पिछला भाग पढ़े:- उस रात दीदी ने चखाया अपना गीलापन-8
भाई-बहन अन्तर्वासना कहानी अब आगे से-
सुधा दीदी को देखने के लिए रिश्तेदार दोपहर के वक्त आने वाले थे। लेकिन मम्मी ने सुबह से ही घर सिर पर चढ़ा कर रखा था। वह सुबह से किचन में लगी थी, ताकि सब कुछ अच्छा हो। सुधा दीदी खुद को खुबसूरत बनाने की कोशिश कर रही थी और मैं ड्राइंग रूम में बस बैठा था। मुझे कुछ भी सुझा नहीं रहा था। जिस दीदी ने खुद को मेरे सामने पूरी तरह खोल दिया था, जिनको कुछ दिनों पहले इस बात पर हंसी आ रही थी कि दुल्हन एक अजनबी लड़के के साथ एक बिस्तर पर सोने वाली है। आज वही दीदी मुझसे मुंह फेर रही थी।
कुछ देर बाद वह ऊपर वाले कमरे से नीचे आई और सीधे किचन में चली गई। वहाँ जाकर उन्होंने मम्मी से धीमी आवाज़ में कहा, “मम्मी, मेरे पास पहनने के लिए अच्छा ड्रेस नहीं है।” उनकी आवाज़ में हल्की झुंझलाहट और बेबसी साफ़ महसूस हो रही थी।
मम्मी ने उन्हें ध्यान से देखा और तुरंत मेरी ओर देख कर बोली, “तू सुधा को लेकर मार्केट जा। उसके लिए एक अच्छा नया ड्रेस ले आ। रिश्तेदार आने वाले हैं, उसे अच्छे से तैयार होना चाहिए।”
मैंने तुरंत बाइक पार्किंग से निकाली और बाहर ला खड़ी की। सुधा दीदी बिना कुछ कहे मेरे पीछे आकर बैठ गई। जैसे ही बाइक आगे बढ़ी, उन्होंने संतुलन बनाने के लिए मुझे कस कर पकड़ लिया। उनके हाथ मेरी कमर पर कस गए और उनके स्तन मेरी पीठ से मजबूती से टिक गए। वह दबाव मुलायम होने के बावजूद गहरा था। हर मोड़ और झटके पर स्तनों की हल्की हलचल मेरी पीठ पर साफ़ महसूस हो रही थी।
उस स्पर्श में गर्माहट थी, जैसे उनकी साँसों और शरीर की धड़कनें सीधे मेरी नसों में उतर रही हों। मेरा दिल लगातार तेज़ धड़क रहा था और हैंडल पकड़ते हुए भी ध्यान बार-बार उनकी नज़दीकी पर खिंच रहा था। सवारी का हर पल मुझे लंबा और गहरा लग रहा था। हवा चेहरा छू रही थी, लेकिन असली एहसास उनकी नज़दीकी का था। उनके स्तनों की नरमी और गर्मी का जो मेरी पीठ पर चिपकी हुई थी। इस सफर में सड़क और ट्रैफिक से ज्यादा मेरे दिमाग में बस वही एहसास घूम रहा था।
कुछ देर बाद दीदी ने धीरे से मेरे कान के पास कहा, “चलो मॉल चलते हैं, वहाँ बहुत सारे ऑप्शन्स मिल जाएंगे। मुझे सही ड्रेस चुनने के लिए कई ड्रेसेज़ देखनी होंगी।” उनकी आवाज़ में उत्साह और थोड़ी गंभीरता दोनों थी। मैंने सिर हिला कर हामी भरी और बाइक का रुख सीधे मॉल की ओर मोड़ दिया।
मॉल पहुँचने के बाद हम दोनों अलग-अलग दुकानों में घूमें। दीदी बार-बार नए-नए ड्रेस ट्राय कर रही थी ताकि उन्हें परफेक्ट ड्रेस मिल सके। कभी वह मुझे देख कर मुस्कुरा देती तो कभी आईने में खुद को गौर से निहारती। बीच-बीच में हम अंडरगारमेंट्स सेक्शन से भी गुज़रे, जहाँ ब्रा और पैंटी सजी हुई थी। वहाँ खड़े होकर उन्होंने मुझे हल्की सी शरमाई मुस्कान दी, जैसे मुझे चिढ़ाने या कुछ जताने की कोशिश कर रही हो। उस एक मुस्कान ने मेरे अंदर अजीब-सी हलचल पैदा कर दी।
फिर एक बड़ी शॉप में दीदी को आखिरकार उनका मनपसंद ड्रेस मिल गया। सुबह का समय था, इसलिए मॉल लगभग खाली था और चारों तरफ शांति थी। उन्होंने वह ड्रेस उठाया और सीधे चेंजिंग रूम की तरफ बढ़ गई। मैं बाहर खड़ा होकर उनका इंतज़ार करने लगा, दरवाज़े के ठीक पास जहाँ से उनकी आहट साफ़ सुनाई दे रही थी।
