पिछला भाग पढ़े:- जब दीदी ने खुद को मेरे सामने खोला-6
फैमिली सेक्स स्टोरी अब आगे-
वाणी दीदी मेरे सामने पूरी तरह से नंगी लेटी हुई थी, और उनका पिछवाड़ा ठीक मेरे सामने था। मैं धीरे-धीरे और बिना जल्दी किए अपने लंड को उनके गोल और मुलायम हिस्से के पास ले गया। फिर मैंने हल्के-हल्के उसे उनके पिछवाड़े से टच कराना शुरू किया। पहले स्पर्श में ही एक अलग सा अहसास हुआ, जैसे मेरी गर्म सांसें और उनका नरम शरीर आपस में मिल रहे हों।
मैंने और भी धीरे किया, बस इतना कि उनकी मुलायम त्वचा मेरे नाज़ुक हिस्से को छूती रहे। हर हल्की रगड़ से मेरे शरीर में बिजली सी दौड़ जाती और मैं उस पल को लंबा खींचना चाहता था।
वह थोड़ा-सा हिलीं, शायद उन्हें भी एहसास हो रहा था। मैं बस उनके गोल हिस्से पर अपना लंड हल्के-हल्के चलाता रहा, ऊपर से नीचे और फिर धीरे-धीरे किनारों तक। हर बार छूने से मेरे अंदर की बेचैनी और बढ़ जाती, लेकिन मैंने खुद को रोका और सिर्फ़ बाहर से महसूस करता रहा।
इतने में उन्होंने धीमी आवाज़ में कहा, “गोलू, अब खेलो मत… अंदर डाल दो।” उनकी आवाज़ में हल्की कराह और इंतज़ार साफ़ झलक रहा था।
मैं और पास गया और धीरे-धीरे अपना लंड उनके छेद के पास ले आया। जैसे ही मैंने अंदर डालने की कोशिश की, मुझे बहुत टाइट अहसास हुआ। वह जगह इतनी कसी हुई थी कि मेरा लंड आसानी से अंदर नहीं जा पा रहा था। मैंने हल्का दबाव बनाया, लेकिन उनकी कराह अचानक तेज़ चीख में बदल गई।
“आह… रुक जाओ!” उन्होंने जोर से कहा। उनकी आवाज़ में दर्द साफ़ झलक रहा था। उनका शरीर कांप रहा था और उन्होंने हाथों से बिस्तर को कस कर पकड़ लिया। मैं धीरे करने की कोशिश करता रहा, लेकिन उनका दर्द हर बार और गहरा दिख रहा था। उनकी चीख और आँसू बताते थे कि यह उनके लिए बहुत तकलीफ़देह हो रहा था।
मैंने फिर से कोशिश की, और इस बार थोड़ा ज़्यादा ज़ोर से आगे बढ़ा। जैसे ही दबाव बढ़ा, वह अचानक ज़ोर से चीख पड़ी, उसकी आवाज़ में दर्द साफ़ था। उसने जल्दी से कहा, “गोलू, बस करो… रुक जाओ।” उसकी आँखों में आँसू भर आए और उसका शरीर सख़्त हो गया। उस पल मैंने भी समझ लिया कि यह उसे तकलीफ़ दे रहा था, और कमरे का सन्नाटा उसके दर्द भरे शब्दों से भर गया।
वाणी दीदी अचानक जाग गई और बिस्तर पर बैठ गई। मैं बस उन्हें देखता रह गया, कुछ कह नहीं पाया। उनकी आँखों में हैरानी और थोड़ी नाराजगी झलक रही थी, और उन्होंने मुझे घूरते हुए देखा। कमरे में चुप्पी छा गई थी, और मैं बस उनकी हर हलचल और हर भाव को नज़दीक से महसूस कर रहा था।
फिर उसने धीरे से कहा, “हम इसे बाथरूम में करते हैं, शॉवर लेते समय? शायद इससे आसान हो जाए।” उसकी आवाज़ में हल्की उम्मीद और कोशिश करने की इच्छा थी। मैंने सिर हिला कर हाँ कहा। उसने तुरंत मेरा हाथ पकड़ लिया और हम दोनों धीरे-धीरे बाथरूम की तरफ बढ़े।
