दोस्तों नमस्कार। मैं हूं ocean1958, इस इस स्तम्भ का नियमित लेखक। लेकिन इस बार बहुत देर बाद उपस्थित हुआ हूं। मेरे लिखी रचनाएं आपने पढ़ी होंगी – अजब गांडू के गजब कहानी, रजनी की चुदाई उसी की ज़ुबानी, मां बेटे की चुदाई, ग्रुप सेक्स, मेरी चुदक्कड़ मामी और मेरी ममेरी बहन, मेरी मौसी और मेरी मौसेरी बहन, शीला की जवानी, मेरे बचपन का प्यार रूबी, कुंवारी साली की चुदाई, घरेलू कामवालियों की चुदाई, मुकुल कुलश्रेष्ठ और भावना कुलश्रेष्ठ की चुदाई और बाप बेटी की चुदाई।
आज मैं एक नई रचना के साथ उपस्थित हुआ हूं – मेरी गांड फाड़ चुदाई। उम्मीद है ये रचना भी आपको पसंद आएगी। तो शुरू करते हैं-
मैं हूं मालिनी अवस्थी। उम्मीद है आप मुझे भूले नहीं होंगे। अजब गांडू की गजब कहानी, मां बेटी की चुदाई और बाप बेटी की चुदाई में मेरी आपकी मुलाक़ात हो चुकी है। “मेरी गांड फाड़ चुदाई” की ये कहानी असल में बाप-बेटी की चुदाई से ही शुरू को गयी थी, जब मेरी पुरानी जानकार रागिनी, अपने पति आलोक और बेटी मानसी के बीच हो रही चुदाई से परेशान हो कर मुझसे मिली थी।
थोड़ा मैं रागिनी के बारे में भी बता दूं। जब मैं कानपुर के जीवन ज्योति हस्पताल में मनोचिकित्सक थी, तब रागिनी वहां नई-नई नर्स भर्ती हुई थी (मेरे और रागिनी के बारे में अधिक जानने के लिए कहानी मां बेटे की चुदाई पढ़ें)।
रागिनी बला की खूबसूरत थी और बला की चुदक्कड़ भी। गांड चूत सब चूसती चुसवाती और चुदवाती थी और साथ ही समलिंगी भी थी। साथ की नर्सों के साथ खूब चूत, गांड चुसाई करती थी। इसी चुदाई के चक्कर में उसकी आलोक के साथ शादी हो गई थी और मानसी उनकी इकलौती बेटी थी।
मानसी के अपने पिता आलोक के साथ चुदाई के सम्बन्ध बन गए थे, और इसी से परेशान हो कर रागिनी मेरे पास आयी थी। बातों-बातों में ही आलोक के ज्यादा ही लम्बे लंड के बारे मैं मुझे बताया। इन्हीं चूत चुदाई और लम्बे लंड की बातों के बीच तभी मेरी और रागिनी की भी चूत हुए गांड चुसाई हो गयी।
जब रागिनी आलोक के लम्बे लंड के बारे मैं बताया तो मैंने भी आलोक से चुदाई का मन बना लिया, और इस चुदाई को अंजाम भी दे दिया। आलोक के साथ मेरी चुदाई में रागिनी का भी हाथ था। आलोक के साथ मेरी चूत और गांड चुदाई मस्त थी। अब क्या बताऊं, लम्बा लंड चूत में तो मजा देता ही है, गांड में और भी ज्यादा मजा देता है, जब पूरी गेहराई तक गांड में जाता है।
आपको तो पता ही होगा कि मैं इन तीन तरह के रबड़ के लंड अपने पास रखती हूं, और जब चूत या गांड चुदाई की ठरक लगे तो इन्हीं रबड़ के लंडों से मजा लेती हूं। चूत चुसाई के दौरान मैंने रागिनी की गांड और चूत में भी ये लंड डाल कर उसे असली चुदाई जैसा मजा दिया था। रागिनी को इन लंडों से इतना मजा आया कि वो खुद ही इन्हें लेने के लिए उतावली हो गयी।
मुझे ये लंड कानपुर का ही संदीप सोलंकी ला कर देता है। अब ये संदीप सोलंकी कौन है? संदीप सोलंकी भी मेरा पुराना जानकार है। बाजार मैं जब भी कोइ नई तरह का रबड़ का लंड आता है तो संदीप मुझे जरूर बताता है। संदीप अभी 32-35 जवान है और मेरी चूत का बड़ा दीवाना है। मेरी उसके साथ चुदाई तो नहीं हुई, मगर जब रागिनी संदीप के पास रबड़ का लंड लेने गयी, तो उसकी संदीप के साथ चुदाई हो गयी।
