पिछला भाग पढ़े:- मेरे बापू ने मेरी सहेली की सील तोड़ी-1
मेरे बापू मेरी मां की चुदाई कर रहे थे, और मां उनको धीरे करने को बोल रही थी, ताकि आवाज़ बाहर ना जाए। अब आगे-
बापू: अरे कुछ हो नहीं सोचेगी। बिटिया भी तो अब जवान हो गई है, और समझदार हो गई है। वह क्यों भला कुछ सोचेगी? वह जानती नहीं है कि बापू और मां क्या कर रहे होंगे?
मा: आप तो एक-दम बेशर्म हो गए हो। आपको तनिक भी लाज नहीं आती अपनी बिटिया के बारे में इस तरह बोलने से? और थोड़ा धीरे करो ना, मेरी भी तो जान निकल रही है।
बापू: अरे धीरे करने से क्या होता है? रफ्तार जितना अधिक हो उतना मजा आता है, और तुम तो मजा लो बस?
मा: जाने क्या देख कर आए हो आज? लग रहा है पूरा तूफान मचा दोगे मेरे बुर में?
आज सुबह बापू मेरी और माया के साथ जो मस्ती किए थे, शायद उसी की खुमारी मां पर निकाल रहे थे। मैं यह सोच कर मुस्कुराई और वहां से भाग कर अपने कमरे में आकर सो गई। दूसरे दिन शाम को बापू छत पर बैठे हुए थे। तभी मैं और माया वहां पर गई।
बापू: अरे मेरी बिटिया तुम दोनों यहां पर। तुम्हें यहां पर देख कर तो मुझे बहुत खुशी हुई। चलो यह बताओ पढ़ाई-लिखाई तुम्हारी कैसी चल रही है?
माया: चाचा जी हमारी पढ़ाई-लिखाई तो बहुत अच्छी चल रही है। आप बताइए आपका क्या चल रहा है?
बापू: क्या मतलब है तुम्हारा माया? मैं तो खेती बाड़ी का काम करता हूं, और कर ही रहा हूं?
मैं: अरे कुछ नहीं बापू, ये तो बस ऐसे ही कुछ भी बोलती रहती है।
तभी माया बापू के पास जाती है और फिर से उनकी कड़क मूंछों को छू देती है और वहां से भागने लगती है। बापू भी इस बार पीछा नहीं हटने वाले थे। वह भी माया के पीछे भागने लगे और बोले-
बापू: ठहर जा, आज तो तुम्हें नहीं छोडूंगा। बहुत परेशान करती है यह छोरी।
मैं यह सब देख कर हंस रही थी।
माया: आ जाओ चाचा जी, पहले मुझे पकड़ कर तो दिखाओ। देखती हूं आप मुझे पकड़ पाते हो भी या नहीं।
बापू: मेरी बल पर शक करती है। तुझे पता नहीं है मैं आज भी बहुत मेहनत करता हूं। आज कल के बच्चे मेरे सामने कहां दिखने वाले हैं?
और बापू ने झपट कर माया को पकड़ना चाहा, और माया तुरंत ही बापू के बाहों में आ गई। पास में ही चारा रखा हुआ था, दोनों लड़खड़ा कर उस चारे पर गिर गए। माया की गांड बापू के लंड पर दबी हुई थी, और बापू माया को पीछे से कस के पकड़े हुए थे, और दोनों हंस रहे थे। मैं भी खिलखिला रही थी।
बापू माया को अपनी बाहों में कस के पकड़े हुए थे, और हंस रहे थे। माया भी उन्हें हटाना नहीं चाहती थी। वह भी उनकी बाहों में जकड़ी हुई खिलखिला रही थी। काफी देर हो गई, दोनों ऐसे ही एक-दूसरे से सटे हुए थे। तभी माया ने कहा-
माया: चाचा जी अब छोड़ो भी। अब क्या इस बच्ची की जान लोगे? मैं समझ गई आपकी शक्ति बहुत ही ज्यादा है। मैं आपके सामने कुछ भी नहीं?
बापू: पहले यह बता कि फिर कभी तुम मेरी शक्ति पर शक करेगी?
