पिछला भाग पढ़े:- दीदी ने सिखाया मुझे सेक्स करना-3
भाई-बहन सेक्स कहानी अब आगे-
सुधा दीदी और मेरे बीच की नजदीकियां हर दिन और भी कम होती जा रही थी। वह मुझे हर रोज कोई नया सेक्स लेसन समझाने की कोशिश करती। हालांकि उसने अब तक मेरा लंड सिर्फ अपने मुंह में लिया था, उसके अलावा कुछ भी नहीं।
उस शाम जब मैं छत पर गया तो सुधा दीदी पहले से ही वहाँ खड़ी थी। ठंडी हवा उनके बालों में उलझ रही थी और वह मुझे देखते ही मुस्कुरा दीं, वही मुस्कान जो मेरे अंदर कहीं गहराई में हलचल कर देती थी। वह धीरे-धीरे मेरी तरफ आई, जैसे हर कदम के साथ हमारा फासला मिट रहा हो।
“आज तुम फिर खोए-खोए लग रहे हो,” उन्होंने धीमी आवाज़ में कहा, जैसे मुझे पढ़ लिया हो।
मैंने नज़रें झुका ली लेकिन उनकी गर्म हथेली मेरे कंधे पर आकर टिक गई। उस छूने में कोई जल्दबाज़ी नहीं थी, बस एक भरोसा, एक अपनापन।
“डरते क्यों हो?” दीदी ने फुसफुसाते हुए पूछा।
मैंने धीरे से सिर उठाया। उनकी आँखों में वही नरमी थी जो मुझे हर सीमा के पास ले आती थी, बिना बोले।
मैं कुछ बोल पाता उससे पहले ही सुधा दीदी ने मेरा हाथ धीरे से पकड़ा, और बिना कोई हिचक उसे अपने स्तन पर रख दिया। उनकी उंगलियों की हल्की सी दबाव से मेरा हाथ उनके नरम, गर्म उभारों पर टिक गया।
मेरी साँस वहीं अटक गई। उनका स्पर्श, उनकी महक, उनकी गर्म त्वचा, सब कुछ जैसे एक साथ मेरे अंदर उतर गया।
दीदी हल्का सा मुस्कुराई। वह मुस्कान ऐसी थी मानो मेरे दिल के सबसे छिपे हिस्से को भी देख लेती हो। फिर उन्होंने मेरी आँखों में सीधे देखते हुए कहा “क्यों उदास लग रहे हो? मैं तो हमेशा यहाँ हूँ… तुम्हें खुश करने के लिए।”
उधर मेरा हाथ अभी भी उनके स्तन पर था और दीदी ने हटाया भी नहीं। बल्कि उनकी उंगलियाँ मेरी कलाई पर टिकी रहीं, मुझे वहीं थामे हुए, जैसे कह रही हो कि यह सब बिल्कुल ठीक है।
मैंने काँपती आवाज़ में कहा, “दीदी… आपने मुझे बहुत चीज़ें सिखाई हैं… लेकिन एक बात समझ नहीं आती।”
वह मेरे और करीब आ गई। “कौन सी बात?”
मैंने हिचकते हुए, शर्म से कहा, “जब भी मैं आपके बारे में… सपने देखता हूँ… तब भी वो सफ़ेद चीज़ बाहर आ जाती है… क्यों आता है ये?”
