दोस्तों मेरी उम्र 20 साल है। मैं गोरा और स्लिम हूं। मैं होश संभालते से ही अपने आप को एक गे के रूप में देखने लगा था। मुझे इसका चस्का मेरे एक ममेरे भाई ने दिया था। वो मुझसे चार साल बड़े थे, चूंकि मेरी नानी घर और मेरा घर एक ही गांव में और पड़ोस में ही है, तो हमारा आना-जाना चौबीस घंटे लगा रहता था।
मेरे मामा के लड़के का नाम शरद था। मैं कॉलेज मे पढ़ता था। गर्मियों के दिन थे। उस समय हम सब आंगन में सोते थे। एक बार हम सभी छोटे बड़े भाइयों ने एक साथ आंगन में सोने का प्लान बनाया। तो मैं और शरद भैया दोनो एक चारपाई में सोए थे। तब मेरे जीवन की वो पहली रात होने जा रही, जिससे मैं बिल्कुल अंजान था कि आज कुछ बड़ा होने वाला था।
चूंकि हमारा गांव एक पहाड़ी क्षेत्र में है, और जंगल भी है, जिस कारण रात में एक रजाई जरूर लगती है। रात में सब अंताक्षरी चुटकुले पहेली आदि खेल कर शांत हो चुके थे, और सो चुके थे। मैं भी सो चुका था। कुछ देर बाद मुझे महसूस हुआ कि भैया का एक हाथ मेरे छाती के ऊपर आ गया था, और उनका मुंह भी मेरे सामने था।
कुछ देर में ऐसे ही बिना रिएक्ट किए सामान्य नींद की हरकत समझ कर सोया रहा। लेकिन थोड़ी देर बाद भैया ने अपना हाथ मेरे सीने में फिराना चालू किया। मैं घबरा गया। मेरे शांत रहने पर उनकी हिम्मत बढ़ती गई, और उनका हाथ मेरे सीने से होता हुआ मेरे पेट तक जाने लगा। मेरी सांसे तेज होने लगी और उनकी भी।
हमारी सांसे आपस में टकराने लगी। उस समय जो शुरुआत हो रही थी, उसका अंत कहां होगा मुझे कुछ पता नहीं था। अब मुझे भी अच्छा लगने लगा था, और उनको शायद ये पता चल गया था कि मैं जाग रहा था। तो वो मेरे सीने और पेट में हाथ फिराने लगे।
इससे मेरे पूरे शरीर में सिहरन होने लगी। मेरी उत्तेजना बढ़ने लगी, और मैं इसे सहन नहीं कर सका। तब झट से मैंने अपना एक हाथ उनके कंधे में रख कर उनको अपनी तरफ भींच लिया। तब शरद भैया ने अपना दाया हाथ मेरी पीठ पर लगाया, और मुझे अपनी ओर खींच कर लिपटा लिया। अब हम दोनो एक-दूसरे की बाहों में बंध चुके थे। मुझे अब बहुत मजा आ रहा था। अब शरद भैया अपने होंठो को मेरे होंठो से सटा दिए, और किस करने लगे।
वो मेरे होंठो को अपने दांतो से काटने लगे। उस बीच वो अपने एक हाथ से मेरे बूब्स को दबाते और मसलते, तो मेरी उत्तेजना और भी ज्यादा बढ़ने लगी। हम अब पूरी तरह एक-दूसरे पर समा चुके थे। फिर शरद भैया ने अपना हाथ मेरे अंडरवियर के अंदर डाल दिया, और मेरे लंड को सहलाने लगे। मुझे बहुत आनंद मिल रहा था। तभी भैया ने अपने दूसरे हाथ से मेरा हाथ पकड़ा, और अपने खड़े तने हुए लंड पर रख दिया।
उनका लंड लंबा और मोटा था, पर मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि उसका करना क्या था? मैं ऐसे ही उनका लंड पकड़ा रहा। तब भैया अपने हाथ से लंड को ऊपर-नीचे करने लगे। उनका लंड बहुत कड़क था। काफी देर तक मैं उनके लंड को सहलाते रहा। मेरा आनंद चरम पर था। अब भैया ने मुझे अपनी तरफ करवट करवाया और खुद भी मेरी तरफ करवट लेकर सेट हो गए।