और बापू यह कहते हुए अपनी मूछों से माया के गालों और कानों पर गुदगुदी करने लगे। माया बेचारी उनके बाहों में छटपटाती हुई खिलखिला कर हंस रही थी, और बापू अपने पैरों से उसके पैरों को रगड़ रहे थे, और अपने लंड को उसके गांड में धसाये जा रहे थे। साथ ही अपनी मूंछों को उसके गाल पर रगड़ रहे थे। उसके मुलायम गाल को अपने होठों से कभी-कभार छू रहे थे। फिर बापू ने माया को छोड़ा, तब माया उठ कर खड़ी हो गई। दोनों हंस रहे थे, और हांफ भी रहे थे।
माया: चाचा जी आप बहुत शक्तिशाली हो।
यह कहते हुए माया मेरे बापू से जाकर लिपट गई। बापू भी उसे अपनी बाहों में जकड़ लिए। यह देख मुझसे भी ना रहा गया, और मैं भी अपने बापू से जाकर लिपट गई। बापू हम दोनों को अपनी छाती से लगा लिए।
शाम को अंधेरा हो रहा था, तो हम सभी छत से नीचे आ गए, और माया अपने घर चली गई। मैं मां के साथ काम में हाथ बंटाने लगी, और बापू मेरे भाई को पढ़ा रहे थे। फिर हम सभी खाना खाए, और जल्दी ही सोने जाने लगे। तभी बापू मां से बोल रहे थे, “सविता आज थोड़ा जल्दी आना मेरा मन कुछ ठीक नहीं लग रहा है।”
मैं थोड़ी सी घबरा गई कि बाबू की कहीं तबीयत तो नहीं खराब हो गई। मैं मां की ओर गई और बोली-
मैं: मां कहीं बापू की आज तबीयत तो खराब नहीं हो गयी है? जाओ ज़रा जाकर जल्दी देख लो ना।
मां मुस्कुराई और मुझे देख कर बोली-
मां: तू चिंता मत कर। जाओ जाकर सो जाओ। मैं देख लूंगी। तुम्हारे बापू अभी बहुत तंदुरुस्त है।
मैं समझ नहीं सकी और जाकर सो गई। फिर मां भी उनके कमरे के अंदर चली गई। फिर ऐसे ही कई दिन बीत गए। मजाक-मस्ती चलता रहा और बापू माया के और ज्यादा ही निकट आने लगे थे। कभी-कभी तो बापू माया की चूचियों पर हाथ फेर देते। अनजाने में ही सही, लेकिन ऐसा लगता था जैसे बापू जान-बूझ कर ये कर रहे हो।
1 दिन मैं कॉलेज जाने के लिए तैयार हो गई, और माया के घर गई उसे भी साथ ले जाने को। पर माया ने मुझसे कहा कि उसकी तबीयत ठीक नहीं थी। तब मुझे अकेले ही उस दिन कॉलेज जाना पड़ा। जब मैं कॉलेज गई तब वहां पता चला कि आज कॉलेज किसी कारणवश नहीं लगेगा। तब मुझे वहां से मायूस होकर वापस लौटना पड़ा।
जब मैं घर आई तो देखी कि मां काम कर रही थी। मां से मैं पूछी की बापू कहां थे? तब उन्होंने कहा कि वह खेत पर गए थे, और आज मैं ही उनके लिए खाना लेकर चली जाऊं।
माया की तबीयत खराब थी तो मैं माया को डिस्टर्ब नहीं करना चाहती थी। इसलिए मैंने खाना लिया और खेतों की ओर चली गयी। जब मैं खेतों पर पहुंची तो वहां देखी कि बापू कहीं दिखाई नहीं दे रहे थे। पास में बहुत सारे केले के पेड़ लगे हुए थे, तो मुझे लगा कि बापू कहीं उधर काम तो नहीं कर रहे। मैं ट्यूबवेल के पास खाना रखी, और धीरे-धीरे खेतों की ओर जाने लगी।
जब मैं केले की खेतों की ओर अंदर जाने लगी। तब मुझे अंदर लोगों की हंसने की आवाज़ सुनाई दी। मैं चुप-चाप आवाज का पीछा करते हुए अंदर की ओर गई। तब मुझे खाट पर बैठी माया दिखाई दी और साथ ही उसके बगल में मेरे बापू बैठे हुए थे और हंसी मजाक कर रहे थे।
इसके आगे की कहानी अगले पार्ट में।
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