एक दिन रविवार की दिन था। तो उस दिन हमारा कॉलेज बंद था। तब मां ने खाना बनाया और मुझे बोला कि जाकर मैं बापू को खेत पर खिला आऊं। मैं अकेले नहीं जाना चाहती थी। तब मैं माया को उसके घर से बुला ली, और हम दोनों सहेलियां खेतों की ओर खाना लेकर चली गई।
हम दोनों जब खेत पर पहुंचे तो देखें कि बापू खेतों में मिट्टी का काम कर रहे थे, जिससे वह पूरे लिपटे हुए थे। हम दोनों सहेलियों ने वहां पहुंच कर बापू को आवाज दी कि बापू आकर खाना खा लीजिए। तब बापू ने वहीं से चिल्लाते हुए मुझे बताया-
बापू: बिटिया तुम लोग खाने को रख दो, मैं बाद में खा लूंगा। तुम लोग जाओ आराम करो।
मैं: बापू बहुत समय हो गया है। सुबह से आप काम कर रहे हो। आकर खा लो। काम तो बाद में भी हो जाएगा।
बापू हंसते हुए मुझसे बोले: अरे नहीं मेरी बिटिया, यहां पर बहुत काम है। पहले इस काम को खत्म कर दूं। उसके बाद खाना भी खा लूंगा। तुम चली जाओ।
मैं भी ज़िद पर अड़ गई और बापू से बोली: बापू यदि तुम खाना नहीं खाओगे, तो मैं यहां से नहीं जाऊंगी।
बापू: बिटिया तुम इतना करो, तुम चली जाओ। मैं बस थोड़ी देर में काम खत्म करके खाना खा लूंगा।
मैं: ऐसी बात है तो बापू मैं भी आपकी काम में मदद करती हूं। फिर उसके बाद खा लेना और फिर मैं चली जाऊंगी।
बापू मुझे मना करते रहे, पर मैं नहीं मानी, और उनके साथ जाकर मिट्टी का काम करने लगी। मुझे मिट्टी में मजा आने लगा था। यह देख माया भी मेरे साथ आ गई और मिट्टी में हम सभी काम करने लगे। बापू हमें बार-बार मना कर रहे थे। वो बोल रहे थे कि तुम लोग गंदी हो जाओगी, चली जाओ।
तब माया बोली: चाचा जी आप भी तो गंदे हो चुके हैं। हम भी गंदे हो जाएंगे तो क्या हो गया? हम सभी काम को जल्दी खत्म कर लेंगे। उसके बाद आप खाना खा लीजिएगा, फिर हम घर चलेंगे।
हम दोनों सहेलियां काम कम करती, और बातें ज्यादा करती थी। उसके साथ-साथ मस्ती भी कर रही थी। बापू हमें बार-बार समझा रहे थे, कि ऐसा मत करो पर हम कहां मानने वाले थे। हम अपने में मस्ती करने के साथ-साथ बापू के साथ भी मस्ती कर लेते थे।
माया ने तो एक बार मेरे बापू के कड़क मूंछों को ही खींच दिया और हंसने लगी। फिर बापू ने माया की चोटियों को खींचा और वह भी हंसने लगे। मैं उन दोनों की शरारत देख कर खूब हंस रही थी। हम तीनों बुरी तरीके से मिट्टी में गंदे हो चुके थे। तब बापू ने हमें बोला-
बापू: तुम दोनों जाकर पास में नदी है वहां नहा लो, और अपने आप को साफ कर लो। मैं थोड़ा सा काम बचा है। इसे थोड़ी देर में करके मैं भी आता हूं।
हम दोनों सखियां जाने लगी। माया जाते-जाते बापू की एक बार फिर से मूंछों को खींच कर हंसने लगी। बापू इस बार गुस्सा हुए और माया को पकड़ कर मिट्टी में रगड़ दिया माया। बेचारी छोटी सी वही मिट्टी में पूरी तरह से गीली हो गई। यह देख मेरी हंसी नहीं रुकी और हम और बापू दोनों पूरा खिलखिला कर हंसने लगे। माया बेचारी रोने से शक्ल बना ली।
फिर बापू ने प्यार से माया को उठाया और उसे बोला: जाओ तुम नहा लो, मैं थोड़ी देर में आता हूं।
माया जाते-जाते फिर से एक बार मेरे बापू की मूंछों को खींच दी। और हम दोनों सहेलियां हंस कर वहां से भाग कर नदी के पास आए, और जाकर नदी में उतर के नहाने लगे। हम दोनों एक-दूसरे को साफ करने लगे। हम दोनों एक-दूसरे को साफ कर रहे थे कि माया को मस्ती सूझी, और वो मेरी छोटी-छोटी चूचियों को कपड़े के ऊपर से ही दबाने लगी।
मैं भी मस्ती में उसके चूचियों को दबाने लगी। हम दोनों ने एक-दूसरे को साफ किया, और फिर ना जाने क्या हुआ, हम दोनों एक दूसरे के गाल को चूमने भी लगे?