बाथरूम में पहुँचते ही हवा में नमी और पानी की गंध थी। वह पानी के पास जाकर रुक गई और मुझे अपनी ओर खींचा। उसका हाथ मेरी उंगलियों में फिट हो गया और वह थोड़ी जल्दी से पानी चालू करने लगी। मैं बस उसके हर हिलने और हाथों की हर हल्की चाल को नज़दीक से महसूस कर रहा था।
जब गर्म पानी उनके और मेरे शरीर पर गिरने लगा, तो हमारी त्वचा तुरंत नम हो गई। पानी की बूँदें हमारी पीठ और हाथों से नीचे बह रही थी, और हमारी साँसें तेज़ होने लगी। उनके शरीर की गर्मी और पानी की नमी ने हर स्पर्श को और भी साफ और करीब बना दिया। दोनों का शरीर धीरे-धीरे भीगने लगा, पानी की धाराओं में हमारी हर हल्की चाल और हर स्पर्श महसूस होने लगा।
उसने बाथरूम की दीवार पर हाथ रख कर मुझे अपना पिछला हिस्सा दिखाया। पानी की बूंदों में उसका शरीर और भी भीगा और चमकदार लग रहा था। मैं उसके पास गया और धीरे-धीरे अपनी उंगलियाँ उसके पिछले छेद के पास ले गया। मैंने दो उंगलियाँ धीरे-धीरे उसके छेद में डाली और हल्के-हल्के घिसाई करना शुरू किया। जैसे ही मैं घिसाई कर रहा था, मैं महसूस कर रहा था कि वह जगह कसाव से भरी है। मैं धीरे-धीरे अपनी उंगलियों की गति बढ़ाने लगा, कोशिश करता हुआ कि वह थोड़ी ढीली हो जाए।
कुछ समय बाद उसने धीरे-से कहा, “अब अपना लंड अंदर डालो।” वाणी दीदी की आवाज़ में हल्की उम्मीद और थोड़ी हिचक झलक रही थी। मैंने सिर हिलाया और धीरे-धीरे अपना लंड उसके पास ले जाकर उसकी हर हल्की हरकत और सांस को महसूस करते हुए आगे बढ़ाया।
मैंने इस बार धीरे से उसकी गीली कमर पकड़ कर अपना लंड उसके पिछवाड़े की दरार की ओर ले गया। जैसे ही उसकी तंग गीली छेद के पास पहुंचा, उसने हल्की-सी सिसकारी ली और दोनों हाथों से शॉवर की दीवार थाम ली। पानी अब भी उसके पूरे शरीर पर बह रहा था, जिससे उसकी कोमल त्वचा और ज्यादा चमक रही थी।
मैंने बहुत धीरे दबाव डाला। उसका चेहरा दर्द से सिकुड़ गया, होंठों से कराह निकल आई, पर उसने मुझे रोका नहीं। उसकी सांसें भारी होती जा रही थी और आँखें बंद होकर कांपती पलकों से आँसू की बूंदें गिरने लगी। “आह… धीरे… बस थोड़ा-सा… आराम से…” वह दर्द और सुख के बीच फंसी फुसफुसा रही थी।
मैं रुकने की बजाय उसे सहलाने लगा, ताकि वह थोड़ा ढीली हो सके। तभी उसने खुद पांव की उंगलियों पर खड़े होकर अपनी कमर थोड़ी ऊपर उठाई, जैसे मुझे और अंदर आने का रास्ता दे रही हो। मैं हैरान था कि दर्द के बावजूद उसने मुझे आगे बढ़ने दिया।
धीरे-धीरे, पानी की चिकनाई और उसके शरीर की गर्मी से मेरा लंड उसकी तंग छेद में घुसने लगा। हर इंच पर वह कराहती, कभी खुद ही पीछे धकेलती। उसकी कमर की थरथराहट और आवाज़ों से साफ था कि तकलीफ़ उसे अब भी है, पर उसके भीतर कहीं-न-कहीं मुझे पूरी तरह महसूस करने की चाहत भी थी।
