पिछला भाग पढ़े:- उस रात दीदी ने चखाया अपना गीलापन-9
भाई बहन कामुकता कहानी अब आगे-
आखीरकार सुधा दीदी की शादी तय हो गई और दिन बीतने लगे। अब हम दोनों के बीच पहले जैसा कुछ भी नहीं रहा था। हम दोनों को अकेले समय बिताने का मौका नहीं मिलता और अगर ऐसा कोई मौका मिल भी जाए, तो मैं खुद को उसके करीब जाने से रोकता।
लेकिन फिर भी, सुधा दीदी कभी-कभी मुझे अपनी तरफ खींचने की कोशिश करती। वह जान-बूझ कर ऐसे कपड़े पहनती, जिनसे उनका गला थोड़ा और खुला दिखाई दे, और झुकते समय उनकी क्लीवेज साफ नज़र आती। कई बार वह पल्लू ढीला छोड़ कर या टी-शर्ट हल्का खींच कर अपने सीने की ओर मेरा ध्यान खींचने की कोशिश करती। कभी-कभी वह रसोई में या कमरे में काम करते हुए अपनी साड़ी थोड़ा ऊपर उठा देती, जिससे उनका चिकना पेट साफ दिख जाता।
मैं यह सब देखता जरूर था, लेकिन हर बार नज़रें चुरा कर दूसरी ओर देखने लगता। दिल के अंदर खिंचाव तो था, मगर दिमाग बार-बार कहता कि अगर मैंने हार मान ली, तो हमारी दुनिया पूरी तरह बिखर जाएगी। मैं डरता था कि कहीं यह रिश्ता अब पूरी तरह खत्म ना हो जाए, और यही सोच कर मैं उनकी हर कोशिश को नज़र-अंदाज़ करता रहा।
दिन यूं ही गुजरते रहे और देखते ही देखते समय हाथ से फिसल गया। आखिरकार वह दिन भी आ गया जब पूरे घर में शादी की तैयारियाँ चरम पर थी। ढोलक, गाने और मेहमानों की चहल-पहल हर ओर छा गई। दीदी के हाथों में हल्दी रचाई जाने वाली थी। आज उनकी हल्दी की रस्म थी और अगले ही दिन उनकी शादी होने वाली थी।
उसी दिन सुबह करीब दस बजे सुधा दीदी ने माँ से कहा कि वह अपनी एक पुरानी सहेली से मिलना चाहती थी। उसने बताया कि उनकी सहेली कल उनकी शादी में शामिल नहीं हो पाएगी क्योंकि उसे नौकरी के इंटरव्यू के लिए दूसरे शहर जाना था। इसलिए दीदी चाहती थी कि शादी से पहले एक बार उससे मिल लें।
माँ ने उन्हें परमीशन दे दी। तभी दीदी ने मुस्कुराते हुए कहा, “माँ, क्या मैं गोलू को साथ ले जाऊ? हम लोग जल्दी ही लौट आएँगे। रिश्तेदारों के आने से पहले ही घर पहुँच जाएँगे।”
माँ ने सिर हिलाते हुए कहा, “ठीक है, गोलू तुम अपनी दीदी के साथ जाओ और सीधा वापस आ जाना। जल्दी लौट आना क्योंकि आज घर में बहुत काम है।”
हम दोनों घर से निकल कर कार तक पहुँचे। मैंने गाड़ी स्टार्ट की और दीदी मेरे बिल्कुल पास वाली सीट पर बैठ गई। सन्नाटा गहराने लगा, बस इंजन की हल्की गुनगुनाहट और हमारे दिल की धड़कनें सुनाई देती थी। कल दीदी की शादी थी, और मेरे मन में अजीब-सी कसक उठ रही थी। मुझे लग रहा था कि शायद यह आख़िरी बार था, जब मैं अपनी दीदी को इतनी क़रीब महसूस कर पा रहा था। मेरी नज़रें बार-बार दीदी की ओर खिंच जाती, मानो हर लम्हा अपने भीतर समेट लेना चाहता हो।
करीब आधे घंटे ड्राइव करने के बाद अचानक दीदी ने कहा, “गाड़ी यहीं रोक दो।” मैंने चौंक कर देखा तो सामने एक रेस्टोरेंट होटल था। मैंने सोचा कि शायद उन्हें कुछ खाने का मन था, इसलिए तुरंत कार रोक दी। लेकिन दीदी सीधे रेस्टोरेंट की ओर ना जाकर होटल के रिसेप्शन काउंटर की तरफ़ बढ़ गई। मैं थोड़ा हैरान-सा उनके पीछे-पीछे चला गया। रिसेप्शन पर बैठे आदमी ने मुस्कुरा कर पूछा, “जी मैडम, क्या चाहिए?”
