर पड़ा चॉकलेट सिरप जैसे उनकी त्वचा में समा गया था, और वो धीमे-धीमे सिहर रही थी। उनके गुलाबी निपल्स कड़े हो चुके थे, और उनके उभारों पर मेरे स्पर्श की ठंडक ने एक अजीब सा कंपन पैदा कर दिया था। वो नज़ारा ऐसा था जिसे मैं कभी नहीं भूल सकता — मेरा दिल तेज़ी से धड़क रहा था, और मेरी सांसें थम सी गई थी।
तभी दीदी को अचानक ध्यान आया कि मैं उन्हें निहार रहा था। वो झटके से चौंकी और अपनी छातियों को दोनों हाथों से ढकने लगी। लेकिन उनकी हथेलियां उन गोलाइयों को पूरी तरह छुपा नहीं पा रही थी, और उनकी अंगुलियों के बीच से उन उभारों की झलक अब भी मुझे दिख रही थी।
उस घटना के बाद दीदी का रवैया बदल गया। वो अब मुझसे ना तो शरमाती, ना ही कुछ छिपाती। जब भी वो कोई नया ब्रा या पैंटी खरीदतीं, तो कमरे में पहन कर मुझे दिखाने लगती — “कैसी लग रही हूं? कलर ठीक है?” — और मैं हैरानी से उनके खुले बदन को देखता रह जाता। उनकी त्वचा की चमक, उनकी अंगुलियों से एडजस्ट किया गया स्ट्रैप, सब कुछ मुझे पागल कर देता। अब हमारा रिश्ता कुछ ऐसा हो चला था जिसमें खुलापन था, लेकिन हर बात के पीछे एक अनकही चाहत भी छुपी हुई थी।
एक दिन जब लाइट चली गई थी और रात का समय था, दीदी मेरे कमरे में आ गई। वो अंधेरे से बहुत डरती थी। कमरे में अंधेरा था लेकिन बाहर से आती हल्की रोशनी में उनका चेहरा और बाल चमक रहे थे। वो धीरे से बिस्तर में मेरे पास आकर लेट गई और बोलीं, “मैं डर रही हूं, आज तेरे पास ही सोती हूं।”
मैंने उनकी तरफ देखा, उनकी आंखों में हल्की कंपकंपी थी, लेकिन उनके होंठों पर एक छोटी सी मुस्कान भी थी। मैंने धीमे से चादर ओढ़ा और हम दोनों साथ लेट गए, एक-दूसरे के बिल्कुल पास। दीदी की गर्म सांसें मेरी गर्दन से टकरा रही थी, और मेरे दिल की धड़कन फिर से तेज़ होने लगी।
उसी अंधेरे में दीदी मुझसे बातें करने लगी — कॉलेज की यादें, उनकी सहेलियां, मूवीज़, और फिर अचानक उन्होंने हंसते हुए कहा, “तुझे पता है, मैंने बहुत टाइम पहले पोर्न देखा था… अब तो भूला सा लगता है। चल, आज साथ में कुछ देखें?”
मैं चौंक गया, लेकिन उनका अंदाज़ बिल्कुल सहज था। मैं बस उन्हें देखता रह गया — वो दीदी, जो कभी मेरी मासूम साथी थी, अब मेरे साथ कुछ ऐसा बांटना चाहती थी जो हर सीमा को पार कर चुका था।
इसके आगे की कहानी अगले पार्ट में। [email protected]
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अगला भाग पढ़े:- जब दीदी ने खुद को मेरे सामने खोला-2