पिछला भाग पढ़े:- दो गायें और दो सांड-19
अन्तर्वासना कहानी अब आगे-
नसरीन बता रही थी, “मैंने निकहत के दोनों गाल अपने हाथों में लिए और प्यार से बोली, “मेरी निकहत। इसके साथ ही मैंने निकहत के होंठ अपने होठों में ले लिए और चूसने लगी। निकहत ने भी मुझे बाहों में ले लिया।”
“मालिनी जी अब रहा नहीं जा रहा था। मैं निकहत से बोली, “तो निकहत बोलो, चूसें एक-दूसरी की फुद्दी, चाटें एक-दूसरी के चूतड़?”
“निकहत कुछ नहीं बोली। मैं उसको बेड के किनारे की तरफ ले गयी। बेड के किनारे पर सीधी लेट कर मैंने अपने चूतड़ों के नीचे एक तकिया रखा और अपनी फुद्दी उठा दी।”
“मैंने नीचे हाथ डाल कर अपनी चूत की फांकें चौड़ी कर दी और निकहत से कहा, “निकहत मेरी बेटी, अब जा बैठ जा फर्श पर घुटनों के बल – मगर एक तकिया रख लेना घुटनों के नीचे – और चूस चाट अपनी अम्मी की फुद्दी, दे आज अपनी अम्मी को फुद्दी चूसने का मजा।”
“निकहत कुछ पल तो मुझे देखा और फिर मेरी गुलाबी चूत के तरफ देखने लगी। कितनी ही देर निकहत मेरी खुली गुलाबी फुद्दी की तरफ देखती रही और फिर निकहत घुटनों के बल बैठ गयी और मेरी फुद्दी चूसने-चाटने लगी – मेरी फुद्दी का दाना चूसने लगी।”
“मालिनी जी अब क्या बताऊं, जिस तरीके से निकहत जोर-जोर से पागलों की तरह मेरी फुद्दी चूस-चाट रही थी मालिनी जी मुझे तो डर सा ही लगने लग गया था कहीं निकहत मेरी फुद्दी में अपने दांत ही ना मार दे – मेरी फुद्दी को दांतों से काट ही ना ले।”
नसरीन बता रही थी, “मालिनी जी ऐसा हुआ तो कुछ नहीं मगर निकहत ने मेरी फुद्दी चूस-चूस, चाट-चाट कर बिलकुल सुखा दी और मेरी चूत का पानी ही निकल दिया। मेरे मुंह से बस इतना ही निकला, “निकहत बेटा तूने तो मेरी फुद्दी का पानी ही छुड़ा दिया।”
“एक बार जब चूत मजा निकल गया उसके बाद मैंने अपने चूतड़ थोड़े ऊपर कर दिए और हाथों से चूतड़ फैला दिए। मरे चूतड़ों का छेद अब निकहत के सामने था। निकहत मेरे चूतड़ चाटने लगी।”
“कुछ देर निकहत से चूतड़ चटवाने के बाद मैंने निकहत से कहा, “बस निकहत, चलो अब मैं देती हूं तुम्हें चूत और चूतड़ चाटने का मजा।”
“ये सुन कर निकहत उठ कर खड़ी हो गयी और बोली, अम्मी ये चूत चूसने में तो सच में तो सच में बड़ा ही मजा आता है। अम्मी मुझे अपनी फुद्दी बड़ी गीली-गीली लग रही है, लगता है मेरी फुद्दी भी पानी से भरी पडी है। मुझे अपनी फुद्दी में कुछ अजीब अजीब लग रहा है।” मैं भी उठ कर खड़ी हो गयी।”
“निकहत लेट गयी। एक तकिया तो पहले ही रखा था, निकहत ने एक तकिया और अपने चूतड़ों के नीचे रख दिया। निकहत को मालूम था कि उसकी फुद्दी नीचे वाली फुद्दी है और को इसे लेट कर मुंह के सामने लाने के लिए दो तकियों का सहारा लेना पड़ता है।”
“मालिनी जी अब नीचे बैठने का नंबर मेरा था।”
“मालिनी जी सच में मैं मैंने सोच रही थी, ‘वाह क्या बात है – बेटा अपनी अम्मी को चोदता है और अब बेटे की बीवी बेटे की अम्मी की चूत चूसती है।” ज़िंदगी हो तो ऐसी।
“मालिनी जी मेरे दिल से दुआ निकल रही थी, “ईश्वर अल्लाह, ऊपर जो भी है, ऐसा परिवार सब को दे, जिसमें सब तरह की चुदाईयां-चुसाईयां घर के सदस्यों में ही हो जायें। अगर घर में ही फुद्दीयां और लंड मौजूद हैं तो फिर बाहर मुंह मारने कि क्या जरूरत है?”