शॉवर की बूंदें हमारे मिलन को और भी तेज बना रही थी, जैसे हर गिरती बूंद उस पीड़ा और सुख को गहराती जा रही हो। मैं उसके पीछे झुक कर कान में फुसफुसाया, “बस थोड़ी देर और… रिलैक्स करो…” और उसने आंखें कस कर बंद कर दी, जैसे खुद को मेरे हवाले कर दिया हो।
मैंने धीरे-धीरे वाणी दीदी की तंग छेद में अपना लंड अंदर-बाहर करना शुरू किया। हर बार जब मैं अंदर जाता तो वह दर्द से कराह उठती, उसकी सांसें तेज हो जातीं और उसके होंठों से दबे स्वर में “आह…” निकल पड़ता। पानी की धार उसकी कमर से फिसलती हुई मेरे लंड को और फिसलन देती, लेकिन उसके छेद की कसावट ऐसी थी कि हर बार लगता जैसे कोई अनदेखी मुट्ठी मुझे पकड़ कर रोक रही हो।
वाणी दीदी दीवार से सिर टिकाए खड़ी थी, उसके हाथ कांप रहे थे, और वह दर्द से कराहते हुए भी मुझे रोक नहीं रही थी। उसकी आवाज़ धीमे-धीमे मेरे कानों में उतर रही थी, “आह… धीरे… बहुत टाइट लग रहा है…” उसकी हर कराह मेरे भीतर आग जला रही थी।
मैं धीरे-धीरे बाहर निकालता और फिर अंदर डालता। उस तंग छेद की पकड़ मुझे हर बार और गहराई में खींच लेती। मेरी रगें तन गई थी, हर धक्का मेरे लंड में बिजली की तरह दौड़ जाता। यह कसावट, यह गर्मी, यह अहसास मेरे लिए पहली बार था। मैं उसके दर्द से भरे कराहते स्वर सुन रहा था।
मैंने उसकी कमर कस कर पकड़ ली और उसकी पिछवाड़े की गोलाई पर उंगलियां दबाई। हर बार जब मैं धक्का मारता, उसका पूरा शरीर हल्की-सी थरथराहट में आ जाता। उसकी सिसकियाँ अब और तेज होने लगी थी। मैं खुद को रोक नहीं पा रहा था, उसकी तंग जगह की कसावट मुझे और भी गहराई तक धकेल रही थी।
वाणी दीदी दर्द में डूबी कराह रही थी, लेकिन उसके होंठों से बार-बार निकल रहा था, “रुकना मत… धीरे करो…” और मैं उसके हर शब्द को अपनी सांसों में उतार कर और भी गहरे, और भी लंबे धक्के लगाने लगा।
उसकी इस बात ने मुझे साफ समझा दिया कि अब वह सिर्फ दर्द में नहीं थी, बल्कि दर्द के बीच कहीं-न-कहीं उसे भी यह अनुभव भाने लगा था। उसकी सांसों की लय बदल रही थी, कराहों में अब हल्की मस्ती और कंपकंपी थी। मैंने महसूस किया कि उसका शरीर अब पहले जैसा विरोध नहीं कर रहा, बल्कि खुद ही लय में झुकने लगा था।
मैंने उसकी कमर और कस कर पकड़ ली और अपनी रफ्तार बढ़ा दी। अब मेरे धक्के तेज और गहरे होने लगे। हर बार जब मैं अंदर धँसता, वाणी दीदी जोर से सिसक उठती, उसकी कराहें गूंजती और पूरा बाथरूम उन आवाज़ों से भर जाता।
उसका चेहरा अब पूरी तरह लाल हो चुका था, आँखें बंद थी और होंठ आधे खुले हुए। पानी की धारें उसके गाल और गर्दन पर बह रही थी, जिससे उसकी हर सिसकी और भी कामुक लग रही थी। उसका चेहरा दीवार से लग कर कांप रहा था और हर झटके पर उसके स्तन हवा में उछलते हुए हिलते।
