नमस्कार दोस्तों, मेरा नाम पिंकी है। मेरी उम्र 20 साल है। मैं MP के इंदौर शहर में रहती हूं। शहर में रहने से रंग बिलकुल गोरी और बदन कोमल हो गयी है। मैं कॉलेज में पढ़ती हूं, और साथ में कॉलेज जैसी एग्जाम की तैयारी करती हूं। शहर में मेरे साथ मेरे मम्मी-पापा और मेरा भाई रहते हैं।
मेरे पापा का नाम राजेश सिंह है। वह पुलिस में इंस्पेक्टर है। इनकी उम्र 44 साल है, और मेरे पापा पुलिस में रहने के चलते अभी भी बहुत ज्यादा फिट और हैंडसम है। मेरी मम्मी का नाम संध्या सिंह है। इनकी उम्र 40 साल है, और यह दिखने में बहुत ही ज्यादा गोरी-चिट्टी और सुडौल शरीर की मालकिन है। मम्मी अपने आप को फिट रखने के लिए सुबह योग करती है, और दिन भर घर का काम करती है। जिसकी वजह से मम्मी का शरीर अभी भी बहुत ही ज्यादा आकर्षक है।
मेरे भाई का नाम रोहित है। यह अभी 18 साल का है, और दिखने में बहुत ही ज्यादा हैंडसम है। गांव में मेरे दादा और दादी रहते है। पापा के पुलिस में नौकरी लगने के कारण हम लोगों को शहर में रहना पड़ता है। कभी-कभार छुट्टियों में हम लोग दादा-दादी के यहां घूमने के लिए जाते हैं, या फिर दादा जी खुद ही यहां पर चले आते हैं।
दादा जी का नाम राजेंद्र सिंह है, वो 65 साल है। गांव में खेती बाड़ी करने के कारण इनका शरीर गठीला हो गया है, और उनकी चौड़ी छाती, मूछें कड़क उनके चेहरे पर चार चांद लगाते हैं। कहानी के सभी पात्र बहुत इंपॉर्टेंट है इसलिए ध्यान से पढ़ें।
मार्च महीने की शुरुआत हो रही थी। ठंडी का मौसम अब गर्मी में बदल रहा था। लोग पार्कों में घूमना-फिरना शुरु कर दिए थे। सुबह के समय था मम्मी के आवाज कान में पड़ते ही मैं उठ बैठी। देखी की मम्मी हाथ में पूजा की थाली लिए पूरे घर में धूप दिखा रही थी, और मुझे आवाज लगाते हुए बाहर चली गई। मेरा भाई शीशे के सामने खड़े होकर अपने आप को सजा रहा था।
मैं: रोहित, सुबह-सुबह सज-धज कर कहां जा रहा है तू?
रोहित: ओह मेरी भुलक्कड़ दीदी, रात को ही तो बताया था। मुझे अपने दोस्तों के साथ टूर पर जाना है। अगले हफ्ते लौटूंगा।
मैं: ओह, हां मैं भूल गयी थी। ओके हैप्पी जर्नी।
मेरा भाई मुझे मुस्कुराते हुए थैंक यू दीदी कहा। मैं बाथरूम गई, और फ्रेश होकर बाहर आ गई। तब पापा पुलिस की यूनिफॉर्म पहन कर ड्यूटी पर जाने लगे। उन्होंने मेरे भाई को कुछ पैसे दिए, और मुझे मेरे माथे पर किस्स देकर बोले कि, “आज दादा जी आने वाले हैं, उनका ख्याल रखना,” और वह बाहर चले गए। थोड़ी देर में मेरा भाई भी चला गया।
घर पर मैं और मम्मी रह गयी। मैं मम्मी के पास किचन में गयी। मम्मी से पूछी की दादा जी कब आ रहे थे। तब मम्मी पूरी-कचोरी छान रही थी और बोली, “जाकर हाथ मुंह धो लो, और नाश्ता कर लो, दादा जी कभी भी आ सकते हैं।”