जिस तरीके की संदीप ने रागिनी की चुदाई की थी उससे रागिनी की चूत का भोसड़ा बन गया था। मगर रागिनी की इस तरह हुई चुदाई का किस्सा जब रागिनी ने मुझे बताया तो मेरी इच्छा संदीप से चुदाई करवाने की होने लगी। बस मौक़ा ही चाहिए था…. और अब मुझसे रहा भी नहीं जा रहा था, बस मैंने संदीप को फोन मिला ही दिया।
मेरी के साथ हुई चुदाई की ही ये कहानी है – “मेरी गांड फाड़ चुदाई।”
संदीप ने फोन उठाया और जैसे मैंने उसकी हेलो का जवाब दिया तो वो चहकते हुई बोला, “अरे मैडम मालिनी जी, नमस्ते। आज तो भाग ही खुल गए इस गरीब के, मैं बस आपके ही बारे में सोच रहा था। कहिये कैसे याद किया?”
मैंने भी सोचा साला कितना ड्रामा करता है – “मेरे बारे में ही सोच रहा था।”
मैंने कहा, “बस ऐसे ही याद कर लिया तुझसे बात करने का मन हो रहा था।”
संदीप बोला, “तो फिर यहीं आ जाइये मेरे पर्सनल ऑफिस मैं। यही बैठ कर बातें करेंगे।”
मैंने कुछ सेकण्ड रुक कर कहा, “ठीक है आती हूं। बारह बजे तक पहुंचती हूं।”
संदीप चहकता हुआ बोला, “अरे मैडम, आप क्या तकलीफ करेंगी, क्यों टेंशन ले रही हैं, मैं ड्राइवर भेजता हूं, आपको ले भी आएगा छोड़ भी आएगा।”
मैंने कहा, “नहीं संदीप, शंकर, मेरा ड्राइवर है, वो ले आएगा।”
संदीप बोला, “छोड़िये मैडम क्यों शंकर को तकलीफ देनी? क्या पता कितना टाइम लगेगा आपको। ऐसे ही कुछ-कुछ सोचेगा शंकर। मैं ही गाड़ी भेजता हूं बारह के बजाए ग्यारह बजे आ जाईये।”
मैंने घड़ी देखी साढ़े दस बजे थे। मैं मन ही मन हंसी और साथ ही मेरी चूत ने पानी छोड़ दिया, “साला कहां-कहां दिमाग चलाता है। लगता है आज चोदे बिना नहीं मानने वाला। पक्का दारू-वारू का प्रोग्रम बना के बैठा होगा।”
मैंने हंसते हुए कह दिया, “ठीक है, भेज दे ड्राइवर ग्यारह बजे ही आती हूं।” मैं बाथरूम चली गयी और आधे घंटे के बाद तैयार हो कर निकली और प्रभा को बुला लिया और कहा, “प्रभा मैं अभी थोड़ी देर मैं कहीं जा रही हूं। शंकर को बोल देना आज कोइ काम नहीं। अगर वो छुट्टी करना चाहे तो कर ले। शाम को लौटने में हो सकता है देर हो जाए। छह सात भी बज सकते हैं तुम खाना बना कर खा कर आराम करना, मैं अपने आप खा लूंगी।”
प्रभा ने हां में सर हिलाया और चली गयी। प्रभा मेरी ख़ास थी। कभी इस बारे में बात तो नहीं हुई, मगर मेरी आदतों के बारे में उसे पता ही होगा। एक तरह से मेरी निजी कामवाली थी। मगर मैंने उसे कभी कामवाली नहीं समझा और उसकी सुख सुविधा का पूरा पूरा ध्यान रखा है।
पौने ग्यारह बजे संदीप का ड्राइवर आ गया, और बीस मिनट में हम लोग संदीप के निजी ऑफिस में थे। जैसे ही मैं संदीप के दफ्तर में पहुंची, संदीप एक-दम खड़ा हो गया और नमस्ते-नमस्ते के बाद चहकता हुआ बोला, “मैडम आप पहली बार यहां आई हैं, आज तो मेरा ऑफिस पवित्र हो गया आपके कदमों से।”