फिर एक हाथ से मेरी अंडरवेयर को नीचे घुटनों तक सरका दिया। उन्होंने अपने भी अंडरवेयर को नीचे सरका दिया। फिर भैया ने अपने लंड पर थूक लगाया, और अपने मूसल लंड को मेरी दोनों जांघो के बीच लंड के नीचे सेट किया। मेरी जांघें एक-दम चिकनी और बिना बालों वाली थी। उनमें वो आगे-पीछे कर चोदने लगे, और मेरे होंठो को अपने होंठो में भर कर चूस रहे थे। अब मैं भी उनका खुल कर साथ दे रहा था। भैया जैसे-जैसे अपने लंड को मेरी जांघो में घुसाते, वैसे ही मैं चिहुंक उठता। मैंने अपने दोनों हाथ उनकी गर्दन में डाल कर कस रखे थे।
जैसे भैया लंड को जांघो में घुसाते, मेरा लंड भी उनके पेट के नीचे टकराता और मुझे एक अलग ही दुनिया में ले जाता। अब मेरा लंड पानी छोड़ने को था। मुझे उस समय इतना मजा आया और मेरे लंड ने अपना वीर्य भैया के पेट में ही गिर गया। पांच मिनट के बाद शरद भैया का भी लंड अपना वीर्य मेरे जांघो में गिरा गया, और मेरी जांघो पर ऐसा लगा जैसे गरम लावा फूट पड़ा हो।
भैया कुछ देर ऐसे ही मुझसे लिपट कर सोए रहे। फिर हम दोनों एक-दूसरे से अलग हुए, अपनी अंडरवेयर ऊपर की, और सो गए। सुबह नींद खुली तो मैं उठ कर अपने घर चला गया। कुछ दिन तक मैंने उनसे नज़रें नहीं मिलाई। इस तरह मेरे जीवन में सेक्स की शुरुआत हुई। कुछ दिनों बाद फिर अक्सर मौका मिलते ही भैया मेरे साथ सेक्स करते।
धीरे-धीरे हमारे बीच संबंध ज्यादा बढ़ने लगे। बाद में भैया मुझे अपना लंड चुसवाने लगे। मुझे भी उनका लंड अब बहुत अच्छा लगने लगा था। फिर मैं भी सेक्स के बारे में ज्यादा जानने लगा। लेकिन हमारा सेक्स कभी गांड चुदाई तक नहीं पहुंचा। हम दोनो के बीच ये संबंध दो-तीन साल तक चलते रहे फिर वो समय आया जब भैया इंजीनियरिंग करने मुंबई चले गए। तब मैं बिल्कुल अकेला रह गया। फिर वो साल में एक या दो बार ही घर आते, तब हम मिलते।
अब मुझे आदत लग चुकी थी। मैं तड़पता रहता था। मन होता किसी और के साथ सेक्स करुं लेकिन किसी से बोल नहीं सकता था बदनामी के डर से। ऐसे ही दो साल निकल गए। शरद भैया और हमारे बीच संबंध लगभग खत्म ही हो चुके थे। पर अब मेरे अंदर सेक्स की इच्छा और भी बढ़ गई। इसके लिए मैं बाजार से पोर्न बुक लेकर देखने लगा। सेक्स पत्रिकाएं पढ़ता, वीडियो हाल में ब्लू फिल्म देखता और मुठ मारता।
अब मुझसे सहन नहीं होता था, लगता कब किसी का लंड मिल जाए। अब तो गांड में लंड लेने की इच्छा होने लगी, क्योंकि ब्लू फिल्म में गांड और चूत के वीडियो देखने लगा था। मैं अपने आप को अब एक बॉटम समझने लगा था। इस तरह मेरे सगे मामा के लड़के ने मुझे गे बना दिया। क्लीन सेव रखने का चलन था, तो मैं भी क्लीन सेव रखता था । मैंने पास के शहर जबलपुर में ही बी. ई. में एडमिशन ले लिया।