मैं दादा जी के साथ बचपन से ही बहुत खेली थी, वह मुझे बहुत प्यारे थे। मैं नहा धोकर तैयार हो गई और नाश्ता कर ली। दादा जी ना जाने कब आने वाले थे। मैं उनकी राह देखते-देखते पढ़ने बैठ गई। तभी डोर बेल बजी और मम्मी ने दरवाजा खोला, और दादा जी आ चुके थे।
मम्मी अपने साड़ी के पल्लू को सर पर रखी, और दादा जी के पैर छूने लगी। दादा जी ने मम्मी को आशीर्वाद दिए। फिर मम्मी दादा जी के लिए नाश्ता-पानी की व्यवस्था करने लगी, और मैं दादा जी से जाकर लिपट गई। दादा जी ने मेरे पीठ और बाल को सहलाए और फिर बोले-
दादा जी: अरे मेरी पिंकी बिटिया, कितनी सयानी हो गई है।
मैं: पूरे 20 साल की हो गई हूं दादा जी।
दादा जी हंसते हुए बोले: हां-हां मेरी बिटिया, बहुत ज्यादा खूबसूरत और प्यारी हो गई हो तुम।
फिर मम्मी ने दादा जी को आवाज़ लगाई: बाबू जी नाश्ता लग गया है। आकर आप नाश्ता कर लीजिए।
मैं दादा जी को बाथरूम में ले गई, उनके हाथ-पैर धुलवाई, और उसके बाद वे नाश्ते के टेबल पर बैठे और वह नाश्ता करने लगे। दादा जी नाश्ता कर रहे थे, और मैं उनसे बातें करने में लगी हुई थी। मैं उन्हें बातों-बातों में ही बता दी कि आज उन्हें मेरे साथ पूरे शहर घूमना था।
मम्मी दादा जी जी को नाश्ता कराने में लगी हुई थी और मुझसे बोली: तुम अपने दादा जी को नाश्ता भी करने दोगी, या ऐसे ही बोलती रहोगी?
उनकी बातों से मैं थोड़ी मायूस हुई, और दादा जी हंसने लगे। दादा जी ने नाश्ता को खत्म किया, और उसके बाद वह अपने कमरे में आराम करने लगे। तब तक मैं पढ़ाई करने लगी। शाम हुई तो मम्मी अपने काम-काज में लगी हुई थी। मैं दादा जी के पास गई और उनसे बोली-
मैं: दादा जी कहीं घूमने चलें? घर में बैठे-बैठे आप भी बोर हो गए होंगे।
दादा जी: अच्छा ठीक है बिटिया। पर तुम मुझे घुमाने कहां ले जाओगी?
मैं: दादा जी, पास में ही एक बहुत बड़ा पार्क है, वहां पर टूरिस्ट लोग भी घूमने जाते है। चलिए मैं आपको वही घुमा लाती हूं।
मैं और दादा जी दोनों तैयार होकर घर से निकलने लगे। मैं मम्मी को बता दी कि हम लोग घूमने जा रहे थे। थोड़ी देर में हम दोनों लोग पार्क में आ गए। मैं पार्क की टिकट ली और उसके बाद दादा जी के साथ अंदर घूमने लगी। पार्क बहुत बड़े जंगलो के बीच में था। मैं इन्हें केवल पार्क में ही घुमा रही थी, क्योंकि पार्क के अगल-बगल जंगल के झाड़ी झुरमुटों में अलग-अलग लोग अश्लील हरकत करते हुए दिख जाते हैं। दादा जी मुझसे बोले-
दादा जी: पिंकी बिटिया केवल घास पर चलने में अच्छा नहीं लग रहा है। चलो उधर जंगलों की ओर घूम कर आते हैं।
