और वैसे भी मेरी नेहा दीदी इतनी खूबसूरत हैं कि कोई भी उनके प्यार में पड़ सकता है। उनका चेहरा बेहद मासूम लेकिन कामुकता से भरा था। उनकी बड़ी-बड़ी आंखें काजल से भरी होती, जो हर बार मेरी तरफ देखती, तो दिल कांप जाता। होंठ इतने रसीले और मोटे थे कि जब वो मुस्कुराती तो ऐसा लगता जैसे उन पर चूमे बिना रहा ही ना जाए। हल्की गुलाबी चमक उनके होंठों को और भी आकर्षक बना देती थी।
उनकी छाती भरावदार और गोल थी। जब वह टाइट टी-शर्ट पहनती थी, तो उनके उभरे हुए स्तनों का आकार साफ़ झलकता था। हर बार जब वो झुकती थी, तो उनकी क्लीवेज उनके गले से बाहर झांकती हुई मुझे बेचैन कर देती थी। उन गोल और भारी स्तनों की हर हरकत मेरे लिए पागल कर देने वाली होती थी। कभी-कभी टी-शर्ट के नीचे बिना ब्रा के वो घूमती थी, और कपड़े के नीचे उनके निपल्स का आकार साफ दिखता था।
उनकी पतली कमर और वहां से नीचे जाता हुआ शरीर किसी मूर्ति की तरह तराशा हुआ लगता था। जब वो साड़ी या शॉर्ट्स पहनती थी, तो उनकी नाभि का गड्ढा साफ दिखाई देता था, एक छोटा, गोल और गहराई लिए हुए हिस्सा जो मुझे बार-बार अपनी तरफ खींचता था। कई बार मैं बस उनकी नाभि को ही निहारता रह जाता था, उसकी सुंदरता में खोया हुआ।
और उनकी सबसे मोहक चीज़, उनका पिछवाड़ा। जब वो शॉर्ट्स में होती तो उनके गोल-मटोल और कस कर भरे हुए नितंब हिलते हुए चलते थे। हर एक कदम पर उनका पिछवाड़ा लहराता था और मेरी आंखें उसी पर टिकी रहती थी। टाइट कपड़ों में उनकी गुदाज जांघें और गोल पिछवाड़ा किसी भी लड़के को दीवाना कर सकता था।
नेहा दीदी सिर्फ खूबसूरत नहीं थी, वो एक जीती-जागती, बेहद कामुक कल्पना थी, जिनके बारे में सोचकर ही मेरी रातें जाग कर बीतती थी। धीरे-धीरे मैंने उन्हें और करीब से देखना और महसूस करना शुरू कर दिया। मैं जान-बूझ कर ऐसे समय पर उठता जब वो सुबह नहा कर अपने बाल सुखा रही होती। दरवाज़े की झिरी से मैं उन्हें चुपके-चुपके देखता, कैसे उनके बाल गीले होते, टी-शर्ट उनके शरीर से चिपकी होती, और उनके निपल्स उभरे हुए दिखते।
मैंने उन्हें फ़ॉलो करना शुरू कर दिया। जब वो छत पर कपड़े सुखाने जाती, मैं पीछे-पीछे जा कर किसी कोने में छिप कर उन्हें देखता। जब वो झुक कर बाल्टी उठाती, या साड़ी ठीक करती, मैं उनकी हर हरकत को आँखों में कैद कर लेता। कभी-कभी जब वो अपनी सहेलियों से बात करती, और हँसती, तो मैं उस हँसी के पीछे छिपी उनकी मासूमियत और कामुकता को महसूस करता था।
मुझे पता था यह सब गलत था, लेकिन मेरा मन दीदी को देख कर खुद को रोक ही नहीं पाता था। वो मेरी दीदी थी, लेकिन मेरे लिए वो सिर्फ बहन नहीं, एक ऐसी औरत थी जिनके लिए मेरा दिल और जिस्म दोनों बेकाबू हो चुके थे।