मेरी आवाज़ डरपोक भी थी और चाहत से भरी भी।
दीदी ने मेरी ठुड्डी पकड़ कर ऊपर उठाई, उनकी आँखों में एक गर्म, जानने वाला सा भाव चमका।
“क्योंकि तुम मुझे चाहने लगे हो, गोलू…” उन्होंने धीमे से कहा, “और ये बिल्कुल स्वाभाविक है।”
उसी समय दीदी ने एक हल्की सी मुस्कान के साथ अपने छोटे, टाइट शॉर्ट्स को नीचे की ओर थोड़ा खिसकाया। उनकी जांघों की मुलायम चमकते हुए रेघें खुल कर सामने आ गई। फिर बिना कुछ कहे उन्होंने मेरा हाथ पकड़ा, और धीरे-धीरे अपने शॉर्ट्स के अंदर ले गई।
मेरा पूरा हाथ उनकी गर्म, मुलायम त्वचा को छूता हुआ अंदर गया, और फिर मेरी हथेली उनके बिल्कुल निजी हिस्से पर टिक गई।
जैसे ही मेरी हथेली वहाँ पहुँची, दीदी ने हल्का सा साँस खींचा। उनकी जाँघें मेरे हाथ के चारों ओर थोड़ी सख़्त होकर बंद होने लगीं, जैसे वह इस स्पर्श को रोकना भी चाहती हों और बढ़ाना भी।
उनका शरीर गर्म था… इतना गर्म कि मेरी हथेली जैसे पिघलती जा रही थी। उनके नाजुक हिस्से की उभार मेरी हथेली के नीचे नरम, भीगी और धड़कती हुई महसूस हो रही थी।
दीदी ने मेरी उँगलियों पर अपनी उँगलियाँ जमाई और मुझे वहीं दबाए रखा।
“देखो गोलू…” उन्होंने फुसफुसाते हुए कहा, उनके होंठ मेरे कान के बिल्कुल पास, “सपनों में इसलिए निकलता है… क्योंकि असल में तुम मुझे ऐसे छूना चाहते हो।”
मैंने डरते-डरते धीरे से पूछा, “दीदी… क्या सब लड़कों को ऐसा ही लगता है? मतलब… ये सब बातें… ये महसूस होना… क्या सब के साथ होता है?”
दीदी हल्के से हँसीं, वही नर्मी, वही गर्माहट लिये हुए। उन्होंने मेरी कलाई पर अपनी पकड़ और मुलायम कर दी, जैसे मुझे और शांत कर रही हों।
“हर लड़के को इच्छाएँ होती हैं, गोलू…” उन्होंने धीमे से कहा, उनकी साँसें मेरे गाल को छू रही थी, “हर लड़का अपनी बहन के बारे में यही सोचता है। ”
उन्होंने मेरी हथेली को थोड़ा और अपने नरम हिस्से पर दबाया, जैसे अपनी बात में गर्मी भर रही हों।
“इच्छा होना गलत नहीं है,” उन्होंने फुसफुसाते हुए कहा, “बस कोई इसे बोल नहीं पाता… डर और शर्म की वजह से।”
उनकी उँगलियाँ अभी भी मेरी कलाई पकड़े थी… तभी अचानक उन्होंने धीरे से मेरा हाथ अपने शॉर्ट्स के अंदर से बाहर निकाल लिया। मैंने चौंक कर उनकी तरफ देखा।
उन्होंने मेरी उँगलियों को नरमी से छोड़ा और हल्की मुस्कान के साथ बोली, “अब नीचे जाओ अपने कमरे में… गोलू।”
“क्यों…?” मैंने धीरे से पूछा।
दीदी ने प्यार से मेरे गाल को छुआ। “क्योंकि तुम्हें भी आराम चाहिए… और मुझे भी। जल्दी सोने से अच्छा महसूस होता है। समझे?”