मैं दादा जी को मना करने लगी, पर वह नहीं माने, और जंगलों के अंदर घूमने लगे। मैं भी उनके साथ चल दी। हम दोनों जंगलों के पास घूमते हुए काफी दूर तक आ गए। तभी हमें अंदर बेंच पर दो लड़के-लड़कियां बैठे दिखे। दादा जी उन्हें बड़े गौर से देखने लगे। मैं समझ चुकी थी कि वह दोनों कुछ अश्लील हरकतें कर रहे होंगे। दादा जी थोड़े पास गए तो उन्हें दिखाई देने लगा। वह लड़का उस लड़की के दोनों बूब्स निकाल कर चूस रहा था।
दादा जी ने देख कर मुझसे बोले: राम राम शहर के लड़के-लड़कियां कितनी बेशरम हो गए हैं। चलो पिंकी बिटिया आगे चलते हैं। इधर घूमने लायक नहीं है।
उनके चेहरे देख कर मेरे मन में हंसी छूटने लगी, पर मैं उनके साथ शांति से आगे चलने लगी। दादा जी ने फिर से कुछ देखा और वह आगे बढ़ कर पेड़ के पीछे से देखने की कोशिश करने लगे। दूर पेड़ के नीचे बैठे एक अंकल किसी आंटी के बूब्स को दबा रहे थे, और उनके होंठ को चूस रहे थे।
दादा जी ने यह देखते हुए फिर से मेरे पास आए और बोले: चलो बिटिया उधर चलते हैं। इधर भी कुछ अच्छा नहीं है।
दादा जी का मासूम चेहरा देख कर मुझे हंसी आने लगी। पर मैं उनके साथ शान्ति से चल रही थी, कि तभी आगे कुछ और नजारा दिखा। एक लड़का किसी आंटी के साड़ी को कमर तक उठा कर उन्हें पीछे से अपना लंड डाल कर चोद रहा था, और वह आंटी पेड़ के सपोर्ट से झुकी हुई थी।
दादा जी: शहर के लोगों को क्या हो गया है? उम्र का फासला भी नहीं समझते। दोनों कैसे एक-दूसरे में मगन है।
हम लोग आगे बढ़ने लगे, तो काफी दूर आने के बाद एक और नजारा देखने को मिला। 2-2 जवान लड़कियां किसी अधेड़ उम्र के पुरुष के साथ संभोग कर रही थी, और उनका संभोग कुछ ही देर में खत्म हुआ था। वह लोग कपड़े पहनने के साथ हंसी-मजाक कर रहे थे। दादा जी यह देख कर थोड़े असमंजस में पड़े, और मेरे कंधे पर हाथ रख कर आगे की ओर चलने लगे।
हम दोनों चलते हुए जंगल के अंतिम छोर पर आ गए थे। वहां पर बैठने के लिए एक बेंच लगाया हुआ था। हम दोनों इस पर बैठे दादा जी मेरे कंधे पर हाथ रखे हुए थे, और मैं उनके सीने से सटी हुई थी। दादा जी मेरे कंधे को सहला रहे थे, और कुछ सोच रहे थे। मैं दादा जी से बोली-
मैं: दादा जी आप कहां सोचने में व्यस्त हो गए?
दादा जी: मैं सोच रहा हूं बिटिया, कि शहर के लोग कितने बदल गए हैं। लेकिन बहुत खुश है। कोई लड़का अपने मां की उम्र की महिला के साथ खुश है, तो कोई महिला अपने बेटे की उम्र के लड़के से खुश है। कोई लड़की अपने बाप की उम्र के आदमी से खुश है। यहां तो उम्र का फासला ही मिट चुका है। सभी अपने-अपने पार्टनर के साथ बहुत खुश है। ऐसा लग रहा है कि हम गांव वाले ही पीछे रह गए हैं।
मैं दादा जी के सीने को अपने हाथ से सहलाते हुए बोली: ऐसा क्यों दादा जी? आप लोग क्या गांव में यह सब मजे नहीं करते?