तभी नदी की ओर किसी की आने की आहट हुई। हम दोनों अलग हुए और एक-दूसरे पर पानी मारने लगे। नदी की ओर बापू आ रहे थे। आते ही उन्होंने हमें देखा और बोला-
बापू: तुम दोनों की मस्ती यहां भी नहीं रुक रही। जल्दी से तुम लोग नहा कर बाहर आओ।
परंतु माया ने मेरे बापू को बोला: चाचा जी हम तो बाहर नहीं आने वाली। यदि आप चाहो तो अंदर आकर हमें निकाल कर दिखा दो।
बापू: अच्छा अब मेरी ही बिटिया मुझे चैलेंज कर रही है? रुक अभी तुम दोनों को बताता हूं मैं।
फिर हम दोनों इधर-उधर भागने लगी कि तभी बापू पानी के अंदर घुसे और तैरते हुए तुरंत हमारे पास आ गए। उन्होंने अपनी बाहों में हम दोनों को जकड़ लिया। हम दोनों उनकी चौड़ी छाती के भीतर समा गए।
हमारी छोटी-छोटी चूचियां उनके छाती के भीतर दबी हुई थी, और बापू अपनी मजबूत भुजाओं में हमें कसे हुए थे? फिर बापू ने हमें छोड़ा और उसके बाद हमने थोड़ी बहुत मस्ती की। फिर बापू ने खुद को साफ किया, और निकल कर खेतों की ओर हम तीनों आ गए।
तभी थोड़ी देर में माया के भी बापू वहां पर आ गए, और वहां पर माया के बापू और मेरे बापू दोनों लोग मिल कर खाना खाए। फिर हम दोनों सखियां बर्तन लेकर घर चली आई।
जब रात हुई हम लोग खाना-पीना खाकर सो रहे थे। तब बापू मेरे कमरे में आए और प्यार से मेरे सर पर हाथ फेरने लगे। तब मैं जाग रही थी। मैं अपनी आंखें खोली और उठ कर बापू से लिपट गई। बापू अपने मजबूत हाथ को मेरी पीठ पर सहलाने लगे। मैं उनकी मजबूत बाहों के अंदर जकड़ी हुई थी।
तभी मां के पैरों की आवाज सुनाई दी। तब झट से बापू ने मुझे छोड़ा और मेरे माथे को चूम कर बोले, “सो जाओ”। और फिर बापू वहां से चले गए।
थोड़ी देर मां बापू भी सोने चले गए। मैं रात को जब पेशाब करने के लिए उठी, तब देखी कि मां के कमरे से काफी तेज़ सिसकारी की आवाज आ रही थी।
मैं कमरे के पास गई। अंदर कुछ दिखाई तो नहीं दे रहा था। पर मैं आवाज सुनने की कोशिश की। अंदर शायद बापू मेरी मां के साथ चुदाई कर रहे थे। मां काफी तेज सिस्कारी लगा रही थे। साथ ही बापू को कह रही थी कि थोड़ा धीरे करो यदि बेटियां इस बात को सुन लेगी तो वह क्या सोचेगी?
इसके आगे की कहानी अगले पार्ट में।
अगला भाग पढ़े:- मेरे बापू ने मेरी सहेली की सील तोड़ी-2