इसके साथ ही संदीप ने मेरी चूत की तरफ देखते हुए अपना लंड खुजला दिया। संदीप का ये प्राइवेट ऑफिस बहुत ही उम्दा तरीके से सजाया हुआ था। आगे ऑफिस था और पीछे की तरफ भी एक दरवाजा नज़र आ रहा था। शायद दूसरा ऑफिस होगा या फिर कमरा होगा था जो ठरकी संदीप शायद चुदाई के लिये इस्तेमाल करता होगा।
आगे ऑफिस में एक बड़ी से मेज थी। उसके एक कोने में एक सोफा था। ऑफिस का सारा सामान कीमती लग रहा था। इधर-उधर की बातें करने के बाद संदीप बोला, “कहिये क्या सेवा करूं आपकी, आज कैसे याद किया?”
फिर कुछ रुक कर बोला, “अच्छा मैडम पहले तो ये बताईये कि क्या पियेंगी आप? चाय कॉफी या कुछ और?”
संदीप के उतावलेपन पर मैं हंसती हुई बोली, “अरे संदीप बैठ जा, इतनी भी क्या जल्दी है।”
संदीप मेज के पीछे वाली अपनी कुर्सी पर ना बैठ कर मेरे बराबर वाली कुर्सी पर ही बैठ गया। पैंट में उसके लंड का उभार साफ़ दिखाई दे रहा था। उधर मैं तो आयी ही चुदाई करवाने थी। मेरी चूत भी फुर्र-फुर्र पानी छोड़ रही थी। अब इतना भी नासमझ संदीप नहीं था कि इतनी सी बात भी ना समझ सके कि उसकी और रागिनी के बीच हुई चुदाई के बात रागिनी ने मुझे ना बताई हो। वो भी तब जब रागिनी मेरे कहने से ही प्लास्टिक के लंड लेने उसके पास गयी थी।
संदीप ने एक बार अपना लंड खुजलाया और बोला, “कहिये मैडम क्या सेवा करूं आपकी?”
उधर मेरी चूत में खुजली मची हुई थी। मेरा मन हो रहा था संदीप से कहूं, “इधर आ भोसड़ी के रगड़ाई कर मेरी चूत की, जैसे रागिनी की की थी।”
मैंने चूत की ऊपर साड़ी ठीक करते हुए कहा, “संदीप कोइ नई चीज आई है इन दिनों में?”
संदीप ने एक बार फिर लंड खुजलाया और बोला, “मैडम जब भी कोइ नई चीज आती है, सबसे पहले आपके पास पहुंचती है। फिर भी मैं आपको पूरे हर तरह की खिलौने दिखा देता हूं, आप देख लीजिये। अगर मेरे पास होगा तो ठीक है नहीं तो मंगवा दूंगा।” ये कह कर संदीप उठा और बोला, “चलिए मैडम पीछे वाले रूम में चलते हैं।”
मैं भी उठ गयी। पीछे वाला कमरा पूरी तरह से अय्याशी के हिसाब से बनाया सजाया हुआ था। एक तरफ बड़ा बेड, एक तरफ सोफा, एक छोटी मेज और तीन कुर्सियां। मेज पर ही लैपटॉप पड़ा था। संदीप ने अपना लैपटॉप खोल दिया और चुदाई की खिलौनों साइट खोल कर लैपटॉप मेरी तरफ घुमा दिया, और मेरे साथ वाली कुर्सी पर बैठ ही गया।
चुदाई की तरह तरह की खिलौनों की फोटो मेरे सामने थे। हर साइज़ के लंड, चोदने की लिए छोटी बड़ी चूतें, चूतड़ों की साथ गांड की छेद, अधखुले होठ अगर किसी का मन मुंह में लंड डालने का हो उसके लिए, और बड़े-बड़े मम्मे अगर मम्मों पर लंड रगड़-रगड़ कर पानी छुड़वाना हो उसके लिए।
मैं देखती भी जा रही थी और अपनी चूत भी खुजला रही थी। तभी मुझे आलोक की लंड की तरह का लम्बा लंड मिल गया गांड में लेने की लिए। लगभग डेढ़ इंच मोटा और सात इंच लम्बा। आगे का टोपा थोड़ा फूला-फूला सा। लंड के पीछे की तरफ दो झूलते हुए टट्टे भी थे। साथ ही बेल्ट जैसी कुछ चीज़ थी।
मैंने संदीप से पूछा, संदीप ये क्या बेल्ट जैसा क्या है?”