दादा जी: कहां बिटिया, गांव में तो संतान हो जाने के बाद लोग अपने खुशियों को ही त्याग देते हैं।
मैं: तो क्या दादा जी आपकी अभी भी इच्छा है यह सब करने की?
दादा जी: इच्छा तो कभी मरी ही नहीं थी बिटिया, इच्छा सिर्फ दबाया गया था। आज यह सब देख कर मेरे मन में ना जाने कैसे-कैसे ख्याल उठ रहे हैं। तुम तो शुरू से शहर में रह रही हो। तुम्हारे अंदर भी इच्छाएं होंगी। तुम्हें भी कोई ना कोई पसंद होगा?
मैं: ऐसा नहीं है दादा जी। मुझे मेरी फैमिली और आप पसंद हो। आपके साथ बचपन से खेली हूं। मुझे आपका साथ बहुत अच्छा लगता है।
मैं उस वक्त दादा जी के सीने पर सर रखी हुई थी, और अपने हथेली से उनके सीने को सहला रही थी। मेरा एक पैर उनके पैर पर था, और दादा जी का हाथ मेरे कंधे पर। मेरे सीना दादा जी के सीने में दबा हुआ था।
दादा जी: क्या तुम्हें मैं पसंद हूं? तुम क्या कहना चाहती हो बिटिया? तुम्हें तो अपनी उम्र के लड़के पसंद होने चाहिए। मैं तुम्हारी उम्र से बहुत बड़ा हूं। तुम्हारे पापा का भी पापा हूं मैं।
मैं बिल्कुल शांत उनके सीने पर सर रख कर पड़ी रही। मेरे मुंह से कोई आवाज ना निकली।
दादा जी: हां बिटिया तुम तो शहर में रही हो। तुम लोग खुशियां चाहते हो। पिंकी बिटिया, आज मुझे भी खुशियां लेने की इच्छा हो रही है।
मैं चुप-चाप उनके सीने पर लेटी रही। दादा जी के सांस तेज होने लगी थी। उनके लंड में तनाव आने लगा था। मेरे जांघों में उनके लंड साफ महसूस हो रही थी। दादा जी, अब मेरे कंधे को सहलाने के साथ ही अपने हाथों को मेरे बूब्स के तरफ ले गए। दादा जी के हाथ मेरे बूब्स पर पड़ते ही मेरे तन-बदन में झुरझुरी सी पैदा हो गई। दादा जी के सांसे से तेज हो गई। उनका लंड पूरी तरह से तन गया, और मेरी जांघों में महसूस होने लगा।
दादा जी की हरकतें बढ़ने लगी, और वह मेरे शर्ट को खोलना शुरू कर दिए। उन्होंने मेरे शर्ट के सारे बटन खोल दिए, और ब्रा को ऊपर करके मेरे छोटे-छोटे बूब्स को हाथो से मसलने लगे। उउउफ्फ्फ्फफ्फ्फ़…. दादा जी… आअह्ह्ह….
दादा जी मेरे गाल को चूमने लगे, और मेरे बालों को सहलाते हुए अपने होंठ को मेरे होंठ से लगा कर चूसने लगे। उउउउह्म्मम्म्म्मह्ह्ह….. आआहहहह….