मेरे गांव से मात्र 20 किलोमीटर ही था तो घर से अपडाउन करता। मेरा शरीर सुंदर गोरा चिकना था। मेरे बूब्स में भी हल्का उभार आ गया। मेरे कूल्हे गोल-मटोल थे। मैं हमेशा एक गुडलुकिंग हैंडसम लड़के की तलाश में रहता पर कोई नहीं मिलता। मेरी तड़प अब पागलपन में बदल रही थी। फिर वो समय आ ही गया जिसका मुझे बेसब्री से इंतजार था।
लंबी बीमारी के कारण मेरे नाना जी का देहांत हो गया। उनकी अस्थि विसर्जन के लिए मेरे छोटे मामा जी और सबसे बड़े मामा के बेटे रमेश भैया इलाहाबाद गए थे। तेरहवीं के कुछ दिन बाद रमेश जो 30 वर्ष के अविवाहित पुरुष थे, उन्होंने अपने घर पर इलाहाबाद में संगम में मामा जी के साथ कुछ फोटोग्राफ लिए थे। उनको फ्रेम करके उनको लगाया था, जिसमे वो अस्थि विसर्जन करते हुए नदी में सिर्फ अंडरवेयर में थे।
मैं उनकी फोटोग्राफ को देखकर चकित रह गया। चूंकि मेरे बड़े मामा जी का देहांत बहुत पहले ही हो चुका था, और उनका घर दूसरे मोहल्ले में था मेरे घर करीब दो किलोमीटर था। वो सबसे बड़े थे और परिवार में मामी, उनकी दो छोटी बहनें, और एक छोटा भाई जो मेरी उम्र का था। मैं हमेशा रमेश भैया से मिलता था। वो मिलनसार थे। उनसे हंसी मजाक भी होता था।
देखने में बहुत सुंदर, गोरे, सामान्य कद 5’8”, वजन करीब 75 किलो होगा। काले घने बाल, भरे हुए गाल, काली घनी दाढ़ी, और मूछें रखते थे। इन सब के बाद भी मेरे दिल में उनके लिए वैसी फीलिंग कभी नहीं आई। लेकिन उनकी वो फोटोग्राफ देख कर तो मेरा जैसे दिमाग ही फिर गया। मैं उनको देख कर मन ही मन उनको दिल दे बैठा। उसमे उनकी बॉडी एक-दम गोरी, छाती में काले बाल गुलाबी निप्पल, कसी हुई बाहें, भरी जांघें इतनी आकर्षित कर रही थी, जैसे अभी उनसे लिपट जाऊं।
अब मेरे दिमाग में सिर्फ उनकी वही फोटो बस गई थी। दिन बीतने लगे। मैं जब भी उनके घर जाता उनकी फोटो को एक टक देखता ही रहता और बाद में उनकी याद करके मुठ मारता। मैं तरकीबें सोचता कि कैसे उनको पटाऊं और उनके साथ जी भर के गांड़ की चूदाई करवाऊं।
दिसंबर का महीना था उस समय क्रिकेट वर्ल्ड कप चल रहा था। मेरे घर पर टी.वी. था, पर ब्लैक एंड व्हाइट, उसी में देखते थे। उस दिन इंडिया पाकिस्तान का मैच था डे-नाइट। दोपहर में रमेश भैया का छोटा भाई अमर हमारे घर आया था। हम लोग चूंकि बराबर उम्र के थे, तो साथ में घूमना-फिरना होता था। उसने मुझसे कहा आलोक चल आज मेरे यहां मैच देखेंगे, तो मैं जाने के लिए तैयार हो गया। चूंकि मैच देर रात को खत्म होना था, इसलिए मैंने मम्मी को बोल दिया कि आज मैं रमेश अमर के घर मैच देखने जा रहा था, और रात वहीं रुकूंगा। मम्मी ने हां कर दी। हम निकल गए।
इसके आगे क्या हुआ, वो आपको अगले पार्ट में पता चलेगा।
अगला भाग पढ़े:- ममेरे भाईयों ने मुझे गांडू बनाया-2