एक दिन रात को मुझसे रहा नहीं गया और मैं चुप-चाप उनके कमरे के अंदर चला गया। नेहा दीदी नींद में थी, लेकिन गहरी नींद में नहीं। मुझे पहले से ही अंदाज़ा था कि उनकी नींद बहुत हल्की होती है, लेकिन उस रात वो थकी हुई लग रही थी। कमरे में धीमी-सी रोशनी जल रही थी जो उनकी त्वचा को हल्का सुनहरा सा बना रही थी।
वो अपने बिस्तर पर एक करवट लेटी हुई थी, घुटने थोड़े मोड़े हुए थे और एक हाथ सिर के नीचे था। उनकी हल्की टी-शर्ट उनके शरीर से बिल्कुल चिपकी हुई थी, शायद गर्मी के कारण पसीने से कपड़ा उनकी त्वचा से चिपक गया था। उस टी-शर्ट के नीचे उनके उभरे हुए स्तन साफ़ झलक रहे थे, हर सांस के साथ उनका उभार ऊपर-नीचे हो रहा था।
उनके हॉट पैंट्स इतने छोटे थे कि उनके पिछवाड़े की गोलाई बाहर तक साफ़ दिखाई दे रही थी। जब वो करवट बदलती थी, तो कपड़ा और ऊपर चढ़ जाता था, जिससे उनकी जांघों की चमकती त्वचा दिखती थी। उनकी पतली कमर और उस पर धीरे से उठती उनकी नाभि एक ऐसी छवि पेश कर रही थी जो मेरी आँखों में बस गई।
मैं कुछ देर तक उन्हें निहारता रहा, फिर धीरे से उनके कमरे के कोने में रखी अलमारी की तरफ बढ़ा। मैं जानता था उसमें उनकी बहुत सी चीज़ें रखी होती थी। बहुत ध्यान से, बिना आवाज़ किए, मैंने अलमारी खोली। अंदर कपड़ों की कुछ तहें रखी थी, और बीच में कुछ इनरवियर भी।
मेरे हाथ ने धीमे से एक ब्रा को उठाया — हल्की गुलाबी रंग की, जो शायद उनकी पसंदीदा रही होगी। उसकी महक में दीदी की खुशबू बसी थी। फिर मैंने उसके नीचे से एक पतली, चिकनी सी पैंटी भी निकाली — हल्के नीले रंग की। मेरा दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़क रहा था। मैं ये सब बस छू रहा था, महसूस कर रहा था, जैसे वो दीदी का एक हिस्सा हो।
मैंने वो ब्रा और पैंटी बहुत सावधानी से उठाई और कमरे से बाहर निकल गया, बिना कोई आवाज़ किए। अपने कमरे में आकर दरवाज़ा बंद किया और उन्हें अपने तकिए के नीचे रख दिया, जैसे कोई बहुत खास खजाना छुपाया हो।
उस रात के बाद, यह एक आदत सी बन गई। हर रात जब दीदी सो जाती, मैं चुप-चाप उनके कमरे में घुसता। कभी-कभी बस उन्हें देखता, कभी उनके कपड़ों को महसूस करता। हर बार अलमारी से कुछ निकाल कर अपने कमरे में ले जाता — कभी ब्रा, कभी पैंटी, कभी उनका पहना हुआ दुपट्टा। इन चीज़ों में उनकी खुशबू बसी होती थी, जो मेरे लिए किसी नशे से कम नहीं थी।
मैं अपने निजी अंगों पर उन्हें रगड़ता और उन्हीं पर खुद को बहा देता। मेरा सफेद पानी उन कपड़ों पर देखना बहुत ही रोमांचक लगने लगा था, और उसके बाद मैं चुप-चाप उन कपड़ों को अलमारी में वापस रख देता। कभी-कभी अगली सुबह मुझे दिखता कि उन्होंने मेरे छूए हुए कपड़े पहने होते। वह एहसास बड़ा ही अच्छा होता। मेरे सफेद पानी के धब्बे उनकी निजी जगहों को छू रहे होते, और यही मेरे लिए एक तरह का प्यार होता।