कुछ देर बाद दरवाज़ा धीरे से खुला। वह मेरे सामने हल्की मुस्कान के साथ खड़ी हुई और धीरे से बोली, “कैसी लग रही हूँ?” उनकी आँखें सीधे मेरी आँखों से टकराई और उस पल में मेरे पास जवाब के लिए शब्द नहीं थे, बस दिल की धड़कनें और भी तेज़ हो गई।
उन्होंने उस समय हल्की नीली रंग की कुर्ती और सफेद पायजामा पहना हुआ था। उनका दुपट्टा उन्होंने ओढ़ा नहीं था, जिसकी वजह से उनके सीने का हिस्सा साफ़ नज़र आ रहा था। उनकी कुर्ती का गला थोड़ा ढीला था और उसके बीच से उनकी गहरी क्लीवेज दिख रही थी। जैसे-जैसे वह मेरी तरफ़ बढ़ी, उनकी छाती का उभार और भी साफ़ होता गया।
उनकी गोलाई भरी छाती कपड़े के अंदर कस कर भरी हुई लग रही थी। कुर्ती का पतला कपड़ा उनकी गोलाई को छुपाने की बजाय और उभार रहा था। हर बार जब वह सांस लेती, तो उनका सीना हल्का-हल्का ऊपर नीचे होता और वह नज़ारा मेरी आँखों को वहीं रोक देता।
उनके सीने के बीच की गहराई ऐसी थी कि नज़र हटाना मुश्किल हो रहा था। कुर्ती का कपड़ा उनके स्तनों पर खींच कर चिपक रहा था और मुझे साफ़ अंदाज़ा हो रहा था कि उनके अंदर कितनी नरमी और कसावट छुपी है। उनकी हर हल्की हरकत से कपड़े में हल्की लकीरें खींचती और उनकी गोलाई और भी साफ़ उभर आती।
मैंने अचानक उनका हाथ पकड़ा और उन्हें हल्के से पीछे की ओर खींचते हुए पास ही बने छोटे से चेंजिंग रूम में ले गया। उन्होंने हल्की हैरानी से मेरी ओर देखा, लेकिन विरोध नहीं किया। दरवाज़ा बंद कर मैंने तुरंत कुंडी चढ़ा दी। अब वह बस चुपचाप मेरी तरफ़ देख रही थी, उनकी आँखों में हल्की शरारत और झिझक दोनों थी।
मैं धीरे-धीरे उनके करीब गया। वह पीछे हटने की बजाय वहीं खड़ी रही, जैसे मुझे परख रही हों कि मैं क्या करने वाला था। मेरा चेहरा उनके करीब आया और मैंने बिना कुछ कहे उनके होंठों पर अपने होंठ रख दिए।
पहले वह थोड़ी चौंकी, लेकिन अगले ही पल उन्होंने भी अपनी आँखें बंद कर ली और मेरे होंठों को पकड़ कर चूमने लगी। हमारे बीच की दूरी पूरी तरह मिट चुकी थी। मेरी धड़कनें इतनी तेज़ थी कि मुझे खुद पर काबू करना मुश्किल लग रहा था, और उनकी साँसों की गर्मी मेरे चेहरे पर उतरते ही मुझे और पागल बना रही थी।
उनके होंठों की नमी और उनकी नरमी मुझे भीतर तक खींच रही थी। मैं उन्हें कस कर अपने पास खींच लेना चाहता था। वहीं, उनके बदन का हल्का कंपन, उनकी तेज़ धड़कन और उनके होंठों का जवाब देना साफ़ बता रहा था कि वह भी इस पल में उतनी ही खोई हुई हैं जितना मैं।
उनकी आँखों के बंद होने और होंठों की बेताबी ने मुझे यह एहसास दिला दिया कि यह कोई मजबूरी नहीं, बल्कि उनकी भी चाह है। उस तंग से कमरे में, उस बंद दरवाज़े के पीछे, हम दोनों सिर्फ़ एक-दूसरे में खोए हुए थे।
धीरे-धीरे मेरा हाथ उनकी छाती की ओर बढ़ गया। मैंने उनकी कुर्ती के ऊपर से उनके स्तनों को दबाना शुरू किया। वह हल्की-सी सिहर उठी, होंठों के बीच से धीमी सी आह निकली लेकिन उन्होंने मुझे रोका नहीं। उनकी साँसें और तेज़ हो गई और उन्होंने अपने होंठ और गहराई से मेरे होंठों पर दबा दिए।