“बस मालिनी जी, मैं नीचे बैठ गयी। लेटी हुई निकहत ने नीचे से हाथ डाल कर पहले ही अपनी फुद्दी के फांकें खोली ही हुई थी। निकहत की गोरी-चिट्टी गुलाबी फुद्दी में से तो पानी जैसे बह रहा था।”
“मालिनी जी में निकहत की फुद्दी चूसने चाटने लगी। कमाल की बात थी मालिनी जी, निकहत की फुद्दी का पानी तो जैसे कमाल का ही था। थोड़ा गर्म-गर्म, चिकना, खुशबू वाला – हल्का सा नमकीन। मालिनी जी ऐसा मस्त करने वाला फुद्दी का पानी तो में पहली बार चूस रही थी।”
“मालिनी जी मैंने सोचा, ऐसा पानी, इतना पानी छोड़ती है निकहत की फुद्दी? मालिनी जी सच आपने तो बहुत मजे लिए होंगे निकहत की पानी से भरी हुई फुद्दी चूसने के?”
अब नसरीन की इस बात का में भी क्या जवाब देती – मजे तो मैंने लिए ही थे।
“नसरीन की इस बात पर मैंने बस इतना ही कहा, “हां नसरीन, सच पूछो तो मैंने बहुत फुद्दीयां चूसी चाटी हैं, मगर निकहत जैसे फुद्दी अब तक नहीं चूसी जिसमे पेशाब की जरा सी भी महक नही थी – सिर्फ फुद्दी का पानी ही था, गरम चिकना और मस्त करने वाली खुशबू वाला।”
फिर मैंने नसरीन से कहा, “नसरीन एक बात बोलूं? आगे से जब भी कानपुर आओ निकहत को जरूर लेकर आना। तुम और असलम दोनों दिखावे के लिए अलग-अलग कमरे में सोना और निकहत मेरे साथ सोयेगी। रात को तुम और असलम मजे करना और मैं मस्त फुद्दी चूसूंगी निकहत की। नसरीन कितनी बढ़िया बीवी मिली है असलम को – एक दम हीरा।”
नसरीन बस इतना ही बोली, “क्या मालिनी जी इतना मजा आया आपको निकहत की फुद्दी चूसने का?”
मैंने बस इतना ही कहा, “नसरीन आया तो है, क्या तुम्हें नहीं आया?”
नसरीन बोली, “मालिनी जी मैं तो मजाक कर रही थी। मुझे तो निकहत की फुद्दी चूसने का अजीब सा ही मजा आया है। मैंने आपकी, रागिनी की और ममता की फुद्दीयां चूसी हैं, मगर एक बात बोलूं मालिनी जी आप नाराज़ तो नहीं होंगी?”
मैंने हंसते हुए कहा, “नसरीन मैं जानती हूं तुम क्या कहना चाहती हो। तुम्हारी बात से मैं बिल्कुल भी नाराज़ नहीं होऊंगी, और तुम्हारी बात बिलकुल सही भी है। तुम यही कहना चाहती हो ना कि निकहत की फुद्दी के पानी में पेशाब की एक बूंद भी नहीं थी। निकहत की फुद्दी की पानी में पेशाब की जरा सी भी महक नहीं थी, मगर मेरी और रागिनी कि फुद्दी के पानी में ये पेशाब की थोड़ी सी महक, पेशाब का हल्का नमकीन सा स्वाद का स्वाद होता है?”