दीदी ने बिना हिचकिचाए कहा, “हमें एक रूम चाहिए।”
मैं हैरान खड़ा था। रिसेप्शनिस्ट ने कंप्यूटर में फ़ॉर्म भरना शुरू किया। उसने नाम, पता वगैरह पूछा और दीदी ने बड़े आराम से जवाब दिए। आख़िर में उसने सिर उठा कर पूछा, “मैडम, रिलेशन क्या लिखूँ?”
उस पल दीदी ने अचानक मेरा हाथ पकड़ लिया। उनकी हथेलियों की गर्माहट मेरे पूरे शरीर में फैल गई। उन्होंने बहुत सहज अंदाज़ में मुस्कुराते हुए कहा, ” यह मेरा बाॅयफ्रेंड है।”
मेरी साँसें थम-सी गई। दिल इतनी ज़ोर से धड़क रहा था कि जैसे रिसेप्शन हॉल में सब सुन सकते हों। रिसेप्शनिस्ट ने मुस्कुरा कर सिर हिलाया और एंट्री पूरी करके हमें रूम की चाबी दे दी। दीदी मुझे लेकर लिफ्ट की तरफ़ बढ़ी। मेरे कदम अपने आप उनके पीछे खिंचते चले जा रहे थे। जैसे ही हम होटल के कमरे तक पहुँचे और दरवाज़ा खोला, एक अजीब-सी धड़कन और अनकही उम्मीद भीतर उमड़ आई।
कमरे में घुसते ही मैं बेड के पास खड़ा हो गया और धीरे से पूछा, “दीदी, ये आप क्या कर रही हो?”
अचानक दीदी ने मुझे जोर से गले लगा लिया। उनका शरीर हल्का काँप रहा था और उनकी गरम साँसें मेरे सीने से टकरा रही थी। वो रो पड़ी और बोली, “गोलू, शादी के बाद मैं तुम्हारे साथ ये रिश्ता नहीं रख पाऊँगी। इसलिए आज, शादी से पहले मैं सब कुछ तुम्हारे साथ करना चाहती हूँ।”
मेरे कुछ कहने से पहले ही उन्होंने मेरे होंठों पर अपने होंठ रख दिए। उनके होंठ इतने मुलायम थे कि मेरा पूरा शरीर सिहर उठा। मेरी साँसें तेज हो गई और मैं उनके चूमने में खोता चला गया। उनका सीना मेरे सीने से दबा हुआ था। उनके भारी और गरम स्तन मेरी छाती से ऐसे चिपके थे कि मुझे सब कुछ साफ़ महसूस हो रहा था। उनका हर चूमना, हर छूना मुझे और पागल कर रहा था। उनके होंठों की मिठास, उनके शरीर की गर्मी और उनका शरीर मुझे पूरी तरह अपने बस में कर रहा था।
कुछ देर बाद दीदी ने अचानक मुझे पीछे किया और मेरे चेहरे की ओर देखती हुई अपने होंठों को हल्का सा काटते हुए मुस्कुराई। उनकी आँखों में आँसू थे लेकिन उनमें चाहत भी साफ़ झलक रही थी। बिना कुछ कहे उन्होंने धीरे-धीरे अपनी कुर्ती उतारना शुरू किया। जैसे-जैसे कपड़े नीचे गिरते गए, उनका रूप और भी निखरता गया।
उन्होंने पहले अपना दुपट्टा हटाया, फिर कुर्ती और सलवार भी उतार दी। अब उनके शरीर पर सिर्फ़ ब्रा और पैंटी बची थी। मैं उन्हें देखता रह गया, मेरी साँसें रुक-सी गई। उन्होंने मेरी ओर देखते हुए धीरे से अपनी ब्रा की हुक खोली और वो भी नीचे गिरा दी। उनके भारी और गोल स्तन आज़ाद हो गए, हल्के-हल्के हिलते हुए मेरे सामने थे। उनकी गुलाबी निप्पलें कसाव में थी और उनके सीने की खूबसूरती मुझे और दीवाना बना रही थी।