उनके स्तन मेरे हाथों में कस कर भर रहे थे। कपड़े के ऊपर से भी उनकी नरमी और गर्मी साफ़ महसूस हो रही थी। जैसे ही मैंने हल्का दबाव बढ़ाया, वह मेरे बदन से और सट गई। उनकी आँखें बंद थी, माथे पर पसीने की बूंदें झिलमिला रही थी और उनके चेहरे पर चाहत साफ़ नज़र आ रही थी।
मेरे लिए यह अहसास नया था, लेकिन नशे जैसा लग रहा था। उनके सीने का उभार, उनकी छाती का कंपन और उनकी आहटें मुझे दीवाना बना रही थी। वहीं, उनके चेहरे की हल्की मुस्कान और होंठों की बेताबी बता रही थी कि वह भी इस पल को उतना ही चाह रही हैं जितना मैं।
उस छोटे से कमरे में, हमारे चारों ओर सिर्फ़ हमारी साँसों की आवाज़ और धड़कनों की गूँज थी। मैं उनके हर स्पर्श को, उनकी हर धड़कन को महसूस कर रहा था और वह मुझे अपने पूरे दिल से अपनाती जा रही थी।
इसी बीच मैंने होंठों को उनके होंठों से अलग किया और उनकी आँखों में गहराई से देखते हुए धीरे से पूछा, “लेकिन तुम उस लड़के से मिलने के लिए क्यों तैयार हुई, जिसे घरवाले देख रहे हैं? क्या तुम सच में उसे पसंद करती हो?”
उन्होंने थोड़ी देर चुप रह कर मेरी आँखों में देखा, फिर धीमी आवाज़ में बोली, “नहीं… मुझे वो बिल्कुल पसंद नहीं है। तुम मेरे छोटे भाई हो, लेकिन हमारा रिश्ता अब उस दायरे से बहुत आगे बढ़ चुका है। ये रिश्ता कोई भी स्वीकार नहीं करेगा, इसलिए सब के सामने मुझे किसी और से शादी करनी ही होगी। लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि मैं इस लड़के से शादी करना चाहती हूँ। मैं तो बस मिलने के लिए तैयार हुई थी, शादी के लिए नहीं।”
मैं उनके जवाब को समझ ही नहीं पा रहा था। मेरे होंठ खुलने ही वाले थे कि कुछ कह सकूँ, लेकिन तभी उन्होंने अचानक मेरे चेहरे को दोनों हाथों से पकड़ लिया और मेरे होंठों पर ज़ोर से अपने होंठ रख दिए। उनका चूमना इस बार पहले से कहीं ज़्यादा गहरा और तेज था।
उनकी बेताबी इतनी थी कि मैं पल भर को साँस लेना भूल गया। वह मुझे इतनी ताक़त से चूम रही थी कि मुझे साफ़-साफ़ उनकी लार अपने मुँह में भरती हुई महसूस हो रही थी। हर पल उनका चूमना और गहराता जा रहा था, उनकी जीभ मेरे होंठों को चीर कर भीतर उतर आई थी।
मैं उनके इस पागलपन में खो गया। उनका चेहरा मेरी हथेलियों के बीच थरथरा रहा था और उनकी साँसें बेक़ाबू थी। उनके चूमने में एक ऐसी आग थी जिसे मैं रोकना तो दूर, उसके सामने टिक भी नहीं पा रहा था। उनकी आँखें बंद थी, लेकिन उनकी पकड़ और उनका जोश बता रहा था कि वह मुझे पूरी तरह से अपना बना लेना चाहती थी।
इसी दौरान मेरा हाथ अनजाने में नीचे उनकी पायजामे की ओर बढ़ा। मैं धीरे-धीरे उसकी गिरफ़्त को ढीला करने ही वाला था कि उन्होंने अचानक मेरा हाथ पकड़ लिया और होंठों से अलग होते हुए धीरे से बोली, “नहीं… अब बहुत देर हो गई है। मम्मी चिंता करेगी, हमें घर चलना चाहिए।”
हम दोनों ने खुद को संभाला और जल्दी से घर की ओर निकल पड़े। घर पहुँचने के बाद उन्होंने वो नई ड्रेस पहन ली जो हमने साथ में खरीदी थी। वह ड्रेस उन पर इतनी खिल रही थी कि मैं उन्हें देखता ही रह गया।