“मैडम अगर आपने किसी की गांड या चूत में ये डालना हो, या किसी से अपनी गांड या चूत मैं डलवाना हो, तो ये लंड इस बेल्ट में लगा कर गांड या फिर चूत चुदाई करते हैं।”
मैंने सोचा यही चाहिए था मुझे। मैंने संदीप की तरफ लैपटॉप घुमाते हुए हुए कहा, “संदीप, ये वाला है तेरे पास?”
संदीप ने लैपटॉप की तरफ देखा और मेरी तरफ देखते हुए बोला, “मैडम इससे बड़े वाले साइज के तो पहले ही से ही हैं आपके पास, फिर ये?” फिर दो सेकंड सोचते हुए शरारत से बोला, “मैडम ये पीछे की लिए तो नहीं चाहिए?”
संदीप की लंड का उभार बढ़ता जा रहा था और मेरी चूत में बाढ़ आ चुकी थी। मैंने कहा, “हां संदीप, पीछे के लिए ही चाहिए।”
संदीप कुर्सी पर पीछे की तरफ हुआ और बोला, ये है मेरे पास, अभी मंगवाता हूं।” ये कह कर संदीप ने फोन मिलाया और किसी से कुछ बात की। फोन बंद करके बोला, “मैडम दस मिनट में आ जाएगा।”
अब संदीप भी समझ चुका था कि मैं चुदाई की लिए ही वहां आई थी। संदीप पूरी तरह मुझे चोदने की मूड में आ चुका था। संदीप ने एक बार और लंड को पैंट में ठीक से बिठाया और आगे झुक कर बोला, “मैडम जब तक शोरूम से “वो” आता है, एक-एक ड्रिंक हो जाए?”
मैं भी पूरी मस्ती मैं आ चुकी थी। मैंने बिना ना-नुकर के कह दिया, “ठीक है जिन ले आ।”
संदीप ने कोने में लगी अलमारी में से “कोवाल जिन” की बोतल निकाल कर ले आया। बड़ी मंहगी वाली जिन थी – दस हजार की बोतल।
दो पेग बना कर संदीप ने एक गिलास मेरी और सरका दिया। गिलास में से एक घूंट लेते हुए मैंने कहा, “और सुना संदीप, काम का क्या हाल है?”
