मां: बेटा मैं नौकरी करना चाहती हूं।
मैं: क्यों मां, क्या हो गया? पैसे कम पड़ रहे हैं क्या?
मां: नहीं बेटा, ऐसी बात नहीं है। भगवान की कृपा और तुम्हारी मेहनत से पैसों की कोई कमी नहीं है। लेकिन तुम काम पर जब जाते हो, उसके बाद मैं सारा दिन अकेली रहती हूं। अकेला घर मुझे काटने को दौड़ता है। मेरा दिल नहीं लगता। तो सोच रही हूं नौकरी कर लूं कहीं।
मैं: लेकिन मम्मी आप तो पढ़ी लिखी भी नहीं हो, तो आप कौन सी नौकरी करोगे?
मां: बेटा वो नीचे रहने वाली सीमा जिस कॉलेज में लगी हुई है, वहां जगह खाली है, एक रसोइए के लिए। मैं वहीं काम कर लूंगी। टाइम भी पास हो जाएगा, और जेब खर्च भी निकल आएगा।
मैं: मां आप वहां नौकरानी का काम करोगे?
मां: तो क्या हुआ। तू जहां काम करता है, वहां तू भी तो नौकर ही है। और वैसे भी कोई काम छोटा नहीं होता।
मां ने मुझे अपनी बातों से मना लिया, और फिर अगले दिन से काम पर जाने लगी। मेरे ऑफिस का टाइम थोड़ा लेट था, तो मां मुझसे पहले ही निकल जाया करती थी। पहले मां घर पर रहती थी, इसलिए ऐसे ही सादी सी बनी रहती थी। लेकिन काम पर जाने की वजह से अब वो रोज अच्छे से तैयार होने लगी थी। मैं भी सोच रहा था कि अच्छा है मां कम पर लग गई। कम से कम अच्छे से तैयार तो होती है, और खुश भी रहती है।
ऐसे ही कई दिन बीत गए। फिर एक दिन मां काम पर जा रही थी। मैं उस वक्त नाश्ता कर रहा था, जिस वक्त वो घर से निकली। नाश्ता करके जब मैं प्लेट को किचेन में रखने गया, तो मैंने देखा मां अपना टिफिन भूल गई थी। मां को गए 2-3 मिनिट हो गए थे। मैंने सोचा वो अभी रास्ते में ही होगी, तो मैं जाके उनको टिफिन दे आता हूं।
मैं जल्दी से नीचे गया, और बाइक निकाल कर स्टार्ट की। फिर मैं निकल पड़ा मां के पीछे। थोड़ी दूर पहुंचा, तो देख मां ऑटो स्टैंड पर खड़ी थी। मैं जल्दी से उनके पास जाने लगा। लेकिन मेरे देखते ही देखते मां के सामने एक ब्लैक स्कॉर्पियो गाड़ी खड़ी हुई, मां उसमें बैठी, और चली गई। मैं कुछ समझ नहीं पाया कि वो गाड़ी किसकी थी, और मां उसमें क्यों बैठी थी?
फिर मैंने गाड़ी का पीछा करना शुरू किया। गाड़ी की स्पीड ज्यादा थी, तो मैं उसको ओवर टेक नहीं कर पाया, और पीछे-पीछे बाइक पर जाता गया। 10 मिनट में वो गाड़ी मां के कॉलेज, जहां वो काम करती थी, के बाहर रुकी। फिर मां उसमें से निकली, और कॉलेज के अंदर चली गई। वहां कोई चहल-पहल नहीं थी, जो कि आम तौर पर कॉलेज के बाहर होती है। बस एक गेटकीपर बाहर खड़ा था।
फिर वो गाड़ी आगे चली गई, और आगे वाले गेट से कॉलेज के अंदर चली गई। मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या हो रहा था। फिर मैं कॉलेज के बाहर बैठे गेटकीपर के पास गया और बोला-
मैं: भैया आज इतनी शांति क्यों है कॉलेज में?
गेटकीपर: वो आज कॉलेज में छुट्टी है ना।
मैं: आज किस चीज की छुट्टी है? आज कोई त्यौहार तो है नहीं।
गेटकीपर: भाई बच्चों के एग्जाम खत्म हुए है अभी कुछ दिन पहले। उसके बाद उनको 15 दिन का आराम दिया गया है। साले एग्जाम में चाहे फेल हो जाएं, लेकिन आराम पूरा मिलता है इनको (ये कह कर वो हंसने लगा)।
मुझे भी उससे पूछ-ताछ करनी थी, तो मैं भी उसकी बात पर हंसने लगा।
फिर मैं बोला: तो ये जो अभी अंदर गई है?
वो मेरी तरफ देख कर पूछा: क्यों, तुम्हारी पहचान वाली है क्या?
मैं: अरे नहीं, मोहल्ले में रहती है।
गेटकीपर: अच्छा… ये तो साली रंडी है हमारे प्रिंसिपल साहब की।
मैं उसकी बात सुन कर हैरान हो गया। मुझे गुस्सा तो बहुत आया, क्योंकि उसने मेरी मां को रंडी कहा था। लेकिन क्योंकि मुझे ये जानना था कि उसने ऐसा क्यों कहा, मैंने खुद को शांत रखा। फिर मैंने उससे पूछा-
मैं: लेकिन इसका बेटा तो बोलता था कि वो यहां पर नौकरी कर रही है।
गेटकीपर: हां करने तो नौकरी ही आई थी, लेकिन इसने प्रिंसिपल को अपना दीवाना बना लिया, और उसकी कुतिया बन कर अब मजे ले रही है। कहीं तू भी तो इसकी लेने की फिराक में तो नहीं है? इसलिए इसके पीछे-पीछे यहां तक चला आया?
मैं उसकी बात पर जान-बूझ कर शर्मा दिया, ताकि उसको लगे कि उसकी कही बात ठीक थी।
फिर वो बोला: सही है यार, पूरा मजा देती है ये।
मैं: क्यों, तुमने भी इसको चोदा है क्या?
गेटकीपर: चोदा तो नहीं है, लेकिन इसकी चुदाई देखी जरूर है। आज भी कॉलेज में तो कोई है नहीं, तो प्रिंसिपल का बिस्तर गरम करने आई होगी। देखेगा इसकी चुदाई?
उसकी बात सुन कर मैं चुप हो गया।
इसके आगे क्या हुआ, वो आपको कहानी के अगले पार्ट में पता चलेगा। यहां तक की कहानी की फीडबैक आप [email protected] पर दे सकते है।
अगला भाग पढ़े:- मां की चुदाई कॉलेज में-2
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