करीब एक घंटे बाद घर पर मेहमान आए। वही लड़का और उसका परिवार, जिसे देखने के लिए सब ने बुलाया था। सब लोग ड्रॉइंग रूम में बैठ गए, जबकि सुधा दीदी रसोई में चाय बनाने और परोसने में लगी हुई थी। उनके कदमों की आहट, बर्तनों की खनक और उनकी मौजूदगी से पूरे घर में एक अलग ही हलचल थी।
थोड़ी देर बाद उन्होंने ट्रे में चाय भर कर सब के सामने रखी। सब ने मुस्कुरा कर चाय ली और माहौल हल्का-फुल्का हो गया। दीदी जा कर सीधे उस लड़के के सामने बैठ गई। तभी पापा भी ऑफिस से लौट आए और इस खास मौके के लिए सब के साथ बैठ गए। पूरे घर में जैसे एक खुशी का माहौल फैल गया था।
पापा ने बात-चीत शुरू की और उस लड़के से उसके काम और परिवार के बारे में पूछने लगे। सब लोग ध्यान से सुन रहे थे। वहीं, सुधा दीदी लड़के के ठीक सामने बैठी थी। मैं भी पास ही पापा के बगल में बैठ गया और चुप-चाप सब देखता रहा।
मेरी नज़र बार-बार दीदी पर टिक जाती। जिस तरह से वह कुर्सी पर बैठी थी, उनकी कुर्ती का पिछला हिस्सा गर्दन से नीचे तक थोड़ा खुला हुआ था। उनकी गोरी पीठ का हिस्सा साफ़ दिखाई दे रहा था। हल्की रोशनी में उनकी सफ़ेद और मुलायम त्वचा और भी निखर रही थी। मैं अपनी आँखों से उनकी उस नंगी पीठ को जैसे महसूस कर रहा था। सब लोग बात-चीत में लगे थे, लेकिन मेरी दुनिया बस उस नज़ारे तक सिमट चुकी थी।
कुछ देर बाद लड़का और उसका परिवार उठने लगे। जाने से पहले उस लड़के ने कहा कि वह दीदी के साथ कुछ तस्वीरें लेना चाहता था। सब ने हँसते हुए हामी भर दी। उसने मुझे ही मोबाइल थमा दिया और कहा, “भाई साहब, हमारी कुछ तस्वीरें ले दीजिए।”
मैं कैमरा हाथ में लेकर खड़ा हो गया। दीदी उसके पास खड़ी हो गई और तभी उसने अपने हाथ से दीदी के कंधे को पकड़ लिया। मेरा दिल उसी पल कसक उठा। कैमरे की तरफ मुस्कुराती दीदी और उनके कंधे पर रखा उस लड़के का हाथ देख कर मुझे बहुत बुरा लगा। मैंने हमेशा सपना देखा था कि दीदी के इतने करीब सिर्फ़ मैं ही रहूँ, उन्हें छूने का हक़ सिर्फ़ मुझे हो। लेकिन अब कोई और लड़का उन्हें छू रहा था और मैं बस खड़ा होकर तस्वीरें ले रहा था।
मेरे लिए यह अहसास बेहद दर्द भरा था। तस्वीरें खींचने के बाद उन्होंने धन्यवाद कहा और पूरा परिवार अलविदा कह कर वहाँ से चला गया। लेकिन मेरे मन में वह नज़ारा बार-बार घूम रहा था, मेरी दीदी के कंधे पर किसी और का हाथ।
उसके जाने के बाद हम सब ड्रॉइंग रूम में सोफ़े पर बैठ गए। मम्मी-पापा बातें करने लगे कि लड़का अच्छा है, अच्छी नौकरी करता है और अच्छे घर-परिवार से है। दोनों के चेहरों पर खुशी साफ़ झलक रही थी, जैसे उन्हें यह रिश्ता बहुत पसंद आ गया हो। करीब आधे घंटे तक इसी तरह चर्चा चलती रही। मैं चुप-चाप सुनता रहा और दीदी की तरफ देखता रहा। अचानक ही दीदी की आँखों में आँसू भर आए। वह बिना कुछ कहे उठी और अपने कमरे की तरफ चली गई।
माँ उन्हें देखने के लिए उठी, लेकिन मैंने माँ का हाथ पकड़ कर धीरे से कहा, “माँ, आप बैठिए… मैं दीदी को देख लूँगा। मैं उन्हें शांत कर दूँगा।”
मैं धीरे-धीरे उनके कमरे के पास गया और दरवाज़े पर हल्के से दस्तक दी। अंदर से उनकी आवाज़ आई, “कौन?”