फिर उन्होंने अपनी पैंटी भी उतार दी। मैं अपनी आँखों पर यकीन नहीं कर पा रहा था। उनका शरीर अब पूरी तरह मेरे सामने था। उनका पेट सपाट, गोरा और नरम लग रहा था। उनके बीच का हिस्सा, उनकी प्यारी सी जगह, हल्की जमी बालों के बीच छुपी हुई थी लेकिन उतनी ही साफ़ और खूबसूरत।
वो धीरे से बेड पर लेट गई और मुझे देखने लगी। उनके चेहरे पर हल्की शर्म, थोड़ी घबराहट और ढेर सारी चाहत साफ़ नज़र आ रही थी। उनका खुला हुआ शरीर, उनके भारी स्तन और उनकी नाज़ुक जगह देख कर मेरा दिल और तेज़ धड़कने लगा। वो पल ऐसा था जैसे पूरी दुनिया रुक गई हो और बस मैं और दीदी एक-दूसरे में खोए हुए हों।
मैंने धीरे-धीरे अपने भी सारे कपड़े उतार दिए और उनके पास जाकर उनके पैरों के बीच बैठ गया। वो हल्की सिहरन के साथ मुझे देख रही थी। मैंने झुक कर उनके नाज़ुक पैरों को अपने होंठों से चूमना शुरू किया। दीदी की आँखें बंद हो गई और उनके चेहरे पर हल्की मुस्कान फैल गई।
मैं उनके पैरों से ऊपर की ओर बढ़ता गया। टखनों से लेकर जाँघों तक उनके शरीर को चूमता रहा। दीदी की साँसें तेज़ होने लगी और उनका सीना ऊपर-नीचे उठने लगा। उनके होंठों से हल्की-हल्की आहें निकल रही थी।
धीरे-धीरे मैं उनके सबसे नाज़ुक हिस्से तक पहुँचा। वो हल्की सी काँप गई और अपनी जाँघें थोड़ा और खोल दीं। मैंने झुक कर उनके उस हिस्से को चूमना शुरू किया। उनका पूरा शरीर झनझना उठा। वो दोनों हाथों से चादर को पकड़ कर दबाने लगी और उनकी आँखों में एक अजीब-सी चमक थी। उनकी साँसें अब और भारी हो चुकी थी।
वो बीच-बीच में हल्की सिसकारियाँ भरती और मेरी ओर देख कर आँखें बंद कर लेती। उनके चेहरे पर चाहत, लाज और आनंद सब एक साथ झलक रहा था। मैं धीरे-धीरे उनकी उस जगह पर किस्स करता रहा और दीदी पूरी तरह मेरे अहसासों में खोती चली गई।
कुछ देर बाद दीदी ने मुझे ऊपर खींचते हुए धीरे से कहा, “अब और मत रुक… अंदर डाल दो।” उनकी आवाज़ काँप रही थी लेकिन उसमें चाहत साफ़ झलक रही थी।
मैं उनके बिल्कुल पास गया और अपना लंड उनके नाज़ुक हिस्से के पास ले आया। पहली बार मैं इस पल को जी रहा था, दिल इतनी तेज़ धड़क रहा था कि जैसे सीने से बाहर निकल आएगा। मैंने धीरे से उसे उनकी गीली जगह के पास लगाया और हल्के-हल्के वहाँ रगड़ने लगा।