पार्क के अंतिम छोर पर बैठे हुए थे। जिसकी वजह से कोई इधर आ नहीं रहा था। दादा जी बेंच पर बैठे हुए मेरी चूचियों को मसलने के साथ मेरे होंठों को चूस रहे थे। आआहहहहह…
दादा जी मेरे होंठ को चूमते हुए नीचे की ओर आए, और मेरी कोमल-कोमल चूचियों को मुंह में लेकर चूसने लगे। मैं उनके सर को अपने सीने में दबाने लगी, और वह मेरी चूचियों को मुंह में भर कर चूसना शुरू कर दिए।
दादा जी मेरी जींस के बटन को खोले और थोड़ा सा नीचे सरका कर पेंटी में हाथ डाल दिए। मेरी पैंटी गीली हो चुकी थी। दादा जी ने यह महसूस किया, तो अपनी एक उंगली मेरी चूत में डाल दिए। मेरे मुंह से आअह्ह्ह निकल गई।
दादा जी काफी तेजी से मेरी चूत में उंगली अंदर-बाहर करने लगे, और मेरी चूचियों को पीने लगे। फिर दादा जी खड़े हुए और अपने पजामे के नाडे को खोला, और चड्डी को नीचे सरका कर अपना बड़ा सा लंड मेरे सामने कर दिया। मैं उनके लंड को हाथों में लेकर मसलने लगी। वह मेरे सर को पकड़ कर अपने लंड पर लगा दिए। मैं उनके लंड को पूरी तरह से मुंह में नहीं ले पा रही थी, पर किसी तरह उनके लंड को चूस रही थी, और वह लगातार मेरे चूत में उंगली कर रहे थे।
दादा जी मुझे गोद में उठाये, और पास में पड़े हरे-हरे घास पर लिटा दिया। मेरी जींस को खोल कर अलग किया, और पेंटी को बाहर निकाला। फिर मेरे चूत पर जीभ लगा कर चाटने लगे। कुछ देर चाटने के बाद दादा जी मेरे पैरों को अलग किया, और मेरे ऊपर आ गए। वो अपने लंड को मेरे चूत पर सेट किये, और धीरे-धीरे धक्का देकर अंदर घुसाने लगे।
मुझे दर्द होने लगा, पर दादा जी ने मेरी चूचियों को सहलाते हुए अपने लंड को पूरी तरीके से मेरे चूत में उतार दिया। मैं अपनी आंखें बंद कर ली, और दादा जी को कस के पकड़ ली थी। दादा जी धीरे-धीरे धक्का लगाते हुए मेरे होंठ को चूम कर बोले-
दादा जी: पिंकी बिटिया, तुम तो बहुत बड़ी उस्ताद निकली। मेरे लंड को झेल गई। वरना गांव की कुंवारी चूत तो मेरे लंड से मर ही जाती।
दर्द तो मुझे भी हो रही थी, पर मैं किसी तरह दादा जी के लंड को सह गई। दादा जी धीरे-धीरे अपने लंड को अंदर-बाहर करने लगे, और मेरी चूचियों को पीने लगे। उनके लंड अपने भीतर लेकर मैं भी आज बहुत खुश थी। उनके पीठ को सहलाते हुए चुदवा रही थी।
दादा जी अब जोर-जोर से मेरे चूत में अंदर-बाहर लंड पेल रहे थे, और मेरी चूचियों के निपल्स को काट रहे थे। मैं मदहोशी में अपने पैर को उनके कमर में लपेटी हुई थी।
पार्क के खुले आसमान में जंगल में चुदने का मजा ही अलग आ रहा था। वह भी अपने दादा जी से, उनकी भारी भरकम शरीर के अंदर मेरी छोटी सी नाजुक शरीर दबी हुई थी, और उनका बड़ा सा मोटा लंड मेरे चूत में तूफान मचा रहा था। दादा जी जोर-जोर से चोदते हुए हांफने लगे, और अपने लंड को बाहर खींचा, और मेरे पेट पर अपने लंड की गरम पिचकारी मार दी।
उनके गरम-गरम पानी ने मेरी चूत को झड़ने पर मजबूर कर दिया। मैं कई बार झड़ चुकी थी, दादा जी अभी पहली बार झड़े थे। वह मेरे ऊपर लेट गए और मेरे होठों को चूसने लगे।
शाम हो चुकी थी। सभी लोगों को जाने का समय हो गया था। हम लोग भी उठे अपने कपड़े पहनने के लिए। तभी हम लोगों ने देखा की गार्ड बेंच के पास खड़ा हमें देख कर मुस्कुरा रहा था। हम दोनों के चेहरे पर हवाइयां उड़ गई।
शेष अगले भाग में……
अगला भाग पढ़े:- गांव से शहर आए दादा जी ने-2