उस लड़की की जगह दूसरी लड़की छह महीने के अंदर ले लेती। तब तक राजेश उस लड़की का पूर्ण भोग लगा चुका होता।
उसकी यह ख्याति चारों और फैली हुई थी। पर वाह रे नसीब लिखने वाले, उसकी अगली शिकार के कान पहले से ही बंद हो चुके होते, और पिछली शिकार की जुबान पर तो बदनामी के डर का ताला पहले ही लग चुका होता।
कुल मिला कर राजेश के घर वाले भी इस बात से परेशान थे कि अगर उसकी ख्याति ऐसे ही फैलती रही, तो उसकी शादी कैसे होगी। डांटने और पीटने के सारे तजुर्बे उनके अब्बू उस पर कर चुके थे। मगर वो नहीं सुधरे।
किस्मत से राजेश को नौकरी इतनी माकूल मिल गयी कि रिश्तों की लाइन लग गयी। राजेश के पापा के एक दोस्त जिनकी बेटी उन्हें काफ़ी ज़्यादा पसंद थी, तो उन्होने उस लड़की के साथ राजेश का शादी करने का फ़ैसला ले लिया। दोस्तों वो लड़की और कोई नहीं मैं (रीना) ही थी। वैसे मैं और राजेश भी एक-दूसरे को जानते थे। हम दोनों मैं हल्की बात-चीत भी होती थी, फैमिली रीलेशन होने के कारन।
जिस स्पीड से राजेश की शादी तय हो जाने के बाद वो मुझसे मिलने लगे, तो उसके पापा को डर हुआ कि कहीं शादी में बहू के साथ एक बच्चा भी ना आ जाए। तो उन्होंने राजेश की दादी की खराब सेहत का बहाना देकर शादी जल्दी ही करवा दी।
वैसे मैं काफ़ी सुंदर हूँ, तो राजेश के घर वालों का मान-सम्मान रिश्ते बिरादरी में और बढ़ गया। शादी के बाद जब मैं विदा होकर घर आई, तो राजेश के घर की परम्परा ऐसी थी कि नयी बहू पहली रात सास के साथ सोती थी, ताकि सास उसे घर के तौर-तरीके सब कुछ समझा सके।राजेश ने बहुत हाथ-पैर पीटे, पर बात नहीं बनी। तो राजेश की पूरी रात करवटें बदलते बीती। हालांकि यही हाल मेरा भी रहा।
अगली रात राजेश और मेरा कमरा फूलों से सज गया। उधर दादी की तबीयत अचानक ज्यादा बिगड़ गयी थी। राजेश के पापा दूरदर्शी थे। वे समझ गए कि दादी कभी भी विदा हो सकती थी। तो राजेश का ख्याल करके उन्होंने दादी को अस्पताल में भर्ती कराया और खुद वो राजेश की मां के साथ अस्पताल में रहे।
अब घर पर मैं और राजेश अकेले थे। हमें अपनी सुहागरात मनाने का इससे अच्छा मौक़ा और क्या हो सकता था। राजेश भी जल्दी ही किला फतह करना चाहता था, क्योंकि पता नहीं कब अस्पताल से खबर आ जाए।
राजेश और मैं चूंकि पहले मिलते रहे थे, तो फॉर्मेलिटी की आवश्यकता नहीं थी। तो राजेश सीधे मैदान में कूद पड़े और चुम्मा-चाटी शुरू हो गयी। मैं राजेश से ज्यादा गर्म हो रही थी। राजेश तो पता नहीं कितनी सील तोड़ चुका था, पर मैं पाक साफ कुंवारी थी। पर घर पर भाभी और भैया को छिप कर कई बार देख चुकी थी। और रही सही कसर मोबाइल पर पोर्न मूवीज ने पूरी कर दी थी।
राजेश ने पहले तो अपना कुर्ता उतारा और फिर धीरे-धीरे मेरे सारे जेवर और कपड़े उतारने शुरू किया। जितनी जल्दी कपड़े उतारने की राजेश को थी, शायद उससे ज्यादा जल्दी मुझे थी। मैंने राजेश की बनियान और पजामा उतार फेंका। हाल यह था कि पलक झपकते ही हम दोनों के कपड़े प्याज़ के छिलकों की तरह उतर गए।
मेरे मम्मे मांसल थे और रंग दूध जैसा। राजेश ने सबसे पहले उन्हीं पर कब्ज़ा किया। उसने मेरे को नीचे लिटाया और मेरे होंठ चूसते हुए सीधे मम्मे मुंह में ले लिए। मैं कसमसा रही थी। मेरे हाथ में राजेश का लंड था, जिसे मैं मजबूती से मसल रही थी।
राजेश ने हाथ नीचे कर के मेरी चूत में उंगली लगाई जो पहले ही गीली थी और किसी मर्द का स्पर्श पाके और भी ज़्यादा गीली हो चुकी थी। राजेश ने पहले एक, फिर दो उंगली पूरी घुसा कर अंदर घुमानी शुरू कर दीं।
मेरी कसमसाहट बढ़ती जा रही थी। राजेश ने अब नीचे होकर मेरी टांगें चौड़ी की और जीभ घुसा दी और मेरी गर्म गीली चूत में अंदर-बाहर करके चाटने लगा। अब तो मैं बेकाबू होने लगी, और जल बिन मछली की तरह तड़पने लगी।
मैंने कसमसा कर राजेश से कहा: अंदर आ जाओ, अब बर्दाश्त नहीं हो रहा!
राजेश मेरी बात मानते हुए सीधे हुए और अपना मूसल मेरी चूत पर लगाया।
मैंने झटके से उसे रोका और कंडोम लगाने को कहा। राजेश को भी होश आया क्योंकि दोनों पहले ही तय कर चुके थे कि अभी कुछ दिन मजे लेंगे, बच्चे की नहीं सोचेंगे।
तब राजेश उठा और कुर्ते की जेब से कंडोम निकाल कर खड़े लंड पर चढ़ाया और फिर पेल दिया टोपीदार लंड को मेरी चूत में। मेरी चीख निकल गयी। राजेश ने कुछ नहीं सुना, वह तो गहराई में उतरता चला गया।
मेरी दर्द के मारे हालत खराब हो गयी थी। शायद मेरी झिल्ली फट गयी थी। मैं राजेश से रुकने या धीरे करने की खुशामद करने लगी। पर राजेश कहाँ रुकने वाला था। अब मैंने भी इसे स्वीकार कर लिया और मैं भी राजेश का पूरा साथ देने लगी। कुल मिला कर हमारी सुहागरात धमाकेदार रही।
इसके आगे क्या हुआ, वो आप अगले पार्ट में पढ़ेंगे।
अगला भाग पढ़े:- पति की धोखेबाज़ी-2