मैं अब पूरी ताकत से उसके भीतर जा रहा था, और उसकी तंग जगह मुझे हर बार जकड़ लेती। मेरा लंड जैसे उसके भीतर फँस जाता और जब बाहर आता तो मैं और भी जोर से उसे अंदर धकेल देता। वाणी दीदी की कराहें अब दर्द और आनंद का मिश्रण बन चुकी थी “आह… ओह… तेज करो… बस ऐसे ही…” उसकी आवाज़ों ने मेरे भीतर एक अलग ही आग जला दी।
हर बार के तेज धक्के पर उसका पूरा शरीर थरथरा उठता, उसकी सांसें टूट-टूट कर निकलती और उसकी उंगलियां दीवार में कस कर धँस जाती। उसकी कमर खुद-ब-खुद पीछे की ओर हिल रही थी, जैसे मेरे साथ तालमेल बैठा रही हो। उसकी कराह अब सिर्फ दर्द नहीं थी, बल्कि उसमें चाहत की लहर भी साफ झलक रही थी।
मैंने और तेज़ी से अंदर-बाहर करना शुरू कर दिया। मेरी सांसें तेज हो रही थी और उसका गला कराहों से भर गया था। हर बार जब मेरा लंड गहराई तक धँसता, वह अपने सिर को पीछे झटकती और उसके होंठों से बेसुध कराह निकल पड़ती—“आह्ह्ह… बस… रुको मत…”
तभी मैंने शैम्पू की बोतल उठाई और कुछ बूंदें उसके पिछवाड़े पर गिरा दी। जब मैं फिर तेज़ी से अंदर-बाहर करने लगा, तो शैम्पू की चिकनाई ने हमारे छुअन को और भी मुलायम बना दिया। वाणी दीदी की गांड और मेरा लंड अब हर गति में फिसल रहे थे, और फिसलन के साथ उनकी हल्की-हल्की आवाजें बाथरूम में गूंज रही थी। शैम्पू के झाग उनके शरीर के नीचे फैलने लगे, छोटे-छोटे बुलबुले उनके निजी हिस्सों के चारों ओर चमक रहे थे।
हर धक्का अब और भी सहज लग रहा था। वाणी दीदी की कराहें दर्द और आनंद का मिला-जुला स्वर बन गई थी। उसका चेहरा लाल और पसीने से चिपका हुआ, आँखें बंद, होंठ खुले, और हल्की-सी फुसफुसाहट “आह… ज्यादा… बस…” हर झटके पर उसका शरीर झुलस रहा था, लेकिन उसकी आँखों में चमक और होंठों की हलचल साफ दिखा रही थी कि उसे अब यह भी पसंद आ रहा है।
मैंने शैम्पू की चिकनाई का लाभ उठाते हुए और तेज़ी से और गहराई में धकेलना शुरू किया। झाग उनके शरीर पर फैल रहा था और हर धक्का उनके फिसलते हिस्सों से गूंज रहा था। हमारे बीच हर मूवमेंट चिकनी, गहन और आनंदित लग रही थी, और उसकी छोटी-छोटी आवाज़ें जैसे हर झटके के साथ खिल उठती “आह… हाँ… ऐसे ही… रुको मत…”
जैसे ही मैंने और महसूस किया कि वाणी दीदी अब धीरे-धीरे इस गति का आनंद लेने लगी है, मैंने अपनी रफ्तार और बढ़ा दी। अब मेरा लंड अंदर-बाहर बहुत तेज़ी से चलता, और फिसलन की वजह से हर धक्का सहज और गहन लग रहा था। झाग उनके निजी हिस्सों के नीचे फैलते हुए गहरे सफेद बुलबुले बना रहा था, जो हर मूवमेंट पर दबाव के साथ फिसल रहे थे।
मैंने धीरे-से पूछा, “दीदी, क्या मैं और शैम्पू लगा दूँ?”