जैसे ही मेरा लंड उनकी नाज़ुक त्वचा से टकराता, दीदी हल्की सिहरन के साथ कराह उठती। उनकी साँसें और तेज़ होने लगी। वो आँखें बंद करके होंठ भींच लेती, फिर एक-दम से हल्की आह निकल जाती। मैं उनके दोनों पैरों के बीच फँस कर धीरे-धीरे ऊपर-नीचे करता रहा, मेरा लंड उनके भीगे हिस्से पर लगातार फिसल रहा था। हर बार के रगड़ से वहाँ की नमी और बढ़ती जा रही थी।
उनकी जाँघें हल्की-हल्की काँप रही थी। वो कभी चादर पकड़ लेती, कभी मेरे बालों में हाथ डाल देतीं। उनके चेहरे पर शर्म, डर और चाहत सब एक साथ साफ़ झलक रहा था। उनके होंठों से लगातार सिसकारियाँ निकल रही थी, मानो वो चाहती भी थी और डर भी रही थी।
मैं धीरे-धीरे और नीचे झुकता गया और अपना लंड उनके बिल्कुल नाज़ुक हिस्से के मुंह पर ले आया। वहाँ की गर्माहट और नमी ने मुझे पूरी तरह मदहोश कर दिया। मैंने हल्के दबाव से उसे अंदर डालने की कोशिश की। जैसे ही मेरा लंड थोड़ा-सा अंदर गया, दीदी की आँखें अचानक खुली और वो दर्द से चीख उठी। उनका पूरा शरीर अकड़ गया।
वो काँपती आवाज़ में बोली, “रुक जाओ! बहुत बड़ा है… मुझे दर्द हो रहा है।”
मैं ठहर गया और उनकी आँखों में हैरानी से देखा। पहली बार ये एहसास मुझे जितना सुख दे रहा था, उतना ही डर भी भर रहा था कि कहीं उन्हें चोट ना लग जाए। मैंने हकलाते हुए कहा, “लेकिन दीदी… आपने तो पहले भी किसी और के साथ किया था।”
वो तकलीफ़ से कराहते हुए बोली, “हाँ… लेकिन तुम्हारा उससे भी बड़ा है। मुझे बहुत दर्द हो रहा है। पहले कुछ लगाओ उस पर… नहीं तो मैं सह नहीं पाऊँगी।”
उनकी आँखों में आँसू थे, लेकिन उनमें अब भी चाहत की चमक थी। उनका शरीर तड़प रहा था, पर वो चाहती थी कि मैं उनकी तकलीफ़ समझूँ। मैं उनके चेहरे को सहलाने लगा और उनकी बात सुन कर धीरे-धीरे रुक गया।
मैंने टेबल पर रखा लोशन उठाया और दोनों हाथों में महसूस किया। फिर मैं उनके पैरों के बीच वापस आया। मैंने सबसे पहले लोशन को अपने लंड पर लगाया, धीरे-धीरे उसे पूरी तरह से कवर किया ताकि आगे बढ़ने में आसान हो। उसके बाद मैंने उसी लोशन को उनकी नाज़ुक जगह पर लगाया, धीरे-धीरे, हर हिस्से को नर्माई से ढकते हुए। उनकी त्वचा की गर्माहट और नमी अब लोशन के साथ और भी साफ हो गई।
मैं फिर से उनके बीच बैठ गया। मेरी साँसें तेज़ हो गई, हाथ हल्के काँप रहे थे, लेकिन दिल में अब और हिचक नहीं थी। मैंने धीरे-धीरे अपने लंड को उनके भीतर ले जाने की कोशिश शुरू की। जैसे ही मेरी पहली झलक उनके अंदर घुसी, दीदी हल्की कराह के साथ थोड़ी सी सिकुड़ गई। मैं रुका नहीं, बल्कि धीरे-धीरे और गहराई में बढ़ता गया। उनकी नमी और गर्माहट ने मुझे अंदर जाने में मदद की।