अब यह मेरा रोज़ का नियम बन गया था। जैसे ही सब सो जाते, मैं अपने कमरे से निकल कर दीदी के कमरे में पहुंच जाता। हर रात कुछ नया छूने और महसूस करने की लालसा होती। कभी उनके तकिए के नीचे हाथ रखता, कभी उनके पैरों के पास बैठ कर उन्हें निहारता। उनके शरीर की गर्मी और सांसों की आवाज़ मेरी धड़कनों को तेज कर देती। मैं घंटों बस उनके पास बैठा रहता, उनकी टी-शर्ट के नीचे की हर हरकत को देखता, जैसे उनकी हर सांस मेरी अपनी हो।
एक दिन जब घर पर कोई नहीं था, तब उन्होंने मुझे जोर से चिल्लाते हुए अपने कमरे में बुलाया तब मैं ड्राइंग रूम में बैठ कर टीवी पर कुछ देख रहा था। मैं दौड़ते हुए उनके कमरे में पहुंचा और जैसे ही मैंने दरवाजा खोला मेरी सांसें अटक गई। दीदी के हाथों में वही पेंटी थी जिस पर रात को मैंने खुदको हल्का किया था। वह उस धब्बे को गौर से देख रही थी। जब मैंने दरवाजा खोला तो उन्होंने मुझे गुस्से से घूरना शुरु किया।
“तू रात को मेरे कमरे में क्या करता है गोलू?” उन्होंने उसी गुस्से में कहा। मेरे चेहरे का रंग उड़ गया। मेरा गला सूख गया और दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़कने लगा। मैंने घबरा कर कुछ बोलने की कोशिश की, “दीदी… मैं बस… मैं समझा सकता हूँ…”
लेकिन उन्होंने हाथ उठा कर मुझे चुप करवा दिया। “चुप रहो। एक शब्द भी नहीं। मैं जानती हूँ तुम मेरे कमरे में क्या कर रहे थे। ये जो तुम हर रात करते आ रहे हो… मुझे सब समझ में आ गया है। मैं बहन हूँ तुम्हारी गोलू, लेकिन फिर भी… मुझे भी लगता था… कुछ तो है हमारे बीच जो बहन-भाई से ज़्यादा है। लेकिन तुम्हारा ये तरीका मुझे डराने लगा है।”
उन्होंने वो पैंटी ज़मीन पर फेंकी और मेरी तरफ देखा। उनकी आँखों में गुस्सा और डर दोनों था, लेकिन उनके होंठ काँप रहे थे, जैसे वो खुद भी इस सबको समझ नहीं पा रही थी।
“अगर तुमने दोबारा ऐसा किया… अगर फिर से मेरे कपड़ों के साथ कोई हरकत की… तो मैं मम्मी-पापा से सब कुछ कह दूँगी। समझे तुम? अब जाओ यहाँ से।”
मैंने कुछ कहने की कोशिश की लेकिन वो मुड़ी और खिड़की की ओर देखने लगी। अब उनके चेहरे पर गुस्सा कम था, लेकिन एक अजीब सी बेचैनी थी। मैं चुप-चाप पीछे मुड़ा और उनके कमरे से बाहर निकल गया, पहली बार डर और पछतावे के साथ।
इसके बाद उन्होंने मुझसे ज़्यादा बात नहीं की। उनका व्यवहार बदल गया था। पहले वो मुझसे हँस कर बात करती थी, मुझे प्यार से पुकारती थी, लेकिन अब वो एक दूरी बनाए रखने लगी।
इसके आगे की कहानी अगले पार्ट में। फीडबैक के लिए मेल करे [email protected] पर।
अगला भाग पढ़े:- नेहा दीदी और मेरा सिक्रेट अफेयर-2