नसरीन हिचकिचाते हुए बोली, “हां मालिनी जी बात तो यही है।”
मैंने नसरीन का ज्ञानवर्धन (और अब अपनी पाठकों का भी ज्ञानवर्धन) करते हुए नसरीन को बताया, “देखो नसरीन ये तो तुम भी जानती हो कि फुद्दी का छेद और पेशाब वाला छेद बिल्कुल पास-पास होते हैं।”
“नसरीन बोली, जी मालिनी जी ये तो मैं भी जानती हूं।”
“मैंने कहा, “अब होता क्या है नसरीन, जवान लड़की का अपने दोनों छेदों पर – चूत के छेद और पेशाब वाले छेद पर पूरा पूरा कंट्रोल होता है। जब तक जवान लड़की ना चाहे उसके पेशाब वाला छेद बिलकुल टाइट बंद रहता है। इसीलिए चुदाई की मस्ती मैं जब जवान लड़की की फुद्दी जब पानी छोड़ती है, तब भी लड़की नहीं चाहती कि पेशाब वाला छेद खुले – और वो नहीं खुलता, क्योंकि लड़की नहीं चाहती।”
“नसरीन, अब यही कंट्रोल हमारी उम्र की औरतों में कम हो जाता है। इसीलिए जब चुदाई के ख्याल से हमारी चूतों में आग लगती है और चूतें पानी छोड़ती हैं तब पेशाब वाला छेद ना चाहने पर भी थोड़ा सा खुल ही जाता है और पेशाब की बूंदे टप टप, टप टप कर चूत के पानी में मिक्स होने लगती हैं।”
“नसरीन हंसती हुए बोली, मालिनी जी आप भी ना बस। अब तो जरूर आऊंगी कानपुर आपकी नमकीन पेशाब की बूंदों वाला चूत का पानी चाटने।”
“मैंने भी हंसते हुए कहा, “अच्छा? तो क्या अपनी फुद्दी का पेशाब वाला पानी नहीं चुसवाओगी।” नसरीन हंसने लगी।
“मैंने पूछा, “तो नसरीन, उस दिन कैसी रही तुम्हारी और निकहत की चूत चुसाई।”
नसरीन बोली, “मस्त रही मालिनी जी। एक बार एक-दूसरे की फुद्दी, चूतड़ चूसने, चाटने के बाद हम नंगी ही लेट गयी। हम दोनों के मुंह एक-दूसरी की तरफ थे। हम कभी एक-दूसरी के मम्मे दबा रही थी, कभी फुद्दी में उंगली डाल रहीं थी और कभी एक दुसरे की चूतड़ों के साथ खिलवाड़ कर रही थी”‘।
“मालिनी जी उस रात मैंने और निकहत ने एक बार और ये चूत चूतड़ चुसाई का खेल खेला।”
नसरीन बोली, “मालिनी जी जितने दिन असलम करनाल रहा – मतलब तीन रातें, हर रात मेरी और निकहत की चूत चुसाई हुई।”
“और एक दिन तो मालिनी जी कमाल हो गया। दोपहर को घर के कामकाज से फारिग हो कर मैं लेटी हुई थी कि निकहत आ गयी। आते ही बोली, “अम्मी फुद्दी चुसवाने का मन हो रहा है।” ये कह कर निकहत मेरे पास ही लेट गयी।
“मैंने निकहत से पूछा, “क्या हुआ बेटा, असलम के लंड की याद आ रही है क्या?”