मैंने धीरे से जवाब दिया, “मैं हूँ… तुम्हारा भाई।”
दरवाज़ा धीरे से खुला। जैसे ही मैंने दीदी का चेहरा देखा, उनकी आँखें आँसुओं से भरी हुई थी। मुझे देखते ही वह एक-दम से मुझे भीतर खींच लाई और बिना कुछ कहे मेरे होंठों पर टूट पड़ी। उनका चूमना इतना तेज़ और गहरा था कि मेरी साँसें रुक गई।
उनकी गरम साँसें मेरे चेहरे से टकरा रही थी और उनके होंठ मेरे होंठों को इतनी मजबूती से दबाए हुए थे कि मैं खुद को अलग ही दुनिया में महसूस कर रहा था।
उनकी जीभ मेरे होंठों को चीरती हुई मेरे मुँह के भीतर घुस आई। पहली बार उनकी जीभ मेरी जीभ से टकराई। वह नमी, वह गरमी और वह हल्की-सी मिठास मेरे पूरे जिस्म में बिजली-सी दौड़ा गई। मैं भी अब रुक नहीं पाया और अपनी जीभ उनकी जीभ में उलझाने लगा। दोनों की लार आपस में घुलने लगी, हमारे होंठों से हल्की-सी आवाज़ें निकल रही थी।
दीदी की आँखें बंद थी, उनके चेहरे पर आँसुओं की बूंदें थी लेकिन होंठों पर इतनी गहराई और चाहत थी कि मैं उसमें खो गया। उनके होंठ इतने मुलायम और गरम लग रहे थे कि मुझे लग रहा था जैसे कोई मीठा नशा चढ़ रहा हो। वह मुझे इतनी मजबूती से चूम रही थी कि मैं चाह कर भी अलग नहीं हो सकता था। हर बार जब उनकी जीभ मेरी जीभ से टकराती, मेरी साँसें और तेज़ हो जाती। उनका यह अचानक उफान, उनका यह टूट कर चूमना, मेरे लिए सबसे बड़ा सबूत था कि वह मुझे कितना चाहती हैं।
मैंने उन्हें अपनी बाँहों में उठा कर धीरे से बिस्तर पर लिटा दिया। हमारे होंठ अब भी जुड़े हुए थे, और मैं उनके ऊपर झुक कर उन्हें लगातार चूमता जा रहा था। मेरी उंगलियाँ अनजाने में उनकी कमर से नीचे सरक गई। मैंने उनके पायजामे के भीतर अपना हाथ डाल दिया। सबसे पहले मेरी उंगलियों ने उनकी मुलायम पैंटी को छुआ। वह बेहद गरम और नर्म महसूस हुई।
मैंने कुछ पल उसी पर हाथ फिराया, उनकी हल्की-सी सिसकारियों से समझ आ रहा था कि वह भी इसे रोक नहीं रही। फिर धीरे-धीरे मेरी उंगलियाँ और आगे बढ़ी। पैंटी के कपड़े को पार करते हुए मैं आखिर उनके नाज़ुक हिस्से तक पहुँच गया। मेरी उंगलियाँ उनके उस गीलेपन को महसूस कर रही थी, जो मेरे पूरे जिस्म को और पागल कर रहा था। उनकी जाँघें थोड़ी कांपने लगी और वह मेरी गर्दन को कस कर पकड़ चुकी थी।
उनकी साँसें भारी हो रही थी, होंठ अब भी मेरे होंठों से टकरा रहे थे और उनकी जीभ मेरे मुँह में बेख़ौफ़ खेल रही थी। मेरी उंगलियाँ अब और आगे बढ़ी। मैंने धीरे से दो उंगलियाँ उनके नाज़ुक हिस्से में सरका दी। उनका बदन अचानक कस गया और होंठों से एक धीमी कराह निकल गई। मैंने उंगलियों को बहुत ही धीरे-धीरे हिलाना शुरू किया, जैसे उनकी साँसों की लय को महसूस कर रहा हूँ।