मैं जाने के लिए मुड़ा लेकिन तभी उन्होंने मेरा हाथ अपने हाथों में थामा… और फिर धीरे-धीरे उसे अपने होंठों के पास ले गई। वहीं हाथ… जिसकी उँगलियाँ अभी कुछ पल पहले उनके सबसे निजी हिस्से को छू रही थी। उन्होंने मेरी उँगलियों को देख कर हल्की, शरारती मुस्कान और फिर अपने नरम होंठों से धीरे-धीरे उन उँगलियों को चाट लिया। उनकी जीभ की गर्माहट मेरी उँगलियों पर फैल गई, जैसे वह मेरे स्पर्श का स्वाद ले रही हों।
फिर उन्होंने होंठों को धीरे से चूम कर उँगलियों को छोड़ा… और धीमी, भारी आवाज़ में बोली, “अब तुम नीचे जाओ… गोलू।”
मैंने धीरे से सिर हिलाया और सीढ़ियों की ओर बढ़ा। मैंने आख़िरी पायदान पर कदम रखा तो महसूस हुआ कि वह अभी भी मुझे देख रही हैं। मैंने मुड़ कर देखा, वह वहीं खड़ी थी, उसी गहरी, गर्म नज़र के साथ। वह नज़र मेरे अंदर कुछ देर तक जलती रही।
उस रात मैं अपने कमरे में आया तो शरीर थक गया था, लेकिन दिल और दिमाग… वो दोनों बिल्कुल जाग रहे थे। मैं बिस्तर पर लेट तो गया, पर आँखें बंद करते ही हर पल फिर से सामने आने लगा।
सुधा दीदी का मेरे उँगलियों को पकड़ कर ऊपर लाना… उनका मेरी उँगलियों को अपने होंठों से चाटना… उनकी साँसों की गर्मी… उनके होंठों का गीलापन… सब कुछ मेरे दिमाग में घूमने लगा।
मैं करवट बदलता रहा, पर नींद कहीं नहीं थी। जिस तरह उन्होंने मेरा हाथ पकड़ा और अपने बूब्स पर रखा… वो नरमी, वो धड़कन, वो गर्माहट… मेरी उँगलियों के पोरों में जैसे छप गई थी।
आँखें बंद की तो वही एहसास लौट आया, उनका सीना मेरे हाथ में भरना, उनका काँपना, उनका पास आना…
और फिर वो भी याद आने लगा… कुछ दिन पहले जब उन्होंने मुझे अपने कमरे में अंदर आने दिया था, और बिना कुछ कहे मेरा लंड अपने गर्म, गीले मुँह में लिया था।
उनकी जीभ की गर्माहट… उनकी साँसों की गहराई… और उनका ऊपर देख कर मुस्कुराना, जैसे मैं सिर्फ और सिर्फ उनका ही हूँ। मैं करवटें बदल रहा था, तभी…अचानक किसी ने मेरे कमरे के दरवाज़े पर दस्तक दी। मैं चौंक कर उठ बैठा। दिल तेज़ धड़कने लगा। इस वक़्त कौन…? धीरे-धीरे मैं दरवाज़े तक गया और उसे खोला और दरवाज़ा खुलते ही मेरी साँस अटक गई। वहाँ वो थी, सुधा दीदी।लेकिन इस बार… अलग।
उन्होंने ढीली-सी हल्की ग्रे टी-शर्ट पहन रखी थी, जो उनके शरीर पर ऐसे गिर रही थी कि उनकी क्लीवेज की एक नरम, गहरी लाइन साफ़ दिख रही थी। टी-शर्ट का गला थोड़ा सा ढीला था, जिससे उनके स्तन का ऊपरी हिस्सा झलकता था, गोल, भरा हुआ, हल्की छाया में चमकता हुआ।
उनके नीचे उन्होंने छोटे, ढीले शॉर्ट्स पहन रखे थे। उनकी जाँघें बिल्कुल खुली थी, चिकनी, गोरी, और नरम चमकती हुई। जब वह दरवाज़े की रोशनी में खड़ी हुई तो उनकी जाँघों की हल्की लकीरें और उनकी त्वचा की गर्मी जैसे हवा में भी महसूस होने लगी।
उनकी टी-शर्ट इतनी ढीली थी कि हल्की हवा के झोंके में वह उनके स्तनों पर टिकी रहती… फिर थोड़ी सरक जाती… और उनकी क्लीवेज एक पल के लिए और गहरी दिखने लगती।
उनका चेहरा नींद से थोड़ा थका हुआ था, पर आँखें? वो आँखें फिर से वही गर्मी लिए हुए थी, धीमी, नरम, चाहत से भारी।
वह धीरे से बोली, “गोलू… दरवाज़ा तो खोलोगे ना…?”