वाणी दीदी ने थोड़ी सिकुड़ कर कहा, “नहीं… जल रहा है… मत लगाओ।” उसकी आवाज़ में हल्की फुसफुसाहट और दर्द की झलक थी, लेकिन उसमें रोकने की ताकत नहीं थी।
मैंने उसकी सीमा समझते हुए बिना शैम्पू लगाए अपनी गति और बढ़ा दी। अब मैं अंदर-बाहर इतनी तेज़ी से धकेल रहा था कि उसका पूरा शरीर हर धक्के पर झुलस उठता। वाणी दीदी ने दीवार को और कसकर थाम लिया, उसकी उंगलियां दीवार में गहरी धँस रही थी, और उसके हाथों में पकड़ की ताकत साफ झलक रही थी।
उसका चेहरा लाल और पसीने से चमक रहा था, आंखें बंद थी और होंठ हल्के-से खुले, हर कराह में दर्द और आनंद की लहर साफ झलक रही थी। वह तेज़ गति के साथ झुलसती, उसकी नाभि और स्तन पानी और झाग में चमकते हुए उछल रहे थे। हर धक्का उसके पिछवाड़े की कसावट और फिसलन के साथ मुझे और अधिक आनंद दे रहा था।
वाणी दीदी की कराहें अब तेज और लंबे स्वर में बदल गई थी, “आह… हाँ… जल्दी… बस ऐसे ही…” उसकी सांसें तेजी से फूल रही थी, शरीर दीवार पर झुक कर थरथरा रहा था, और उसके हाथ दीवार में कस कर धंस रहे थे।
तेज़ी से धकेलते हुए मुझे लगा कि अब मैं अपनी हद के करीब पहुँच चुका था। मेरा शरीर कांपने लगा, सांसें टूटने लगी और आंखें भारी हो गई। मैंने हांफते हुए वाणी दीदी के कान के पास कहा, “दिदी… मैं लगभग पहुँच गया हूँ… अब क्या करूँ?”
उसने आधी खुली आंखों और हांफती सांसों में कहा, “अंदर ही छोड़ दो… मेरी गांड़ में ही…” उसकी आवाज़ धीमी लेकिन साफ थी। उसके शब्द सुन कर मेरा शरीर बेकाबू हो गया।
मैंने और तेज़ी से कुछ धक्के मारे और अचानक पूरा शरीर तन कर रह गया। गर्म-गर्म सफेद पानी का फव्वारा उसके पिछवाड़े में भरने लगा। वाणी दीदी दर्द और आनंद से कराह उठी, उसका चेहरा लाल हो गया और होंठ खुले रह गए। मेरे सफेद पानी की धारें उसके पिछवाड़े से बहने लगी, और शॉवर का पानी उन्हें धीरे-धीरे धोकर उसकी जांघों और टांगों से नीचे बहाने लगा। झाग और सफेद पानी मिलकर उसके पैरों पर बहते हुए फिसल रहे थे।
वाणी दीदी का चेहरा उस पल में पूरी तरह भीगा हुआ था, पानी, पसीना, आंसू और आनंद सब एक साथ। उसकी आंखें बंद थी, होंठों से टूटी-फूटी कराहें निकल रही थी, और दीवार पकड़ने वाले उसके हाथ अब ढीले होकर कांप रहे थे।
शॉवर की बूंदों के बीच उसका थका हुआ लेकिन सुकून भरा चेहरा मुझे साफ दिखा रहा था कि उसने दर्द और सुख, दोनों को स्वीकार कर लिया है।
अचानक ही उसका पूरा शरीर थकान से जैसे जवाब दे गया और वह धीरे-धीरे नीचे फिसल कर ज़मीन पर बैठ गई। मैं तुरंत झुक कर उसके पास बैठ गया और उसका चेहरा दोनों हाथों में पकड़ लिया। पानी अब भी उस पर गिर रहा था, उसके भीगे बाल गालों से चिपक रहे थे और आंखों में हल्की-सी नमी चमक रही थी।
मैंने घबरा कर पूछा, “दीदी, क्या हुआ? आप ठीक तो हैं ना?”