जैसे-जैसे मैं धीरे-धीरे आगे बढ़ता गया, उनका शरीर हर स्पर्श पर सिहर उठा। उनकी आँखें बंद थी, होंठ हल्के से खुले थे और हल्की आहें निकल रही थी। हर इंच अंदर जाने पर उनकी जाँघें हल्की-हल्की हिल रही थी और उनका शरीर मेरे हर मूवमेंट पर साथ दे रहा था।
मैंने अपना लंड पूरी तरह धीरे-धीरे अंदर धकेला, हर बार रुक कर उनकी हरकत देखी और फिर आगे बढ़ा। यह उनके लिए भी नया एहसास था, इसलिए हर कदम धीरे-धीरे था। वो हल्की-हल्की कराहती रही, पर इस बार उन्होंने मुझे रोकने की कोशिश नहीं की। उनकी आँखों में दर्द के साथ-साथ चाहत की चमक थी।
जैसे ही मेरा लंड पूरी तरह उनके भीतर आ गया, उनकी साँसें भारी और तेज़ हो गई। उनका शरीर मेरे शरीर से जुड़ गया, और हर हल्की हरकत पर वे काँप रही थी। मैं धीरे-धीरे आगे-पीछे होने लगा, हर मूवमेंट को महसूस कर रहा था, उनका चेहरा कभी उठता, कभी पीछे झुकता, होंठों से हल्की आहें निकल रही थी, और उनके हाथ मेरे कंधों और छाती को कस कर पकड़ रहे थे।
यह पहली बार था जब मैं उनके अंदर पूरी तरह गया। उनका शरीर मेरी हर गति के साथ झनझना रहा था, उनकी सांसें मेरे कानों में हल्की-हल्की हिट कर रही थी, और उनके चेहरे पर दर्द और आनंद दोनों की मिली-जुली भावना थी। मैं हर पल को महसूस कर रहा था, धीरे-धीरे और पूरी तरह से उनके अंदर रहने का एहसास ले रहा था।
कुछ देर बाद उन्होंने भारी सांसों के बीच कहा, “अगर तुम चाहो तो अपनी स्पीड बढ़ा सकते हो।” यह सुन कर मेरे शरीर में एक-दम से गर्मी दौड़ गई। मेरी उत्तेजना और बढ़ गई। मैंने तुरंत अपनी चाल थोड़ी तेज़ कर दी।
जैसे ही मेरी रफ्तार बढ़ी, दीदी ने आँखें कस कर बंद कर ली, और दर्द से ऊँची आवाज़ में कराह उठी। उनका शरीर झटके से तना और उन्होंने चादर को दोनों हाथों से कस कर पकड़ लिया। उनके चेहरे पर दर्द साफ़ दिख रहा था। मैं घबरा गया और रुक कर धीरे से पूछा, “दीदी, क्या मैं धीरे कर दूँ?”
उन्होंने आँखें खोल कर मुझे देखा, साँसें अब भी भारी चल रही थी। फिर बोली, “नहीं… मत रुकना। मैं ये दर्द सह सकती हूँ। अपने छोटे भाई के लिए।” उनकी आँखों में आँसू थे लेकिन उसमें एक साफ़ इरादा भी दिख रहा था।
मैंने फिर से धीरे-धीरे हरकत शुरू की और धीरे-धीरे अपनी स्पीड बढ़ाई। हर धक्का उन पर सीधा असर डाल रहा था। उनकी भौंहें सिकुड़ जाती, होंठों से दबा-दबा कर आवाज़ें निकलती। जब मैं और तेज़ी से धकेलता, तो वो ज़ोर से कराह उठती, उनके सीने ऊपर-नीचे होने लगते और पैरों की पकड़ और कड़ी हो जाती।