मैंने तुरंत हाँ में सिर हिलाया, “हाँ दीदी… आओ अंदर…”
मैंने दरवाज़ा थोड़ा और खोला और वो धीरे से कमरे में आ गई। सुधा दीदी बिस्तर के किनारे जाकर बैठ गई, टी-शर्ट हल्का ऊपर खिंचकर उनकी जाँघें और भी खुल गई, और उनकी क्लीवेज गहरी परछाई बनाती रही।
मैं उनके पीछे पीछे गया और धीरे से उनके बिल्कुल पास बैठ गया, इतना पास कि उनकी गर्म साँसें मेरी बाँह को छू रही थी। कमरे में हल्की अँधेरा था… पर उनकी खुशबू और उनका शरीर मेरे बिल्कुल करीब… सब कुछ मुझे फिर से पागल करने लगा।
“गोलू…” उनकी आवाज़ बहुत धीमी, बहुत नरम थी, “मैं तुम्हें एक बात बताना चाहती हूँ… पर नहीं जानती कि कैसे कहूँ।”
मैंने उनकी ओर देखा, उनकी आँखों में शर्म भी थी, चाहत भी, और कुछ अनकही बातें भी। उन्होंने एक लंबी साँस ली… फिर मेरी तरफ थोड़ा झुक कर फुसफुसाई, “सुबह मैं… तुम्हारा अंडरवियर धो रही थी… और उसमें वो सफ़ेद चीज़… दिखी मुझे।”
मेरी साँस वहीं रुक गई। वह मेरी आँखों में देखते हुए और भी धीमी आवाज़ में बोली, “मैंने देखा… पर कुछ नहीं कहा। बस… इंतज़ार करती रही।”
मैंने हैरानी से पूछा, “किस बात का…?”
उन्होंने अपनी उँगलियाँ मेरी उँगलियों पर रखी, जैसे किसी बच्चे को समझाती हो, पर आवाज़ में चाहत की गर्मी थी।
“मैं सोच रही थी… शायद तुम खुद बताओगे मुझसे।”
उन्होंने थोड़ा और करीब आकर फुसफुसाया, “क्योंकि अगर तुम बताते… तो मैं मदद करती, गोलू… जैसे मैं हमेशा करती हूँ…”
“तुम हमेशा मेरे बारे में सपने देखते हो… लेकिन इस बार क्या हुआ? क्यों बुरा लगा तुम्हें?”
मैंने गहरी साँस ली और सच बोल दिया, “कल मैं… एक पोर्न देख रहा था। उसमें एक आदमी एक लड़की के साथ बहुत बुरा बर्ताव कर रहा था… उसे ज़ोर से, दर्द देकर…” मेरी आवाज़ काँप गई। “और बाद में जब मैं सोया… तो सपने में वही चीज़ आपके साथ सोचने लगा। इसलिए मैं आपके पास नहीं आया। मुझे डर लगा… कि कहीं मैं आपको भी… वैसा ही सोच रहा हूँ।”
कुछ पल कमरे में शांति छा गई। सुधा दीदी ने गहरी साँस ली… फिर मेरी तरफ देखते हुए धीरे से बोली, “गोलू… वो वीडियो मुझे दिखाओ।”
मैं चौंका, “क्या… अभी?”