हर हल्की-सी हरकत के साथ उनकी कमर मचल उठती, उनकी जाँघें और कस कर बंद होने की कोशिश करती, लेकिन फिर ढीली पड़ जाती। उनकी गरम और भीगी जगह में मेरी उंगलियाँ डूबी हुई थी और मैं उन्हें बहुत धीमी गति से अंदर-बाहर कर रहा था। उनके होंठ अब और भी ज़्यादा मेरे होंठों को दबाने लगे, उनकी जीभ मेरे मुँह के अंदर तेज़ी से घूमने लगी।
उनकी साँसें अब बेहद भारी हो चुकी थी, हर सिसकी के साथ उनका सीना ऊपर-नीचे हो रहा था। मेरी दो उंगलियाँ उनके भीतर धीरे-धीरे चल रही थी और उनके पूरे शरीर को जैसे झनझना रही थी। दीदी की हर धड़कन, हर आहट मुझे साफ़ महसूस हो रही थी और उनके चेहरे पर चाहत और तड़प दोनों साफ़ दिखाई दे रहे थे।
धीरे-धीरे उनका बदन और भी ज़्यादा कांपने लगा। उनके होंठों से कराहें अब तेज़ हो चुकी थी। अचानक उनकी कमर तेज़ी से मचल उठी और उनकी पकड़ मेरी गर्दन पर और भी मज़बूत हो गई। उन्होंने अपने नाखून मेरी पीठ में गड़ा दिए और फिर एक लंबी कराह के साथ उनका शरीर ढीला पड़ने लगा। मैं साफ़ समझ गया, वह मेरी उंगलियों पर ही आ गई थी।
उनकी गरम नमी मेरी उंगलियों को भिगो रही थी। मैं धीरे-धीरे अपनी उंगलियाँ बाहर ले आया। उनकी आँखें अब भी बंद थी, चेहरा लाली से भरा था और साँसें तेज़ चल रही थी। मैं झुक कर उनके होंठों के पास गया, लेकिन उन्होंने मेरी उंगलियाँ पकड़ ली और धीमी आवाज़ में बोली, “मैं तुम्हें कभी छोड़ कर जाना नहीं चाहती, गोलू…”
और फिर उन्होंने मेरी उंगलियाँ अपने होंठों के पास ले जाकर धीरे-धीरे चाटना शुरू कर दिया। उनकी जीभ मेरी भीगी उंगलियों पर घूम रही थी। वह मुझे देख रही थी, आँखों में चाहत और तड़प के साथ, और हर बार जब उनकी जीभ मेरी उंगलियों को चूमती, मेरे भीतर आग और तेज़ भड़क जाती।
इतने में पापा ने नीचे से बुलाया। दीदी जल्दी से अपने कपड़े ठीक करने लगी। मैंने भी उन्हें मदद की और हम दोनों साथ में नीचे ड्रॉइंग रूम में चले गए।
जैसे ही हम ड्रॉइंग रूम में पहुँचे, पापा ने दीदी को गोद में उठा कर कस कर गले लगा लिया। उनके चेहरे पर खुशी की हल्की मुस्कान थी, लेकिन आँखों में एक उदासी झलक रही थी। मम्मी पीछे खड़ी बस हमें देख रही थी, उन्होंने कुछ नहीं कहा, केवल मुस्कुराई। पापा की आँखों में गर्व और चमक थी। उन्होंने धीरे से कहा, “वो लड़का हमें अभी कॉल करके बता रहा था कि वह तैयार है तुम्हारे साथ शादी करने के लिए।”
दीदी की आँखों में अचानक एक हल्की सी झील सी उमड़ आई, और उसका चेहरा थोड़ा फीका पड़ गया। वह खुशी दिखाने की कोशिश कर रही थी, लेकिन अंदर से वह उदास थी। मेरे दिल में एक अजीब सी पीड़ा उठ रही थी, क्योंकि मैं उसे हमेशा चाहता था और उसके साथ रहने की ख्वाहिश रखता था। उसके दुखी चेहरे को देख कर मेरा मन भारी हो गया। अगले पार्ट के लिए [email protected]
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