उनका चेहरा दर्द से भरा था, लेकिन साथ ही उसमें एक तरह का अपनापन था, जैसे वो सब कुछ सहने को तैयार थी। वो बार-बार करवटें बदलने की कोशिश करती लेकिन मुझे रोकती नहीं थी। उनकी आँखें कभी कस कर बंद हो जाती, कभी मुझे सीधा देखती। हर बार जब मैं और गहराई तक जाता, उनकी आँखों में दर्द और चाहत का मिला-जुला असर साफ़ दिखता।
वो बार-बार ज़ोर से साँस खींचती, होंठ काट लेती और उनके हाथ मेरे पीठ और कंधों पर कस कर दब जाते। उनकी हरकतों से साफ़ था कि दर्द सच-मुच असली था, लेकिन उन्होंने खुद को रोकने नहीं दिया। मैं उनके चेहरे पर हर सच्ची हरकत देख रहा था, कराहना, आँखों से आँसू आना, होंठ कांपना, सब कुछ। यह सब बिल्कुल असली और कच्चा था। कोई बनावटीपन नहीं, कोई दिखावा नहीं। बस मैं, मेरी चाहत, और उनका दर्द जो वो मेरे लिए सह रही थी।
मैं धीरे-धीरे उनके ऊपर पूरी तरह लेट गया। उनका गर्म शरीर मेरे सीने से सट गया और मेरी साँसें उनकी गर्दन पर महसूस होने लगी। मेरा लंड अब भी उनकी नाज़ुक जगह के अंदर जोर से चल रहा था, और उसी के साथ मैंने अपने दोनों हाथ उनके सीने पर रखे।
मैंने उनके मुलायम लेकिन भारी से लगते स्तनों को कस कर दबाना शुरू किया। जैसे ही मेरे हाथों ने उन्हें दबाया, उनका चेहरा दर्द और आनंद से एक साथ मरोड़ गया। मैंने दबाव और बढ़ाया, उंगलियाँ उनके निपल्स तक पहुँच गई और उन्हें पकड़ कर खींचने लगा। वो ज़ोर से कराह उठीं, उनकी साँसें तेज़ हो गई और उनका चेहरा हल्का-हल्का लाल पड़ने लगा।
मेरे हर धक्के के साथ उनका पूरा शरीर हिल रहा था। उनके स्तनों पर मेरी पकड़ इतनी मज़बूत थी कि वो दब कर हल्के गुलाबी से लाल होने लगे। उनके होंठ कांप रहे थे, आँखों में आँसू चमक रहे थे, और उनका सीना मेरे हाथों के दबाव से लगातार ऊपर-नीचे हो रहा था।
उनकी नाज़ुक जगह और मेरा लंड दोनों लोशन से ढके हुए थे। हर बार जब मैं अंदर तक धकेलता, तो गीली आवाज़ें कमरे में गूंजती। ये आवाज़ें हमारी साँसों और उनकी कराहटों के साथ मि लकर माहौल को और भी तेज बना रही थी।
मैंने उनके स्तनों को और कस कर दबाया, कभी दोनों हथेलियों से घेर लिया, कभी उँगलियों से निपल्स मरोड़ दिए। वो हर बार जोर से चीख पड़ती, लेकिन खुद को पीछे नहीं खींचती। उनके चेहरे का लाल रंग अब उनके स्तनों तक उतर आया था। हर हलचल, हर आवाज़ साफ़ और असली थी, उनका शरीर दर्द और उत्तेजना में पूरी तरह डूब चुका था।
इसी बीच उन्होंने भारी सांस लेते हुए कहा, “गोलू… क्या तुम पोज़िशन बदलना चाहते हो?”