संदीप भी सहजता के साथ बोला, “बस मैडम आप के आर्शीवाद से बढ़िया चल रहा है। आज कल लोग बहुत शौक़ीन हो गए हैं – तरह-तरह के शौक रखते हैं, चूत, गांड का छेद, बड़े-च्बड़े मम्मे और अधखुले होंठ। अब तो परिवार वाले शादी-शुदा भी इनका इस्तेमाल करते हैं। मगर सब से ज्यादा डिमांड इनकी कालेज के लड़के-लड़िकयों में है, जो अमीर मां-बाप की संतानें है और हॉस्टल में या शहर में कमरे किराए पर ले कर रहते हैं।”
ऐसे ही बातें करते-करते पहला पेग खत्म हो गया। संदीप ने दूसरा पेग बना दिया। तभी घंटी बजी। उठते हुए संदीप बोला, शायद आ गया है।”
संदीप वापस आया तो उसके हाथ में एक डिब्बा था। बैठते हुए संदीप बोला, “लीजिये मैडम – खोल कर देख लीजिये। फोटो में बहुत अच्छा अंदाजा नहीं लगता।” ये कह कर संदीप ने डिब्बा मेरे हाथ में दे दिया।
मैंने डिब्बा खोला और रबड़ का लंड बाहर निकाल कर हाथ में ले लिया। बिलकुल आलोक के लंड जैसा ही था, वैसा ही लम्बा, वैसे ही बड़े-बड़े लटकते हुए टट्टे। बस इस लंग का टोपा थोड़ा फूला-फूला सा था, और साथ ही एक बेली भी थी।
ये लंड बेल्ट में अटक जाता था और इसे अपनी कमर से बांध कर रक लड़की दूसरी लड़की की चुदाई करती थी। मेरी चूत में तो खुजली हो ही रही थी। ये लंड देख कर मेरी गांड में भी खुजली मच गयी। मन करने लगा अभी के अभी गांड में ले लूं। मैंने संदीप से कहा, “संदीप बिलकुल वैसा ही है, जैसा मुझे चाहिए था।”
जैसे ही मैंने ये कहा, संदीप ने अपना खड़ा लंड पैंट में से बाहर निकल लिया और मेरी तरफ देखते हुए बोला, मैडम एक बार इसको भी देख लीजिये।”
सच में ही संदीप का लंड मोटा था जैसा रागिनी ने बताया था। मैंने हंसते हुए कहा, “क्या हुआ संदीप, इसको क्या हो गया है? रागिनी की याद आ गई क्या इसको?”
जब मैंने कहा, “रागिनी की याद आ गयी क्या इसको,” तो संदीप पूरी तरह मेरा इरादा समझ गया और बोला, “नहीं मैडम रागिनी की नहीं आज ये आपकी सेवा करना चाहता है।” ये कहते हुए संदीप खड़ा हो गया और मेरे सामने आ गया। संदीप का मोटा लंड मेरे मुंह के बिलकुल सामने था। मैंने संदीप का लंड मुंह में तो नहीं लिया मगर हाथ में पकड़ लिया और पूरे कामुक अंदाज से बोली, “भोसड़ी के संदीप, कहां छुपा रखा था ये हथियार अब तक?”
मेरा ये कहना ही था की संदीप ने लंड अपने हाथ में लिया और मेरे मुंह में डाल दिया। मैंने जरा सा ही संदीप का लंड चूसा और बोली, “थोड़ा सब्र करले संदीप, जल्दी क्या है? बैठ जा।”
“सॉरी मैडम, रहा नहीं गया,” ये कह कर संदीप वापस कुर्सी पर बैठ गया।
मैंने अपना जिन का गिलास उठा और एक घूंट भर कर बोली, “संदीप क्या बात है, चुदाई का मन हो रहा है क्या?”
संदीप ने लंड हाथ में ले कर कहा, मैडम आपको चोदने का मन तो सालों से हो रहा है, जब से आपसे मिला हूं तब से, बस कहने की हिम्मत ही नहीं हो रही थी – और आप भी तो आप भी तो घास नहीं डाल रही थी, आज आप आयी हैं, तो रहा नहीं गया। सच कहूं तो मैडम बहुत तरसा हूं आपकी चुदाई की लिए। आज तो मौक़ा दे ही दीजिये।”
मैंने कह ही दिया, “ठीक है संदीप, कर ले आज मेरी चुदाई। मगर बात बता रागिनी बहुत तारीफ़ कर रही थी तेरी, ऐसा भी क्या किया तूने उसके साथ?”
संदीप ने एक हाथ मैं अपना लंड पकड़ा कर कहा, “रागिनी जी क्यों मेरी तारीफ़ कर रही थी ये तो मुझे मालूम नहीं अब आप खुद ही देख लीजियेगा।” ये कह कर संदीप ने अपना गिलास खाली कर दिया और तीसरा पेग बना दिया।
दो पेग का सुरूर मुझे भी आ चुका था। संदीप का मोटा लंड देख कर रगड़ाई वाली चुदाई का मन हो रहा था। मैंने संदीप से कहा, “इधर आ संदीप।”
संदीप मेरे सामने आ कर खड़ा हो गया।
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