मैं: मम्मी जी, मुझे आपसे कुछ बात करनी है।
सासू मां: हां बोलो बेटा, क्या बात है?
मैं: मम्मी जी, साहब की नीयत मुझे कुछ ठीक नहीं लगती। पहले तो वो मुझे बस घूर-घूर कर देखते थे। लेकिन आज उन्होंने मेरा चूतड़ दबा दिया। ये मुझे ठीक नहीं लगा।
सासू मां: देख बेटा, ये बड़े लोग है। इनके यहां काम करने हमारी रोज़ी-रोटी चलती है। साहब अब बूढ़े हो चुके है, और तू जवान है। तू तो जानती है कि मर्दों की ठरक कभी खत्म नहीं होती। और वैसे भी वो बूढ़ा कर क्या लेगा? सिर्फ छू लेगा इधर-उधर! पर इसके बदले वो अच्छे पैसे भी तो दे रहा है। तो तू इसका बुरा मत मान। इसका मजा लिया कर, और हस के टाल दिया कर। वो भी खुश, अपन भी खुश।
मुझे सासू मां की बात अच्छे से समझ आ गई थी। वैसे भी मेरे पति घर पर नहीं थे, तो मुझे छेड़ने वाला कोई नहीं था। तो मैंने मन बना लिया कि साहब की ऐसी हरकतों को हस के टाल दिया करूंगी।
फिर अगले दिन से जब भी साहब मेरी तरफ देखते, मैं उनको देख कर मुस्कुरा देती। अब वो आते-जाते कभी मेरी गांड पर हाथ फेर देते, कभी कंधे से कंधा टकरा देते। मैं इन सब चीजों को नजरअंदाज करती रहती, और अपना काम करती रहती। ऐसे ही 3 महीने बीत गए, और मेरी तनख्वाह 4 गुना बढ़ गई। मैं बहुत खुश थी। लेकिन मुझे अब तक ये नहीं पता था कि ये छेड़-छाड़ बहुत आगे बढ़ने वाली थी।
एक दिन अचानक से सासू मां बीमार पड़ गई, और उनको काम से छुट्टी लेनी पड़ी। उस दिन साहब के घर का सारा काम मैं कर रही थी। सोमवार का दिन था, और मेम साहब अपने रेगुलर चेकअप के लिए गई हुई थी। मेरे अलावा घर पर सिर्फ साहब थे। जब मैं उनको चाय देने उनके कमरे में गई, तो उन्होंने मुझे घुटने दबाने के लिए कहा। मैंने भी हां कहा, और रसोई का काम खत्म करके उनके कमरे में चली गई।
साहब ने लूंगी और बनियान पहनी हुई थी, और वो अपने बिस्तर पर पीछे टेक लगा कर, और टांगे सीधी करके बैठे हुए थे। मैं उनकी टांगों के पास बैठ गई, और टांगे दबाने लगी। उनको आराम मिल रहा था, और वो आह आह कर रहे थे। तभी उन्होंने मेरे सर पर हाथ फेरते हुए कहा-
साहब: बड़ी अच्छी बच्ची है तू।
ये कह कर उन्होंने सर से हाथ हटाया नहीं, बल्कि मेरे कंधे पर ला कर उसको सहलाने लगी। मैं समझ गई कि ठरकी बुड्ढा शुरू हो गया। वो धीरे-धीरे मेरे कंधे पर हाथ फेरते गए, और फिर मेरा चूचा दबाने लगें। मैं ये सब बिल्कुल नजरअंदाज करते हुए अपना काम करती रही।
मुझे कुछ ना कहते हुए देख कर वो चूचा जोर से दबाने लगे। मेरे पति को बहुत वक्त हो गया था दुबई गए हुए, और उसके बाद मेरी चुदाई बंद हो चुकी थी। साहब के चूचे दबाने से मुझे भी गर्मी चढ़नी शुरू हो गई, और मेरी सांसे तेज़ होने लगी। उनको भी मेरी सांसे महसूस होने लगी।
फिर वो बोले: तुम्हारा पति दुबई है ना?
मैं: जी मालिक।
साहब: कैसे गुज़ारा करती हो तुम उसके बिना?
मैं: बस करना पड़ता है साहब।
फिर उन्होंने मुझे थोड़ा ऊपर से दबाने को कहा, जिसकी वजह से मैं उनके और पास हो गई। अब मैं उनकी जांघों के पास बैठी थी। उन्होंने फिर से अपना हाथ मेरे कंधे पर रखा, और कमर पर ले जाते हुए मेरी जांघ पर ले गए। इससे मेरे जिस्म में कंपकपी सी होने लगी। फिर वो हाथ दोनों जांघों के बीच ले गए, और मेरी चूत पर हाथ फेरने लगे।
जैसे ही उनके हाथ मेरी चूत पर पड़ा, मैंने अपना हाथ उनके हाथ पर रख दिया और आँखें नीची रखती हुई बोली-
मैं: साहब आह, ये आप क्या कर रहे हो?
साहब: मैं तुम्हारा अकेलापन बांट रहा हूं।
ये सुन कर मैंने उनकी तरफ देखा। तभी उन्होंने अपना हाथ मेरे सर के पीछे रखा, और मुझे अपनी तरफ करके अपने होंठ मेरे होंठों से चिपका दिए। अब साहब मेरे होंठ चूस रहे थे।
मैं समझ नहीं पा रही थी कि मैं क्या करूं? उठ कर जाऊं या नहीं? मैं बहुत गरम हो चुकी थी, और मेरा जिस्म प्यार मांग रहा था। सासू मां ने भी कहा था कि जो कर रहे है करने दो, अब कितना करने देना था, ये उन्होंने नहीं बताया। अगर मैं करने देती, तो ये पति के साथ धोखा होता। ये सब तर्क मेरे दिमाग में चल रहे थे।
जब तक मैं ये सब सोच रही थी, तब तक साहब मेरी पैंटी में हाथ डाल चुके थे, और मेरी गीली चूत सहला रहे थे। मुझे बहुत मजा आ रहा था। मेरी चूत चीख-चीख कर लंड की भीख मांग रही थी। अब मैं उस पड़ाव पर पहुंच चुकी थी, जहां से वापस नहीं आया जा सकता था। तो मैंने वक्त के बहाव के साथ चलने का फैसला किया, और साहब के किस्स में उनका साथ देने लगी। किस्स में मेरा साथ पाते ही साहब समझ गए कि मैं उनके साथ कुछ भी करने के लिए तैयार थी।
इसके आगे क्या हुआ, वो आपको इस हिंदी सेक्स स्टोरी के अगले पार्ट में पता चलेगा। यहां तक की कहानी आपको कैसी लगी, मजा आया कि नहीं, ये आप gulati.gulati555@gmail.com पर मेल करके बताना। अगले पार्ट जल्दी ही आयेगा।
अगला भाग पढ़े:- साहब ने रंडी बनाया-3