उन्होंने हाँ में सिर हिलाया, “हाँ… ताकि मैं समझ सकूँ तुम क्या देख रहे थे।”
मैंने तुरंत अपना लैपटॉप निकाला और ऑन किया। पर शायद दीदी को उस ढीली टी-शर्ट में कुछ अटपटा लगा… वह थोड़ी असहज होकर उसे पकड़ने लगी। टी-शर्ट का गला और ढीला होकर उनकी क्लीवेज और भी साफ़ दिखने लगी।
फिर अचानक उन्होंने कहा, “एक मिनट… ये टी-शर्ट अजीब लग रही है।”
उसने टी-शर्ट को पकड़ कर एक हल्के झटके में ऊपर से निकाल दिया। अब वह सिर्फ अपनी गुलाबी, स्टाइलिश, ट्रांसपेरेंट ब्रा में थी।
वह ब्रा पतली लेस से बनी थी, मुलायम, नाजुक… इतनी हल्की कि उसके पार से उनके स्तनों की पूरी बनावट साफ़ दिख रही थी।
उनके स्तन गोल, भरे हुए और हल्की रोशनी में चमकते हुए लग रहे थे, जैसे उनकी त्वचा पर कोई गुलाबी नरमी फैली हो। ब्रा के अंदर उनके निप्पल की झलक भी हल्के से दिखाई दे रही थी, गर्म, उठे हुए, और इतनी साफ़ कि मेरी साँस अटक गई।
उनकी हर हल्की साँस के साथ उनके स्तन ऊपर-नीचे हो रहे थे वह बिल्कुल आराम से बैठ गई, बाल पीछे करके बोली, “अब दिखाओ… वो वीडियो।”
मैंने वीडियो चलाया, लेकिन मेरी आँखें स्क्रीन पर कम और दीदी की छाती पर ज़्यादा टिकने लगी। उनकी ब्रा में बंद वो नरम उभार मेरी नज़रें खींचते जा रहे थे।
मैं लगातार उनके स्तनों को घूरता रहा, इतना कि शायद कोई भी नोटिस कर ले… लेकिन दीदी ने कुछ नहीं कहा।
वह बस वीडियो देखती रहीं, जैसे उन्हें कुछ महसूस ही ना हो… जबकि उनकी साँसें थोड़ी भारी होने लगी थी। स्क्रीन पर लड़का लड़की के पिछवाड़े पर धीरे-धीरे तेल लगा रहा था। लड़की कराह रही थी, और लड़का उसके मुलायम हिस्से पर हाथ फेरता जा रहा था।
फिर अचानक वीडियो में लड़का अपना लंड सेट कर के लड़की के अंदर डाल देता है। लड़की ज़ोर से दर्द में चिल्लाती है, उसकी आवाज़ कमरे में गूंजती है, लेकिन लड़का रुकता नहीं, वह लगातार उसे और गहराई तक धकेलता रहता है।
वीडियो की चीखें, दीदी का चुप रह कर बस देखना, और मेरे सामने उनके स्तनों का उठना-गिरना… सब एक साथ कमरे को गर्म बनाते जा रहे थे। फिर भी… दीदी ने मुझे रोकने या कुछ कहने की कोशिश नहीं की।
वीडियो खत्म हुआ तो दीदी ने धीरे से मुस्कुराया। उनकी मुस्कान में हल्की शरारत भी थी।
उन्होंने मेरी तरफ देख कर कहा, “गोलू… लड़कियों को ऐसे पीछे से करते समय दर्द नहीं होता। वो बस वीडियो में ज़्यादा दिखाते हैं। असल में इतना नहीं दुखता।”
उनकी बात सुन कर मेरा गला सूख गया। मैं कुछ पल चुप रहा, फिर धीमी आवाज़ में बोला, “तो… क्या हम भी कर सकते हैं…?”
मेरी बात सुनते ही दीदी का चेहरा लाल पड़ गया, गाल जैसे गर्म हो उठे हों। वो कुछ पल मेरी आँखों में देखती रही, फिर धीरे-धीरे मुस्कुराई।
उन्होंने अपना एक हाथ बढ़ा कर मेरे गाल पर रखा, उँगलियों का वो नरम स्पर्श मेरे पूरे बदन में बिजली-सा दौड़ा गया।
हल्की, शर्म से कांपती आवाज़ में उन्होंने कहा, “अगर तुम चाहते हो… तो हम कर सकते हैं, गोलू…”
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