“इसके साथ ही मैं उठी और उठ कर मैंने निकहत की सलवार ना नाड़ा खोल दिया और सलवार और चड्ढी उतार दी। मैं उठी और अपने कपड़े भी उतारने लगी। तब तक निकहत भी अपना कुर्ता और ब्रा उतर चुकी थी।”
“मैंने निकहत से पूछा, बताओ निकहत बेटा कैसे चुसवानी है? निकहत बोली, अम्मी वैसे ही चूसते हैं जैसे आंटी ने पहली बार चूसी थी, जब उन्होंने कहा था, “पूरी रात अपनी है मेरी जान। अब ज़रा अपने पीछे वाले मुलायम-मुलायम चूतड़ चटवाओ, अपनी गुलाबी-गुलाबी फुद्दी का नमकीन रस पिलवाओ। अम्मी मैं नीचे लेटती हूं, आप मेरे ऊपर आ जाईये।”
“मैंने हंसते हुए कहा, “ये बात है? तो फिर दिन भी अपना है और पूरी रात भी अपनी है मेरी जान, अब ज़रा अपने पीछे वाले मुलायम-मुलायम चूतड़ चटवाओ, अपनी गुलाबी-गुलाबी फुद्दी का नमकीन रस पिलवाओ।”
“मालिनी जी निकहत भी हंसी और बिस्तर पर लेट गयी और खुद ही अपने चूतड़ों की नीचे दो तकिये रख कर अपने चूतड़ उठा दिए। मैं निकहत की ऊपर लेट गयी और हममे खूब चूत, चूतड़ चुसाई हुई।”
“बस मालिनी जी मेरे और निकहत में ये चूत चूतड़ चुसाई का सिलसिला अब चल पड़ा है। असलम के करनाल या कानपुर के इतने ज्यादा चक्कर तो लगते नहीं, अब हममें से किसी का भी – दिन में चूत चूसने का मन करता है ये चुसाई हो जाती है। दिन में निकहत मेरे पास आ जाती है और बोलती, “अम्मी मेरी फुद्दी में पता नहीं क्या क्या हो रहा है”, और बस मालिनी जी हम कपड़े उतार कर एक-दूसरी की ऊपर लेट जाती हैं – कभी मैं ऊपर और वो नीचे कभी वो ऊपर और मैं नीचे।”
“मालिनी जी मुझे अभी भी निकहत को फुद्दी चूसने की लिए कहने में झिझक लगती है। मुझे लगता है निकहत भी ये समझती है। इसीलिए कभी-कभी दिन में निकहत मेरे पास आ कर कहती है, “चलिए अम्मी आज आपको मजा देती हूं।” और फिर वही एक-दूसरी की ऊपर वाला सिलसिला शुरू हो जाता है।”
नसरीन बोली, “और मालिनी जी ये सब आपकी बदौलत ही हुआ है, आपका बहुत बहुत शुक्रिया।”
मैंने हंसते हुए कहा, “शुक्रिया यहां आ कर करना अपनी फुद्दी खोल कर मेरे सामने लेट कर, और पेशाब वाला फुद्दी का पानी चुसवा कर। चलो अब बंद करो, मुझे संदीप को फोन करना है, अब मेरी फुद्दी में आग लगी हुई है जो इन प्लास्टिक रबड़ के लंडों से नहीं बुझने वाली, इस चूत को अब असली मर्द का असली लंड चाहिए – गर्मा-गर्म लंड और उसमें से निकलती गर्मा-गर्म मलाई। बिना मोटा लंड गांड और चूत में लिए बिना अब बात नहीं बनने वाली।”
ये कहते हुए मैं हंस दी और नसरीन ने भी हंसते हुए फोन काट दिया, और मैंने संदीप को फोन मिला दिया।
The End – इति – समाप्त
ये कहानी पाठकों को कैसी लगी [email protected] पर मेल करके जरूर बताएं।
मेरी अगली कहानी जो चंडीगढ़ के परिदृश्य पर होगी जिसमें छह फुट एक इंच लम्बे और साढ़े सात इंच लम्बे लंड वाले हट्टे-कट्टे पंजाबी और उनकी पांच फुट दस इंच लम्बी 36-24-38 वाली बला की खूबसूरत बेटी में चुदाई होगी – वो भी दोनों की मर्जी से। कहानी का इंतजार करिये।
धन्यवाद।
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