वह मुस्कुराई, हल्की-सी सांसें खींचते हुए बोली, “मुझे कुछ नहीं हुआ… मैं बहुत खुश हूँ… क्योंकि आज मैंने अपने छोटे भाई का सपना पूरा कर दिया।”
उसकी आवाज़ कांप रही थी, मगर उसमें एक सुकून था। उसके होंठों पर थकी हुई मुस्कान थी, आंखों में हल्की चमक थी। मेरे हाथ उसके चेहरे को थामे हुए थे, और मैं उस पल उसकी बात सुन कर भीतर तक कांप गया। पानी की बूंदें हमारे बीच गिर कर जैसे उस पल को और गहराई दे रही थी, और उसके शब्द मेरे दिल में हमेशा के लिए दर्ज हो गए।
कुछ देर बाद मैंने उसे धीरे से उठाया और हम दोनों फिर से शॉवर के नीचे खड़े हो गए। पानी की धार ने हमारे बदन पर लगे सारे झाग और एक-दूसरे के निशानों को धीरे-धीरे धो दिया। मैं सावधानी से उसके निजी हिस्सों को साफ कर रहा था और वह हल्की-सी मुस्कान के साथ मेरी ओर देख रही थी। उसके चेहरे पर अब भी दर्द झलक रहा था, लेकिन उसमें संतोष भी था।
हमने एक-दूसरे को अच्छे से धोकर साफ किया, और फिर धीरे-धीरे बाथरूम से बाहर निकल आए। बाहर आकर मैंने तौलिए से पहले उसे पोंछा, उसके बाद खुद को। उसने अपने कपड़े पहने, मैंने भी अपने। दोनों पूरी तरह थक चुके थे, मगर उस थकान में एक अजीब-सा सुख भी था।
कमरे में जाकर हम दोनों बिस्तर पर बैठ गए। दीदी मेरे कंधे से लग कर बैठ गई, मैंने उसे अपनी बाँहों में समेट लिया। उसकी साँसें अब भी भारी थी, शायद तकलीफ़ अब भी बाकी थी, लेकिन मेरे लिए ज़रूरी था कि उसे अच्छा महसूस कराऊँ। मैं धीरे-धीरे उसकी पीठ सहलाता रहा, और वह मेरे सीने से लग कर आँखें बंद किए रही।
उस पल मुझे लगा जैसे मैं सिर्फ उसका छोटा भाई ही नहीं, बल्कि उसकी देखभाल करने वाला, उसका सहारा भी हूँ। और दीदी भी इस एहसास में पूरी तरह डूबी हुई थी, मेरी बाहों में खुद को सुरक्षित और सुकून भरा महसूस कर रही थी।
इसी दौरान अचानक उसका मोबाइल बज उठा। उसने मेरे सीने से हट कर फोन उठाया और कॉल रिसीव कर ली। मैं चुप-चाप उसकी आँखों और चेहरे के भाव देख रहा था। कुछ ही मिनटों की बात-चीत के बाद उसने कॉल काट दी। लेकिन उसके चेहरे पर एक हल्की उदासी झलक रही थी।
मैंने तुरंत पूछा, “क्या हुआ दीदी? कौन था?”
वह हल्के स्वर में बोली, “पापा का फोन था… वो तुम्हारे बारे में पूछ रहे थे। उन्होंने कहा है कि तुम्हें कल सुबह घर आना होगा।”
उसकी आवाज़ में एक अजीब-सा दर्द और चिंता थी, मानो ये पल अचानक और भारी हो गया हो।
मैं चुप-चाप उसके पास बैठा सोचता रहा। मेरे दिल में यह अहसास गहराता गया कि मैंने अपनी ज़िंदगी का सबसे बड़ा और यादगार दिन दिल्ली में अपनी बड़ी बहन के साथ बिताया। लेकिन अब लग रहा था कि यह सब धीरे-धीरे खत्म हो रहा था, क्योंकि एक बार फिर हमारे बीच दूरी बढ़ने वाली थी। [email protected]
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