मैंने तुरंत उनकी आँखों में देखा और बिना रुके बोला, “नहीं दीदी, मैं अब रुक नहीं सकता… मैं लगभग निकलने ही वाला हूँ।”
मेरी आवाज़ में उतावली और उत्तेजना साफ़ थी, और ये सुन कर दीदी ने होंठ काट लिए, उनकी आँखों में मिली-जुली चाहत और दर्द झलक रहा था।
मेरी हालत बेकाबू हो चुकी थी। मैंने अपनी रफ्तार और तेज़ कर दी, हर धक्के के साथ दीदी ज़ोर से कराहने लगी। उनका पूरा शरीर मेरे नीचे काँप रहा था। लेकिन तभी उन्होंने अचानक कराहते हुए कहा, “गोलू… अंदर मत निकलना… आज सेफ डे नहीं है।” उनकी आवाज़ में डर और घबराहट दोनों साफ़ झलक रहे थे।
मैं तुरंत और ज़्यादा बेकाबू हो गया। जब मुझे लगा कि अब मैं खुद को रोक नहीं पाऊँगा, तो मैंने जल्दी से अपना लंड उनके अंदर से बाहर खींच लिया। उसी पल मेरे अंदर से गर्म तरल फव्वारे की तरह बाहर निकला और सीधा उनकी जाँघों और उनकी नाज़ुक जगह के सामने फैल गया। वो गर्माहट उनके शरीर पर पड़ते ही उन्होंने हल्की चीख निकाली और आँखें कस कर बंद कर ली।
लेकिन मैं यहीं नहीं रुका। मेरा शरीर बार-बार झटका खा रहा था और हर बार और भी गर्म तरल बाहर निकल रहा था। मैं उनके पेट और नाभि तक झुक गया और वहाँ भी बहने लगा। उनका पूरा पेट, उनका मुलायम सा निचला हिस्सा उस गाढ़े और गर्म तरल से गीला हो गया।
दीदी हाँफ रही थी, उनकी साँसें बहुत तेज़ थी। उन्होंने अपनी उँगलियों से अपने पेट और जाँघों पर फैला हुआ गीलापन महसूस किया। फिर उन्होंने वही उँगलियाँ उठा कर उस गीलेपन से खेलना शुरू किया। वो अपनी उँगलियों पर चिपका हुआ तरल देखतीं और हल्की मुस्कान के साथ उसे इधर-उधर फैलाती।
कुछ पल बाद उन्होंने अपनी उँगलियों से कुछ बूंदें उठाई और अपने माथे पर भर कर लगाया, जैसे शादी का सिंदूर हो। उनका माथा चमक उठा और उस पर वो सफेद गीलापन साफ़ दिखाई देने लगा। उनकी आँखों में आँसू थे लेकिन होंठों पर हल्की मुस्कान थी। उन्होंने मुझे देखते हुए धीमी आवाज़ में कहा, “गोलू… आज हमारा आख़िरी दिन है। इसके बाद मैं तुम्हारे साथ नहीं रह पाऊँगी। लेकिन मैं तुम्हें कभी नहीं भूलूँगी।”
उनकी ये हरकत देखकर मेरा दिल जोर से धड़कने लगा। उनके चेहरे पर थकान थी, लेकिन माथे पर लगी उस गीलापन की लकीर उन्हें और भी खूबसूरत और अनोखा बना रही थी। उनकी आँखों की नमी, माथे पर सफेद चमक और होंठों पर मजबूर मुस्कान ने उस पल को हमेशा के लिए मेरी यादों मे समा दिया।
मैंने आगे बढ़ कर उन्हें मजबूती से अपनी बाहों में भर लिया। दोनों के बदन पसीने और थकान से भीगे हुए थे, लेकिन उस हग में एक अजीब सा सुकून था। उनकी सांसें मेरे सीने से टकरा कर और भारी लग रही थी। उन्होंने अपनी आँखें बंद कर ली और सिर मेरे कंधे पर रख दिया। मैं जानता था कि कल उनकी शादी थी और उसके बाद हम दोनों के बीच सब कुछ खत्म हो जाएगा। यह सोच कर मेरे दिल में कसक उठी।
मैंने उनकी पीठ पर हाथ फेरते हुए धीरे से कहा, “दीदी, मैं भी आपको कभी नहीं भूलूँगा।”
हम दोनों एक-दूसरे से कस कर लिपटे रहे। उस बाहों में हमारे रिश्ते की सारी कहानी थी, प्यार, पागलपन, दर्द और विदाई। कमरे में सिर्फ़ हमारी सांसों की आवाज़ गूंज रही थी, और हम दोनों जानते थे कि कल से सब कुछ बदल जाएगा।
कहानी समाप्त। आपके सहयोग के लिए धन्यवाद।